भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

Show

भारत-रूस की दोस्ती ने एक साल में किया कमाल, अमेरिकी सख्ती के बीच तिगुना कारोबार!

अप्रैल में भारत ने रूस से सबसे ज्यादा कच्चे तेल का ही आयात किया. रूस से भारत के कुल आयात में कच्चे तेल का हिस्सा 1.3 बिलियन डॉलर यानी 57 फीसदी रहा. भारत ने रूस से कच्चे तेल के अलावा जिन चीजों का आयात किया, उनमें कोयला (Coal), सोयाबीन तेल (Soyabean Oil), सूरजमुखी तेल (Sunflower Oil), फर्टिलाइजर्स (Fertilisers) और नॉन-इंडस्ट्रियल हीरे (Non-Industrial Diamonds) शामिल रहे.

X

भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

बढ़ गई रूस से भारत की खरीद (Photo: Reuters)

भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2022,
  • (अपडेटेड 22 जून 2022, 4:33 PM IST)

स्टोरी हाइलाइट्स

  • यूक्रेन पर हमले के बाद रूस के खिलाफ प्रतिबंध
  • रूस से क्रूड ऑयल खरीद रहे भारत और चीन

ग्लोबल मार्केट (Global Market) में क्रूड ऑयल (Crude Oil) की बढ़ी कीमतों के बीच भारत रूस से सस्ते में इसका आयात (India's Import From Russia) बढ़ा रहा है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद क्रूड ऑयल की कीमतें (Crude Oil Prices) तेजी से बढ़ी हैं और यह कई महीने से 100 डॉलर प्रति बैरल के पार बना हुआ है. हालांकि अमेरिका व उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंधों (US Sanctions On Russia) के चलते रूस का क्रूड ऑयल सस्ता है. इसका फायदा भारत और चीन जैसे देश उठा रहे हैं. क्रूड ऑयल की बढ़ी इस खरीद के चलते अप्रैल महीने में रूस से भारत का कुल आयात बिल बढ़कर 2.3 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया, जो ठीक एक साल पहले की तुलना में 3.5 गुना है.

इतना बढ़ा रूस से भारत का आयात

कॉमर्स मिनिस्ट्री (Commerce Ministry) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में भारत ने रूस से सबसे ज्यादा कच्चे तेल का ही आयात किया. रूस से भारत के कुल आयात में कच्चे तेल का हिस्सा 1.3 बिलियन डॉलर यानी 57 फीसदी रहा. भारत ने रूस से कच्चे तेल के अलावा जिन चीजों का आयात किया, उनमें कोयला (Coal), सोयाबीन तेल (Soyabean Oil), सूरजमुखी तेल (Sunflower Oil), फर्टिलाइजर्स (Fertilisers) और नॉन-इंडस्ट्रियल हीरे (Non-Industrial Diamonds) शामिल रहे. रूस से भारत की बढ़ी खरीदारी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वह अप्रैल महीने में इराक (Iraq), सऊदी अरब (Saudi Arab) और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बाद क्रूड ऑयल का चौथा सबसे बड़ा सप्लायर बन गया.

सम्बंधित ख़बरें

आधे से भी कम हुआ रूस को भारत का निर्यात

आंकड़ों के अनुसार, कुल आयात की बात करें तो अप्रैल महीने में रूस छठे स्थान पर रहा. ठीक एक साल पहले रूस कच्चे तेल के मामले में 7वां सबसे बड़ा सप्लायर था और टोटल इम्पोर्ट (Total Import) में वह 21वें स्थान पर था. आयात और निर्यात मिलाकर यानी कुल व्यापार के मामले में इस साल अप्रैल के दौरान रूस भारत का 9वां सबसे बड़ा भागीदार रहा. दोनों देशों के बीच अप्रैल महीने में 2.42 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ. इस दौरान रूस को भारत का निर्यात सालाना आधार पर 59 फीसदी गिरकर महज 96 मिलियन डॉलर पर आ गया. भारत ने रूस को लोहा व इस्पात (Iron and Steel), दवाएं (Pharmaceutical Products), समुद्री उत्पाद (Marine Products) और वाहनों के कल-पुर्जों (Auto Components) का निर्यात किया.

भारत ने खुद को रखा है न्यूट्रल

आपको बता दें कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही भारत रूस से ज्यादा क्रूड ऑयल खरीद रहा है. इस हमले के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने रूस को अलग-थलग करने के लिए आर्थिक पाबंदियों का सहारा लिया. इससे क्रूड ऑयल समेत कई कमॉडिटीज की कीमतें ग्लोबल मार्केट में आसमान पर पहुंच गई. हालांकि भारत ने इस पूरे प्रकरण में खुद को न्यूट्रल रखा है और पश्चिमी देशों के प्रेशर के बाद भी इस मसले पर चुप है. आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी रूस के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखने के चलते कई देशों ने भारत की आलोचना की है.

ये भी पढ़ें:

  • 5 हजार रुपये से खड़ा किया 40 हजार करोड़ का साम्राज्य, अब आकाश में टाटा से टक्कर
  • 1-1 लाख रुपये से ज्यादा बोनस दे रही ये कंपनी, स्टाफ इससे भी खुश नहीं

आजतक के नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट और सभी खबरें डाउनलोड करें

  • भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

  • भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

  • रजनीश कुमार
  • बीबीसी संवाददाता

14 सितंबर 2022

भारत ने रूस से क्या आयात किया? - bhaarat ne roos se kya aayaat kiya?

इमेज स्रोत, Getty Images

ईरान और भारत से जुड़ी हम बातें

  • ईरान का मतलब होता है लैंड ऑफ़ आर्यन. भारत का भी एक नाम आर्यावर्त है
  • ईरान शिया इस्लामिक देश है और भारत में भी ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान हैं
  • मध्य-एशिया में भारत की पहुँच के लिए ईरान अहम देश है
  • 2018 में भारत ने ईरान से तेल लेना बंद कर दिया था
  • ईरान चाहता है कि रूस की तरह भारत उसके मामले में भी अमेरिका के दबाव में ना झुके

उज़्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन यानी एससीओ का समिट 15 और 16 सितंबर को होने जा रहा है.

एससीओ का सदस्य भारत भी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समिट में शामिल होने जा रहे हैं. इस समिट में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी भी रहेंगे.

समरकंद में एससीओ की बैठक से अलग से प्रधानमंत्री मोदी और ईरानी राष्ट्रपति रईसी के मिलने की ख़बर है. ईरान एसएसीओ का सदस्य नहीं है, लेकिन वह डायलॉग पार्टनर के तौर पर शामिल होगा. रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ईरान को इस बार एससीओ का सदस्य बना दिया जाएगा.

पिछले साल ही रईसी ईरान के राष्ट्रपति बने थे. समरकंद में पीएम मोदी की रईसी से पहली मुलाक़ात होगी. ईरान की एक कसक रही है कि भारत अमेरिका के दबाव में झुक जाता है और तेल का आयात बंद कर देता है.

2018-19 से ही भारत ने ईरान से तेल ख़रीदना बंद कर दिया था. कहा जा रहा है कि ईरान के राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री से कहेंगे कि रूस की तरह ही वह ईरान से भी तेल ख़रीदने के मामले में झुके नहीं. इसके अलावा दोनों नेताओं के बीच चाबहार पोर्ट, क्षेत्रीय संपर्क और अफ़ग़ानिस्तान पर भी बात हो सकती है.

भारत के जाने-माने ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा कहते हैं, ''ईरान ये बात भारत से कई बार कह चुका है. लेकिन इस मामले में ईरान अपनी तुलना रूस से नहीं कर सकता है. ईरान में भारत की कंपनियों ने कई तेल भंडार खोजे थे और खोजने के बाद भारतीय कंपनियों को बेदख़ल कर दिया गया. भारत का पूरा निवेश बर्बाद हुआ. इसके अलावा ईरान ने चाबहार को लेकर भी ईमानदारी नहीं दिखाई. काम बहुत धीमा रखा और इसमें भी चीन को ज़्यादा तवज्जो दी.''

तनेजा कहते हैं, ''ईरान हमारे लिए अहम देश है. मध्य एशिया पहुँचना है तो ईरान ही ज़रिया है. अफ़ग़ानिस्तान में भी अपने हितों की रक्षा ईरान के ज़रिए ही हो सकती है. इस बार पीएम मोदी और इब्राहिम रईसी मिलेंगे तो कई मुद्दे होंगे जिन पर बात हो सकती है.''

इसी महीने पाँच सितंबर को ईरानी विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दोलाहाईं ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से फ़ोन पर बात की थी. इसी दिन भारत में ईरान के राजदूत ने एस जयशंकर से भी मुलाक़ात की थी.

रूसी तेल पर भी आफ़त

रूस से भारत का तेल आयात लगातार बढ़ रहा है. इसी साल 24 फ़रवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था और उसके बाद से भारत का तेल आयात यहाँ से बढ़ता गया. पश्चिमी देशों ने रूस के ख़िलाफ़ कड़े से कड़े प्रतिबंध लगाए और भारत पर दबाव था कि वह भी रूस के साथ रिश्ते सीमित करे. लेकिन हुआ ठीक उलट. भारत ने अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए रूस से आयात बढ़ा दिया.

दूसरी तरफ़ यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप के देशों ने रूस से तेल और गैस आयात में कटौती करना शुरू कर दिया. ऐसे में रूस को दूसरे ख़रीदार की ज़रूरत थी. चीन और भारत को रूस ने कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय क़ीमतों की तुलना में कम क़ीमत पर तेल ऑफ़र किया.

भारत और चीन ने इसे मौक़े की तरह लिया और रूस से आयात का दायरा बढ़ा दिया. भारत ने पश्चिमी देशों के दबाव को ख़ारिज कर दिया और स्पष्ट कहा कि उसकी प्राथमिकता बढ़ती महंगाई को नियंत्रण में रखना है, इसलिए रूसी डिस्काउंट वाले तेल का आयात बंद नहीं होगा.

अमेरिका की कोशिश है कि रूस की आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह से रोक दे. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, जी-7 के देश रूसी तेल पर प्राइस कैप लगाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि रूस अपना तेल सस्ता न कर सके.

हालांकि कहा जा रहा है कि जी-7 की यह योजना फ़िलहाल बहुत प्रभावी नहीं होगी. जी-7 दुनिया के सबसे धनी देशों का समूह है. इसमें अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली और कनाडा हैं. जी-7 की इस योजना के साथ ईयू भी खड़ा है. जी-7 देश चाहते हैं कि चीन और भारत को रूस से सस्ता तेल ना मिले.

बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, जी-7 के प्राइस कैप की योजना के बीच रूस ने भारत को और सस्ते में तेल देने की बात कही है. भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ''भारत जी-7 के इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा.''

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जी-7 दो प्राइस कैप लगाने की बात कर रहा है. एक कच्चे तेल पर होगा और दूसरा रिफ़ाइंड प्रोडक्ट पर. कच्चे तेल पर प्राइस कैप इसी साल पाँच दिसंबर से लग सकता है और रिफ़ाइंड प्रोडक्ट पर अगले साल पाँच फ़रवरी से लग सकता है.

मुश्किल में भारत

क्या जी-7 के प्राइस कैप से भारत की मुश्किलें और बढ़ने जा रही हैं? इस सवाल के जवाब में नरेंद्र तनेजा कहते हैं, ''सैद्धांतिक तौर पर सोचें तो लगता है कि जी-7 का प्राइस कैप प्रभावी नहीं होगा, लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह भारत के लिए परेशान करने वाला होगा. रूस से भारत में तेल समुद्री जहाज़ से आता है, लेकिन 95 फ़ीसदी से ज़्यादा समुद्री जहाज़ पश्चिम के हैं.

भारत के पास अपने समुद्री जहाज महज़ 92 हैं. प्राइस कैप लगने के बाद जी-7 वाले इन जहाज़ों को रोक देंगे. इसके अलावा किसी भी कारगो में तेल आता है तो उसका इंश्योरेंस होता है. इंश्योरेंस की सारी कंपनियां भी पश्चिम की ही हैं. प्राइस कैप को लागू करने के लिए पश्चिम इन इंश्योरेंस कंपनियों को भी रोक देगा.''

तनेजा कहते हैं, ''जी-7 इन तरीक़ों से रूस के ख़िलाफ़ प्राइस कैप को लागू कर लेगा और यह भारत के लिए परेशान करने वाला होगा. दिसंबर से तेल की क़ीमत में आग लगेगी. भारत का आयात बिल ऐसे ही लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में व्यापार घाटा का दायरा और बढ़ जाएगा. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी दबाव में है.''

आर्थिक मामलों पर लिखने वाले जाने-माने स्तंभकार स्वामीनाथन अय्यर का कहना है कि यूरोप पिछले 50 सालों के सबसे भयावह ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और इसका असर भारत पर भी बहुत बुरा पड़ने वाला है.

स्वामीनाथन अय्यर ने लिखा है, ''भारत का व्यापार घाटा एक महीने में 30 अरब डॉलर तक पहुँच गया है. यह रक़म बहुत बड़ी है. हम बहुत मुश्किल घड़ी में प्रवेश कर रहे हैं. केवल यूरोप ही नहीं बल्कि हम भी संकट में समाते जा रहे हैं. अगर 12-13 महीनों तक यही स्थिति रही तो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ेगा. ऐसे में भारत को संकट से नहीं बचाया जा सकता है.''

रूसी तेल कब तक

मई महीने में भारत को रूस से कच्चा तेल 16 डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिला था. जून में रूस से भारत को 14 डॉलर प्रति बैरल सस्ता तेल मिला. वहीं अगस्त में छह डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिला.,

रूस से बढ़ते भारत के तेल आयात के बीच जून में इराक़ ने भी भारत को डिस्काउंट पर तेल ऑफ़र किया था. रूस जिस क़ीमत पर भारत को तेल दे रहा था, उसने उससे 9 डॉलर प्रति बैरल सस्ता तेल ऑफ़र किया. इसका नतीजा यह हुआ कि रूस भारत में तेल आपूर्ति करने के मामले में तीसरे नंबर पर आ गया. जून में पहले नंबर पर सऊदी अरब, दूसरे नंबर पर इराक़ और रूस तीसरे नंबर पर चला गया था.

ईरान भी इस रेस में भारत के साथ आना चाहता है. ईरान पर अमेरिका ने कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं और वह अपना तेल नहीं बेच पाता है. लेकिन अभी अमेरिका की नज़र रूस के तेल पर है और वह रूसी तेल के निर्यात को बंद करना चाहता है. दूसरी तरफ़ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमत भी लगातार बढ़ रही है. ऐसे में कहा जा रहा है कि अमेरिका ईरान को लेकर थोड़ी उदारता दिखा सकता है.

तनेजा कहते हैं कि अगर अमेरिका ईरान से प्रतिबंध हटा भी लेता है तो ईरानी तेल तत्काल मार्केट में उपलब्ध नहीं होगा. इसके लिए कम से कम दो साल इंतज़ार करना होगा क्योंकि इन्फ़्रास्ट्रक्चर बना बनाया नहीं है.

हिम्मत दिखाए भारत

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से ईरानी अधिकारियों ने कहा है कि ईरान से भारत के तेल ख़रीदने का मामला एक संप्रभु देश के फ़ैसले की तरह है. उन्होंने कहा कि अवैध और एकतरफ़ा प्रतिबंधों से भारत बंधा हुआ नहीं है.

ईरानी अधिकारी ने 2018 में ईरान से भारत के तेल नहीं ख़रीदने के फ़ैसले पर द हिन्दू से कहा, ''भारत और ईरान दुनिया के बाक़ी देशों की तरह हैं जिनके अपने दोस्त और विशेष संबंध हैं. हमें किसी तीसरे पक्ष को पारस्परिक संबंध में दख़ल नहीं देना चाहिए.'' ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और पीएम मोदी चाबहार पोर्ट को लेकर भी बात कर सकते हैं. इसे अंतरराष्ट्रीय उत्तरी-दक्षिणी ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से जोड़ने की बात हो रही है.

2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान गए थे. मोदी के दौरे को चाबहार पोर्ट से जोड़ा गया. भारत के लिए यह पोर्ट चीन और पाकिस्तान की बढ़ती दोस्ती की काट के रूप में देखा जा रहा है.

2019 के नवंबर महीने में ईरान के तत्कालीन विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने भारत की महिला पत्रकारों के एक समूह से कहा था, ''भारत और ईरान के रिश्ते तात्कालिक वैश्विक वजहों या राजनीतिक आर्थिक गठबंधनों से नहीं टूट सकते. भारत ने ईरान के ख़िलाफ़ पाबंदियों को लेकर स्वतंत्र रुख़ अपनाया है, लेकिन हम अपने दोस्तों से उम्मीद करते हैं कि वो झुके नहीं. आप में दबाव को ख़ारिज करने की क्षमता होनी चाहिए क्योंकि अमेरिका डराता-धमकाता रहता है और भारत उसके दबाव में आकर ईरान से तेल नहीं ख़रीदता है. अगर आप मुझसे तेल नहीं ख़रीदेंगे तो हम आपसे चावल नहीं ख़रीदेंगे.''

रूस को ख़िलाफ़ सख़्ती के मामले में अगर अमेरिका ईरान को रियायत देता है तो भारत ईरान की ओर रुख़ कर सकता है.

भारत दुनिया का दूसरा बड़ा तेल आयातक देश है. भारत पहले प्राइस कैप की बात करता रहा है. लेकिन बेहिसाब बढ़ती क़ीमतों के मामले में भारत इसकी बात करता था न कि सस्ते तेल को रोकने के लिए. यूक्रेन पर रूसी हमले से पहले भारत अपनी ज़रूरत का महज़ एक फ़ीसदी तेल रूस से लेता था. रूस ने यूक्रेन पर हमला फ़रवरी महीने में किया था. अप्रैल महीने में भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा बढ़कर आठ फ़ीसदी हो गया और मई में 18 फ़ीसदी हो गया. जुलाई से रूस से भारत के तेल आयात में गिरावट आई, लेकिन यह गिरावट भारत के पूरे तेल आयात में थी.

2018 से पहले ईरान भी भारत में तेल आपूर्ति के मामले में अहम देश था. भारत की कुल तेल ज़रूरतों में ईरान का योगदान क़रीब 13 फ़ीसदी था.

भारत ने रूस से क्या खरीदा है?

भारत रूस से भारी मात्रा में खरीद रहा है तेल भारत दुनिया का तेल खरीदने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है. अमेरिका समेत पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बावजूद भारत रूस से भारी मात्रा में रियायत कीमतों के साथ कच्चे तेल खरीद रहा है.

भारत रूस से क्या चीज आयात करता है?

इंडिया रूस को ज्यादातर मेडिसीन और इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात करता है. इसके अलावा रूस भारत से चाय और कपड़े खरीदता है. जबकि रूस से भारत सबसे ज्यादा पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स खरीदता है. कुल आयात में 50 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का होता है.

क्या भारत रूस से तेल आयात कर सकता है?

US में सवाल पूछे जाने पर हरदीप सिंह पुरी ने दिया ये जवाब अपने अमेरिका दौरे पर गए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत इसे लेकर वैश्विक दबाव में नहीं है और वो अपनी पसंद के किसी भी देश से तेल खरीद सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से तेल आयात को जारी रखने को लेकर भारत पहले भी कई बार अपना रुख स्पष्ट कर चुका है.

भारत रूस का व्यापार कितना है?

आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के कुल व्यापार में रूस की हिस्सेदारी वर्ष 2021-22 के 1.27% से बढ़कर 3.54% हो गई है। जबकि वर्ष 1997-98 में भारत के कुल व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 2.1% थी, यह पिछले 25 वर्षों से 2% से नीचे है।