प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Class 10 Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पावस ॠतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अधवा
पर्वतीय प्रदेश में वर्षा का सौंदर्य।
उत्तर :
पावस ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकल आती है, तो कभी घने काले बादल छा जाते हैं। धूप के निकलनेपर आस-पास के पर्वत और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। घने बादलों के आ जाने पर सबकुछ बादलों की ओट में छिप जाता है। चारों ओर घना अंधकार छा जाता है। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष धुले हुए से प्रतीत होते हैं। पर्वतों से निकलने वाले झरने मधुर ध्वनि करते हुए बहने लगते हैं। आकाश में इधर-उधर घूमते हुए बादल अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

प्रश्न 2.
‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
उत्तर :
मेखलाकार का शाब्दिक अर्थ है-‘श्रृंखलाकार, मंडलाकार, एक से एक जुड़े हुए’। कवि ने पर्वत की सुंदरता प्रकट करने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है। पर्वतों की श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़कर दूर तक फैली हुई हैं और इस व्यापकता से उनकी सुंदरता प्रकट हो रही है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 3.
‘पर्वत प्रदेश में पावस. कविता के आधार पर पर्वत के रूप-स्वरूप का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
पर्वत श्रृंखलाबद्ध विशालकाय अपने ढालदार आकार के कारण दूर-दूर तक फैला हुआ है। उस पर अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं, जो ऐसे लगते हैं मानो शृंखलाबद्ध अपार पर्वत सहस्रो प्रण्यरूपी नेत्रों से तलहटी में बने हुए सरोवर रूपी दर्पण में अपना रूप निहार रहा हो।

प्रश्न 4.
‘सहस्त्र दृग सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
उत्तर :
‘सहस्र दृग सुमन’ से तात्पर्य हज़ारों पुष्परूपी आँखों से है। कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वत के लिए किया है। कवि कहता है कि पर्वत पर फूल खिले हुए थे और पर्वत के नीचे विशाल सरोवर था। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो पर्वत सहस्रों पुष्परूपी नेत्रों से अपनी शोभा को तालाबरूपी दर्पण में निहार रहा हो।

प्रश्न 5.
कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर :
समानता इसलिए दिखाई है, क्योंकि जिस प्रकार दर्पण में प्रतिबिंब को साफ-साफ देखा जा सकता है, उसी प्रकार तालाब के जल में भी पर्वत और उस पर लगे फूलों का प्रतिबिंब साफ दिखाई दे रहा था। यहाँ कवि द्वारा तालाब की समानता दर्पण से करना अत्यंत उपयुक्त एवं सटीक है।

प्रश्न 6.
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर :
पर्वत की चोटियों पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे, जो टकटकी लगाए आकाश की ओर देखते हुए प्रतीत हो रहे थे। ऐसा लगता था, मानो वे और ऊँचा उठना चाहते थे। वे पेड़ ऐसे व्यक्ति को प्रतिबिंबित कर रहे थे, जो ऊँचा उठने की आकांक्षा से ओत-प्रोत हो और चिंतामुक्त होकर स्थिर भाव से अपने लक्ष्य को पाने की चाह में निरंतर बढ़ रहा हो।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 7.
शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए?
उत्तर :
कवि ने शाल के वृक्षों के भयभीत होकर धरती में धंसने की कल्पना की है। कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज़ और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था, मानो आकाश टूटकर धरती पर गिर गया हो। कोहरे के फैलने से ऐसा प्रतीत होता था, मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआँ उठ रहा हो। वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर प्रतीत होता था कि शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धंस गए हों।

प्रश्न 8.
झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर :
झरने कल-कल की ध्वनि से पर्वत के गौरव का गान करते प्रतीत हो रहे थे। कवि ने बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है। कवि के अनुसार बहते हुए झरने में झाग के मोटे-मोटे बुलबुले बन रहे थे, जो मोतियों के समान लग रहे थे। इसी कारण कवि ने बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ी से की है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
है टूट पड़ा भू पर अंबर।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत-प्रदेश में होने वाली वर्षा अत्यंत भयंकर थी। पर्वतों पर मूसलाधार वर्षा हो रही थी। बादलों से बड़ी तेजी से और मोटे रूप में जल की वर्षा हो रही थी। ऐसी भयंकर वर्षा को देखकर लगता था, मानो आकाश टूटकर धरती पर आ गिरा हो।

प्रश्न 2.
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति से कवि का भाव यह है कि उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो वर्षा का देवता इंद्र बादलों के यान में बैठा हुआ जादू का कोई खेल खेल रहा हो। आकाश में इधर-उधर उमड़ते-घुमड़ते बादलों में छिपे पहाड़ों को देखकर ऐसा लगता था, जैसे पहाड़ अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। कहीं गहरे कोहरे के कारण चारों ओर धुआँ ही धुआँ था, तो कहीं मूसलाधार वर्षा से आकाश के धरती पर टूटकर गिरने जैसा प्रतीत हो रहा था। पहाड़ों का उड़ना, चारों ओर धुआँ होना और मूसलाधार-ये सब जादू के खेल के समान दिखाई दे रहे थे।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 3.
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों से कवि स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत की चोटियों पर पेड़ उगे हुए थे, जो पर्वत के हृदय से उठे हुए लगते थे। पर्वत की चोटियों पर उगे ऊँचे-ऊँचे वे पेड़ आकाश में झाँकते हुए ऐसे प्रतीत होते थे, मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से कोई व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त होकर निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा हो।

कविता का सौंदर्य –

प्रश्न 1.
इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
काव्य में जड़ अथवा चेतन तत्वों पर मानवीय भावों, संबंधों और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते हुए दिखाना ही मानवीकरण अलंकार है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। पर्वत को अपने फूलरूपी नेत्रों से अपना प्रतिबिंब देखते चित्रित किया गया है। पर्वतों पर लगे हुए पेड़ों को लक्ष्य-प्राप्ति की ओर अग्रसर चिंता मुक्त मनुष्य के समान दर्शाया गया है। इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर पर्वत को बादलों के पंख लगाकर उड़ते हुए तथा शाल के पेड़ों को भयभीत होकर धंसते हुए चित्रित करके कवि ने इनका सुंदर मानवीकरण किया है।

प्रश्न 2.
आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है –
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।
उत्तर :
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर। कवि ने शब्दों को इस प्रकार चित्रित किया है कि संपूर्ण दृश्य आँखों के समक्ष सजीव हो उठता है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 3.
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
(क) मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!

(ख) गिरिवर के डर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

(ग) धंस गए धरा में सभय शाल!
उठ हरा धुआँ, जल गया ताल!

योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात की गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
वर्षा ऋतु में प्रकृति अत्यंत मोहक रूप धारण कर लेती है। चारों ओर लहलहाते खेत और पेड़ हृदय को आनंद प्रदान करते हैं। नदियाँ, सरोवर, नाले सब जल से भर जाते हैं। मोर नाच उठते हैं। औषधियाँ और वनस्पतियाँ लहलहा उठती हैं। वर्षा की बूंदों से नहाकर पेड़ चमकदार हो जाते हैं। पशु-पक्षी आनंदमग्न हो उठते हैं। चारों ओर जल-ही-जल दिखाई देता है। बागों और बगीचों में फिर से बहार आ जाती है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
वर्षा ऋतु पर लिखी गई अन्य कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी इन कार्यों को स्वयं करें।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 2.
बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली, फूल, फल आदि या कोई भी प्रकृति विषयक शब्दों का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी इन कार्यों को स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
वर्षा के समय आपके घर के आसपास कैसा दृश्य होता है ? उसका वर्णन एक अनुच्छेद में कीजिए।
उत्तर :
वर्षा के समय हमारे घर के आसपास जल ही जल हो जाता है। हमारी गली में नदी-सी बहने लगती है। आस-पास के छोटे बच्चे उस पानी में छलाँगें लगाते हुए जल-क्रीड़ा करने लगते हैं। कुछ बच्चे कागज़ की नावें बनाकर उसे पानी में तैराते हैं। वर्षा की बूँदों से पेड़ नहा कर चमकने लगते हैं। मकानों की दीवारें धुली हुई लगती हैं। गली का कचरा बह जाता है और गली भी साफ-सुथरी लगने लगती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है।

प्रश्न 2.
पंत जी मूलतः कलाकार हैं; स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पंत जी मूलतः कलाकार हैं। उनके काव्य में शब्दों की कसावट, शब्द-चयन, वस्तु-विषय आदि सभी कुछ इस प्रकार है, जैसे कोई शिल्पकार मूर्ति तराशने से पहले उसके रंग, रूप, निखार तथा साज-सज्जा का सामान जुटाता है। इसी प्रकार पंत जी भी शब्द आदि को जुटाकर काव्य का निर्माण करते हैं। इनके काव्य में सर्वप्रथम कला का, फिर विचारों का और अंत में भावों का स्थान है। अपनी रचना को सुंदर बनाने के लिए कलाकार जिन प्रसाधनों का प्रयोग करता है, वे सब कला के ही प्रसाधन हैं।

प्रश्न 3.
पंत जी की भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पंत जी प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनकी भाषा में संस्कृत की व्यंजनापूर्ण तत्सम शब्दावली का प्राचुर्य है। उन्होंने अपने अद्भुत कला-कौशल से खड़ी बोली को कोमलता एवं सरसता प्रदान की है। भाषा तो ऐसी लगती है, मानों उनके कलात्मक संकेत पर नाचती हो। इनकी भाषा में तत्सम व तद्भव शब्दों की अधिकता होती है। इनके द्वारा किया गया शब्द चयन अपने आप में बेजोड़ है। इससे साथ-साथ अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों के प्रयोग ने इनके काव्य को सुंदरता प्रदान की है। पंत जी के शब्द वस्तुत: शब्द-चित्र है, जो कल्पना को भी प्रत्यक्ष प्रस्तुत करने में सक्षम है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 4.
वर्षाकाल में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल अपना रूप क्यों बदल रही है ?
उत्तर :
वर्षाकाल में पर्वतीय प्रदेश में कभी धूप और कभी बादल छा जाते हैं। बादल और धूप की इस आँखमिचौली के कारण पर्वतीय प्रदेश के प्राकृतिक परिवेश में प्रतिपल परिवर्तन हो रहा है। धूप निकलने पर आस-पास के पर्वतों का साँदर्य स्पष्ट दिखाई देता है, परंतु बादलों के आने से पर्वत छिप जाते हैं तथा सर्वत्र अंधकार छा जाता है।

प्रश्न 5.
‘फड़का अपार वारिद के पर’ से क्या आशय है ?
उत्तर :
पर्वतीय क्षेत्र में बादलों के घिर आने पर पर्वत, वृक्ष, पुष्प, झरने आदि दिखाई नहीं देते। वे बादलों से ढक जाते हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से यह कल्पना की है कि पर्वत बादलरूपी पंखों को फड़फड़ा कर वहाँ से उड़ जाता है। जैसे पक्षी के उड़ने पर उसके पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देती है, वैसे ही बादलों की गर्जना सुनाई दे रही है।

प्रश्न 6.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि पंत ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर :
सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उन्होंने ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में वर्षा ऋतु के समय पर्वतीय प्रदेश के प्राकृतिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों का सुंदर उल्लेख किया है। कवि ने बताया है कि किस प्रकार प्रकृति बादलों और धूप की आँखमिचौली के कारण प्रतिफल अपने रूप को बदलती है। उसके रूप में हर पल एक नया निखार आता है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रश्न 7.
कविता में ऊँचे पर्वत सरोवर में क्या देखते हैं?
उत्तर :
कविता में कवि ने ऊँचे पर्वतों का मानवीकरण करते हुए कहा है कि श्रृंखलाबद्ध ऊँचे पर्वत अपने ऊपर खिले हुए पुष्परूपी नेत्रों से अपनी तलहटी के सरोवररूपी दर्पण में इस प्रकार झाँकते हैं जैसे कि सरोवर के जल में वे अपनी छवि एवं शोभा देख रहे हों।

पर्वत प्रदेश में पावस Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – श्री सुमित्रानंदन पंत छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनका जन्म सन 1900 ई० में प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पंत तथा माता का नाम सरस्वती था। पंत जी जन्म के कुछ घंटे के पश्चात ही अपनी माँ की स्नेह-छाया से वंचित हो गए थे। उन्होंने अपनी एक कविता में माँ के निधन के विषय में कहा है –

जन्म-मरण आए थे संग-संग बन हमजोली,
मृत्यु अंक में जीवन ने जब आँखें खोलीं।

पंत जी आरंभ से ही सुकुमारता के उपासक रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने बचपन का नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। स्वभाव की कोमलता एवं प्रकृति की सुकुमारता ने मिलकर कवि को कोमल भावों का गायक बना दिया। पंत जी के ऊपर युग चेतना का प्रभाव भी रहा है। गांधीजी के आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और अपनी ओजस्वी लेखनी से ब्रिटिश सरकार पर प्रहार करने लगे। संस्कृत, हिंदी, बाँग्ला एवं अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के अध्ययन द्वारा पंत जी ने अपनी प्रतिभा को समृद्ध बनाया। उनके ऊपर अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि कीट्स व शैली तथा भारतीय कवि रवींद्रनाथ टैगोर का प्रभाव रहा है। सन 1977 ई० में पंत जी का निधन हो गया।

रचनाएँ – पंत जी ने अपने युग की माँग के अनुसार अनेक रचनाएँ लिखी हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन युग की प्रगति का सफल अंकन हुआ है। उन्होंने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। पंत जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं –

काव्य – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, ‘ सत्यकाम आदि।
लोकायतन – लोकायतन महाकाव्य पर पंत जी को एक लाख रुपये का पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।
नाटक – रजत-रश्मि, ज्योत्स्ना, शिल्पी।
उपन्यास – हार।
कहानियाँ एवं संस्मरण – पाँच कहानियाँ, साठ हर्ष, एक रेखांकन।
साहित्यिक विशेषताएँ – पंत जी का काव्य तत्कालीन युग का दर्पण कहा जा सकता है। इनका काव्य धीरे-धीरे विकसित हुआ। उच्छ्वास से गुंजन तक कवि प्रणय और प्रकृति का गायक रहा। इस आधार पर उसे शुद्ध सौंदर्यवादी कवि स्वीकार किया जा सकता है। ‘युगांत’ उनकी काव्य चेतना के एक युग का अंत है और ‘युगांत’ से ‘ग्राम्या’ तक उनकी भौतिकवादी दृष्टि अधिक सजग रही और वे मार्क्सवादी से प्रभावित रहे। ‘स्वर्ण धूलि’ से ‘उत्तरा’ तक वे अध्यात्मवाद की ओर झुके प्रतीत होते हैं तथा अरविंद दर्शन का उन पर गहरा।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

प्रभाव दिखाई पड़ता है। ‘लोकायतन’ में गांधीवादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव लक्षित होता है। पंत जी के काव्य में कल्पना, अनुभूति, संवेदना और विचारशीलता एक साथ है। पल्लव’ काल की रचनाओं में कल्पना अधिक है। ‘बादल’ नामक कविता में कल्पना के विविध रूप दिखाई पड़ते हैं। पंत प्रकृति के कवि थे और शायद पहले हिंदी कवि भी, जिन्होंने स्पष्ट रूप से सांसारिक मांसलता के स्थान पर प्रकृति के सूक्ष्म सौंदर्य को स्वीकार किया और लिखा –

छोड़ द्रमों का मद छाया, तोड़ प्रकृति की भी माया।
छाले! हरे बाल जाल में, कैसे उलझा दूँ लोचन।

आजीवन अविवाहित रहने वाले पंत जी निश्चय ही प्रकृति में अपनी माँ, अपनी प्रेयसी तथा अपना सर्वस्व खोजते रहे। पंत जी की कविता – प्रकृति के मनोरम चित्रों की अद्भुत चित्रशाला है। ग्रीष्म ऋतु में सूखी हुई गंगा का चाँदनी रात में चित्रण कितना मार्मिक है –

सैकत शैय्या पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल,
लेटी है श्रांत, क्लांत, निश्चल!

पंत जी की काव्य रचना का छायावादी दौर समाप्त होने पर प्रगतिवादी दौर आरंभ होता है। ‘ताज’, ‘दो लड़के’ तथा ‘वह बुड्ढा’ – शीर्षक कविताएँ कवि की प्रगतिशील चेतना की सूचक हैं। ‘ताज’ को शोषण का प्रतीक और रूढ़िवादी व पतनशील विचारधारा का स्तूप बताते हुए कवि ने लिखा –

हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन !
जब विषण्ण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन।

पंत के काव्य का कलापक्ष अत्यंत सुंदर है। पंत जी प्रधान रूप से कलाकार ही हैं। उनके काव्य में सर्वप्रथम कला का, फिर विचारों का और अंत में भावों का स्थान है। अपनी कृति में सौंदर्य का प्रतिफलन करने के लिए कलाकार जिन साधनों का उपयोग करता है, वे सभी कला के प्रसाधन हैं। पंत जी शब्द-चित्रों के अद्भुत कलाकार हैं। सचित्र विशेषणों का चयन पंत जी की दूसरी विशेषता है। वे एक को ही शब्द अथवा पंक्ति में व्यापक कल्पना को समेट सिकोड़कर बंद कर देते हैं। इस प्रकार के शब्द-चित्र उनके काव्य में सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं।

‘बापू के प्रति’ कविता में ‘अस्थिशेष’, ‘माँसहीन’, ‘नग्न’ आदि विशेषणों को पंत जी ने चित्रमय बना दिया है। पंत जी के काव्य में रंगों का चमत्कार भी है, परंतु ये रंग इतनी कोमलता लिए हैं कि तितली के पंखों की तरह छूने मात्र से ही इनका रंग उतर जाता है। पंत जी की भाषा में संस्कृत की व्यंजनापूर्ण तत्सम शब्दावली का प्राचुर्य है। कविवर पंत ने खड़ी बोली को कोमलता एवं सरसता प्रदान की है। उनके कलात्मक संकेत पर भाषा नाचती दिखाई पड़ती है। सचमुच सुमित्रानंदन पंत प्रणय, प्रकृति और मानव-प्रेम के – महान कवि हैं।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

कविता का सार :

‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय प्राकृतिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों का आकर्षक चित्रण किया है। बादलों और धूप की आँखमिचौली के कारण प्रकृति प्रतिपल अपना रूप बदल रही है। श्रृंखलाबद्ध ऊँचे पर्वत अपने ऊपर खिले हुए पुष्परूपी नेत्रों से अपनी तलहटी के सरोवररूपी दर्पण में मानो अपना अपनी शोभा देख रहे हैं। बहते हुए झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं।

पर्वत शिखरों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर देख रहे हैं। अचानक बादलों के घिर आने से कुछ भी दिखाई नहीं देता। ऐसा लगता है, मानो बादलरूपी पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। केवल झरनों का शोर सुनाई देता है। ऐसा लगता है, जैसे धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। मूसलाधार वर्षा के कारण भयभीत होकर शाल के वृक्ष जैसे धरती में समा गए हों तथा कुहरा इतना अधिक बढ़ गया है, मानो तालाब में आग लग गई हो और वहीं से धुआँ उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों के यान पर बैठकर इंद्र विभिन्न प्रकार के जादू के खेल खेल रहा है।

सप्रसंग व्याख्या –

1. पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहत्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!

शब्दार्थ : पावस – वर्षा, बरसात। ऋतु – मौसम। पल-पल – प्रतिक्षण, हर समय। परिवर्तित – बदलता हुआ। प्रकृति – वेश, प्रकृति का स्वरूप। मेखलाकार – श्रृंखलाकार, मंडलाकार, एक में एक जुड़े हुए। अपार – बहुत अधिक, जिसका पार न हो, असीम। सहस्त्र – हज़ार। दृग – आँखें। सुमन – पुष्प, फूल। अवलोक – देखना। निज – अपना। महाकार – विशाल आकार । ताल – सरोवर। दर्पण – शीशा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु के समय पर्वतीय प्रदेश में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु थी और पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिक्षण अपना रूप बदल रही थी। श्रृंखलाबद्ध ऊँचे उठे हुए बड़े पर्वत पर अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे और उस पर्वत श्रृंखला की तलहटी में दर्पण के समान फैला हुआ विशाल सरोवर था। ऐसा लगता था मानो यह श्रृंखलाबद्ध अपार पर्वत अपने सहस्रों पुष्परूपी नेत्रों से इस सरोवररूपी दर्पण में अपनी शोभा देख रहा है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

शब्दार्थ : गिरि – पर्वत। गौरव – यश, सम्मान। मद – मस्ती, आनंद। निर्झर – झरना। उर – हृदय। उच्चाकांक्षा – ऊँचा उठने की कामना। तरुवर – बड़े वृक्ष। नीरव – चुपचाप। नभ – आकाश। अनिमेष – एकटक, टकटकी बाँधे। अटल – स्थिर, बिना हिले-डुले।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश का आकर्षक वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि लिखता है कि पर्वतों से निकलने वाले झरने मानो पर्वत का यशोगान गाते हुए कल-कल स्वर करते हुए बहते हैं और प्रत्येक अंग में मादकता भर रहे हैं। झाग से भरे हुए झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर लगते हैं। पर्वत की चोटियों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर एकटक देखते हुए ऐसे लग रहे हैं, मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से चिंतामुक्त कोई व्यक्ति स्थिर भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगा हुआ है।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए? - prashn 6. shaal ke vrksh bhayabheet hokar dharatee mein kyon dhans gae?

3. उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निईर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

शब्दार्थ : भूधर – पर्वत। वारिद – बादल। पर – पंख। रव – आवाज़, शोर। शेष – बाकी। भू- धरती। अंबर – आकाश। सभय- डरकर, भयभीत होकर। शाल – शाल का वृक्ष। ताल – सरोवर। जलद-यान – बादल रूपी यान। विचर-विचर – घूम-घूमकर। इंद्रजाल – जादू के खेल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु में बादलों के छा जाने से ऐसा लगता है, मानो अचानक बादलरूपी बड़े-बड़े पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। बादलों के कारण पर्वत दिखाई नहीं देता; केवल झरनों के बहने की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसी मूसलाधार वर्षा हो रही है, मानो धरती पर आकाश टूटकर गिर गया हो। शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धंस गए प्रतीत होते हैं। कोहरा इतना फैल गया है, मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआँ उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों के यान में बैठकर इंद्र वहाँ अपने जादू के खेल दिखा रहा था।

के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

Solution : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में इसलिए धंस गए, क्योंकि जो धुआँ बादलों के रूप में उठ रहा था उससे उन्हें तालाब जलता हुआ नज़र आ रहा था और ऐसा लग रहा है जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। वे जलने से बचने के लिए धरती में धंस गए थे।

शाल के वृक्ष धरती में क्यों धंस गए * 1 Point भय के कारण वे डर गए कि तालाब में आग लग गई उन्हें लगा पर्वत कहीं उड़ गया?

कवि ने शाल के वृक्षों के भयभीत होकर धरती में धंसने की कल्पना की है। कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश टूटकर धरती पर गिर गया हो। कोहरे के फैलने से ऐसा लगता था मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआं उठ रहा हो।

धरती में भय के कारण कौन धँस गए हैं?

कर्ण
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र
नाम:
कर्ण
अन्य नाम:
वासुसेन,दानवीर कर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र कर्ण, सूतपुत्र कर्ण , कौंत्य कर्ण , विजयधारी , वैकर्तना, मृत्युंजय कर्ण , दिग्विजयी कर्ण, अंगराज कर्ण
संदर्भ ग्रंथ:
महाभारत
कर्ण - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › कर्णnull