पहलवान की ढोलक को लिखा है महान लेखक फणीश्वर नाथ रेणु ने। फणीश्वर नाथ रेणु जी ने ऐसी कई रचनाएं लिखी हैं। हम यहां उन्ही के द्वारा पहलवान की ढोलक पाठ से आपके सामने लेखक परिचय, पाठ का सारांश, कठिन शब्द, MCQ और प्रश्न-उत्तर आपके सामने लाएंगे। चलिए, जानते हैं पहलवान की ढोलक को इस ब्लॉग की मदद से। Show
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Check out: स्पीति में बारिश NCERT Class 11 लेखक परिचयSource – Nayiwalistoryहिंदी-साहित्य के लोकप्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना में हुआ था। इन्होंने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बढ़-चढ़कर भाग लिया और 1950 में नेपाली जनता को राजशाही दमन से मुक्ति दिलाने के लिए भरपूर योगदान दिया। इन्होंने पहलवान की ढोलक जैसी कई रचनाएं की थी. इनकी साहित्य-साधना व राष्ट्रीय भावना के मद्देनजर भारत सरकार ने इन्हें पदमश्री से नवाजा था। 11 अप्रैल 1977 को 56 वर्ष की उम्र में पटना में इनका निधन हो गया था। हिंदी कथा-साहित्य में रेणु का प्रमुख स्थान है। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- उपन्यास-मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, कितने चौराहे । Check out: Rajasthan Ki Rajat Boonde Class 11 पाठ प्रतिपाद्यपहलवान की ढोलक’ कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। राजा साहब की जगह नए राजकुमार का आकर जम जाना सिर्फ़ व्यक्तिगत सत्ता-परिवर्तन नहीं, बल्कि जमीनी पुरानी व्यवस्था के पूरी तरह उलट जाने और उस पर सभ्यता के नाम पर एकदम नई व्यवस्था के आरोपित हो जाने का प्रतीक है। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ का छा जाना है, जो लुट्टन पहलवान को लोक-कलाकार के आसन से उठाकर पैट-भरने के लिए हाय-तौबा करने वाली नीचता की भूमि पर पटक देती है। ऐसी स्थिति में गाँव की गरीबी पहलवानी जैसे शौक को क्या पालती? फिर भी, पहलवान जीवट ढोल के बोल में अपने आपको न सिर्फ़ जिलाए रखता है, बल्कि भूख व महामारी से दम तोड़ रहे गाँव को मौत से लड़ने की ताकत भी प्रदान करता है। कहानी के अंत में भूख-महामारी की शक्ल में आई मौत की साजिश जब लुट्टन की भरी-पूरी पहलवानी को फटे ढोल की पोल में बदल देते हैं तो इस करुणा/त्रासदी में लुट्टन हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाता है। मनुष्यता की साधना और जीवन-सौंदर्य के लिए लोक-कलाओं को प्रासंगिक बनाए रखने हेतु हमारी क्या भूमिका हो सकती है? यह पाठ ऐसे कई प्रश्न छोड़ जाता है। सारांशसर्दी का मौसम था और ऊपर से गाँव में मलेरिया व हैजे का प्रकोप। अमावस्या की रात में आकाश के तारे ही रौशनी चमका रहे थे। सियारों व उल्लुओं की डरावनी आवाज गूँज रही थी। कभी किसी झोपड़ी से कराहने की आवाज तथा कभी-कभी बच्चों के रोने की आवाज आती थी। सायं या रात्रि को सब मिलकर रोते थे। इस सारे माहौल में पहलवान की ढोलक संध्या से प्रात:काल तक एक ही गति से बजती रहती थी। यह आवाज गाँव में उर्जा भरती थी।
Check out: साना-साना हाथ जोड़ि Class 10th Solutions कठिन शब्दपहलवान की ढोलक से संबंधित कठिन शब्द नीचे दिए गए हैं-
पहलवान की ढोलक PDFपहलवान की ढोलक से संबंधित प्रश्नोत्तरलुट्टन कौन था? उसका नाम क्यों फैला था? लउत्तर: लुट्टन के माँ-बाप उस समय मर गए थे जब वह मात्र नौ वर्ष का था। उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। उसने चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हराकर राज पहलवान बनने का गौरव प्राप्त किया था। इस कारण उसका नाम फैला था। कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ से लुट्टन पर क्या प्रभाव पड़ा? उत्तर: ढोल बजते ही लुट्टन की रगों में खून दौड़ने लगता था। उसे हर थाप में नए दाँव-पेंच सुनाई पड़ते थे। ढोल की आवाज उसे साहस प्रदान करती थी। इस वजह से वह दंगल भी जीता। प्रश्न 3: ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था? (CBSE-2008, 2012, 2015) उत्तर: महामारी से ग्रामीणों को ढोलक की आवाज संजीवनी शक्ति की तरह मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी। यह आवाज बूढ़े-बच्चों व जवानों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य बना देती थी। उनके अंदर बिजली दौड़ जाती थी। महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था? (CBSE-2008) उत्तर: महामारी ने सारे गाँव को बुरी तरह से प्रभावित किया था। लोग सुर्योदय होते ही अपने मृत संबंधियों की लाशें उठाकर गाँव के श्मशान की ओर जाते थे ताकि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके। सूर्यास्त होते ही सारे गाँव में मातम छा जाता था। लुट्टनपहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी? उत्तर: पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उसे चिता पर पेट के बल लिटा दिया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी ‘चित’ नहीं हुआ। इसके अलावा चिता सुलगाने के समय ढोलक बजाया जाए। गाँव किससे पीड़ित है? गाँव हैजे व मलेरिया की बीमारी से पीड़ित है। गाँव किसके समान काँप रहा है? गाँव मलेरिया व हैजे से पीड़ित है तथा वह भयभीत शिशु की तरह थर-थर काँप रहा है। गाँव में ऐसा क्या हो गया था कि अँधेरी रात चुपचाप आंसू बहा रही थी? गाँव में हैजे व मलेरिया का प्रकोप था। इसके कारण घर-घर में मौतें हो रही थीं। चारों ओर मौत का सन्नाटा था। इसी कारण अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। ‘निस्तब्धता’ किसे कहते हैं? उस रात की निस्तब्धता क्या प्रयत्न कर रही थी और क्यों? ‘निस्तब्धता’ का अर्थ है-मौन या गतिहीनता। रात के अँधेरे में सब कुछ शांत हो जाता है। उस रात की निस्तब्धता करुण सिसकियों व आहों को बलपूर्वक दबाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि दिन में मौत का तांडव रहता था तथा हर तरफ चीख-पुकार होती थी। रात्रि की भीषणता कैसी थी? लेखक ने रात्रि की भीषणताओं के बारे में बताते हुए कहता है कि जाड़े की अमावस्या की रात थी। मलेरिया व हैजे का प्रकोप था। चारों तरफ निस्तब्धता थी। ढोलक की कौन – सी आवाज क्या असर दिखाती थी? ढोलक की आवाज थी-चट्-धा, गिड़-धा यानी आ जा भिड़ जा। बीच-बीच में ‘चटाक्-चट्-धा’ यानी ‘उठाकर पटक दे!’ की आवाज आती थी। यह आवाज मृत गाँव में जीवन-आशा का संचार करती थी। ‘धारोष्ण दूध’ से क्या तात्पर्य है? बचपन में लुट्टन और क्या- क्या काम किया करता था? इसका अर्थ है-धार का गरम दूध। बचपन में लुट्टन गाय चराता था तथा कसरत करता था। ‘बिजली उत्पन्न होना’ का आशय बताइए। इसका कारण क्या था? ‘बिजली उत्पन्न होना’ का अर्थ है-प्रबल जोश उत्पन्न होना। जवानी की मस्ती व ढोल की ललकारती हुई आवाज ने लुट्टन की नसों में जोश भर दिया। राजा साहब ने लुट्टन को क्या नसीहत दी? राजा साहब ने लुट्टन को दस रुपये का नोट दिया, उसकी हिम्मत की प्रशंसा की तथा मेला देखकर घर जाने के की नसीहत दी। भीड़ की अधीरता का क्या कारण था? लसिक इंग्लक चुीद थी भी नोक कुश्त देना चाहता थी इसाल वाहअर रही थी। कौन किसकी आँखें पोंछ रहा था और क्यों? पंजाबी पहलवानों की जमात चंद्र सिंह की आँखें पोंछ रही थी क्योंकि चंद्र सिंह को लुट्टन ने हरा दिया था। इस हार के कारण उसे राज-पहलवान का दर्जा नहीं मिला। फलत: वह दुखी था। MCQsलुट्टन कौन सी चीज़ बजाने का आदी था? उत्तर: (ग) गाँव में कौन सा मौसम था? उत्तर: (क) लुट्टन किस पहलवान से लड़ने की जिद्द कर रहा था? उत्तर: (घ) लुट्टन रोज़ सुबह क्या करता था? उत्तर: (ख) लुट्टन के कितने बच्चे थे? उत्तर: (घ) राजपुरोहित और मैनेजर लुट्टन का विरोध क्यों कर रहे थे ? A. क्योंकि लुट्टन क्षत्रिय नहीं
था उत्तर: A ‘पहलवान की ढोलक’ रचना के लेखक का नाम क्या है? A. महादेवी वर्मा उत्तर: B ‘पहलवान की ढोलक’ मुख्य रूप से किसका वर्णन करती है? A.
लुट्टन पहलवान की गरीबी का उत्तर: B लुट्टन कितनी आयु में अनाथ हो गया था? A. 7 वर्ष की आयु में उत्तर: D किसने लुट्टन का पालन-पोषण किया? A. बुआ ने उत्तर: B गाँव में कौन-से रोग फैले हुए थे? A. डेंगू उत्तर: B बचपन में लुट्टन क्या करता था? A. खेलता था उत्तर: C लुट्टन ने किसकी अनुमति पाकर चाँद से कुश्ती लड़ी? A. पंचायत की उत्तर: D लुट्टन ने किसकी प्रेरणा से कुश्ती में विजय प्राप्त की? A. ढोलक की उत्तर: A राजा साहब का नाम क्या था ? A. कृष्णानंद उत्तर: C लुट्टन के कितने पुत्र थे? A. दो उत्तर: A Check out: जानिए महान टीपू सुल्तान का इतिहास गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए1. जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयात्र्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! आँधेरा और निस्तब्धता ! प्रश्न (क) लेखक किस तरह के मौसम का वर्णन कर रहा है? उत्तर – (क) लेखक सर्दी के दिनों का वर्णन कर रहा है। अमावस्या की रात है। भयंकर ठंड है तथा चारों तरफ अँधेरा है। 2. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे। प्रश्न (क) गाँव में ऐसा क्या हो गया था कि आँधेरी रात चुपचाप असू बहा रही थी? उत्तर – (क) गाँव में हैजे व मलेरिया का प्रकोप था। इसके कारण घर-घर में मौतें हो रही थीं। चारों ओर मौत का सन्नाटा था। इसी कारण अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। 3. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को ताल ठोककर ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रात:काल तक एक ही गति से बजती रहती-‘चट्-धा, गिड़-धा, ’ चट्-धा, गिड़ धा!’ यानी ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!” ’ बीच-बीच में-‘चटाक्-चट्-धा, ‘चटाक्-चट्-धा!’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’ प्रश्न (क) रात्रि की भीषणताएँ कैसी थीं ? उत्तर – (क) लेखक ने रात्रि की भीषणताओं के बारे में बताते हुए कहता है कि जाड़े की अमावस्या की रात थी। मलेरिया व हैजे
का प्रकोप था। चारों तरफ निस्तब्धता थी। 4. लुट्टन के माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीताऔर कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी। प्रश्न (क) लुट्टन कौन था? उसका नाम क्यों फैला था? उत्तर – (क) लुट्टन वह बालक था जिसके माँ-बाप उस समय मर गए थे जब वह मात्र नौ बरस का था। उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। उसने चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हराकर राज पहलवान बनने का गौरव प्राप्त किया था। इस कारण उसका नाम फैला
था। 5. एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी। ‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँद सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ पंजाब से पहले-पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्ठों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लैंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँद सिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था। प्रश्न (क) प्रथम पंक्ति में ‘वह’ कौन है? वह कहाँ गया और
उस पर क्या प्रभाव पडा? उत्तर – (क) ‘वह’ लुट्टन पहलवान है। वह श्यामनगर मेले में दंगल देखने गया। वहाँ पहलवानों की कुश्ती व दाँव-पेंच देखकर उसमें जोश भर गया। 6. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-‘पागल है पागल, मरा-ऐं! मरा-मरा !’’ पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपये का नोट देकर कहने लगे-‘जाओ, मेला देखकर घर जाओ!’” प्रश्न (क) शांत दर्शकों में खलबली मचने का क्या कारण था? उत्तर – (क) लुट्टन ने मेले के मशहूर पहलवान चाँद सिंह को चुनौती दी थी। चाँद सिंह को चुनौती देना तथा उससे कुश्ती लड़ना हँसी-खेल न था इसलिए शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई। 7. किंतु उसकी शिक्षा-दीक्षा, सब किए-किराए पर एक दिन पानी फिर गया। वृद्ध राजा स्वर्ग सिधार गए। नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय शिथिलता आ गई थी, राजकुमार के आते ही दूर हो गई। बहुत-से परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों की चपेटाघात में पड़ा पहलवान भी। दंगल का स्थान घोड़े की रेस ने लिया। पहलवान तथा दोनों भावी पहलवानों का दैनिक भोजन-व्यय सुनते ही राजकुमार ने कहा-“टैरिबुल!” नए मैनेजर साहब ने कहा ‘ ” पहलवान को साफ जवाब मिल गया, राज-दरबार में उसकी आवश्यकता नहीं। उसको गिड़गिड़ाने का भी मौका नहीं दिया गया। प्रश्न (क) पहलवान के किए-कराए पर पानी क्यों फिरा? उत्तर – (क) पुराने राजा ने लुट्टन को राज-पहलवान बनाया था। यहाँ पर लुट्टन पंद्रह वर्ष से अपने लड़कों को शिक्षा-दीक्षा देकर भावी पहलवान बनाना चाहता था, परंतु राजा की मृत्यु होते ही उसकी
सारी योजना फेल हो गई। नए राजा ने उसे निकाल दिया। 8. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अद्र्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्तिशून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे। प्रश्न (क) गद्यांश में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी। उत्तर – (क) गद्यांश में महामारी की विभीषिका की चर्चा की गई है। ढोलक की आवाज मन में उत्साह पैदा करती थी जिससे मनुष्य महामारी से निपटने को तैयार होता
था। FAQsपहलवान की ढोलक किसकी रचना है? हिंदी-साहित्य के लोकप्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना में हुआ था। उन्होंने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बढ़-चढ़कर भाग लिया और 1950 में नेपाली जनता को राजशाही दमन से मुक्ति दिलाने के लिए भरपूर योगदान दिया। इन्होंने पहलवान की ढोलक जैसी कई रचनाएं की थी। पहलवान की ढोलक मुख्य रूप से किसका वर्णन करती है? पहलवान की ढोलक मुख्य रूप से काला खाँ का वर्णन करती है। लुट्टन कौन था? लुट्टन वह बालक था जिसके माँ-बाप उस समय मर गए थे जब वह मात्र नौ बरस का था। उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। उसने चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हराकर राज पहलवान बनने का गौरव प्राप्त किया था। इस कारण उसका नाम फैला था। राजा ने लुट्टन को क्या कहा? राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीता रह मेरे, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” पहलवान की ढोलक का बजने का क्या समय था ? पहलवान की ढोलक बजने का समय संध्या से प्रातःकाल तक का था। लुट्टन सिंह की कीर्ति दूर-दूर तक कैसे फैल गई? लुट्टन की कीर्ति राज पहलवान बन जाने के बाद दूर-दूर तक फैल गई। राजा ने उसे दरबार में रखा। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह दृष्टि से उसने सभी नामी पहलवानों को हरा दिया। पहलवान की ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था? लिखिए। ढोलक की आवाज़ से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? उत्तर:- लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी। महामारी फैलने के बाद गांव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था? महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में बड़ा अंतर होता था। सूर्योदय के समय कलरव, हाहाकार तथा हृदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर चमक होती थी लोग एक-दूसरे को सांत्वना बँधाते रहते थे परन्तु सूर्यास्त होते ही सारा परिदृश्य बदल जाता था। लोग अपने घरों में दुबक कर बैठ जाते थे। आशा करते हैं कि आपको पहलवान की ढोलक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। यदि आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं तो आज ही हमारे Leverage Edu एक्सपर्ट्स को 1800572000 पर कॉल करें और 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें। पहलवान की ढोलक पाठ की विधा कौन सी है?पहलवान की ढोलक' कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। राजा साहब की जगह नए राजकुमार का आकर जम जाना सिर्फ़ व्यक्तिगत सत्ता-परिवर्तन नहीं, बल्कि जमीनी पुरानी व्यवस्था के पूरी तरह उलट जाने और उस पर सभ्यता के नाम पर एकदम नई व्यवस्था के आरोपित हो जाने का प्रतीक है।
पहलवान की ढोलक कहानी का संदेश क्या है?पहलवान की ढोलक फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक प्रमुख आंचलिक कहानी है। इसके माध्यम से लेखक ने नि:स्वार्थ भाव से देश-सेवा का संदेश दिया है। लुट्टन सिंह की ढोलक की आवाज़ पूरे गाँववालों में धैर्य, साहस और स्फूर्ति प्रदान करती थी। रात्रि की विभीषिका में तथा सन्नाटे को ललकार के सामने चुनौती पैदा कर देती थी।
पहलवान की ढोलक पाठ के प्रारंभ में किसका वर्णन किया गया है?उत्तर – (ख) चाँद सिंह।
पहलवान की ढोलक पाठ में कौन सी महामारी फैली थी?उत्तर:- आशय – यहाँ पर रात का मानवीकरण किया गया है गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था ऐसे में ओस की बूंदें आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी।
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