इसे सुनेंरोकेंप्रतिवर्ती क्रिया के लिए मस्तिष्क के किसी प्रक्रम की आवश्यकता नहीं होती इसलिए सोचने-समझने में समय नहीं लगता। 2. प्राणी बिना सोचे-समझे इन की सहायता से शरीर की रक्षा करता रहता है। यह खतरों से हमें सुरक्षित रखती है। Show प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं?प्रतिवर्ती क्रिया in english प्रतिवर्ती क्रिया के प्रकार प्रतिवर्ती क्रिया का चित्र प्रतिवर्ती क्रिया के उदाहरण प्रतिवर्ती प्रक्रिया क्या है प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण केंद्र प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है अंगो से प्राप्त संवेदनाओ को संवेदी न्यूरोन मेरुरज्जु तक पहुँचाते है , ये संवेदनाएँ मेरुरज्जु के धूसर द्रव में पहुंचती है , जहाँ उचित निर्णय लेकर उचित आदेश धूसर द्रव में उपस्थित संयोजी न्यूरॉन को दिए जाते है , संवेदी न्यूरॉन मेरुरज्जु से प्राप्त प्रेरणाओं को प्रेरक न्यूरॉन को देते है जो कार्यकारी अंग या पेशी तक पहुंचाते है जिससे उचित अनुक्रिया हो जाती है। तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉनपरिचय : न्यूरॉन तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है , न्यूरॉन की कोशिकाएँ आवेगों का संचरण करने के लिए विशिष्ट होती है , इनका उद्भव भ्रूणीय एक्टोडर्म द्वारा होता है , प्रत्येक न्यूरॉन के निम्न भाग होते है – 1. कोशिका काय (cyton) : यह न्यूरॉन का गोल फैला हुआ भाग है , इसमें सभी कोशिकांग पाये जाते है , इसमें विशिष्ट कण निस्सल के कण उपस्थित होते है , कोशिका काय में उपस्थित द्रव को न्यूरोप्लाज्मा कहते है। न्यूरोप्लाज्मा में आवेगों के संचरण के लिए महीन तंत्रिका तंतुक पाये जाते है। तंत्रिका आवेगों का संचरणबाहरी उद्दीपनो से तंत्रिका कोशिकाओ का उत्तेजन तंत्रिका आवेग कहलाता है , इनका संचरण विद्युत रासायनिक तरंगो के रूप में होता है। तंत्रिका तन्तु को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम शक्ति को दैहलीज उद्दीपन कहते है। विश्रांति काल में तंत्रिका कला के बाहर सोडियम आयनों की अधिकता के कारण धनावेश होता है जबकि भीतर कार्बोनेट आयनों की अधिकता के कारण ऋणावेश होता है। पोटेशियम आयन वाहक का कार्य करते है , विश्रांति काल में विश्रान्ति कला विभव -70mv होता है। उद्दीपन की अवस्था में सोडियम आयन भीतर व पोटेशियम आयन बाहर निकलते है। साम्यावस्था में लाने के लिए तीन सोडियम आयन अन्दर व दो पोटेशियम आयन बाहर पम्प किये जाते है। जिससे बाहर ऋणावेश व भीतर धनावेश हो जाता है इसे विध्रुवित अवस्था कहते है तथा उत्पन्न सक्रीय विभव +30mv हो जाता है। यह क्रिया आगे की ओर संचरित होती रहती है तथा पुन: सामान्य ध्रुवित अवस्था होती रहती है , यह संचरण दर 45 मीटर / सेकंड से होती है। मायलिन आच्छाद में संचरण तीव्र होती है , इसे साल्टेटोरियल आवेग संचरण कहते है। अंतग्रथनी संचरण (synaptic transmission)एक तंत्रिका कोशिका का एक्सोन दूसरे तंत्रिका कोशिका डेन्ड्रोन के मध्य संयोजन को सिनैप्स कहते है। सिनैप्स के आवेग के संचरण को अन्तर: ग्रन्थि संचरण कहते है। एक्सोन का अन्तिम सिरा घुण्डी के समान होता है जिसमे वेसिकल व माइटोकॉन्ड्रिया होते है , जब आवेग विभव सिनैप्स पर पहुंचते है तो सिनौप्टिक वेसिकल विदर में कटकर एसिटोकोलीन का स्त्राव करते है जो आवेगों में डेन्ड्रोन में डेन्ड्रोन संचरित करता है , जब आवेग गुजर जाते है तो एसिटोकोलीन एस्टरेन एंजाइम का स्त्राव करते है जो एसिटोकोलीन का विघटन कर देता है। एसीटोकोलीन व स्पिथीन व ब्यूरोटाएनमिटसि कहते है। Solution : प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्वायत्त प्रेरक के प्रत्युत्तर हैं। ये क्रियाएँ मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती हैं। इसलिए ये अनैच्छिक क्रियाएँ हैं। यह बहुत स्पष्ट और यांत्रिक प्रकार की है। जैसे -जब हमारी आँखों पर तेज रोशनी पड़ती है तो हमारी आँख की पुतली अचानक छोटी होने लगती है। यह क्रिया तुरंत और हमारे मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती है। प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित पेशियों द्वारा अनैच्छिक क्रियाएँ होती हैं जो प्रेरक के प्रत्युत्तर में होती हैं। यदि शरीर के किसी भाग में अचानक एक पिन चुभोया जाए तो संवेदियों द्वारा प्राप्त यह उद्दीपक इस संवेदी संतु क्षेत्र के एफैरेंट तंत्रिका तन्तु को उद्दीपित करता है। तंत्रिका तंतु मेरु तंत्रिका के पुष्ठीय पथ द्वारा इस उद्दीपक को मेरुरज्जु तक ले जाता है। मेरुरज्जु से यह उद्दीपन के अधरीय पथ द्वारा एक या अधिक इफैरेंट (Efferent) तंत्रिका तंतु में पहुंचता है। इफैरेंट तंत्रिका तंतु प्रभावी अंगों को उद्दीपित करता है। पिन चुभोने के तुरंत बाद इसी कारण प्राणी प्रभावी भाग हटा लेता है। उद्दीपक का संवेदी अंग से प्रभावी अंग तक का पथ प्रतिवर्ती चाप कहलाता है। प्रतिवर्ती चाप तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई बनाती है। प्रतिवर्ती चाप में होता है (i) संवेदी अंग—वह अंग या स्थान जो प्रेरक को प्राप्त करता है। (ii) एफैरेंट तंत्रिका तन्तु (Afferent Nerve Fibre) यह संवेदक प्रेरणा को संवेदी अंग से केंद्रीय तंत्र तक ले जाता है, जैसे मस्तिष्क या मेरुरज्जु। (iii) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र-मस्तिष्क या मेरुरज्जु का कुछ भाग। (iv) इफैरेंट अथवा मोटर तंत्रिका (Efferent or Motor Nerve)—यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मोटर प्रेरणाओं को प्रभावी अंगों तक लाता है, जैसे पेशियाँ अथवा ग्रंथियाँ। (v) प्रभावी अंग (Effector) यह तंत्रिका विहीन भाग जैसे ग्रंथियों की पेशियाँ जहाँ मोटर प्रेरणा खत्म होती है और प्रत्युत्तर दिया जाता है। कार्य-प्रतिवर्ती क्रिया प्रेरक को तुरंत प्रत्युत्तर देने में सहायता करती है और मस्तिष्क को भी अधिक कार्य से मुक्त करती है। प्रतिवर्ती क्रिया का क्या महत्व है?प्रतिवर्ती क्रिया के लिए मस्तिष्क के किसी प्रक्रम की आवश्यकता नहीं होती इसलिए सोचने-समझने में समय नहीं लगता। 2. प्राणी बिना सोचे-समझे इन की सहायता से शरीर की रक्षा करता रहता है। यह खतरों से हमें सुरक्षित रखती है।
प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ?`?Solution : संवेदी अंगों द्वारा ग्रहण किये गये उद्दीपनों को संवेदी तन्त्रिकाओं द्वारा मेरुरज्जु (Spinal cord) तक लेकर जाना एवं तुरन्त ही उसका प्रत्युत्तर चालक तन्त्रिकाओं द्वारा पेशियों, ऊतकों या अंगों में लाकर उसको उत्तेजित करने की क्रिया को प्रतिवर्ती किया (Reflex action) कहते हैं।
प्रतिवर्ती क्रिया क्या है उदाहरण दें?प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की भूमिका-
गहरी श्वास द्वारा CO2 की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालना उबासी लेना (yawning) कह जाता है कहलाता है। प्रतिवर्ती क्रियाओं का उदाहरण: रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से थकान महसूस होती है।
प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं कितने प्रकार की होती है?Solution : प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्वायत्त प्रेरक के प्रत्युत्तर हैं। ये क्रियाएँ मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती हैं। इसलिए ये अनैच्छिक क्रियाएँ हैं। यह बहुत स्पष्ट और यांत्रिक प्रकार की है।
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