तुलसी के अनुसार बरसात में कोयल क्यों चुप हो जाती है? - tulasee ke anusaar barasaat mein koyal kyon chup ho jaatee hai?

वर्षा ऋतु में कोयल का मौन हो जाना क्या कारण है?...


तुलसी के अनुसार बरसात में कोयल क्यों चुप हो जाती है? - tulasee ke anusaar barasaat mein koyal kyon chup ho jaatee hai?

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रचना वर्षा ऋतु में कोयल का मौन हो जाना जाने का क्या कारण है इसका उत्तर है कि अन्य में कोयल की आवाज को हम सभी सुनते हैं और जाता जिसने तुम्हें लेकिन ना वर्षा ऋतु में कोयल मौन हो जाते क्योंकि वर्षा ऋतु में जो सबसे ज्यादा आवाज होती है वह मेडिको की टर्टल की आवाज इस कर्कश आवाज के बीच कोयल अपना सुंदर और शुरू में आवाज जो है तू नहीं लोगों को सुनाना चाहती है वह अपने गुण का अपमान समझती है इसलिए कोयल चुप हो जाती है

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तुलसी के अनुसार बरसात में कोयल क्यों चुप हो जाती है? - tulasee ke anusaar barasaat mein koyal kyon chup ho jaatee hai?

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पावस देखि रहीम मन

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।

अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन॥

वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है, उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।

स्रोत :

  • पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 90)
  • रचनाकार : रहीम
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

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    पंडित और मूर्ख एक समान हो जाते हैं

    काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान।।

    भावार्थ: इस दोहे के माध्यम से तुलसीदासजी आम मनुष्य को समझाते हैं कि जब किसी व्यक्ति पर काम यानी कामेच्छा, क्रोध यानी गुस्सा, अहंकार और लालच हावी हो जाता है तो एक पढ़ा-लिखा और समझदार व्यक्ति भी अनपढ़ों के समान व्यवहार करने लगता है। इसलिए मनुष्य को इन अवगुणों से दूर रहना चाहिए।

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    मीठी वाणी का प्रभाव और परिणाम

    तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर । बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

    भावार्थ: तनावपूर्ण संबंधों और माहौल से बाहर आने का रास्ता बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठी वाणी बोलना एक व्यक्ति के लिए हुनर है। क्योंकि मीठे बचन वशीकरण का काम करते हैं। मीठी वाणी से आप किसी को भी अपना बना सकते हैं। इसलिए कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलना चाहिए।

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    धर्म और पाप की जड़ें हैं यहां

    दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण।।

    भावार्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी मानव मात्र को यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य को दया करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि दया ही हर धर्म का मूल यानी जड़ है। जबकि सभी पापों के मूल में अभिमान होता है। अभिमान के आते मनुष्य का विवेक समाप्त हो जाता है और वह पाप के गर्त में गिरता जाता है।

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    अपने मान का स्वयं रखें ध्यान

    आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

    भावार्थ: अपने सम्मान के प्रति सजग रहने की सीख देते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहां लोगों की आंखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहां हमें कभी नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वहां धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो।

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    विपत्ति के समय सबसे बड़े साथी

    तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक। साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।

    भावार्थ: जीवन में हर स्थिति का सामना मजबूती से करने की सीख देते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, परिस्थिति कितनी ही विपरीत क्यों न हो, मनुष्य के ये 7 गुण उसकी रक्षा करते हैं। आपका ज्ञान और शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और राम यानी ईश्वर में विश्वास।

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    ईश्वर के नाम का भरोसा देता है मनोबल

    तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।

    भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोया कीजिए। क्योंकि ईश्वर के आशीर्वाद से आपकी रक्षा होगी और कोई अनहोनी नहीं होगी। साथ ही यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वह होकर रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपने कर्मों पर ध्यान दीजिए। कर्म सही हों तो मनोबल सदैव ऊंचा रहता है।

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    इस प्रकार निभाएं दुनियादारी

    तुलसी इस संसार में, भांति-भांति के लोग। सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।

    भावार्थ: स्वार्थ से ऊपर उठकर जीवन जीने का मंत्र बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिया में तरह-तरह के लोग रहते हैं। यहां हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं। लेकिन आपको हर किसी से अच्छी तरह मिलना और बात करना चाहिए। जिस प्रकार स्नेहपूर्ण चलाने से नाव द्वारा नदी पार की जा सकती है, उसी प्रकार अच्छे व्यवहार से जीवन की नैया पार लगाई जा सकती है।

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    इसलिए चुप हो जाते हैं सज्जन व्यक्ति

    लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन। अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।

    भावार्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस शोर में दब जाती है। इसलिए इस मौसम में कोयल मौन धारण कर लेती है। तुसलीदास जी इस दोहे के माध्यम से समझाना चाहते हैं कि जब मेंढक रूपी धूर्त व कपटी लोगों का बोलबाला हो जाता है, तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहना पसंद करता है और व्यर्थ वार्तालाप में अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करता। इस दोहे में कलयुग का सच दिखता है, जो सच्चे साधू-संत हैं, वे मौन रहेंगे और ढोंगी बाबाओं का बोलबाला रहेगा।

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वर्षा ऋतु में कोयल क्यों मौन साध लेती है?

वर्षा ऋतु के आते ही कोयल मौन साध लेती है, क्योंकि यह मौसम मेढकों के टर्राने का होता है। वह मौन रखकर अपनी ऋतु की प्रतीक्षा करती है, जब उसे कूकने का मौका मिलेगा। अर्थात् उचित समय का धैर्यपूर्वक इंतजार और उचित समय पर ही उचित कार्य करें।

वर्षा के समय कौन मौन हो जाता है?

वर्षा ऋतु वर्ष का वह समय होता है जब किसी क्षेत्र की अधिकांश औसत वार्षिक वर्षा होती है। आम तौर पर, मौसम कम से कम एक महीने तक रहता है। हरे मौसम शब्द को कभी-कभी पर्यटक अधिकारियों द्वारा एक व्यंजना के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। आर्द्र मौसम वाले क्षेत्र उष्ण कटिबंध और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैले हुए हैं।