हमारे देश की क्या क्या विशेषताएं हैं - hamaare desh kee kya kya visheshataen hain

विकसित देश यानी औद्योगिक देश, उन देशों को कहा जाता है जिनका कुछ मानकों के अनुसार उच्च विकास दर है। ये मानक कौन है और कौन से देश औद्योगिक या विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं, यह विवादास्पद विषय है। इस चर्चा में अक्सर आर्थिक मानकों को शामिल किया जाता है। ऐसे ही एक मानकों में, प्रतिव्यक्ति आय है। जिन देशों का प्रतिव्यक्ति आय यानी प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ज्यादा है वो विकसित या औद्योगिक देशों में गिने जाते हैं। दूसरा मानक, औद्योगिकीकरण है। जिन देशों की अर्थव्यवस्था उद्योग धंधों पर निर्भर है वो औद्योगिक देश कहलाते हैं। अन्य मानकों में मानव विकास सूचकांक, जिसमें राष्ट्रीय आय के साथ जीवन प्रत्याशा और शिक्षा शामिल है। जो देश विकसित देश बनने की होड़ में हैं उन्हें विकासशील देश कहा जाता है। विकासशील देशों को 'तीसरी दुनिया के देश' भी कहा जाता है।

विकसित देशों की प्रमुख विशेषताएँ[संपादित करें]

विकसित राष्ट्रों की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

उन्नत विज्ञान तथा तकनीकी द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग[संपादित करें]

प्राकृतिक संसाधन किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की आधारशिला होते हैं। पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन राष्ट्र के आर्थिक विकास की कुंजी हैं। विकसित देश उन्नत विज्ञान तथा तकनीकी द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं। जापान तथा इंग्लैण्ड ने बड़ी मात्रा में कच्चे माल का आयात करके मात्र विज्ञान एवं उन्नत तकनीकी का समुचित उपयोग करके तीव्रता से विकास किया है।

वृहत् स्तर पर औद्योगीकरण[संपादित करें]

सभी विकसित राष्ट्रों ने आर्थिक स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना विशाल स्तर पर कर ली है। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि देशों ने औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया है। इन देशों में लोहा-इस्पात उद्योग, रसायन उद्योग, इन्जीनियरिंग उद्योग, मोटरगाड़ी निर्माण उद्योग, पोत व वायुयान निर्माण उद्योग आदि का तीव्र गति से विकास हुआ है।

विकसित देशों ने उद्योगों के लिए कृषि से कच्चे माल प्राप्त करने हेतु कृषि में मशीनों का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया है। बड़े पैमाने पर मशीनों से कृषि की जाती है। कृषि के यन्त्रीकरण ने विकसित देशों की प्रगति के द्वार खोल दिये हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, हॉलैण्ड आदि विकसित देशों में कृषि का यन्त्रीकरण हो चुका है। इन देशों में बड़े-बड़े फार्मों में मशीनों की सहायता से विस्तृत, सघन खेती की जाती है तथा बड़े स्तर पर व्यापारिक कृषि की जाती है तथा कृषि उत्पादन के पर्याप्त भाग का निर्यात कर दिया जाता है।

व्यापारिक आधार पर उद्यानों का विकास[संपादित करें]

विकसित देशों में बड़े-बड़े महानगरीय क्षेत्रों में निवास करने वाली जनसंख्या के लिए फल एवं सब्जियों के उत्पादन हेतु व्यापारिक स्तर पर उद्यानों का विकास किया गया है। इस प्रकार की कृषि को 'बाजार के लिए बागवानी' या 'फलों की खेती' कहते हैं। अमेरिका एवं यूरोप के बड़े-बड़े नगरों के चारों ओर ऐसे ही उद्यान स्थित हैं।

उन्नत स्तर पर पशुपालन तथा दुग्ध-व्यवसाय का विकास[संपादित करें]

शीतोष्ण जलवायु, उत्तम चरागाह तथा उत्तम नस्ल के पशुओं के कारण विकसित देशों में पशुपालन तथा दुग्ध-व्यवसाय बहुत प्रगति कर गया है। पशुओं से दूध, मांस, चमड़ा,ऊन आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं; अत: डेनमार्क, हॉलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अमेरिका के कई देशों में पशुपालन का खूब विकास हुआ है। दूध से मक्खन, पनीर, दुग्ध-चूर्ण आदि वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। कई देश इनका बड़ी मात्रा में निर्यात करते हैं।

अत्यधिक विकसित यातायात एवं संचार-व्यवस्था[संपादित करें]

विकसित देशों में यातायात एवं संचार-व्यवस्था का विकास उच्च स्तर पर कर लिया गया है। इन देशों में सड़क तथा वृहत् रेल-पथों का जाल बिछा है। इन देशों में रेल तथा वायु परिवहन का भी विकास कर लिया गया है। जल परिवहन नदियों, झीलों तथा नहरों द्वारा सम्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त, इन देशों में स्वचालित मोटरगाड़ियों, विद्युत रेलगाड़ियों, पनडुब्बियों, आधुनिक जलयानों तथा तीव्रगामी हवाई जहाजों ने भी इन देशों को एक-दूसरे के निकट ला दिया है। इन देशों में संचार साधनों का भी अत्यधिक विकास हुआ है।

अधिक प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय[संपादित करें]

विकसित राष्ट्रों में कृषि, उद्योग और व्यापार में वृद्धि होने के कारण प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय अधिक होती है, जो कि इनकी सम्पन्नता के मापदण्ड हैं। इससे इन देशों के निवासियों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है।

विकसित देशों में स्त्रियाँ शिक्षित हैं , रोजगार में संलग्न हैं तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। विकसित देशों में नारी का स्थान पुरुषों के बराबर समझा जाता है। इन देशों में नारी साक्षरता का प्रतिशत ऊँचा है। अधिकांश स्त्रियाँ स्वस्थ हैं तथा राष्ट्र के निर्माण व अभ्युन्नति में सक्रिय योगदान देती हैं।

Back to contents

हमारे देश की क्या क्या विशेषताएं हैं - hamaare desh kee kya kya visheshataen hain
भारत उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण, पूरब और पश्चिम में समुद्र से घिरा हुआ है और उत्तरपश्चिम में पर्वतबाहु हिमालय की मुख्यश्रंखला को समुद्र के साथ जोड़ता है।

भारत की प्राकृतिक सीमाएँ: इस प्रकार भारत प्रकृत्या चारों और से सुरक्षित है। किन्तु यह नहीं समझना चाहिये कि कठिन अवरोधों के कारण भारत संसार के अन्य देशों से एकदम अलग था। यद्यपि हिमालय जैसी सदृश अभेद्य सीमा, प्रकृति ने किसी भी अन्य देश को प्रदान नहीं की है तथापि उसमें तिब्बत से नेपाल आने के लिये ऐसी सड़के हैं जिनसे हो कर युगों तक संस्कृति और धर्म के शान्तिदूत ही नहीं आते जाते रहे लेकिन कुछ अवसरों पर तो दुर्घर्ष सेनाएँ भी गुज़री हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर पश्चिम के पहाड़ी दर्रें हैं, जो युगों से भारत और बाहर के देशों के बीच यातायात के मार्ग रहे हैं।

हिन्दुकुश के परे अनेक दर्रे हैं। इस पर्वतश्रृंखला के इस ओर से होकर जाने वाला अति प्रचलित मार्ग काबुल घाटी से होकर जाता है और खैबर दर्रे से होता हुआ पेशावर में पहुँचता है।  यह एक टेढ़ामेढ़ा और तंग २० मील लम्बा रास्ता है। दूसरा सुप्रसिद्ध मार्ग हेरात से कंधार तक आता है, फिर बोलन दर्रे से होकर सिन्धु घाटी में निकलता है। पश्चिम से एक अन्य मार्ग मकरान के दुर्गम तट से निकलता है। इन मार्गों से भारत पर अनेक ऐसे आक्रमण हुए हैं तथापि आज से करीब तीन  हज़ार साल पहले जब आर्य हिंदुकुश पारकर भारत में आये, तब से अब तक औपनिवेशिकों, व्यापारियों और विजेता शत्रुओं के असंख्य समूह इन दर्रों से आये और गये। उत्तरपूर्वी श्रृंखला में उल्लेखनीय दरार वह है जिससे ब्रह्मपुत्र भारत में प्रवेश करता है। उनसे दक्षिण की पहाड़ियाँ घने जंगलों से ढकी हैं और उन्हे पार करना कठिन है तथापि व्यापारी,धर्मदूत और शत्रु भी उनसे गुज़रे हैं। प्राकृतिक सीमाओं ने शेष एशिया से भारत को पृथक कर यहाँ के निवासियों को अपना एक निश्चित निजत्व प्रदान किया तथापि उनके कारण भारत शेष संसार से अलग था।

क्षेत्रफल: इन सीमाओं के भीतर भारत का क्षेत्रफल लगभग डेढ़ लाख वर्गमील है, जो रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है। इसके तट की लम्बाई ३००० मील से अधिक तथा उसके पर्वतीय अवरोधों की लम्बाई उसकी आधी है। उसकी जनसंख्या लगभग ५० करोड़ से अधिक है।

देश के प्राकृतिक स्वरूप में काफ़ी भिन्नतायें पायी जाती हैं। यहाँ ऊँची से ऊँची दुर्गम पर्वतचोटियाँ हैं संसार की सब से ऊँची चोटी यहीं है,तो निम्न जलोढ़ मैदान भी हैं और ऊँचे पठार,गहन कांतार,एकान्त घाटियाँ और सूखे रेगिस्तान हैं। एक ओर अत्यन्त गर्म मैदान हैं तो अत्यंत ठंडे पर्वतीय आश्रय भी हैं। प्राकृतिक विशेषताओं की इन भिन्नताओं की तुलना जाति,धर्म और भाषा की भिन्नताओं से ही हो सकती है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि अकेले भारत में इन विशेषताओं के जितने प्रकार हैं उतने समूचे यूरोप में भी नहीं हैं। इस प्रकार भारत को उस अर्थ में एक देश नहीं कह सकते — उसे एक महाद्वीप और उसके विभिन्न प्रान्तों को अलगअलग देश मानना अधिक तर्कसंगत होगा। इधर कुछ दिनों से भारत के लिये उपप्रायद्वीप शब्द का जो प्रयोग होने लगा है वह एक अच्छा नामकरण है और भारत के इतिहास के अध्ययन में इस बात को ध्यान में रखना लाभकर होगा। उदाहरणत: भारतीय इतिहास में उस एकता को खोजना अनुचित होगा जो फ़्रांस अथवा इटली जैसे देशों के इतिहास में पाई जाती है। उसी प्रकार की एकता मगध, गौड़, कौशल, शूरसेन (मथुरा), अवन्ति और कर्णांट सदृश राज्यों में ही पाई जा सकती है, जिनका प्रत्येक क्षेत्रफल एवं जनसंख्या अनेक यूरोपीय देशों के बराबर हैं। 

आधुनिक विज्ञान के अविष्कारों के कारण देश और काल का भेद मिटा नहीं था। इतिहास पर भौतिक परिस्थितियों का प्रभाव किस प्रकार पड़ता है,इसका स्पष्टीकरण एक उदाहरण से ही हो जाएगा। आज दक्षिण भारत में होने वाले किसी दंगे की सूचना दिल्ली स्थित सरकार के पास दो सेकण्ड से कम समय में पहुँच जायेगी और तीन दिनों के भीतर पर्याप्त सेना भी वहाँ पहुँचाई जा सकती है।  किन्तु यदि वही उपद्रव अशोक के समय में हुआ होता तो उसकी सूचना पाटलिपुत्र में तीन मास से कम समय में पहुँच पाती और कम से कम उसका दूना समय आवश्यक सेना भेजने में भी लगता।

उपरोक्त की महत्ता: भारतीय इतिहास को समझने के लिये इन तथ्यों को अच्छी तरह ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है। ऐसा करने से ही इतिहासकारों ने बहुधा निर्णय सम्बन्धी भूलें की हैं। उदाहरणत:भारत के बाहर अभियान का कोई लिखित प्रमाण मिलने के कारण उन्होंने यह मान लिया कि भारतीय साहसी नहीं थे और उनमें सैनिक योग्यता का अभाव था। पर यह बात भुला दी जाती है कि भारत के सैनिक अभियानों के लिये उसका अपना उपमहाद्वीप तथा बृहत्तर भारत हिन्दचीन तथा प्रशान्त द्वीपसमूह ही इतना विस्तृत क्षेत्र था कि उसके बाहर जाने का लोभ उन्हें हो ही नहीं सकता था। मिस्रियों, असीरियों, अथवा बाबुल निवासियों द्वारा शासित बड़े से बड़े साम्राज्य भी प्राचीन काल में हिन्दुकुश और हलमूद तक ही फैले थे और वे भारत और उसके पूर्व के औपनिवेशिक साम्राज्य के विस्तार से कहीं कम ही थे। ईरानी और रोमन साम्राज्य एवं स्वल्प काल के लिये सिकन्दर द्वारा विजित प्रदेश इस बृहत्तर भारत के बराबर अथवा उससे कुछ ही बड़े थे। चौदहवें लुई और नेपोलियन के साम्राज्य तो उसकी विशालता की तुलना में नगण्य ही थे।

आन्तरिक प्राकृतिक स्वरूप: आन्तरिक प्राकृतिक स्वरूप के सम्बन्ध में सबसे उल्लेखनीय उसके मध्य में स्थित पर्वतमालायें हैं। वे ऐसी दुर्लध्य सीमाएँ हैं जो उत्तर भारत और दक्षिण को अलग करती हैं। उसमें दो समानान्तर पर्वतश्रृंखलाएँ हैंउत्तर में विन्ध्य,जिनमें भनरेर और कैमूर पर्वत श्रृंखलाएँ सम्मिलित हैं,तथा दक्षिण में सतपुड़ा जिसके साथ महोदय और मेकल पर्वत सम्मिलित हैं। इन दोनों के बीच एक संकीर्ण घाटी है जिसमें से होकर नर्मदा बहती है। इस नदी और इस प्रदेश के पहाड़ों तथा छोटा नागपुर के घने जंगलों ने यातायात इतना कठिन बना दिया कि उत्तर और दक्षिण के निवासियों में सदैव एक स्पष्ट भेद रहा और दोनों भागों का इतिहास प्राय:स्वतंत्र रूप में ही विकसित हुआ पर समयसमय पर दोनों के बीच सम्पर्क भी होते रहे।

उत्तरी भारत: विन्ध्य के उत्तर भाग में जो प्रदेश है उसके पूर्व और पश्चिम दोनों में उपजाऊ मैदान हैं, जिनके बीच राजपूताना का रेगिस्तान है। रेगिस्तान के पश्चिम के मैदान में सिन्धु और पूरब के मैदान में गंगा की सहायक नदियों द्वारा सिंचाई होती है। सिन्धु और गंगा और उनकी सहायक नदियों ने यातायात के लिये सुगम मार्ग का काम किया है और इसी कारण अति प्राचीन काल से ही उनके किनारों पर सभ्यता के फलतेफूलते केन्द्र रहे हैं। राजस्थान के रेगिस्तान और हिमालय की श्रृंखला के बीच एक पतली सी पट्टी है,जो इन दोनों मैदानों को मिलाती है। पश्चिम से आक्रमण करती जो भी सेना हिन्दुस्तान में घुसना चाहती थीं यही पट्टी उनको रोकने का श्लाध्य स्थल रही है। यह कोई आकस्मिक बात नहीं थी कि इस प्रदेश में पानीपत और तलवाड़ी के सुप्रसिद्ध मैदानों में भारत की अनेक भाग्यविधायक लड़ाइयां लड़ी गयीं।

दकन और दक्षिण भारत: भारत का जो भाग मध्यवर्त्ती पर्वतों के दक्षिण में है वह एक त्रिभुजाकार प्रायद्वीप है जो धीरेधीरे नीचे की ओर इतना संकीर्ण होता गया है कि भारत के दक्षिणी छोरकन्याकुमारी के पास प्राय: एक बिन्दु जैसा बन गया है। उत्तरपश्चिम और उत्तरपूर्व से दक्षिण की ओर जाती,समुद्रतटीय मैदानों की जो पतली पट्टियाँ हैं वे यहाँ पहुँच कर एक हो जाती हैं इसमें पश्चिमी पट्टी को मलाबार और पूर्वी पट्टी को चोरमंडल कहते हैं। यद्यपि दोनों किनारों पर आधुनिक जहाजरानी के उपयुक्त बहुत ही कम बन्दरगाह हैं तथापि पश्चिमी किनारे पर जहाजों के लंगर डालने लायक ऐसे सुरक्षित स्थान हैं जो भारत के भीतरी और बाहरी व्यापार के अच्छे द्वार रहे हैं।

पश्चिम का समुद्रतटीय प्रदेश एक ऐसी नम निचली भूमि है, जिसके किनारों पर अनेक सीधी, सपाट और ऊँची पहाड़ियों से निर्मित पश्चिमी घाट हैं। उत्तर में पश्चिमि घाट दो हज़ार फुट की ऊँचाई से उठते हैं और दक्षिण की ओर बढ़ते बढ़ते उन की ऊँचाई इतनी बढ़ जाती है कि नीलगिरी में एक चोटी आठ हज़ार सात सौ फुट से भी अधिक की है। वहाँ उनमें पूर्वी घाट भी मिल जाते हैं जिनके कुछ पहाड़ों की चोटियों की ऊँचाई कम है। वहाँ से वे तुरंत दक्षिण में एक अन्तराल छोड़ते हुए कन्याकुमारी तक जाते हैं तथा अन्नमुही पहाड़ी पर उनकी ऊँचाई ८८०० फुट से भी अधिक हो जाती है। उपर्युक्त अन्तराल उत्तर से दक्षिण लगभग २० मील चौड़ा और समुद्र की सतह से लगभग एक हज़ार फुट ऊँचाई पर है एवं एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिये एक सुगम मार्ग निकालता है।

पश्चिमी और पूर्वी घाटों के बीच दक्षिण का वह चौड़ा पठार है जो पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश: नीचा होता गया है। पश्चिमी घाटों से बना हुआ पश्चिमी छोर एक ऐसी ऊँची दीवार की तरह दिखता है जो अरब सागार के अभिमुख उसके ही समानान्तर चलता है। ये पहाड़ समुद्र से कभी तो लगभग ५० और १०० मील दूर हैं परन्तु कहींकहीं यह दूरी पाँच अथवा उससे भी कम हो जाती है। परन्तु पूर्वी घाट पूर्वी समुद्र की ओर धीरेधीरे गिरते जाते हैं और पूर्वी घाट तथा समुद्र के बीच का मैदान पश्चिम की अपेक्षा अधिक चौड़ा होता जाता है। कृष्णा और उसकी सहायक तुंगभद्रा उस पठार को ऐसे दो भागोंदक्षिणपथ और सुदूरदक्षिण में बाँटती हैं जिन्होंने इतिहास में भिन्नभिन्न परन्तु महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। उस प्रदेश में अन्य दो नदीसमूह हैंउत्तर में गोदावरी और दक्षिण में कृष्णा के।

सिंचाई के सुगम साधनों से युक्त उपजाऊ मैदानों के कारण भारत संसार का सबसे धनिक कृषक देश बन गया। लकड़ी के घने जंगलों और भूगर्भ में छिपी खानों से उद्योग और उत्पादन को प्रोत्साहन मिला। यातायात के लिये बड़ी नदियों एवं विस्तृत समुद्र तट पर अच्छे बन्दरगाहों के फलस्वरूप आन्तरिक और विदेशी व्यापार का विस्तार हुआ और भारत में बनी वस्तुएँ सारे संसार में पहुँचीं। सर्वोपरि सोना,मणि एवं मोती तथा अन्य बहुमूल्य पत्थरों का यहाँ की भूमि में बाहुल्य है। भारत का धन संसार में कहावतों का विषय बन गया

प्राकृतिक विशेषताओं का देश की सभ्यता पर प्रभावभारत को प्रकृति ने अमित मनोरम सौंदर्य दिया। उसने भारतीय मस्तिष्क को एक ऐसा दार्शनिक और कवित्वमय मोड़ दिया कि धर्म,दर्शन,कला और साहित्य में यहाँ उल्लेखनीय उन्नति हुई। परन्तु जहाँ जीवनयापन के सुगम साधनों के फलस्वरूप इनका विकास हुआ वहीं प्रकृति के साथ कठिन संघर्ष का अभाव प्रकृति के रहस्यों की खोज की भावना के विकास में बाधक सिद्ध हुआ। अत: यहाँ व्यावहारिक विज्ञान की उन्नति नहीं हुई। संक्षेप में भारत के बौद्धिक विकास की सभी विशिष्टताओं तथा उसके प्राकृतिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए ही इसका खुलासा किया जा सकता है।

शब्दार्थ

  • अघानातृप्त होना
  • अतिशयोक्तिकिसी बात को बढ़ाचढ़ा कर कहना
  • अप्रत्यक्षजो दिखाई दे
  • अभिमुखप्रवृत्त
  • अभियानयुद्ध के लिए आगे बढ़ना
  • अवरोधरोक
  • अविष्कारप्रकट करना
  • आश्रयआधार, विषय
  • उकसानाभड़काना, बढ़ाना
  • उपद्रवसार्वजनिक संकट या आपत्ति
  • औपनिवेशिकउपनिवेश में रहने वाला
  • कांतारगहन वन
  • खुलासासार
  • छोरसिरा
  • टेढ़ामेढ़ाजो सीधा हो
  • दंगाझगड़ाफ़साद
  • दराररेखा की तरह का लंबा छिद्र
  • दर्रादो पहाड़ों के बीच से होकर जाने वाला रास्ता
  • धर्म दूतधर्म संदेश पहुँचाने के लिए नियुक्त व्यक्ति
  • नमतर
  • निजत्वअपना भाग
  • पट्टीपतला और लंबा टुकड़ा
  • बाहुल्यबहुतायत
  • बृहत्तरऔर अधिक बड़ा
  • भाग्यविधायकतकदीर बनाने वाला
  • मणिरत्न
  • मोतीबहुमूल्य रत्न जो सीपी में से निकलता है
  • यातायातगमागमन
  • लंगर डालनाजहाज़ को खड़ा करना
  • वैषम्यसंकट
  • श्राध्यप्रशस्य
  • सतहवस्तु का ऊपरी भाग, तल
  • सदृशसमान
  • सिंचाईपानी डालने का काम
  • ह्रासक्षीणता        

अभ्यास

मौखिक:-

. क्यों भारत संसार के अन्य देशों से एकदम अलग है?

. निम्न लिखित वाक्यों का स्पष्टीकरण कीजिये:

   भारतीय इतिहास में उस एकता को खोजना अनुचित होगा जो फ़्रांस अथवा इटली जैसे देशों के इतिहास में पाई जाती है।

   प्राकृतिक विशेषताओं का देश की सभ्यता पर प्रभाव

. आंतरिक प्राकृतिक स्वरूप का दस वाक्यों में वर्णन कीजिये।

लिखित:-

. नीचे लिखे शब्दों के पर्यायवाची शब्द पाठ में से चुनकर लिखिये। 

  •   …………= आजकल का, वर्तमान काल का, सामयिक, तात्कालिक
  •   …………= खासियत, सिफ़्त, खूबी, गुण
  •   …………= सांकल, जंजीर, सिलसिला, माला
  •   …………= विख्यात, प्रतिष्ठित, विश्रुत, यशस्वी

(कीर्तिमान, नामवर, मशहूर, अग्रगण्य)

. निम्नलिखित शब्दों के निकटतम विपरीतार्थक शब्द पाठ से चुनिये:

  •   ……….= लघु, क्षुद्र, हीन, छोटा
  •   ……….= आसान, सहज, सुबोध
  •   ……….= स्थाई, स्थिर, नित्य, अटल, शाश्वत

. नीचे लिखे शब्दों के संज्ञा रूप लिखिये:

  •   स्थापित – ……..
  •   स्थाई – ………..
  •   निर्मित – ………
  •   अकेला – ……….
  •   लंबा – ………….
  •   सम्मिलित – ………..

. नीचे लिखे शब्दों के विशेषण लिखिये:

  •   विजय – ………..
  •   पर्वत – ………….
  •   जँगल – ………..
  •   क्रम – …………..
  •   व्यापार – ……….
  •   कृषि – ………….

. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखकर अपने वाक्यों में उनका प्रयोग कीजिये:

  सुगम, दुर्गम, प्रमाण, शांति दूत, समूह, आक्रमण, लाभकर, एकीकरण, अभाव

. भारत की तथा दूसरे देश की प्राकृतिक विशेषताओं के बीच क्या कोई समानता देखी जा सकती है ?

  दस वाक्यों में उत्तर दीजिये।

   ______________________________

सूक्ष्म अन्तरवाले पर्यायवाची शब्द:

अधिक, काफ़ीअधिक से आवश्यकता से ज़्यादा संख्या या परिणाम का बोध होता है। काफ़ी बतलाता है कि इतनी संख्या या परिमाण में आवश्यकता की पूर्ति मज़े से हो जायेगी। अधिक भोजन करना बुरा है, किन्तु प्रत्येक मनुष्य को काफ़ी भोजन मिलना चाहिये/

नहीं, , मतसामान्य, वर्तमान, अपूर्णभूत और आसन्नभूत कालों को छोड़कर बहुधा अन्य कालों में का प्रयोग होता है/ हरी परदेश गया/ अब बाढ़ आयेगी/ अब उन दोनों में प्रेम रहा/ नहीं का प्रयोग संभाव्य भविष्य, विधि में बहुधा नहीं होता/ वह यहाँ नहीं रह सकता/ मैं नहीं जाऊँगा/ वह नहीं रहा है/ मत केवल विधिकाल में आता है। वहाँ मत जाओ। विधि में भी का प्रयोग होता है। बासी रोटी खाओ/ वहाँ जाओ/

Addional Materials:

 

भारत देश की विशेषताएं क्या है?

भारत दुनिया का सबसे विविध राष्ट्र है। पोशाक, भाषा शैली, देश अलग अलग सांस्कृतिक पहचान का सबसे जटिल मिश्रण में से एक माना जाता है। इस तरह के करीबी और सही तरीके से एक साथ बुनाई गई विभिन्न संस्कृतियों की बड़ी संख्या, भारत की विविधता को दुनिया के चमत्कारों में से एक बनाती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

देश की क्या विशेषता है?

भारत विश्व में सबसे बड़े आकार वाले देशों की लिस्ट में सातवें नंबर पर है। भारत की संस्कृति की सबसे महान विशेषता क्या है? भारतीय संस्कृति की महान विशेषता इसकी सहिष्णुता है।

2 हमारे देश की क्या विशेषता है?

हमारे देश में भिन्न-भिन्न रंग-रूप और पहनावेवाले एवं अलग-अलग भाषाएँ बोलनेवाले लोग रहते हैं। इसके बावजूद यहाँ के लोग एक हैं। इस तरह विविधता में एकता ही हमारे देश की विशेषता है।