1) शोर प्रदूषण क्या है? Show
२) ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव क्या हैं? 3) प्रतिबंध / शोर स्तर की सीमा: (समय आदि) किसी वस्तु से उत्पन्न होने वाली सामान्य आवाज़ को ध्वनि (Sound) कहा जाता है। जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो तथा सुनने वाले के लिये रुचिकर न हो तो उसे शोर (Noise) कहा जाता है। उच्च तीव्रता वाली ध्वनि अर्थात् अवांछित शोर के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशांति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं, जैसे-उद्योगों का शोर, पत्थरों को काटना, तेज चिल्लाना, वाहनों का शोर आदि। ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिये डेसीबल (dB) इकाई निर्धारित की गई है। डेसीबल मापक शून्य से प्रारम्भ होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ध्वनि की उच्चता का स्तर दिन में 45dB तथा रात्रि में 35dB निश्चित किया है। ध्वनि प्रदूषण के स्रोतध्वनि प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ने वाली समस्या है। सभी मानव गतिविधियाँ भिन्न भिन्न स्तरों पर ध्वनि-प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। ध्वनि प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं जो घर के अन्दर और बाहर दोनों ही जगह हैं। भीतरी स्रोत (इनडोर स्रोत) इसमें रेडियो, टेलीविजन, जनरेटर, बिजली के पंखे, एयर कूलर, एयरकंडीशनर, विभिन्न घरेलू उपकरण और पारिवारिक विवाद से उत्पन्न शोर निहित हैं। शहरों में ध्वनि प्रदूषण अधिक है क्योंकि शहरों में आबादी घनी है, उद्योग अधिक है और यातायात जैसी गतिविधियाँ अधिक हैं। अन्य प्रदूषकों की भाँति शोर भी औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और आधुनिक सभ्यता का एक उप-उत्पाद (By-product) है। बाह्य स्रोत लाउडस्पीकरों का विवेकहीन प्रयोग, औद्योगिक गतिविधियाँ, मोटरगाड़ियाँ, रेल-यातायात, हवाई जहाज और बाजार, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गतिविधियाँ, खेलकूद और राजनैतिक रैलियाँ ध्वनि प्रदूषण के बाह्य स्रोत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती में काम आने वाली मशीनें, पम्प सेट ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत होते हैं। त्योहारों, शादियों और अन्य अनेक अवसरों पर आतिशबाजी का प्रयोग भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देता है। ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपायस्रोत पर नियंत्रण
संचार मार्ग पर नियंत्रण
रिसीवर पर नियंत्रण
अन्य उपाय
ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोग
ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति पाचन एवं हृदय संबंधी रोग, मानसिक बीमारी, गर्भपात एवं असामान्य व्यवहार से ग्रसित हो जाता है। भारत में ध्वनि के संबंध में परिवेशी वायु क्वालिटी मानक
दिन का समय सुबह 6 से रात्रि 10 बजे तक है तथा रात्रि का समय 10 बजे से सुबह 6 बजे तक निश्चित किया गया है। शांत क्षेत्र में अस्पताल, शिक्षा संस्थान, न्यायालय आदि के चारों तरफ 100 मी. तक का क्षेत्र सम्मिलित है। "Real Time Continuous Ambient Noise Monitoring" 9 शहरों (दिल्ली, मुम्बई, नवी मुम्बई, थाणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, बंगलुरु, हैदराबाद) के 35 स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण को मापने की व्यवस्था की। ध्वनि स्तर की सीमा का सबसे ज्यादा उल्लंघन मुम्बई, लखनऊ, हैदराबाद, दिल्ली में हुआ। ध्वनि प्रदूषण के प्रभावअवांछनीय ध्वनि के रूप में ध्वनि प्रदूषण शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकता है। ध्वनि प्रदूषण चिड़न तथा आक्रामकता, उच्च रक्तचाप, उच्च तनाव स्तर, बहरापन, नींद में बाधा तथा अन्य हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। दीर्धकाल तक ध्वनि का अपावरण ध्वनि-प्रेरित बहरापन उत्पन्न कर सकता है। वे लोग जो अधिक व्यवसायिक ध्वनि के संपर्क में रहते हैं, ध्वनि के संपर्क में न रहने वालों की तुलना में, श्रवण संवेदनशीलता में अधिक कमी प्रदर्शित करते हैं। उच्च तथा मध्यम श्रेणी की उच्च ध्वनि स्तर हृदय की रक्त वाहिनियों पर प्रभाव, रक्तचाप तथा तनाव में वृद्धि कर सकती है और इस प्रकार लोगों का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। जन्तु व पर्यावरण पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम और नियन्त्रणनिम्न बातों को अपनाने से ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित या फिर कम किया जा सकता है
ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून (Laws to Control Noise Pollution)भारत में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के लिये पृथक् अधिनियम का प्रावधान नहीं है। भारत में ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषण में ही शामिल किया गया है। वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में सन् 1987 में संशोधन करते हुए इसमें ' ध्वनि प्रदूषकों' को भी 'वायु प्रदूषकों' की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया गया है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अधीन भी ध्वनि प्रदूषकों सहित वायु तथा जल प्रदूषकों की अधिकता को रोकने के लिये कानून बनाने का प्रावधान है। इसका प्रयोग करते हुए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 पारित किया गया है । इसके तहत विभिन्न क्षेत्रों के लिये ध्वनि के संबंध में वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित किये गए हैं। विद्यमान राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत भी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण का प्रावधान है। ध्वनि प्रदूषकों को आपराधिक श्रेणी में मानते हुए इसके नियंत्रण के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 268 तथा धारा 290 का प्रयोग किया जा सकता है। पुलिस अधिनियम, 1861 के अंतर्गत पुलिस अधीक्षक को अधिकृत किया गया है कि वह त्योहारों और उत्सवों पर गलियों में बजने वाले संगीत की तीव्रता के स्तर को नियंत्रित कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण का मतलब क्या होता है?Solution : उच्च तीव्रता वाली ध्वनि या अवांछनीय शोर जो सुनने में तीखा लगता है और शरीर के लिए हानिकारक है, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। अतः ध्वनि का जो रूप मानव गतिविधियों को बाधित करे, कार्य क्षमता को नकारे, सुनने पर तनाव हो, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।
ध्वनि प्रदूषण क्या है ध्वनि प्रदूषण के प्रकार?ध्वनि प्रदूषण के निम्नांकित कारण हैं—(i) कारखानों की ध्वनि, (ii) जेट विमानों की ध्वनि, (iii) मोटर, ट्रक आदि वाहनों की ध्वनि, (iv) लाउडस्पीकर तथा अन्य वाद्य यंत्रों से निकली ध्वनि, (v) बम फटने तथा पटाखे छूटने की ध्वनि (आकस्मिक ध्वनि) आदि।
ध्वनि प्रदूषण का कारण क्या है?ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
बढ़ता शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) व खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। विवाह, धार्मिक आयोजनों, मेलों, पार्टियों में लाउड स्पीकर का प्रयोग और डीजे के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।
प्रदूषण का क्या अर्थ होता है?प्रदूषण का अर्थ है -'वायु, जल, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तन्त्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है।
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