मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

  • Hindi News
  • Local
  • Rajasthan
  • Ajmer
  • Games, Cultural Programs Were Also Organized Between Foreign And Indian In The Fair Ground

अजमेर2 दिन पहले

  • कॉपी लिंक
  • वीडियो

विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले का मंगलवार को हुआ समापन।

विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले का समापन कार्यक्रम मंगलवार को आयोजित किया गया। कार्यक्रम में जिला प्रशासन की ओर से विदेशी व इंडियन टूरिस्ट के बीच कई गेम्स आयोजित हुए। स्कूली छात्रों ने राजस्थानी गानों पर डांस किया तो वही, कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी मेला ग्राउंड में आयोजित हुए। प्रोग्राम के बाद सभी को सम्मानित भी किया गया।

पुष्कर मेला-2022 का मंगलवार को मेला ग्राउंड में समापन कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संभागीय आयुक्त बीएल मेहरा, जिला कलेक्टर अंशदीप, एसपी चुनाराम जाट, एडीए कमिश्नर अक्षय गोदारा, एडिशनल एसपी विकास सांगवान, वैभव शर्मा सहित कई प्रशासनिक अधिकारी समापन कार्यक्रम में पहुंचे। साढे 10 बजे के करीब गवर्नमेंट स्कूल की 172 छात्राओं द्वारा राजस्थानी गानों पर डांस कर कई प्रस्तुतियां दी गई। इस दौरान पूरे ग्राउंड के चारों तरफ लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

विदेशी और इंडियंस के बीच मेला ग्राउंड में कई प्रतियोगिताएं करवाई गई आयोजित।

विदेशी व इंडियंस के बीच हुए गेम्स

डांस कार्यक्रम के बाद जिला प्रशासन की ओर से मेला ग्राउंड में विदेशी व इंडियन महिलाओं के बीच मटका दौड़ आयोजित करवाई गई। जिसमें सभी महिलाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस प्रतियोगिता में भारतीय महिलाओं ने जीत हासिल की। इसके तुरंत बाद चम्मच दौड़ प्रतियोगिता आयोजित हुई। जिसमें 15 महिलाओं ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में पहला और दूसरा इनाम भारतीय महिलाओं ने जीता, तो वहीं तीसरा इनाम USA की महिला टूरिस्ट ने जीत हासिल की।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेला ग्राउंड में जिला प्रशासन ने चम्मच रेस प्रतियोगिता भी करवाई आयोजित।

चम्मच रेस प्रतियोगिता के बाद विदेशी व भारतीय महिलाओं के बीच रस्सी खींच प्रतियोगिता आयोजित हुई। जिसमें भारत की महिलाएं विजेता हुई। वही, विदेशी और इंडियन लड़कों के बीच भी रस्सी खींच प्रतियोगिता आयोजित हुई। जिसमें भी इंडियंस ने जीत हासिल की। इसके तुरंत बाद बोरा रेस प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई। जिसमें भारतीय महिलाओं ने जीत हासिल कर खुशी जाहिर की।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेला ग्राउंड में ऊंट परेड सहित कई कार्यक्रम आयोजित हुए।

ऊंट परेड व कला जत्था यात्रा निकाली

मेला ग्राउंड में गेम्स प्रतियोगिताएं आयोजित करवाने के बाद ऊंट परेड व कला जत्था यात्रा का आयोजन किया गया। जिसमें सबसे पहले पुष्कर के ऊंट शिंगार प्रसिद्ध अशोक टाक अपने कैमल के साथ प्रस्तुति देने लगे। इसके बाद रॉबीले, कच्छी घोड़ी, कालबेलिया डांस, ढोल प्रतियोगिता सहित कई कार्यक्रमों की प्रदर्शनी मुख्य अतिथियों के सामने दी गई।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेला ग्राउंड में जेल के कैदियों द्वारा अलग-अलग गानों पर दी गई अपनी प्रस्तुति।

जेल बैंड की ग्राउंड में प्रस्तुति

मेला ग्राउंड में पुष्कर मेले के समापन के मौके पर अजमेर सेंट्रल जेल के कैदी बैंड के द्वारा भी अपना मंच तैयार किया गया। जहां उन्होंने समापन कार्यक्रम में अपनी कई प्रस्तुतियां दी। बता दे कि कैदियों के रोजगार को लेकर जेल प्रशासन द्वारा कई नवाचार किए जा रहे हैं।

संस्कृति

  • मेले और त्यौहार
  • लोक नृत्य
  • लोक गीत
  • प्राचीन काल की जानीमानी हस्तियां

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेलों को मध्य प्रदेश की संस्कृति और रंगीन जीवन शैली का पैनोरमा कहा जा सकता है। इन मेलों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का एक अद्वितीय और दुर्लभ सामजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता। अगर संख्या के बारे में देखा जाए, तो सबसे अधिक 227 मेलें, उज्जैन जिले में लगते हैं और होशंगाबाद जिले में आयोजित मेलों की संख्या 13 है। इनमें से अधिकांश मेले मार्च, अप्रैल और मई महीनों के दौरान आयोजित होते है, जब किसानों को खेतों में कम काम करना पडता है। जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर महीनों में कम मेलें लगते है, क्योंकी बरसात के मौसम के दौरान किसान व्यस्त रहते हैं।

यहाँ ऐसे कुछ मेलों के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेते है:

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

सिंहस्थ

उज्जैन का कुंभ मेला, ‘सिंहस्थ' के नाम से जाना जाता है, जो देश के भव्य और पवित्रतम मेलों में से एक है। यह बहुत ही उच्च धार्मिक मूल्यों वाला मेला है और हर बारह साल के चक्र में एक बार, जब बृहस्पति, राशिचक्र की सिंह राशि में प्रवेश करता है, तब इस मेलें का आयोजन होता है। पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर, पूरी भव्यता का प्रदर्शन करता यह मेला लगता है, जिसमें दुनिया भर के लाखों लोग अपने आध्यात्मिक उन्नयन के लिए शामिल होते हैं। वास्तव में, ‘सिंहस्थ' का आयोजन स्थल होने के साथ उज्जैन के इस प्राचीन शहर को, भारत के बारह ज्येतिर्लिंगों में से एक होने का सम्मान भी प्राप्त है। इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और उनके दोस्त सुदामा ने गुरु सांदिपनी ऋषि से शिक्षा प्राप्त थी। महान कवि कालिदास तथा सांदिपनी और भर्तृहरी जैसे संत भी इसी भूमि से है।

रामलीला का मेला

ग्वालियर जिले की भंडेर तहसील में इस मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला 100 से अधिक साल पुराना है, जो जनवरी-फरवरी महीने में लगता है।

हीरा भूमियां का मेला

ग्वालियर, गुना और आसपास के क्षेत्रों में ‘हिरामन बाबा' का नाम प्रसिद्ध है। माना जाता है कि हिरामन बाबा के आशीर्वाद से महिलाओं का बांझपन दूर हो जाता है। पिछले कुछ शतकों से हर वर्ष, इस पूरे क्षेत्र में अगस्त और सितंबर के महीनों में हीरा भूमियां का यह मेला लगता है।

पीर बुधान का मेला

250 से अधिक साल पुराना यह मेला, शिवपुरी जिले के सनवारा में मुस्लिम संत पीर बुधान की कब्र के पास आयोजित किया जाता है। अगस्त-सितंबर महीनों में इस मेले का आयोजन किया जाता है।

नागाजी का मेला

अकबर के समय के संत नागाजी की स्मृति में नवंबर-दिसंबर के दौरान इस मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला, मुरैना जिले के पोर्सा गांव में तकरीबन एक महीने के लिए लगता है। पहले यहां बंदरों को बेचा जाता था, लेकिन अब अन्य घरेलू पशुओं को भी यहां बेचा जाने लगा है।

तेताजी का मेला

तेताजी एक सच्चा आदमी था। कहा जाता है कि शरीर से सांप के जहर को दूर करने की शक्ति उसे प्राप्त थी। पिछले 70 वर्षों से गुना जिले के भामावड़ गांव में तेताजी के जन्मदिन पर इस मेले का आयोजन किया जाता है।

जागेश्वरी देवी का मेला

अति प्राचीन काल से गुना जिले के चंदेरी में इस मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले का एक किस्सा बताया जाता है, जिसके अनुसार चंदेरी के शासक जागेश्वरी देवी के भक्त थे। उन्हे कुष्ठ रोग था। देवी ने उन्हे 15 दिनों के बाद एक जगह पर आने के लिए कहा, लेकिन राजा तीसरे दिन ही वहां आ गये। उस समय देवी का केवल सिर ही दिखाई दिया। राजा का कुष्ठ ठीक हो गया और उसी दिन से इस मेले की शुरूवात हुई।

अमरकंटक का शिवरात्रि मेला

पिछले अस्सी सालों से शहडोल जिले के अमरकंटक में, नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर शिवरात्रि के दिन यह मेला आयोजित किया जाता है।

महामृत्यंजय का मेला

रीवा जिले के महामृत्यंजय मंदिर में बसंत पंचमी और शिवरात्रि के दिन यह मेला लगता है।

चंडी देवी का मेला

सीधी जिले के घोघरा गाव में चंडी देवी का मंदिर है, जिन्हे देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। मार्च-अप्रैल में यह मेला लगता है।

शहाबुद्दीन औलिया बाबा का उर्स

मंदसौर जिले के नीमच में फरवरी माह में यह उर्स मनाया जाता है, जो चार दिनों तक चलता है। यहां बाबा शहाबुद्दीन की मजार है।

कालूजी महाराज का मेला

पश्चिमी निमर के पिपल्याखुर्द में एक महीने तक यह मेला लगता है। कहा जाता है कि लगभग 200 वर्ष पहले कालूजी महाराज यहाँ अपनी शक्ति से इन्सानों और जानवरों की बीमारी ठीक किया करते थे।

सिंगाजी का मेला

सिंगाजी एक गूढ़ आदमी थे और उन्हे देवता माना जाता था। पश्चिमी निमर के पिपल्या गांव में अगस्त-सितम्बर में एक सप्ताह के लिए यह मेला लगता है।

धामोनी उर्स

सागर जिले के धामोनी नामक स्थान पर मस्तान शाह वली की मजार पर अप्रैल-मई महिने में यह उर्स लगता है।

बरमान का मेला

नरसिंहपुर जिले के गदरवारा में मकर संक्रांति से इस 13 दिवसीय मेले की शुरूवात होती है।

मठ घोघरा का मेला

शिवरात्रि के अवसर पर, सिवनी जिले के Bhaironthan में 15 दिनों का यह मेला आयोजित किया जाता है। एक प्राकृतिक झील और गुफा, इस स्थान की सुंदरता को बढाते है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

आलमी तब्लीग़ी इजतिमा

इस तीन दिवसीय मण्डली को भोपाल में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर के रूप में मनाया जाता है। इज्तिमा हर साल आयोजित किया जाता है और उसके साथ एक मेला भी लगता है। इस इज्तिमा के दौरान पूरे शहर में आध्यात्मिकता की लहर उमडती है और दुनिया भर के मुसलमानों के ‘जामात' (श्रद्धालुओं के समूह) यहाँ आ पहुंचते हैं। रूस, कजाकिस्तान, फ्रांस, इंडोनेशिया, मलेशिया, जाम्बिया, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, इराक, सऊदी अरब, यमन, इथियोपिया, सोमालिया, तुर्की, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे देशों के 'जामाती' तीन दिनों के शिविर के लिए यहाँ आते है और अच्छे मूल्यों का पालन करते हुए ईमानदार जीवन जीने के लिए इस्लामी विद्वानों की पवित्र उपदेश सुनते हैं। बुद्धिजीवियों, छात्रों, व्यापारियों, किसानों आदि के लिए सार्वभौमिक भाईचारे का संदेश देनेवाले विशेष धार्मिक प्रवचन भी यहां होते हैं। आध्यात्मिक संदेश देनेवाली यह सभा, दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक मानी जाती है, जो न सिर्फ मुसलमानों के लिए बल्की सभी समुदायों के लिए यथार्थ मानी जाती है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

खजुराहो नृत्य महोत्सव

अपने पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में नामित, मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर में, प्रति वर्ष फरवरी-मार्च के महीनों में शास्त्रीय नृत्यों के समृद्ध सांस्कृतिक रूप को देखने के लिए भारत और विदेशों से भीड़ उमडती है। चंदेलों द्वारा निर्मित शानदार वास्तुकला वाले मंदिरों के बीच, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शास्त्रीय नृत्य का यह खजुराहो नृत्य महोत्सव, देश की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने की दिशा में, आयोजक - मध्य प्रदेश कला परिषद का एक प्रयास है। इस सप्ताह लंबे महोत्सव के दौरान देश के हर हिस्से से लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता हैं। जानेमाने श्रेष्ठ कलाकार कथ्थक, कुचिपुड़ी, ओडिसी, भरतनाट्यम, मणिपुरी, और मोहिनीअट्टम जैसे भारतीय शास्त्रीय नृत्यों का प्रदर्शन करते है। परंपरा और आध्यात्मिकता की ताकत इस प्रदर्शन को एक असामान्य और आकर्षक रूप प्रदान करती है। इन नृत्यों में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की अधिकांश संगत का प्रयोग किया जाता है। खजुराहो नृत्य महोत्सव के दौरान प्रदर्शन करना, भारतीय शास्त्रीय नृत्य कलाकारों के लिए विशेष सम्मान माना जाता है।

लोकरंग समारोह

भोपाल में हर साल 26 जनवरी अर्थात गणतंत्र दिवस से पांच दिनों तक चलनेवाला लोकरंग समारोह शुरू होता है। यह मध्य प्रदेश की आदिवासी लोक कला अकादमी द्वारा आयोजित एक सांस्कृतिक प्रदर्शनी है। पूरे देश भर से लोकसंस्कृति और जनजातीय संस्कृति के प्रदर्शन और रचनात्मक पहलुओं को सामने लाने का यह एक प्रयास हैं। लोक नृत्य और जनजातीय नृत्य, शास्त्रीय नृत्य, कला रूपों का प्रदर्शन इस लोकरंग की मुख्य विशेषताएं हैं। विदेशों की प्रस्तुतियों और प्रदर्शनियां भी इस समारोह का एक बड़ा आकर्षण हैं।

लोकरंजन महोत्सव

मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा खजुराहो में हर साल आयोजित लोकरंजन, लोक नृत्य का एक राष्ट्रीय महोत्सव है। भारत के विभिन्न भागों से लोकप्रिय लोकनृत्य तथा आदिवासी नृत्य और पारंपरिक कारीगरों की आकर्षक रचनाएं और शिल्प प्रदर्शन, इस महोत्सव में शामिल होते हैं। खजुराहो जैसे धरोहर शहर में आयोजित यह शानदार प्रदर्शनी, दुनियाभर में प्रसिद्ध मंदिर की महिमा और भव्यता उजागर करती है और साथ-साथ आदिवासी और ग्रामीण जीवन शैली के रंग और रचनात्मकता को जानने का अवसर प्रदान करती है।

लोक नृत्य

भारत के किसी अन्य हिस्से की तरह मध्यप्रदेश भी देवी-देवताओं के समक्ष किए जानेवाले और विभिन्न अनुष्ठानों से संबंधित लोक नृत्यों द्वारा अपनी संस्कृती का एक परिपूर्ण दृश्य प्रदान करता है। लंबे समय से सभी पारंपरिक नृत्य, आस्था की एक पवित्र अभिव्यक्ति रहे है। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग और मध्यप्रदेश की आदिवासी लोक कला अकादमी द्वारा खजुराहो में आयोजित ‘लोकरंजन ' - एक वार्षिक नृत्य महोत्सव है, जो मध्यप्रदेश और भारत के अन्य भागों के लोकप्रिय लोक नृत्य और आदिवासी नृत्यों को पेश करने के लिए एक बेहतरीन मंच है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

जब बुंदेलखंड क्षेत्र का प्राकृतिक और सहज नृत्य मंच पर आता है, तब पूरा माहौल लहरा जाता है और देखने वाले मध्यप्रदेश की लय में बहने लगते है। मृदंग वादक ढोलक पर थापों की गति बढाना शुरू करता है और नृत्य में भी गति आ जाती है। गद्य या काव्य संवादों से भरा यह नृत्य प्रदर्शन, ‘स्वांग' के नाम से मशहूर है। संगीत साधनों के साथ माधुर्य और संगीत से भरे नर्तक के सुंदर लोकनृत्य का यह अद्वितीय संकलन है। बढ़ती धड़कन के साथ गति बढ़ती जाती है और नर्तकों के लहराते शरीर, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यह नृत्य विशेष रूप से किसी मौसम या अवसर के लिए नहीं है, लेकिन इसे आनंद और मनोरंजन की एक कला माना जाता है।

बाघेलखंड का ‘रे' नृत्य, ढोलक और नगारे जैसे संगीत वाद्ययंत्र की संगत के साथ महिला के वेश में पुरूष पेश करते है। वैश्य समुदाय में, विशेष रूप से बच्चे के जन्म के अवसर पर, बाघेलखंड के अहीर समुदाय की महिलाएं यह नृत्य करती है। इस नृत्य में अपने पारंपरिक पोशाक और गहनों को पहने नर्तकियां शुभ अवसर की भावना व्यक्त करती है|

मटकी

‘मटकी' मालवा का एक समुदाय नृत्य है, जिसे महिलाएं विभिन्न अवसरों पर पेश करती है। इस नृत्य में नर्तकियां ढोल की ताल पर नृत्य करती है, इस ढोल को स्थानीय स्तर पर ‘मटकी' कहा जाता है। स्थानीय स्तर पर झेला कहलाने वाली अकेली महिला, इसे शुरू करती है, जिसमे अन्य नर्तकियां अपने पारंपरिक मालवी कपड़े पहने और चेहरे पर घूंघट ओढे शामिल हो जाती है। उनके हाथो के सुंदर आंदोलन और झुमते कदम, एक आश्चर्यजनक प्रभाव पैदा कर देते हैं।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

गणगौर

यह नृत्य मुख्य रूप से गणगौर त्योहार के नौ दिनों के दौरान किया जाता है। इस त्योहार के अनुष्ठानों के साथ कई नृत्य और गीत जुडे हुए है। यह नृत्य, निमाड़ क्षेत्र में गणगौर के अवसर पर उनके देवता राणुबाई और धनियार सूर्यदेव के सम्मान में की जानेवाली भक्ति का एक रूप है।

बधाईं

बुंदेलखंड क्षेत्र में जन्म, विवाह और त्योहारों के अवसरों पर ‘बधाईं' लोकप्रिय है। इसमें संगीत वाद्ययंत्र की धुनों पर पुरुष और महिलाएं सभी, ज़ोर-शोर से नृत्य करते हैं। नर्तकों की कोमल और कलाबाज़ हरकतें और उनके रंगीन पोशाक दर्शकों को चकित कर देते है।

बरेडी

दिवाली के त्योहार से पूर्णिमा के दिन तक की अवधि के दौरान बरेडी नृत्य किया जाता है। मध्यप्रदेश के इस सबसे आश्चर्यजनक नृत्य प्रदर्शन में, एक पुरुष कलाकार की प्रमुखता में, रंगीन कपड़े पहने 8-10 युवा पुरुषों का एक समूह नृत्य करता हैं। आमतौर पर, ‘दीवारी' नामक दो पंक्तियों की भक्ति कविता से इस नृत्य प्रदर्शन की शुरूवात होती है।

नौराता

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में अविवाहित लड़कियों के लिए इस नृत्य का विशेष महत्त्व है। नौराता नृत्य के जरीये, बिनब्याही लडकियां एक अच्छा पति और वैवाहिक आनंद की मांग करते हुए भगवान का आह्वान करती है। नवरात्रि उत्सव के दौरान नौ दिन, घर के बाहर चूने और विभिन्न रंगों से नौराता की रंगोली बनाई जाती है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

अहिराई

भरम, सेटम, सैला और अहिराई, मध्यप्रदेश की ‘भारीयां' जनजाति के प्रमुख पारंपरिक नृत्य हैं। भारीयां जनजाति का सबसे लोकप्रिय नृत्य, विवाह के अवसर पर किया जाता है। इस समूह नृत्य प्रदर्शन के लिए ढोल और टिमकी (पीतल धातु की थाली की एक जोड़ी) इन दो संगीत उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता हैं। ढोल और टिमकी बजाते हुए वादक गोलाकार में घुमते है, ढोल और टिमकी की बढती ध्वनी के साथ नर्तकों के हाथ और कदम भी तेजी से घुमते है और बढती-चढती धून के साथ यह समूह एक चरमोत्कर्ष तक पहुँचता है। संक्षिप्त विराम के बाद , कलाकार दुबारा मनोरंजन जारी रखते है और रात भर नृत्य चलता रहता है।

भगोरियां

विलक्षण लय वाले दशहरा और डांडरियां नृत्य के माध्यम से मध्यप्रदेश की बैगा आदिवासी जनजाति की सांस्कृतिक पहचान होती है। बैगा के पारंपरिक लोक गीतों और नृत्य के साथ दशहरा त्योहार की उल्लासभरी शुरुआत होती है। दशहरा त्योहार के अवसर पर बैगा समुदाय के विवाहयोग्य पुरुष एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं, जहां दूसरे गांव की युवा लड़कियां अपने गायन और डांडरीयां नृत्य के साथ उनका परंपरागत तरीके से स्वागत करती है। यह एक दिलचस्प रिवाज है, जिससे बैगा लड़की अपनी पसंद के युवा पुरुष का चयन कर उससे शादी की अनुमति देती है। इसमें शामिल गीत और नृत्य, इस रिवाज द्वारा प्रेरित होते हैं। माहौल खिल उठता है और सारी परेशानियों से दूर, अपने ही ताल में बह जाता है। परधौनी, बैगा समुदाय का एक और लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मुख्य रूप से दूल्हे की पार्टी का स्वागत और मनोरंजन करने के लिए करते हैं। इसके द्वारा खुशी और शुभ अवसर की भावना व्यक्त होती है। कर्मा और सैली (गोंड), भगोरियां (भिल), लेहंगी (सहारियां) और थाप्ती (कोरकू) यह कुछ अन्य जानेमाने आदिवासी नृत्य है।

लोक गीत

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.
मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

किसी भी देश का इतिहास, वहां के लोकप्रिय गीतों के द्वारा बताया जाता है। पारंपरिक संगीत के चाहने वालों के लिए मध्यप्रदेश बेहतरीन दावते प्रदान करता है। यह लोक गीत, गायन की विशिष्ट शैली के द्वारा बलिदान, प्यार, कर्तव्य और वीरता की कहानियां सुनाते हैं। मूल रूप से राजस्थान के ‘ढोला मारू' लोकगीत, मालवा, निमाड़ और बुंदेलखंड क्षेत्र में लोकप्रिय है और इन क्षेत्रों के लोग अपनी विशिष्ट लोक शैली में प्यार, जुदाई और पुनर्मिलन के ढोला मारू गीत गाते है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में हर अवसर पर, यहां तक कि मौत पर भी महिलाओं को लोक गीत गाते देखना, कोई आशचर्य वाली बात नही है। लोक गायन का एक रूप ‘कलगीतुर्रा', मंडला, मालवा, बुंदेलखंड और निमाड़ क्षेत्रों में लोकप्रिय है, जो चांग और डफ की धून के साथ प्रतियोगिता की भावना में जोश भरता है। इसमे महाभारत और पुराणों से लेकर वर्तमान मामलों पर आधारित गाने शामिल होते हैं और एक दूसरे को चतुराई से मात देने की कोशिशे रात भर चलती है। इस पारंपरिक गायकी का मूल, चंदेरी राजा शिशुपाल के शासनकाल मे पाया गया है। निमाड़ क्षेत्र में ‘निर्गुनी' शैली के नाम से लोकप्रिय इस गायकी में सिंगजी, कबीर, मीरा, दादू जैसे संतों द्वारा रचित गीत गाये जाते हैं। इस गायन में आम तौर पर इकतारा और खरताल (लकडी से जुडे छोटे धातु पटल वाला एक संगीत उपकरण) इन साजों का साथ होता है। निमाड़ में लोकगायन का एक अन्य बहुत लोकप्रिय रूप है ‘फाग', जो होली के त्योहार के दौरान डफ और चांग के साथ गाया जाता है। यह गीत प्रेमपूर्ण उत्साह से भरपूर होते है। निमाड़ में नवरात्रि का त्योहार, लोकप्रिय लोक-नृत्य गरबा के साथ मनाया जाता है। गरबा गीत के साथ गरबा नृत्य, देवी शक्ति को समर्पित होता है। पारंपरिक रूप से गरबा पुरुषों द्वारा किया जाता है और यह निमाड़ी लोक-नृत्य और नाटक का एक अभिन्न हिस्सा है। गायन को मृदंग (ढोल एक रूप) का साथ होता है। रासलीला के दौरान यह गौलन गीत गाए जाते हैं। मालवा क्षेत्र के नाथ समुदाय के बीच भर्तृहरी लोक-कथा के प्रवचन सबसे लोकप्रिय गायन फार्म है। चिंकारा नामक (सारंगी का एक रूप, जो घोड़े के बाल से बने तारों वाला वाद्य होता है, मुख्य शरीर बांस से बना होता है और नारियल खोल से धनुष बनाया जाता हैं) स्थानीय साज के साथ महान राजा भर्तृहरी और कबीर, मीरा, गोरख और गोपीचंद जैसे संतों द्वारा रचित भजन गाए जाते है। इससे एक अद्वितीय ध्वनि निकलती है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

मालवा क्षेत्र में युवा लड़कियों के समूह द्वारा गाये जाने वाले गीत, लोक संगीत का एक पारंपरिक मधुर और लुभावना फॉर्म है। समृद्धि और खुशी का आह्वान करने हेतु लड़कियां गाय के गोबर से संजा की मूरत बनाती है और उसे पत्ती और फूलों के साथ सजाती है तथा शाम के दौरान संजा की पूजा करती है। 18 दिन बाद, अपने साथी संजा को विदाई देते हुए यह उत्सव समाप्त होता है। मानसून की बारिश प्यासी पृथ्वी की प्यास बुझाती है, है, पेड़ो पर झुले सजते हैं और ऐसे में मालवा क्षेत्र के गीत सुनना मन को बेहद भाता है। हिड गायन में कलाकार पूर्ण गले की आवाज के साथ और शास्त्रीय शैली में आलाप लेकर गाते हैं। मालवा क्षेत्र में मानसून के मौसम के दौरान ‘बरसाती बरता' नामक गायन आमतौर पर होता है। बुंदेलखंड क्षेत्र योद्धाओं की भूमि है। अपने योद्धाओं को प्रेरित करने हेतु बुंदेलखंड के अलहैत समुदाय ने अल्लाह उदुल के वीर कर्मो से भरे गीतों की रचना की। 52 युद्ध लड़नेवाले अल्लाह उदुल की बहादुरी, सम्मान, वीरता और शौर्य के किस्से, इस क्षेत्र के लोग बरसात के मौसम के दौरान परंपरागत रूप से प्रदर्शित करते हैं। इसे ढोलक (छोटा ढोल, जिसे दोनो तरफ से हाथ के साथ बजाया जाता है) और नगारे (लोहा, तांबा जैसे धातु के दो ढोल, खोखले बर्तन के खुले चेहरे पर तानकर फैली भैंस की त्वचा जो पारंपरिक तरिके से लकड़िया से पीटा जाता है) के साथ गाया जाता है।

मेले व टूर्नामेंट में देखे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का वर्णन अपने शब्दों में करें। - mele va toornaament mein dekhe kisee saanskrtik kaaryakram ka varnan apane shabdon mein karen.

होली, ठाकुर, इसुरी और राय फाग उत्सव से संबंधित गाने भी होते हैं। दिवाली के त्योहार के अवसर पर ढोलक, नगारा और बांसुरी की धुन के साथ देवरी गीत गाए जाते हैं। शिवरात्री, बसंत पंचमी और मकर संक्रांति के त्योहार के मौकों पर बुंबुलिया गीत गाए जाते हैं। बाघेलखंड क्षेत्र के लोक-गीतों की गायन शैली मध्यप्रदेश के अन्य क्षेत्रों से अलग है। इसमे पुरुष और महिला, दोनों की आवाज मजबूत और शक्तिशाली होती हैं। इन गानों में समृद्धि और विविधता होती है, जो इस क्षेत्र की संस्कृति और विरासत को दर्शाते है। गीतों के विषय में काफी विविधता होती है और उनमे विभिन्न विषय शामिल होते है। बासदेव, बाघेलखंड क्षेत्र के गायकों का पारंपरिक समुदाय है, जो सारंगी और चुटकी पैंजन के साथ, पौराणिक बेटे श्रवण कुमार से जुडे गीत गाता है। पीले वस्त्र और सिर पर भगवान कृष्ण की मूर्ति से उनकी पहचान होती हैं। गायकों की जोड़ी यह गीत गाती है। रामायण तथा कर्ण, मोरध्वज, गोपचंद, भर्तृहरी, भोलेबाबा की कहानियां, बासदेव के गीतों के अन्य विषय है। गायकों की मनोवस्था दर्शाती, बिरहा और बिदेसीयां, बाघेलखंड की गायकी की दो अन्य महत्वपूर्ण शैलियां है। बिदेसीयां गीत प्यार, जुदाई और प्रेमी के साथ पुनर्मिलन के विषय से संबंधित होते है। बिदेसीयां गीत, प्यार करनेवाले से जल्दी लौटने की गुज़ारिश करता है। होली के त्योहार पर गाए जानेवाले ‘फाग' गीत, बसंत मौसम और व्यक्तिगत संबंधों की अभिव्यक्ति करते हैं। नगारा जोर-शोर से बजता है और गाने वाले उस धून पर सवार हो जाते हैं।

प्राचीन काल की जानीमानी हस्तियां
  • तानसेन: भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक प्रतिपादक थे। वे ग्वालियर से थे, तथा राजा अकबर के दरबार के नवरत्नों में शामिल थे।
  • राजा छत्रसाल: राजा छत्रसाल ने आधी सदी से अधिक समय तक निरंतर संघर्ष किया और अंत में मुगल सत्ता से बुंदेलखंड को मुक्त किया।
  • रानी अहिल्या बाई: महेश्वर की महारानी, एक समाज सुधारक और विख्यात प्रशासक, जो सुंदर घाटों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
  • रानी दुर्गावती: मंडला की चंदेल राजकुमारी, जिनका विवाह गोंडवाना के राजा दलपत शाह के साथ हुआ। बुद्धि और दूरदर्शिता के साथ 16 सालों तक गोंडवाना पर शासन किया। सुंदरता, साहस और बहादुरी के लिए उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
  • रानी लक्ष्मी बाई: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झांसी की रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ ग्वालियर में महत्वपूर्ण और अंतिम लड़ाई लड़ी थी। ग्वालियर के किले पर लड़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई।
  • चन्द्र शेखर आजाद: झाबुआ में जन्मे चन्द्र शेखर आजाद, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रतीक थे तथा 1926 और 1931 के बीच हुई हर क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप में शामिल थे।
  • तांत्या भील: 1857 की महान क्रांति के बाद, पश्चिम निमर के तांत्या भील, ब्रिटिश राज से आजादी के लिए लड़ाई का प्रतीक बने।
  • पंडित रवि शंकर शुक्ला: अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री।
  • शंकर दयाल शर्मा: भारत के नौवें राष्ट्रपति, एक विद्वान और शिक्षाशास्त्री।
  • विजया राजे सिंधिया: ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की महारानी, जानीमानी राजनीतिक नेता और सामाजिक कार्यकर्ता।
  • कुशाभाऊ ठाकरे: सिद्धांतों पर चलनेवाले एक उत्साही सामाजिक सुधारवादी और मध्यप्रदेश के राजनीतिक नेताओं के बीच एक राजनीतिज्ञ हस्ती।
  • उस्ताद अलाउद्दीन खान: शास्त्रीय संगीत के कलाकार और हर समय के बेहतरीन कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित । मैहर में बसे एक सरोद वादक और महान गुरु।
  • कृष्ण राव पंडित: गायक, ग्वालियर घराने की गायकी के प्रतिनिधि।
  • उस्ताद अमीर खान: इंदौर की प्रख्यात खयाल गायकी के गायक।
  • भवानी प्रसाद मिश्र: राष्ट्रीय कवि और होशंगाबाद के गांधीवादी दार्शनिक।
  • डी. जे. जोशी: इंदौर के महान आधुनिक चित्रकार।
  • बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन': शाजापुर के स्वतंत्रता सेनानी, अनुभवी संपादक और कवि।
  • डॉ. शिव मंगल सिंह सुमन: उज्जैन के प्रख्यात शिक्षाविद्, प्रगतिशील कवि।
  • डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर: उज्जैन के प्रसिद्ध पुरातत्वविद्, कला गुरू।
  • पंडित माखनलाल चतुर्वेदी: खंडवा के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक, राष्ट्रीय कवि।
  • कुमार गंधर्व: देवास के खयाल गायकी के प्रख्यात गायक, शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में नवाचारों के लिए जाने जाते है।
  • अब्दुल लतीफ खान: भोपाल के सारंगी वादक।