पुरुषार्थ ही मनुष्य की सफलता का रहस्य है।

Comprehension

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए।

परिश्रमी व्यक्ति को असफल हो जाने पर भी पश्चाताप नहीं होता, उसके मन में इतना संतोष तो अवश्य रहता है कि उसमें जितनी सामर्थ्य थी, उसने उतना प्रयत्न किया, फल देना या न देना तो ईश्वर के अधीन है। मानव का कर्तव्य केवल कार्य करना है। इसके विपरीत, आलसी व्यक्ति किसी कार्य की असफलता पर उसका दोष भाग्य को देते हैं। प्रश्न यह है कि भाग्य क्या है? किसी ने सच ही कहा है कि मनुष्य का भाग्य भी परिश्रम से ही बनता है। यदि कोई व्यक्ति यह सोचकर बैठ जाए कि उसके भाग्य में अमुक वस्तु नहीं है, तो वह उसके लिए कुछ भी कार्य करे, परिश्रम करे, परन्तु वह वस्तु उसे प्राप्त नहीं होगी। प्रकृति भी भाग्य के बल से नहीं, व्यक्ति के पुरुषार्थ के बल से ही झुकती है भारतीय संस्कृति में कहा जाने वाला तप भी परिश्रम का ही पर्याय है किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया गया श्रम ही तप है। इसी तप या श्रम के कारण नहुष इंद्रासन का अधिकारी बना, कालिदास महान कवि, मैडम क्यूरी तथा एडीसन महान वैज्ञानिक तथा अब्राहिम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति। महान लेखकों, कवियों, वैज्ञानिकों आदि की सफलता का रहस्य भी उनका परिश्रम ही है।

'पुरुषार्थ' शब्द का संधि-विच्छेद है-

  1. पुरुष + अर्थ
  2. पुरुषा + अर्थ
  3. पुरु: + अर्थ
  4. पुरुष् + अर्थ

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : पुरुष + अर्थ

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10 Questions 10 Marks 10 Mins

सही उत्तर 'पुरुष + अर्थ' होगा।

पुरुषार्थ ही मनुष्य की सफलता का रहस्य है।
Key Points

  • पुरुषार्थ - पुरुष + अर्थ = पुरुषार्थ ( अ + अ = आ) दीर्घ स्वर संधि।
  • दीर्घ संधि - जिसमे अ , इ , उ , के पाश्चात्य अ , इ , उ स्वर आएँ तो दोनो को मिलाकर दीर्घ आ , ई , ऊ हो जाता है।
  • या एक छोटी वर्ण और एक बडी वर्ण के मिलने से भी बडी वर्ण का निर्मण होता है उसे दीर्घ संधि कहते हैं।
  • उदाहरणः-
अ + अ  आ        
अ + आ
इ + इ
इ + ई

Last updated on Oct 25, 2022

The NCTE (National Council for Teacher Education) has released the detailed notification for the CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle. The last date to apply is 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here.

सीताराम गुप्ता
एक बच्चा ध्यान से नाली के गंदे पानी में चमकीले लाल रंग के कीड़ों को देख रहा था। उसे वे कीड़े बड़े सुंदर लग रहे थे। उस बच्चे को दुख भी हो रहा था कि ये गंदे पानी में कैसे पड़े हैं। नाली के कीड़े कितने भी सुंदर क्यों न हों वे गंदे पानी में ही पैदा होते हैं और उसी से आहार ग्रहण कर जिंदा रहते हैं। वास्तव में जितने भी मनुष्येतर प्राणी हैं वे खास प्राकृतिक परिवेश में उत्पन्न होते हैं, उसी में परवरिश पाते हैं और उसी में खुश रहते हैं। कोई भी प्राणी जब तक उसका जीवन संकट में न हो, अपना परिवेश बदलने की नहीं सोचता। लेकिन मनुष्य? मनुष्य हमेशा अपने परिवेश को बेहतर बनाने लिए तत्पर रहता है क्योंकि इसके बिना उसका विकास संभव ही नहीं।

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कई लोग अत्यंत दयनीय परिस्थितियों में पैदा होते हैं। घोर अभाव, निर्धनता व बीमारी की परिस्थितियों में आंखें खोलते हैं और उसी को स्वीकार कर निश्चिंत बैठे रहते हैं। कई बार उनमें और गंदी नाली के कीड़ों की जिंदगी में कोई अंतर नहीं होता। बेशक नाली के कीड़े के लिए वह स्थिति असामान्य नहीं, लेकिन मनुष्य के लिए इसे किसी भी सूरत में सामान्य नहीं कहा जा सकता। वजह यह है कि कीड़े के सामने मात्र उसकी उदरपूर्ति का प्रश्न होता है। उसके समक्ष सामाजिक व आर्थिक विकास अथवा नैतिकता व चरित्र निर्माण की समस्या नहीं होती। इसके विपरीत मनुष्य सिर्फ उदरपूर्ति से संतुष्ट नहीं हो सकता। यह उसकी प्रकृति में नहीं है। उसके सामने उसके सर्वांगीण विकास का प्रश्न होता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ उसके लिए अनिवार्य बताए गए हैं।

गौर करने की बात है कि सभी जीवों का अपना परिवेश होता है, पर सभी जीवों की संस्कृति नहीं होती। मनुष्य इस मामले में सबसे अलग है। उसकी एक संस्कृति है जिसको अपनाकर वह सभ्य बनता है। संस्कृति के दायरे में रह कर वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ हासिल करता है। देश काल के अनुसार धर्म का पालन अनिवार्य है। धर्म जीवन को संबल प्रदान करता है, हमारी संस्कृति को बनाए रखने में सहायक होता है। वास्तव में वे सभी तत्व जो जीवन को सकारात्मकता प्रदान करते हैं, धर्म के अंतर्गत आते हैं। धर्म के साथ-साथ अर्थोपार्जन भी अनिवार्य है, लेकिन वह पूर्ण रूप से धर्मसम्मत होना चाहिए। अर्थोपार्जन में चारित्रिक या नैतिक पतन नहीं होना चाहिए।

काम की उपेक्षा भी संभव नहीं। काम के अभाव में धर्म, अर्थ अथवा मोक्ष ये तीनों पुरुषार्थ न तो अपेक्षित हैं और न ही संभव। हां, काम में संतुलन और मर्यादा अनिवार्य हैं। काम और लोभ ही अमर्यादित अथवा अनैतिक अर्थोपार्जन के लिए उत्तरदायी हैं। इसी से धर्म का क्षय होता है। मोक्ष भी वास्तव में इन विकारों से मुक्ति ही है और यही मुक्ति मनुष्य में उदात्त व परिष्कृत जीवन शैली का विकास करती है। इसी से संस्कृति का विकास होता है और संस्कृति से ही मनुष्य का विकास संभव है।

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उदरपूर्ति के लिए अथवा चारों पुरुषार्थों में से किसी को भी पाने के लिए जब मनुष्य का चारित्रिक अथवा नैतिक पतन हो जाता है तो वह गंदी नाली के कीड़ों की श्रेणी में आ जाता है। ऐसी स्थिति में बड़ी-बड़ी प्रफेशनल डिग्रियां भी उसे इंसान नहीं बना सकतीं।

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पुरुषार्थ का मतलब क्या होता है?

पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

मनुष्य का सबसे बड़ा पुरुषार्थ क्या है?

क्रांति कुमार तिवारी ने भगवत गीता मे उल्लेखित भाव को समझाते हुए कहा कि मानव जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ सकारात्मक कर्म है। धर्म की रक्षा के साथ धर्माचरण व सद्विचारों के माध्यम से जीवन को सुखमय व सार्थक बनाया जा सकता है।

पुरुषार्थ क्या है इसका जीवन में क्या महत्व है?

पुरुषार्थ संस्था निर्दिष्ट जीवन को प्राप्त करने की एक साधन-व्यवस्था है। यह व्यक्ति को वाणित कार्य करने की प्रेरणा देती है, तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक जगत के बीच सन्तुलन स्थापित करती है। पुरुषार्थ की अवधारणा जीवन के उच्चतर आदर्शों की प्राप्ति की परियोजना है।

काम पुरुषार्थ क्या है?

मनुष्य के जीवन का तीसरा पुरूषार्थ काम है। 'काम' से तात्पर्य भोग-वासना, इन्द्रिय-सुख के साथ ही, मनुष्य की समस्त इच्छाओं (कामनाओं) से भी है। इस प्रकार काम पुरूषार्थ में यौन इच्छाओं का तप्त होने के साथ ही, सांसारिक दृष्टि से जीवन के आनन्द का उपभोग भी समाहित है।