नई दिल्ली. आज विश्व जनसंख्या दिवस है। 11 जुलाई, 1987 को दुनिया की आबादी 5 अरब को पार कर गई थी। उसी दिन की याद में 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 1.21 अरब है। पिछले 93 सालों (1921 के बाद से) से हमारी आबादी लगातार बढ़ रही है। 1901 के बाद के इतिहास में सिर्फ 1911-2021 के बीच का दशक ही ऐसा समय था, जब भारत की आबादी घटी। 1921 के बाद से भारत की आबादी बढ़ती चली गई। 1921 से पहले कभी हमारी जनसंख्या बढ़ जाती थी तो कभी घट जाती थी। इसी वजह से 1921 के साल को 'द ग्रेट डिवाइड' कहा जाता है। लेकिन इसके बाद हमारी जनसंख्या लगातार बढ़ती चली गई। इसमें सिर्फ बंगाल में अकाल और भारत से पाकिस्तान के अलग होने की वजह से 1941 से 1951 के बीच जनसंख्या में थोड़ी कमी दर्ज की गई थी। Show
आंकड़े कारण मृत्यु दर में कमी जनसंख्या में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार रहा है। 1970 के दशक में मृत्यु दर जहां जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में 130 की मौत एक साल की उम्र पूरी करने से पहले हो जाती थी। यही आंकड़ा 2004 में घटकर 58 हो गया। इसके लिए टीकाकरण अभियान समेत स्वास्थ्य सेवा से जुड़े तमाम सरकारी और गैर-सरकारी अभियान और योजनाएं जिम्मेदार रहीं। औसत भारतीय की उम्र बढ़ी 1801-1901 तक सिर्फ 3 करोड़ बढ़ी हमारी आबादी, अगली सदी में 77 करोड़ 2011 में दुनिया की आबादी 7 अरब के आंकड़े को छू गई थी। 1950 की तुलना में यह ढाई अरब ज्यादा है। भारत की आबादी 2001 में एक अरब के आंकड़े को पार कर गई थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की आबादी 1 अरब 21 करोड़ थी। अनुमान जताया जा रहा है कि 2030 तक भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। हालांकि, भारत की आबादी में तेजी पिछले 100 सालों में ही आई है। 1801 से लेकर 1901 तक के 100 सालों में हमारी कुल आबादी सिर्फ 3 करोड़ बढ़ी, लेकिन अगली सदी यानी 1901 से लेकर 2001 के बीच हमारी जनसंख्या 77 करोड़ हो गई। अतिथि (Guest): डा. नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), पूनम मुटरेजा (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, पॉपुलेशन फ़ॉउंडेशन) आपके ब्राउजर में वीडियो Support नहीं है। वीडियो के लिए यहाँ पर क्लिक करें। चर्चा में क्यों?हाल ही में, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई। याचिकाकर्ता की दलील है कि देश में अपराध, प्रदूषण बढ़ने और संसाधनों तथा नौकरियों की कमी का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। साथ ही याचिका में न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अगुवाई में गठित राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग की सिफारिशें लागू करने का भी अनुरोध किया गया। अदालत ने इस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट-2019 हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यानी UNFPA द्वारा जारी स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2019 रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2010 से 2019 के बीच भारत की आबादी औसतन 1.2 फीसदी बढ़ी है, जो चीन की सालाना वृद्धि दर के दोगुने से भी ज़्यादा है।
क्या है जनसंख्या और जनसंख्या वृद्धि?जीव विज्ञान में, विशेष प्रजाति के अंत: जीव प्रजनन के संग्रह को जनसंख्या कहते हैं। समाजशास्त्र में जनसंख्या को 'मनुष्यों के संग्रह' के तौर पर परिभाषित किया गया है। किसी क्षेत्र में, समय की किसी निश्चित अवधि के दौरान वहां बसे हुए लोगों की संख्या में बदलाव होता रहता है। इसे ही जनसंख्या वृद्धि यानी जनसंख्या परिवर्तन कहा जाता है, ये धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी। आज़ादी के बाद भारत की जनसंख्या नीतिभारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही बढ़ती आबादी को विकास के बाधक के तौर पर चिन्हित किया गया और तभी से विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोशिश की जाती रही है।
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोगमई 2000 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। आयोग का काम होगा - 1. राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करना, 2. निगरानी करना और निर्देश देना, 3. स्वास्थ्य संबंधी, शैक्षणिक, पर्यावरणीय और विकास कार्यक्रमों में सहक्रिया को बढ़ावा देना और 4. कार्यक्रमों की योजना बनाने व क्रियान्वयन करने में अन्तरक्षेत्रीय तालमेल को बढ़ावा देना इस आयोग के अंतर्गत, एक राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष की भी स्थापना की गई। बाद में इस कोष को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया। भारत में जनगणना से जुड़े कुछ तथ्य: जनगणना 2011 के मुताबिक़
चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस-4, 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक़ पहली बार भारत की कुल प्रजनन दर घटकर (टीएफआर) 2.18 रह गई है, जो वैश्विक प्रतिस्थापन दर 2.30 से कम है। साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामले विभाग के जनसंख्या प्रकोष्ठ ने 'द वर्ल्ड पापुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स: द 2017 रिवीजन' रिपोर्ट जारी की थी। इसमें अनुमान लगाया गया था कि भारत की आबादी लगभग सात वर्षों में चीन से भी ज़्यादा हो जाएगी। जनसंख्या वृद्धि के कारण
जनसंख्या के फायदेजनसंख्या वृद्धि को अगर एक अलग नजरिए से देखा जाए तो ये भारत जैसे देशों के लिए बहुत ही कारगर साबित हो सकती है। जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत में जनसांख्यिकीय लाभ सबसे चर्चित लफ्ज़ है, जिसका मतलब है कि एक देश की कुल जनसंख्या में कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात ज्यादा है। ये लोग आर्थिक विकास में व्यापक योगदान कर सकते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की क़रीब आधी आबादी ऐसी है जिसकी उम्र 25 साल से कम है। ऐसे में भारत को इस बड़ी आबादी से लाभ मिलेगा। मानव संसाधन में बढ़ोत्तरी: अगर भारत मानव संसाधन का बेहतर तरीके से उपयोग करे तो ये आर्थिक तौर पर बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। मसलन कुशल श्रम, मानव संसाधन का निर्यात, जनांकिकीय लाभांश और सस्ता लेबर जैसे कारकों का लाभ उठाया जा सकता है। ज़्यादा जनसंख्या मतलब बड़ा बाजार: विदेशी कंपनियों के लिए भारत एक बहुत ही अनुकूल देश है जहां पर उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक आसानी से एक जगह मिल जाता है। शक्तिशाली सेना: अगर किसी देश में पर्याप्त रुप से मानव संसाधन मौज़ूद है तो सेना का शक्तिशाली होना एक सामान्य बात है। जनसँख्या के मामले में भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। जनसंख्या वृद्धि के नुकसानभारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि जैसी दिक्कतें उभरकर सामने आयीं हैं। इसके अलावा कृषि विकास में बाधा, बचत तथा पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय, अपराधों में वृद्धि, पलायन और शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। देश में पूंजीगत साधनों की कमी के कारण रोजगार मिलने में मुश्किलें आ रही हैं। जनसंख्या को स्थिर करने के लिये सरकार द्वारा उठाये गए क़दमपरिवार नियोजन कार्यक्रम, गर्भ निरोधक दवाइयों तक बेहतर पहुँच, परिवार नियोजन सेवाओं के लिए कुशल कर्मियों की बढ़ोत्तरी और निजी/गैर-सरकारी संगठनों को बढ़ावा देना जैसे क़दम सरकार द्वारा उठाये जा रहे हैं। आशा कार्यकर्ताओं द्वारा गर्भ निरोधक दवाइयों की होम-डिलीवरी योजना और संस्थागत डिलीवरी को बढ़ावा देना जैसे कुछ प्रयास भी किये जा रहे हैं। याचिका में क्या कहा गया है?एनसीआरडब्ल्यूसी ने दो साल तक काफी प्रयास और व्यापक चर्चा के बाद संविधान में अनुच्छेद 47ए शामिल करने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। जनसंख्या बढ़ने के क्या कारण हैं?चिकित्सा सेवाओं में वृद्धि, कम आयु में विवाह, निम्न साक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति विमुखता, गरीबी और जनसंख्या विरोधाभास आदि ने जनसंख्या बढ़ाने में योगदान किया है।
भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण क्या हैं?उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि भुखमरी का सबसे बड़ा कारण है, भारत जैसे विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बैठाने में चिंतित हैं, तो विकसित देश पलायन और रोजगार की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं। हम सभी अधिक से अधिक पौधारोपण कर उनका संवर्धन एवं जल संरक्षण पर काम करें।
जनसंख्या वृद्धि के तीन कारक कौन कौन से हैं?विश्व जनसंख्या एवं वितरण. उच्चावच / भू-आकृति. जल कि उपलब्धता. जलवायु. मृदाएँ. |