भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 बैसाखी के दिन भयंकर हत्याकाण्ड हुआ था। बैसाखी के मेले में ग्रामीण क्षेत्र से आए हुए लोगों की एक सभा हो रही थी। जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज अधिकारी ने अकारण उस सभा में उपस्थित लगभग 10,000 निहत्थे लोगों की भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 1000 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए। Show
जलियांवाला बाग हत्याकांड को भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटनाओं में से एक कहा जाता है। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। भगत सिंह, राजगुरु जैसे अनेक युवक आंदोलित हो गए। आज जलियांवाला बाग को एक दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल बनाया गया है। जलियांवाला बाग हत्याकांड से जुड़ी अन्य बातें (FAQ’s)जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ?13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। यह भयंकर हत्याकाण्ड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में हुआ। जलियांवाला बाग हत्याकांड पर निबंध, कहानी, शायरी | Jallianwala Bagh Massacre in Hindi, Essay, Date, History By Ankita- September 8, 20220 जलियांवाला बाग हत्याकांड पर निबंध, कहानी, शायरी, कब हुआ था, किसने किया था, कहां हुआ था, टिप्पणी (Jallianwala Bagh Massacre in Hindi) (Hatyakand, History, Facts, Date, Short Note, Kahan Sthit hai, Kab Hua tha) जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास से जुड़ी हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो कि साल 1919 में घटी थी. इस हत्याकांड की दुनिया भर में निंदा की गई थी. हमारे देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. लेकिन इस हत्याकांड के बाद हमारे देश के क्रांतिकारियों के हौसले कम होने की जगह और मजबूत हो गए थे. आखिर ऐसा क्या हुआ था, साल 1919 में जिसके कारण, जलियांवाला बाग में मौजूद बेकसूर लोगों की जान ले ली गई थी, इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी कौन था और उसे क्या सजा मिली थी? इन सब सवालों के जवाब आपको इस लेख में दिए गए हैं. Table of Contents
जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre in Hindi)घटना का नामजालियांवाला बाग हत्याकांडघटना कहां हुईअमृतसर, पंजाब, भारतघटना का दिन13 अप्रैल 1919अपराधीब्रिटीश भारतीय सैनिक और डायरजान किसकी गई370 से अधिकघायल लोग1000 से अधिकजलियांवाला बाग घटनाक्रम से पहले की जानकारी (Before Jallianwala Bagh Massacre)रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ हुआ था विरोध –साल 1919 में हमारे देश में कई तरह के कानून, ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए थे और इन कानूनों का विरोध हमारे देश के हर हिस्से में किया जा रहा था. 6 फरवरी, साल 1919 में ब्रिटिश सरकार ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक ‘रॉलेक्ट’ नामक बिल को पेश किया था और इस बिल को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने मार्च के महीने में पास कर दिया था. जिसके बाद ये बिल एक अधिनियम बन गया था. इस अधिनियम के अनुसार भारत की ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के सामने पेश किए जेल में डाल सकती थी. इसके अलावा पुलिस दो साल तक बिना किसी भी जांच के, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में भी रख सकती थी. इस अधिनियम ने भारत में हो रही राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिए, ब्रिटिश सरकार को एक ताकत दे दी थी. इस अधिनियम की मदद से भारत की ब्रिटिश सरकार, भारतीय क्रांतिकारियों पर काबू पाना चाहती थी और हमारे देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को पूरी तरह से खत्म करना चाहित थी. इस अधिनियम का महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने विरोध किया था. गांधी जी ने इसी अधिनियम के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में शुरू किया था. ‘सत्याग्रह’ आंदोलन की शुरुआतसाल 1919 में शुरू किया गया सत्याग्रह आंदोलन काफी सफलता के साथ पूरे देश में ब्रिटिश हकुमत के खिलाफ चल रहा था और इस आंदोलन में हर भारतीय ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था. भारत के अमृतसर शहर में भी 6 अप्रैल, 1919 में इस आंदोलन के तहत एक हड़ताल की गई थी और रॉलेक्ट एक्ट का विरोध किया गया था. लेकिन धीरे-धीरे इस अहिंसक आंदोलन ने हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया था. 9 अप्रैल को सरकार ने पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. इन नेताओं के नाम डॉ सैफुद्दीन कच्छू और डॉ. सत्यपाल था. इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें अमृतसर से धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया था. जहां पर इन्हें नजरबंद कर दिया गया था. अमृतसर के ये दोनों नेता यहां की जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे और अपने नेता की गिरफ्तारी से परेशान होकर, यहां के लोग 10 अप्रैल को इनकी रिहाई करवाने के मकसद से डिप्टी कमेटीर, मिल्स इरविंग से मुलाकात करना चाहते थे. लेकिन डिप्टी कमेटीर ने इन लोगों से मिलने से इंकार कर दिया था. जिसके बाद इन गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन, तार विभाग सहित कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया. तार विभाग में आग लगाने से सरकारी कामकाज को काफी नुकसान पहुंचा था, क्योंकि इसी के माध्यम से उस वक्त अफसरों के बीच संचार हो पाता था. इस हिंसा के कारण तीन अंग्रेजों की हत्या भी हो गई थी. इन हत्याओं से सरकार काफी खफा थी. डायर को सौंपी गई अमृतसर की जिम्मेदारीअमृतसर के बिगड़ते हालातों पर काबू पाने के लिए भारतीय ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य की जिम्मेदारी डिप्टी कमेटीर मिल्स इरविंग से लेकर ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच डायर को सौंप दी थी और डायर ने 11 अप्रैल को अमृतसर के हालातों को सही करने का कार्य शुरू कर दिया. पंजाब राज्य के हालातों को देखते हुए इस राज्य के कई शहरों में ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया था. इस लॉ के तहत नागरिकों की स्वतंत्रता पर और सार्वजनिक समारोहों का आयोजन करने पर प्रतिबंध लग गया था. मार्शल लॉ के तहत, जहां पर भी तीन से ज्यादा लोगों को इकट्ठा पाया जा रहा था, उन्हें पकड़कर जेल में डाला दिया जा रहा था. दरअसल इस लॉ के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों द्वारा आयोजित होने वाली सभाओं पर रोक लगाना चाहती थी. ताकि क्रांतिकारी उनके खिलाफ कुछ ना कर सकें. 12 अप्रैल को सरकार ने अमृतसर के अन्य दो नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया था और इन नेताओं के नाम चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद था. इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर के लोगों के बीच गुस्सा और बढ़ गया था. जिसके कारण इस शहर के हालात और बिगड़ने की संभावना थी. हालातों को संभालने के लिए इस शहर में ब्रिटिश पुलिस ने और सख्ती कर दी थी. जलियांवाला बाग हत्याकांड कहानी, वर्णन (Jallianwala Bagh Massacre History in hindi)जालियांवाला बाग़ हत्याकांड कब हुआसन 1919 में 13 अप्रैल के दिन हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए उसी समय डायर ने अपने ऑफिसर्स को फायरिंग का आदेश दिया, और तब हुआ बहुत ही दिल दहला देने वाला हत्याकांड. जालियांवाला नाग हत्याकांड कैसे हुआ13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में कई संख्या में लोगों इक्ट्ठा हुए थे. इस दिन इस शहर में कर्फ्यू लगाया गया था, लेकिन इस दिन बैसाखी का त्योहार भी था. जिसके कारण काफी संख्या में लोग अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर आए थे. जलियांवाला बाग, स्वर्ण मंदिर के करीब ही था. इसलिए कई लोग इस बाग में घूमने के लिए भी चले गए थे और इस तरह से 13 अप्रैल को करीब 20,000 लोग इस बाग में मौजूद थे. जिसमें से कुछ लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी के मुद्दे पर शांतिपूर्ण रूप से सभा करने के लिए एकत्र हुए थे. वहीं कुछ लोग अपने परिवार के साथ यहां पर घूमने के लिए भी आए हुए थे. इस दिन करीब 12:40 बजे, डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली थी. ये सूचना मिलने के बाद डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से करीब 150 सिपाहियों के साथ इस बाग के लिए रवाना हो गए थे. डायर को लगा की ये सभा दंगे फैलाने के मकसद से की जा रही थी. इसलिए इन्होंने इस बाग में पहुंचने के बाद लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए, अपने सिपाहियों को गोलियां चलाने के आदेश दे दिए. कहा जाता है कि इन सिपाहियों ने करीब 10 मिनट तक गोलियां चलाई थी. वहीं गोलियों से बचने के लिए लोग भागने लगे. लेकिन इस बाग के मुख्य दरवाजे को भी सैनिकों द्वारा बंद कर दिया गया था और ये बाग चारो तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद था. ऐसे में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए इस बाग में बने एक कुएं में कूद गए. लेकिन गोलियां थमने का नाम नहीं ले रही थी और कुछ समय में ही इस बाग की जमीन का रंग लाल हो गया था. कुल मारे गए लोग (How many people died in Jallianwala Bagh Massacre ?)इस नरसंहार में 370 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जिनमें छोटे बच्चे और महिलाएं भी शामिल थी. इस नरसंहार में सात हफ्ते के एक बच्चे की भी हत्या कर दी गई थी. इसके अलावा इस बाग में मौजूद कुएं से 100 से अधिक शव निकाले गए थे. ये शव ज्यादातर बच्चों और महिलाओं के ही थे. कहा जाता है कि लोग गोलियों से बचने के लिए कुएं में कूद गए थे, लेकिन फिर भी वो अपनी जान नहीं बचा पाए. वहीं कांग्रेस पार्टी के मुताबिक इस हादसे में करीब 1000 लोगों की हत्या हुई थी और 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने केवल 370 के करीब लोगों की मौत होने की पुष्टि की थी. ताकि उनके देश की छवि विश्व भर में खराब ना हो सके. जालियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ (Why did the Jallianwala Bagh Massacre Happen)दरअसल जलियांवाला बाग़ हत्याकांड होने का मुख्य कारण अंगेजी सरकार द्वारा कर्फ्यू लगाने के बावजूद एक साथ एक जगह पर लगभग 20 हजार लोगों का एक साथ इकठ्ठा होना था. भारतीय एक साथ इसलिए इकठ्ठा हुआ थे क्योकि उस दिन वैसाखी का त्यौहार था. और लोग बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए स्वर्ण मंदिर गए थे और उसके पास में ही था यह जलियांवाला बाग़ जहाँ पर लोग भ्रमण करने गए थे. वहां पर एक शांतिपूर्ण सभा का भी आयोजन किया गया था. किन्तु अंग्रेजी सरकार को यह लगा कि वहां सरकार के खिलाफ साजिश की जा रही है. जिसकी वजह से यह हत्याकांड का हुआ. जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद क्या हुआ (After Jallianwala Bagh Hatyakand)डायर के फैसले पर उठे सवालइस नरसंहार की निंदा भारत के हर नेता ने की थी और इस घटना के बाद हमारे देश को आजाद करवाने की कवायाद और तेज हो गई थी. लेकिन ब्रिटिश सरकार के कुछ अधिकारियों ने डायर के द्वारा किए गए इस नरसंहार को सही करार दिया था. बेकसूर लोगों की हत्या करने के बाद जब डायर ने इस बात की सूचना अपने अधिकारी को दी, तो लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर ने एक पत्र के जरिए कहा कि डायर ने जो कार्रवाई की थी, वो एकदम सही थी और हम इसे स्वीकार करते हैं. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने वापस की अपनी उपाधिजलियांवाला बाग हत्याकांड की जानकारी जब रवीन्द्रनाथ टैगोर को मिली,तो उन्होंने इस घटना पर दुख प्रकट करते हुए, अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि को वापस लौटाने का फैसला किया था. टैगोर ने लॉर्ड चेम्सफोर्ड, जो की उस समय भारत के वायसराय थे, उनको पत्र लिखते हुए इस उपाधि को वापस करने की बात कही थी. टैगोर को ये उपाधि यूएक द्वारा साल 1915 में इन्हें दी गई थी. जलियांवाला बाग हत्याकांड कमेटी (Hunter Committee)जलियांवाला बाग को लेकर साल 1919 में एक कमेटी का गठन किया गया था और इस कमेटी का अध्यक्ष लार्ड विलियम हंटर को बनाया गया था. हंटर कमेटी नामक इस कमेटी की स्थापना जलियांवाला बाग सहित, देश में हुई कई अन्य घटनाओं की जांच करने के लिए की गई थी. इस कमेटी में विलियम हंटर के अलावा सात और लोग थे जिनमें कुछ भारतीय भी मौजूद थे. इस कमेटी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के हर पहलू की जांच की और ये पता लगाने की कोशिश कि, की डायर ने जलियांवाला भाग में उस वक्त जो किया था, वो सही था कि गलत. 19 नवंबर साल 1919 में इस कमेटी ने डायर को अपने सामने पेश होने को कहा और उनसे इस हत्याकांड को लेकर सवाल किए. इस कमेटी के सामने अपना पक्ष रखते हुए डायर ने जो बयान दिया था उसके मुताबिक डायर को सुबह 12:40 पर जलियांवाला बाग में होने वाली एक बैठक के बारे में पता चला था, लेकिन उस समय उन्होंने इस बैठक को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठा. डायर के मुताबिक 4 बजे के आसपास वो अपने सिपाहियों के साथ बाग जाने के लिए रवाना हुए और उनके दिमाग में ये बात साफ थी, कि अगर वहां पर किसी भी तरह की बैठक हो रही होगी, तो वो वहां पर फायरिंग शुरू कर देंगे. कमेटी के सामने डायर ने ये बात भी मानी थी, कि अगर वो चाहते तो लोगों पर गोली चलाए बिना उन्हें तितर-बितर कर सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. क्योंकि उनको लगा, कि अगर वो ऐसा करते तो कुछ समय बाद वापस वहां लोग इकट्ठा हो जाते और डायर पर हंसते. डायर ने कहा कि उन्हें पता था कि वो लोग विद्रोही हैं, इसलिए उन्होंने अपनी ड्यूटी निभाते हुए गोलियां चलवाईं. डायर ने अपनी सफाई में आगे कहा कि घायल हुए लोगों की मदद करना उनकी ड्यूटी नहीं थी. वहां पर अस्पताल खुले हुए थे और घायल वहां जाकर अपना इलाज करवा सकते थे. 8 मार्च 1920 को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को सार्वजनिक किया और हंटर कमेटी की रिपोर्ट में डायर के कदम को एकदम गलत बताया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि लोगों पर काफी देर तक फायरिंग करना एकदम गलत था. डायर ने अपनी सीमों को पार करते हुए ये निर्णय लिया था. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था, कि पंजाब में ब्रिटिश शासन को खत्म करने की कोई में साजिश नहीं की जा रही थी. इस रिपोर्ट के आने के बाद 23 मार्च 1920 को डायर को दोषी पाते हुए उन्हें सेवानिवृत कर दिया गया था. विंस्टन चर्चिल जो उस समय सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर वॉर थे, उन्होंने इस नरसंहार की आलोचना की थी और साल 1920 में हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा था कि जिन लोगों की गोली मार कर हत्या की गई थी, उनके पास कोई भी हथियार नहीं थे, बस लाठियां थी. जब गोलियां चली तो ये लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. ये लोग जब अपनी जान को बचाने के लिए कोनो पर जाकर छुपने लगे तो, वहां पर भी गोलियां चलाई गई. इसके अलावा जो लोग जमीन पर लेट गए उनको भी नहीं बक्शा गया और उनकी भी हत्या कर दी गई. चर्चिल के अलावा ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री एच एच एच एस्क्विथ ने भी इस नरसंहार को गलत बताया था. डायर की हत्या डायर सेवानिवृत होने के बाद लदंन में अपना जीवन बिताने लगे. लेकिन 13 मार्च 1940 का दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन साबित हुआ. उनके द्वारा किए गए हत्याकांड का बदला लेते हुए उधम सिंह ने केक्सटन हॉल में उनको गोली मार दी. सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे और कहा जाता है कि 13 अप्रैल के दिन वो भी उस बाग में मौजूद थे जहां पर डायर ने गोलियां चलवाईं थी और सिंह एक गोली से घायल भी हए थे. जलियांवाला बाग की घटना को सिंह ने अपनी आंखों से देखा था. इस घटना के बाद से सिंह डायर से बदला लेने की रणनीति बनाने में जुट गए थे और साल 1940 में सिंह अपनी रणनीति में कामयाब हुए और उन्होंने जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की मौत का बदला ले लिया. उधम सिंह के इस कदम की तारीफ कई विदेशी अखबारों ने की थी और हमारे देश के अखबार ‘अमृता बाजार पत्रिका’ ने कहा था कि हमारे देश के आम लोग और क्रांतिकारी, उधम सिंह की कार्रवाई से गौरवान्वित हैं. हालांकि इस हत्या के लिए उधम सिंह को लंदन में साल 1940 में फांसी की सजा दी गई थी. वहीं कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए सिंह ने कहा था, कि डायर को उन्होंने इसलिए मारा, क्योंकि वो इसी के लायक थे. वो हमारे देश के लोगों की भावना को कुचलना चाहते थे, इसलिए मैंने उनको कुचल दिया है. मैं 21 वर्षों से उनको मारने की कोशिश कर रहा था और आज मैंने अपना काम कर दिया है. मुझे मृत्यु का डर नहीं है, मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ. उधम सिंह के इस बलिदान का हमारे देश के हर नागिरक ने सम्मान किया और जवाहर लाल नेहरू जी ने, साल 1952 में सिंह को एक शहीद का दर्जा दिया था. ब्रिटिश सरकार ने नहीं मांगी माफी इस हत्याकांड को लेकर ब्रिटिश सरकार ने कई बार अपना दुख प्रकट किया है, लेकिन कभी भी इस हत्याकांड के लिए माफी नहीं मांगी है. साल 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ-2 ने अपनी भारत की यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग का भी दौरा किया था. जलियांवाला बाग में पहुंचकर उन्होंने अपने जूते उतारकर इस बाग में बनाई गई स्मारक के पास कुछ समय बिताया था और 30 मिनट तक के लिए मौन रखा था. भारत के कई नेताओं ने महारानी एलिजाबेथ-2 से माफी मांगने को भी कहा था. वहीं भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने रानी का बचाव करते हुए कहा कि रानी इस घटना के समय पैदा नहीं हुई थी और उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए. वहीं, साल 2016 में भारत के दौरे पर आए इंग्लैंड के प्रिंस विलियम और केट मिडलटन ने इस मुद्दा से दूरी बनाए रखने के लिए जलियांवाला बाग में ना जाने का फैसला लिया था. वहीं साल 2017 में इस स्मारक पर गए ब्रिटेन के मेयर महापौर सादिक खान ने एक बयान देते हुए कहा था कि ब्रिटिश सरकार को इस नरसंहार पर माफी मांगी चाहिए थी. जलियांवाला बाग पर बनी फिल्म (Jallianwala Bagh Massacre Based Movie)इस घटना के ऊपर साल 1977 में एक हिंदी फिल्म भी बनाई गई थी और इस फिल्म का नाम जलियांवाला बाग रखा गया था. इस फिल्म में विनोद खन्ना और शबाना आजमी ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इसके अलावा भारत की आजादी पर आधारित लगभग हर फिल्म में (जैसे, लेजेंड ऑफ भगत सिंह, रंग दे बसंती) जलियांवाला बाग हत्याकांड को जरूर दृश्या जाता है. इसके अलावा इस हत्यकांड के ऊपर कई सारी किताबों भी लिखी गई है. साल 1981 में आया उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में 13 अप्रैल की इस घटना का जिक्र किया गया था. ये उपन्यास सलमान रुश्दी ने लिखा था. साल 2012 में इस उपन्य़ास के ऊपर एक फिल्म भी बनाई गई थी जिसमें की इस हत्याकांड को भी दर्शाया गया था. इसके अलावा साल 2017 में आई फिल्लौरी फिल्म में भी इस घटना को दिखाया गया था और बताया गया था कि किसी तरह से इस हत्याकांड का असर कई लोगों की जिंदगी और मारे गए लोगों से जुड़े परिवारवालों पर पड़ा था. जालियांवाला बाग़ हत्याकांड 100 सालसाल 2019 में इस घटना को हुए 100 साल हो गये हैं और ऐसे में कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने ब्रिटिश सरकार को एक सुझाव देते हुए कहा था, कि 2019 माफी मांगने के लिए एक अच्छा मौका है. जलियांवाला बाग से जुड़ी रोचक जानकारी (Jallianwala Bagh Facts)इस जगह पर बनाई गई स्मारक-
अभी भी हैं गोलियों के निशान-
आज भी इस हत्याकांड को दुनिया भर में हुए सबसे बुरे नरसंहार में गिना जाता है. इस साल यानी 2018 में, इस हत्याकांड को हुए 99 साल होने वाले हैं लेकिन अभी भी इस हत्याकांड का दुख उतना ही है जितना 99 साल पहले था. वहीं इस स्थल पर जाकर हर साल 13 अप्रैल के दिन उन लोगों की श्रद्धांजलि दी जाती है जिन्होंने अपनी जान इस हत्याकांड में गवाई थी. होमपेजयहां क्लिक करेंFAQQ : जलियांवाला बाग़ हत्याकांड क्या है ? Ans : भारत की आजादी से वैशाखी के दिन जलियांवाला बाग़ पर हजारों निर्दोष लोगों की हत्या की गई, उसे ही जालियांवाला बाग़ हत्याकांड कहा जाता है. जलियांवाला बाग हत्याकांड का कारण क्या था?रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड कब और क्यों हुआ?पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है। 13 अप्रैल 1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं। उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए। बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा।
जलियांवाला बाग हत्याकांड में गोली चलाने का आदेश कौन दिया था?परिचय: 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे।
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