विधि के समक्ष समता से आप क्या समझते हैं? - vidhi ke samaksh samata se aap kya samajhate hain?

विधि के समक्ष समता से आप क्या समझते हैं? - vidhi ke samaksh samata se aap kya samajhate hain?

विधिक समता (equality before the law) एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार कानून के सामने सभी लोग समान हैं। अर्थात् सभी लोगों पर समान कानून लागू होता है और उसी के अनुसार न्याय दिया जाना चाहिए।

कानूनी समानता का मतलब है कानून के सामने समानता और सबके लिए कानून की समान सुरक्षा। अवधारणा यह है कि सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, इसलिए कानून के सामने समान हैसियत के पात्र हैं। कानून अंधा होता है और इसलिए वह जिस व्यक्ति से निबट रहा है उसके साथ कोई मुरौवत नहीं करेगा। वह बुद्धिमान हो या मूर्ख, तेजस्वी को या बुद्धू, नाटा हो या कद्दावर, गरीब हो या अमीर, उसके साथ कानून वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा औरों के साथ करेगा। लेकिन उपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी बालक या बालिका के साथ किसी वयस्क पुरुष या स्त्री जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा और बालक या बालिका के साथ मुरौवत किया जाएगा।

दुर्भाग्यवश, कानूनी समानता का मतलब जरूरी तौर पर सच्ची समानता नहीं होती, क्योंकि जैसा कि हम सभी जानते हैं, कानूनी न्याय निःशुल्क नहीं होता और धनवान व्यक्ति अच्छे से अच्छे वकील की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है और कभी-कभी तो वह न्यायाधीशों को रिश्वत देकर भी अन्याय करके बच निकल सकता है।

भारतीय संविधान और विधिक समानता[संपादित करें]

भारतीय संविधान के भाग ३ में मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद १४ के अंतर्गत विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण का उपबंध किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर भारतीय नागरिकों एवं विदेशी दोनों के लिये समान व्यवहार का उपबंध करता है।

‘कानून के समक्ष समानता’ (equality before law) का मूल ब्रिटिश व्यवस्था में निहित है। यह अवधारणा किसी भी व्यक्ति के पक्ष में विशेषाधिकार के अभाव को दर्शाता है। इसका तात्पर्य देश के अंतर्गत सभी न्यायालयों द्वारा प्रशासित कानून के सामने सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब, सरकारी अधिकारी हो या कोई गैर-सरकारी व्यक्ति, कानून से कोई भी ऊपर नहीं है।

‘कानून का समान संरक्षण’ (Equal Protection of Laws) अमेरिकी संविधान से प्रेरित है। इसका तात्पर्य कानून द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों और दायित्वों के संदर्भ में समान परिस्थितियों में समान व्यवहार और सभी व्यक्तियों के लिये एक ही तरह के कानून का एक जैसे अनुप्रयोग से है।

इस तरह यह कहा जा सकता है कि ‘कानून के समक्ष समानता’ एक नकारात्मक अवधारणा है जबकि ‘कानून के समान संरक्षण’ सकारात्मक है। हालाँकि दोनों ही अवधारणाओं का उदेश्य कानून और न्याय की समानता सुनिश्चित करना है।

विधि के समक्ष समता से आप क्या समझते हैं? - vidhi ke samaksh samata se aap kya samajhate hain?

भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 14 से 18 तक समता (समानता) का अधिकार नागरिकों को प्राप्त है, समानता से अर्थ है कि भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। कानून सभी के साथ समान न्याय करेगा अर्थात एक आरोपी को भी आपने बचाव के लिए उतना ही अधिकार होगा जितना वादी को आरोप सिद्ध करने का होता है। संविधान में समानता का अधिकार विधि के समक्ष होगा और हमारा देश विधि द्वारा ही चलता है, जानते हैं आज हम विधिक संरक्षण एवं विधिक समानता क्या है?

भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 14 की परिभाषा:-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 समता का सामान्य नियम बताता है जो व्यक्तियों के बीच अयुक्तियुक्त विभेद को खत्म करता है। इस अनुच्छेद में बताया गया है की सभी नागरिक विधि के समक्ष समान है एवं सभी को विधियों के समान संरक्षण का अधिकार प्राप्त है।

साधारण शब्दों में कहें तो अनुच्छेद 14 कानून के सामने सभी नागरिकों को समान मानता है एवं सभी को कानूनी संरक्षण प्राप्त होगा अर्थात विधि के उल्लंघन पर जो दण्ड एक आम नागरिक जो मिलता है वो ही दण्ड देश के राष्ट्रपति को भी मिलेगा। 

हमारा देश भारतीय संविधान एवं विधि के अनुसार चलता है एवं कानून (विधि) के उल्लंघन पर ही नागरिकों को न्यायालय द्वारा दण्ड दिया जाता है इस प्रकार विधि के समक्ष सब सभी को समानता एवं विधि से संरक्षण प्राप्त है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665

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समानता का अधिकार

1. विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण

अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह नागरिक हो या विदेशी सब पर यह अधिकार लागू होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति शब्द में विधिक व्यक्ति अर्थात् सांविधानिकनिगम, कपंनियां, पंजीकृत समितियां या किसी भी अन्य तरह का विधिक व्यक्ति सम्मिलित हैं।

‘विधि के समक्ष समता’ का विचार ब्रिटिश मूल का है, जबकि ‘विधियों के समान संरक्षण’ को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। पहले संदर्भ में शामिल है-(अ) किसी व्यक्ति के पक्ष में विशिष्ट विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति। (ब) साधारण विधि या साधारण विधि न्यायालय के तहत सभी व्यक्तियों के लिए समान व्यवहार । (स) कोई व्यक्ति (अमीर-गरीब, ऊंचा-नीचा, अधिकारी-गैर-अधिकारी) विधि के ऊपर नहीं है।

दूसरे संदर्भ में निहित है-(अ) विधियों द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों और अध्यारोपित दायित्वों दोनों में समान परिस्थितियों के अंतर्गत व्यवहार समता, (ब) समान विधि के अंतर्गत सभी व्यक्तियों के लिए समान नियम हैं, और (स) बिना भेदभाव के समान के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। इस तरह पहला नकारात्मक संदर्भ है, जबकि दूसरा सकारात्मक। हालांकि दोनों का उद्देश्य विधि, अवसर और न्याय की समानता है।

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि जहां समान एवं असमान के बीच अलग-अलग व्यवहार होता हो, अनुच्छेद 14 लागू नहीं होता । यद्यपि अनुच्छेद 14 श्रेणी विधान को अस्वीकृत करता है। यह विधि द्वारा व्यक्तियों, वस्तुओं और लेन-देनों के तर्कसंगत वर्गीकरण को स्वीकृत करता है। लेकिन वर्गीकरण विवेक शून्य, बनावटी नहीं होना चाहिए। बल्कि विवेकपूर्ण,सशक्त और पृथक् होना चाहिए।

विधि का शासन

ब्रिटिश न्यायवादी ए.वी. डायसी का मानना है कि विधि के समक्ष समता’ का विचार विधि का शासन के सिद्धांत का मूल तत्व है। इस संबंध में उन्होंने निम्न तीन अवधारणायें प्रस्तुत की हैं:

  1. इच्छाधीन शक्तियों की अनुपस्थिति अर्थात् किसी भी व्यक्ति को विधि के उल्लंघन के सिवाए दण्डित नहीं किया जा सकता।
  2. विधि के समक्ष समता अत्यावश्यक है। कोई व्यक्ति (अमीर गरीब, ऊंचा-नीचा, अधिकारी-गैर-अधिकारी) कानून के ऊपर नहीं है।
  3. व्यक्तिगत अधिकारों की प्रमुखता अर्थात संविधान व्यक्तिगत अधिकारों का परिणाम है, जैसा कि न्यायालयों द्वारा इसे परिभाषित और लागू किया जाता है, नाकि संविधान व्यक्तिगत अधिकारों का स्रोत है।

पहले एवं दूसरे कारक ही भारतीय व्यवस्था में लागू हो सकते हैं, तीसरा नहीं। भारतीय व्यवस्था में संविधान ही भारत में व्यक्तिगत अधिकार का स्रोत है।

सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि अनुच्छेद 14 के अंतर्गत उल्लिखित विधि का शासन ही संविधान का मूलभूत तत्व है। इसलिये इसी किसी भी तरह, यहां तक कि संशोधन के द्वारा भी समाप्त नहीं किया जा सकता है।

समता के अपवाद

विधि के समक्ष समता का नियम, पूर्ण नहीं है तथा इसके लिये कई संवैधानिक निषेध एवं अन्य अपवाद हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है:

  1. भारत के राष्ट्रपति एवं राज्यपालों को निम्न शक्तियां प्राप्त हैं (अनुच्छेद 361 के अंतर्गत):
    1. राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यकाल में किये गये किसी कार्य या लिये गये किसी निर्णय के प्रति देश के किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे।
    2. राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही प्रारंभ या चालू नहीं रखी जाएगी।
    3. राष्ट्रपति या राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी न्यायालय से कोई प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जा सकती।
    4. राष्ट्रपति या राज्यपाल पर उनके कार्यकाल के दौरान व्यक्तिगत सामर्थ्य से किये गये किसी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय में दीवानी का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। हां यदि इस प्रकार का कोई मुकदमा चलाया जाता है तो उन्हें इसकी सूचना देने के दो माह बाद ही ऐसा किया जा सकता है।
  2. कोई भी व्यक्ति यदि संसद के या राज्य विधान सभा के दोनों सदनों या दोनों सदनों में से किसी एक की सत्य कार्यवाही से संबंधित विषय-वस्तु का प्रकाशन समाचार-पत्र में (या रेडियो या टेलिविजन में ) करता है तो उस पर किसी भी प्रकार का दीवानी या फौजदारी का मुकदमा, देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकेगा (अनुच्छेद 361क)।
  3. संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी (अनुच्छेद 105)।
  4. राज्य के विधानमण्डल में या उसकी किसी समिति में विधानमण्डल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। (अनुच्छेद 194)
  5. अनुच्छेद 31-ग, अनुच्छेद-14 का अपवाद है। इसके अनुसार, किसी राज्य विधानमंडल द्वारा नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन के संबंध में यदि कोई नियम बनाया जाता है , जिसमें अनुच्छेद 39 की उपधारा (ख) या उपधारा (ग) का समावेश है तो उसे आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वे अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करते हैं। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि जहां अनुच्छेद 31ग आता है, वहां से अनुच्छेद-14 चला जाता है’।
  6. विदेशी संप्रभु (शासक), राजदूत एवं कूटनीतिक व्यक्ति, दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों से मुक्त होंगे।
  7. संयुक्त राष्ट्र संघ एवं इसकी एजेन्सियों को भी कूटनीतिक मुक्ति प्राप्त है।

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विधि के समक्ष सामंत क्या है?

इसका तात्पर्य देश के अंतर्गत सभी न्यायालयों द्वारा प्रशासित कानून के सामने सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब, सरकारी अधिकारी हो या कोई गैर-सरकारी व्यक्ति, क़ानून से कोई भी ऊपर नहीं है।

प्र 11 विधि के समक्ष समानता क्या है?

'कानून के समक्ष समानता' का अर्थ जेनिंग्स के अनुसार, कानून के समक्ष समानता की अवधारणा का सीधा अर्थ यह है कि कानून को समान लोगों के बीच समान रूप से लागू और प्रशासित किया जाना चाहिए।

समता का क्या तात्पर्य है?

[सं-स्त्री.] - 1. समान या सम होने का गुण; समानता; सादृश्य; अनुरूपता; बराबरी; तुल्यता; समत्व; (इक्वैलिटी) 2.

समता के अधिकार से क्या तात्पर्य है?

भारत में समता/समानता का अधिकार अनुच्छेद १५= धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। अनुच्छेद १६= लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता। अनुच्छेद १७= छुआछूत (अस्पृश्यता) का अन्त कर दिया गया है। अनुच्धेद १८= उपाधियों का अन्त कर दिया गया है।