मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो का अर्थ - maiya moree main nahin maakhan khaayo ka arth

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
'सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥

सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

श्रीकृष्ण यशोदा से बोले, “मैया! मैंने मक्खन नहीं खाया है। ये सब सखा मिलकर मेरी हँसी कराने पर उतारू हैं, इन्होंने उसे मेरे ही मुख में लिपटा दिया। तू ही देख! बर्तन तो छींके पर रखकर ऊँचाई पर लटकाए हुए थे। मैं कहता हूँ कि अपने नन्हें हाथों से मैंने उन्हें कैसे पा लिया?” यों कहकर मुख में लगा दही मोहन ने पोंछ डाला और चतुरता से मक्खन भरा दोना पीछे छिपा दिया। माता यशोदा ने पुत्र की बात सुनकर छड़ी रख दी, और मुस्कराकर श्रीकृष्ण को गले लगा लिया। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने अपने बाल-विनोद के आनंद से माता के मन को मोहित कर लिया। इस बाल-क्रीड़ा और माता से डरने में उन्होंने भक्ति का प्रताप दिखाया। माता यशोदा को जो यह श्रीकृष्ण के बाल-विनोद का आनंद मिल रहा है, उसे तो शंकर जी और ब्रह्या जी भी नहीं पा सके।

स्रोत :

  • पुस्तक : सूर दोहावली (पृष्ठ 128)
  • रचनाकार : आबिद रिज़वी
  • प्रकाशन : रजत प्रकाशन

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सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हो।चार पहर भटकने के बाद साँझ होने पर वापस आता हूँ।मैं छोटा बालक हूँ मेरी बाहें छोटी हैं, मैं छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ? ये सब सखा मेरे से बैर रखते हैं, इन्होंने मक्खन जबऱन मेरे मुख में लिपटा दिया। माँ तू मन की बड़ी भोली है, इनकी बातों में आ गई। तेरे दिल में जरूर कोई भेद है,जो मुझे पराया समझ कर मुझ पर संदेह कर रही हो। ये ले, अपनी लाठी और कम्बल ले ले, तूने मुझे बहुत नाच नचा लिया है। सूरदास

अलंकार का अर्थ है-आभूषण। अर्थात् सुंदरता बढ़ाने के लिए प्रयुक्त होने वाले वे साधन जो सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं। कविगण कविता रूपी कामिनी की शोभा बढ़ाने हेतु अलंकार नामक साधन का प्रयोग करते हैं। इसीलिए कहा गया है-‘अलंकरोति इति अलंकार।’

परिभाषा :

जिन गुण धर्मों द्वारा काव्य की शोभा बढ़ाई जाती है, उन्हें अलंकार कहते हैं।

अलंकार के भेद –
काव्य में कभी अलग-अलग शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य में वृद्धि की जाती है तो कभी अर्थ में चमत्कार पैदा करके। इस आधार पर अलंकार के दो भेद होते हैं –
(अ) शब्दालंकार
(ब) अर्थालंकार

(अ) शब्दालंकार –
जब काव्य में शब्दों के माध्यम से काव्य सौंदर्य में वृद्धि की जाती है, तब उसे शब्दालंकार कहते हैं। इस अलंकार में एक बात रखने वाली यह है कि शब्दालंकार में शब्द विशेष के कारण सौंदर्य उत्पन्न होता है। उस शब्द विशेष का पर्यायवाची रखने से काव्य सौंदर्य समाप्त हो जाता है; जैसे –
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
यहाँ कनक के स्थान पर उसका पर्यायवाची ‘गेहूँ’ या ‘धतूरा’ रख देने पर काव्य सौंदर्य समाप्त हो जाता है।

शब्दालंकार के भेद:

शब्दालंकार के तीन भेद हैं –

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्लेष अलंकार

1. अनुप्रास अलंकार- जब काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है अर्थात् कोई वर्ण एक से अधिक बार
आता है तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं; जैसे –
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

  • रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम। (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में। (‘च’ वर्ण की आवृत्ति)
  • मुदित महीपति मंदिर आए। (‘म’ वर्ण की आवृत्ति)
  • मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो। (‘म’ वर्ण की आवृत्ति)
  • सठ सुधरहिं सत संगति पाई। (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
  • कालिंदी कूल कदंब की डारन । (‘क’ वर्ण की आवृत्ति)

2. यमक अलंकार-जब काव्य में कोई शब्द एक से अधिक बार आए और उनके अर्थ अलग-अलग हों तो उसे यमक अलंकार होता है; जैसे- तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है।
उपर्युक्त पंक्ति में बेर शब्द दो बार आया परंतु इनके अर्थ हैं – समय, एक प्रकार का फल। इस तरह यहाँ यमक अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

  • कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
    या खाए बौराए नर, वा पाए बौराय।।
    यहाँ कनक शब्द के अर्थ हैं – सोना और धतूरा। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
  • काली घटा का घमंड घटा, नभ तारक मंडलवृंद खिले।
    यहाँ एक घटा का अर्थ है काली घटाएँ और दूसरी घटा का अर्थ है – कम होना।
  • है कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीन्ही
    यहाँ एक बेनी का आशय-कवि का नाम और दूसरे बेनी का अर्थ बाला की चोटी है। अत: यमक अलंकार है।
  • रती-रती सोभा सब रति के शरीर की।
    यहाँ रती का अर्थ है – तनिक-तनिक अर्थात् सारी और रति का अर्थ कामदेव की पत्नी है। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
  • नगन जड़ाती थी वे नगन जड़ाती है।
    यहाँ नगन का अर्थ है – वस्त्रों के बिना, नग्न और दूसरे का अर्थ है हीरा-मोती आदि रत्न।

3. श्लेष अलंकार- श्लेष का अर्थ है- चिपका हुआ। अर्थात् एक शब्द के अनेक अर्थ चिपके होते हैं। जब काव्य में कोई शब्द एक बार आए और उसके एक से अधिक अर्थ प्रकट हो, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे –

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।।

यहाँ दूसरी पंक्ति में पानी शब्द एक बार आया है परंतु उसके अर्थ अलग-अलग प्रसंग में अलग-अलग हैं –

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो का अर्थ - maiya moree main nahin maakhan khaayo ka arth

अतः यहाँ श्लेष अलंकार है

अन्य उदाहरण –

1. मधुबन की छाती को देखो, सूखी इसकी कितनी कलियाँ।
यहाँ कलियाँ का अर्थ है

  • फूल खिलने से पूर्व की अवस्था
  • यौवन आने से पहले की अवस्था

2. चरन धरत चिंता करत चितवत चारों ओर।
सुबरन को खोजत, फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर।

3. यहाँ सुबरन शब्द के एक से अधिक अर्थ हैं
कवि के संदर्भ में इसका अर्थ सुंदर वर्ण (शब्द), व्यभिचारी के संदर्भ में सुंदर रूप रंग और चोर के संदर्भ में इसका अर्थ सोना है।

4. मंगन को देख पट देत बार-बार है।
यहाँ पर शब्द के दो अर्थ है- वस्त्र, दरवाज़ा।

5. मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे श्याम हरित दुति होय।।
यहाँ हरित शब्द के अर्थ हैं- हर्षित (प्रसन्न होना) और हरे रंग का होना।

(ब) अर्थालंकार
अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करने वाले अलंकार अर्थालंकार कहलाते हैं। इस अलंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य के सौंदर्य में वृद्धि की जाती है।
पाठ्यक्रम में अर्थालंकार के पाँच भेद निर्धारित हैं। यहाँ उन्हीं भेदों का अध्ययन किया जाएगा।

अर्थालंकार के भेद :

अर्थालंकर के पाँच भेद हैं –

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. अतिशयोक्ति अलंकार
  5. मानवीकरण अलंकार

1. उपमा अलंकार- जब काव्य में किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना किसी अत्यंत प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से की जाती है तो
उसे उपमा अलंकार कहते हैं; जैसे-पीपर पात सरिस मन डोला।

यहाँ मन के डोलने की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है।
उपमा अलंकार के अंग-इस अलंकार के चार अंग होते हैं –

  1. उपमेय-जिसकी उपमा दी जाय। उपर्युक्त पंक्ति में मन उपमेय है।
  2. उपमान-जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमा दी जाती है।
  3. समान धर्म-उपमेय-उपमान की वह विशेषता जो दोनों में एक समान है।
    उपर्युक्त उदाहरण में ‘डोलना’ समान धर्म है।
  4. वाचक शब्द-वे शब्द जो उपमेय और उपमान की समानता प्रकट करते हैं।
    उपर्युक्त उदाहरण में ‘सरिस’ वाचक शब्द है।
    सा, सम, सी, सरिस, इव, समाना आदि कुछ अन्यवाचक शब्द है।

अन्य उदाहरण –

1. मुख मयंक सम मंजु मनोहर।
उपमेय – मुख
उपमान – मयंक
साधारण धर्म – मंजु मनोहर
वाचक शब्द – सम।

2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची हुई राख की ढेरी थी।
उपमेय – बच्ची
उपमान – फूल
साधारण धर्म – कोमल
वाचक शब्द – सी

3. निर्मल तेरा नीर अमृत-सम उत्तम है।
उपमेय – नीर
उपमान – अमृत
साधरणधर्म – उत्तम
वाचक शब्द – सम

4. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
उपमेय – समय
उपमान – शिला
साधरण धर्म – जम (ठहर) जाना
वाचक शब्द – सा

5. उषा सुनहले तीर बरसती जयलक्ष्मी-सी उदित हुई।
उपमेय – उषा
उपमान – जयलक्ष्मी
साधारणधर्म – उदित होना
वाचक शब्द – सी

6. बंदउँ कोमल कमल से जग जननी के पाँव।
उपमेय – जगजननी के पैर
उपमान – कमल
साधारण धर्म – कोमल होना
वाचक शब्द – से

2. रूपक अलंकार-जब रूप-गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय पर उपमान का भेदरहित आरोप होता है तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं।
रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में भिन्नता नहीं रह जाती है; जैसे-चरण कमल बंदी हरि राइ।
यहाँ हरि के चरणों (उपमेय) में कमल(उपमान) का आरोप है। अत: रूपक अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

  • मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता।
    मुनि के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप।
  • भजमन चरण कँवल अविनाशी।
    ईश्वर के चरणों (उपमेय) पर कँवल (कमल) उपमान का आरोप।
  • बंद नहीं, अब भी चलते हैं नियति नटी के क्रियाकलाप।
    प्रकृति के कार्य व्यवहार (उपमेय) पर नियति नटी (उपमान) का अरोप।
  • सिंधु-बिहंग तरंग-पंख को फड़काकर प्रतिक्षण में।
    सिंधु (उपमेय) पर विहंग (उपमान) का तथा तरंग (उपमेय) पर पंख (उपमान) का आरोप।
  • अंबर पनघट में डुबो तारा-घट ऊषा नागरी।
    अंबर उपमेय) पर पनघट (उपमान) का तथा तारा (उपमेय) पर घट (उपमान) का आरोप।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार-जब उपमेय में गुण-धर्म की समानता के कारण उपमान की संभावना कर ली जाए, तो उसे उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं; जैसे –

कहती हुई यूँ उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।।

यहाँ उत्तरा के जल (आँसू) भरे नयनों (उपमेय) में हिमकणों से परिपूर्ण कमल (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है। अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान-मनहुँ, मानो, जानो, जनहुँ, ज्यों, जनु आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।

अन्य उदाहरण –

  • धाए धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी।
    यहाँ राम के रूप-सौंदर्य (उपमेय) में निधि (उपमान) की संभावना।
  • दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई।
    बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।

यहाँ मेंढकों की आवाज़ (उपमेय) में ब्रह्मचारी समुदाय द्वारा वेद पढ़ने की संभावना प्रकट की गई है।

  • देखि रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निजनिधि पहिचाने।।
    यहाँ राम के रूप सौंदर्य (उपमेय) में निधियाँ (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है।
  • अति कटु वचन कहत कैकेयी। मानहु लोन जरे पर देई ।
    यहाँ कटुवचन से उत्पन्न पीड़ा (उपमेय) में जलने पर नमक छिड़कने से हुए कष्ट की संभावना प्रकट की गई है।
  • चमचमात चंचल नयन, बिच घूघट पर झीन।
    मानहँ सुरसरिता विमल, जल उछरत जुगमीन।।
    यहाँ घूघट के झीने परों से ढके दोनों नयनों (उपमेय) में गंगा जी में उछलती युगलमीन (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है।

4. अतिशयोक्ति अलंकार – जहाँ किसी व्यक्ति, वस्तु आदि को गुण, रूप सौंदर्य आदि का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए कि जिस पर विश्वास करना कठिन हो, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसे –
एक दिन राम पतंग उड़ाई। देवलोक में पहुँची जाई।।

यहाँ राम द्वारा पतंग उड़ाने का वर्णन तो ठीक है पर पतंग का उड़ते-उड़ते स्वर्ग में पहुँच जाने का वर्णन बहुत बढ़ाकर किया गया। इस पर विश्वास करना कठिन हो रहा है। अत: अतिशयोक्ति अलंकार।

अन्य उदाहरण –

  • देख लो साकेत नगरी है यही
    स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
    यहाँ साकेत नगरी की तुलना स्वर्ग की समृद्धि से करने का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
  • हनूमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
    सिगरी लंका जल गई, गए निशाचर भाग।
    हनुमान की पूँछ में आग लगाने से पूर्व ही सोने की लंका का जलकर राख होने का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
  • देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिके करुना निधि रोए।
    सुदामा की दरिद्रावस्था को देखकर कृष्ण का रोना और उनकी आँखों से इतने आँसू गिरना कि उससे पैर धोने के वर्णन में अतिशयोक्ति है। अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

5. मानवीकरण अलंकार – जब जड़ पदार्थों और प्रकृति के अंग (नदी, पर्वत, पेड़, लताएँ, झरने, हवा, पत्थर, पक्षी) आदि पर मानवीय क्रियाओं का आरोप लगाया जाता है अर्थात् मनुष्य जैसा कार्य व्यवहार करता हुआ दिखाया जाता है तब वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे –
हरषाया ताल लाया पानी परात भरके।
यहाँ मेहमान के आने पर तालाब द्वारा खुश होकर पानी लाने का कार्य करते हुए दिखाया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

  • हैं मसे भीगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है।
    यहाँ गेहूँ तरुणाई फूटने में मानवीय क्रियाओं का आरोप है।
  • यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
    मटरबेलि का सखियों से आँख लड़ाने में मानवीय क्रियाओं का आरोप है।
  • लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलाते हैं, हौले-हौले होली गा-गा धुंघरू पर ताल बजाते हैं।
    यहाँ चने पर होली गाने, सज-धजकर इतराने और ताल बजाने में मानवीय क्रियाओं का आरोप है।
  • है वसुंधरा बिखेर देती मोती सबके सोने पर।
    रवि बटोर लेता है उसको सदा सवेरा होने पर।

यहाँ वसुंधरा द्वारा मोती बिखेरने और सूर्य द्वारा उसे सवेरे एकत्र कर लेने में मानवीय क्रियाओं का आरोप है।