काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

सधुक्कड़ी हिंदी / हिंदुस्तानी की एक स्थानीय बोली है, जो मध्ययुगीन उत्तर भारत की एक लोकप्रिय भाषा हुआ करती थी। यह हिंदी (खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी, मारवाड़ी) और पंजाबी के मिश्रण से बनी है, इसलिए इसे आमतौर पर पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है। [1][2] चूंकि यह सरल है, इसका उपयोग वयस्क साक्षरता पुस्तकों या शुरुआती साक्षरता पुस्तकों में किया जाता है। [3]

यह हिंदी का आम रूप है और मौखिक परंपरा और जैसे कबीर और गुरु नानक जैसे मध्यकालीन संत-कवियों के हिंदी साहित्य को इसके साथ जोड़ा जाता है। [4]मीराबाई, बाबा फ़रीद और शाह लतीफ़ जैसे अन्य संत-कवियों ने राजस्थानी, पंजाबी और सिंधी भाषाओं के अलावा इसका भी प्रयोग किया।[5]

"सधुक्कड़ी" शब्द रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) द्वारा गढ़ा गया था, और सभी विद्वान इस शब्द के उपयोग, या उन भाषाओं की पहचान इसके रूप में करने से सहमत नहीं हैं जो आम तौर पर इसके साथ सम्बंधित मानी जाती हैं। [6]

यह सभी देखें[संपादित करें]

  • संत भाषा

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Hindi Literature
  2. Amiya Dev; Sisir Kumar Das (1989). Comparative literature: theory and practice. Indian Institute of Advanced Study in association with Allied Publishers. पृ॰ 110. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8170230179.
  3. Sushama Merh-Ashraf (2004). Adult education in India: search for a paradigm. Sunrise Publications. पृ॰ 186. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8187365129.
  4. Robert W. Stevenson (1994). Hermeneutical paths to the sacred worlds of India: essays in honour of Robert W. Stevenson. Scholars Press. पृ॰ 232. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1555409520.
  5. Amiya Dev; Sisir Kumar Das (1989). Comparative literature: theory and practice. Indian Institute of Advanced Study in association with Allied Publishers. पृ॰ 110. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8170230179.
  6. David N. Lorenzen (1991). Kabir Legends and Ananta-Das's Kabir Parachai. SUNY Press. पृ॰ 74. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7914-0461-4. मूल से 7 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 नवंबर 2019.

सधुक्कड़ी हिंदी / हिंदुस्तानी की एक स्थानीय बोली है, जो मध्ययुगीन उत्तर भारत की एक लोकप्रिय भाषा हुआ करती थी। यह हिंदी (खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी, मारवाड़ी) और पंजाबी के मिश्रण से बनी है, इसलिए इसे आमतौर पर पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है। [1][2] चूंकि यह सरल है, इसका उपयोग वयस्क साक्षरता पुस्तकों या शुरुआती साक्षरता पुस्तकों में किया जाता है। [3]

यह हिंदी का आम रूप है और मौखिक परंपरा और जैसे कबीर और गुरु नानक जैसे मध्यकालीन संत-कवियों के हिंदी साहित्य को इसके साथ जोड़ा जाता है। [4]मीराबाई, बाबा फ़रीद और शाह लतीफ़ जैसे अन्य संत-कवियों ने राजस्थानी, पंजाबी और सिंधी भाषाओं के अलावा इसका भी प्रयोग किया।[5]

"सधुक्कड़ी" शब्द रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) द्वारा गढ़ा गया था, और सभी विद्वान इस शब्द के उपयोग, या उन भाषाओं की पहचान इसके रूप में करने से सहमत नहीं हैं जो आम तौर पर इसके साथ सम्बंधित मानी जाती हैं। [6]

कबीर विषय सूची

कबीर की भाषा शैली

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

पूरा नाम संत कबीरदास
अन्य नाम कबीरा, कबीर साहब
जन्म सन 1398 (लगभग)
जन्म भूमि लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु सन 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
पालक माता-पिता नीरु और नीमा
पति/पत्नी लोई
संतान कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
कर्म भूमि काशी, बनारस
कर्म-क्षेत्र समाज सुधारक कवि
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
विषय सामाजिक
भाषा अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
शिक्षा निरक्षर
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख कबीर ग्रंथावली, कबीरपंथ, बीजक, कबीर के दोहे आदि
अन्य जानकारी कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उडाता चला गया। कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था। सत्य भी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है।

भाषा और शैली

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog
हिन्दी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्द्वी जानता है, तुलसीदास।
काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

कबीरदास ने बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है। भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है, उसे उसी रूप में कहलवा लिया–बन गया है तो सीधे–सीधे, नहीं दरेरा देकर। भाषा कुछ कबीर के सामने लाचार–सी नज़र आती है। उसमें मानो ऐसी हिम्मत ही नहीं है कि इस लापरवा फक्कड़ कि किसी फ़रमाइश को नाहीं कर सके। और अकह कहानी को रूप देकर मनोग्राही बना देने की तो जैसी ताकत कबीर की भाषा में है वैसी बहुत ही कम लेखकों में पाई जाती है। असीम–अनंत ब्रह्मानन्द में आत्मा का साक्षीभूत होकर मिलना कुछ वाणी के अगोचर, पकड़ में न आ सकने वाली ही बात है। पर 'बेहद्दी मैदान में रहा कबीरा' में न केवल उस गम्भीर निगूढ़ तत्त्व को मूर्तिमान कर दिया गया है, बल्कि अपनी फ़क्कड़ाना प्रकृति की मुहर भी मार दी गई है। वाणी के ऐसे बादशाह को साहित्य–रसिक काव्यानंद का आस्वादन कराने वाला समझें तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। फिर व्यंग्य करने में और चुटकी लेने में भी कबीर अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं जानते। पंडित और क़ाज़ी, अवधु और जोगिया, मुल्ला और मौलवी–सभी उनके व्यंग्य से तिलमिला जाते थे। अत्यन्त सीधी भाषा में वे ऐसी चोट करते हैं कि खानेवाला केवल धूल झाड़ के चल देने के सिवा और कोई रास्ता नहीं पाता।

इस प्रकार यद्यपि कबीर ने कहीं काव्य लिखने की प्रतिज्ञा नहीं की तथापि उनकी आध्यात्मिक रस की गगरी से छलके हुए रस से काव्य की कटोरी में भी कम रस इकट्ठा नहीं हुआ है। कबीर ने जिन तत्त्वों को अपनी रचना से ध्वनित करना चाहा है, उसके लिए कबीर की भाषा से ज़्यादा साफ़ और ज़ोरदार भाषा की सम्भावना भी नहीं है और ज़रूरत भी नहीं है। परन्तु कालक्रम से वह भाषा आज के शिक्षित व्यक्ति को दुरूह जान पड़ती है। कबीर ने शास्त्रीय भाषा का अध्ययन नहीं किया था, पर फिर भी उनकी भाषा में परम्परा से चली आई विशेषताएँ वर्तमान हैं। इसका ऐतिहासिक कारण है। इस ऐतिहासिक कारण को जाने बिना उस भाषा को ठीक–ठीक समझना सम्भव नहीं है। इस पुस्तक में उसी ऐतिहासिक परम्परा के अध्ययन का प्रयास है। यह प्रयास पूर्ण रूप से सफल ही हुआ होगा, ऐसा हम कोई दावा नहीं करते, परन्तु वह ग्रहणीय नहीं है, इस बात में लेखक को कोई सन्देह नहीं है।

पंचमेल खिचड़ी भाषा

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog
कबीर की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। अनुकरण करने की सभी चेष्टाएँ व्यर्थ सिद्ध हुई हैं। इसी व्यक्तित्व के कारण कबीर की उक्तियाँ श्रोता को बलपूर्वक आकृष्ट करती हैं। इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को सहृदय समालोचक सम्भाल नहीं पाता और रीझकर कबीर को 'कवि' कहने में संतोष पाता है।
काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

कबीर की रचनाओं में अनेक भाषाओं के शब्द मिलते हैं यथा - अरबी, फ़ारसी, पंजाबी, बुन्देलखंडी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि के शब्द मिलते हैं इसलिए इनकी भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी' या 'सधुक्कड़ी' भाषा कहा जाता है। प्रसंग क्रम से इसमें कबीरदास की भाषा और शैली समझाने के कार्य से कभी–कभी आगे बढ़ने का साहस किया गया है। जो वाणी के अगोचर हैं, उसे वाणी के द्वारा अभिव्यक्त करने की चेष्टा की गई है; जो मन और बुद्धि की पहुँच से परे हैं; उसे बुद्धि के बल पर समझने की कोशिश की गई है; जो देश और काल की सीमा के परे हैं, उसे दो–चार–दस पृष्ठों में बाँध डालने की साहसिकता दिखाई गई है। कहते हैं, समस्त पुराण और महाभारतीय संहिता लिखने के बाद व्यासदेव ने अत्यन्त अनुताप के साथ कहा था कि 'हे अधिल विश्व के गुरुदेव, आपका कोई रूप नहीं है, फिर भी मैंने ध्यान के द्वारा इन ग्रन्थों में रूप की कल्पना की है; आप अनिर्वचनीय हैं, व्याख्या करके आपके स्वरूप को समझा सकना सम्भव नहीं है, फिर भी मैंने स्तुति के द्वारा व्याख्या करने की कोशिश की है। वाणी के द्वारा प्रकाश करने का प्रयास किया है। तुम समस्त–भुवन–व्याप्त हो, इस ब्रह्मांण्ड के प्रत्येक अणु–परमाणु में तुम भिने हुए हो, तथापि तीर्थ–यात्रादि विधान से उस व्यापित्व को खंडित किया है। भला जो सर्वत्र परिव्याप्त है, उसके लिए तीर्थ विशेष में जाने की क्या व्यवस्था? सो हे जगदीश, मेरी बुद्धिगत विकलता के ये तीन अपराध–अरूप की रूपकल्पना, अनिर्वचनीय का स्तुतिनिर्वचन, व्यापी का स्थान–विशेष में निर्देश—तुम क्षमा करो।' क्या व्यास जी के महान् आदर्श का पदानुसरण करके इस लेखक को भी यही कहने की ज़रूरत है?—

रूपं रूपविवर्जितस्य भवतो ध्यानेन यत्कल्पितम्,
स्तुत्या निर्वचनीयताऽखिलगुरोदूरी कृतायन्मया।
व्यापित्वं च निराकृतं भगवतो यत्तीर्थयात्रादिना,
क्षन्तव्यं जगदशी, तद् विकलता–दोषत्रयं मत्कृतम्।।

वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। उसी हालत में उन्होंने बनारस छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं। इसी क्रम में वे कालिंजर ज़िले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। वहाँ के संत भगवान गोस्वामी जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया-

बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान।
करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान॥

मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए कबीरदास ने कहा है-

पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार।
या ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार॥

रूपातीत व्यंजना और खंडन मंडन

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

प्रेम भक्ति को कबीरदास की वाणियों की केन्द्रीय वस्तु न मानने का ही यह परिणाम हुआ है कि अच्छे–अच्छे विद्वान् उन्हें घमंडी, अटपटी वाणी का बोलनहारा, एकेश्वरवाद और अद्वैतवाद के बारीक भेद को न जानने वाला, अहंकारी, अगुण–सगुण–विवेक–अनभिज्ञ आदि कहकर अपने को उनसे अधिक योग्य मानकर संतोष पाते रहे हैं। यह मानी हुई बात है कि जो बात लोक में अहंकार कहलाती है वह भगवत्प्रेम के क्षेत्र में, स्वाधीनभर्तृका नायिका के गर्व की भाँति अपने और प्रिय के प्रति अखंड विश्वास की परिचायक है; जो बात लोक में दब्बूपन और क़ायरता कहलाती है, वही भगवत्प्रेम के क्षेत्र में भगवान के प्रति भक्त का अनन्य परायण आम्तार्पण होती है और जो बातें लोक में परस्पर विरुद्ध जँचती हैं भगवान के विषय में उनका विरोध दूर हो जाता है। लोक में ऐसे जीव की कल्पना नहीं की जा सकती जो कर्णहीन होकर भी सब कुछ सुनता हो, चक्षुरहित बना रहकर भी सब कुछ देख सकता हो, वाणीहीन होकर भी वक्ता हो सकता हो, जो छोटे-से-छोटा भी हो और बड़े-से-बड़ा भी, जो एक भी हो और अनेक भी, जो बाहर भी हो भीतर भी, जिसे सबका मालिक भी कहा जा सके और सबका सेवक भी, जिसे सबके ऊपर भी कहा जा सके और सर्वमय सेवक भी; जिसमें समस्त गुणों का आरोप भी किया जा सके और गुणहीनता का भी, और फिर भी जो न इन्द्रिय का विषय हो, न मन का, न बुद्धि का। परन्तु भगवान के लिए सब विशेषण सब देशों के साधक सर्व–भाव से देते रहे हैं। जो भक्त नहीं हैं, जो अनुभव के द्वारा साक्षात्कार किए हुए सत्य में विश्वास नहीं रखते, वे केवल तर्क में उलझकर रह जाते हैं; पर जो भक्त हैं, वे भुजा उठाकर घोषणा करते हैं, 'अगुणहिं–सगुणहिं नहिं कछु भेदा' (तुलसीदास)। परन्तु तर्क परायण व्यक्ति इस कथन के अटपटेपन को वदतो–व्याघात कहकर संतोष कर लेता है।

यदि भक्ति को कबीरदास की वाणियों की केन्द्रीय वस्तु मान लिया जाता तो निस्सन्देह स्वीकार कर लिया जाता कि भक्त के लिए वे सारी बातें बेमतलब हैं,जिन्हें कि विद्वान् लोग बारीक भेद कहकर आनन्द पाया करते हैं। भगवान के अनिवर्चनीय स्वरूप को भक्त ने जैसा कुछ देखा है वह वाणी के प्रकाशन क्षेत्र के बाहर हैं, इसीलिए वाणी नाना प्रकार से परस्पर विरोधी और अविरोधी शब्दों के द्वारा उस परम प्रेममय का रूप निर्देश करने की चेष्टा करती है। भक्त उसकी असमर्थता पर नहीं जाता, वह उसकी रूपातीत व्यंजना को ही देखता है। भक्ति तत्त्व की व्याख्या करते–करते उन्हें उन बाह्याचार के जंजालों को साफ़ करने की ज़रूरत महसूस हुई है जो अपनी जड़ प्रकृति के कारण विशुद्ध चेतन–तत्त्व की उपलब्धि में बाधक है ! यह बात ही समाज सुधार और साम्प्रदाय ऐक्य की विधात्री बन गई है। पर यहाँ भी यह कह रखना ठीक है कि वह भी फोकट का माल या बाईप्रोडक्ट ही है।

कबीरदास का भक्त रूप

कबीरदास का यह भक्त रूप ही उनका वास्तविक रूप है। इसी केन्द्र के इर्द–गिर्द उनके अन्य रूप स्वयमेव प्रकाशित हो उठे हैं। मुश्किल यह है कि इस केन्द्रीय वस्तु का प्रकाश भाषा की पहुँच से बाहर है। भक्ति कहकर नहीं समझाई जा सकती, वह अनुभव करके आस्वादन की जा सकती है। कबीरदासे ने इस बात को हज़ार तरीक़े से कहा है। इस भक्ति या भगवान के प्रति अहैतुक अनुराग की बात कहते समय उन्हें ऐसी बहुत सी बातें कहनी पड़ीं हैं जो भक्ति नहीं हैं। पर भक्ति के अनुभव करने में सहायक हैं। मूल वस्तु चूँकि वाणी के अगोचर है, इसलिए केवल वाणी का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को अगर भ्रम में पड़ जाना पड़ा हो तो आश्चर्य की कोई बात नहीं है। वाणी द्वारा उन्होंने उस निगूढ़ अनुभवैकगम्य तत्त्व की और इशारा किया है, उसे ध्वनित किया गया है। ऐसा करने के लिए उन्हें भाषा के द्वारा रूप खड़ा करना पड़ा है और अरूप को रूप के द्वारा अभिव्यक्त करने की साधना करनी पड़ी है। काव्यशास्त्र के आचार्य इसे ही कवि की सबसे बड़ी शक्ति बताते हैं। रूप के द्वारा अरूप की व्यजंना, कथन के जरिए अकथ्य का ध्वनन, काव्य–शक्ति का चरम निर्देशन नहीं तो क्या है? फिर भी ध्वनित वस्तु ही प्रधान है; ध्वनित करने की शैली और सामग्री नहीं। इस प्रकार काव्यत्व उनके पदों में फोकट का माल है—बाइप्रोडक्ट है; वह कोलतार और सीरे की भाँति और चीज़ों को बनाते–बनाते अपने–आप बन गया है।

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

कबीर का साहित्यिक परिचय

कबीर की भाषा शैली

कबीर का व्यक्तित्व

काव्य में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग - kaavy mein sadhukkadee bhaasha ka prayog

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

देखें  वार्ता  बदलें

कबीर संबंधित लेख
परिचय

कबीर · जीवन परिचय · समकालीन समाज · साहित्यिक परिचय · भाषा और शैली · व्यक्तित्व · जीवन दर्शन · रचनाएँ · कबीर के दोहे · कबीर आलेख · कबीरपंथ · कबीर जयंती

रचनाएँ

कबीर के दोहे · कबीर के पद · कबीर ग्रंथावली · बीजक · साखी · सबद · रमैनी · कबीर -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी · कबीर की परिचई

देखें  वार्ता  बदलें

भारत के कवि
संस्कृत के कवि

अश्वघोष · कल्हण · वररुचि · कालिदास · विद्यापति · बाणभट्ट · मम्मट · भर्तृहरि · भीमस्वामी · भट्टोजिदीक्षित · भवभूति · मंखक · जयदेव · भारवि · माघ · श्रीहर्ष · क्षेमेन्द्र · कुंतक · राजशेखर · शूद्रक · विशाखदत्त · भास · हरिषेण · अप्पय दीक्षित

आदि काल

चंदबरदाई · नरपति नाल्ह · जगनिक · चर्पटीनाथ · धोयी · अमीर ख़ुसरो · पुष्पदन्त · स्वयंभू देव · शंकरदेव · सरहपा · दलपति विजय · अद्दहमाण · ईश्वरदास · शबरपा

भक्तिकाल

कबीर · तुलसीदास · कंबन · दादू दयाल · मीरां · अंदाल · रसखान · रहीम · रैदास · मलिक मुहम्मद जायसी · लालचंद · नरोत्तमदास · नामदेव · छीहल · कृष्णदास पयहारी · लालच दास · कृपाराम · कुमारव्यास · महापात्र नरहरि बंदीजन · आलम · गंग · मनोहर · बलभद्र मिश्र · ज्ञानदास · जमाल · होलराय ब्रह्मभट्ट · कृत्तिवास · क़ादिर बख्श · बनारसी दास · सुंदर दास · धर्मदास · गुरुनानक · सुन्दरदास · त्यागराज · आंडाल · गोविन्ददास आचार्य · गोविन्ददास चक्रवर्ती · गोविन्ददास कविराज · मलूकदास · अक्षरअनन्य · जगजीवनदास · दयाराम · कुतबन · मंझन · उसमान · शेख नबी · नूर मुहम्मद · स्वामी अग्रदास · नाभादास · अनन्य अलि · प्राणचंद चौहान · हृदयराम · हितहरिवंश · गदाधर भट्ट · स्वामी हरिदास · सूरदास मदनमोहन · श्रीभट्ट · व्यास जी · ध्रुवदास · टोडरमल · बीरबल · पुहकर कवि · कासिमशाह · तुकाराम · दरिया साहेब · अमरेश · दरिया साहेब · धरनीदास · अप्पर · हलधरदास · हरिराम व्यास · पुण्डरीक · नरोत्तम दास ठाकुर · नयनार · अनीस · बम्मेरा पोतना · श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि

अष्टछाप कवि

सूरदास · कुम्भनदास · कृष्णदास · गोविंदस्वामी · चतुर्भुजदास · छीतस्वामी · नंददास · परमानंद दास ·अनंतदास

रीति काल

बिहारी लाल · केशव · भूषण · घनानन्द · सैय्यद मुबारक़ अली बिलग्रामी · सेनापति · चिंतामणि त्रिपाठी · बेनी · मंडन · मतिराम · कुलपति मिश्र · सुखदेव मिश्र · कालिदास त्रिवेदी · राम · नेवाज · देव · श्रीधर · सूरति मिश्र · कवींद्र · श्रीपति · बीर · कृष्ण · पराग (कवि) · गजराज उपाध्याय · रसिक सुमति · गंजन · अली मुहीब ख़ाँ · भिखारी दास · भूपति · तोषनिधि · बंसीधर · दलपति राय · सोमनाथ माथुर · रसलीन · रघुनाथ · दूलह · कुमार मणिभट्ट · शंभुनाथ मिश्र · उजियारे कवि · शिवसहाय दास · गोपालचन्द्र 'गिरिधरदास' · चरनदास · रूपसाहि · बैरीसाल · ऋषिनाथ · रतन · दत्त · नाथ · चंदन · देवकीनन्दन · महाराज रामसिंह · भान · ठाकुर बद्रीजन · घनश्याम शुक्ल · थान · कृपानिवास · बेनी बंदीजन · बेनी प्रवीन · जसवंत सिंह · यशोदानंदन · करन · गुरदीन पांडे · ब्रह्मदत्त · धनीराम · पद्माकर · ग्वाल · प्रतापसाहि · चंद्रशेखर वाजपेयी · केशवदास · दूलनदास · भीषनजी · रसिक गोविंद · सूर्यमल्ल मिश्रण · कुवरि · अखा भगत · कवीन्द्राचार्य सरस्वती · मनीराम मिश्र · उजियारे लाल · बनवारी · तुलसी साहिब · सबलसिंह चौहान · वृंद · छत्रसिंह · बैताल · आलम · गुरु गोविंदसिंह · श्रीधर · लाल कवि · रसनिधि · महाराज विश्वनाथ सिंह · नागरीदास · जोधाराज · बख्शी हंसराज · जनकराज किशोरीशरण · अलबेली अलि · भीखा साहब · हितवृंदावन दास · गिरधर कविराय · भगवत रसिक · श्री हठी · गुमान मिश्र · सरजूराम पंडित · सूदन · हरनारायण · ब्रजवासी दास · घासीराम · गोकुलनाथ · गोपीनाथ · मणिदेव · बोधा · रामचंद्र · मंचित · मधुसूदन दास · मनियार सिंह · कृष्णदास · भरमी · गणेश बन्दीजन · सम्मन · ठाकुर असनी · ठाकुर असनी दूसरे · ठाकुर बुंदेलखंडी · ललकदास · खुमान · नवलसिंह · रामसहाय दास · चंद्रशेखर कवि · दीनदयाल गिरि · पजनेस · गिरिधरदास · द्विजदेव · चंद्रशेखर · अहमद · चंडीदास · पृथ्वीराज · बुल्ले शाह · श्रीनाथ · गंगाधर मेहरे · कविराज श्यामलदास

छायावादी कवि

सुमित्रानंदन पंत · जयशंकर प्रसाद · सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' · महादेवी वर्मा · आनंदीप्रसाद श्रीवास्तव · वियोगी हरि

आधुनिक काल

अरबिंदो घोष · मैथिलीशरण गुप्त · ग़ालिब · फ़िराक़ गोरखपुरी · नागार्जुन · सरोजिनी नायडू · रामधारी सिंह 'दिनकर' · हरिवंश राय बच्चन · गजानन माधव 'मुक्तिबोध' · बालकृष्ण शर्मा नवीन · अयोध्या प्रसाद खत्री · सुभद्रा कुमारी चौहान · निर्मला ठाकुर · नरेश मेहता · अमृता प्रीतम · माखन लाल चतुर्वेदी · मोहम्मद इक़बाल · रामकुमार वर्मा · रामविलास शर्मा · कुंवर नारायण · रामनरेश त्रिपाठी · रंगलाल बनर्जी · श्रीधर पाठक · राय कृष्णदास · गुलज़ार · गुरुजाडा अप्पाराव · भगवतीचरण वर्मा · श्रीकांत वर्मा · जगन्नाथदास 'रत्नाकर' · सोम ठाकुर · नकछेदी तिवारी · लालधर त्रिपाठी 'प्रवासी' · दिनेश कुमार शुक्ल · प्रताप नारायण मिश्र · दलपतराम · धीरेन्द्र वर्मा · देवनाथ पाण्डेय 'रसाल' · अज्ञेय · माइकल मधुसूदन दत्त · तोरु दत्त · आरसी प्रसाद सिंह · ठाकुर प्रसाद सिंह · अर्जुनदास केडिया · अनूप शर्मा · कन्हैयालाल सेठिया · जीवनानन्द दास · काका हाथरसी · त्रिलोचन शास्त्री · बाबू कृष्णचन्द्र · कुंजर भारती · केशवसुत · शिवदीन राम जोशी · सुब्रह्मण्य भारती · शिवमंगल सिंह सुमन · श्याम नारायण पांडेय · विद्यावती 'कोकिल' · शमशेर बहादुर सिंह · जानकी वल्लभ शास्त्री · पंकज सिंह · मीर · भवानी प्रसाद मिश्र · कृष्ण वल्लभ द्विवेदी · दुष्यंत कुमार · नामवर सिंह · चंद्रसिंह बिरकाली · केदारनाथ अग्रवाल · केदारनाथ सिंह · श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' · हरनाथ शर्मा · विजयदेव नारायण साही · मलयज · उमाकांत मालवीय · गिरिजाकुमार माथुर · भगवत रावत · नरेंद्र शर्मा · कैलाश वाजपेयी · गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' · वीरेन डंगवाल · सोहन लाल द्विवेदी · सी. नारायण रेड्डी · विवेकी राय · भाई वीर सिंह · बनादास · जगतसिंह · जोधराज · मोहन प्यारे द्विवेदी · अजित शंकर चौधरी · चंद्रकांत देवताले · सुदामा पांडेय 'धूमिल' · मीर बाबर अली अनीस · कस्तूरी बाई · अनामिका · शिवसिंह सेंगर · कृष्णाजी केशव दामले · वल्लतोल नारायण मेनन · मंगलेश डबराल · ज्ञानेन्द्रपति · चिराग़ जैन · अदम गोंडवी · विश्वनाथ प्रसाद तिवारी · जॉय गोस्वामी · पवन दीवान · मदन कश्यप · प्रकाशराव असावडी · लीलाधर जगूड़ी · मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' · शिव कुमार बटालवी · रामप्रसाद शर्मा 'महर्षि' · सिद्धलिंगैया

सधुक्कड़ी का प्रयोग कहाँ हुआ है?

सधुक्कड़ी हिंदी / हिंदुस्तानी की एक स्थानीय बोली है, जो मध्ययुगीन उत्तर भारत की एक लोकप्रिय भाषा हुआ करती थी। यह हिंदी (खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी, मारवाड़ी) और पंजाबी के मिश्रण से बनी है, इसलिए इसे आमतौर पर पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है।

कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी किसने कहा है?

अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं। कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। इनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित हैं। राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है।

कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है स्पष्ट कीजिए?

कबीरदास जन-सामान्य के कवि थे, अत: उन्होंने सीधी-सरल भाषा को अपनाया है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के शब्द खड़ी बोली, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, पंजाबी, ब्रज, अवधी आदि के प्रयुक्त हुए हैं, अत:, 'पंचमेल खिचड़ी' अथवा 'सधुक्कड़ी' भाषा कहा जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे 'सधुक्कड़ी' नाम दिया है

साधु कड़ी किसकी भाषा थी?

Sansad TV is an Indian public broadcast service.