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कविता के क्षेत्र में गीत और गद्य में
कहानी, मानवीय सभ्यता के आद्य अभिव्यक्ति माध्यम कहे जा सकते हैं। सभ्यता के विकास चरण में कहानी नया अवतार लेकर प्रस्तुत होती है। जैसे- नीति कथा, आख्यायिका और कहानी से लेकर जासूसी कहानी तथा विज्ञान कथा तक क्रमशः परिवेश के फैलने के साथ ही कहानी के स्वरूप में भी परिवर्तन होने लगा प्रेमचंद के अनुसार- "गल्प (कहानी) एक ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही कहानीकार का उद्देश्य होता है।" सुविधा की दृष्टि से हम कहानी की विकास यात्रा को चार वर्गों में बाँट
सकते हैं– हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें। प्रेमचंद पूर्व की कहानी– हिन्दी की सर्वप्रथम कहानी का आविर्भाव काल सन् 1900 के आस-पास है। आर्य समाज के प्रचार प्रसार ने हिन्दी कहानीकारों को प्रभावित किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर की भावात्मकता एवं लोक कहानियों में सिंहासन बत्तीसी तथा 'बैताल पच्चीसी' से कथाकार प्रभावित दिखाई पड़ते हैं। हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। इस सम्बन्ध में किशोरी लाल गोस्वामी की 'इंदुमती' ('सरस्वती' 1900) भगवानदास की 'प्लेग की चुड़ैल' (सरस्वती 1902) रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय' (सरस्वती 1903) एक बङ्ग महिला कृत दुलाई वाली (सरस्वती 1907) आदि उल्लेखनीय हैं। प्रेमचंद काल की कहानी– हिन्दी कहानी का विकास प्रेमचंद काल में हुआ। इसके पूर्व की कहानी अपरिपक्व थी। यह शिल्प की दृष्टि से लोक कथा के अधिक समीप थी। कथानक घटना प्रधान थे। प्रेमचंद काल में इन कमियों को दूर करने के प्रयास किए गए। इस काल में ऐतिहासिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक आदि सभी विषयों पर कहानियाँ लिखीं गई। हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें। प्रेमचंद ने हिन्दी में लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखीं जो मानसरोवर के आठ खण्डों में प्रकाशित हैं। चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' इस युग के प्रमुख कहानीकार हैं। उनकी पहली कहानी 'सुखमय जीवन' 1911 में भारत मित्र पत्रिका में प्रकाशित हुई। 'बुद्ध का कांटा' तथा 'उसने कहा था' सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। 'उसने कहा था' ने कहानी के शिल्प विधान की काया पलट दी। यह कहानी संवेदना तथा यथार्थ का केन्द्र बन गई। इस युग के अगले यशस्वी कहानीकार जयशंकर प्रसाद हैं। इन्होंने हिन्दी को नई गति, शिल्प एवं शक्ति प्रदान की। प्रसाद जी ने लगभग 69 कहानियाँ लिखी जो 'छाया', 'प्रतिध्वनि', 'आकाशदीप', 'आँधी' तथा 'इन्द्रजाल' में प्रकाशित हुई। इस युग के अन्य प्रमुख कहानीकारों में विश्वम्भरनाथ जिज्जा, जी.पी. श्रीवास्तव, राजा राधिका रमण, विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक', ज्वालादत्त शर्मा, सुदर्शन, वृंदावन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद वाजपेयी, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, रायकृष्ण दास, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', वाचस्पति पाठक, विनोदशंकर व्यास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। प्रेमचंदोत्तर कहानी– इस काल में कहानी का चतुर्दिक विकास हुआ उसे नया रूप रंग प्राप्त हुआ। इस पर पड़े पश्चिमी प्रभाव को चार भागों में बाँटा जा सकता है रूसी, फ्रांसीसी, अमरीकी और अंग्रेजी इस युग के प्रमुख कहानीकार हैं- अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी, उपेन्द्रनाथ अश्क, भगवतीचरण वर्मा, रांगेय राघव, अमृतलाल नागर आदि। नई कहानी– 'नई कहानी' शब्द का प्रयोग सबसे पहले दिसम्बर 1957 में सम्पन्न साहित्यकार सम्मेलन में किया गया। सन् 1962 में कहानी के परिसंवाद में कहानी के नएपन पर चर्चा हुई। तभी से यह शब्द प्रचलित हो गया नई कहानी के इस दौर के प्रमुख कहानीकारों में मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कृष्णा सोबती, मन्नू भण्डारी, ऊषा प्रियंवदा, हरिशंकर परसाई, रमेश बक्शो, फणीश्वरनाथ रेणु, शिवानी, मालती जोशी इत्यादि प्रमुख हैं। इसके बाद के कहानीकारों में दूधनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया, ममता कालिया, मैत्रेयी पुष्पा, मृदुला गर्ग, इत्यादि का नाम लिया जाता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। आंचलिक कहानी – अंचल का अर्थ है जनपद जहाँ किसी क्षेत्र विशेष को केन्द्र बनाकर रचना की जाए वहाँ के रहन-सहन रीति-रिवाज, व्यवहार, गुण-दोष, वेश-भूषा, सामाजिक जीवन आदि के विस्तृत वर्णन के साथ स्थानीय बोलियों का प्रभाव हो, उस रचना को आंचलिक कहते हैं। इस धारा के प्रमुख रचनाकार हैं- फणीश्वर नाथ रेणु, रांगेय राघव, शिवप्रसाद सिंह, धर्मवीर भारती शिवप्रसाद मिश्र, शैलेष मटियानी और राजेन्द्र अवस्थी आदि। अकहानी - अकहानी के उद्भव के संबंध में डॉ. रामदरश मिश्र ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'हिन्दी कहानी- अंतरंग पहचान' में महत्वपूर्ण संकेत दिए है। अकहानी को यदि आंदोलन के रूप में न लें तो हम पाएँगे कि यह कहानी संरचना में नई कहानी का सहज विकास है। इसके अनुसार नई कहानी ने सातवें दशक में यही मोड़ लिया था। इस युग के प्रमुख कहानीकार- कृष्ण बलदेव वैद, रमेश बक्षी, गिरिराज किशोर, दूधनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया, श्रीकांत वर्मा और शरद जोशी हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। सचेतन कहानी– सन् 1960 तक आते-आते नई कहानी को सीमाएँ प्रकट होने लगी थी। निरर्थकता और निष्क्रियता ने इस युग की कहानी को घेर लिया था। इसके प्रमुख कहानीकार - धर्मेन्द्र गुप्त, जगदीश चतुर्वेदी, मधुकर सिंह, मनहर चौहान, महीप सिंह, योगेश गुप्त, वेद राही, श्याम परमार तथा हिमांशु जोशीहैं। समानान्तर कहानी - 1970 के आस-पास नई कहानी कुण्ठित हो चुकी थी। शिल्प का उलझाव और अप्रामाणिक जमीन, दोनों ने कहानी को आम आदमी से अलग कर दिया था। इसी समय समानान्तर कहानी का जन्म हुआ जो आम आदमी की जीवन स्थितियों को शिल्पगत चमत्कार के भँवर से मुक्त कर सकी। यह कहानी राजनैतिक लड़ाइयों को सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य भी देती है, और सांस्कृतिक संघर्ष को राजनैतिक दृष्टि भी समानान्तर कहानी आंदोलन के प्रमुख कहानीकार हैं- हरिशंकर परसाई कमलेश्वर, भीष्म साहनी, शरद जोशी आदि। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। कहानी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं–1. कथानक अथवा कथावस्तु प्रमुख कहानीकार एवं उनकी कहानियाँ–शिवप्रसाद सितारे-हिन्द – राजा भोज का सपना। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। आशा है, यह जानकारी विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण एवं उपयोगी होगी। धन्यवादRF Temre infosrf.com I hope the above information will be useful and important. Watch video for
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Watch related information below कहानी का विकास कैसे होता है?हिंदी साहित्य की प्रमुख कथात्मक विधा है। आधुनिक हिंदी कहानी का आरंभ २० वीं सदी में हुआ। पिछले एक सदी में हिंदी कहानी ने आदर्शवाद, आदर्शवाद, यथार्थवाद, प्रगतिवाद, मनोविश्लेषणवाद, आँचलिकता, आदि के दौर से गुजरते हुए सुदीर्घ यात्रा में अनेक उपलब्धियां हासिल की है।
कहानी का विकास कब से माना जाता है?हिंदी कहानी के उद्भव की विकास यात्रा का प्रारम्भ 1900 ई. के आसपास माना जाता है, क्योंकि इससे पूर्व हिंदी में कहानी जैसी किसी विधा का सूत्रपात नहीं हुआ था। हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर आलोचकों में विवादा है।
कहानियों का हमारे जीवन में क्या महत्व है?दुनिया भर की संस्कृतियों ने हमेशा से ही विश्वास, परंपराओं और इतिहास को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कथाओं / कहानियों का उपयोग किया है। कहानियां कल्पनाशीलता को बढ़ाती हैं , कहानी कहने और सुनने वाले के बीच समझ स्थापित करने के लिए सेतु का काम करती है और बहुसांस्कृतिक समाज में श्रोताओं के लिए समान आधार तैयार करती है।
हिंदी कहानी का उद्भव और विकास कैसे हुआ?वैसे हिन्दी कहानी का प्रारम्भ सन् 1900 में प्रकाशित होने वाली उस 'सरस्वती' पत्रिका से हुआ जिससे पंडित किशोरी लाल गोस्वामी को 'इन्दुमती' (1900ई0) को प्रकाशन हुआ था। हिन्दी कहानी के इस विकास पर गहरी दृष्टि डालने के लिए हमें हिन्दी कहानी के महान कहानी कार प्रेमचन्द को केन्द्र में रखकर चर्चा करनी होगी।
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