आषाढ़ का एक दिन नाटक के नाटककार का नाम क्या है? - aashaadh ka ek din naatak ke naatakakaar ka naam kya hai?

आषाढ़ का एक दिन के लेखक/नाटककार/रचयिता

आषाढ़ का एक दिन (Aashaadh Ka Ek Din) के लेखक/नाटककार/रचयिता (Lekhak/Natakkar/Rachayitha) "मोहन राकेश" (Mohan Rakesh) हैं।

Aashaadh Ka Ek Din (Lekhak/Natakkar/Rachayitha)

नीचे दी गई तालिका में आषाढ़ का एक दिन के लेखक/नाटककार/रचयिता को लेखक/नाटककार तथा नाटक के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। आषाढ़ का एक दिन के लेखक/नाटककार/रचयिता की सूची निम्न है:-

रचना/नाटकलेखक/नाटककार/रचयिता
आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश
Aashaadh Ka Ek Din Mohan Rakesh

आषाढ़ का एक दिन किस विधा की रचना है?

आषाढ़ का एक दिन (Aashaadh Ka Ek Din) की विधा का प्रकार "नाटक" (Natak) है।

आशा है कि आप "आषाढ़ का एक दिन नामक नाटक के लेखक/नाटककार/रचयिता कौन?" के उत्तर से संतुष्ट हैं। यदि आपको आषाढ़ का एक दिन के लेखक/नाटककार/रचयिता के बारे में में कोई गलती मिली हो त उसे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं।

 आषाढ़ का एक दिन : शीर्षक की प्रासंगिकता, मल्लिका की त्रासदी / केन्द्रीय चरित्र एवं भाषा

आषाढ़ का एक दिन नाटक के नाटककार का नाम क्या है? - aashaadh ka ek din naatak ke naatakakaar ka naam kya hai?

मेधदूत शरू हीं होता है आषाढ़स्य प्रथमें दिवसे से। इस नाटक का शीर्षक आषाढस्य प्रथमें दिवसे का हीं अनुवाद है। आषाढ़ का प्रथम दिन नाम न रख कर आषाढ़ का एक दिन नाम रखना नाटक को भिन्न, मौलिक और यर्थाथपरक बनाता है। इस नाम में प्रथम दिन की जगह एक दिन इसलिए भी रखा गया है कि मल्लिका प्रथम अंक में आषाढ़ के पहले दिन की बारिश में तो भिंगती है लेकिन अंतिम अंक के अंत में जब वह कालिदास को पुकारती हुयी घर से बाहर निकलती है तो उस दिन भी आषाढ़ की हीं बारिश हो रही है। लेकिन वह पहले दिन की बारिश नहीं। यदि दोनों बारिशों को रचनाकार आषाढ़ के पहले हीं दिन की बारिश निरूपित करता तो इसमें संयोग की भूमिका बढ़ जाती और नाटक का यर्थाथ पक्ष कमजोर पड़ता। दूसरी बात यह कि वह अंतिम बारिश किसी और दिन की बारिश है इसलिए आषाढ़ का एक दिन शीर्षक बहुत सार्थक है। यह शीर्षक इस नाटक में कालिदास का एहसास हर क्षण करता रहता है। मेधदूत प्रकृति और प्रेम का काव्य है। कालिदास भी प्रकृति और प्रेम के हीं कवि हैं। इस नाटक में भी कालिदास का ग्राम प्रांतर पर्वत प्रदेश ही है। पर्वत प्रदेश से मेधों का जितना गहरा संबंध है उतना ही गहरा सम्बंध आषाढ़ से भी है। इसलिए स्वाभाविक है कि नाटककार इस नाटक में कालिदास और मल्लिका के मनोभावों को मेधगर्जन, बिजली और वर्षा के दृश्य श्रव्य बिम्ब से व्यंजित करते हैं। इस नाटक के पहले अंक में मल्लिका आषाढ़ के पहले हीं दिन की धारादार वर्षा में भींग कर आती है और सुख का अनुभव करती है। वह बिल्कुल भावनामय है कल्पना और आदर्श के पंखों पर सवार है। जीवन की आवश्यकताओं को वह अहमियत नहीं देती है। लेकिन अंतिम अंक के अंत में वह धर से निकल कर जा रहे कालिदास को पुकारते हुए आगे बढ़ती है लेकिन अपनी बाहों में भिगती बच्ची को देख वापस आ जाती है। कालिदास उसकी भावना है और बच्ची है कर्त्तव्य। मल्लिका इस दूसरी बारिश में भीगकर बहुत दुखी है। बादलों का गरजना और बिजली का चमकना तेज हो गया है। वह फूट-फूट कर रोने लगती है। यहाँ आषाढ़  की मेघों और चमकती बिजलियों के परिप्रेक्ष्य में ही मल्लिका का दुःख घनीभूत हो गया है। आषाढ़ की दो बारिशों के अन्तर के द्वारा हीं नाटककार ने मल्लिका के जीवन के परिवर्तन एवं विडम्बनाओं को प्रत्यक्ष किया है। इसलिए भी यह शीर्षक बिल्कुल सार्थक है। आषाढ़ के मेघों के लिए भी नाटक में अनेक प्रतीकार्थ है। ये मेध कालिदास के मन की चंचलता, अस्थिरता तथा कालिदास की कामाशक्ति को व्यंजित करती है।

 भाषा

    ‘आषाढ़ का एक दिन’ की भाषा तत्सम बहुल है। इसकी तत्सम बहुलता कालिदास कालिन प्राचीन भारत का ऐतिहासकि परिवेश उपस्थित करती है। यह भाषा पात्रों के चरित्रों के तह पर तह खोलने में बिल्कुल समर्थ है। भाषा ही द्वन्द्व और तनाव को मुखर बनाती है। यह विडम्बना सर्जक है। प्रियंगुमंजरी कहती है ‘राजनीति साहित्य नहीं है। कालिदास का कहना है कि ‘एक राज्याधिकारी का कार्य क्षेत्र मेरे कार्य क्षेत्र से भिन्न था।’ इन दोनों संवादों से कालिदास और प्रियंगुमंजरी के वैवाहिक जीवन की विडम्बनाएँ प्रत्यक्ष हो जाती हैं।

    छोटे संकेतिक व्यंजनाओं से भरे चूभते हुए संवाद नाटक में व्यापक असर छोड़ते है। वे क्रिया व्यापार को गतिशील करने के भी सहायक हैं। संवादों से ही नाटक के चरित्रों की चारित्रिक बिडम्बनाएँ भी प्रत्यक्ष होती है। दूसरे अंक में मल्लिका निक्षेप से राज कर्मचारियों के सबन्ध में कहती है, ‘‘ जानते हैं, माँ इस सम्बन्ध में क्या कहती हैं? कहती है कि जब भी ये आकृतियाँ दिखाई देती हें, कोई न कोई अनिष्ट होता है। कभी युद्ध कभी महामारी!.... परन्तु पिछली बार तो ऐसा नही हुआ।’’ निक्षेप का उत्तर है नहीं हुआ? यहाँ इस संवाद नहीं हुआ से मल्लिका के जीवन में दो हो चुकें अनिष्ट व्यंजित होने लगता है। तीसरे अंक में कालिदास का संवाद ‘‘ मैने कहा था मैं अथ से आरम्भ करना चाहता हूँ। यह सम्भवतः इच्छा का समय के साथ द्वन्द्व था। परन्तु देख रहा हूँ कि समय अधिक शक्तिशाली हैं। यह परन्तु एवं इसके बाद का मौन कालिदास की काल प्रेरित नियति मूलक लाचारी को व्यक्त करता है। तीसरे अंक में भी मल्लिका के 49 पंक्तियों के लम्बे एकालाप को कालिदास का संजीव प्रतीक बना कर मोहन राकेश ने बड़ी चतुराई से इस एकालाप को संलाप में बदल दिया है। उन्होंने इस एकालाप को नौ स्थानों पर विभक्त कर इसकी एकरूपता और लम्बाई को तो तोड़ा हीं है साथ ही अभिनेत्री के सामने वैविध्य पूर्ण अभिनय की चुनौति भी पेश कर दी है। इसके बाद कालिदास का 81 पंक्तियों का संलाप है। कालिदास मल्लिका से संबोधित होकर भी इस संलाप में अपने आप से बातचीत करता हुुआ लगता है। यहाँ मोहन राकेश ने संलाप को एकालाप में बदल दिया है। इस संलाप को भी सात स्थानों पर विभक्त कर भाव भंगिओं में परिवर्तन के द्वारा कालिदास में आए परिवर्तन को प्रत्यक्ष कर दिया है। इस संवाद योजना से अभिन्यात्मकता अधिक सहज हो गयी है।

    भाषा की तत्समता कालिदास कालिन प्राचीन भारतीय परिवेश और तत्कालिन यथार्थ को व्यंजित करने में सक्षम है। रचनाकार ने कठिन तत्सम शब्दो को पात्रों कि भाव भंगिमाओं, आंगिक चेष्टाओं एवं संकेतो से व्यक्त करने की गुंजाईस छोड़कर इनके अर्थ को सामान्य शिक्षित या अशिक्षित दर्शकों के लिए भी सहज सम्प्रेष्य बना दिया है। इस नाटक की भाषा कम बोलकर के भी अधिक कहती है। इसमें रंग-गतिविधियों के लिए बहुत संभावनाएँ है। निक्षेप कालिदास के बारे में कहता है ‘‘ मुझे विश्वास है कि उन्हें राजकीय सम्मान का मोह नहीं है।’’ अम्बिका कहती है ‘‘नहीं चाहता!..... हूँ!’’ इस नाटक के  दूसरे संस्करण में राकेश ने हूँ! के जगह हँ:  कर दिया है। यह मोहन राकेश की विकासशील रंग दृष्टि का परिचायक है। हूँ! में एक खास ढंग की निश्चयात्मकता होती है जबकि हँ:  में उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार और शंका भाव समहित होता है। हँ:  बोलने में गर्दन एक झटके के साथ दाहिने हाथ की और मुड़ती है। इस नाटकी भाषा चरित्रों के विडम्बनाओं को मुखर बनाने के साथ साथ प्रतीक धर्मी और बिम्बधर्मी भी है। कालिदास सर्जानात्मकता का प्रतीक है, मल्लिका इसी की विस्तारित आस्था है। विलोम दुराग्रह की शक्तियों का प्रतीक है। यदि ग्रंथ और मेध कालिदास को प्रतीकित करते है, तो ग्रामप्रांतर और भूमि मल्लिका के स्त्रीत्व के प्रतीक है। नाटक बिम्बों से भी पटा हुआ है। धायल हरिण शावक कालिदास की व्यथा के बिम्ब को उभारता है। घोड़ों की टापें राजपुरूषों  की क्रूरता और मेध मन मी चंचलता बिम्बित करते है।

 त्रासदी / केन्द्रीय चरित्र

    यह नाटक मल्लिका की त्रासदी का भी नाटक है। मल्लिका ही इस नाटक की केन्द्रीय चरित्र है। मल्लिका तीनों अंकों में उपस्थित है जबकि कालिदास दूसरे अंक में अनुपस्थित ही बना रहता है। नाटक में कालिदास के 63 संवादों के मुकाबले मल्लिका के 190 संवाद नाटक में उसकी केन्द्रीयता प्रमाणित करते हैं। मल्लिका कालिदास से (प्रतिदान शुण्य प्रेम मनु) बिना किसी व्यक्तिगत आकांक्षा के जुड़ती है। उसका प्रेम निश्चल और निर्व्याज है। वह कालिदास को महाकवि के रूप में देखना चाहती है और उसके निर्माण में ही अपना उत्सर्ग दे डालती है। मल्लिका जिस तरह अपने जीवन को लेकर कालिदास के संमक्ष कोई प्रस्ताव नहीं रखती उसे देखते हुए लगता है कि मल्लिका को कवि कालिदास से प्रेम है उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व से नहीं। वह कालिदास से कभी अपेक्षा नहीं करती कि कालिदास उसके प्रेम को एक सामाजिक नैतिक जिम्मेदारी माने। कालिदास को बनाने में ही उसका टूट जाना और फिर भी शिकायत का भाव न लाना उसके चरित्र को उपर उठाता है। अभाव मल्लिका के समर्पण में बाधा नही बनती है। कालिदास के लिए अपने मन को आरक्षित रखकर भी वह अपनी शारीरिक पवित्रता सुरक्षित नहीं रख पाती। मन कालिदास के लिए है तो तन विलोम या उसी तरह के किसी अन्य व्यक्ति के लिए। तन और मन के स्तर पर बटी हुयी मल्लिका भी एक विभाजित व्यक्तित्व है। नाटक का अंत भी मल्लिका के भावना और कर्त्तव्य में विभाजन को संकेतित करता है। कालिदास उसकी भावना है और गोद की पुत्री है उसका कर्त्तव्य। वह भले हीं गोद की भिंगती हुयी पुत्री को देखकर घर वापस आ जाती है लेकिन वह भावना जो कालिदास के रूप में घर के बाहर निकल गयी है क्या उसे भूल जाना आसान है?

कालिदास का व्यक्तित्व अस्थिर और अर्न्तद्वन्द्व ग्रस्त हैं वह जिम्मेदारियों से भागने वाला चरित्र हैं वह प्रेमिका के प्रति अपने नैतिक कर्त्तव्य के निर्वाह तथा काश्मीर के शासक के रूप में अपनी राजनैतिक जिम्मेदारी के प्रति अत्यन्त निष्ठा नहीं रखता। वह कश्मीर में विद्रोह भड़क जाने पर अपनी राजनैतिक जिम्मेवारी से उसी तरह भागता है जिस तरह मल्लिका से। मल्लिका भी उसकी एक भावनात्मक जिम्मेदारी है। कालिदास दो मूल्यों और दो आकर्षणों को लेकर विभाजित है उसके भीतर प्रेमी और शासक का द्वन्द्व बहुत तीव्र है। वह मल्लिका से कहता है, ’’मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसे तुम पहले पहचानती रही हो दूसरा व्यक्ति हूँ और सच कहुँ तो वह व्यक्ति हूँ जिसे मैं स्वयं नहीं पहचानता।’’ कालिदास ने अपने ही रचनाकार व्यक्तित्व पर एक शासकीय व्यक्तित्व आरोपित कर लिया है। उसकी समस्या प्रमाणिक जिंदगी के लिए प्रणय और शासन, साहित्य और सत्ता, प्रेमिका और पत्नी में से किसी एक को न चुन पाने के कारण हैं। कालिदास कहीं टिक नहीं पाता इसके मूल में है उसकी निर्णय हीनता।

विलोम और कालिदास एक दूसरे के पूरक-चरित्र हैं। विलोम कहता है, ‘‘विलोम क्या है? एक असफल कालिदास और कालिदास? एक सफल विलोम’’, विलोम एक संतुलित व्यक्तित्व है - धूर यथार्थवादी। वह विकल्पों में नहीं संकल्पों में जीता है। वह दुविधा में नहीं रहता। अम्बिका की तरह कालिदास का वह भी आलोचक हैं। वह जानता है कि मल्लिका उससे घृणा करती है। फिर भी वह प्रच्छन्न रूप से मल्लिका से प्रेम करता है। शुरू-शुरू में जो विलोम अर्न्तद्वन्द्व से बिल्कुल मुक्त दिखता है अन्त में वहीं विलोम असंतुलन की (शिकार) स्थिति में है। वह भी एक विभाजित व्यक्तित्व है। क्योंकि असमेकित मल्लिका की प्राप्ति एक अधूरी प्राप्ति है। मन के बिना तन की प्राप्ति प्रेम नहीं बलत्कार है। यह मल्लिका की भी विडम्बना है कि जिस विलोम से वह घृणा करती है उस विलोम के सामने ही शरीर समर्पित करना पड़ता है। विलोम का अन्ततः मद्यप हो जाना उसके भीतर के तनाव और अपनेपन से हार का ही सूचक है।

आषाढ़ का 1 दिन नाटक के नाटककार का नाम क्या है?

आषाढ़ का एक दिन सन १९५८ में प्रकाशित नाटककार मोहन राकेश द्वारा रचित एक हिंदी नाटक है। इसे कभी-कभी हिंदी नाटक के आधुनिक युग का प्रथम नाटक कहा जाता है।

आषाढ़ का एक दिन नाटक का मूल कथ्य क्या है?

कथावस्तु 'आषाढ़ का एक दिन' की प्रत्यक्ष विषयवस्तु कवि कालिदास के जीवन से संबंधित है। किन्तु मूलत: वह उसके प्रसिद्ध होने के पहले की प्रेयसी का नाटक है- एक सीधी-सादी समर्पित लड़की की नियति का चित्र, जो एक कवि से प्रेम ही नहीं करती, उसे महान् होते भी देखना चाहती है।

आषाढ़ का एक दिन में नाटककार है किसका चरित्र चित्रण किया है?

कालिदास भी अपवाद नहीं है। वह अहं की सजीव मूर्ति है। वह उज्जयिनी जाकर अपनी व्यक्तिवादी चेतना का अनुभव करता है। वह मल्लिका के सामने स्वीकार करता है-“मन में कहीं यह आशंका थी कि वह वातावरण मुझे छा लेगा और मेरे जीवन की दिशा बदल देगा और यह शंका निराधार नहीं थी।” इस प्रकार कालिदास का चरित्र प्रवृत्तियों की ओर संकेत करता है।

आषाढ़ का एक दिन नाटक का Bhavarth क्या है?

नाटक का आरम्भ इसी आषाढ़ के एक दिन से शुरू होती है। जब खूब मूसलाधार बारिश हो रही है और नायिका मल्लिका भीगते हुए घर में प्रवेश करती है। इसमें मुझे इसकी नायिका मल्लिका की बातें और निश्वार्थ प्रेम की भावनायें इतनी निर्दोष लगी कि उसकी कहानी को पढ़ते पढ़ते बरबस आँखो से आंसू कई बार छलक पड़े।