पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 drishti ias - paryaavaran sanrakshan adhiniyam, 1986 drishti ias

  • 05 Jul 2022
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प्रिलिम्स  के लिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, पर्यावरण संरक्षण कोष, मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, स्टॉकहोम सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, EPA की विशेषताएँ, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की कमियाँ।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन का प्रस्ताव रखा।

  • हालाँकि हाल ही में जो प्रावधान लागू हुए हैं वे पहले से लागू पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधान एकल उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध के दंडात्मक प्रावधानों के लिये लागू होंगे हैं।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित प्रमुख संशोधन क्या हैं?

  • मंत्रालय ने साधारण उल्लंघनों के लिये कारावास के भय को दूर करने हेतु EPA, 1986 के मौजूदा प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रस्ताव किया गया है।
    • इसमें "कम गंभीर" उल्लंघनों के लिये दंड के रूप में कारावास कि सज़ा को हटाना शामिल है।
      • हालाँकि EPA के गंभीर उल्लंघन जो गंभीर क्षति या जीवन की हानि का कारण बनते हैं, को भारतीय दंड संहिता के प्रावधान के तहत कवर किया जाएगा।
  • EPA के प्रावधानों की विफलता, उल्लंघन या गैर-अनुपालन जैसी रिपोर्ट, जानकारी प्रस्तुत करना आदि से अब विधिवत अधिकृत न्यायनिर्णयन अधिकारी के माध्यम से मौद्रिक दंड लगाकर निपटा जाएगा।
  • कारावास के बजाय इस संशोधन में एक पर्यावरण संरक्षण कोष के निर्माण का प्रस्ताव भी किया गया है जिसमें पर्यावरण को हुए नुकसान का न्यायनिर्णयन के बाद अधिकारी द्वारा लगाए गए दंड की राशि को माफ कर दिया जाएगा।
    • केंद्र सरकार उस तरीके को निर्धारित कर सकती है जिसमें संरक्षण निधि को प्रशासित किया जाएगा।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:

  • परिचय:
    • EPA, 1986 पर्यावरण सुरक्षा की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के अध्ययन, योजना तथा कार्यान्वयन हेतु ढाँचा स्थापित करता है और पर्यावरण को खतरे में डालने वाली स्थितियों के लिये त्वरित और पर्याप्त प्रतिक्रिया की प्रणाली निर्धारित करता है।'
  • पृष्ठभूमि:
    • EPA का अधिनियमन जून, 1972 (स्टॉकहोम सम्मेलन) में स्टॉकहोम में आयोजित "मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन" को देश में प्रभावी बनाने हेतु किया गया। ज्ञातव्य है कि भारत ने मानव पर्यावरण में सुधार के लिये उचित कदम उठाने हेतु इस सम्मेलन में भाग लिया था।
    • अधिनियम स्टॉकहोम सम्मेलन में लिये गए निर्णयों को लागू करता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • EPA को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत अधिनियमित किया गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी करने के लिये कानून बनाने का प्रावधान करता है।
    • संविधान का अनुच्छेद 48A निर्दिष्ट करता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद 51A में प्रावधान है कि प्रत्येक नागरिक पर्यावरण की रक्षा करेगा।
  • केंद्र सरकार की शक्तियांँ:
    • EPA केंद्र सरकार को अपने सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों के लिये विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने हेतु अधिकृत अधिकारियों को अधिकार देता है।
    • EPA सरकार को निम्नलिखित अधिकार भी देता है:
      • पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना।
      • विभिन्न स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन जैसे विभिन्न पहलुओं में पर्यावरण की गुणवत्ता के लिये मानक निर्धारित करना।
    • अधिनियम के अनुसार केंद्र सरकार को निम्नलिखित के मामले में निर्देश देने की शक्ति प्राप्त है:
      • किसी उद्योग के संचालन या प्रक्रिया को बंद करना, निषेध या विनियमन।
      • विद्युत या जल या किसी अन्य सेवा की आपूर्ति में ठहराव या विनियमन।

EPA के तहत अपराधों और दंड की वर्तमान स्थिति:

  • अधिनियम के किसी भी प्रावधान का गैर-अनुपालन या उल्लंघन एक अपराध माना जाता है।
  • अपराधों का संज्ञान:
    • कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा बशर्ते शिकायत निंमलिखित में से किसी के द्वारा न की गई हो:
      • केंद्र सरकार या उसकी ओर से कोई प्राधिकरण।
      • एक ऐसा व्यक्ति, जो केंद्र सरकार या उसके प्रतिनिधि प्राधिकरण को 60 दिनों का नोटिस सौंपने के पश्चात् न्यायालय के पास आया हो।
  • दंड:
    • EPA के मौजूदा प्रावधानों या इस अधिनियम के नियमों के किसी भी गैर-अनुपालन या उल्लंघन के मामले में उल्लंघनकर्त्ता को 5 वर्ष तक की कैद या 1,00,000 रुपए तक के ज़ुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है। .
      • इस तरह के उल्लंघन को जारी रखने के मामले में प्रतिदिन के लिये 5,000 रुपए तक का अतिरिक्त ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जिसके दौरान इस तरह का उल्लंघन जारी रहता है तो इस तरह के पहले उल्लंघन के लिये दोषी ठहराया जा सकता है।
      • यदि उल्लंघन दोष सिद्ध होने की तिथि के बाद एक वर्ष की अवधि के बाद भी जारी रहता है, तो अपराधी को कारावास कि सज़ा से दंडित किया जा सकता है, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

अधिनियम की कमियाँ:

  • अधिनियम का पूर्ण केंद्रीकरण:
    • अधिनियम का एक संभावित दोष इसका केंद्रीकरण हो सकता है।
      • जहाँ केंद्र को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं वहीँ राज्य सरकारों के पास कोई शक्ति नहीं होती है। ऐसे में केंद्र सरकार इसकी मनमानी एवं दुरुपयोग के लिये उत्तरदायी है।
  • कोई सार्वजनिक भागीदारी नहीं:
    • अधिनियम में पर्यावरण संरक्षण के संबंध में सार्वजनिक भागीदारी के बारे में भी कोई बात नही कही गई है।
    • जबकि मनमानी को रोकने और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिकों को पर्यावरण संरक्षण में शामिल करने की आवश्यकता है।
  • सभी प्रदूषकों को शामिल न किया जाना:
    • यह अधिनियम प्रदूषण की आधुनिक अवधारणा जैसे- शोर, अधिक बोझ वाली परिवहन प्रणाली और विकिरण तरंगों को प्रदूषकों की सूची में शामिल नहीं करता है, जो पर्यावरण प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण कारक हैं।

पर्यावरण की रक्षा के लिये अन्य पहल:

  • भारत:
    • राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम
    • ग्रीन इंडिया मिशन
    • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
    • राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम
    • नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम
  • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जिनका भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता ै:
    • ओज़ोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर वियना कन्वेंशन के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 1987
    • खतरनाक अपशिष्टों के सीमा पार संचलन पर बेसल कन्वेंशन, 1989
    • रॉटरडैम कन्वेंशन, 1998
    • स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POP) पर स्टॉकहोम कन्वेंशन
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), 1992
    • जैवविविधता पर कन्वेंशन, 1992
    • संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि

  1. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  2. वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (b)

  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत जारी की गई थी।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन भारत की पर्यावरणीय निर्णय लेने की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसमें प्रस्तावित परियोजनाओं के संभावित प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
    • EIA के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारकों में से एक किसी भी विकासात्मक परियोजना पर सार्वजनिक सुनवाई और सार्वजनिक भागीदारी की प्रक्रिया है।
    • हालाँकि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 में कहीं भी पर्यावरण संरक्षण के लिये सार्वजनिक भागीदारी का उल्लेख नहीं है। यह पर्यावरण की रक्षा के लिये केवल सरकारी अधिकारियों और प्रदूषकों से संबंधित है।
    • अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • EPA 1986 केंद्र सरकार को सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों में विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिये प्राधिकरण स्थापित करने हेतु अधिकृत करता है।
    • EPA, 1986 की धारा 3, केंद्र सरकार को ऐसे स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन के संबंध मे मानकों को निर्धारित करने का अधिकार देती है।
    • अत: कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम कब लागू किया गया था?

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारत की संसद द्वारा 1986 में पारित किया गया था। इसे संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत पारित किया गया था। यह 19 नवंबर 1986 को लागू हुआ था

पर्यावरण संरक्षण का क्या अर्थ है?

पर्यावरण शब्द का अर्थ है हमारे चारों ओर का वातावरण है। पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें क्योंकि पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं।

पर्यावरण संरक्षण दिवस कब मनाया जाता है?

वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन किया गया था। इसी चर्चा के दौरान विश्व पर्यावरण दिवस का सुझाव भी दिया गया और इसके दो साल बाद, 5 जून 1973 से इसे मनाना भी शुरू कर दिया गया।

पर्यावरण संरक्षण का क्या महत्व है?

पर्यावरण का महत्त्व (Importance of environment ) प्रदूषण के कारण पूरी पृथ्वी प्रदूषित हो रही है जिसके कारण भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है । इसलिए पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है, नहीं तो मंगल ग्रह जैसे आदि ग्रहों की तरह ही धरती का भी जीवन – चक्र खतम हो जायेगा ।