Free PDF download of NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 2 (Hindi Medium), revise these answers can prove to be extremely beneficial not only from the examination point of view but can also help Class 12 students to outperform in the upcoming competitive examinations. अभ्यास-प्रश्न । उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में) प्रश्न 1. भिन्नता The CBSE Class 12 history NCERT Solutions covers solutions of various chapters like bricks, beads and bones The harappan
civilisation, Early states and economies, An imperial capital: vijayanagara, and many other which will help you prepare well for CBSE Board exams. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
Chapter 2 Kings, Farmers and Towns Early States and Economies इन दोनों उदाहरणों में महत्त्वपूर्ण समानता यह है
कि लोगों द्वारा अपने-अपने सरदारों को समय-समय पर अनेक वस्तुएँ भेंट में प्रदान की जाती थीं। दोनों उदाहरणों में स्थानीय रूप से उपलब्ध वस्तुओं के भेंट में दिए जाने का संकेत मिलता है। असमानताएँ-दोनों उदाहरणों में एक महत्त्वपूर्ण असमानता यह है कि पांड्य सरदार को मिलने वाली वस्तुओं की सूची गुप्त अथवा वाकाटक सरदार को मिलने वाली वस्तुओं की सूची की अपेक्षा अधिक विशाल है। प्रभावती गुप्त के अभिलेख से पता चलता है कि वाकाटक अधिकार क्षेत्रों में राज्य को मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकारों को
लागू करवाए जाने का भी अधिकार था। किंतु पांड्य अधिकार क्षेत्रों में हमें ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता। एक अन्य महत्त्वपूर्ण असमानता जो हमें दृष्टिगोचर होती है यह है कि पांड्य राज्य के लोगों ने नाचते-गाते हुए ठीक उसी प्रकार सेनगुत्तुवन का स्वागत किया जैसे पराजित लोग विजयी का आदर करते हैं। संभवतः पांड्य राज्य में लोग स्वेच्छापूर्वक अधिक-से-अधिक वस्तुएँ अपने शासकों को भेंट के रूप में प्रदान करते थे। ऐसा लागता है कि वाकाटक अधिकार क्षेत्रों में लोग शासकीय अधिकारियों को दायित्व के रूप में भेट प्रदान करते
थे। प्रश्न 5. 1. उन्हें अभिलेखों की लिपियों को पढ़ने में कठिनाई आती थी, क्योंकि जिन युगों के वे अभिलेख होते हैं, उनके समकालीन अभिलेखों पर कहीं भी उस लिपि का प्रयोग नहीं हुआ होता। उदाहरण के लिए-हड़प्पा सभ्यता की मोहरों और अन्य वस्तुओं पर दिये गये लेखों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है। 2. कुछ अभिलेखों में एक ही राजा के लिए भिन्न-भिन्न नामों/उपाधियों अथवा सम्मानजनक प्रतीकों और संबोधनों का प्रयोग किया गया है। इसलिए अभिलेखशास्त्री को उन्हें पढ़ने या उनका अर्थ निकालने में काफी कठिनाई होती है। 3. कई बार एक ही शासक या उसके वंश से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के देशों में फ्लिने वाले अभिलेखों में लगभग एक ही युग में भिन्न-भिन्न भाषाओं और लिपियाँ का प्रयोग हुआ है। फलतः अभिलेखशास्त्रियों को इन्हें पढ़ने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 4. अभिलेखशास्त्री कुछ अभिलेखों पर अंकित लिपि को पढ़ने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उनके समकालीन अभिलेखों पर कहीं भी उस लिपि का उल्लेख नहीं मिलता। दो भाषाओं के समानांतर प्रयोग के अभाव में अभिलेखशास्त्री असहाय हो जाते हैं। 5. अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत में हैं, जबकि परिचश्मोत्तर से मिले अभिलेख अरोमाइक और यूनानी भाषा में हैं। प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे, जबकि पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी में लिखे गए थे। अरामाइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग अफ़गानिस्तान से मिले अभिलेखों में किया गया। 6. प्रायः अभिलेखों में प्रयुक्त वाक्यों से उनके अर्थ को समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। उदाहरणार्थ अशोक की कलिंग विजयोपरांत तेरहवें शिलालेख में लिखा है-“डेढ़ लाख पुरुषों को निष्कासित किया गया; एक लाख मारे गए और इससे भी ज्यादा की मृत्यु हुई।” यह भाषा काफी भ्रमात्मक है। निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में) Chapter 2 Kings, Farmers and Towns Early States and Economies प्रश्न 6. 1. केंद्रीय शासन- अतः इस दृष्टि से वह स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश शासक था। इतिहासकार स्मिथ का कहना है कि-“चंद्रगुप्त के शासन प्रबंध से जो तथ्य प्रकट होते हैं, उनसे सिद्ध होता है कि वह कठोर निरंकुश शासक था।” किंतु चंद्रगुप्त के शासन प्रबंध ने जो शक्तियाँ सम्राट को दी थीं, वे केवल सैद्धांतिक रूप से ही उसके पास थीं। वह उन शक्तियों को व्यवहार में लाने से पूर्व अपने मंत्रियों व परामर्शदाताओं से सलाह करता था। सम्राट पर परंपरागत कानूनों तथा नैतिक कानूनों को भी बंधन था। चाणक्य ने राजा के कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन किया है और उसमें राजा को जनहित के कार्यों के लिए प्रेरित किया है। ऐसा न करने पर राजा अपनी प्रजा के ऋण से निवृत्त नहीं हो सकता। इस प्रकारे चंद्रगुप्त मौर्य को हम उदार निरंकुश शासक कह सकते हैं। 2. मंत्रिपरिषद्- 3. न्याय व्यवस्था- 4. सैनिक व्यवस्था- सम्राट प्रधान सेनापति होता था। वह युद्ध में सेना का संचालन भी करता था। चंद्रगुप्त इस विशाल सेना की व्यवस्था के लिए एक ‘युद्ध-परिषद्’ का गठन किया था जिसके तीस सदस्य थे। ये तीस सदस्य छह समितियों में विभाजित थे। इस प्रकार पाँच सदस्यों की प्रत्येक समिति सेना के एक भाग की व्यवस्था देखती थी। पहली समिति जल सेना का प्रबंध करती थी, दूसरी समिति सेना के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री तथा रसद का प्रबंध करती थी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं एवं छठी समितियाँ क्रमशः पैदल, अश्वारोही, हाथी तथा रथ सेना की व्यवस्था देखती थी। ये सेनाएँ स्थायी थीं। राज्यकोष से सैनिकों को वेतन मिलता था। 5. राजा के अधिकारियों के कार्य- मौर्यकालीन शीर्षस्थ अधिकारी (तीर्थ) अशोक के अभिलेखों में मौर्य प्रशासन के प्रमुख तत्त्व अशोक के अभिलेखों में हमें मौर्य प्रशासन के अनेक प्रमुख तत्वों की झलक मिलती है। अभिलेखों में हमें प्रशासन के प्रमुख केंद्रों, पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जैन, सुवर्णगिरि, तोशाली, कौशाम्बी आदि का बार-बार उल्लेख मिलता है। कलिंग अभिलेखों से पता चलता है कि तोशाली और उज्जैन के शासनाध्यक्षों को ‘कुमार’ कहा जाता था। ब्रह्मगिरि-सिद्धपुर अभिलेखों में । सुवर्णगिरि के शासनाध्यक्ष को ‘आर्यपुत्र’ कहा गया है। अशोक के अभिलेखों में हमें महामात्रों और धर्म-महामात्रों का भी बार-बार उल्लेख मिलता है। महाशिलालेख V से पता चलता है कि सम्राट ने अपने राज्याभिषेक के तेरह वर्ष बाद महामात्रों की नियुक्ति प्रारंभ की थी। स्तंभ लेख VII में धर्म महामात्रों के कर्तव्यों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि धम्म-महामात्रों को सभी वर्गों में धर्म का प्रचार करना चाहिए और धम्म का अनुसरण करने वालों की उन्नति की ओर ध्यान देना चाहिए। अशोक ने स्त्रियों की भलाई के लिए स्त्रीअध्यक्ष महामात्रों की नियुक्ति की थी। उनका उल्लेख भी अभिलेखों में मिलता है। जिला प्रशासन में नियुक्त राजुक तथा युक्त जैसे अधिकारियों का उल्लेख महाशिलालेख III और स्तंभ लेख I और IV में मिलता है। स्तंभ लेख IV से पता चलता है कि राजुक का प्रमुख कार्य जनपद के लोगों की भलाई के लिए करना था। अशोक ने उन्हें लोगों को अच्छे कामों के लिए सम्मानित करने तथा बुरे कामों के लिए दंडित करने का अधिकार भी प्रदान कर दिया था। महाशिलालेख III से पता चलता है कि युक्त के कार्यों में मुख्य रूप से सचिव के कार्य सम्मिलित थे। राजस्व का संग्रह और उसका हिसाब रखना उसके कार्यों के अंतर्गत आता था। महाशिलालेख VI और अन्य शिलालेखों में भी प्रतिवेदकों का उल्लेख मिलता है। प्रतिवेदक सम्राट अथवा केंद्रीय सरकार के प्रमुख संवाददाता होते थे। उनकी पहुँच सीधे सम्राट तक थी। महाशिलालेख VI से पता चलता है कि सम्राट अशोक को सदा प्रजाहिंत की चिंता रहती थी। इसमें कहा गया है- राजन् देवानांपिय पियदस्सी यह कहते हैं; अतीत में मसलों को निपटाने और नियमित रूप से सूचना एकत्र करने की व्यवस्थाएँ नहीं थीं। किन्तु मैंने व्यवस्था की है कि लोगों के समाचार हम तक प्रतिवेदक सदैव पहुँचाए। चाहे मैं कहीं भी हूँ, खाना खा रहा हूँ, अन्त:पुर में हूँ, विश्राम कक्ष में हूँ, गोशाले में हूँ या फिर पालकी में मुझे ले जाया जा रहा हो अथवा वाटिका में हूँ। मैं लोगों के विषयों का निराकरण हर स्थल पर करूंगा।” इसी प्रकार धर्मसहनशीलता जो मौर्य प्रशासन का एक प्रमुख अभिलक्षण था, का उल्लेख भी हमें अशोक के शिलालेखों में मिलता है। महाशिलालेख XII में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मनुष्य को अपने धर्म का आदर करना चाहिए, किन्तु दूसरे धर्मों की निन्दा नहीं करनी चाहिए। नि:संदेह, मौर्य साम्राज्य का भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह साम्राज्य भारत भूमि पर स्थापित साम्राज्यों में सबसे पहला और सर्वाधिक विशाल साम्राज्य था। इसे साम्राज्य की स्थापना के साथ ही भारतीय इतिहास अंधकार से प्रकाश के युग में प्रवेश करता है। प्रश्न 7. अधिक बढ़ जाता है। अनेक अभिलेखों में उनके निर्माण की तिथियाँ भी उत्कीर्ण हैं। जिन पर तिथि नहीं मिलती, उनका काल निर्धारण सामान्यत: पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर किया जाता है। अभिलेखों में मौर्य सम्राट अशोक के स्तम्भ लेख तथा शिलालेख सर्वाधिक प्राचीन एवं अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। ये अभिलेख उसके विशाल साम्राज्य के सभी भागों से प्राप्त हुए हैं। सम्राट अशोक के अभिलेख चार लिपियों में मिलते हैं। अफगानिस्तान के शिलालेखों में अरामाइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग किया गया है। पाकिस्तान क्षेत्र के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं। उत्तर में उत्तराखंड में कलसी से लेकर दक्षिण में मैसूर तक फैले अशोक के शेष साम्राज्य के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। अशोक के अभिलेख उसके शासनकाल के विभिन्न वर्षों में उत्कीर्ण किए गए थे। उन्हें राज्यादेश अथवा शासनादेश कहा जाता है, क्योंकि वे राजा की इच्छा अथवा आदेशों के रूप में प्रजा के लिए प्रस्तुत किए गए थे। नि:संदेह अभिलेख प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण में हमारी महत्त्वपूर्ण सहायता करते हैं। चट्टानों अथवा स्तंभों पर उत्कीर्ण लेखों के प्राप्ति स्थानों से संबंधित शासक के राज्य की सीमाओं का भी अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए अशोक के अभिलेखों के प्राप्ति स्थानों से उसके राज्यविस्तार पर प्रकाश पड़ता है। अशोक के बाद के अभिलेखों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-सरकारी अभिलेख और निजी अभिलेख। सरकारी अभिलेख या तो राजकवियों की लिखी हुई प्रशस्तियाँ हैं या भूमि अनुदान-पत्र। प्रशस्तियों में राजाओं और विजेताओं के गुणों राजा, किसान और नगर के और कीर्तियों का वर्णन किया गया है। प्रशस्तियों का प्रसिद्ध उदाहरण-समुद्रगुप्त का प्रयोग अभिलेख है, जो अशोक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजयों और नीतियों का पूर्ण विवरण उपलब्ध होता है। गुप्तकाल के अधिकांश अभिलेखों में वंशावलियों का वर्णन है। इसी प्रकार राजा भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में उसकी उपलब्धियों का वर्णन है। कलिंगराज खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, रुद्रदामा का गिरनार शिलालेख, स्कंदगुप्त का भीतरी स्तंभ लेख, बंगाल के शासक विजय सेन का देवपाड़ा अभिलेख और चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख इस प्रकार के अभिलेखों के अन्य उदाहरण हैं। भूमि अनुदान-पत्र अधिकतर ताम्रपत्रों पर उकेरे गए हैं। इनमें ब्राह्मणों, भिक्षुओं, जागीरदारों, अधिकारियों, मंदिरों और विहारों आदि को दिए गए गाँवों, भूमियों और राजस्व के दानों का उल्लेख है। ये प्राकृत, संस्कृत, तमिल, तेलुगु आदि विभिन्न भाषाओं में लिखे गए हैं। निजी अभिलेख अधिकांशतः मंदिरों में या मूर्तियों पर उत्कीर्ण हैं। इन पर खुदी तिथियों से इन मंदिरों के निर्माण एवं मूर्ति प्रतिष्ठापन के समय का पता लगता है। ये अभिलेख तत्कालीन धार्मिक दशा, मूर्तिकला, वास्तुकला एवं भाषाओं के विकास पर भी प्रकाश डालते हैं। उदाहरण के लिए, गुप्तकाल से पहले के अधिकांश अभिलेखों की भाषा प्राकृत है और उनमें बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म का उल्लेख है। गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल के अधिकांश अभिलेखों में ब्राह्मण धर्म का उल्लेख है और उनकी भाषा संस्कृत है। निजी अभिलेख तत्कालीन राजनैतिक दशा पर भी पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। अतः बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री डी०सी० सरकार के शब्दों में यह कहना उचित ही होगा कि-” भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है।” प्रश्न 8. 2. जिस प्रकार के राजधर्म को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने के इच्छा की, उसका सर्वोत्तम प्रमाण उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं। अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं। 3. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इन मूर्तियों के जरिए कुषाण स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी लगाई थी। संभवतः वे उन चीनी शासकों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को ‘स्वर्गपुत्र’ कहते थे। 4. चौथी शताब्दी ई० में गुप्त साम्राज्य सहित कई साम्राज्य सामंतों पर निर्भर थे। अपना निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे। जिसमें भूमि पर नियंत्रण भी शामिल था। वे शासकों का आदर करते थे और उनकी सैनिक सहायता भी करते थे। जो सामंत शक्तिशाली होते थे वे राजा भी बन जाते थे और जो राजा दुर्बल होते थे, वे बड़े शासकों के अधीन हो जाते थे। 5. गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। साथ ही कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी प्रशस्तियाँ भी उपयोगी रही हैं। यद्यपि इतिहासकार इन रचनाओं के आधार पर ऐतिहासिक तथ्य निकालने का प्रायः प्रयास करते हैं, लेकिन उनके रचयिता तथ्यात्मक विवरण की अपेक्षा उन्हें काव्यात्मक ग्रंथ मानते थे। उदाहरण के तौर पर इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राटों के संभवतः सबसे शक्तिशाली सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे, ने संस्कृत में की थी। प्रश्न 9. 1. करों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसानों ने उपज बढ़ाने के नए तरीके अपनाने शुरू कर दिए। उपज बढ़ाने का एक तरीका हल का प्रचलन था। जो छठी शताब्दी ई०पू० से ही गंगा और कावेरी की घाटियों के उर्वर कछारी क्षेत्र में फैल गया था। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती थी, वहाँ लोहे के फाल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अलावा गंगा की घाटी में धान की रोपाई की वजह से उपज में भारी वृद्धि होने लगी। 2. यद्यपि लोहे के फाल वाले हल की वजह से फसलों की उपज बढ़ने लगी, लेकिन ऐसे हलों का उपयोग उपमहाद्वीप के कुछ ही हिस्से में सीमित था। पंजाब और राजस्थान जैसी अर्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग बीसवीं सदी में शुरू हुआ। जो किसान उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे उन्होंने खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया, जो ऐसे इलाके के लिए कहीं अधिक उपयोगी था। 3. उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था। कृषक समुदायों ने मिलकर सिंचाई के साधन निर्मित किए। व्यक्तिगत तौर पर तालाबों, कुओं और नहरों जैसे सिंचाई साधन निर्मित करने वाले लोग प्रायः राजा या प्रभावशाली लोग थे, जिन्होंने अपने इन कामों का उल्लेख अभिलेखों में भी करवाया। 4. यद्यपि खेती की इन नयी तकनीकों से उपज तो बढ़ी, लेकिन इसके लाभ समान नहीं थे। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि खेती से जुड़े लोगों में उत्तरोत्तर भेद बढ़ता जा रहा था। कहानियों में विशेषकर बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमीदारों के लिए किया जाता था। बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे, जो प्रायः किसानों पर नियंत्रण रखते थे। ग्राम प्रधान का पद प्रायः वंशानुगत होता था। | 5. आरंभिक तमिल संगम साहित्य में भी गाँवों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों; जैसे-बड़े जमींदारों, हलवाहों और दासों का उल्लेख मिलता है। बड़े जमींदारों को ‘वेल्लार’, हलवाहों को ‘उझावर’ तथा दासों को ‘आदिमई’ कहा जाता था। यह संभव है कि वर्गों की इस विभिन्नता का कारण भूमि के स्वामित्व, श्रम और नयी प्रौद्योगिकी के उपयोग पर आधारित हो। ऐसी परिस्थिति में भूमि का स्वामित्व महत्त्वपूर्ण हो गया। जिनकी चर्चा विधि ग्रंथों में प्रायः की जाती थी। मानचित्र कार्य प्रश्न 10. उत्तर: महाजनपदों की सूची-
हाँ, इन क्षेत्रों से अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। उपर्युक्त संकेत के आधार पर स्वयं करें। परियोजना कार्य (कोई एक)। प्रश्न 11. प्रश्न 12. Hope given NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 2 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. NCERT-Solutions.com try to provide online tutoring for you. |