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हेलो फ्रेंड्स वेलकम टू अकल ऐप आपका प्रश्न है हम अपना पाठ याद करते हैं का इंग्लिश सेटिंग्स बताओ हां सेंटेंस बताओ हां फ्रेंड इस प्रश्न का राइट आंसर होगा अभी रिमेंबर रावल का प्रयास करते बता दूं कि हम अपना पाठ याद करते हैं को इंग्लिश में बोलेंगे वही रिमेंबर रावत लेशन hello friends welcome to akal app aapka prashna hai hum apna path yaad karte hain ka english settings batao haan sentence batao haan friend is prashna ka right answer hoga abhi remember raval ka prayas karte bata doon ki hum apna path yaad karte hain ko english me bolenge wahi remember rawat leshan हेलो फ्रेंड्स वेलकम टू अकल ऐप आपका प्रश्न है हम अपना पाठ याद करते हैं का इंग्लिश सेटिंग्स 4 471Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! प्रकृति के अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में सोचने की शक्ति अधिक होती है। वह अपने ही नहीं दूसरों के सुख – दुःख का भी ख्याल रखता है और दूसरों के लिए कुछ करने में समर्थ होता है। जानवर जब चरागाह में जाते हैं तो केवल अपने लिए चर कर आते हैं, परन्तु मनुष्य ऐसा नहीं है। वह जो कुछ भी कमाता है ,जो कुछ भी बनाता है ,वह दूसरों के लिए भी करता है और दूसरों की सहायता से भी करता है। प्रस्तुत पाठ का कवि अपनों के सुख – दुःख की चिंता करने वालों को मनुष्य तो मानता है परन्तु यह मानने को तैयार नहीं है कि उन मनुष्यों में मनुष्यता के सारे गुण होते हैं। कवि केवल उन मनुष्यों को महान मानता है जो अपनों के सुख – दुःख से पहले दूसरों की चिंता करते हैं। वह मनुष्यों में ऐसे गुण चाहता है जिसके कारण कोई भी मनुष्य इस मृत्युलोक से चले जाने के बाद भी सदियों तक दूसरों की यादों में रहता है अर्थात वह मृत्यु के बाद भी अमर रहता है। आखिर क्या है वे गुण ? यह इस पाठ में जानेंगे – Class 10th English Lessons Class 10th English Mcq Take Free MCQ Test English Class 10 English Important Questions and Answers Class 10th Science Lessons Class 10th Science Mcq Take Free MCQ Test Science Class 10 Science Important Questions and Answer Class 10th Hindi Lessons Class 10th Hindi Mcq Take Free MCQ Test Hindi Class 10th SST Lessons Take Free MCQ Test SST Class 10 Social Science Important Questions and Answers Class 10th Sanskrit Lessons Manushyta Summaryइस कविता में कवि मनुष्यता का सही अर्थ समझाने का प्रयास कर रहा है। पहले भाग में कवि कहता है कि मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है पर हमें ऐसा कुछ करना चाहिए कि लोग हमें मृत्यु के बाद भी याद रखें। असली मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। दूसरे भाग में कवि कहता है कि हमें उदार बनना चाहिए क्योंकि उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है। मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों की चिंता करे। तीसरे भाग में कवि कहता है कि पुराणों में उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं जिन्हे उनकी त्याग भाव के लिए आज भी याद किया जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो त्याग भाव जान ले। चौथे भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया और करुणा का भाव होना चाहिए, मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए मरता और जीता है। पांचवें भाग में कवि कहना चाहता है कि यहाँ कोई अनाथ नहीं है क्योंकि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं। हमें भेदभाव से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए।छठे भाग में कवि कहना चाहता है कि हमें दयालु बनना चाहिए क्योंकि दयालु और परोपकारी मनुष्यों का देवता भी स्वागत करते हैं। अतः हमें दूसरों का परोपकार व कल्याण करना चाहिए।सातवें भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के बाहरी कर्म अलग अलग हो परन्तु हमारे वेद साक्षी है की सभी की आत्मा एक है ,हम सब एक ही ईश्वर की संतान है अतः सभी मनुष्य भाई -बंधु हैं और मनुष्य वही है जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये।अंतिम भाग में कवि कहना चाहता है कि विपत्ति और विघ्न को हटाते हुए मनुष्य को अपने चुने हुए रास्तों पर चलना चाहिए ,आपसी समझ को बनाये रखना चाहिए और भेदभाव को नहीं बढ़ाना चाहिए ऐसी सोच वाला मनुष्य ही अपना और दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सकता है। मनुष्यता की पाठ व्याख्या
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, शब्दार्थ मर्त्य – मृत्यु प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि बताना चाहता है कि मनुष्यों को कैसा जीवन जीना चाहिए। व्याख्या -: कवि कहता है कि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। कवि कहता है कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखे। जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे वही असली मनुष्य कहलाता है। उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, शब्दार्थ धरा – धरती प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि बताना चाहता है कि जो मनुष्य दूसरों के लिए जीते हैं उनका गुणगान युगों – युगों तक किया जाता है। व्याख्या -: कवि कहता है कि जो मनुष्य अपने पूरे जीवन में दूसरों की चिंता करता है उस महान व्यक्ति की कथा का गुण गान सरस्वती अर्थात पुस्तकों में किया जाता है। पूरी धरती उस महान व्यक्ति की आभारी रहती है। उस व्यक्ति की बातचीत हमेशा जीवित व्यक्ति की तरह की जाती है और पूरी सृष्टि उसकी पूजा करती है। कवि कहता है कि जो व्यक्ति पुरे संसार को अखण्ड भाव और भाईचारे की भावना में बाँधता है वह व्यक्ति सही मायने में मनुष्य कहलाने योग्य होता है। क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी, शब्दार्थ क्षुधार्त – भूख से परेशान प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि ने महान पुरुषों के उदाहरण दिए हैं जिनकी महानता के कारण उन्हें याद किया जाता है। व्याख्या -: कवि कहता है कि पौराणिक कथाएं ऐसे व्यक्तिओं के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए त्याग दिया जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। भूख से परेशान रतिदेव ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महर्षि दधीचि ने तो अपने पूरे शरीर की हड्डियाँ वज्र बनाने के लिए दान कर दी थी। उशीनर देश के राजा शिबि ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपना पूरा मांस दान कर दिया था। वीर कर्ण ने अपनी ख़ुशी से अपने शरीर का कवच दान कर दिया था। कवि कहना चाहता है कि मनुष्य इस नश्वर शरीर के लिए क्यों डरता है क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए अपने आप को त्याग देता है। सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; शब्दार्थ सहानुभूति – दया,करुणा प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि ने महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए दया ,करुणा को सबसे बड़ा धन बताया है। व्याख्या -: कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया व करुणा का भाव होना चाहिए ,यही सबसे बड़ा धन है। स्वयं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं जिनसे लोगों का दुःख नहीं देखा गया तो वे लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। इसके लिए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अर्थात उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। महान उस को कहा जाता है जो परोपकार करता है वही मनुष्य ,मनुष्य कहलाता है जो मनुष्यों के लिए जीता है और मरता है। रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में, शब्दार्थ मदांघ – घमण्ड प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि सम्पति पर कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए और किसी को अनाथ नहीं समझना चाहिए क्योंकि ईश्वर सबके साथ हैं। व्याख्या -: कवि कहता है कि भूल कर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि कवि कहता है कि यहाँ कौन सा व्यक्ति अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है। कवि कहता है कि वह व्यक्ति भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतावलापन रखता है क्योंकि मनुष्य वही व्यक्ति कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है। अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, शब्दार्थ अनंत – जिसका कोई अंत न हो प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि कलंक रहित रहने व दूसरों का सहारा बनने वाले मवषयों का देवता भी स्वागत करते हैं। व्याख्या -: कवि कहता है कि उस कभी न समाप्त होने वाले आकाश में असंख्य देवता खड़े हैं, जो परोपकारी व दयालु मनुष्यों का सामने से खड़े होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्वागत करते हैं। इसलिए दूसरों का सहारा बनो और सभी को साथ में लेकर आगे बड़ो। कवि कहता है कि सभी कलंक रहित हो कर देवताओं की गोद में बैठो अर्थात यदि कोई बुरा काम नहीं करोगे तो देवता तुम्हे अपनी गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के लिए नहीं जीना चाहिए अपना और दूसरों का कल्याण व उद्धार करना चाहिए क्योंकि इस मरणशील संसार में मनुष्य वही है जो मनुष्यों का कल्याण करे व परोपकार करे। ‘मनुष्य मात्रा बन्धु हैं’ यही बड़ा विवेक है, परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं। शब्दार्थ बन्धु – भाई बंधु प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि हम सब एक ईश्वर की संतान हैं। अतः हम सभी मनुष्य एक – दूसरे के भाई – बन्धु हैं। व्याख्या -: कवि कहता है कि प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे के भाई – बन्धु हैं ।यह सबसे बड़ी समझ है। पुराणों में जिसे स्वयं उत्पन्न पुरुष मना गया है, वह परमात्मा या ईश्वर हम सभी का पिता है, अर्थात सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं। बाहरी कारणों के फल अनुसार प्रत्येक मनुष्य के कर्म भले ही अलग अलग हों परन्तु हमारे वेद इस बात के साक्षी है कि सभी की आत्मा एक है। कवि कहता है कि यदि भाई ही भाई के दुःख व कष्टों का नाश नहीं करेगा तो उसका जीना व्यर्थ है क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो बुरे समय में दूसरे मनुष्यों के काम आता है। चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति,विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए। अभीष्ट – इच्छित प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि यदि हम ख़ुशी से,सारे कष्टों को हटते हुए ,भेदभाव रहित रहेंगे तभी संभव है की समाज की उन्नति होगी। व्याख्या -: कवि कहता है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे Important Questions Videos Links
Manushyta Solutions of Important Questionsक)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये –प्रश्न 1 -: कवि ने कैसी मृत्यु को समृत्यु कहा है? उत्तर-: कवि ने ऐसी मृत्यु को समृत्यु कहा है जिसमें मनुष्य अपने से पहले दूसरे की चिंता करता है और परोपकार की राह को चुनता है जिससे उसे मरने के बाद भी याद किया जाता है। प्रश्न 2 -: उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है? उत्तर -: उदार व्यक्ति परोपकारी होता है, वह अपने से पहले दूसरों की चिंता करता है और लोक कल्याण के लिए अपना जीवन त्याग देता है। प्रश्न 3 -: कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तिओं के उदाहरण दे कर ‘मनुष्यता ‘ के लिए क्या उदाहरण दिया है? उत्तर -: कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तिओं के उदाहरण दे कर ‘मनुष्यता ‘ के लिए यह सन्देश दिया है कि परोपकार करने वाला ही असली मनुष्य कहलाने योग्य होता है। मानवता की रक्षा के लिए दधीचि ने अपने शरीर की सारी अस्थियां दान कर दी थी,कर्ण ने अपनी जान की परवाह किये बिना अपना कवच दे दिया था जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। कवि इन उदाहरणों के द्वारा यह समझाना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है।
प्रश्न 4 -: कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व – रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए? उत्तर -: कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में गर्व रहित जीवन व्यतीत करने की बात कही है-: प्रश्न 5 -: ‘ मनुष्य मात्र बन्धु है ‘ से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर -: ‘ मनुष्य मात्र बन्धु है ‘ अर्थात हम सब मनुष्य एक ईश्वर की संतान हैं अतः हम सब भाई – बन्धु हैं। भाई -बन्धु होने के नाते हमें भाईचारे के साथ रहना चाहिए और एक दूसरे का बुरे समय में साथ देना चाहिए।
प्रश्न 6 -: कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है ? उत्तर -: कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है ताकि आपसी समझ न बिगड़े और न ही भेदभाव बड़े। सब एक साथ एक होकर चलेंगे तो सारी बाधाएं मिट जाएगी और सबका कल्याण और समृद्धि होगी। प्रश्न 7 -: व्यक्ति को किस तरह का जीवन व्यतीत करना चाहिए ?इस कविता के आधार पर लिखिए। उत्तर -: मनुष्य को परोपकार का जीवन जीना चाहिए ,अपने से पहले दूसरों के दुखों की चिंता करनी चाहिए। केवल अपने बारे में तो जानवर भी सोचते हैं, कवि के अनुसार मनुष्य वही कहलाता है जो अपने से पहले दूसरों की चिंता करे। प्रश्न 8 -: ‘ मनुष्यता ‘ कविता के द्वारा कवि क्या सन्देश देना चाहता है ? उत्तर -: ‘मनुष्यता ‘ कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है। परोपकार ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम युगों तक लोगो के दिल में अपनी जगह बना सकते है और परोपकार के द्वारा ही समाज का कल्याण व समृद्धि संभव है। अतः हमें परोपकारी बनना चाहिए ताकि हम सही मायने में मनुष्य कहलाये। Important Videos Links
ख )निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-1)सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कहना चाहता है कि मनुष्यों के मन में दया व करुणा का भाव होना चाहिए, यही सबसे बड़ा धन है। स्वयं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं जिनसे लोगों का दुःख नहीं देखा गया तो वे लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। इसके लिए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अर्थात उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। 2) रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में, उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि भूल कर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि कवि कहता है कि यहाँ कौन सा व्यक्ति अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है। 3) चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कहना चाहता है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये उन्हें हटाते चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे। Extra Questions with Solutions (Important)
प्रश्न 1 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने क्यों कहा है कि हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए? उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने कहा है कि मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है इसे कोई भी टाल नहीं सकता। जिसने इस धरती पर जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मरना ही है।
प्रश्न 2 – कैसे मनुष्यों का जीना और मरना दोनों बेकार है और क्यों? उत्तर – जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । वह मनुष्य मर कर भी कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे वही असली मनुष्य कहलाता है।
प्रश्न 3 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर असली या सच्चा मनुष्य कौन है? उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर असली मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों की चिंता करे। सच्चा मनुष्य वही है जो त्याग का भाव जान ले। अतः हमें दूसरों का परोपकार व कल्याण करना चाहिए। सभी मनुष्य भाई – बंधु हैं और मनुष्य वही है जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये। जो मनुष्य आपसी समझ को बनाये रखता है और भेदभाव को बढ़ावा नहीं देता , ऐसी सोच वाला मनुष्य ही अपना और दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि सभी के कल्याण के लिए सोचता है वही मनुष्य सच्चा मनुष्य कहलाता है। प्रश्न 4 – मनुष्य को उदार क्यों बनना चाहिए? उत्तर – मनुष्य को सदा उदार बनना चाहिए क्योंकि उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है। उदार व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है। पूरी धरती उस महान व्यक्ति की आभारी रहती है। उस व्यक्ति की बातचीत उसके मरने के बाद भी हमेशा जीवित व्यक्ति की तरह की जाती है और पूरी सृष्टि उसकी पूजा करती है। प्रश्न 5 – पुराणों में किन लोगों के उदाहरण हैं? उत्तर – पुराणों में उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं। जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए त्याग दिया जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। भूख से परेशान रतिदेव ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महर्षि दधीचि ने तो अपने पूरे शरीर की हड्डियाँ वज्र बनाने के लिए दान कर दी थी। उशीनर देश के राजा शिबि ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपना पूरा मांस दान कर दिया था। वीर कर्ण ने अपनी ख़ुशी से अपने शरीर का कवच दान कर दिया था। प्रश्न 6 – मनुष्यों के मन में कैसे भाव होने चाहिए? उत्तर – मनुष्यों के मन में दया व करुणा का भाव होना चाहिए ,यही सबसे बड़ा धन है। स्वयं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं जिनसे लोगों का दुःख नहीं देखा गया तो वे लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। इसके लिए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अर्थात उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। प्रश्न 7 – कवि के अनुसार कभी संपत्ति या यश पर घमंड क्यों नहीं करना चाहिए? उत्तर – कवि के अनुसार भूल कर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि कवि कहता है कि इस धरती और कोई भी व्यक्ति अनाथ नहीं है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है और उसका हाथ सबके ऊपर रहता है। कवि के अनुसार वह व्यक्ति भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतावलापन रखता है क्योंकि मनुष्य वही व्यक्ति कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है। क्योंकि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं। हमें भेदभाव से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए। प्रश्न 8 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर समझाइए कि देवता कैसे मनुष्यों का स्वागत करते हैं? उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर उस कभी न समाप्त होने वाले आकाश में असंख्य देवता खड़े हैं, जो परोपकारी व दयालु मनुष्यों का सामने से खड़े होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्वागत करते हैं। इसलिए कविता में बताया गया है कि दूसरों का सहारा बनो और सभी को साथ में लेकर आगे बड़ो। कवि कहता है कि सभी कलंक रहित हो कर देवताओं की गोद में बैठो अर्थात यदि कोई बुरा काम नहीं करोगे तो देवता तुम्हे अपनी गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के लिए नहीं जीना चाहिए अपना और दूसरों का कल्याण व उद्धार करना चाहिए क्योंकि इस मरणशील संसार में मनुष्य वही है जो मनुष्यों का कल्याण करे व परोपकार करे। प्रश्न 9 – सुमृत्यु किसे कहते हैं? उत्तर – मानव जीवन तभी सार्थक होता है जब वह दूसरों के काम आये और ऐसे इंसान की मृत्यु को भी सुमृत्यु माना जाता है जो मानवता की राह में परोपकार करते हुए आती है। ऐसे मनुष्य को भी लोग उसकी मृत्यु के पश्चात श्रद्धा से याद करते हैं। प्रश्न 10 – इस कविता में महापुरुषों जैसे कर्ण, दधीचि, सीबी ने मनुष्यता को क्या सन्देश दिया है? उत्तर – दधीचि, कर्ण, सीबी आदि महान व्यक्तिओं ने ‘मनुष्यता ‘ के लिए यह सन्देश दिया है कि परोपकार करने वाला ही असली मनुष्य कहलाने योग्य होता है। मानवता की रक्षा के लिए दधीचि ने अपने शरीर की सारी अस्थियां दान कर दी थी, कर्ण ने अपनी जान की परवाह किये बिना अपना कवच दे दिया था जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। कवि इन उदाहरणों के द्वारा यह समझाना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है। प्रश्न 11 – यह कविता व्यक्ति को किस प्रकार जीवन जीने की प्रेरणा देता है? उत्तर – हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। इंसान को आपसी भाईचारे से काम करना चाहिए। मानव जीवन तभी सार्थक होता है जब वह दूसरों के काम आए। प्रश्न 12 – इस कविता का क्या सन्देश है? उत्तर – इस कविता के माध्यम से कवि हमें मानवता, सद्भावना, भाईचारा, उदारता, करुणा और एकता का सन्देश देते हैं। कवि कहना चाहते हैं की हर मनुष्य पूरे संसार में अपनेपन की अनुभूति करें। वह जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने में भी पीछे न हटे। उनके लिए करुणा का भाव जगाये| वह अभिमान, अधीरता और लालच का त्याग करें। एक दूसरे का साथ देकर देवत्व को प्राप्त करें। वह सुख का जीवन जिए और मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करें। कवि ने प्रेरणा लेने के लिए रतिदेव, दधीचि, सीबी, कर्ण और कई महानुभावों के उदाहरण दे कर उनके अतुल्य त्याग के बारे में बताया है। और हमें भी त्याग और परोपकार के लिए प्रेरित किया है। उत्तर – मनुष्यता कविता में कवि ने गर्वरहित जीवन जीने की बात कही है और इसके लिए कवि ने कई तर्क दिए हैं। कवि के अनुसार पहला तर्क अत्यधिक धनवान होने पर भी मनुष्य को कभी घमंड नहीं करना चाहिए। दूसरा तर्क यह दिया है कि मनुष्य को कभी अपने सनाथ होने पर गर्व नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस धरती पर कोई भी अनाथ और दरिद्र नहीं है। वह ईश्वर सम्पूर्ण सृष्टि के नाथ तथा संरक्षक हैं। वे अपने अपार साधनों से सबकी रक्षा और पालन करने में समर्थ हैं। प्रश्न 14- दधीचि, रंतिदेव और राजा शिबि द्वारा किए गए मानव कल्याण कार्यों का उल्लेख कीजिए? उत्तर – पौराणिक कथाएं ऐसे व्यक्तिओं के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के सुख और मानव कल्याण लिए त्याग दिया , जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। स्वयं भूख से परेशान ही होने पर भी रतिदेव ने अपने हाथ की आखरी थाली भी भूखे भिक्षुक को दान कर दी थी और महर्षि दधीचि ने तो अपने पूरे शरीर की हड्डियाँ देवताओं को वज्र बनाने के लिए दान कर दी थी , ताकि वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सकें। इसी प्रकार उशीनर देश के राजा शिबि ने भी कबूतर की जान बचाने के लिए अपना पूरा मांस चील को दान कर दिया था , ताकि उसकी भूख शांत हो सके और वह कबूतर को न मारे। प्रश्न 15 – मनुष्यता कविता के आधार पर मानव जाति के लिए सबसे बड़ा अनर्थ क्या है और क्यों? उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के अनुसार मानव जाति के लिए सबसे बड़ा अनर्थ एक भाई का दूसरे भाई को कष्ट में देखते हुए भी उसकी मदद न करना है। क्योंकि सभी मनुष्य आपस में भाई – भाई हैं। इस सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सबको जन्म देने वाला ईश्वर एक है। पुराणों में भी इस बात के प्रमाण हैं कि सृष्टि का रचनाकार वही एक है। इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य की अर्थात् अपने भाई की मदद न करे और उसकी दुःख – वेदना को दूर न करे तो वह सबसे बड़ा अनर्थ हैं। ऐसा करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंकित करता है। प्रश्न 16 – कवि द्वारा कविता में राजा रतिदेव, उशीनर राजा शिबि आदि महानुभावों के उल्लेख से क्या तात्पर्य है और इनके द्वारा किए गए कार्यों से आपको क्या प्रेरणा मिलती है? उत्तर – कवि ने हमें प्रेरणा देने के लिए रतिदेव, उशीनर राजा शिबि , कर्ण और कई महानुभावों के उदाहरण दे कर उनके अतुल्य त्याग के बारे में बताया है। इस कविता के माध्यम से कवि हमें मानवता , सद्भावना , भाईचारा , उदारता , करुणा और एकता का सन्देश दे रहे हैं। इस कविता से हमें प्रेरणा मिलती है कि हर मनुष्य को पूरे संसार में अपनेपन की अनुभूति करनी चाहिए। हमें जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने में भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हमें अभिमान , अधीरता और लालच का त्याग करना चाहिए। हमें सुख का जीवन जीना चाहिए और मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। प्रश्न 17 – मनुष्यता कविता में कवि ने अभिष्ट मार्ग किसे कहा है और क्यों? उत्तर – मनुष्यता कविता में कवि ने अभिष्ट मार्ग एक दूसरे की बाधाओं को दूर करके आगे बढ़ने को कहा है। मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए ,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये , उन्हें हटाते चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क – वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो अपने से पहले दूसरों के कष्टों की चिंता करता है। प्रश्न 18 – मनुष्यता कविता में दी गई सिख को आप आधुनिक समय में कितना महत्पूर्ण मानते हैं? उत्तर – मनुष्यता कविता हमें सच्चा मनुष्य बनने की राह दिखाती है। मनुष्य को इस कविता द्वारा सभी मनुष्यों के अपना भाई मानने , उनकी भलाई करने और एकता बनाकर रखने की सीख दी गई है। कविता के अनुसार सच्चा मनुष्य वही है जो सभी को अपना समझते हुए दूसरों की भलाई के लिए ही जीता और मरता है। वह दूसरों के साथ उदारता से रहता है और मानवीय एकता को दृढ़ करने के लिए प्रयासरत रहता है। वह खुद उन्नति के पथ पर चलकर दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। आधुनिक समय में इस कविता की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है क्योंकि आज दुनिया में स्वार्थवृत्ति, अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, छल-कपट आदि बढ़ रहा है जिससे मनुष्य – मनुष्य में दूरी बढ़ रही है। क्या तुम अपना पाठ याद कर चुके हो in English?Solution : Have you learnt your lesson?
मैं अपना पाठ याद करता हूं इसका ट्रांसलेट क्या होगा?1. मैं अपना पाठ याद करता हूँ । I learn my lesson.
शिक्षक ने लड़कों को डांटा इसका ट्रांसलेशन क्या होगा?Answer: The teacher scolded the boys.
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