Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस Textbook Exercise Questions and Answers. Show
JAC Class 10 Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Textbook Questions and Answers(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. (ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. कविता का सौंदर्य – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. (ख) गिरिवर के डर से उठ-उठकर (ग) धंस गए धरा में सभय शाल! योग्यता विस्तार – प्रश्न : परियोजना कार्य – प्रश्न 1. प्रश्न 2. JAC Class 10 Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. पर्वत प्रदेश में पावस Summary in Hindiकवि-परिचय : जीवन – श्री सुमित्रानंदन पंत छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनका जन्म सन 1900 ई० में प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पंत तथा माता का नाम सरस्वती था। पंत जी जन्म के कुछ घंटे के पश्चात ही अपनी माँ की स्नेह-छाया से वंचित हो गए थे। उन्होंने अपनी एक कविता में माँ के निधन के विषय में कहा है – जन्म-मरण आए थे संग-संग बन हमजोली, पंत जी आरंभ से ही सुकुमारता के उपासक रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने बचपन का नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। स्वभाव की कोमलता एवं प्रकृति की सुकुमारता ने मिलकर कवि को कोमल भावों का गायक बना दिया। पंत जी के ऊपर युग चेतना का प्रभाव भी रहा है। गांधीजी के आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और अपनी ओजस्वी लेखनी से ब्रिटिश सरकार पर प्रहार करने लगे। संस्कृत, हिंदी, बाँग्ला एवं अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के अध्ययन द्वारा पंत जी ने अपनी प्रतिभा को समृद्ध बनाया। उनके ऊपर अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि कीट्स व शैली तथा भारतीय कवि रवींद्रनाथ टैगोर का प्रभाव रहा है। सन 1977 ई० में पंत जी का निधन हो गया। रचनाएँ – पंत जी ने अपने युग की माँग के अनुसार अनेक रचनाएँ लिखी हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन युग की प्रगति का सफल अंकन हुआ है। उन्होंने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। पंत जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं – काव्य – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, ‘ सत्यकाम आदि। प्रभाव दिखाई पड़ता है। ‘लोकायतन’ में गांधीवादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव लक्षित होता है। पंत जी के काव्य में कल्पना, अनुभूति, संवेदना और विचारशीलता एक साथ है। पल्लव’ काल की रचनाओं में कल्पना अधिक है। ‘बादल’ नामक कविता में कल्पना के विविध रूप दिखाई पड़ते हैं। पंत प्रकृति के कवि थे और शायद पहले हिंदी कवि भी, जिन्होंने स्पष्ट रूप से सांसारिक मांसलता के स्थान पर प्रकृति के सूक्ष्म सौंदर्य को स्वीकार किया और लिखा – छोड़ द्रमों का मद छाया, तोड़ प्रकृति की भी माया। आजीवन अविवाहित रहने वाले पंत जी निश्चय ही प्रकृति में अपनी माँ, अपनी प्रेयसी तथा अपना सर्वस्व खोजते रहे। पंत जी की कविता – प्रकृति के मनोरम चित्रों की अद्भुत चित्रशाला है। ग्रीष्म ऋतु में सूखी हुई गंगा का चाँदनी रात में चित्रण कितना मार्मिक है – सैकत शैय्या पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल, पंत जी की काव्य रचना का छायावादी दौर समाप्त होने पर प्रगतिवादी दौर आरंभ होता है। ‘ताज’, ‘दो लड़के’ तथा ‘वह बुड्ढा’ – शीर्षक कविताएँ कवि की प्रगतिशील चेतना की सूचक हैं। ‘ताज’ को शोषण का प्रतीक और रूढ़िवादी व पतनशील विचारधारा का स्तूप बताते हुए कवि ने लिखा – हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन ! पंत के काव्य का कलापक्ष अत्यंत सुंदर है। पंत जी प्रधान रूप से कलाकार ही हैं। उनके काव्य में सर्वप्रथम कला का, फिर विचारों का और अंत में भावों का स्थान है। अपनी कृति में सौंदर्य का प्रतिफलन करने के लिए कलाकार जिन साधनों का उपयोग करता है, वे सभी कला के प्रसाधन हैं। पंत जी शब्द-चित्रों के अद्भुत कलाकार हैं। सचित्र विशेषणों का चयन पंत जी की दूसरी विशेषता है। वे एक को ही शब्द अथवा पंक्ति में व्यापक कल्पना को समेट सिकोड़कर बंद कर देते हैं। इस प्रकार के शब्द-चित्र उनके काव्य में सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं। ‘बापू के प्रति’ कविता में ‘अस्थिशेष’, ‘माँसहीन’, ‘नग्न’ आदि विशेषणों को पंत जी ने चित्रमय बना दिया है। पंत जी के काव्य में रंगों का चमत्कार भी है, परंतु ये रंग इतनी कोमलता लिए हैं कि तितली के पंखों की तरह छूने मात्र से ही इनका रंग उतर जाता है। पंत जी की भाषा में संस्कृत की व्यंजनापूर्ण तत्सम शब्दावली का प्राचुर्य है। कविवर पंत ने खड़ी बोली को कोमलता एवं सरसता प्रदान की है। उनके कलात्मक संकेत पर भाषा नाचती दिखाई पड़ती है। सचमुच सुमित्रानंदन पंत प्रणय, प्रकृति और मानव-प्रेम के – महान कवि हैं। कविता का सार : ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय प्राकृतिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों का आकर्षक चित्रण किया है। बादलों और धूप की आँखमिचौली के कारण प्रकृति प्रतिपल अपना रूप बदल रही है। श्रृंखलाबद्ध ऊँचे पर्वत अपने ऊपर खिले हुए पुष्परूपी नेत्रों से अपनी तलहटी के सरोवररूपी दर्पण में मानो अपना अपनी शोभा देख रहे हैं। बहते हुए झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। पर्वत शिखरों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर देख रहे हैं। अचानक बादलों के घिर आने से कुछ भी दिखाई नहीं देता। ऐसा लगता है, मानो बादलरूपी पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। केवल झरनों का शोर सुनाई देता है। ऐसा लगता है, जैसे धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। मूसलाधार वर्षा के कारण भयभीत होकर शाल के वृक्ष जैसे धरती में समा गए हों तथा कुहरा इतना अधिक बढ़ गया है, मानो तालाब में आग लग गई हो और वहीं से धुआँ उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों के यान पर बैठकर इंद्र विभिन्न प्रकार के जादू के खेल खेल रहा है। सप्रसंग व्याख्या – 1. पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, शब्दार्थ : पावस – वर्षा, बरसात। ऋतु – मौसम। पल-पल – प्रतिक्षण, हर समय। परिवर्तित – बदलता हुआ। प्रकृति – वेश, प्रकृति का स्वरूप। मेखलाकार – श्रृंखलाकार, मंडलाकार, एक में एक जुड़े हुए। अपार – बहुत अधिक, जिसका पार न हो, असीम। सहस्त्र – हज़ार। दृग – आँखें। सुमन – पुष्प, फूल। अवलोक – देखना। निज – अपना। महाकार – विशाल आकार । ताल – सरोवर। दर्पण – शीशा। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु के समय पर्वतीय प्रदेश में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन किया है। व्याख्या : कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु थी और पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिक्षण अपना रूप बदल रही थी। श्रृंखलाबद्ध ऊँचे उठे हुए बड़े पर्वत पर अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे और उस पर्वत श्रृंखला की तलहटी में दर्पण के समान फैला हुआ विशाल सरोवर था। ऐसा लगता था मानो यह श्रृंखलाबद्ध अपार पर्वत अपने सहस्रों पुष्परूपी नेत्रों से इस सरोवररूपी दर्पण में अपनी शोभा देख रहा है। 2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर शब्दार्थ : गिरि – पर्वत। गौरव – यश, सम्मान। मद – मस्ती, आनंद। निर्झर – झरना। उर – हृदय। उच्चाकांक्षा – ऊँचा उठने की कामना। तरुवर – बड़े वृक्ष। नीरव – चुपचाप। नभ – आकाश। अनिमेष – एकटक, टकटकी बाँधे। अटल – स्थिर, बिना हिले-डुले। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश का आकर्षक वर्णन किया है। व्याख्या : कवि लिखता है कि पर्वतों से निकलने वाले झरने मानो पर्वत का यशोगान गाते हुए कल-कल स्वर करते हुए बहते हैं और प्रत्येक अंग में मादकता भर रहे हैं। झाग से भरे हुए झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर लगते हैं। पर्वत की चोटियों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर एकटक देखते हुए ऐसे लग रहे हैं, मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से चिंतामुक्त कोई व्यक्ति स्थिर भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगा हुआ है। 3. उड़ गया, अचानक लो, भूधर शब्दार्थ : भूधर – पर्वत। वारिद – बादल। पर – पंख। रव – आवाज़, शोर। शेष – बाकी। भू- धरती। अंबर – आकाश। सभय- डरकर, भयभीत होकर। शाल – शाल का वृक्ष। ताल – सरोवर। जलद-यान – बादल रूपी यान। विचर-विचर – घूम-घूमकर। इंद्रजाल – जादू के खेल। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया है। व्याख्या : कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु में बादलों के छा जाने से ऐसा लगता है, मानो अचानक बादलरूपी बड़े-बड़े पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। बादलों के कारण पर्वत दिखाई नहीं देता; केवल झरनों के बहने की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसी मूसलाधार वर्षा हो रही है, मानो धरती पर आकाश टूटकर गिर गया हो। शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धंस गए प्रतीत होते हैं। कोहरा इतना फैल गया है, मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआँ उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों के यान में बैठकर इंद्र वहाँ अपने जादू के खेल दिखा रहा था। के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?Solution : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में इसलिए धंस गए, क्योंकि जो धुआँ बादलों के रूप में उठ रहा था उससे उन्हें तालाब जलता हुआ नज़र आ रहा था और ऐसा लग रहा है जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। वे जलने से बचने के लिए धरती में धंस गए थे।
शाल के वृक्ष धरती में क्यों धंस गए * 1 Point भय के कारण वे डर गए कि तालाब में आग लग गई उन्हें लगा पर्वत कहीं उड़ गया?कवि ने शाल के वृक्षों के भयभीत होकर धरती में धंसने की कल्पना की है। कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश टूटकर धरती पर गिर गया हो। कोहरे के फैलने से ऐसा लगता था मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआं उठ रहा हो।
धरती में भय के कारण कौन धँस गए हैं?
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