कैसे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए? - kaise chhaatron mein vaigyaanik drshtikon vikasit karane ke lie?

Answer:  वैज्ञानिक दृष्टिकोण (अभिवृत्ति) का अर्थ :

प्रकृति की कार्यशैली को समझना ही विज्ञान का उद्देश्य है। प्राचीनकाल में बहुत-सी बातें सिर्फ इसलिए मान ली जाती थीं कि वे किसी व्यक्ति विशेष या धर्म विशेष द्वारा प्रतिपादित थीं; लेकिन आधुनिक विज्ञान सिर्फ ऐसे विचारों का समूह है जो उन बातों पर निर्भर है जिनका प्रत्यक्ष ज्ञान सभी व्यक्तियों को उनकी आंख, नाक, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा हो सकता है। वैज्ञानिक खोज की नई प्रणाली सिर्फ प्रेक्षित बातों पर निर्भर है, जिसमें धारणाओं को पुष्टि प्रेषित तथ्यों से होती है तथा उनकी मान्यता इस पुष्टि पर निर्भर है। शिक्षण के इस दृष्टिकोण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं। यह अंधविश्वास दूर कर व्यक्ति में विश्वास तथा जिज्ञासा का प्रादुर्भाव करता है।

विज्ञान के अध्ययन से वैज्ञानिक विधि का अनुसरण करने से वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। रूढ़िगत तथा परंपरागत विचारों से हटकर स्वतंत्र और मुक्त चिंतन की प्रवृत्ति ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जन्म दिया है। वास्तव में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन के हर क्षेत्र में सत्य तथा यथार्थ का पता लगा सकते हैं। उदार मनोवृत्ति ज्ञानप्राप्ति की जिज्ञासा ज्ञान प्राप्त करने की प्रविधियों में विश्वास तथा प्राप्त ज्ञान के प्रयोग के आधार पर उसके प्रामाणिक होने की संभावना, ये सभी तथ्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण में निहित हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या हैं?- बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अथवा अभिवृत्ति पैदा करना एवं उसके विकास हेतु उपयुक्त अवसर देना विज्ञान शिक्षण का सबसे प्रमुख तथा जरूरी उद्देश्य है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की परिभाषाएं :

(1) “समस्या समाधान के सभी तत्वों का एक व्यवहार समूह या मानसिक ढाँचे से निकट का संबंध है जो विज्ञान शिक्षण का महत्वपूर्ण परिणाम है |

(2) “सहज जिज्ञासा, उदार मनोवृत्ति, सत्य के प्रति निष्ठा, अपनी कार्य पद्धति में पूर्ण विश्वास तथा अपने परिणाम या अंतिम विचारों की सत्यता को प्रयोग में लाकर प्रमाणित करना आदि गुण वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अंतर्गत आते हैं।

(3) “वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अंतर्गत पक्षपात, संकीर्णता तथा अंधविश्वासों से मुक्ति, उदार मनोवृत्ति, आलोचनात्मक मनोवृत्ति, बौद्धिक ईमानदारी, नव साक्ष्यों की प्राप्ति के आधार पर विश्वास करना आदि गुण शामिल हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मूल तत्व :

1. जिज्ञासा- वैज्ञानिकों द्वारा हमारे चारों तरफ मौजूद पर्यावरण तथा प्रकृति के बारे मं वभिन्न क्रिया-कलापों के संबंध में अधिक से अधिक जानने की उत्कंठा तथा नवीन ज्ञान का पता लगाना या उसकी आकांक्षा रखना ही जिज्ञासा है। वैज्ञानिक बड़े ही जिज्ञासु होते हैं। वे नवीन ज्ञान को ग्रहण करने के लिए या ज्ञान की अभिवृद्धि करने में हमेशा अध्ययनरत तथा चिंतनरत रहते हैं।

2. अंधविश्वासों से मुक्ति- समाज में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा सामाजिक रूप से परंपरागत तथा रूढ़िवादी विचारधाराओं को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना ही अंधविश्वास है; जैसे-बिल्ली के द्वारा रास्ता काटने पर घर से नहीं निकलना, घर से निकलते समय कुत्ते का कान फड़फड़ाना, घर से बाहर किसी कार्य के लिए जाते समय रास्ते में किसी व्यक्ति द्वारा खाली बर्तन लिये हुए निकलना, छींक आने पर नये कार्य का शुभारंभ नहीं करना, घर में टूटे हुए आयना (शीशे) में मुँह नहीं देखना आदि अंधविश्वास के उदाहरण हैं। इनमें अधिकांश बातें (अंधविश्वास) बड़े-बूढ़ों की सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होती हैं। विज्ञान के प्रयोग से ही क्या, कैसे, किस प्रकार तथा क्यों? के प्रश्नों का प्रामाणिक हल प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह प्रचलित धारणाओं की सत्यता तथा असत्यता को परख कर उन्हें स्वीकार करना अथवा नहीं करना ही अंधविश्वास से मुक्ति पाने का मार्ग है। वास्तव में वैज्ञानिक विचारधारा वाले व्यक्तियों की अंधविश्वासों में कोई आस्था नहीं होती।

विज्ञान ने मनुष्य का दृष्टिकोण बदल दिया है। वर्तमान में विज्ञान का छात्र सामाजिक तथा प्राकृतिक घटनाओं का सही रूप में विश्लेषण इन्हीं प्रश्नों के आधार पर करके तर्कपूर्ण ढंग से उनकी व्याख्या करता है। वह भ्रमयुक्त, परंपरागत रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों पर भरोसा नहीं करता। आज के वर्तमान युग में मनुष्य के विचार से बीमारियों का कारण भूत-प्रेत, देवी-देवताओं का प्रकोप तथा अन्य भ्रामक बातें नहीं हैं।

3. उदार मनोवृत्ति- वैज्ञानिक अपने विचारों को पूर्वाग्रहों से मुक्त रखते हैं। वैज्ञानिक व्यक्तिगत हित अथवा स्वार्थ की भावना से प्रेरित होकर कोई कार्य नहीं करते एवं अपनी विचारधारा के प्रतिकूल विचारों का भी वे उचित सम्मान करते हैं। वैज्ञानिक अपनी स्वयं की विचारधारा अथवा नियम के गलत सिद्ध हो जाने पर नये विचारों को स्वीकार करने में कभी नहीं हिचकिचाता। वैज्ञानिक ऐसा तब तक नहीं करता, जब तक कि वह स्वयं प्रयोगों के आधार पर उनकी सत्यता की जाँच नहीं कर लेता।

4. समस्याओं का क्रमबद्ध समाधान- समस्या को भली भाँति समझकर ही उसका समाधान करना चाहिए। समस्या के संबंध में विचार-विमर्श तथा तर्क-वितर्क करने के पश्चात् उसकी व्याख्या करनी चाहिए। व्याख्या से समस्या के विभिन्न पदों को प्राथमिकता के आधार पर क्रमबद्ध करके समस्याओं का समाधान पेश किया जाना चाहिए। इस तरह आप अनुभव करेंगे कि इस पद्धति द्वारा समस्या सुगमता से सुलझने लगती है।

5. धैर्य- वैज्ञानिकों में धैर्य का होना नितांत जरूरी समझा जाता है। किसी समस्या का उचित समाधान नहीं मिलने पर या उसमें असफल रहने पर घबराकर अथवा हताश होकर उसे छोड़ देना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुकूल नहीं है। ऐसी स्थिति में उसे अपनी असफलताओं के कारणों का पता लगाकर समस्या समाधान के तौर-तरीकों में जरूरी संशोधन तथा परिवर्तन करके पुनः पूर्ण लगन, उत्साह और धैर्यपूर्वक उसके समाधान हेतु जुट जाना जरूरी है। धैर्य वैज्ञानिक अनुसंधान की महत्वपूर्ण कड़ी है। अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति को धैर्य परिचय अवश्य देना चाहिए। इसका उदाहरण-वैज्ञानिक मिलीकॉन ने इलेक्ट्रॉन का आवेश ज्ञात करने के लिए कई वर्षों तक प्रतिदिन 18-18 घंटे तक कार्य किया तथा अंतत: वे अपने उद्देश्य में सफल हुए। यह सब मिलीकॉन के धैर्य का परिचायक उसे सफलता की सीढ़ी पर ले पहुँचा।

6. ईमानदारी- वैज्ञानिक अपने द्वारा प्रतिपादित निष्कर्षों की सूचना पूर्ण ईमानदारी से देते हैं, जिसमें कि अन्य व्यक्ति धोखा न खाकर अनुसंधान कार्य की वास्तविकता को समझ सकें एवं उसे अपने जीवन में अंगीकार कर आगे बढ़ सकें। वैज्ञानिक अपने द्वारा प्रतिपादित किये गाये निष्कर्षों को अपनी रुचि अथवा अरुचि से प्रभावित नहीं होने देते। वैज्ञानिकों का यह बहुत बड़ा गुण ईमानदारी होता है।

इनके अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संबंधित कुछ प्रमुख बिन्दु निम्न तरह हैं-

(1) कारण तथा प्रभाव में विश्वास का होना।

(2) विज्ञान विषय के विशेषज्ञों द्वारा लिखित पुस्तकों में ज्यादा विश्वास।

(3) वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता।

(4) वैज्ञानिक घटनाओं के प्रति रुचि तथा अंतर्दृष्टि की क्षमता का होना।

(5) निरंतर अध्ययन की आदत का होना।

(6) तथ्यों के संकलन तथा विश्लेषण की योग्यता का होना।

(7) निष्कर्षों की जाँच तथा पुष्टि करने की इच्छा का होना।

विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने के लिए अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को स्वाध्याय, आशुरचित उपकरण निर्माण, प्रायोगिक कार्य एवं समस्या समाधान के लिए स्वतंत्र रूप से अवसर प्रदान करे अर्थात् पाठ्यक्रम, भौतिक सुविधाएं एवं प्रायोगिक कार्य के लिए उन्हें अवसर प्रदान करने के लिए छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किया जाये।

वैज्ञानिक अभिवृत्ति (दृष्टिकोण) की विशेषताएं :

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मुख्य विशेषताएं निम्न तरह हैं-

(1) विज्ञान का आधार प्रत्यक्ष सत्य है

(2) विज्ञान हर तथ्य का विश्लेषण करके फिर उसके प्रत्येक भाग को बारीकी से समझने का प्रयास करता है। उदाहरणार्थ-चुंबकीय आकर्षण किस तरह निर्भर हैं-

इसे हम कई भागों में बाँट सकते हैं-

(क) क्या वह आकर्षित करने वाले चुंबक के ध्रुव की शक्ति पर निर्भर है।

(ख) क्या आकर्षण चुंबक के ध्रुव की शक्ति पर निर्भर है।

(ग) क्या दोनों के बीच की दूरी पर निर्भर है, आदि।

(3) वैज्ञानिक विचारधारा में परिकल्पना का स्थान, जब कभी हम दो तथ्यों को हमेशा एक साथ होते हुए देखते हैं तो तुरंत उनके बीच किसी संबंध की कल्पना कर लेते हैं, फिर इस कल्पित धारणा के आधार पर नये दृष्टांतों की खोज जारी रहती है। इस तरह परिकल्पना का उपयोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण की एक प्रमुख विशेषता। मानव मस्तिष्क उस समय तक धारणा नहीं बनाता जब तक कि उसे सारे आंकड़े नहीं मिल जायें। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तुरंत वह तथ्यों के संबंध की परिकल्पना करना शुरू कर देता है। इस परिकल्पना से ही आगे के अवलोकन का मार्ग निर्धारित होता है।

(4) वैज्ञानिक दृष्टिकोण पक्षपातविहीन है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिर्फ सत्य की खोज करता है। पक्षपातपूर्ण तर्क एवं संवेगात्मक आशक्ति उसे ग्राह्य नहीं है। सत्य ही उसका उद्देश्य होता है।

(5) विज्ञान वस्तुनिष्ठ मापकों पर निर्भर रहता है। जिन व्यक्तियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रशिक्षण नहीं मिला है, वे बहुधा वैयक्तिक अंदाज से मूल्यांकन करते हैं। इसलिए विज्ञान की प्रगति अच्छे मापकों पर निर्भर करती है।

(6) विज्ञान परिणाम या नतीजों की खोज में रहता है। वैज्ञानिक सिर्फ इतना जान लेने से ही संतुष्ट नहीं होता कि चुंबक की आकर्षण शक्ति दूरी के अनुसार कम हो जाती है। वरन् यह भी जानना चाहता है कि इस आकर्षण शक्ति का प्रभाव कितनी दूरी पर कितना रहता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिक्षण में विज्ञान कक्ष तथा प्रयोगशाला का महत्वपूर्ण स्थान है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने की विधियाँ :

(1) अध्यापक का व्यक्तित्व- छात्रों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाने हेतु अध्यापक को सर्वप्रथम अपना दृष्टिकोण वैज्ञानिक बनाना चाहिए। उसे अपना व्यवहार इस तरह रखना चाहिए जिनसे कि छात्रों पर सत्यप्रियता एवं तार्किकता का प्रभाव पड़े। उसका कर्तव्य है कि वह बगैर पर्याप्त आधार एवं प्रामाणिकता के किसी बात को स्वीकार न करे। वह छात्रों को तर्क के आधार पर ही किसी तथ्य को स्वीकार करने हेतु बाध्य करे। उन पर व्यक्तिगत विचारों को लादना पूर्णतया अनुचित है।

(2) उचित शिक्षण-विधियाँ- विज्ञान का शिक्षण प्रभावशाली एवं क्रमबद्ध होना चाहिए। छात्रों को हर तथ्य यथासंभव प्रयोग-प्रदर्शन द्वारा समझाया जाये। बालकों को भी निरीक्षण, प्रयोग एवं निष्कर्ष निकालने के अवसर दिये जायें।

(3) छात्रों द्वारा किये गये प्रश्नों का उचित उत्तर दिया जाये। उनके उचित संवेगों को प्रोत्साहित किया जाये। गृह-कार्य भी इस ढंग का हो कि छात्र तर्कात्मक एवं वैज्ञानिक ढंग से विचार कर सके। शिक्षण-विधियाँ यथासंभव समस्या, ह्यूरिस्टिक एवं प्रयोग-प्रदर्शन में से ही हों।

(4) अंधविश्वासों को दूर करना-
छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास हेतु जरूरी है कि छात्रों में फैले हुए अंधविश्वासों को दूर किया जाये। बचपन में प्राय: अभिभावक बालकों के मन में गलत धारणाएं पैदा कर देते हैं जिससे उनके भीतर अंधविश्वास की भावनाएं पैदा हो जाती हैं। परिणामस्वरूप बालक बगैर विचार किये दूसरों की बातों पर विश्वास करने लगते हैं।

ऐसी दशा में जरूरी है कि बालकों में घुसी गलत धारणाओं का सामूहिक रूप से खंडन कर, उन्हें सत्य बात स्वीकार करने हेतु उत्साहित किया जाये; उदाहरण के लिए-कुछ लोग चेचक, प्लेग जैसी बीमारियों को दैवी प्रकोप समझते हैं तथा उनका वैज्ञानिक उपचार करने के बजाय देवी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। अध्यापक को चाहिए कि वह इन रोगों के वैज्ञानिक कारण एवं उपचार बताये।

(5) छात्रों की जिज्ञासाओं को उचित ढंग से तृप्त करना- छोटे बालकों में प्रकृति के रहस्यों के प्रति विशेष जिज्ञासा होती है। वे चाँद, सूरज एवं सितारों के विषय में ठीक-ठीक जानना चाहते हैं। इस विषय में अध्यापक को छात्रों को ठीक-ठीक सूचना देनी चाहिए। पानी कैसे बरसता है? बादल क्या हैं? आदि जिज्ञासाओं को वैज्ञानिक ढंग से तृप्त किया जाये।

(6) छात्रों द्वारा विज्ञान-साहित्य का उपयोग- छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति पैदा करने हेतु जरूरी है कि उन्हें विज्ञान-संबंधी साहित्य का अध्ययन करने हेतु उत्साहित किया जाये। प्रायः देखा गया है कि जो छात्र पाठ्यपुस्तक के अलावा अन्य वैज्ञानिक पुस्तकों एवं साहित्य का अध्ययन करते हैं उनमें विज्ञान के प्रति रुचि अन्य छात्रों की बजाय ज्यादा होती है। ऐसी दशा में आवश्यक है कि छात्रों हेतु विभिन्न वैज्ञानिक पुस्तकें अध्ययन के लिए मँगवाई जायें। 'विज्ञान लोक' जैसी रुचिकर पत्रिकाएं छात्रों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाती हैं। महान् वैज्ञानिकों की जीवनियाँ, प्रमुख आविष्कारों की कहानियाँ छात्रों हेतु प्रेरणादायक सिद्ध हो सकती हैं।

छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण कैसे विकसित करें?

इसरो अब स्कूली छात्रों को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (STEM), अंतरिक्ष शिक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर शिक्षण-प्रशिक्षण देने जा रहा है। छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने उद्देश्य से शुरू की गई इस पहल के अंतर्गत इसरो 100 अटल टिंकरिंग लैब्‍स (ATL) को गोद ले रहा है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास कैसे किया जा सकता है?

पुस्तकों में दिए गए अभ्यासों का प्रयोग- विज्ञान के क्षेत्र में तरह-तरह की ज्ञानवर्द्धक पत्रिकाएं प्रकाशित होती रहती हैं। उनमें तरह-तरह के छोटे-छोटे अभ्यास व प्रयोग भी दिए होते हैं। इनके अभ्यास से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया जा सकता है।

शिक्षण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है?

ताकि वे क्या, क्यों और कैसे के चश्मे से घटनाओं को देख सकें और विज्ञान सम्मत एक निर्णय पर पहुँच सकें। विज्ञान शिक्षण का उद्देश्य भी यही है। यह लेख असामाजिक कुरूतियों एवं अंधविश्वास पर आधारित अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करते हुए शिक्षा के माध्यम से उन्हें दूर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने पर भी ज़ोर देता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं?

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब होता है प्राकृतिक विज्ञान के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे सामाजिक और नैतिक मामलों में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना। वैज्ञानिक दृष्टिकोण हासिल करना मानव व्यवहार में परिवर्तन लाता है और इसलिए यह प्राकृतिक विज्ञान का हिस्सा नहीं है।