द्रोणाचार्य का वध कृष्ण भगवान् की ही एक लीला हैं. महाभारत के युद्ध अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक हैं. भगवान् ने धर्म को जिताने के लिए कई बार अपनी लीलाएं रची. गुरु द्रोणाचार्य का वध भी उन्ही लीलाओं का परिमाण हैं. इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि
किस प्रकार गुरु द्रोणाचार्य का वध हुआ. इसके लिए आपको कुछ और पौराणिक कथाओं का बोध होना चाहिए. एक एक करके लघु कथाओं से आपको परिचित कराते हैं. जयद्रथ की प्रतिज्ञा एक बार द्रौपती को देखकर जयद्रथ ने विवाह का प्रस्ताव रख दिया, जबकि द्रौपती पांच पांड्वो की पत्नी थी. तब पांडवों ने जयद्रथ को लज्जित कर दिया. इसी का बदला लेने के लिए जयद्रथ ने भगवान् शिव की तपस्या की. जब भगवान् ने वरदान मांगने को कहा तो जयद्रथ ने पांडवो पर विजय का वरदान माँगा. लेकिन भगवान शिव ने यह वरदान देने से इंकार कर दिया,
केवल इतना कह दिया की तुम अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवो को एक बार युद्ध में पीछे हटा सकोगे. अर्जुन की प्रतिज्ञा अभिमन्यु की मौत का बदला लेने के लिए लेने के लिए अर्जुन ने युद्ध के अगले दिन जयद्रथ को मारने का संकल्प लिया. अगर किसी कारणवश अर्जुन यदि असफल होता हैं तो, वह अपना आत्मदाह दे देगा. कर्ण की अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन को परास्त करने के लिए एक अमोघ शक्ति बचाकर रखी थी. भगवान श्री कृष्ण के सुझाव पर राक्षस घटोत्कच(भीम पुत्र) ने संध्या काल में कौरवों पर हमला कर दिया. बारिश होने लगी, आंधी, तूफान, कंकड़ पत्थर उछलने लगे. इस स्थिति में भी घटोत्कच युद्ध करने में निपुण था. घटोत्कच ने कौरवो की सेना का खूब संहार किया. इस द्रष्टाशं से दुर्योधन डर गया. दुर्योधन ने घटोत्कच के वध के लिए अमोघ शक्ति को छोड़ने को कहा. पहले तो कर्ण नहीं माना. लेकिन बाद में कर्ण को अमोघ शक्ति छोड़नी पड़ी. इस प्रकार अब कर्ण के पास अर्जुन को मारने के लिए कोई शक्ति नहीं बची थी. द्रोणाचार्य का वध(dronacharya ka vadh kaise hua) युद्ध के चौदहवें दिन की बात हैं. भगवान श्री कृष्ण की माया और पिछले दिनों के परिणाम से गुरु द्रोणाचार्य नाराज़ हो गए. गुरु द्रौनाचार्य ने गुस्से में आकर 1000 पांडव सेना को मार डाला, युद्ध में युधिष्ठिर के अंगरक्षक विराट और द्रुपद को मार डाला. भगवान् श्री कृष्ण
समझ गये की अब द्रोणाचार्य के मरने का समय आ गया हैं. भगवान् ने एक बार फिर अपनी माया रचाई. अबकी बार भगवान् ने झूठ का सहारा लिया. इसको सफ़ेद झूठ तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सच को छुपाया गया था. द्रोणाचार्य का वध महाभारत की कहानी से क्या सीखा – अगर कोई सही आदमी भी गलत दिशा(अधर्म) में खड़ा हैं तो, भगवान कभी भी उसके साथ खड़े नहीं रहते हैं. भले वो द्रोणाचार्य हो या फिर ज्ञानी रावन, या फिर दानवीर कर्ण. भगवान केवल सरल, सत्य लोगो का ही साथ देते हैं. इसलिए किसी भी प्रकार से असत्य का सहारा नहीं लेन चाहिए. इसक भी पढ़े -: रावण की कथा सम्पूर्ण इतिहास अगर आपको ये महाभारत की कथा अच्छी लगी हो तो आप हमारी दूसरी कहानियाँ और कथाएं पढ़ सकते हैं. हम और भी विषयों पर कहानियां लिखते हैं. क्लिक – और हिंदी कहानियां पढ़े द्रोणाचार्य को संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर में से एक माना गया। इन्होंने ही पांडवों और कौरवों को युद्ध शिक्षा का ज्ञान दिया। दुनिया के इतिहास में महाभारत सबसे भयंकर युद्ध माना गया। इस युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य शरीर से तो कौरवों के साथ थे मगर वो दिल से धर्म का साथ देने वाले पांडवों की जीत चाहते थे। द्रोणाचार्य वेद- पुराणों में पारंगत थे और वे एक कठोर तपस्वी थे। जानते हैं कि पांडवों और कौरवों को अस्त्र शस्त्र का ज्ञान देने वाले द्रोणाचार्य की महाभारत युद्ध में मृत्यु कैसे हुई थी। ◆ कौन थे द्रोणाचार्यद्रोणाचार्य भरद्वाज मुनि के पुत्र थे। आश्रम में विद्या अध्ययन के अलावा उन्होंने वहीं रहकर तपस्या की। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान मुनि की पुत्री और कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। इनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था। द्रोणाचार्य ने महेन्द्र पर्वत पर जाकर शस्त्रास्त्र-विद्याओं में श्रेष्ठ श्री परशुराम जी से प्रयोग, रहस्य तथा संहारविधि के सहित संपूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था। ◆ महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्यमहाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण कौरवों की तरफ से लड़े थे। भीष्म के शरशैय्या पर लेटने के बाद कर्ण के कहने पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया। गुरु द्रोण की संहारक शक्ति बढ़ती देख कर पांडवों के खेमे में दहशत फ़ैल गयी। द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वत्थामा का रौद्र रूप देखकर पांडवों को अपनी हार नजदीक नजर आ रही थी। ◆ श्रीकृष्ण ने लिया छल का सहारापांडवों की ऐसी स्थिति देखने के बाद श्री कृष्ण ने भेद का सहारा लेने के लिए कहा। इस योजना के अनुसार युद्ध में ये बात फैला दी गयी की अश्वथामा मारा गया। मगर धर्मराज युधिष्ठिर झूठ बोलने के लिए राजी नहीं हुए। ऐसे में अवन्तिराज के एक हाथी जिसका नाम अश्वथामा था, उसका भीम द्वारा वध कर दिया गया। युद्धभूमि में अश्वथामा की मृत्यु की खबर आग की तरह फ़ैल गयी। गुरु द्रौणाचार्य स्वयं इस बात की पुष्टि के लिए युधिष्ठिर के पास आए। मगर जैसे ही धर्मराज ने उत्तर दिया कि अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी, श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद कर दिया। उस ध्वनि के कारण द्रोणाचार्य आखिरी के शब्द ‘परंतु हाथी’ नहीं सुन पाएं। उन्हें ये यकीन हो गया कि युद्ध में उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। ◆ निहत्थे द्रोण पर हुआ वारअपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिए और रणभूमि में ही शोक में डूब गए। इस मौके का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने निहत्थे द्रोणाचार्य का सिर काट डाला। ◆ अश्वत्थामा को मिली इस छल की जानकारीअश्वत्थामा को जब इस घटना के बारे में पता चला तब उसके गुस्से का कोई पारावार न रहा। दुःख और क्रोध से भरे अश्वत्थामा ने प्रण लिया कि वो पांडवों के एक भी पुत्र को जीवित नहीं छोड़ेगा। अपने पिता की छल से हुई मृत्यु का बदला लेते हुए अश्वत्थामा ने कोहराम मचा दिया। पांडव महाभारत के युद्ध में विजय जरूर हुए लेकिन अश्वत्थामा ने द्रौपदी के एक भी पुत्र को जीवित नहीं छोड़ा। यह भी पढ़ें- भगवान शिव के अनोखे “अर्धनारीश्वर” अवतार की पौराणिक कथा 5,540 द्रोणाचार्य ने अस्त्र शस्त्र क्यों त्याग दिया?इसको सुन कर द्रोण को सदमा लगा और वो अपने अस्त्र शस्त्र त्याग कर अपने इकलौते पुत्र की मौत का शोक बनाने हेतु धरती पर बैठ गए। तभी पांडव सेना के सेनापति और द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से द्रोण का वध कर दिया।
द्रोणाचार्य का वध किसने और क्यों किया?तब पांडवों ने एक योजना बनाई। योजना के अनुसार भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार डाला और द्रोणाचार्य के सामने चिल्लाने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया। अश्वथामा की मृत्यु को सच मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे रख दिए और बैठकर ध्यान करने लगे। तभी धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोण का वध कर दिया।
द्रोणाचार्य को किसने मारा उन्हें मारने के लिए क्या अफवाह झूठी खबर फैलाई गई?पांडवों को गुरु द्रोणाचार्य को मारने के लिए उनके बेट अश्वत्थामा के मौत की झूठी खबर फैलानी पड़ी थी।
द्रोणाचार्य की हत्या कौन करता है?द्रोणाचार्य किसके हाथों मारे गए? द्रोणाचार्य पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए थे।
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