लोकतंत्र क्या है, लोकतंत्र क्यों जरूरी है, लोकतंत्र क्यों आवश्यक है (लोकतंत्र क्यों जरूरी है), लोकतंत्र का महत्व, लोकतंत्र की परिभाषा, लोकतंत्र के प्रकार, प्रत्यक्ष लोकतंत्र के प्रकार, अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के प्रकार, प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रकार, लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या है, लोकतंत्र की विशेषताएं, लोकतंत्र के चार स्तंभ, भारत में लोकतंत्र का इतिहास, लोकतंत्र और विकास के बीच संबंध लिखिए आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। Show
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लोकतंत्र (Democracy) क्या है (लोकतंत्र की परिभाषा)लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होता है। यह समाज में राजनीतिक एवं सामाजिक न्याय व्यवस्था की प्रणाली को बेहतर करने का कार्य करता है। लोकतंत्र के द्वारा नागरिकों को सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता मिलती है। लोकतंत्र के अंतर्गत जनता को समान रूप से मताधिकार प्रदान किए जाते हैं जिससे वे अपनी इच्छा अनुसार निर्वाचित हुए किसी भी उम्मीदवार को मत देकर अपने प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं। अब्राहम लिंकन के कथनानुसार “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है”। लोकतंत्र का राजनीतिक एवं सामाजिक न्याय प्रणाली में भरपूर योगदान रहता है। यह देश के नागरिकों को स्वतंत्रता प्रदान कराती है। लोकतंत्र क्यों आवश्यक है (लोकतंत्र क्यों जरूरी है)लोकतंत्र का अर्थ वास्तव में लोगों के द्वारा शासन करना होता है। यह सरकार के द्वारा निर्मित नीतियों को वैधानिकता (Legality) प्रदान कराता है जिसके कारण लोकतंत्र के विभिन्न स्वरूपों का निर्माण होता है। अलग-अलग देशों में लोकतंत्र को विभिन्न रूप से परिभाषित किया गया है जैसे तुर्की में इस्लामिक लोकतंत्र, उत्तर कोरिया में अधिनायकवादी लोकतंत्र, संयुक्त राष्ट्र में अध्यक्षीय लोकतंत्र, भारत में संसदात्मक लोकतंत्र आदि। लोकतंत्र का उदय सर्वप्रथम यूनान में हुआ था। माना जाता है कि 500 ई.पू. में यूनान में पहली लोकतांत्रिक सरकार का निर्माण हुआ था। विश्व भर के कई देशों में लोकतंत्र को कई अन्य प्रकार की शासन प्रणालियों की अपेक्षा बेहतर माना जाता है। कई लोकतांत्रिक देशों एवं राज्यों का मानना है कि लोकतंत्र ना केवल एक शासन प्रणाली है बल्कि एक अवस्था भी है जो समाज में राजनीतिक एवं आर्थिक समानता को स्थापित करने का कार्य भी करता है। लोकतंत्र देश के नागरिकों को सुलभ एवं न्यायपूर्ण तरीके से सभी राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है जिसके कारण इसे देश के नागरिकों के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। लोकतंत्र का महत्वलोकतंत्र एक प्रकार की शासन व्यवस्था है जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रणाली में देश की जनता अपनी इच्छा अनुसार विधायिका का चयन कर सकती है। यह देश में समानता को स्थापित करने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है। लोकतंत्र के अंतर्गत प्रतिनिधि देश के नागरिकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं जिसके कारण वे जनता की मांगों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसके अलावा लोकतंत्र के कारण देश की सरकार जनमानस की भावनाओं को केंद्र में रखकर निर्णय लेने के लिए बाध्य होती है जिसका लाभ सीधे तौर पर जनता को मिलता है। लोकतंत्र के प्रकारलोकतंत्र के प्रकार निम्नलिखित हैं:-
समाजवादी लोकतंत्रसमाजवादी लोकतंत्र वह विचारधारा है जिसके अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र के प्रावधानों को सामाजिक रुप से स्थापित करने का कार्य किया जाता है। इसके अलावा समाजवादी में लोकतंत्र मार्क्सवादी विचारधारा में परिवर्तन की स्थिति को भी दर्शाने का कार्य करता है। माना जाता है कि समाजवादी लोकतंत्र एवं मार्क्सवादी लोकतंत्र का लक्ष्य एक है परंतु समाजवादी लोकतंत्र क्रांति के बजाय उत्पादन के साधनों के आधार पर कार्य करता है। समाजवादी लोकतंत्र का उद्देश्य न्यायपूर्ण तरीके से देश एवं राज्य में शांति व्यवस्था को स्थापित करना होता है। जनवादी लोकतंत्रजनवादी लोकतंत्र का निर्माण साम्यवादी परंपरा के द्वारा किया गया है। इसके अंतर्गत समाज में राजनीतिक समानता को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। इसकी स्थापना सर्वहारा क्रांति के पश्चात हुई थी जब सर्वहारा वर्ग के लोगों ने राजनीतिक निर्णय में अपनी भूमिका निभाना आरंभ किया था। जनवादी लोकतंत्र के माध्यम से समाज में साम्यवाद को बढ़ावा मिला था। सहभागी लोकतंत्रसहभागी लोकतंत्र नागरिकों की सहमति पर आधारित होता है जो समाज में सहभागी प्रकृति को सुनिश्चित करने का कार्य करता है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सभी राजनीतिक प्रणाली का संचालन नागरिकों के सहयोग पर निर्भर होता है। विमर्श लोकतंत्रविमर्श लोकतंत्र के अंतर्गत सभी राजनीतिक कार्य एवं निर्णय नागरिकों की तर्कसंगत के माध्यम से पूर्ण किया जाता है। विमर्श लोकतंत्र के अनुसार लोगों की सहमति से सभी सामाजिक नीतियों का निर्माण किया जाता है। ई लोकतंत्रई लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसके अंतर्गत सभी सरकारी सेवाओं का मशीनीकरण किया जाता है जिससे जनता कम समय में सरकारी सेवाओं का लाभ उठा सके। इसके कारण सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होता है जिससे नागरिकों में सरकार के प्रति विश्वास और दृढ़ हो जाता है। इसके अलावा ई लोकतंत्र के कारण देश एवं राज्यों में नए व्यवसाय एवं नए अवसरों का सृजन भी होता है जो रोजगार के दृष्टिकोण से बेहतर माना जाता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्रप्रत्यक्ष लोकतंत्र के अंतर्गत सभी नागरिकों को नीतिगत मामलों में निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है। यह लोकतंत्र का एक ऐसा स्वरूप है जिसमें नागरिक मतदान का निर्णय स्वयं लेते हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र को “शुद्ध लोकतंत्र” के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र को कई श्रेणियों में बांटा गया है जो कुछ इस प्रकार है:- प्रत्यक्ष लोकतंत्र के प्रकार
अप्रत्यक्ष लोकतंत्रअप्रत्यक्ष लोकतंत्र लोकतांत्रिक सरकार का वह स्वरूप है जिसके अंतर्गत मतदाता प्रतिनिधि का चुनाव स्वयं कर सकते हैं। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र मुख्यतः प्रत्यक्ष लोकतंत्र से भिन्न होता है। इसके अंतर्गत नागरिक केवल उन्हीं प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जिनका उद्देश्य कानून का निर्माण करना होता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र की तरह ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को भी कई भागों में विभाजित किया गया है जो कुछ इस प्रकार हैं:- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के प्रकार
प्रतिनिधि लोकतंत्रप्रतिनिधि लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसके अंतर्गत पदाधिकारियों का चुनाव देश की जनता के समूह द्वारा चुना जाता है। यह ऐसी शासन प्रणाली है जो प्रत्यक्ष लोकतंत्र के बिल्कुल विपरीत कार्य करती है। प्रतिनिधि लोकतंत्र में देश की जनता राज्य की शक्तियों का प्रयोग अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से करती है। प्रतिनिधि लोकतंत्र को कई भागों में बांटा गया है जो कुछ इस प्रकार है:- प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रकार
व्यवसायिक प्रतिनिधि को प्रकार्यात्मक (functionalism) प्रतिनिधि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत जनता द्वारा उन प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है जो समाज में व्यवसायिक संगठन करने में सक्षम होते हैं। व्यवसायिक प्रतिनिधित्व एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रादेशिक एवं अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का विरोध करती है। अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्वअल्पसंख्यक प्रतिनिधि का चुनाव अल्पसंख्यक वर्गों द्वारा किया जाता है। आधुनिक युग में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था प्रत्येक लोकतांत्रिक समाज के लिए चुनौतीपूर्ण है। अल्पसंख्यक प्रतिनिधि का उद्देश्य समाज में समानता के अधिकार को स्थापित करना होता है। प्रादेशिक प्रतिनिधित्वप्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत देश के सभी भागों को कई निर्वाचित क्षेत्रों में बांट दिया जाता है जिसके फलस्वरूप प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य को निर्वाचित किया जाता है। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व को क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व भी कहा जाता है जिसका उद्देश्य जनता की मांगों को सरकार के समक्ष रखना होता है। अनुपातिक प्रतिनिधित्वअनुपातिक प्रतिनिधित्व वह लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रणाली है जिसमें किसी देश या संस्था का मूल्यांकन जन प्रतिनिधित्व द्वारा किया जाता है। अनुपातिक प्रतिनिधित्व का उद्देश्य लोकसभा में जनता के विचारों को गणितीय रूप से संबोधित करना होता है। लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या हैलोकतंत्र के कई सिद्धांत है जो कुछ इस प्रकार है:-
बहुलवादी सिद्धांतबहुलवादी सिद्धांत वह नीति है जिसका निर्माण समाज के विभिन्न वर्गों और समूह के विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान एवं आपसी मत द्वारा किया जाता है। बहुलवादी सिद्धांत को लोकतंत्र का मुख्य सिद्धांत भी माना जाता है जिसके अंतर्गत अनेक वर्गों का एकीकरण किया जाता है। सहभागी सिद्धांतसहभागी सिद्धांत के अंतर्गत सभी राजनीतिक प्रणाली के संचालन एवं निर्देशन में नागरिकों की भरपूर सहभागिता होती है। यह लोकतंत्र की साझेदारी पर आधारित एक ऐसा सिद्धांत होता है जो समाज में सहभागी लोकतंत्र को स्थापित करने का कार्य करता है। सहभागी सिद्धांत के अंतर्गत राजनीतिक दल, नेता एवं जनता के आपसी सहयोग से कई महत्वपूर्ण नीतियों पर कार्य किया जाता है। उदारवादी सिद्धांतउदारवादी सिद्धांत वह राजनीतिक एवं नैतिक दर्शन है जो समाज में स्वतंत्रता एवं कानून की समानता को उजागर करता है। उदारवादी सिद्धांत मुख्यतः व्यक्तिगत अधिकारों का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन करता है , जैसे पूंजीवाद, धर्मनिरपेक्षता, लिंग समानता, लोकतंत्र आदि। अभिजनवादी सिद्धांतअभिजनवादी सिद्धांत के अंतर्गत एक बहुसंख्यक जनता का नेतृत्व कुछ विशिष्ट गुण वाले जन-प्रतिनिधि द्वारा किया जाता है। यह वह सिद्धांत है जिसमें प्रत्येक समाज में मोटे तौर पर दो विभिन्न वर्ग पाए जाते हैं जो अपनी क्षमता के आधार पर बहुसंख्यक समाज पर शासन करते हैं। लोकतांत्रिक सिद्धांतलोकतांत्रिक सिद्धांत में देश की गतिविधियों का संपूर्ण नियंत्रण जनता के हाथ में होता है। इसके अंतर्गत न्याय व्यवस्था में कानून प्रणाली की भूमिका जनता के अधिकारों की तुलना में कम होती है। लोकतांत्रिक सिद्धांत में सभी नागरिकों को समान स्तर पर अधिकार प्राप्त होते हैं। लोकतंत्र की विशेषताएंलोकतंत्र की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं:-
कानून व्यवस्थाकानून व्यवस्था वह शासन प्रणाली है जिसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों में समानता स्थापित की जाती है। इसके अलावा कानून व्यवस्था एक प्रक्रिया, प्रथा एवं मानक भी है जो शासन के एक बेहतर स्वरुप को सुनिश्चित करने का कार्य करता है। इसके अनुसार कानून व्यवस्था में कोई भी राजनीतिक दल हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधानकोई भी देश लोकतांत्रिक देश तब कहलाता है जब उस देश में संविधान की उपस्थिति हो। विश्व भर के लगभग हर देश में संविधान लिखित या मौखिक रूप से दर्ज होता है। यह संविधान देश के कानून एवं नियमों का मूल संग्रह है जो एक राज्य को नियंत्रित करने का कार्य करता है। इसके अलावा यह मौजूदा सरकार की न्यायिक व्यवस्था का निर्माण करने का भी कार्य करता है जिसके अंतर्गत जनता के अधिकारों एवं दायित्वों को मुख्य रूप से दर्शाया जाता है। स्वाधीनता एवं समानतास्वाधीनता एवं समानता को लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं में से एक माना जाता है। यह लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांतों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करके एक व्यवस्थित समाज की स्थापना करता है। राजनीतिक लोकतंत्रराजनीतिक लोकतंत्र वह व्यवस्था प्रणाली है जिसमें देश के नागरिकों को राजनीति के क्षेत्र में निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है। यह वास्तव में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि के माध्यम से संभव होता है। इसके अलावा राजनीतिक लोकतंत्र देश के नागरिकों को राजनीति में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित भी करता है। मताधिकारमताधिकार वह व्यवस्था प्रणाली है जो देश के सभी वयस्क नागरिकों को अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने का अधिकार देता है। यह प्रक्रिया पूर्ण रूप से पारदर्शी एवं निष्पक्ष होती है जिसका लाभ जनता को सीधे तौर पर मिलता है। लोकतंत्र के चार स्तंभलोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-
स्वतंत्र कार्यपालिकास्वतंत्र कार्यपालिका वह व्यवस्था है जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से सरकार की नीतियों का पालन करती है। कार्यपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जो राज्य के शासन के अधिकार को बढ़ावा देने का कार्य करता है। यह देश में कानून व्यवस्था को बेहतर ढंग से लागू में मदद करता है। स्वतंत्र विधायिकास्वतंत्र विधायिका को विधान पालिका के नाम से भी जाना जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था का वह संगठन होता है जिसे कानून की नीतियों का निर्माण करने, उसे बदलने एवं हटाने का अधिकार प्राप्त होता है। यह कार्य विधायिका के सदस्यों के द्वारा किया जाता है जिन्हें विधायक कहा जाता है। स्वतंत्र पत्रकारितापत्रकारिता को लोकतंत्र का मुख्य स्तंभ कहा जाता है। यह एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें देश में हो रही सभी घटनाओं की जानकारी को एकत्रित करके जनता तक स्वतंत्रतापूर्वक पहुंचाया जाता है। इसके अंतर्गत समाचारों को बेहतर ढंग से संपादित किया जाता है जिससे जनता की समस्याओं को सरकार के सम्मुख रखने में आसानी होती है। आधुनिक युग में पत्रकारिता के अनेक माध्यम का निर्माण हुआ है जैसे अखबार, दूरदर्शन, पत्रिकाएं, रेडियो आदि। स्वतंत्र न्यायपालिकास्वतंत्र न्यायपालिका जनतंत्र का एक प्रमुख अंग माना जाता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत कानून व्यवस्था को समाज में बेहतर ढंग से स्थापित किया जाता है। न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से विवादों को सुलझाने एवं अपराधों को कम करने का कार्य करती है जिससे समाज में विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। स्वतंत्र न्यायपालिका उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को निर्भय होकर न्याय करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है जिससे नागरिकों को न्याय मिलता है। भारत में लोकतंत्र का इतिहाससन 1947 में भारत की आजादी के बाद देश में लोकतंत्र की एक नई व्याख्या प्रस्तुत हुई। भारत ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा थोपे गए संविधान का पालन नहीं करना चाहता था जिसके कारण भारत में संविधान के नव निर्माण हेतु अप्रत्यक्ष रूप से चुने हुए लोगों द्वारा एक संविधान सभा का गठन किया गया। इस संविधान सभा में सरदार पटेल, भीमराव अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू एवं एन वी गाडगिल ने भारतीय लोकतंत्र शासन प्रणाली को स्वीकार किया। परंतु इसी संविधान सभा में बृजेश्वर प्रसाद, लोकनाथ मिश्र एवं आर एन सिंह ने इस संसदीय व्यवस्था का विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि अध्यक्षीय शासन प्रणाली में एक ईमानदार राष्ट्रपति को चुनना तुलनात्मक रूप से बेहद आसान कार्य है। इसके उपरांत 19वीं सदी में आधुनिक राजनीति की शुरुआत के बाद कई सार्वजनिक मुद्दों पर लोगों को एकत्रित करने एवं राज्य के समकक्ष अपनी मांगों को रखने का सिलसिला भी आरंभ हुआ। इसके बाद भारत में मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा कई सार्वजनिक सभा जैसे संगठनों का निर्माण हुआ जिसने भारत में लोकतंत्र की नीव रखी। माना जाता है कि ब्रिटिश शासन काल में लोकतंत्र की शुरुआत केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों के विकास के कारण हुआ था। लोकतंत्र और विकास के बीच संबंध लिखिएलोकतंत्र एवं विकास में एक गहरा संबंध होता है क्योंकि एक विकसित देश में लोकतंत्र की नीतियां कई चरणों के माध्यम से उभरती हैं। ऐसा माना जाता है कि लोकतान्त्रिक देश में विकास की गति को बढ़ावा मिलता है। किसी भी विकसित देश का विकास कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे वैश्विक स्थिति, जनसंख्या, मताधिकार, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आदि। लोकतंत्र विकास की आर्थिक स्थिति के स्रोतों से संबंधित होता है जैसे शिक्षा का स्तर, आर्थिक स्वतंत्रता एवं स्वास्थ्य देखभाल। लोकतंत्र की संकल्पना की तरह ही विकास की संकल्पना भी राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक पहलू है। जिस प्रकार लोकतंत्र एक गतिशील प्रक्रिया है उसी प्रकार विकास भी सामाजिक रूप से एक गतिशील प्रक्रिया है। लोकतंत्र एवं विकास दोनों ही पूर्ण रूप से एक विकसित राष्ट्र एवं विकसित लोकतंत्र का निर्माण करते हैं जिसका लाभ सीधे तौर पर देश के नागरिकों को मिलता है। केवल इतना ही नहीं लोकतंत्र एवं विकास दोनों ही राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से देश का कल्याण भी करते हैं। इसीलिए लोकतंत्र एवं विकास को एक ही सिक्के के दो पहलू भी कहा जाता है। लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या?लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।
लोकतंत्र का अभिजात्य सिद्धांत क्या है?अभिजात सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित हैं कि प्रत्येक समाज में मोटे तौर पर दो भिन्न वर्ग पाये जाते हैं- एक, थोड़े या अल्पसंख्यक लोगों का वर्ग जो अपनी क्षमता के आधार पर समाज को सर्वोच्च नेतृत्व प्रदान करता है तथा शासन करता है, तथा दूसरा, जन-समूह या असंख्य साधारणजनों का वर्ग, जिसके भाग्य में शासित होना लिखा है।
लोकतंत्र की स्थापना कब हुई थी?भारत दुनिया का दूसरा (जनसंख्या में) और सातवाँ (क्षेत्र में) सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, फिर भी यह एक युवा राष्ट्र है। 1947 की आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इसके राष्ट्रवादी के आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व के तहत बनाया गया था।
लोकतंत्र में चुनाव का क्या महत्व है?चुनाव या निर्वाचन, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। चुनाव के द्वारा ही आधुनिक लोकतंत्रों के लोग विधायिका (और कभी-कभी न्यायपालिका एवं कार्यपालिका) के विभिन्न पदों पर आसीन होने के लिये व्यक्तियों को चुनते हैं।
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