ओस वातावरण में फैले हुए वाष्प का वह रूप है जो जमकर जलबिंदु अथवा छोटी-छोटी बूँदों के रूप में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर गिरता है। ओस बनने की प्रक्रिया का संघनन से सीधा जुड़ाव है। वातावरण में शत-प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता होने पर वायु संतृप्त हो जाती है और संघनन आरंभ हो जाता है। जिस तापमान पर हवा संतृप्त होती है, उसे ओसांक या ओस बिंदु कहते हैं। संतृप्तावस्था के बाद वायु को ठंडा करने पर संघनन प्रारंभ हो जाता है। शत-प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता के बाद अतिरिक्त आर्द्रता का संघनन हो जाता है। यदि तापमान 32ॱ फारेनहाइट के ऊपर है तो तरल रूप में ओस, कुहरा, बादल आदि प्रकट होते हैं।[1] Show
सन्दर्भ[संपादित करें]
भूमि पर या भूमि के निकट वस्तुओं पर जमा हुई पानी की बूंद जो कि आस-पास की स्वच्छ वायु में निहित जलवाष्प के संघनन द्वारा उतपन्न होती है । Deposit of water drops on objects at or near the ground, produced by the condensation of water vapor from the surrounding clear air. जब रात्रि में पृथ्वी से ताप के परावर्तन के कारण वायुमंडल की निचली परत ओसांक (dew point) से भी नीचे तक ठंडी हो जाती है, वायु में विद्यमान जलवाष्प संघनित होकर बूँद में बदल जाती है और भूतल के ऊपर अथवा भूतल के समीप स्थित वस्तुओं जैसे घास या अन्य वनस्पतियों के ऊपर बूंदों का जमाव हो जाता है जिसे ओस कहते हैं। भूतल के समीप वायुंमंडल में जलवाष्प की अधिकता तथा तापक्रम की न्यूनता जितनी ही अधिक होती है, उतनी ही अधिक ओस पड़ती है। ओस के निर्माण के लिए वायु का शांत होना आवश्यक है जिससे वह भूमि के संपर्क में अधिक समय तक रहकर ओसांक तक ठंडी हो सके। दिन में प्राप्त सूर्यातप वाष्पीकरण के लिए उपयुक्त होता है जिससे वायु में जलवाष्प की मात्रा बढ़ जाती है। इसके विपरीत रात में आकाश मेघरहित होने पर भूतल से ताप के तीव्र परावर्तन से तापमान अधिक नीचा हो जाता है। इस प्रकार शांत मौसम, वायु में उपस्थित आर्द्रता तथा साफ आकाश ओस की उत्पत्ति के लिए सर्वोत्तम दशाएं प्रदान करते हैं। Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 संघनन एवं वर्षाRBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्नRBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 अति लघूत्तात्मक प्रश्नप्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 लघुत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 11.
1. निरपेक्ष आर्द्रता – इसे वास्तविक आर्द्रता भी कहते हैं। वायु के निश्चित आयतन में एक निश्चित तापमान पर जितनी जलवाष्प की मात्रा पाई जाती है, वही वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता
कहलाती है। प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14.
1. पक्षाभ मेघ – इस प्रकार के बादल 8000 मीटर से 12000 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं। प्रश्न 15. RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्नप्रश्न 16.
1. अक्षांश – किसी भी क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति उस क्षेत्र में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी होती है। भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर वर्षा के वितरण में कमी आती जाती है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र अधिक ताप प्राप्ति के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं इसके विपरीत ध्रुवीय क्षेत्रों में ताप की कम प्राप्ति के कारण वर्षा बहुत कम होती है। 2. प्रचलित पवनें – किसी क्षेत्र में मिलने वाली पवनों के संचरण की स्थिति वर्षा का नियंत्रक होती है। वायु जितनी अधिक उष्ण व शुष्क होती है उसकी नमी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है और यदि वायु कम शुष्क होती है तो यह उसकी नमी धारण करने की प्रवृत्ति में अवरोधक होता है। 3. जल धाराएँ – विश्व में मिलने वाली ठण्डी व गर्म जल धाराओं की स्थिति के द्वारा वर्षण को नियंत्रित किया जाता है। यदि . हवाएँ गर्म जल धाराओं के ऊपर से गुजरती हैं तो उनके कारण अधिक शुष्क हो जाती हैं किन्तु नमी भी अधिक धारण करती हैं। इसके विपरीत ठण्डी जल धाराएँ नमी धारण करने की हवाओं की क्षमता को घटा देती हैं। 4. समुद्र से दूरी – यह कारक वर्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है प्रायः हवाएँ समुद्रों से नमी धारण करती हैं तथा स्थलीय भाग में वर्षण करती हैं। समुद्र से दूरी बढ़ने के साथ-साथ वर्षण से हवाओं में नमी की मात्रा निरन्तर कम होती रहती है। जो भाग समुद्र से जितना दूर होता है.प्रायः वह उतनी ही कम वर्षा प्राप्त करता है जबकि समीपवर्ती भाग अधिक वर्षा प्राप्त करता है। 5. जल व स्थल की स्थिति – जले व स्थल की स्थिति के अनुसार पवनों का स्वरूप निर्धारित होता है। इन दोनों की स्थिति के अनुसार ही जलीय व थलीय पवनें चलती हैं। जिन क्षेत्रों में जलीय पवनें, चलती हैं वहाँ वर्षा की प्राप्ति अधिक होती है जबकि स्थलीय पवनें प्राय: शुष्क होती हैं। 6. पर्वतों की स्थिति व दिशा-पर्वतों की स्थिति वर्षा को नियंत्रित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि पर्वतों की स्थिति नमी युक्त पवनों में अवरोध उत्पन्न करती है तो वर्षा की प्राप्ति अधिक होती है जबकि पर्वतों की स्थिति पवनों के समानान्तर होने पर अवरोध उत्पन्न न हो पाने के कारण वर्षा की प्राप्ति कम होती है। 7. ऊँचाई – समुद्रतल से बढ़ती ऊँचाई के अनुसार तापमान की स्थिति कम होती रहती है। तापमान की इस स्थिति से भी वर्षा का स्वरूप नियंत्रित होता है। प्रश्न 17. (i) ओस दिन के समय पृथ्वी गर्म हो जाती है। तथा रात्रि में ठण्डी, अत: कभी-कभी पृथ्वी का तल इतना अधिक ठण्डा हो जाता है कि उससे छूने वाली वायु का तापमान ओसांक से नीचे गिर जाता है। इससे वायु में उपस्थित जलवाष्प का संघनन हो जाता है तथा वह छोटी-छोटी बूंदों के रूप में पौधों की पत्तियों तथा अन्य प्रकार के तलों पर जम जाती है। इसे ओस कहते हैं। ओस बनने के लिए आवश्यक है कि (अ) वायु में जलवाष्प हो और साथ ही (ब) धरातल पर तापमान इतना कम हो जाए कि वह वायु को ठण्डा करके वाष्प को घनीभूत कर सके। (ii) पाला – जब वायु में उपस्थित जलवाष्प घनीभूत हो रहा हो और वायु का तापमान 0°C हो या सर्वहन इससे कम हो तो जलवाष्प ओस का रूप न लेकर ठोस (हिमकण) का रूप लेने लगता है। यही पाला है। पाला बनने के लिए आवश्यक है। कि वायु का तापमान शीघ्रता से व लम्बे समय तक गिरता रहे तथा आकाश मेघ रहित हो व
वायु में जलवाष्प रहे तथा वायु का तापमान हिमांक से नीचे आ जाए। (iii) कोहरा – इसकी उत्पत्ति धरातल के निकट जर जलवाष्प के संघनन होने से होती है। कोहरा वायुमण्डल की पारदर्शकता को कम कर देता है। धरातल या वायुमण्डल की दृश्यता जब एक किलोमीटर से कम हो जाती है तो संघनित जलवाष्प के इस रूप को ‘कोहरा कहते हैं। कोहरे के लिए आवश्यक है कि तापमान का ओसांक से नीचे गिरना तथा मन्द गति से पवन का प्रवाह हो। दृश्यता के आधार पर कोहरा निम्न प्रकार का होता है-हल्का, साधारण, सघन तथा अति सघन। कोहरे की दृश्यता का मापन ‘ट्रांसमिसोमीटर’ यंत्र द्वारा किया जाता है। दृश्यता अत्यधिक कम होने की दशा को ‘कुहासा’ कहा जाता है। (iv) बादल/मेघ – वायुमण्डल में काफी ऊँचाई पर खुली स्वच्छन्द हवा में जलवाष्प के संघनन से बने कणों या हिमकणों की विशाल राशि को बादल कहा जाता है। बादल अधिकतम 12000 मीटर की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। बादल का निर्माण पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर होता है इसलिए ये अलग-अलग आकार के होते हैं। अत: इनकी ऊँचाई, घनत्व, विस्तार तथा पारदर्शिता के आधार पर बादलों को निम्न रूपों में विभाजित किया गया है-
प्रश्न 18.
(i) संवहनीय वर्षा – यह वर्षा मुख्यत: विषुवत रेखीय प्रदेशों में नियमित रूप से दोपहर बाद होती है, क्योंकि वहाँ अधिक गर्मी पड़ने के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है और साथ ही समुद्र का जल तेजी से वाष्प के
रूप में परिवर्तित होकर ऊपर जाने लगता है, यह क्रिया ‘संवहन’ कहलाती है। इस संवहन की क्रिया से ही संवहनीय वर्षा होती है। (ii) पर्वतीय वर्षा – इसे धरातलीय वर्षा भी कहा जा सकता है। पर्वतीय वर्षा
विश्व में सर्वाधिक होती है, जिसमें वाष्प से भरी वायु को पर्वत के सहारे ऊपर उठकर ठण्डा होना पड़ता है। ठण्डी होकर वायु घनीभूत हो जाती है और वर्षा होने लगती है। यह वायु पर्वतों की रुकावट के कारण ऊपर उठती है और ठण्डी होकर वर्षा करती है। पर्वतीय वर्षा में पर्वतों पर वायु के रुख की ओर अधिक वर्षा होती है लेकिन दूसरी ओर वर्षा की बहुत कमी हो जाती है। अतः ये विपरीत भाग वृष्टिछाया प्रदेश कहलाते हैं। (iii) चक्रवातीय वर्षा – यह वर्षा शीत प्रधान देशों में होती है। इसमें चक्रवातों से वर्षा होती है। चक्रवातों में वायु केन्द्र की ओर RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न प्रश्न 1.
उत्तर: प्रश्न 2.
उत्तर: RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 अतिलघूतरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न
6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9.
प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न 14.
प्रश्न 15.
प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22.
प्रश्न 23. प्रश्न 24. RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 लघूत्तात्मक प्रश्न Type Iप्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 लघुतात्मक प्रश्न Type IIप्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्नप्रश्न 1. बादलों के प्रकार – वायुमण्डल में मिलने वाली बादलों की स्थिति, उनकी ऊँचाई, आकार, घनत्व व पारदर्शिता के आधार पर बादलों को निम्न भागों में बाँटा गया है-
(i) पक्षाभ मेघ – ये सर्वाधिक ऊँचाई (8000 से पक्षाभ कपासी मेघ , 12000 मीटर) पर पाये जाते हैं। इनसे मौसम प्रायः साफ व आकाश स्वच्छ रहता है तथा वर्षा नहीं होती है। ये सफेद चादर की तरह सम्पूर्ण आकाश में फैले रहते हैं। इनके आगमन पर सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामण्डल बन जाते हैं, जो चक्रवात आने के सूचक हैं। (ii) कपासी मेघ – ये अत्यधिक विस्तृत तथा गहरे काले रंग के सघन एवं भारी बादल होते हैं। इन बादलों से भारी वर्षा, ओला तथा तड़ित झंझा आदि आते हैं। ये रुई के समान दिखते हैं तथा इनकी ऊँचाई 4000 से 7000 मीटर तक होती है। इनकी आकृति गोभी के फूल के समान होती है। (iii) स्तरी मेघ – ये बादल कोहरे के समान होते हैं जो हैं उच्च कपासी मेघ सतह के सबसे निकट पाये जाते हैं। इनकी रचना कई समान पश्तो से होती है। इनका निर्माण दो 2000 मीटर विपरी, स्वभाव वाली हवाओं के मिलने से प्रायः शीतोष्ण कटिबन्ध में शीत ऋतु में होता है। इनका कपासी वर्षा मेघ रंग हल्का भूरा कभी गुलाबी व बैंगनी रंग का होता हैं। इनके छा जाने से आकाश धुंधला लगता है। इनसे बूंदा-बाँदी की सम्भावना बनी रहती है। (iv) वर्षा मेध – ये
बादल घने एवं काले होते हैं। इनकी सघनता के कारण अन्धकार तक छा जाता | Amer है तथा भयंकर वर्षा होती है। ये सबसे कम ऊँचाई प्रश्न 2.
1. भूमध्य रेखीय अधिक वर्षा पेटी – इस पेटी का विस्तार विषुवत रेखा के दोनों ओर 10° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इसमें दक्षिणी अमेरिका की अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, मध्य अमेरिका का पवनमुखी तटवर्ती क्षेत्र, न्यूगिनी, फिलीपाइन्स एवम् मेडागास्कर के पूर्वी तटीय क्षेत्र मुख्य हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 175 सेमी से 200 सेमी तक होती है। वर्षा मुख्य रूप से संवहनीय प्रकार की होती है। यहाँ प्रतिदिन मेघ गर्जन तथा विद्युत चमक के साथ दोपहर बाद वर्षा होती है। 2. व्यापारिक पवनों की वर्षा पेटी – इस पेटी का विस्तार विषुवत रेखा के दोनों ओर 10° से 20° अक्षांशों के बीच पाया जाता है। यहाँ व्यापारिक हवाओं द्वारा महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा होती है। मानसूनी वर्षा भी इसी पेटी में होती है। 3. उपोष्ण कटिबंधीय वर्षा पेटी – यह पेटी 20 से 30° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्ध में स्थित है। यह उच्च दाब की पेटी हैं, जिसमें हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती हैं। अतः प्रतिचक्रवातीय दशाएँ पाई जाती हैं। मिस्र, सहारा, थार का मरुस्थल इसी पेटी में स्थित हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेमी से भी कम होता है। 4. भूमध्य सागरीय पेटी – इसका विस्तार 30° से 40° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्ध में पाया जाता है। इसमें कैलीफोर्निया, मध्य चिली, दक्षिणी अफ्रीका को दक्षिणी-पश्चिमी भाग तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का दक्षिणी-पश्चिमी भाग आता है। यहाँ सर्दियों में पछुआ हवाओं से वर्षा होती है। वर्षा साधारण तथा चक्रवातीय होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 10) सेमी तक रहता है। शुष्क ग्रीष्म ऋतु इस पेटी की विशेषता है क्योंकि इस समय यह पेटी शुष्क व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में रहती है। 5. मध्य अक्षांशीय अधिक वर्षा की पेटी – विषुवत रेखा के दोनों ओर 40° से 60° अक्षांशों के मध्य यह पेटी पाई जाती है। यहाँ महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा होती है। जलीय भाग की अधिकता के कारण उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में वर्षा अधिक होती है। यहाँ ध्रुवीय तथा पछुआ हवाओं के मिलने से चक्रवातीय वर्षा होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 125 सेमी तक होता है। 6. ध्रुवीय निम्न वर्षा पेटी-इसका विस्तार 60° अक्षांश से ध्रुवों तक दोनों गोलार्थों में है। ध्रुवों की ओर वर्षा की
मात्रा घटती जाती है। यहाँ अधिकांश वर्धा हिमपात के रूप में होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेमी तक होता है। RBSE Solutions for Class 11 Geographyओस का निर्माण कैसे होता है?ओस क्या है जैसा कि हम जानते हैं कि वायु मंडल में जल वाष्प मौजूद होती हैं पृथ्वी धरातल रात्री में विकिरण द्वारा ऊष्मा त्याग कर शीतलीकरण प्रक्रिया संपन्न करती है। तब इन शीतलीकृत तलों पर संचित जल की बूंदों को ओस कहते हंै। ओस वायु में उपस्थित जल वाष्प के धरातल पर संघनित (वाष्प का द्रव बनना) होने से उत्पन्न होती है।
ओस कब नहीं बनती है?इसका कारण यह है कि आसमान साफ होने पर ध्रती से पानी का वाष्पीकरण अध्कि होता है और पेड़ पौधे भी रात को "ंडे हो जाते हैं। जिससे बहकर गुजरने वाली नम हवा जलवाष्प के रूप में इनमें टंग जाती है। लेकिन जब बादल छाये होते हैं या बारिश हुई होती है तो ध्रती से पानी का वाष्पीकरण नहीं होता इसलिए ओस भी नहीं बनती।
ओस का बनना कौन सा परिवर्तन है?ओस वातावरण में फैले हुए वाष्प का वह रूप है जो जमकर जलबिंदु अथवा छोटी-छोटी बूँदों के रूप में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर गिरता है। ओस बनने की प्रक्रिया का संघनन से सीधा जुड़ाव है। वातावरण में शत-प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता होने पर वायु संतृप्त हो जाती है और संघनन आरंभ हो जाता है।
ओस पड़ने के लिये कौन सी स्थिति अनुकूल होती है?ओस के निर्माण के लिए वायु का शांत होना आवश्यक है जिससे वह भूमि के संपर्क में अधिक समय तक रहकर ओसांक तक ठंडी हो सके। दिन में प्राप्त सूर्यातप वाष्पीकरण के लिए उपयुक्त होता है जिससे वायु में जलवाष्प की मात्रा बढ़ जाती है।
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