पुरुषों के द्वारा गाया जाने वाला गीत कौन सा है? - purushon ke dvaara gaaya jaane vaala geet kaun sa hai?

छत्तीसगढ़ के गीत दिल को छु लेती है यहाँ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। इसीलिये यहाँ के लोगों में सुरीलीपन है। हर व्यक्ति थोड़े बहुत गा ही लेते है। और सुर एवं ताल में माहिर होते ही है। अब हम गीतों के बारे में चर्चा करेंगे एवं सुनेगें।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत में विविधता है, गीत अपने आकार में छोटे और गेय होते है। गीतों का प्राणतत्व है भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ी लोकभाषा में गीतों की अविछिन्न परम्परा है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों है - सुआगीत, ददरिया, करमा, डण्डा, फाग, चनौनी, बाँस गीत, राउत गीत, पंथी गीत।

सुआ, करमा, डण्डा, पंथी गीत नृत्य के साथ गाये जाते है। सुआ गीत करुण गीत है जहां नारी सुअना (तोता) की तरह बंधी हुई है। गोंड जाति की नारियाँ दीपावली के अवसर पर आंगन के बीच में पिंजरे में बंद हुआ सुआ को प्रतीक बनाकर (मिट्टी का तोता) उसकेचारो ओर गोलाकार वृत्त में नाचती गाती जाती हैं। इसालिए अगले जन्म में नारी जीवन पुन न मिलने ऐसी कामना करती है।

सुआ गीत -

   तरि नरि ना ऽऽ ना ऽऽ मोर

   तरि नरि ना ऽऽ ना ऽऽ गा ऽऽ

   ओ ऽऽ सुआ न ऽऽऽ

   तिरिया जनम झन देबे

   तिरिया जनम मोर गऊ को बरोबर

   गऊ के बरोबर

   रे सु आना ऽऽऽ

   तिरिया जनम झन देबे ऽऽऽ

   सती सु लोचना ऽऽऽ रोवथे ओ ऽऽऽ

   तरिया तीरे ऽऽऽ

   तरिया तीरे ऽऽऽ

   तिरिया जनम झनि देबे

   ओ सु आना ऽऽ

राऊत गीत -

यह दिपावली के समय गोवर्धन पूजा के दिन राऊत जाति के द्वारा गाया जाने वाला गीत है। यह वीर-रस से युक्त पौरुष प्रधान गीत है जिसमें लाठियो द्वारा युद्ध करते हुए गीत गाया जाता है। इसमें तुरंत दोहे बनाए जातें हैं और गोलाकार वत्त में धूमते हुए लाठी से युद्ध का अभ्यास करते है। सारे प्रसंग व नाम पौराणिक से लेकर तत्कालीन सामजिक / राजनीतिक विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए पौरुष प्रदर्शन करते है।

छत्तीसगढ़ लोकगीत : दोस्तों आपको में आज इस पोस्ट के माध्यम से छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकगीत Chhattisgarhi Lok Geet , (Folk Songs of Chhattisgarh) के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाला हूँ. जिससे आप छत्तीसगढ़ लोकगीत के संबंध में अच्छे से जान पाएंगे तो आइये पड़ते है. छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नामआज प्रत्येक समाज मनोरंजन से अछूता नहीं रह सकता उसे मनोरंजन के लिए भावपूर्ण गीतों की जरूरत होती है। ये गीत मनोरंजन के साथ-साथ एक समृद्धशाली परम्परा के निर्माण में भी सहायक होते हैं। इन छत्तीसगढ़ के लोकगीतों (Chhattisgarhi Lok Geet) की एक अन्य विशेषता यह भी है कि ये

गीत किसी बंधन या नियम में न बंधकर मौखिक परम्परा में जीवित रहकर युगों की यात्रा करते हैं। इस कारण इन्हें संस्कृति के समग्र संवाहक भी कहा जाता है। ऐसे समस्त छत्तीसगढ़ के लोकगीत जो किसी समाज या क्षेत्र विशेष के लोगों द्वारा किसी पर्व-विशेष पर गाए जाते हैं, वहाँ लोकगीत कहलाते हैं।

विषय सूचि

  • छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम | Chhattisgarhi Lok Geet
  • पण्डवानी (छत्तीसगढ़ी लोकगीत )
  • चंदैनी गीत (छत्तीसगढ़ के प्रेम लोक गीत)
  • भरथरी गीत
  • ददरिया गीत
  •  ढोला-मारू
  • पंथी गीत
  • बीस गीत
  • सुआ गीत (गौरा गीत ) प्रसिद्व छत्तीसगढ़ी लोकगीत
  • विवाह गीत
  • सोहर गीत
  • सधौरी गीत
  • लोरी गीत
  • तारा गीत
  • चइतपरब गीत
  • रीलो गीत
  • लेजा गीत
  • कोटनी
  • घनकुल
  • छत्तीसगढ़ के लोक गायक के नाम बताइए
  • frequently asked questions about Chhattisgarhi Lok Geet
    • पंडवानी गायन शैली के लिए किसका नाम प्रसिद्ध है
    • पंडवानी किस कथा पर आधारित है
    • पंडवानी के पितामह किसे कहते है
    • छत्तीसगढ़ी राजकीय गीत कौन सा है
    • ददरिया गीत किसके द्वारा गाए जाते हैं

छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम | Chhattisgarhi Lok Geet


पुरुषों के द्वारा गाया जाने वाला गीत कौन सा है? - purushon ke dvaara gaaya jaane vaala geet kaun sa hai?
छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम | Chhattisgarhi Lok Geet

छत्तीसगढ़ भी एक लोकगीतों से एक समृद्ध शाली राज्य है. छत्तीसगढ़ के Chhattisgarhi Lokgeet का इतिहास उतना ही प्राचीन / पुराना है. जितना छत्तीसगढ़ का है. जिसके अपने अनेक मत्वपूर्ण Chhattisgarhi Lok Geet है जहां पण्डवानी, भरथरी, चंदैनी गायन, ढोला मारू, बांसगीत के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के संस्कार- गीत, पर्वत्यौहार, बच्चों के खेल गीत, धनकुल गीत, लक्ष्मीजगार, देवरी गीत, आदि गाये जाते हैं।

यहाँ छत्तीसगढ़ के Lokgeet (Folk Song) छत्तीसगढ़ के लोगो को अपने अंचल अचरा में बांध कर रखते है. जिसके प्रमाण समय-समय पर होने छत्तीसगढ़ी लोकगीत कर्याक्रम है.

पण्डवानी (छत्तीसगढ़ी लोकगीत )

पण्डवानी छत्तीसगढ़ की एक लोकगाथा है। सबल सिंह चौहान द्वारा महाभारत के पांडवों के कथा की छत्तीसगढ़ी लोक रूप का गीतमय अख्याश पण्डवानी है। छत्तीसगढ़ के लोक धुनों में महाभारत की सम्पूर्ण चरित्र कथा को गायन के द्वारा वर्णन किया जाता है. अपने स्वर, बोली, अभिनय, कथा-वाचन और लोक संगीत के माध्यम से आंखों के सामने जीवंत कर देता है। पंडवानी की शुरुयात सबसे पहले छत्तीसगढ़ में पंडवानी के पितामह कहे जाने वाले श्री झाडूराम देवांगन जी द्वारा किया गया था. पंडवानी की दो प्रमुख शैलियाँ है

  • वेदमती शैली :- वेदमती शाखा को ही शास्त्रीय पण्डवानी कहा जाता है। इसके गायन में केवल शास्त्रसम्मत गायकी ही की जाती है। एक सामूहिक गायन होते हुये भी इसका एक केन्द्रीय गायक होता है जो स्वयं तंबुरा और करताल बजाते हुए महाभारत के आख्यानों को प्रस्तुत करता है। इसमें हुंकार भरने हेतु रागी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साथ ही, तबला, ढोलक, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्रों पर संगत कलाकार होते हैं। इस शैली प्रमुख गीतकार झाडूराम देवांगन, पुनाराम निषाद, ऋतु वर्मा आदि हैं। के
  • कापालिक शैली :- यह पण्डवानी की एक नवीनतम शैली है। इसके गायक शास्त्रसम्मत गायकी के साथ नृत्य और अभिनय भी प्रस्तुत करते हैं। यह भी सामूहिक गायन होता है, फिर भी इसका एक केन्द्रीय गायक होता है जो स्वयं तंबुरा और करताल बजाते हुए महाभारत के आख्यानों को प्रस्तुत करता है। इसमें भी हुंकार भरने हेतु रागी की भूमिका होती है। साथ ही तबला, ढोलक, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्रों पर संगत कलाकार होते हैं। इस शैली के प्रमुख कलाकार तीजनबाई, उषाबाई, शांतिबाई आदि हैं।

छत्तीसगढ़ में पण्डवानी गायन की शुरूआत झाडूराम देवांगन के द्वारा की गयी थी जबकि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित कलाकार तीजन बाई को है।

चंदैनी गीत (छत्तीसगढ़ के प्रेम लोक गीत)

चंदैनी गीत छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय गीत है, जो लोरिक और चंदा के प्रेम प्रसंग पर आधारित है। जिनके आख्यानों को गीतों के रूप में पिरोकर संयोग श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के साथ गायन किया जाता है। इस प्रेम प्रसंग गीत के प्रमुख गायक श्री चिंतादास जी हैं।

लोरिक और चंदा को लोक साहित्य, लोकगीत और लोक कथाओं में छत्तीसगढ़ के आदर्श प्रेमी युगल के रूप में जाना जाता है तथा लोरिक और चंदा के प्रणय गाथा की गीतमाला बनाई गयी है, जिसे चंदैनी कहा जाता है। इस गीत के गायन के दौरान टिमकिड़ी नामक वाद्ययंत्र का उपयोग किया जाता है

भरथरी गीत

भरथरी गीत छत्तीसगढ़ की एक प्रसिद्ध लोकगाथा है। इसमें राजा भरथरी और रानी पिंगला के प्रेम प्रसंग का वर्णन वियोग श्रृंगार रस के रूप में किया जाता है। इसकी शीर्ष गायिका स्व. सुरूजबाई खाण्डे तथा प्रमुख वाद्ययंत्र इकतारा या सारंगी है।

ददरिया गीत

ददरिया गीत छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध एक प्रणय लोकगीत है जो शृंगार-प्रधान युक्त तथा सवाल-जवाब शैली पर आधारित होती है। ददरिया गीत को छत्तीसगढ़ के लोक गीतों का राजा भी कहा जाता है। प्रायः यह गीत ग्रामीण अंचलों में धान रोपाई के समय गाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में ददरिया, युवा मन की अभिव्यक्ति का अत्यन्त सशक्त माध्यम है अर्थात् सवाल-जवाब के माध्यम से युवक-युवतियां अपनी मन की बात प्रकट करते हैं। इसके प्रमुख गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया, दिलीप षंडगी आदि हैं।

 ढोला-मारू

ढोलामारू गीत छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध प्रेम गीत है मूलतः राजस्थानी लोकगाथा का छत्तीसगढ़ी गायन रूप है। जिसका फेरीवालों के माध्यम से छत्तीसगढ़ अंचल में प्रसार हुआ है। इसमें ढोला और मारू की प्रेमगाथा को चमत्कारिक और रहस्यात्मकता के साथ लोक शैली में गाया जाता है।

पंथी गीत

पंथी गायन छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक गायनों में से एक है जो पंथी नृत्य के दौरान गाया जाता है। गायन का प्रमुख विषय गुरू घासीदास जी के संदेशों एवं सत्कार्यों की प्रेरणा को जनसामान्य तक गीत के माध्यम से पहुँचाना है। गायन के साथ मुख्य वाद्ययंत्र मांदर व झांझ होते हैं। पंथी गीत के प्रमुख गीतकार स्वर्गीय देवदास बंजारे जी थे। जिनके प्रयासों से यह गीत राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ है।

बीस गीत

बांस गीत मूलतः करुण-गाथा आधारित लोक गीत है जिसमें गायक, रागी और वादक प्रमुख होते हैं। गायक कथा को गाता है, रागी हुंकार भरता है और यादव बांस से बने पात्रको है। चूंकि इस गीत में मुख्य वाद्ययंत्र के रूप में बांस का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण ही इसे बांस गीत कहते हैं। छत्तीसगढ़ में प्रायः इसे राऊत जाति के लोग गाये हैं। इस गीत में दो-दो व्यक्तियों का अलग-अलग दल होता है। जिसमें एक दल के द्वारा गीत आरन कसो ही दूसरे दल के द्वारा लम्बी सास भरने के बाद बास से बने वाद्ययंत्र को बजाया जाता है, जिससे पॉ-पो की विशिष्ट प्रकार की ध्वनि निकलती है। यह क्रम निरंतर आगे चलता रहता है।

बांसगीत की प्रमुख गाथाओं में सीत-बसंत, मोरध्वज और कर्ण की गाथाएं गायी जाती है। प्रमुख गायक केजूराम यादव तथा नकुल यादव है।

देवी-देवताओं गुरूजनों एवं इष्टों के मंगलाचरणों की परिपाटी से आरंभ होकर आज बासगीश महाकाव्य की तरह कथानक के कथाक्रम से जुड़ गया है।

सुआ गीत (गौरा गीत ) प्रसिद्व छत्तीसगढ़ी लोकगीत

सुआ गीत छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध लोकगीत है। इस गीत को छत्तीसगढ़ की महिलाएं और कुंवारी कन्याएं सुआ नृत्य के दौरान समवेत स्वरी में गाती है। जिसमें एक टोकरे में मिट्टी की बनी सुआ की दो प्रतिमा (शिव-पार्वती प्रतीक स्वरूप) रखकर उसके चारों ओर झुक झुक कर नृत्य करती है, साथ ही, सुआ गीत का गायन भी करती है।

विवाह गीत

छत्तीसगढ़ के प्रादेशिक अंचल में विवाह के अवसर पर विभिन्न प्रकार के गीतों का गायन किया जाता है। जिसमें से प्रथम दिवस चूलमारी व तेलपधी गीत द्वितीय दिवस मायन गीत एवं अंतिम दिवस में वर के स्वागत के लिये परधौनी गीत तथा दूल्हे के भाइयों व दुल्हन की बहनों के मध्य हास्य- परिहास शैली में महीनी गीत, भांवर के समय भांवर गीत, टिकावन गीत एवं अंत में विदाई के समय विदाई गीत का गायन करते हैं। इस प्रकार विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के विभिन्न गीतों को हार्मोल्लास के साथ गाया जाता है जो छत्तीसगढ़ की संस्कृति को अग्रगण्य बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

सोहर गीत

छत्तीसगढ़ के प्रादेशिक अंचलों में बच्चों के जन्म के समय संतानवती माताओं द्वारा सोहर गीता गाया जाता है। संबंधित माता के प्रसव पीड़ा को कम करने हेतु भी यह गीत गाया जाता है।

सधौरी गीत

छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख लोक गीतों में से एक सधौरी गीत प्रायः गर्भवती स्त्री के गर्भधारण के सातवें माह में आशीर्वाद स्वरूप गाया जाता है। इसमें होने वाले बच्चे की मंगल कामना के साथ उसे अप्रत्यक्ष रूप से अपनी संस्कृति से अवगत कराया जाता है।

लोरी गीत

बच्चों से संबंधित लोरी गीत का प्रसार छत्तीसगढ़ अंचल में ही नहीं अपितु भारतीय स्तर पर भी प्रख्यात है। छोटे बच्चों को सुलाने हेतु इस गीत का गायन किया जाता है। जिसका अहम उद्देश्य अबोध बच्चे के मन में अपनी संस्कृति की विशेषताओं को समाहित करना भी है। 

तारा गीत

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध जनजातीय गीत है जो छेरता-गीत (नवयुवकों के द्वारा गाया जाता है) के समान होता है, किन्तु तारागीत उसी समय पर ही नवयुवतियों के द्वारा गाया जाता है। सामान्यतः यह गीत पौष-पुन्नी की रात्रि को गाया जाता है, जिसमें नवयुवतियाँ समूहबद्ध होकर द्वीप प्रज्जवलित कर अन्त में पिकनिक मनाती है।

चइतपरब गीत

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध जनजातीय गीत है जो बस्तर क्षेत्र में गायी जाने वाली स्त्री पुरुषों की प्रतिद्वंद्विता का गीत है तथा चैत्र मास की रात में इसे गाया जाता है। श्रृंगार से भरपूर प्रतिद्वंद्विता की समाप्ति मूंढ़ी मागतो (अंगूठी प्राप्ति) से होती है।

रीलो गीत

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध जनजातीय गीत है जो विशुद्ध रूप से माडिया एवं मुरिया जनजातियों का गीत है, किन्तु इसका विस्थापन वर्तमान में हल्बी जनजाति में हो गया है। यह विवाह के अवसर पर रात्रि में बारी-बारी से स्त्रियों तथा पुरुषों के द्वारा गाया जाता है। गायक नृत्य की मुद्रा में भी रहते हैं।

लेजा गीत

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध जनजातीय गीत है जो विशुद्ध हल्बी जनजाति का गीत है। इसके गाए जाने का कोई भी निर्धारित समय नहीं है। जब मन में भौज (उल्लास) आ जाए तब स्त्रियों और पुरूषों के द्वारा इसे गाया जाता है। साथ ही, इसे पृथक-पृथक तौर पर भी गाया जाता है।

कोटनी

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध वैवाहिक गीत है जो लगन के मुहूर्त पर गाया जाता है। विवाहस्थल पर स्त्री और पुरुष सामूहिक रूप से इसे गाते हैं। एक ओर स्त्रियाँ रहती है और दूसरी ओर पुरूष पुरूषों की संख्या पांच तथा स्त्रियों की सात होती है। भाव श्रृंगारिक होते हैं। प्रश्नोत्तर की सरस गेय (गायन) पंक्तियों वातावरण को रसयुक्त कर देती है।

घनकुल

यह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध धार्मिक गीत है। जो लक्ष्मी-जगार तथा तीजा-जगार के समय गायी जाती है। धनकुल लोकसंस्कृति के हरतालिका या तीज मनाए जाने वाले व्रत का ही रूपान्तरित रूप है जो कथा परिवेश में भादों की नवमी से प्रारंभ हो जाती है। आस-पड़ोस की स्त्रियों आकर धनकुल की कथा गुरूमाय से सुनती है और पूजा में भाग लेती है। दो गुरूमाएँ संस्कारित होकर धनकुल वाद्य के साथ कथा प्रारंभ करती है।

पुरुषों के द्वारा गाए जाने वाले गीत कौन सा है?

नागमत गीत - नागदेव का गुणगान नागपंचमी के अवसर पर। डंडा गीत - वर्ष में दो बार, क्वार तथा फागुन में, पुरुषों द्वारा डंडा नृत्य के समय गाया जाता है। सोहर गीत - जन्मोत्सव के अवसर पर गाया जाता है। बरुआ गीत - उपनयन संस्कार के अवसर पर गाया जाता है।

बांस गीत कौन सा है?

बाँस गीत, छत्तीसगढ़ की यादव जातियों द्वारा बाँस के बने हुए वाद्य यन्त्र के साथ गाये जाने वाला लोकगीत है। बाँस गीत के गायक मुख्यत: राऊत या अहीर जाति के लोग हैं। छत्तीसगढ़ में राउतों की संख्या बहुत है। राउत जाति को यदूवंशी माना जाता है।

छत्तीसगढ़ का लोक गीत कौन सा है?

करमा गीत : यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुख्य लोकगीत है। करमा नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत को करमा गीत के नाम से जाना जाता है।

स्त्री के लोकगीत कैसे होते हैं?

सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैंस्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं। और औरतों के दल एक साथ या एक-दूसरे के जवाब में गाते हैं, दिशाएँ गूंज उठती हैं