लोहे के जंग लगने की प्रक्रिया क्या कहलाती? - lohe ke jang lagane kee prakriya kya kahalaatee?

लोहे को एक मजबूत धातु माना जाता है लेकिन यह मजबूत धातु सूरज की धूप में वाष्पीकरण के माध्यम से गायब हो जाने वाले पानी के सामने कमजोर साबित हो जाती है। सवाल यह है कि लोहे में जंग क्यों लगती है और पानी में ऐसा क्या होता है जिसके कारण लोहे में तेजी से जंग लगती है और लोहा खत्म हो जाता है। आइए दोनों प्रश्नों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं:-


ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते परंतु यदि आप अपनी मेमोरी रिमाइंड करेंगे तो आप को ध्यान में आएगा कि कि लोहे की नई वस्तु चमकदार होती है परंतु धीरे-धीरे उसमें लालिमा युक्त परत चढ़ती जाती है जिसे जंग कहते हैं।  इसी प्रक्रिया को जंग लगना कहते हैं। पहले रंग बदलता है और फिर जंग दिखाई देने लगती है।


विज्ञान की भाषा में क्या कहते हैं

विज्ञान की किताब में इसे 'संक्षारण (Corrosion)' कहा गया है। अर्थात जब लोहा वायुमंडल (ऑक्सीजन) और नमी (पानी) के संपर्क में आता है तो लोहा इनके साथ क्रिया करके कुछ अवांछित यौगिक बना लेता है और लोहे का क्षय होने लगता है और इसी कारण इसका रंग भी बदल जाता है, इसे लोहे पर जंग लगना कहते है।

संक्षारण क्या होता है

संक्षारण का अर्थ है शनै :शनै : क्षरण अर्थात धीरे-धीरे समाप्त होना। जब कोई धातु अपने आसपास अम्ल या आद्रता(नमी) के संपर्क में आ जाती है तब sanksharit हो जाती है। लोहे का संक्षारण एक गंभीर समस्या। इसके अतिरिक्त चांदी के ऊपर काली परत  तथा  तांबे के ऊपर   हरी  परत चढ़ना भी संक्षारण के ही उदाहरण है।


लोहे पर जंग के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि विश्व के कुल उत्पादन का 15% लोहा जंग लगने के कारण ख़राब या नष्ट हो जाता है।

लोहे पर जंग लगना एक विद्युत रासायनिक क्रिया है। जिसमें आयरन, आयरन ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।

लोहे पर जंग लगना एक प्रकार का संक्षारण (Corrosion) है।


पानी के कारण लोहे में जंग क्यों रहती है

जब पानी की बूंदे लोहे के संपर्क में आती है तो पानी की बूंदों में ऑक्सीजन (O2) और कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उपस्थित रहती है, यह पानी की बूंदे लोहे पर एक परत बना लेती है। पानी की बूंदों में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) होने के कारण , पानी की चालकता बढ़ जाती है और पानी जल अपघट्य की तरह व्यवहार करता है। यहाँ जल अपघट्य कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के साथ क्रिया करके विद्युत अपघट्य की तरह  आयनों में टूटता है। 


सरल शब्दों में समझिए 

लोहा मजबूत नहीं बल्कि कच्ची धातु होती है। इसीलिए उसे पकाना पड़ता है। क्योंकि वह कच्ची धातु होती है और दूसरी धातुओं की तुलना में ज्यादा उपलब्ध है इसलिए लोहे का उपयोग ज्यादा किया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो लोहे पर जंग लगने की प्रक्रिया, लोहे की मृत्यु की प्रक्रिया है। जैसे इंसान की हर सांस के साथ उसकी उम्र घट जाती है, ठीक उसी प्रकार हवा के हर झोंके के साथ लोहे की उम्र घट जाती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article (current affairs in hindi, gk question in hindi, current affairs 2019 in hindi, current affairs 2018 in hindi, today current affairs in hindi, general knowledge in hindi, gk ke question, gktoday in hindi, gk question answer in hindi,)

जब लोहे से बने सामान नमी वाली हवा में ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करते हैं तो लोहे पर एक भूरे रंग की परत यानी आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) की जम जाती है. यह भूरे रंग की परत लोहे का ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया के कारण आयरन ऑक्साइड बनने से होता है, जिसे धातु का संक्षारण कहते या लोहे में जंग लगना कहते है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं की लोहे में जंग कैसे लगता है और उसको जंग लगने से कैसे बचाया जा सकता है.

लोहे के जंग लगने की प्रक्रिया क्या कहलाती? - lohe ke jang lagane kee prakriya kya kahalaatee?

Overview of rusting process in iron

हम सबने देखा है कि जब किसी धातु से बने उपकरणों को हम काफी समय के लिए हवा में छोड़ देते है तो उनमें जंग लग जाता है. हवा में ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साईड, सल्फर, अम्ल आदि होते हैं, जिनके साथ प्रतिक्रिया करने पर धातु के उपर अवांक्षित यौगिक की परत जम जाती है. इस परत के कारण धातु धीरे-धीरे क्षय होने लगती है, धातु की चमक खराब हो जाती है आदि. इस प्रक्रिया को धातु का संक्षारण (corrosion) कहते हैं.
जैसे जब लोहे से बने सामान नमी वाले हवा में वर्तमान ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करते हैं तो लोहे पर एक भूरे रंग की परत आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) जम जाती है, इस प्रक्रिया को लोहे में जंग लगना कहते हैं. इसी प्रकार जब चाँदी से बना सामान, सिक्के, जेवर आदि हवा में सल्फाईड के संपर्क लम्बे समय तक रहते है, तो उसके उपर एक काले रंग की परत सिल्वर सल्फाइड (silver sulphide)की जम जाती है, इस प्रक्रिया को चाँदी का संक्षारण या चाँदी पर दाग लगना कहते हैं और जब ताम्बे से बने सामान, सिक्के, बर्तन आदि लम्बे समय तक हवा के संपर्क में रहते है तो हवा में कार्बन डाईऑक्साइड से प्रतिक्रिया के कारण ताम्बे के उपर कॉपर कार्बोनेट (copper carbonate) की परत जम जाती है, जिसके कारण ताम्बे का वास्तविक रंग तथा चमक खराब (मलिन) हो जाती है, इस प्रक्रिया को ताम्बे का संक्षारण या corrosion कहते हैं.
आइये देखते है कि लोहे में जंग कैसे लगता है
जब लोहे से बने सामान नमी वाली हवा में ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करते हैं तो लोहे पर एक भूरे रंग की परत यानी आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) जम जाती है. यह भूरे रंग की परत लोहे का ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया के कारण आयरन ऑक्साइड बनने से होता है. आयरन ऑक्साइड छिद्रदार (Porous) होता है. यह परत कुछ समय पश्चात धातु में नीचे की और चली जाती है तथा लोहे की दूसरी परत फिर हवा में मौजूद ऑक्सीजन तथा पानी से प्रतिक्रिया कर आयरन ऑक्साईड में बदल जाती है. यह प्रक्रिया चलती रहती है तथा धीरे-धीरे लोहे का पूरा सामान आयरन ऑक्साईड में बदल जाता है, अर्थात खराब हो जाता है. इस तरह आयरन ऑक्साईड का बनना लोहे में जंग लगना कहलाता है, तथा आयरन ऑक्साइड को जंग कहते हैं.
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है: जब लोहा ऑक्सीजन तथा पानी के साथ प्रतिक्रिया करता है तो आयरन हाईड्रोक्साईड (iron hydroxide) बन जाता है. यह आयरन हाईड्रोक्साईड सूखने के बाद फेरिक ऑक्साईड (ferric oxide) में बदल जाती है, जिसे जंग कहते है.
Iron + Water + Oxygen → Rust
जब लोहा पानी तथा ऑक्सीजन के संपर्क में आता है तो जंग लग जाता है. इसका मतलब जंग लगने के लिए लोहे का पानी और ऑक्सीजन की संपर्क में आना अनिवार्य है. अर्थात हवा या ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लोहे में जंग नहीं लगता है. यदि हवा में नमी नहीं हो तो लोहे में जंग नहीं लगेगा या लोहे को ऑक्सीजन या पानी किसी एक से संपर्क में आने से रोक दिया जाय तो लोहे में जंग लगने से रोका जा सकता है.

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लोहे में जंग लगने से कैसे रोका जा सकता है
चूँकि ऑक्सीजन तथा पानी दोनों के संपर्क में ही आने से लोहे में जंग लगता है अत: लोहे से बने सामानों किसी एक अर्थात पानी या ऑक्सीजन या दोनों के संपर्क में आने से रोक देने पर लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है.
लोहे में जंग लगने से सुरक्षा या बचाव के कई तरीके हैं, जो निम्नांकित हैं:
- पेंटिंग: लोहे से बने सामानों पर पेंट की एक या दो परत चढ़ा देने से उसे जंग लगने से बचाया जा सकता है. इससे लोहा हवा में मौजूद ऑक्सीजन या नमी के संपर्क में नहीं आएगा और जंग नहीं लग पाएगा. यही कारण है कि लोहे से बने ग्रिल, कुर्सियां, दरवाज़े, आदि को नियमित रूप से पेंट किया जाता है ताकि उन्हें हवा में नमी के संपर्क में आने से रोका जा सके.
- लोहे के सामानों पर ग्रीस या तेल की परत का चढ़ाना: लोहे के सामानों पर ग्रीस या तेल की परत चढ़ा देने से वे हवा में उपस्थित नमी के संपर्क में नहीं आएगा तथा जंग नहीं लग पाएगा. इसलिए सायकल आदि की चेन पर ग्रीस की परत नियमित रूप से चढ़ाई जाती है ताकि उन्हें जंग लगने से बचाया जा सके.
- यशदलेपन (Galvanisation): लोहे आदि से बने सामानों पर जिंक धातु की परत चढ़ाने की प्रक्रिया को यशदलेपन (Galvanisation) कहते हैं. जिंक परत लोहे से बने सामान को हवा में उपस्थित पानी तथा ऑक्सीजन के संपर्क में आने से रोकती हैं, जिससे जंग नहीं लग पता है. हालाँकि जिंक आयरन से ज्यादा अभिक्रियाशील होता है, लेकिन जिंक हवा में ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर जिंक ऑक्साईड (zinc oxide)बनाता है, जिसकी एक पतली परत जिंक पर चढ़ जाती है, जो जिंक के निचली परत को आगे ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करने से रोकती है. इसलिए पानी की लाईनों में उपयोग किये जाने वाले लोहे के पाईप को galvanize किया जाता है, जिससे उनमें जंग ना लग सके.
- टिन (tin) या क्रोमियम प्लेटिंग (Chromium Plating): लोहे से बने सामानों के उपर टिन (tin) या क्रोमियम (Chromium) की परत चढ़ाने की प्रक्रिया को टिन या क्रोमियम प्लेटिंग (Chromium plating) कहते हैं. लोहे से बने सामानों पर टिन या क्रोमियम की परत इलेक्ट्रोप्लेटिंग (electroplating) की प्रक्रिया द्वारा की जाती है. टिन या क्रोमियम की परत लोहे से बने सामानों को हवा में ऑक्सीजन  के संपर्क में आने से रोकती है, साथ ही टिन तथा क्रोमियम जंग रोधी (corrosion resistant) होते है. अत: यह परत लोहे के सामानों को जंग लगने से बचाती है. साथ ही क्रोमियम की परत सामानों को एक चमकदार तथा आकर्षक भी बनाती है. इसलिए सायकल के हैंडल, सायकल के रिम आदि में क्रोमियम प्लेटिंग की जाती है.
- मिश्रात्वन (Alloying): दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण बनाने की क्रिया को मिश्रात्वन (Alloying) कहते हैं. Alloying से धातु के गुणों में वांछित सुधार लाया जाता है. स्टेनलेश स्टील को लोहा, क्रोमियम तथा निकेल (nickel) को मिश्रित कर बनाया जाता है. स्टेनलेश स्टील (stainless steel) जंग रोधी (corrosion resistant) होता है. इसलिए खाना पकाने के बर्तन तथा खाने के बर्तन, जिन्हें बार बार धोने की आवश्यकता होती है प्राय: स्टेनलेश स्टील (stainless steel) के बने होते हैं.
- अल्युमिनियम का संक्षारण (Corrosion or tarnishing of aluminium): अल्युमिनियम (Aluminium) लोहा (Iron) से ज्यादा अभिक्रियाशील (reactive)होता है. जब अल्युमिनियम हवा में उपस्थित ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करता है तो अल्युमिनियम ऑक्साईड (Aluminium oxide) बनाता है. इस तरह से बने अल्युमिनियम ऑक्साईड की एक परत अल्युमिनियम से बने सामान पर चढ़ जाती है.
अल्युमिनियम से बने सामानों पर अल्युमिनियम ऑक्साईड की परत का चढ़ना अल्युमिनियम का संक्षारण (corrosion or tarnishing of aluminium) कहलाता है और इससे जंग नहीं लगता है.
उपरोक्त लेख से ज्ञात होता है कि धातु का संक्षारण (corrosion) क्या होता है, कैसे होता है और इसे कैसे रोका जा सकता है.

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जंग लगने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

ऑक्सीजन और पानी या जलवाष्प की उपस्थिति में जंग लगने की इस प्रक्रिया को रस्टिंग (जंग लगना) कहा जाता है।

लोहे में जंग लगने की क्रिया को क्या कहते हैं?

इस प्रक्रिया को धातु का संक्षारण (corrosion) कहते हैं. जैसे जब लोहे से बने सामान नमी वाले हवा में वर्तमान ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करते हैं तो लोहे पर एक भूरे रंग की परत आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) जम जाती है, इस प्रक्रिया को लोहे में जंग लगना कहते हैं.

लोहे में जंग लगना कौन सा परिवर्तन होता है?

Detailed Solution. सही उत्तर रासायनिक परिवर्तन है। जंग लगना एक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है।

लोहे में जंग कैसे लगता है?

लोहे पर जंग लगने का मुख्य कारण ऑक्सीजन और नमी यानी जब लोहा ऑक्सीजन और नमी के संपर्क में आता है तो लोहा इनके साथ क्रिया करके कुछ अनचाहा कम्पाउंड बना लेता है और लोहे खराब होने लगते है और इसी कारण इसका रंग भी बदल जाता है, इसे लोहे पर जंग लगना कहते है.