आण्विक कक्षक सिद्धांत (molecular orbital theory in Hindi) सहसंयोजक आबंध का एक आधुनिक सिद्धांत है। यह सिद्धांत सन् 1932 में एफ. हुंड तथा आर. एस. मुलिकन के द्वारा प्रस्तावित किया गया। इस सिद्धांत के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार से हैं। Show इसे सुनेंरोकेंi. बंधी अणु कक्षक : इनकी परमाण्वीय कक्षकों से कम होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के योग प्रभाव से बनते है , इन्हें σ b या π b के नाम से जाना जाता है। ii. प्रतिबंधी अणु कक्षक : इनकी ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है , इन्हें σ* या π* के नाम से जाना जाता है। हिंदी में आणविक कक्षीय सिद्धांत क्या है? इसे सुनेंरोकेंआणविक विन्यास भरने के नियम Aufbau सिद्धांत – इस सिद्धांत में कहा गया है कि उन आणविक ऑर्बिटल्स जिनमें सबसे कम ऊर्जा होती है, पहले भरे जाते हैं। पाउली का बहिष्करण सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक आणविक कक्षीय अधिकतम दो इलेक्ट्रॉनों को जोड़ सकता है जिसमें विपरीत स्पाइन होते हैं। ऑर्बिटल से आप क्या समझते हैं? इसे सुनेंरोकेंकक्षीय ऊर्जा कई इलेक्ट्रॉनों के साथ परमाणुओं में , एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा न केवल अपनी कक्षा के आंतरिक गुणों पर , बल्कि अन्य इलेक्ट्रॉनों के साथ अपनी बातचीत पर निर्भर करता है। पढ़ना: चेहरे में लहसुन लगाने से क्या होता है? बंद कोटि क्या है इसका महत्व समझाइए?इसे सुनेंरोकेंकिसी अणु में दो या दो से अधिक परमाणु जिस बल के द्वारा एक दूसरे से बंधे होते हैं उसे रासायनिक बन्ध (केमिकल बॉण्ड) कहते हैं। ये आबन्ध रासायनिक संयोग के बाद बनते हैं तथा परमाणु अपने से सबसे पास वाली निष्क्रिय गैस का इलेक्ट्रान विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। अणु कक्षक सिद्धांत क्या है समझाइए? इसे सुनेंरोकेंअणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिंदु – (i) परमाणुओं के परमाणु कक्षक संयोग करके अणु कक्षक बनाते है। (ii) परमाणु कक्षकों के रेखीय संयोग से आण्विक कक्षक का बनना माना जाता है। (iii) आण्विक कक्षक दो प्रकार के होते है – (a) बंधी आण्विक कक्षक (Bonding molecular orbital) यह तरंग फलनों के योग से बनते है। Solution : अणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिंदु - (i) परमाणुओं के परमाणु कक्षक संयोग करके अणु कक्षक बनाते है। (ii) परमाणु कक्षकों के रेखीय संयोग से आण्विक कक्षक का बनना माना जाता है। (iii) आण्विक कक्षक दो प्रकार के होते है - (a) बंधी आण्विक कक्षक (Bonding molecular orbital) यह तरंग फलनों के योग से बनते है। (b) विपरीत बंधी आण्विक कक्षक (Anti - bonding molecular orbital) ये तंरग फलनों के अंतर से बनते है। (iv) आण्विक कक्षक बहुकेंद्रीय (Polycentric) होते है अतः इलेक्ट्रॉन दो या दो से अधिक नाभिकों के द्वारा प्रभावित होते है। (v) अंदर की कक्षाओं के परमाणु कक्षक ( संयोजी कक्षक के अतिरिक्त ) भी संयोग करके आण्विक कक्षक का बनाते है।इन्हें सामान्यतया अनाबन्धी (Non- bonding) आण्विक कक्षक कहते है। आण्विक कक्षक का बनना अतिव्यापन के द्वारा होता है। इलेक्ट्रॉनों के भरने में ऑफबाऊ सिद्धांत , हुण्ड के नियम एवं अन्य नियमों का पालन होता है। आण्विक या अणु कक्षक सिद्धांत (molecular orbital theory in hindi) (MOT) : M.O.T. के अनुसार जितने परमाण्विक कक्षक अतिव्यापन में भाग लेते है उतने ही नए अणु कक्षकों का निर्माण होता है। जब दो परमाण्वीय कक्षक अतिव्यापन करते है तो दो अणु कक्षकों का निर्माण होता है। एक बंधी अणु कक्षक तथा दूसरा प्रतिबंधी या विपरीत बंधी अणु कक्षक कहलाता है। बन्धी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्विक कक्षकों से कम होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षको के योग प्रभाव से बनते है तथा विपरीत बंधी या प्रतिबंधी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है। परमाण्वीय कक्षकों के संयोजन की आवश्यक शर्तें1. जितने परमाण्वीय कक्षक आपस में अतिव्यापन करते है , उतने ही नए अणुकक्षकों का निर्माण होता है। 2. समान ऊर्जा के परमाण्वीय कक्षक ही अतिव्यापन में भाग लेते है। 3. अतिव्यापन जितना अधिक होता है , बंध उतना ही प्रबल बनता है। 4. वे परमाण्वीय कक्षक जो समान सममिति के होते है वे ही अणु कक्षकों का निर्माण करते है। अणु कक्षक तीन प्रकार के होते है – परमाण्वीय कक्षक अणु कक्षक 1s + 1s σb1s + σ*1s 2s + 2s σb2s + σ*2s 2pz + 2pz σb2pz + σ*2pz 2px + 2px π b2px + π*2px 2py + 2py π b2py + π*2py बन्ध क्रम (B.O) : दो परमाणुओं के मध्य बन्धो की संख्या को बंध क्रम कहते है।
बंध क्रम = ( बंधी इलेक्ट्रॉन की संख्या + प्रतिबंधी इलेक्ट्रॉन की संख्या )/2 या B.O. = (B.E + A.B.E)/2 1. H2 अणु का अणु कक्षक चित्र : 1H = 1s1 1H = 1s1 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = (σb1s)2
B.O. = (B.E + A.B.E)/2 B.O. = (2 – 0)/2 = 1 प्रकृति = प्रतिचुम्बकीय 2. H2+ आयन का अणु कक्षक चित्र : 1H = 1s1 1H+ = 1s0
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = (σb1s)1 B.O. = (B.E + A.B.E)/2 B.O. = (1 – 0)/2 = 0.5 प्रकृति = अनुचुम्बकीय अणुबंध क्रमB21C22N23N2+2.5N2–2.5O22.0O2+2.5O2–1.5O22-1.0F21.0Ne20.0 ट्रिक : बंध क्रम ज्ञात करने की ट्रिक 10/1.0 , 11/1.5 , 12/2.0 , 13/2.5 , 14/3.0 , 15/2.5 , 16/2.0 , 17/1.5 , 18/1.0 , 19/0.5 , 20/0.0 उदाहरण : O2 का बंध क्रम = ऑक्सीजन का परमाणु क्रमांक x 2 O2 का बंध क्रम = 8 x 2 16/2.0 ; अत: O2 का बंध क्रम = 2 होगा। कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आवर्त में बाएं से दायें जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है अत: परमाणु का आकार छोटा होता जाता है। अपवाद 1 : अक्रिय गैसों की परमाण्वीय त्रिज्याएँ अपेक्षाकृत कुछ अधिक छोटी होती है क्योंकि इनके अंतिम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन होते है अत: ये सहसंयोजक या धात्विक बंध का निर्माण नहीं करते है अत: इनकी वांडरवाल त्रिज्या ज्ञात की जाती है इसलिए इनकी परमाण्वीय त्रिज्या अधिक होती है। अपवाद 2 : संक्रमण तत्वों की श्रेणी में बाए से दाए जाने पर परमाणु के आकार में कोई विशेष कमी नही होती है क्योंकि संक्रमण तत्वों की श्रेणी में बाएं से दायें जाने पर निम्न दो कारक परमाणु के आकार को प्रभावित करते है। प्रभावी नाभिकीय आवेशबायें से दायें जाने पर नाभिक में प्रोटोनो की संख्या लगातार बढती है जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है व परमाणु का आकार छोटा होता है। परिरक्षण प्रभावआंतरिक कोश के इलेक्ट्रॉनों द्वारा बाहरी कोशों के इलेक्ट्रॉन के प्रतिकर्षण करने वाला प्रभाव परिरक्षण प्रभाव कहलाता है। परमाण्वीय त्रिज्या व आवर्तिता में टिपण्णीवर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर कोशों की संख्या बढती जाती है अत: परमाणु का आकार बढ़ता जाता है। अपवाद 1 : संक्रमण तत्वों की श्रेणी में 3d श्रेणी से 4d श्रेणी में जाने पर परमाणु के आकार में वृद्धि होती है लेकिन 4d श्रेणी से 5d श्रेणी में जाने पर परमाणु के आकार लगभग समान रहते है। लैंथेनाइड संकुचन के कारण। उदाहरण : निकल (Ni) से पैलेडियम (Pd) की ओर जाने पर 18 प्रोटोन की वृद्धि होती है , प्रोटोनो की यह वृद्धि बढ़ते हुए कारको को संतुलित कर देती है अत: पैलेडियम व प्लेटिनम के आकार के लगभग समान होते है जबकि प्लेडियम से प्लेटिनम की ओर जाने पर 32 प्रोटोन की वृद्धि होती है। अपवाद : बोरोन (B) से एल्युमिनियम (Al) तक जाने पर आकार बढ़ता है जबकि Al से Ga (गैलियम) तक जाने पर परमाणु के आकार में कमी आती है क्योंकि प्रोटोनो की संख्या में वृद्धि होती है। विपरीत बंदी अणु कक्षक क्या है?एक बंधी अणु कक्षक तथा दूसरा प्रतिबंधी या विपरीत बंधी अणु कक्षक कहलाता है। बन्धी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्विक कक्षकों से कम होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षको के योग प्रभाव से बनते है तथा विपरीत बंधी या प्रतिबंधी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है।
C विपरीत बंधी अणुकक्षक क्या होते हैं ये बंधी अणु कक्षकों से किस प्रकार भिन्न होते हैं?बंधी अणुकक्षकों में दोनों नाभिकों के मध्य electron के पाए जाने की संभावना अधिकतम होती है जबकि प्रतिबंधी अणुकक्षकों में दोनों नाभिकों के मध्य electron के पाए जाने की संभावना शून्य होती है अत: इनके मध्य कोई बंध नही बनता।
अणु कक्षक कितने प्रकार के होते हैं?(iii) आण्विक कक्षक दो प्रकार के होते है - (a) बंधी आण्विक कक्षक (Bonding molecular orbital) यह तरंग फलनों के योग से बनते है।
अणु कक्षक सिद्धांत क्या है?जब दो परमाणु कक्षकों का संयोजन किया जाता है तो दो आण्विक कक्षक बनते हैं। इनमें से एक को आबंधी आण्विक कक्षक तथा दूसरे कक्षक को प्रतिआबंधी आण्विक कक्षक कहते हैं। अतः इस प्रकार स्पष्ट होता है कि आण्विक कक्षकों की संख्या संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की संख्या के बराबर होती है।
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