'प्राण' का अर्थ योग अनुसार उस वायु से है जो हमारे शरीर को जीवित रखती है। शरीरांतर्गत इस वायु को ही कुछ लोग प्राण कहने से जीवात्मा मानते हैं। इस वायु का मुख्य स्थान हृदय में है। Show
इस वायु के आवागमन को अच्छे से समझकर जो इसे साध लेता है वह लंबे काल तक जीवित रहने का रहस्य जान लेता है। क्योंकि वायु ही शरीर के भीतर के पदार्थ को अमृत या जहर में बदलने की क्षमता रखती है। > उपर 'प्राण' का अर्थ जाना और अब जानिए आयाम का अर्थ। आयाम के दो अर्थ है- प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार और दिशा। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब मरता है तो पूर्णत: श्वास छोड़ देता है। प्राण जिस आयाम से आते हैं उसी आयाम में चले जाते हैं।> हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थितर रहकर भी गतिशिल रहती है। ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण। वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं। उक्त में से एक भी जगह दिक्कत है तो सभी जगहें उससे प्रभावित होती है और इसी से शरीर, मन तथा चेतना भी रोग और शोक से घिर जाते हैं। मन-मस्तिष्क, चरबी-मांस, आंत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायुतंत्र और खून आदि सभी प्राणायाम से शुद्ध और पुष्ट रहते हैं। इसके काबू में रहने से मन और शरीर काबू में रहता है। 1. व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है। प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्बक कहते हैं। (वेबदुनिया) आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे शरीर की पांच वायु ही हैं जो हमें नियंत्रित करती हैं। शरीर में विभिन्न रोगों की उत्पत्ति भी इन्हीं की अनियमितता के कारण होती है। किंतु यदि इन्हें साध लिया जाए तो चिकित्सक की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी। ऐसे अद्भुत और महत्वपूर्ण विषय को लेकर आज हम चर्चा करेंगे। इस लेख में आप आएंगे
वायु के प्रकार
शरीर की पांच वायु के निवास स्थान कहाँ हैं।
शरीर की पांच वायु के क्या कार्य हैं1- व्यान वायु के कार्य – हमारेेे शरीर में 72000 नाडियाँ हैं । और व्यान वायु इन समस्त नाड़ियों में विचरण करती है। जिससे रक्त का प्रवाह और नाड़ी संचरण में नियंत्रण रखती है। यह स्नायु संबंधी समस्त गतिविधियों को प्रभावित करती है। 2-समान वायु के कार्य हमारे शरीर में 206 हड्डियां पाई जाती हैं। हड्डियों में स्थित होने के कारण शरीर की समस्त हड्डियों का आपस में समन्वय बनाकर रखती है। जिससे हमारे शरीर में संतुलन बना रहता है। 3- अपान वायु के कार्य यह वायु शरीर में नाभि से लेकर पैरों के तलवे तक के निचले भाग को प्रभावित करती है। अतः समस्त निचले अंगों को सुव्यवस्थित रखने का कार्य अपान वायु ही करती है। 4- उदान वायु के कार्य यह हृदय से लेकर सिर और मस्तिष्क तक को प्रभावित करती है। जिसमें हृदय, मस्तिष्क तथा सिर से संबंधित सभी अंगो को व्यवस्थित रखने का कार्य करती है। 5- प्राणवायु के कार्य नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह शरीर में प्राण का कार्य करती है। और खून के साथ पूरे शरीर में इसका संचरण होता रहता है। जो कि हमें जीवित रखता है। कौन सी वायु से कौन से रोग होते हैंव्यान वायु से रोग शरीर में व्यान वायु की कमी हो जाने से रक्त के प्रवाह में कमी आ जाती है। नाड़ी संचरण में भी खराबी आती है और स्नायु संबंधी रोग उत्पन्न होते हैं और स्नायु संबंधी गति हीनता होने लगती है। समान वायु से रोग समान वायु के कुपित होने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। तथा इनमें संतुलन नहीं रह पाता। और यह टेढ़ी-मेढ़ी होने लगती है। यह दो चक्र अनाहत व मणिपुर चक्र को जोड़ती है। अपान वायु से रोग यह वायु शरीर के रस में होने के कारण आंतों गुर्दे और मूत्र मार्ग तथा टांगों को प्रभावित करती है। जिससे संबंधित रोग उत्पन्न होने लगते हैं उदान वायु से रोग यह वायु ऊपर की ओर ले जाने वाली है तथा इससे स्नायु तंत्र से संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं । यह कुपित होने पर हृदय, सिर और मस्तिष्क से संबंधित सभी रोगों को जन्म देती है। प्राण वायु से रोग प्राणवायु से खून के माध्यम से समस्त शरीर में विकृति पैदा करती है। शरीर की पांच वायु से कैसे करें रोगों का उपचार!शरीर की पांच वायु से उत्पन्न रोगों के लिए प्राणायाम के विभिन्न प्रकार आयुर्वेद में बताए गए हैं। योगनिद्रा: फायदे व क्रियाविधि! कैसे करें स्नान ? जानिए स्नान के प्रकार व फायदे! व्यान वायु से उत्पन्न रोगों का उपचार क्या है? जिनमें व्यान वायु को नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए प्राणायाम की प्रक्रिया कुंभक क्रिया का प्रयोग करना चाहिए। क्या है कुंभक क्रिया! प्राणायाम में श्वास को खींचते हुए हृदय में कुछ देर के लिए रोका जाता है। इस श्वास को रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक कहते हैं। इसी प्रकार श्वास को बाहर छोड़ते हुए पुनः श्वास को बाहर ही रोक लिया जाता है इसे बाह्य कुंभक कहते हैं। प्राणायाम की इस संपूर्ण क्रिया को पूरक-कुंभक-रेचक कहते हैं। इस श्वास रोकने की प्रक्रिया (कुंभक) को चार-पांच बार प्रतिदिन दोहराने से व्यान वायु को व्यवस्थित किया जा सकता है। इस प्रकार व्यान वायु से संबंधित रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। कैसे करें सामान वायु से उत्पन्न रोगों का उपचार? शरीर की पांच वायु में से एक समान वायु के कुपित होने से उत्पन्न रोगों को क्रिया योग द्वारा दूर किया जा सकता है। क्रिया योग किसे कहते हैं?क्रिया योग का अर्थ है क्रियाओं का आपस में योग करना अर्थात शरीर की समस्त क्रियाओं को एकाग्र करना। यह एक समाधि की अवस्था कहलाती है जिसमें हमारा मन समस्त क्रियाओं को भूलकर एकाग्र होता है। जब समग्रता के साथ मन का योग होता है इसी को क्रिया योग कहते हैं। इसके द्वारा समान वायु को साध कर संबंधित रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। अपान वायु से उत्पन्न रोगों का उपचार क्या है? शरीर की पांच वायु में से अपान वायु के कुपित होने से उत्पन्न रोगों को दूर करने के लिए आयुर्वेद में योगिक क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। जैसे नौली अग्निसार क्रिया अश्विनी मुद्रा और मूलबंध विधि के द्वारा अपान वायु को मजबूत किया जाता है। एवं इससे संबंधित रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। नौलि व अग्निसार क्रिया किसे कहते हैं?एक क्रिया है जिसमें पेट को हिलाते हुए एक क्रिया की जाती है। यह गतिविधि पेट से संबंधित बीमारियों और आंतों की समस्याओं के उपचार में मदद करती है। अग्निसार व नौलि क्रिया सीखने के लिए नीचे लिंक पर जाएं।👇 https://youtu.be/sY5PUHfJLGk अश्विनी मुद्रा किसे कहते हैं। जानने के लिए नीचे दिये लिंक पर देखें👇 https://youtu.be/biDC6ogKjHg उदान वायु से संबंधित रोगों के उपचार क्या हैयह वायु शरीर की पांच वायु में से एक है। इसके कुपित हो जाने पर जो हृदय मस्तिष्क और सिर से संबंधित रोग होते हैं। उनके लिए प्राणायाम के बारे में बताया गया है। इस वायु को उज्जाई भ्रामरी और विपरीत करणी मुद्रा के अभ्यास से सक्रिय किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम नाड़ीयों और विचारों को शांत करता है। तथा एकाग्रता को बढ़ाकर मन को आत्मा के संपर्क में ले जाता है। इसकेेे सतत अभ्यास से उदान वायु से जनित रोगों को दूर किया जा सकता है। भ्रामरी और उज्जायी प्राणायाम कैसे करते हैं। सीखने के लिए देखें नीचे दिए लिंक पर👇 https://youtu.be/2ayaKobmC1M किस प्रकार शरीर की पांच वायु के द्वारा शरीर को संचालित किया जाता है। और इन्हीं पांच वायु के कुपित होने के कारण शरीर में विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। शरीर में उत्पन्न समस्त रोगों का निदान आयुर्वेद में विभिन्न प्राणायाम और योगिक क्रियाओं के आधार पर बड़े ही आसान तरीके से बताया गया है। जीवन शैली को सरल और अनुशासित बनाते हुए हम स्वयं के द्वारा ही अपने शरीर को बिना किसी चिकित्सक के स्वस्थ और निरोगी रख सकते हैं। शरीर की पांच वायु से संबंधित समस्त जानकारी आपको इस लिंक के जरिए देने का प्रयास किया गया है। यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों में भी इसे शेयर करें। ताकि सभी रोग मुक्त एवं सुखी हो। ऐसी ही अनेक जानकारियों के लिए अवश्य देखें👇 http://Indiantreasure.in नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : 5 प्राण कौन कौन से हैं?आयुर्वेद, तन्त्र इत्यादि में पाँच प्रकार के प्राण बताये गये हैं:. प्राण वायु कितने प्रकार के होते हैं?ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण। वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है।
प्राण वायु कौन है?प्राण वायु
यह वायु निरन्तर मुख में रहती है और इस प्रकार यह प्राणों को धारण करती है, जीवन प्रदान करती है और जीव को जीवित रखती है। इसी वायु की सहायता से खाया पिया अन्दर जाता है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी, श्वांस और इन अंगों से संबंधित विकार होते हैं।
पांच वायु क्या हैं?वायु पांच प्रकार की होती हैं। तथा इनका हमारे शरीर के संपूर्ण अंगों पर पूरा पूरा नियंत्रण होता है। इनके नाम इस प्रकार हैं व्यान वायु, समान वायु, अपान वायु, उदान वायु और प्राणवायु। लंबे समय तक जीवित रहने के लिए शरीर में इन समस्त पांचो वायु का सुव्यवस्थित होना अति आवश्यक है।
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