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Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojana : हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना प्रणाली कैसी थी ? विद्यादूत के इस लेख में हम हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना प्रणाली पर चर्चा करेंगें | यह लेख UPSC Exam (UPSC history notes in hindi, UPSC history NCERT notes in hindi) की तैयारी के लिए अत्यंत उपयोगी है | हड़प्पा संस्कृति या हड़प्पा सभ्यता (सिन्धु नदी घाटी की सभ्यता) की नगर योजना प्रणाली इसकी सबसे प्रभावशाली विशेषता मानी जाती है | हड़प्पा संस्कृति या हड़प्पा सभ्यता की अभी तक 1,400 बस्तियाँ भारत और पाकिस्तान के विभिन्न भागो में खोजी जा चुकी है | ये बस्तियाँ अधिकतर नदियों के किनारे स्थित थी | इनमे 80 प्रतिशत बस्तियाँ सिन्धु और गंगा के बीच के उस मैदान में स्थित है, जहाँ कभी सरस्वती नदी बहती थी | सरस्वती नदी वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है | विद्यादूत की इन स्पेशल केटेगरी को भी देखें – Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojana : हड़प्पा सभ्यता (या हड़प्पा संस्कृति) के नगर सुनियोजित ढंग से विचारपूर्वक बनाई गयी नगर योजना प्रणाली का परिणाम है | विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति या सभ्यता के 6 स्थलों को नगर की संज्ञा दी जा सकती है –
इन छह स्थलों पर परिपक्व एवं उन्नत हड़प्पा संस्कृति दिखाई देती है | हड़प्पा सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे | Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojana : हड़प्पा और मोहनजोदड़ो एक-दूसरे से 483 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित थे और सिन्धु नदी के द्वारा जुड़े हुए थे | स्टूअर्ट पिग्गट ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को इस सभ्यता के विस्तृत साम्राज्य की जुड़वां राजधानियां कहा है | कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबंगन इस साम्राज्य की तीन राजधानियां थी | हड़प्पा सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति में बड़े-बड़े नगर इस बात की ओर इशारा करते है कि यहाँ कुशल कारीगर थे और व्यापार दूर-दूर तक होता था | राजा (या किसी संस्था) का समाज पर कुशल नेतृत्व होगा | सम्पूर्ण सभ्यता में एक ही लिपि का प्रयोग, नगर-नियोजन में एकरूपता, प्रयुक्त ईटों का अनुपात एक समान (4:2:1), नाप-तौल के लिए एक ही तरह के बाट व तराजू का उपयोग, औजारों की बनावट व आकार में एकरुपता हड़प्पा सभ्यता की महानता को दर्शाते है | नगर-योजना प्रणाली में एकरूपता : Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojanaहड़प्पा सभ्यता की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता थी इसकी नगर-योजना प्रणाली | इस सभ्यता के नगर विश्व के प्राचीनतम सुनियोजित नगर माने जाते हैं | हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन, सुरकोटड़ा आदि स्थलों की नगर-योजना में पर्याप्त समानता दिखाई देती है | इनमें से प्रत्येक नगर के पश्चिम की ओर अपने दुर्ग थे जहाँ शासक वर्ग अपने परिवार के साथ रहता था | ये भी देखें – हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर पूर्व की ओर एक निचला शहर था जहाँ ईटो के मकानों में सामान्य लोग रहते थे | दुर्ग का निर्माण गारे एवं कच्ची ईटों से बने एक चबूतरे के ऊपर किया गया था और यह आकार में नगर से छोटा था | दुर्ग के चारो ओर एक सुरक्षा-प्राचीर बनाई गयी थी | मोहनजोदड़ो और कालीबंगन के निचला नगर के भी सुरक्षा-प्राचीर से घिरे होने के साक्ष्य मिले है | लोथल और सुरकोटड़ा में दुर्ग और निचला नगर दोनों एक ही सुरक्षा-प्राचीर से घिरे थे | बस्तियों का आकार : Harappan Sabhyata Ki Nagar Niyajanलोथल में बस्ती का आकार आयताकार था, जिसके चारो ओर ईटों की दीवार का घेरा बनाया गया था | इसका कोई आन्तरिक विभाजन नही किया गया था, अर्थात लोथल में दुर्ग और निचले शहर में विभाजन देखने को नही मिलता है | बनावली और धौलावीरा पर दीवार से घिरा एक ही टीला प्राप्त हुआ है, जो आंतरिक रूप से तीन या चार दीवार से घिरे सेक्टरों से विभाजित किया गया था | ये भी देखें –
विद्यादूत में निम्न विषयों पर भी लेख उपलब्ध है –
सुव्यवस्थित योजनाबद्ध नगरहड़प्पा सभ्यता के नगर एक सुव्यवस्थित योजनाबद्ध तरीके से बसे हुए थे | यहाँ की सड़के, गलियाँ और उनके किनारे बनी इमारतों की पंक्तियाँ, एक-दूसरे को पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण की ओर परस्पर समकोण बनाते हुए काटती थी और नगर अनेक खंडो में विभाजित थे | इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के नगरो की योजना जाल-पद्धति की थी और इसमे सड़को, नालियों और मलकुंडो की अत्यंत अच्छी व्यवस्था थी | मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 10 मीटर चौड़ी और 400 मीटर लम्बी थी | विद्वानों के अनुसार ऐसी नगर-योजना उन्नीसवीं सदी के पेरिस और लन्दन जैसे शहरों में भी नही थी | घरों का आकारहड़प्पा सभ्यता में रहने के घर कई आकार के मिले है | कुछ घर इतने छोटे मिले है, जिनमे केवल एक ही कमरा होता था और कुछ इतने बड़े मिले है, जिनमे बारह कमरे तक होते थे | कुछ घर दो और तीन मंजिल के भी होते थे | कुछ घरो में ईटों की बनी सीढ़ियाँ मिली है तथा जिन घरों में सीढ़ियाँ नही मिली है सम्भव है वहाँ कुछ में लकड़ी की सीढ़ियाँ रही हो जो अब नष्ट हो चुकी हो | प्रत्येक घर में स्नानागार और घर के गंदे पानी की निकासी हेतु नालियाँ बनाई गयी थी | लगभग सभी बड़े घरो में आँगन के अन्दर एक कुआँ होता था | कुएँ वृत्ताकार अथवा अंडाकार थे | ये भी देखें – हड़प्पा सभ्यता में कृषि और पशुपालन उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के लगभग सभी घरों में कुएँ, स्नानागार और नालियाँ पाई गयी है | घरों के दरवाजें और खिड़कियाँ आजकल की भांति मुख्य सड़क पर न खुलकर गली में अधिक खुलती थी | स्वास्थ्य एवं सफाई के प्रति जागरूक : Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojanaविद्वानों के अनुसार कांस्य-युगीन किसी भी दूसरी सभ्यता में स्वास्थ्य एवं सफाई के प्रति इतनी जागरूकता नही पाई जितनी हड़प्पा सभ्यता में पाई गयी है | नगरों में नालियों की उत्तम व्यवस्था तत्कालीन नगरीकरण का एक विकसित स्वरुप प्रदर्शित करती है | छोटे कस्बों और गावों में भी मलजल निकासी की व्यवस्था उच्च कोटि की थी | स्नानघरो और शौचालयों से पकी ईटों से निर्मित छोटी नालियाँ जुड़ीं हुई थी | छोटी नालियाँ गलियों में बनी हुई मध्यम आकार की निकासी नालियों से जुड़ी होती थी, जो बड़े नालो में मिलती थी | ये बड़े नाले ईटों या पत्थरों से ढके रहते थे | ए.एल.बाशम लिखते है कि “सिन्धु घाटी के लोगों की इस अद्वितीय नाली व्यवस्था का प्रबन्ध निश्चित ही किसी नगरमहापालिका जैसी संस्था के द्वारा किया जाता रहा होगा और यह सिन्धु घाटी के लोगों की सबसे अधिक प्रभावपूर्ण सफलताओं में से एक है | रोम के निवासियों के काल तक किसी भी अन्य प्राचीनकालीन सभ्यता के अंतर्गत नालियों का इतना अच्छा प्रबन्ध नही किया गया था |” हड़प्पा सभ्यता के सभी नगरो में सभी मकान आयताकार थे, जिनमे पक्का स्नानघर और सीढ़ीदार कुआ होता था | मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागारमोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल इसके दुर्ग टीले पर स्थित विशाल स्नानागार है | इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण की ओर 54.86 मीटर और पूर्व से पश्चिम की ओर 32.9 मीटर है | इसके मध्य में स्थित जलाशय 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है | इसके तल तक जाने के लिए उत्तर और दक्षिण में सीढियां बनी हुई है | स्नानागार का फर्श तराशी गई पकी ईटों का बना है | इसके पास के एक कमरे में एक बड़ा सा कुआँ मौजूद है जिससे शायद पानी निकाल कर स्नानागार में डाला जाता था | स्नानागार के एक कोने में पानी बाहर निकालने के लिए एक निर्गम-मुख है | स्नानागार के तल को डामर से जलरोधी बनाया गया था | स्नानागार के चरों ओर मण्डप और कमरे बने हुए थे | ये भी देखें – ऋग्वेद कालीन समाज एवं संस्कृति विद्वानों के अनुसार इस विशाल स्नानागार का प्रयोग किसी धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए किया जाता होगा | मार्शल ने इस विशाल स्नानागार को तत्कालीन संसार का एक ‘आश्चर्यजनक निर्माण’ कहा है | मोहनजोदड़ो का अन्नागारमोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है अनाज रखने का कोठार अथवा अन्नागार | अन्नागार के रूप में इसकी पहचान व्हीलर ने की थी | इसी प्रकार के अन्नागार हड़प्पा, कालीबंगन और लोथल में भी पाए गये है | अन्नागार का उपयोग खाद्यान्न रखने के लिए किया जाता था |सम्भवतः किसानों से कर (राजस्व) के रूप में अनाज लिया जाता था तथा इन अन्नागारों में उन आनाजों का संग्रह किया जाता था | ऐसा लगता है कि इन संग्रहित अनाजों का प्रयोग शासक वर्ग मजदूरी देने में करता होगा | ईटों का प्रयोग : Harappan Sabhyata Ki Nagar Yojanaहड़प्पा-सभ्यता के निवासी पकी हुई और बिना पकी हुई दोनों प्रकार की ईटों का प्रयोग कर रहे थे | हड़प्पा सभ्यता के नगरो में पकी ईटों का उपयोग एक महत्वपूर्ण बात है, क्योकि समकालीन मिस्र की सभ्यता में भवन निर्माण में धूप में सुखाई गयी ईटों का ही उपयोग हो रहा था | यद्यपि समकालीन मेसोपोटामिया सभ्यता में भी पकी हुई ईटों का उपयोग हो रहा था तथापि हड़प्पा सभ्यता की तरह यहाँ पकी ईटों का प्रयोग बड़े पैमाने पर नही हुआ था | हड़प्पा संस्कृति में घरों के निर्माण में इस्तेमाल की जानी वाली ईंटों का औसत आकार 7.5 × 15 × 30 से.मी. होता था | परकोटे (दुर्ग की रक्षा के लिए ऊँची और बड़ी चहारदीवारी) की दीवारों के निर्माण में इस्तेमाल की जानी वाली ईंटों का आकार 10 × 20 × 40 से.मी. होता था | इस प्रकार दोनों ही आकारों की ईंटों में मोटाई, चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात 1:2:4 होता था | ईटों के आकारो में समानता से पता चलता है कि मकान मालिक अपने मकान हेतु ईटों का निर्माण व्यक्तिगत रूप से नही करता या कराता था बल्कि इन ईटों का निर्माण बड़े पैमाने पर व्यापारिक ढंग से होता था | नालियाँ पकी हुई ईटों या पत्थर से बनाई जाती थी | कुछ कमरों के फर्श पकी ईटों से बनाये गये थे | छतें संभवतः लकड़ी से बनाई जाती थी | जरुर देखें – हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन – शिल्प, उद्योग और व्यापार-वाणिज्य ईटों को पकाने के लिए भट्टों का प्रयोग किया जाता था, जो समान्यतः नगर के बाहर होते थे | किसी भी स्थल से नगर के भीतर ईट पकाने वाले भट्टों का अवशेष नही मिला है | इस प्रकार हम देखते है कि हड़प्पा संस्कृति या हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना प्रणाली अत्यंत विशिष्ट थी और इसके नगर एक सुव्यवस्थित योजनाबद्ध ढ़ंग से बसाये गये थें | डॉ. के. के. भारती के अन्य लेख – इतिहास पर लेख | दर्शनशास्त्र पर लेख | शिक्षाशास्त्र पर लेख उपरोक्त लेख आपको कैसा लगा, हमे जरुर बताएं | इस लेख से सम्बन्धित कोई और जानकारी के लिए आप कमेंट्स बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते है | विद्यादूत की विशेषज्ञ टीम आपकी पूरी सहायता करेगी | नोट – भारतीय कॉपीराइट एक्ट के अंतर्गत विद्यादूत (विद्यादूत वेबसाइट) के सभी लेखों और इसमे समाहित सारी सामग्री के सर्वाधिकार विद्यादूत के पास सुरक्षित हैं | किसी भी रूप में कॉपीराइट के उल्लंघन का प्रयास न करें | अभ्यास प्रश्न :- प्रश्न : हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना पर प्रकाश डालिए | प्रश्न : हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना प्रणाली की विवेचना करें | प्रश्न : हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन प्रणाली की विवेचना करें | हड़प्पा सभ्यता की नगर नियोजन सभ्यता क्या थी?हड़प्पा सभ्यता – नगर नियोजन
सिन्धु अथवा हड़प्पा सभ्यता के नगर का अभिविन्यास शतरंज पट (ग्रिड प्लानिंग) की तरह होता था, जिसमें मोहनजोदड़ो की उत्तर-दक्षिणी हवाओं का लाभ उठाते हुए सड़कें करीब-करीब उत्तर से दक्षिण तथा पूर्ण से पश्चिम को ओर जाती थीं.
नगर नियोजन प्रणाली क्या है?एक नगर नियोजन प्राधिकरण द्वारा नगरों के भूमि उपयोग की योजना तैयार की जाती है तथा विशिष्ट भूमि उपयोग हेतु विभिन्न क्षेत्रों का सीमांकन किया जाता है। इन योजनाओं में पर्याप्त सड़क चौड़ाई, खुले स्थान तया मूलभूत सुविधाओं (जल, विद्युत, स्कूल, अस्पताल इत्यादि) से जुड़े प्रावधान शामिल होते हैं।
हड़प्पा सभ्यता को नगरीय सभ्यता क्यों कहा गया?१९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी मे फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरो के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना क्या है?सिन्धु सभ्यता के नगरों हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबंगा की नगर योजना लगभग एकसमान थी। कालीबंगा और रंगपुर को छोड़कर इस सभ्यता के शेष सभी नगरों के निर्माण के लिए पकी हुई ईटों का प्रयोग किया गया था। सामान्यतः प्रत्येक घर में एक आंगन, एक रसोईघर और एक स्नानागार होता था। अधिकतर घरों में कुओं के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
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