MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं Show MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं (शिवमंगल सिंह सुमन)वरदान मागूँगा नहीं अभ्यास-प्रश्नवरदान मागूँगा नहीं लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. क. यह हार एक विराम है ख. क्या हार में (ख) जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर
सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता वरदान मागूँगा नहीं भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. वरदान मागूँगा नहीं योग्यता-विस्तार प्रश्न 1. सुमन जी अपने गीतों के लिए भी साहित्य जगत में चर्चित रहे हैं। पुस्तकालय की सहायता से उनके गीतों को संकलित करें। वरदान मागूँगा नहीं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. वरदान मागूँगा नहीं कवि-परिचय प्रश्न साहित्यिक परिचय-समन जी ने छात्र जीवन से ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था और छात्रों में लोकप्रियता प्राप्त की। वे मूल रूप से प्रगतिशील कवि हैं और वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीवाद के प्रति उनमें तीव्र आक्रोश और शोषित वर्ग के प्रति गम्भीर संवेदना है। उनकी कविताओं में एक ओर राष्ट्रीयता और नवजागरण के स्वर हैं तो दूसरी ओर इनके गीतों में प्रेम और प्रकृति की सरस व्यंजना है। इनकी छोटी कविताओं में और गीतों में अधिक व्यंग्यात्मकता, सरसता और चित्रात्मकता है और लम्बी कविताएँ वर्णनात्मक हैं। रचनाएँ-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, मिट्टी की बारात, विंध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरी तथा विश्वास बढ़ता ही गया समन जी की प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। भाषा-सुमन जी की भाषा ओजपूर्ण, प्रवाहमयी और स्वाभाविक है। आपकी भाषा ने उनके काव्य को संगीतमय बनाया है। मुख्य रूप से उन्होंने गीत शैली को अपनाया है। प्रायः उनकी कविताएँ ध्वनि-माधुर्य से ओत-प्रोत हैं। सुमन जी ने कुछ छन्दमुक्त कविताओं की भी रचना की है। वरदान मागूँगा नहीं कविता का सारांश प्रश्न वरदान मागूँगा नहीं संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या ‘पद्यांश की सप्रंसग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 1. यह हार एक विराम है, शब्दार्थ-विराम-रुकावट, ठहराव । महा-संग्राम-बहुत बड़ा युद्ध (संघर्ष)। तिल-तिल मिटूंगा-एक-एक कर समाप्त हो जाऊँगा। दया की भीख-सहायता, सहारा। वरदान माँगूंगा नहीं-किसी की दया पर निर्भर नहीं रहूँगा। प्रसंग-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती हिन्दी सामान्य’ में संकलित व श्री शिव मंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ से है। इसमें कवि ने अपनी दृढ़ता को बतलाते हुए कहा है कि व्याख्या-यह जीवन महायुद्ध है, अर्थात् यह जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। इसमें हार जाना एक बड़ी रुकावट है। अर्थात संघर्ष करते हुए हिम्मत छोड़ देना बहुत बड़ी हानि है। इसलिए मैं इस जीवन रूपी महायुद्ध में भले ही एक-एक करके मिट जाऊँगा, लेकिन किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर दया अर्थात् सहायता की कोई भीख नहीं माँगूंगा। यह मेरा दृढ़ सकंल्प है कि मैं किसी से कछ भी नहीं प्राप्त करने की भावना से यह जीवन का महायुद्ध लगा। विशेष-
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. स्मृति सुखद प्रहरों
के लिए शब्दार्थ-स्मृति-बीते हुए। सुखद-सुख देने वाले । प्रहरों-क्षणों, समय । विश्व-संसार। सम्पत्ति-सुख-सुविधा। प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने अपने जीवन महायुद्ध में विजय श्री प्राप्त करने से पहले दृढ़ संकल्प करते हुए कह रहा है कि व्याख्या-यह सभी को अच्छी तरह से ज्ञात होना चाहिए कि जीवन एक महायुद्ध ही है। सभी वीर पुरुष इसमें अपने-अपने ढंग से भाग लेते हैं। मैं भी इसमें अपने ही ढंग से भाग लेने जा रहा हूँ। मेरा ढंग यह है कि मैं इसमें भाग लेने से पहले अपने बीती हुई सभी सुख-सुविधाओं को भूल जाऊँगा। यह भी कि मैं यह महायुद्ध किसी सुखद स्वरूप को मन में रखकर नहीं करूंगा। यह भी मैं स्पष्ट कर देना समुचित समझ रहा हूँ कि मैं संसार की कोई भी सुविधा नहीं चाहूँगा। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से होकर किसी की सहायता नहीं चाहूँगा। किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहूँगा, अपितु आत्मनिर्भर होकर ही मैं इस महायुद्ध में भाग लूँगा। विशेष-
1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न- 2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 3. क्या हार में क्या जीत में, शब्दार्थ-किंचित-कुछ। भयभीत-डरा हुआ। संघर्ष-पथ पर-कठिनाइयों का सामना करते हुए बढ़ते जाने पर। प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेने को ही मुख्य जीबनोद्देश्य मानते हुए कहा है कि व्याख्या-जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता विशेष-
1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 4. लपुता न अब मेरी
छुओ, शब्दार्थ-लपुता-छोटापन। छुआ-स्पर्श करो। वेदना-पीड़ा। प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने स्वतन्त्र व आत्मनिर्भर होकर जीवन-संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हुए कहा है कि व्याख्या-वह जीवन संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ते हुए किसी की तनिक भी परवाह नहीं करेगा। अगर कोई उसकी कमियों और दोषों को उछालना चाहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। अगर उससे कोई महान बनने की बात कहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। उसकी वह यह कहकर उपेक्षा कर देगा कि वह महान है तो महान बना रहे। उसको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह तो अपने जीवन के संघर्ष-पथ पर बढ़ता चला जायेगा। उसके हृदय में दुख-पीड़ा भरी हुई है, उसे वह यों ही नहीं त्याग देगा। वह उन्हें किसी-न-किसी प्रकार सार्थक करके ही त्यागेगा। इस प्रकार वह अपने जीवन-संघर्ष पथ की कठिनाइयों से डरकर-घबड़ाकर किसी की कोई भी सहायता की अपेक्षा-आशा नहीं करेगा। वह तो आत्म-निर्भर होकर ही आगे बढ़ता चला जायेगा। विशेष-
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. पयांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 5. चाहे हृदय का ताप दो, शब्दार्च-ताप-दुख। अभिशाप-श्राप, शाप। प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें कवि ने किसी प्रकार के दख-दर्द की परवाह किए बिना जीवन रूपी महायुद्ध में आत्मनिर्भर होने के दृढ़-संकल्प को व्यक्त किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि. व्याख्या-उसका यह दृढ़ संकल्प है कि उसे जीवन-पथ पर संघर्ष करते समय चाहे उसे कोई हृदय को चोट पहुँचाने वाला कष्ट दे अथवा उसे कोई शाप दे या उसे कोई और ही तरह का दुख पहुँचाये, वह तनिक भी अपने दृढ-संकल्प स्वरूप कर्तव्य-पथ से पीछे नहीं हटेगा, अपितु उस पर आगे ही बढ़ता जायेगा। इसके लिए वह अपनी आत्मनिर्भरता का परित्याग नहीं करेगा। वह अपने आत्मबल का एकमात्र आधार लेकर बढ़ता चला जायेगा। इस प्रकार किसी की दया-सहायता की तनिक भी आशा-इच्छा नहीं करेगा। विशेष-
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए। 2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर प्रश्न वरदान कविता में कवि ने क्या क्या वरदान मांगे हैं?कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वे विपत्ति का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करें। निर्भयता का वरदान दें ताकि वह संघर्षों से विचलित न हो। वह अपने लिए सहायक नहीं आत्मबल और पुरुषार्थ चाहता है।
वरदान कविता का मूल संदेश क्या है?इस कविता का मूलभाव है कि जीवन संघर्षों से भरा रहता है। इसमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
कवि भगवान से क्या वरदान चाहता है?उत्तर: कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह यह चाहता है कि वह हर मुसीबत का सामना खुद करे। भगवान उसे केवल इतनी शक्ति दें कि मुसीबत में वह घबड़ा न जाए। वह भगवान से केवल आत्मबल चाहता है और स्वयं सब कुछ के लिए मेहनत करना चाहता है।
वरदान कविता के अंत में कवि ने क्या अनुनय किया है?मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं बस इतना होवे (करुणायम ) तरने की हो शक्ति अनामय । मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही । केवल इतना रखना अनुनय- वहन कर सकूँ इसको निर्भय । नत शिर होकर सुख के दिन में तव मुख पहचानूँ छिन छिन में।
|