इस आर्टिकल में हम जानेगे की श्वसन तंत्र यानी Respiratory System क्या होता है, मानव श्वसन तंत्र, मानव श्वसन तंत्र की क्रियाविधि, मानव श्वसन तंत्र कैसे कार्य करता है?, मनुष्य श्वसन तंत्र की संरचना क्या होती है, श्वसन के लिय गैसों का विनिमय (Exchange of gases) किस प्रकार होता है, श्वसन से जुडी किण्वन (Fermentation) क्रिया क्या होती है, मानव श्वसन तंत्र से जुड़े महत्वपुर्ण अंग कोनसे है ? श्वसन तंत्र के कितने प्रकार होते है, Show
श्वसन एक ऑक्सीकारक एवं ऊर्जा प्रदान करने वाली प्रक्रिया है, जिसमें जटिल कार्बनिक यौगिकों के टूटने से सरल यौगिक बनते है और CO2 गैस मुक्त होती है। अर्थात् श्वसन का आशय ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें वायुमण्डलीय ऑक्सीजन शरीर की कोशिकाओं में पहुँचकर भोजन का ऑक्सीकरण या दहन सम्पूर्ण करती है तथा CO2 गैस बाहर निकलती है। श्वसन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा जा सकता है | बाह्य श्वसन (External Respiration)रुधिर एवं वायु के बीच O2 तथा CO2 का आदान-प्रदान बाह्य श्वसन कहलाता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार से होता है: 1. श्वासोच्छवास (Breathing)इसके अन्तर्गत फेफड़ों में निश्चित दर से वायु भरी एवं निकाली जाती है, जिसे साँस लेना भी कहते हैं। इसमें मुख्यतया दो क्रियाएँ होती हैं : (a) निःश्वसन (Inspiration)इस अवस्था में वायु वातावरण से वायु पथ द्वारा फेफड़े में प्रवेश करती है, जिसे नि: श्वसन कहते हैं। निः श्वसन में बाह्य अन्तरपर्शुक पेशियाँ सिकुड़ती हैं, पसलियाँ तथा स्टर्नम ऊपर तथा बाहर की और खिचतें हैं, जिससे वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है एवं फेफड़ों में निम्न दाब उत्पन्न हो जाता है। (b) उच्छश्वसन (Expiration)इस क्रिया में श्वसन के पश्चात वायु उसी वायु-पथ के द्वारा फेफड़े से बाहर निकलकर वातावरण में पुन: लौट आती है, जिस वायुपथ से वह फेफड़ों में प्रवेश करती है। श्वासोच्छ्वास में प्रयुक्त वायु का संगठन
निःश्वसन (Inspiration) तथा उच्छश्वसन (Expiration) में अन्तर
2. गैसों का विनिमय (Exchange of gases)फेफड़ों के अन्दर गैसों का विनिमय होता है, यह प्रक्रिया घुली अवस्था या विसरणं प्रवणता (diffusion gradient) के आधार पर साधारण विसरण द्वारा होती है। इस क्रिया में फेफड़ों में O2 एवं CO2 का विनिमय उनके दाबों के अन्तर के कारण होता है। इन दोनों गैसों के विसरण की दिशा एक दूसरे के विपरीत होती है। श्वासोच्छवास के फलस्वरूप वायु फेफड़े के चारों और विभिन्न वायुकोष्ठकों घना जाल उपस्थित रहता है। इस समय वायु की ऑक्सीजन महीन शिरा केशिकाओं की दीवार से होकर रुधिर में पहुँच जाती है। गैसों का परिवहनइसके अन्तर्गत O2 का परिवहन रुधिर में पाए जाने वाले लाल वर्णक हीमोग्लोबिन के द्वारा शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक होता है जबकि, CO2 का परिवहन कोशिकाओं से फेफड़ों तक निम्न प्रकार से होता है:
आन्तरिक श्वसन (Internal Respiration)शरीर के अन्दर रुधिर एवं ऊतक द्रव्य के बीच गैसीय विनिमय (O2 एवं CO2) आन्तरिक श्वसन कहलाता है। कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration)कोशिकाओं में कार्बनिक पदार्थों; जैसे ग्लूकोज का ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकरण की क्रिया कोशिकीय श्वसन कहलाती है। ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर यह श्वसन वायवीय एवं अवायवीय होता है। किण्वन (Fermentation)यह अवायवीय श्वसन से मिलती-जुलती क्रिया है, जिसमें कार्बनिक यौगिकों का सरल पदार्थों के रूप में विघटन बैक्टीरिया एवं अन्य सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति में होता है। यीस्ट कोशिकाओं द्वारा शर्करा का एल्कोहॉलीय किण्वन इसका उदाहरण है। यीस्ट कोशिकाओं में शर्करा के किण्वन से एल्कोहॉल एवं CO2 बनते हैं। किण्वन की यह क्रिया जाइमेज (zymase) एन्जाइम की उपस्थिति में होती है। इस क्रिया में भी अवायवीय श्वसन की तरह ग्लाइकोलाइसिस प्रक्रम से बना पाइरुविक अम्ल दो चरणों में CO2 एवं एल्कोहॉल में टूट जाता है तथा समान मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यद्यपि किण्वन में एल्कोहॉल एवं CO2 की उत्पत्ति कोशिकाओं के बाहर होती है, जिसके कारण सूक्ष्म जीवों की कोशिकाओं पर एल्कोहॉल का विषैला प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि अवायवीय श्वसन में एल्कोहॉल एवं CO2 कोशिकाओं के अन्दर उत्पन्न होते हैं। यही कारण है कि इस विषैले एल्कोहॉल के कारण कोशिकाएँ मृत्यु ग्रस्त हो जाती हैं। कोशिकीय श्वसन की क्रियाविधिश्वसन क्रिया ग्लूकोस से प्रारम्भ होती है। यह ग्लाइकोलाइसिस तथा वायवीय एवं अवायवीय ऑक्सीकरण में विभाजित होती है। ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) इसे EMP पथ भी कहा जाता है, चूँकि इसके विभिन्न पदों की खोज क्रमशः एम्बडेन मेयरहॉफ तथा पारनास ने की थी। ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में सम्पन्न होती है। इस चरण में ग्लूकोज के एक अणु से पाइरुविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण होता है। इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात् यह चरण वायवीय एवं अवायवीय श्वसन दोनों में एक जैसा होता है। वायवीय एवं अवायवीय श्वसन में अन्तर
ग्लाइकोलाइसिस में ग्लूकोस के एक अणु से1. पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनते हैं। 2. ATP के चार अणु बनते हैं, परन्तु इस क्रिया में 2 ATP अणु खर्च होते हैं अर्थात् शुद्ध लाभ 2 ATP का होता है। 3. NADH + H+ के दो अणु बनते हैं। ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया में CO2 उत्पन्न नहीं होती है। पाइरुविक अम्ल का वायवीय ऑक्सीकरणकोशिकाद्रव्य में उत्पन्न हुआ पाइरुविक अम्ल माइटोकॉण्ड्रिया में प्रवेश करता है जहाँ O2 की उपस्थिति में इसका वायवीय ऑक्सीकरण होता है। यहाँ पाइरुविक अम्ल Co-A से मिलकर एसीटाइल Co-A बनाता है, जिसके अर्न्तगत माइटोकॉण्ड्रिया में पाइरुविक अम्ल का ऑक्सीय विकार्बोक्सिलीकरण तथा विहाइड्रोजनीकरण होता है। इस क्रिया में 6 ATP अणुओं (2 NADH + H+ = 2×3) का लाभ होता है। यह क्रिया ग्लाइकोलाइसिस एवं क्रैब्स चक्र के मध्य संयोजी कड़ी का कार्य करती है। क्रैब्स चक्र (Kerb’s Cycle)इस क्रिया की खोज हैन्स क्रैब्स ने की थी। इसे साइट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र भी कहा जाता है। यह क्रिया माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर सम्पन्न होती है इस क्रिया के फलस्वरूप एसीटाइल Co-A का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है फलस्वरूप H2O, CO2, NADH+H+ तथा ATP उत्पन्न होते हैं। एसीटाइल Co-A कोशिका में उपस्थित ऑक्जलोएसीटिक अम्ल एवं जल से क्रिया कर साइट्रिक अम्ल बनाता है। इस साइट्रिक अम्ल का क्रेब्स चक्र में धीरे-धीरे कई अभिक्रियाओं के माध्यम से क्रमबद्ध विघटन होता है। इन अभिक्रियाओं के फलस्वरूप कई मध्यवर्ती अम्ल बनते हैं; जैसे—ऑक्जलोसक्सिनिक अम्ल, अल्फा-कीटोग्लूटेरिक अम्ल, सक्सिनिक अम्ल, फ्यूमेरिक अम्ल एवं मैलिक अम्ल। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप CO2 के 2 अणु एवं हाइड्रोजन के 8 परमाणु मुक्त होते हैं। अन्ततः मैलिक अम्ल का परिवर्तन ऑक्जलोएसिटिक अम्ल में हो जाता है। यह दूसरे एसिटाइल कोएन्जाइम-A के अणु के साथ संयुक्त होकर क्रैब्स चक्र में पुन: प्रवेश करता है। ऊर्जा का उत्पादनपाइरुविक अम्ल के एक अणु के ऑक्सीकरण से ATP का एक अणु पाँच अणु NADH2, के व 1 अणु FADH2 का बनता है NADH2 के एक अणु से 3 अणु ATP के , जबकि FADH2 के एक अणु से ATP के 2 अणु प्राप्त होते हैं। इस प्रकार पाइरुविक अम्ल के एक अणु से 1+ ( 3 × 5 ) + ( 2 × 1) = 1+ 15 + 2 = 18 अणु ATP के बनते हैं। चूँकि ग्लूकोज के एक अणु से दो पाइरुविक अम्ल के अणु बनते हैं 2 × 18 = 36 अणु ATP, पाइरुविक अम्ल के दो अणुओं से प्राप्त होते हैं। ग्लाइकोलिसिस के दौरान भी 2 ATP अणुओं का लाभ होता है। अतः ग्लूकोज के 1 अणु के ऑक्सीकरण से 2 + 36 = 38 ATP अणु प्राप्त होते हैं। स्पष्ट है कि हमारे तन्त्र में अधिकतम ATP अणुओं को उत्पादन क्रैब्स चक्र के दौरान होता है। मानव श्वसन तन्त्र (Human Respiratory System)मानव में प्रमुख श्वसन अंग फेफड़े होते हैं, जो वक्षगुहा में, कशेरुकदण्ड तथा पसलियों द्वारा बने एक कटघरे में सुरक्षित रहते हैं। फेफड़ों तक बाहरी वायु के आवागमन हेतु नासिका, प्रसनी, वायुनाल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर एक जटिल वायु मार्ग बनाती है अत: ये सारे अंग मिलकर श्वसन तन्त्र बनाते हैं। श्वसन पथ का क्रमनासाद्वार → ग्रसनी → कण्ठ → श्वासनाल →श्वसनी → श्वसनिकाएँ → फेफड़े → वायुकोष्ठक-केशिका → रुधिर मनुष्य में फेफड़े श्वसन तन्त्र में श्वसन अंग का कार्य करते हैं। फेफड़े के ऊपर दोहरी झिल्ली होती है, जिसे फुफ्फुसावरणी या प्लूरा (plura) कहते हैं। मनुष्य में फेफड़ा तीन पालियों में विभक्त होता है, जिसमें स्थित वायु कोष्ठक (alveoli) के माध्यम से गैसों का विनिमय होता है। श्वसन भागफलश्वसन भागफल (RQ) श्वसन भागफल का मान कार्बोहाइड्रेट के लिए = 1, प्रोटीन के लिए = 0.9, वसा के लिए = 0.7, जबकि कार्बनिक अम्ल के लिए = 1 से अधिक जन्तुओं में श्वसन वर्णक
कुछ जन्तुओं में श्वसन अंग
श्वसन विकारएम्फाइसमा सिगरेट पीने से फेफड़े में स्थित, वायु कूपिकाओं में समस्या आ जाती है । जैसे- श्वसनी दमा, श्वसनी शोथ, न्यूमोनिया, सायनोसिस आदि। मानव श्वसन तन्त्र (Human Respiratory System) से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्यमनुष्य में श्वसन को नियन्त्रण करने वाला श्वसन केन्द्र मेड्यूला ऑब्लोंगेटा में होता है। जब कार्बोहाइड्रेट का अवायवीय श्वसन होता है, तो श्वसन भागफल (RQ) अनन्त (infinite) होता है । हीमोग्लोबिन से CO (कार्बन मोनोक्साइड) के मिलने की क्षमता ऑक्सीजन की क्षमता से लगभग 250 गुना अधिक होती है। हैमबर्गर प्रक्रिया का सम्बन्ध CO2 के परिवहन से है। फेफड़ों में हैल्डेन प्रभाव हीमोग्लोबिन द्वारा O2 ग्रहण करने के कारण CO2 के बहिष्कार को प्रोत्साहित करता है, जबकि ऊतकों में यह O2 के बहिष्कार को प्रोत्साहित करता है। श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक
श्वसन की क्रिया में गैसों का परिवहन कैसे होता है?गैसों का परिवहन (Transportation of gases): गैसों अर्थात् ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का फेफड़े से शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचना तथा पुनः फेफड़े तक वापस आने की क्रिया को गैसों का परिवहन कहते हैं। श्वसन गैसों का परिवहन रुधिर परिसंचरण तंत्र की सहायता से होता है।
श्वसन क्रिया में कौन सी गैस उपयोग में आती है?Solution : श्वसन में मुख्यतः ऑक्सीजन `(O_(2))` कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसे भाग लेती है।
श्वसन के दौरान गैसों का आदान प्रदान कहाँ होता है?इसे वायु-नली कहा जाता है।
मानव शरीर में श्वसन गैसों 02 और CO2 का परिवहन कैसे किया जाता है?मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा काबर्न डाइऑक्साइड के परिवहन को श्वसन कहते है। यह प्रक्रिया फैफड़ो द्वारा संपन्न कि जाति है। फैफड़ो में साँस के द्वारा पहुँची हुई वायु में से हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कण) ऑक्सीजन को ग्रहण कर के शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचता है। इस प्रकार ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग तक पहुँचता है।
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