ठेस कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है? - thes kahaanee ka mukhy paatr kaun sa hai?

HomeClass 8 HindiBihar Board Class 8th Hindi Chapter 7 | N.C.E.R.T. Hindi Book Solution | किसलय ठेस (फणीश्वरनाथ 'रेणु') | बिहार बोर्ड कक्षा 8वीं हिंदी | सभी प्रश्नों के उत्तर

ठेस कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है? - thes kahaanee ka mukhy paatr kaun sa hai?
SM Study Point
पाठ से :

प्रश्न 1. गाँव के किसान सिरचन को क्या समझते थे ? 

उत्तर — गाँव के किसान सिरचन को कामचोर समझते थे । खेती-बारी के समय लोग सिरचन की गिनती नहीं करते और उसको बेकार ही नहीं 'बेगार' समझते थे । इसलिए खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए सिरचन को कोई बुलाने नहीं जाता था । अपने आलस्य के कारण वह काम पर तब पहुँचता था, जब दूसरे मजदूर खेत पहुँचकर एक-तिहाई काम कर चुके होते थे । काम भी धीरे-धीरे करता था । रास्ते में पैर तौल - तौलकर रखता था इसलिए लोग उसे कामचोर एवं मुफ्तखोर मानते थे । 

प्रश्न 2. इस कहानी में आये हुए विभिन्न पात्रों के नाम लिखिए । 

उत्तर – प्रस्तुत कहानी का मुख्य पात्र सिरचन है। सिरचन के अतिरिक्त : 

मानू, पंचानन्द चौधरी के बेटे

माँ, बबुनी

मँझली बहू

चाची

प्रश्न 3. सिरचन को पान का बीड़ा किसने दिया था ? 

उत्तर – सिरचन को पान का बीड़ा मानू ने दिया था। मानू पान सजाकर बाहर बैठक खाने में भेज रही थी। सिरचन उसी के ससुराल के लिए चिक, शीतलपाटी आदि बना रहा था । मानू सिरचन को खुश रखने के लिए उसकी ओर पान का बीड़ा बढ़ाते हुए कहती है— सिरचन दादा, काम-काज का घर है, पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बात करेंगे, इसलिए किसी की बात पर ध्यान न देना ।

प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांशों को कहानी के अनुसार क्रमबद्ध रूप में सजाइए ।

(क) उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी । पहली बार ससुराल जा रही थी। मानू के दुल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को खत लिखकर चेतावनी दे दी है— मानू के साथ मिठाई की पतीली न आवे, कोई बात नहीं । तीन जोड़ी फैशनेबुल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो ।

(ख) मुझे याद है .......... मेरी माँ जब कभी सिरचन को बुलाने के लिए कहती, मैं पहले ही पूछ लेता भोग क्या-क्या लगेगा ?

(ग) मानू फूट-फूट कर रो रही थी। मैं बंडल को खोलकर देखने लगा ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीकी, रंगीन सुतलियों के फँदों का ऐसा काम, पहली बार देख रहा था ।

उत्तर : (क) मुझे याद है ......... मेरी माँ जब कभी सिरचन को बुलाने के लिए कहती, मैं पहले ही पूछ लेता – भोग क्या-क्या लगेगा ?

(ख) उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी । पहली बार ससुराल जा रही थी । मानू के दूल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को खत लिखकर चेतावनी दे दी है— मानू के साथ मिठाई की पतीली न आवे, कोई बात नहीं । तीन जोड़ी फैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो

(ग) मानू फूट-फूटकर रो रही थी। मैं बंडल को खोलकर देखने लगा- ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीकी, रंगीन सुतलियों के फंदों का ऐसा काम, पहली बार देख रहा था ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित वाक्यों के समने सही (v ) या गलत (x) का निशान लगाइए ।

(क) सिरचन कामचोर था ।

(ख) सिरचन अपने काम में दक्ष था ।

(ग) सिरचन बात करने में भी कारीगर था । 

(घ) सिरचन वकील था ।

उत्तर : (क), (ख) (ग) सही हैं, केवल (घ) गलत है।

प्रश्न 6. कहानी के किन-किन प्रसंगों से ऐसा प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था, उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – कुच्चियों के रंगने तथा सुतली सुलझाने के क्रम में काम करते समय उसकी में जरा भी बाधा पड़ी कि गेहुँअन साँप की तरह फुफकारने लगता । इसी प्रकार दिन चिक बनाने के क्रम में वह अपने काम में मग्न था। सिरचन को जलपान में तथा गुड़ का एक सूखा ढेला दिया गया । चूड़ा तथा गुड़ देखकर उसकी नाक के पास की दो रेखाएँ उभर आई, लेकिन उसने चुपचाप अपने काम में मग्न कोई प्रतिक्रिया न की और चूड़ा खाने लगा । वह कार्य प्रिय व्यक्ति था, उसमें अच्छे कलाकार के सारे गुण थे । काम में मग्न रहने पर उसे खाने-पीने की सुधि भी नहीं रहती थी । वह काम से ग्राहक का दिल जीतने का सतत् प्रयास रखता था । इन बातों से स्पष्ट होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था ।

प्रश्न 7. इस कहानी में कौन-सा पात्र आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों ? 

उत्तर – प्रस्तुत कहानी में मुझे सिरचन सबसे अच्छा पात्र लगा, क्योंकि वह कुशल लाकार के साथ-साथ संवेदनशील व्यक्ति था । वह लेखक की छोटी बहन मानू के लिए क तथा शीतलपाटी बना रहा था । चाची से गमकौआ जर्दा माँगने के कारण उनकी डाँट सुननी पड़ी। उनकी बातों से कलाकार के दिल को ठेस लगी। उसका स्वाभिमान जाग पड़ा, क्योंकि वह अपने काम में दक्ष था । कारीगरी में उसकी कोई सानी नहीं थी । वह काम छोड़कर चला गया । लेखक के कहने पर बबुआजी अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, लेकिन अपनी संवेदनशीलता के कारण चिक एवं शीतलपाटी मानू की बिदाई के समय स्टेशन यह सोचकर पहुँचा आया कि बिना चिक एवं शतीलपाटी की मानू ससुराल जाएगी तो गाँव की हँसाई होगी । इससे स्पष्ट होता है सिरचन स्वाभिमानी, संवेदनशील, प्रेमप्रिय तथा मर्यादावादी था ।

पाठ से आगे :

प्रश्न 1. आपकी दृष्टि में सिरचन द्वारा चिक एवं शीतलपाटी स्टेशन पर मानू को देना कहाँ तक उचित था ?

उत्तर – मेरी दृष्टि में सिरचन द्वारा चिक एवं शीतलपाटी स्टेशन पर मानू को देना सर्वथा उचित था । मानू बेटी थी । बेटी के लिए सारा समाज अपने भाई-बंधु अथवा परिवार जैसा होता है। मानू बिना चिक तथा शीतलपाटी की ससुराल जाती तो उसे अपमानित होना पड़ता और गाँव की हँसाई होती । सिरचन भी उसी समाज की इकाई था । दूसरी बात अपमान छोटी चाची ने किया था, मानू ने नहीं । निर्दोष मानू को दुखी करना सिरचन ने उचित नहीं समझा, इसलिए उसने सारा सामान स्टेशन पर मानू को दे आया, क्योंकि सिरचन मानू के प्रति संवेदनशील हो गया था। उसकी मानवता ने उसे अपने मानवीय कर्तव्य का पालन करने को प्रेरित किया । 1

प्रश्न 2. काम के बदले थोड़ा-सा अनाज या चंद रुपये देकर क्या किसी मजदूर के मजदूरी का मूल्य चुकाया जा सकता है ? इस सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त कीजिए ।

उत्तर – काम के बदले थोड़ा-सा अनाज या चंद रुपये देकर किसी मजदूर से मज़दूरी नहीं कराई जा सकती। क्योंकि कोई भी व्यक्ति मजदूरी इसलिए करता है कि वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सके। क्योंकि मजदूर अपना श्रम इसी उद्देश्य से बेचता है कि वह जीवन निर्वाह कर सके । यदि मजदूर को उचित मजदूरी नहीं मिलती है तो वह अपने कर्तव्य के प्रति उदास हो जाता है जिस कारण उसकी कार्यक्षमता घट जाती है। मजदूरी मजदूर का श्रमफल होता है, इसलिए मजदूर को उचित मजदूरी देकर काम कराना ही उचित है । अतः काम के अनुसार मजदूरी का भुगतान होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह मजदूर के साथ अन्याय ही माना जाएगा ।

प्रश्न 3. इस कहानी का अंत किए गए अंत से अलग और क्या हो सकता है ? सोच कर लिखिए ।

उत्तर – इस कहानी का किए गए अंत से अलग यदि ऐसा वर्ण: किया जा सकता है कि सिरचन को चिक, शीतलपाटी तथा एक जोड़ी कुश की आसानी के साथ स्टेशन पर आते देखकर मानू बिस्मित हो उठी। लेखक सामानों की बनावट एवं बारीकी देखकर दंग रह गया । गाड़ी खुल गई और मानू सिरचन की संवेदनशीलता पर फूट-फूट कर रो पड़ी ।

व्याकरण :

मुहावरें— ऐसा वाक्यांश, जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विलक्षण अर्थ का बोध कराए, मुहावरा कहलाता है। मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पन्न होते हैं। जैसे—आँख का तारा ( बहुत प्यारा) । मोहन अपने माता-पिता की आँखों का तारा है ।

लोकोक्ति– लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात . बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है तो 'लोकोक्ति' हो जाती है। जैसे—एक पंथ दो काज ( एक काम के साथ-साथ कोई दूसरा काम भी हो जाना ) – पटना जाने से एक पंथ दो काज होंगे । कवि सम्मेलन में कविता पाठ भी करेंगे और साथ ही जैविक उद्यान भी देखेंगे ।

आइए इसके साथ ही कुछ ऐसी बातों को भी जानें, जिससे मुहावरे और लोकोक्तियों की समानताओं और असमानताओं का पता भी चले ।

1. मुहावरों और लोकोक्तियों में पर्यायवाची शब्द नहीं रखे जा सकते । यही कारण है कि इनका अनुवाद संभव नहीं ।

2. लोकोक्ति स्वतंत्र वाक्य होते हैं, जबकि मुहावरे वाक्यांश होते हैं ।

प्रश्न – इन मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट कीजिए : 

(क) कान मत देना, (ख) दम मारना, (ग) मुँह में लगाम न होना, (घ) सिर चढ़ाना । 

उत्तर :

(क) कान मत देना (ध्यान न देना) — मोहन चुगलखोर है। उसकी बातों पर कान मत देना ।

(ख) दम मारना (आराम करना) – पत्थर तोड़ने वाला मजदूर थककर पेड़ के नीचे दम मारने लगा ।

(ग) मुँह में लगाम न होना (बिना सोचे-समझे बोलना ) – श्याम के मुँह में लगाम नहीं है, उससे बातचीत करने का अर्थ है अपमानित होना ।

(घ) सिर चढ़ाना ( बढ़ावा देना ) – हरि ने पहले तो बेटे को सिर चढ़ा लिया और अब उसकी शरारत पर दुखी होता है ।

ठेस कहानी का प्रमुख पात्र कौन है?

उत्तर – इस कहानी के नायक सिरचन के साथ – साथ रेणु जी , रेणु जी की माँ , चाची , मझली भाभी , मानू दीदी इत्यादि पात्र हैं ।

शीर्षक कहानी ठेस का लेखक कौन है?

खेती-बारी के समय, गांव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को.

ठेस कहानी का उद्देश्य क्या है?

Answer: ठेस' कहानी का उद्देश्य एक ग्रामीण कलाकार के स्वाभिमान और आत्मगौरव को प्रकट करना है। कलाकार दूसरों से सम्मान प्राप्त करने का आकांक्षी होता है। उसे जब सम्मान की जगह तिरस्कार और अपमान प्राप्त होता है तो उसके संवेदनशील कोमल हृदय को ठेस पहुंचती है।

शीतलपाटी बनाने वाले कलाकार का नाम क्या है?

सिरचन अपने इलाके का एक निपुण कारीगर है। उसके जैसी मोथी घास और पटेर की शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी कोई नहीं बना सकता। वह एक प्रतिभाशाली कलाकार है। सिरचन एक स्वाभिमानी कलाकार है।