हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

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1. हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है?

2. मुन्नी की नजर में खेती और मजूरी में क्या अंतर है? वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए क्यों कहती है?

3. हल्कू खेत पर कहाँ और कैसे रात बिता रहा था?

4. हल्कू ने जबरा को आगे की ठंड काटने के लिए क्या आश्वासन दिया?

5. हल्कू की आत्मा का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था। इसके पीछे क्या कारण था?

6. हल्कू और जबरा की मैत्री को लेखक ने अनोखा क्यों कहा है?

7. हल्कू कैसे जान सका कि रात अभी पहर भर बाकी है?

8. जब ठंड बर्दाशत के बाहर हो जाती है तो हल्कू उसका सामना कैसे करता

9. लेखक ने पवन को निर्दय क्यों कहा है? निर्दय पवन द्वारा पत्तियों का कुचलना से आप क्या समझते हैं?

10. आग तापते हुए हल्क कैसे क्रीड़ा करता है? अपने शब्दों में वर्णन करें।

11. हल्कू और मुन्नी दोनों के चरित्र की विशेषताएँ बताएँ। आपकों इन दोनों में अधिक महत्त्वपूर्ण कौन लगा?

12. यह कहानी भारतीय किसान के मजदूर बनने की त्रासदी की ओर संकेत करती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट करें।

13. ‘पूस की रात’ कहानी में ‘जबरा’ एक प्रमुख पात्र है। कहानी में उसका क्या महत्त्व?

14. निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें : (क) बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है।

15. ‘कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था। इस कथन के आलोक में कहानी में जबरा की भूमिका का मूल्यांकन करें।

16. ‘दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू प्रसन्न था।’ ऐसा क्यों? मुन्नी की उदासी और हल्कू की प्रसन्नता का क्या कारण है?

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

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हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

पूस की रात पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है?
उत्तर-
हल्कू कथासम्राट प्रेमचंद विरचित ‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी का सर्वप्रमुख पात्र है। वह एक अत्यंत निर्धन किसान है। उसने किसी तरह काट-कपट कर कंबल के लिए तीन रुपये जमा कर रखे हैं। किंतु, जब उसके पास महाजन सहना रुपये लेने के लिए आता है तो वह न चाहते हुए भी उस जमा पूँजी को परिस्थितिवश दे देने को तैयार हो जाता है। क्योंकि, वह . भली-भाँति जानता है कि सहना बिना रुपये लिये नहीं मानेगा, तो फिर वह व्यर्थ क्यों हुज्जत करे-कराये। यही सब सोचकर हल्कू सहना को रुपये देने के लिए राजी हो जाता है।

प्रश्न 2.
मुन्नी की नजर में खेती और मजूरी में क्या अंतर है? वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए क्यों कहती है?
उत्तर-
मुन्नी कथानायक हल्कू की पत्नी है। उसकी नजर में खेती और मजूरी में बड़ा अंतर है। वह जानती है कि खेत का मालिक अपने खेत में जो कृषि-कार्य करता है, वह खेती है, जबकि बिना खेत-बधार का आदमी जहाँ-तहाँ काम करता है, वह मजूरी है।

मुन्नी को लगता है कि जब खेती अपनी है, तभी तो लगान अथवा मालगुजारी देनी पड़ती है और उसके लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिससे उबरना मुश्किल होता है। मजूरी करने पर यह सब झंझट नहीं है। इसीलिए वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए कहती है।

प्रश्न 3.
हल्कू खेत पर कहाँ और कैसे रात बिता रहा था?
उत्तर-
पूस की रात में हल्कू अपने खेत के किनारे बनी ईख के पत्तों की एक छतरी के नीचे रात बिता रहा था। वह बाँस के खटोले पर था और उसके पास कड़ाके की ठंड से बचने के लिए पुराने गाढ़े की चादर के सिवाय और कुछ नहीं था। उसकी खाट के नीचे उसका कुत्ता जबरा था। दोनों ठंड से थर्र-थर काँप रहे थे।

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प्रश्न 4.
हल्कू ने जबरा को आगे की ठंड काटने के लिए क्या आश्वासन दिया?
उत्तर-
हल्कू और जबरा दोनों पूस की रात में खेत पर ठंड से काँप रहे थे; उन्हें तनिक भी नींद नहीं आ रही थी। तब अंत में हल्कू पूस की ठंड काटने के लिए जबरा को यह आश्वासन देता है कि आज भर किसी तरह जाड़ा बर्दाश्त कर लो। कल से मैं यहाँ पुआल बिछा दूंगा। तुम उसी में घुसकर बैठना, तब तुम्हे इतना जाड़ा न लगेगा।

प्रश्न 5.
हल्कू की आत्मा का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था। इसके पीछे क्या कारण था?
उत्तर-
हल्कू और जबरा-दोनों ही भीषण जाड़े का सामना कर रहे थे। किन्तु, जब हल्कू से न रहा गया तो उसने जबरा को अपनी गोद में सुला लिया। जबरा उसकी गोद में ऐसा निश्चिन्त लेटा था मानो उसे चरम सुख मिल रहा हो। उसके इस आत्मीय भाव को समझकर ही हल्कू की आत्मा का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था अर्थात् वह सारे संकटों को भूलकर असीम आनंद की अनुभूति कर रहा था।

प्रश्न 6.
हल्कू और जबरा की मैत्री को लेखक ने अनोखा क्यों कहा है?
उत्तर-
मैत्री की बात बहुधा एक समान दो प्रणियों के बीच कही-सुनी जाती है। परंतु, ‘पूस की रात’ कहानी में हल्कू (मनुष्य) और जबरा (कुत्ता) के बीच मैत्री-भाव प्रदर्शित है। लेकिन, उन दोनों के बीच मित्रता का जो संबंध है, वह सच्चे मित्र के समान है। उनमें परस्पर एक-दूसरे के भावों, विचारों और सुख-दुःख को समझने की संवेदना है। अतः दोनों की मैत्री को अनोखी कहा गया है।

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प्रश्न 7.
हल्कू कैसे जान सका कि रात अभी पहर भर बाकी है?
उत्तर-
हल्कू से पूस की कड़ाके की ठंड भरी रात जब काटे नहीं कट नही थी, तब उसने आकाश की तरफ झाँका। वह देखता है कि सप्तर्षि (सात तारों का समूह) अभी आकाश में आधे भी नहीं चढ़े हैं। अतः वह समझ जाता है कि रात अभी पहर भर बाकी है।

प्रश्न 8.
जब ठंड बर्दाशत के बाहर हो जाती है तो हल्कू उसका सामना कैसे करता
उत्तर-
लाख कोशिशें करने के बावजूद जब हल्कू ठंड से बचकर सो नहीं पाता है, तो वह वहाँ से कोई एक गोले के टप्पे पर लगे आम के बगीचे में चला जाता है। उसने अरहर के पौधों की झाडू बनाई और उसी झाडू से नीचे बिखरी ढेर सारी पत्तियों को बटोरकर जमा कर लेता है। जब बहुत सारी सूखी पत्तियाँ जमा हो जाती हैं तो वह उसमें आग लगाता है और उसी अलाव की आँच में तपकर अपना तन-बदन गर्म करता है। इय प्रकार वह ठंड का सामना करता है।

प्रश्न 9.
लेखक ने पवन को निर्दय क्यों कहा है? निर्दय पवन द्वारा पत्तियों का कुचलना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
इस पाठ में एक जगह लेखक ने पवन को निर्दय कहा है। निर्दय का तात्पर्य होता है, वह व्यक्ति जिसमें दया न हो। पूस की रात में एक ऐसे ही असहनीय जाड़ा पड़ रहा था, उसमें भी हवाओं का बहना तो एकदम कहर ढा रहा था। अभिप्राय यह कि हवा चलने पर ठंड और भी बढ़ जा रही थी। पवन द्वारा पत्तियों को कुचले जाने से मतलब यह है कि जैसे कोई समर्थ आदमी कमजोर को कुछ नहीं समझता, वेसे ही निष्ठुर पवन बेजान पत्तियों पर से गुजर रहा था।

प्रश्न 10.
आग तापते हुए हल्क कैसे क्रीड़ा करता है? अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर-
जब अलाव की आग के कारण सर्द पड़े हल्कू को ठंड से राहत मिलती है और उसके शरीर में थोड़ी गर्मी आती है तो उसकी विनोद-वृत्ति जागृत हो जाती हो जाती है। वह छलाँग लगाकर अलाव के इस पार से उस पार फाँद जाता है और ऐसा ही करने को जबरा से भी कहता है।

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प्रश्न 11.
हल्कू और मुन्नी दोनों के चरित्र की विशेषताएँ बताएँ। आपकों इन दोनों में अधिक महत्त्वपूर्ण कौन लगा?
उत्तर-
‘पूस की रात’ कहानी में दो ही प्रमुख पात्र हैं—हल्कू और उसका पत्नी मुन्नी। दोनों के चरित्र में यद्यपि बहुत कुछ समानताएँ हैं, तथापि उनमें भिन्नताएँ भी हैं। हल्कू एक औसत भारतीय किसान की भाँति हर हाल में परिस्थितियों से समझौता करने के लिए तैयार रहता है तथा अपना दर्द भरी जिंदगी को भाग्य की विडम्बना मानता है। किन्तु; मुन्नी के चरित्र में ऐसी बात नहीं है। उसके स्वभाव में अन्याय के प्रति विद्रोह का भाव है। हल्कू के लिए खेती में यदि मान-सम्मान है, तो मुन्नी के लिए वैसा मान-सम्मान कोई मायने नहीं रखता, जिसमें तन ढंकने को वस्त्र और पेट भरने के लिए रोटी भी नसीब न हो।

हल्कू की समझौतापरस्ती एवं भाग्यवादी विचारों की बाजाय मुन्नी का विद्रोही स्वभाव एवं आलोचानात्मक दृष्टिकोण हमें अधिक महत्त्वपूर्ण लगता है।

प्रश्न 12.
यह कहानी भारतीय किसान के मजदूर बनने की त्रासदी की ओर संकेत करती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर-
‘पूस की रात’ कहानी की कथावस्तु से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें एक भारतीय किसान के मजदूर बनने की त्रासदी का मार्मिक वर्णन है। हल्कू, जो एक अत्यंत गरीब किसान है, खेती में जी-तोड़ परिश्रम करता है। फिर भी उसे भरपेट भोजन तक नहीं मिल पाता। जिस किसी तरह वह जाड़े की ठंड से बचने के लिए कंबल खरीदने हेतु कुल तीन रुपये जुगाकर रखे रहता है। किन्तु, वह बदनसीब किसान एक कंबल भी नहीं खरीद पाता, क्योंकि वह रुपये महाजन. सहना को दे देना पड़ता है। इस प्रकार मानसिक अवसाद इतना बढ़ जाता है कि उसे खेती अर्थात् किसानी की अपेक्षा मजदूरी ही अच्छी लगने लगती है। कहानी के अंत में उसके कथन कि “रात की ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा” से यह बात एकदम स्पष्ट हो जाती है।

प्रश्न 13.
‘पूस की रात’ कहानी में ‘जबरा’ एक प्रमुख पात्र है। कहानी में उसका क्या महत्त्व?
उत्तर-
‘पूस की रात’ कथासम्राट प्रेमचंद की एक बहुचर्चित, बहुप्रशंसित कहानी है। इसमें हल्कू और मुन्नी के अतिरिक्त एक प्रमुख मानवेतर पात्र है-कुत्ता जबरा। वह हल्कू का अत्यंत आत्मीय है। कहना चाहिए कि वह उसके परिवार का एक अभिन्न सदस्य है। इस कहानी में वह बड़ा महत्त्व रखता है। रात में खेत पर हल्कू के साथ एकमात्र उसका प्यारा, संगी जबरा ही होता है। उसके माध्यम से हल्कू के चारित्रिक वैशिष्ट्यों, मनोगत भावों को उभारने में लेखक को बड़ी मदद मिली है।

यदि जबरा के चरित्र का कहानी में सन्निवेश न होता तो शायद हल्कू के चरित्र के कुछ पहलू अनछुए और अनुद्घाटित रह जाते, वे उस सहजता से व्यक्त न हो पाते। पुनः उन दोनों पात्रों के मध्य जो संवाद-योजना है, वह अत्यंत स्वाभाविक, रोचक, मर्मस्पर्शी एवं कथावस्तु के सर्वथा अनुकूल है। इससे कृषक-प्रकृति पर अच्छा प्रकाश पड़ा है। अत: कहा जा सकता है कि जबरा जैसे, मानवेतर पात्र का नियोजन ‘पूस की रात’ कहानी के कथ्य को पूर्ण बनाने में सहायक है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

प्रश्न 14.
निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें : (क) बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है।
उत्तर-
प्रसंग-प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1 प्रथम पाठ ‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी से अवतरित है। इसके लेखक हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद हैं। कहानी में यह कथन हल्कू की पत्नी मुन्नी का है।

व्याख्या-
मुन्नी के इस कथन के माध्यम से भारतीय किसानों की दयनीय दशा का पता चलता है। हल्कू रात-दिन एक करके किसी तरह जाड़े से बचाव हेतु एक कंबल खरीदने के लिए तीन रुपये बचाकर रखा है। किन्तु जब वह द्वार पर सहना को देखता है तो समझ जाता है कि अब इससे पिंड छुड़ाना मुश्किल है। अत: वह उसे रुपये देकर छुटकारा पाने के विचार से मुन्नी से वे रुपये माँगता है, जो उसकी कुल जमा पूँजी है।

मुन्नी का हृदय उपर्युक्त प्रस्ताव पर टूट-टूटकर विदीर्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से उसके जीवन की नग्न वास्तविकता प्रकट होती है कि वह चाहे कुछ भी करे, कितनी ही कतर-ब्योंत क्यों न कर ले, लेकिन महाजनों के कर्ज से मुक्त होना उसके लिए नामुमकिन है। लगता है कि जैसे उसका जन्म ही बाकी चुकाते रहने के लिए हुआ हो। यदि एक बार कर्ज ले लो फिर उससे उबार नहीं। इस प्रकार सारा जीवन लगान भरने एवं कर्ज चुकाने में ही चुक जाता है, उनके लिए कुछ नहीं बचता।

विशेष-

  • विवेच्य पंक्ति के द्वारा भारतीय किसान की गरीबी से भरी जिन्दगी की करुण कहानी स्पष्ट होती है।
  • मुन्नी के इस कथन में उसके हृदय की सारी पीड़ा व्यक्त है।
  • वाक्य सरल होते हुए भी अत्यंत मार्मिक, व्यंग्यपूर्ण एवं अर्थगर्मित है।
  • उक्ति कहानी की भावी परिणति का संकेत करती है।

(ख) हल्कू ने रुपये लिये और इस तरह बाहर चला मानो हृदय निकालकर देने जा रहा हो।
उत्तर-
प्रसंग-प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक “दिगंत, भाग-1′ के प्रथम पाठ’ पूस की रात’ शीर्षक कहानी से अवतरित है। इस कहानी के लेखक प्रेमचंद हैं।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

व्याख्या-
हल्कू के द्वारा पर महाजन सहना अपनी बकाया राशि वसूलने आया हुआ है। गरीब हल्कू के पास खाने-पीने को भी कुछ नहीं है। उसके घर में जमा-पुंजी के नाम पर सिर्फ तीन रुपये हैं, जिसे उसने बड़े यत्न से संभालकर रखा है। उसके साथ उसकी उम्मीदें बंधी हैं। किन्तु, निष्ठुर सहना को हल्कू की इन मजबूरियों से भला क्या लेना-देना। वह तो रुपये लेकर ही वहाँ से हटेगा। अतः इन परिस्थितियों से वाकिफ बेचारा हल्कू अपना कुल जमा धन भी उसे देने को तैयार होता है। क्योंकि, वह जानता है कि इसके अतिरिक्त सहना से बचने का और कोई उपाय नहीं है। अत: वह मुन्नी से तीनों रुपये लेकर सहना को देने के लिए घर से बाहर चलता है। उस समय सचमुच ऐसा लगता है कि हल्कू सहना को रुपये नहीं, बल्कि कलेजा निकालकर देने जा रहा है।

विशेष-

  • प्रस्तुत वाक्य में गरीब भारतीय किसान की दयनीय दशा व्यजित है।
  • पंक्ति में चित्रात्मकता है, गरीब की दीन-हीन दशा साकार हो उठी है।
  • गरीब किसानों के प्रति पाठक की सहानुभूति जगाने में पंक्ति सफल है।

(ग) अंधकार के उस अनंत सागर में यह प्रकाश एक नौका समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था।
उत्तर-
प्रसंग-प्रस्तुत वाक्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक स्वनामधन्य कहानीकार प्रेमचंद हैं। कथानायक हल्कू भीषण सर्दी से बचने के लिए खेत छोड़ आम के बगीचे में जाता है। वहाँ वह रात्रि के घने अंधकार में ढेर सारी सूखी पत्तियों को बटोर लेता है और उसमें आग जलाता है। यह वाक्य वहीं का है।

व्याख्या-
पूस की रात में चारों तरफ घुप्प अँधेरा छाया है। कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ठंड से पीड़ित और परेशान हल्कू अलाव जलाकर ताप रहा है। अलाव से निकलती आँच उस समय हल्कू के लिए अंधकार के अथाह सागर में एकमात्र सहारा नाव के समान प्रतीत हो रही है। चूँकि वह उसी के सहारे अंधकार पर विजय पा रहा है, ठंड से अपना बचाव कर रहा है।

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विशेष-

  • प्रस्तुत पंक्ति से हल्कू की मानसिक अवस्था का पता चलता है।
  • कथन चमत्कारपूर्ण है।
  • हल्कू की निस्सहायता के बीच आशा की किरण दिखलाई गई है।
  • पंक्ति के द्वारा पूस की रात में बगीचे में अलाव तापते किसान का चित्र साकार हुआ है।

(घ) तकदीर का खूबी है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें।
उत्तर-
प्रसंग- यह उक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत,, भाग-1 में संकलित ‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी से ली गयी है। इसके कहानीकार प्रेमचंद हैं। कंबल के लिए जुगाकर रखे गये तीन रुपये सहना (महाजन) को चुकाने के बाद पूस की ठंडी रात में केवल फटी-पुरानी एक चादर के सहारे हल्कू को खेत की रखवाली करनी है। खेत पर बैठे-बैठे हल्कू के मन में कई विचार उठते हैं।

व्याख्या-
यह छोटी-सी उक्ति किसान के जीवन की विडम्बना को पूरी तरह व्यक्त करती है। किसान और मजदूर रात-दिन परिश्रम करते हैं। उनकी मेहनत से समाज की जरूरतें पूरी होती हैं। लेकिन, अपनी मेहनत का वह लाभ नहीं उठा पाता। जो कुछ भी हासिल करता है, वह कर्ज चुकाने में निकल जाता है। महाजन गरीबों की मेहनत की कमाई लूटते रहते हैं। उनके रुपये का ब्याज बढ़ता रहता है और किसान कभी कर्ज नहीं चुका पाता। इस प्रकार वह गरीबी और अभावों में ही फंसा रहता है, जबकि उनकी मेहनत की कमाई को लूटनेवाले, जो किसी तरह की मेहनत भी नहीं करते, मौज-मस्ती से जिन्दगी गुजारते हैं।

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विशेष-

  • यह छोटी-सी उक्ति हमारे समाज के मुख्य अंतर्विरोध को बहुत ही तल्खी से व्यक्त कर देती है।
  • प्रेमचंद ने इतनी महत्त्वपूर्ण बात को बहुत ही सहज रूप से प्रस्तुत किया है। यह उनकी लेखकीय क्षमता का प्रमाण है।

प्रश्न 15.
‘कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था। इस कथन के आलोक में कहानी में जबरा की भूमिका का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
‘पूसी की रात’ शीर्षक कहानी में हल्कू और मुन्नी के अतिरिक्त एक मानवेतर पात्र है-जबरा। कहानी में उसकी भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण है। हल्कू के साथ खेत पर रात में वही रहता है। दोनों में मैत्रीपूर्ण संबंध इस कहानी में दिग्दर्शित है। दोनों एक-दूसरे के मनोभावों को भली-भाँति समझते हैं। यही कारण है कि यदि एक ओर हल्कू उसे अपनी गोद में सुलाता है तो दूसरी ओर प्रत्युपकार की भावना से जबरा भी अपने स्वामी की हित-रक्षा हेतु सदैव सजग और तत्पर रहता है। उस रात जब जबरा को किसी जानवर की आहट सुनाई पड़ती है तो वह ठंड की परवाह न कर छतरी के बाहर आकर दूंकने लगा।

जबरा के जीते-जी हल्कू का कुछ बिगड़े, यह संभव नहीं। इस संदर्भ में कहानीकार ने ठीक ही कहा है कि “कर्त्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था।” यही बात कहानी के अंतिम भाग में भी दिखायी देती है। जब हल्कू ठंड के कारण अलाव को छोड़ खेत पर नहीं जा पाता, जबकि जबरा खेत पर पहुंचकर नीलगायों को भगाने के लिए जी-जान लगा देता है। इस प्रकार हम देखते है कि जबरा अपनी स्वामिभक्ति एवं कर्त्तव्यपरायणता के कारण कहानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 16.
‘दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू प्रसन्न था।’ ऐसा क्यों? मुन्नी की उदासी और हल्कू की प्रसन्नता का क्या कारण है?
उत्तर-
‘पूस की रात’ कहानी में हम देखते हैं कि इधर हल्कू आम के बगीचे में आग तापता रह जाता है और उधर उसके हरे-भरे खेत नीलगयों द्वारा रौंद दिये गये। जबरा बेचारा फसलों को नहीं बचा सका। जब सुबह-सुबह मुन्नी आकर हल्कू को जगाती है तो दोनों खेत पर जाते हैं। सारी फसल बर्बाद हो चुकी है।

फसलों की बर्बादी देख मुन्नी और हल्कू के भाव अलग-अलग है। मुन्नी वहा यह सोचकर दुखी और उदास है कि अब तो मालगुजारी भरने के लिए मजूरी ही करनी पड़ेगी, वहीं हल्कू इस कारण प्रसन्नता व्यक्त करता है कि चलो फसल नष्ट हुई तो हुई, मजूरी करनी पड़ेगी तो करेंगे, पर अब कड़ाके की ऐसी रात में यहाँ सोना तो न पड़ेगा।

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पूस की रात भाषा की बात

प्रश्न 1.
वाक्य-प्रयोग द्वारा इन मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करें
उत्तर-

  • गला छूटना (संकट से छुटकारा पाना)- चाहे जैसे भी हो, ले-देकर इस बदमाश से अपना गला छुड़ा लो।
  • बला टलना (मुश्किल टलना)-उसका काम कर मैंने बहुत बड़ी बला टाली।
  • हंडा हो जाना (मृत्यु को प्राप्त करना)-ऐसी ठंड में मत नहाओं, नहीं तो ठंडे हो जाओगे।
  • आँख तरेरना (गुस्सा दिखाना)-चुपचाप चले जाओ, आँखें तरेरने से यहाँ कोई डरनेवाला नहीं।
  • बाज आना (तंग होना, मान लेना)-मैं तुमसे बाज आ गया।
  • भौहें ढीली पड़ना (नरम पड़ना)-पहले तो वह खूब गर्म हुआ पर हकीकत जानते ही उसकी भौंहे. ढीली पड़ गयीं।
  • आहट मिलना (आभास होना)-खेत में जानवरों की आहट मिलते ही जबरा भौंकने लगा।

प्रश्न 2.
‘गला छूटना’, ‘आँख ततेरना’ की तरह शरीर के अनय अंगों की सहायता से दस मुहावरों को अर्थसहित लिखें एवं उनका वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-

  • कान देना (ध्यान देना)-अच्छे बच्चे बड़ों की बातों पर कान देते हैं।
  • नाक का बाल होना (अत्यंत प्यारा होना)-मेधावी छात्र शिक्षक की नाक के बाल होते हैं।
  • कमर टूटना (बेसहारा होना)-अपने जवान इकलौते बेटे की मृत्यु से बूढ़े बाप की कमर टूट गई।
  • आँखें चार होना (प्यार होना)-जनकजी के बाग में राम और सीता की आँखें चार . हुई थीं।
  • सिर खाना (परेशान करना)-तुम एक घंटे से मेरा सिर खा रहे हो, पर मैं अब तक तुम्हारा अभिप्राय न समझ सका।
  • नाक में दम करना (परेशान कर देना)-रोज-रोज की वर्षा ने सबकी नाक में दम कर दिया है।
  • दाँत खट्टे करना (पराजित करना)-कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने घुसपैठियों के दाँत खट्टे कर दिये।
  • आँखें दिखाना (डराना)-तुम मुझे क्यों आँखे दिखा रहे हो? मैं डरनेवाला नहीं हूँ। (ix) कमर कसना (तैयार होना)-अब हमें परीक्षा के लिए कमर कस लेनी चाहिए।
  • सिर ओखली में देना (मुसीबत मोल लेना)-उस बदमाश को चुनौती देकर तुमने अपना सिर ओखली में दे दिया है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

प्रश्न 3.
‘उठ बैठ’ संयुक्त क्रिया का उदाहरण है। ऐसे पांच अन्य उदाहरण दें।
उत्तर-
संयुक्त क्रिया के पाँच उदाहरण-दौड़ पड़ा, चल दिया, पहुँच गया, मार डाला, गिर गया। :

प्रश्न 4.
निम्नलिखित विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाएँ : ढीली, दीर्घ, विशेष, गर्म, प्रसन्न
उत्तर-
ढीली-ढिलाई, दीर्घ-दीर्घती, विशेष-विशेषता, गर्म-गर्मी, प्रसन्नन–प्रसन्नता।

प्रश्न 5.
‘पेट में ऐसा दर्द हुआ कि मैं ही जानता हूँ’-यहाँ ‘मै ही जानता हूँ’ संज्ञा उपवाक्य है। ‘मै नहीं जानता कि वह कहाँ है’ में ‘वह कहाँ है’ संज्ञा उपवाक्य है। इसी तरह निम्नलिखित वाक्यों से संज्ञा उपवाक्य छाँटें

(क) चिलम पीकर हल्कू लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे जो कुछ भी हो अबकी सो जाऊँगा।
उत्तर-
चाहे जो कुछ भी हो अबकी सो जाऊँगा।

(ख) हल्कू को ऐसा मालूम हुआ जानवरों का झुंड उसके खेत में आया है।
उत्तर-
जानवरों का एक झुंड उसके खेत में आया है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में मिश्र और संयुक्त वाक्य चुनकर उन्हें सरल वाक्य में बदलें:

(क) हल्कू ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियाँ बटोरने लगा। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर-
हल्कू आग को जमीन पर रखकर पत्तियाँ बटोरने लगा। (सरल वाक्य)

(ख) राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी। (मिश्र वाक्य)
उत्तर-
राख के नीच की बाकी बची आग हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी। (सरल वाक्य)

(ग) पेट में ऐसा दरद हुआ कि मैं ही जानता हूँ। (मिश्र वाक्य)
उत्तर-
पेट में हुआ दरद को तो मै ही जानता हूँ। (सरल वाक्य)

(घ) यह कहता हुआ वह उछला और अलाव के ऊपर से साफ निकल गया। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर-
यह कहता हुआ वह उछलकर के ऊपर से साफ निकल गया। (सरल वाक्य)

(ङ) मै मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। (मिश्र वाक्य)
उत्तर-
मै मरने से बचा, तुझे खेत की पड़ी है। (सरल वाक्य)

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

प्रश्न 7.
हल्कू और लेखक की भाषा में फर्क है। आप बताएँ कि यह फर्क क्यों है? इसके कुछ उदाहरण पाठ से चुनकर लिखें।
उत्तर-
‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी में यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है कि हल्कू और लेखक (प्रेमचंद) की भाषा में फर्क है। यह फर्क लेखक द्वारा कहानी की भाषा को पात्रोचित बनाने के प्रयास के कारण है। बहुधा लेखकगण कहानियों, उपन्यासों अथवा नाटकों में ऐसा प्रयास करते हैं। वे पात्रों के स्तर को ध्यान में रखकर उनके उपयुक्त भाषा-प्रयोग करते हैं। प्रस्तुत कहानी के साथ भी यही बात है। इसके कुछेक उदाहरण इस प्रकार हैं . हल्कू-अब तो नहीं रहा जाता जबरू ! चलों, बगीचे में पत्तियाँ बटोरकर तापें। टाँठे हो जाएंगे तो फिर सोएँगे।

लेखक-बगीचे में घुप अँधेरा हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था।

हल्कू-पिएगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, हाँ, जरा मन बहल जाता है। लेखक-जाड़ा किसी पिशाच की भाँति उसी छाती को दबाए हुए था।

प्रश्न 8.
वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय कीजिए :
उत्तर-

  • ढेर (पुलिंग) – वहाँ पत्तियों का ढेर लग गया।
  • अलाव (पुलिंग) – अलाव जल उठा।
  • लौ (स्त्रीलिंग) – लौ निकल रही है।
  • दोहर (स्रीलिंग) – इसी फटी-पुरानी दोहर से जाड़ा नहीं जाता।
  • जी (पुलिंग) – खाते-खाते मेरा जी भर गया।
  • गर्व (पुलिंग) – हमें अपने देश पर गर्व होना चाहिए।
  • ठंड (स्त्रीलिंग) – उसे ठंड लग रही है।
  • पूँछ (स्रीलिंग) – उसकी पूँछ लम्बी है।
  • चादर (स्त्रीलिंग) – उसने अपनी चादर फैला दी।
  • राख (स्त्रीलिंग) – वहाँ अब सिर्फ राख बची है।
  • शीत (पुलिंग) – जाड़े में बहुत शीत पड़ता है।
  • झुंड (पुलिंग) – हथियों का झुंड निकल गया।
  • सत्यानाश (पुलिंग) – तूने मेरा सत्यानाश कर दिया।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

पूस की रात लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. हल्क का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर-
हल्कू छोटा किसान है। खेती से काम नहीं चलने पर मजदूरी भी करता है। फिर भी कर्ज से लदा है। उसका शरीर भारी-भरकम और बलिष्ठ है। फिर भी गरीबी के कारण वह अपने को दीन अनुभव करता है। वह पत्नी की तीखी बातों पर तनने के बदले खुशामद करता है। फसल चर जाने कीह स्थिति में उसके नाराज होने और भला बुरा कहने से बचने के लिए झूठ बोलता है। वह अपनी दशा से खिन्न है और वह भी अनुभव करता है कि जिस खेती से पेट न भरे उसे निभाये चलना बेकार है। इसी की प्रतिक्रिया में वह फसल की रक्षा करने में ढीला पड़ जाता है। इसमें ठंड से ज्यादा प्रबल कारण खेती के प्रति क्षोभ है जो दीनता, कर्ज और अभाव की प्रतिक्रियास्वरूप उत्पन्न हुआ है।

प्रश्न 2.
‘पूस की रात’ के केन्द्रीय भाव का प्रकाश डालिए।।
उत्तर-
कृषक जीवन की त्रासदी का वर्णन करना पूस की रात कहानी की समस्या है। निम्न वर्गीय किसान की दुर्दशा का वर्णन इस कहानी का केन्द्रीय तत्त्व है। खेती इतनी कम है कि हल्कू को मजदूरी करनी पड़ती है। इतना ही नहीं मजदूरी में से काट-कपट कर जो पैसा कम्बल के लिए जमा करना है वह भी कर्ज सधाने में हाथ से निकल जाता है। किसान इतने दुर्दशाग्रस्त हैं कि उनके पास जाड़े से निबटने के लिए पर्याप्त कपड़े तक नहीं हैं। ऐसी स्थिति से प्रेमचन्द क्षुब्ध है। उनका क्षोभ हल्कू और मुन्नी दोनों के माध्यम से व्यक्त होता है। वे खेती से विद्रोह करने हेतु प्रेरित करते हैं। हल्कू द्वारा अपनी फसल को बर्बाद होने से न रोकना इसी विद्रोह और क्षोभ को परिणाम है।

प्रश्न 3.
हल्कू ने अपनी स्त्री से रुपये क्यों माँगे?
उत्तर-
हल्कू एक गरीब किसान है। बड़ी कठिनाई से उसकी स्त्री ने तीन रुपये बचाकर रखे थे। उसने सोचा था कि इन रुपयों से एक कम्बल खरीदकर माघ-पूस की ठण्डी रात के कष्ट से बचेंगे लेकिन हल्कू ने वे रुपये अपनी स्त्री से इसलिए माँग लिए क्योंकि उसे उन रुपयों को सहना को देकर उसके कर्ज से मुक्ति पानी थी। रुपये नहीं देने पर सहना का दुर्व्यवहार सामने जो था।

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प्रश्न 4.
हल्कू खेत उजड़ने से क्यों प्रसन्न है?
उत्तर-
कर्ज चुकाने में कम्बल का पैसा खर्च हो जाने से हल्कू व्यथित है। वह अब कम्बल नहीं खरीद सकेगा। ऐसी स्थिति में मात्र एक दोहर चादर के सहारे पूस की रात में कड़ाके की ठंढ में रखवाली असंभव है। एक ही रात को दुर्गति इसका प्रभाव है। अतः हल्कू प्रसन्न है कि अब खेत की रखवाली से उसका पिंड छूट गया है। उसे अब खेत की रखवाली नहीं करनी पड़ेगी।

पूस की रात अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुन्नी पैसे क्यों नहीं देना चाहती है?
उत्तर-
हल्कू ने मजदूरी में से कटौती करके कम्बल खरीदने के लिए पैसे बचाये हैं। वे तीन रुपये सहना को दे देने पर कम्बल नहीं खरीदा जा सकेगा। तब न जाड़ा कटेगा और न फसल की रखवाली होगी। कम्बल खरीदने के लिए कोई विकल्प नहीं है। इसलिए मुन्नी पैसे नहीं देना चाहती है।

प्रश्न 2.
खेत उजड़ने पर मुन्नी क्यों दुःखी होती है?।
उत्तर-
खेत उजड़ जाने पर खाने के लिए अन्न नहीं होगा। दूसरे, खेत की मालगुजारी भरने के लिए मजदूरी से होने वाली आय में से कटौती करनी पड़ेगी।

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प्रश्न 3.
पूस की रात किस प्रकार की कहानी है?
उत्तर-
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी पूस की रात यथार्थवादी कहानी है।

प्रश्न 4.
पूस की रात कहानी का नायक फसल के चर जाने के बाद क्यों खुश होता है?
उत्तर-
पूस की रात नामक कहानी का नायक फसल के चर जाने के बाद इसलिए खुश होता है क्योंकि उसे खेत की रखवाली करने से छुट्टी मिल गयी है। उसे अब खेत की रखवाली नहीं करनी पड़ेगी।

प्रश्न 5.
पूस की रात कहानी में किन बातों का चित्रण हुआ है?
उत्तर-
पूस की रात नामक कहानी में इन बातों का चित्रण हुआ है-
(क) कृषक श्रमिक का अभावग्रस्त जीवन
(ख) कृषक श्रमिक का स्वाभामान
(ग) सामाजिक विषमता इत्यादि

प्रश्न 6.
क्या इस कहानी का नाम पूस की रात सार्थक है?
उत्तर-
हाँ, क्योंकि इस कहानी का आधार घोर ठंढक की स्थिति है जो हमें पूस माह में प्राप्त होती है। साथ ही पूरी घटना रात में घटित होती है। कहानी का विषय पूस महीने में रात्रि के समय फसल की रखवाली से सम्बन्धित है। यह कार्य ठंड की अतिशयता के कारण नहीं सम्पन्न होता है।

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प्रश्न 7.
पूस की रात नामक कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
पूस की रात नामक कहानी के लेखक प्रेमचंद है।

पूस की रात वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें।

प्रश्न 1.
‘पूस की रात’ शीर्षक पाठ में किसका वर्णन किया गया है?
(क) जाड़े की ऋतु का
(ख) एक गरीब किसान की व्यथा का
(ग) बड़े लोगों के शोषण का
(घ) ग्रामीण समस्याओं का
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की कहानियाँ किस भावना से प्रेरित हैं?
(क) नवक्रांति की भावना से
(ख) धार्मिक भावना से
(ग) समाज-सुधार की भावना से
(घ) नारी-कल्याण की भावना से
उत्तर-
(ग)

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प्रश्न 3.
हल्कू ने तीन रुपए किसके लिए बचाए थे?
(क) खेतों के बीज के लिए
(ख) बच्चे की दवा के लिए
(ग) तीर्थयात्रा के व्यय के लिए
(घ) कंबल के लिए
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 4.
खेतों में फसल की रक्षा में हल्कू का संगी कौन था?
(क) उसका बड़ा लड़का
(ख) उसका कुत्ता जबरा
(ग) उसकी पत्नी मुन्नी
(घ) उसका एक पड़ोसी
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 5.
हल्कू ने खेत की फसल को रात में किसने बर्बाद किया?
(क) जंगली जानवरों ने
(ख) जमींदार के गुंडों ने
(ग) हल्कू के दुश्मनों ने
(घ) नीलगायों ने
उत्तर-
(घ)

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प्रश्न 6.
सहना हल्कू के पास क्यों आया था?
(क) घुड़कियाँ जमाने
(ख) उसे पकड़कर ले जाने
(ग) उससे रुपए माँगने
(घ) उसे नेक सलाह देने
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 7.
हल्कू ने रुपये लिए और इस तरह बाहर चला मानो
(क) अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो
(ख) अपने घर की लक्ष्मी को विदा कर रहा हो
(ग) गुलामी की यातना भगत रहा हो
(घ) बहादुरी से जवाब देने जा रहा हो
उत्तर-
(क)

प्रश्न 8.
हल्क ने अपनी पत्नी से किस स्वर में रुपये की मांग की?
(क) खुशामद में स्वर में
(ख) क्रोध के स्वर में
(ग) धमकी के स्वर में
(घ) प्रतिशोध के स्वर में
उत्तर-
(क)

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प्रश्न 9.
हल्कू किससे आहत था?
(क) अपनी दीनता से
(ख) पत्नी के व्यवहार से
(ग) जबरे कुत्ते की अनोखी मैत्री से।
(घ) खेत-मालिकों के व्यवहार से।
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 10.
प्रेमचंद किस रूप में विशेष प्रसिद्ध हैं?
(क) विचारक के रूप में
(ख) गाँधीवादी चिंतक के रूप में
(ग) समाजवादी प्रवक्ता के रूप में
(घ) उपन्यासकार के रूप में
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 11.
हल्कू ने पूस की रात की ठंढी का सामना किससे किया?
(क) पत्तियों की आग से
(ख) मोटे कपड़ों से
(ग) पुआल की गर्मी से
(घ) मचान की ओट से
उत्तर-
(क)

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
1. हल्कू एक ……………… खरीदने के लिए तीन रुपये बचाकर रखना चाहता था।
2. हल्कू की फसल को ………… का झुंड बार्बाद करने आया था।
3. प्रेमचंद की आदर्शोन्मुखी …………… वादी कथाकार कहा जाता है।
4. पूस की रात एक ………………. वादी कहानी है।
5. हल्कू ने अपनी पत्नी से …………….. दर्द का बहाना बनाया।
उत्तर-
1. कंबल
2. नीलगायों
3. यथार्थ
4. यथार्थ
5. पेट।

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पूस की रात लेखक परिचय – प्रेमचंद (1880-1936)

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई. को वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उनको हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचंदजी ने कुछ पत्रों का सम्पादन भी किया। उन्होंने सरस्वती प्रेम के नाम से अपनी प्रकाश संस्था भी स्थापित की।

प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रथम कथाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। वे जीवन भर आर्थिक अभाव की विषम चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक वैषम्य को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चिंत्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है।

जीवन में निरन्तर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंदजी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था, पर प्रेमचंदजी एक साहसी सैनिक के समान अपने पथ पर बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बम्बई (मुम्बई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके, क्योंकि वहाँ उन्हें फिल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतन्त्र लेखन ही रुचिकर था। निरन्तर साहित्य साधना करते हुए 2 अक्टूबर, 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक विशेषताएं-प्रेमचंदजी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह जन-जीवन का मुँह बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विशद् चित्रण किया है। ग्राम्य-जीवन के चित्रण में तो प्रेमचंदजी ने कमाल ही कर दिया है। उनकी कपन, गोदान, पूस की रात आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध मूक विद्रोह की आवाज उठाती है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

उपन्यास-वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, काया कल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगल सूत्र (अपूर्ण)।

कहानी संग्रह-प्रेमचंदजी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।

  • नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
  • निबंध संग्रह-कुछ विचार।

भाषा-प्रेमचंदजी का सम्पूर्ण साहित्य समाज-सुधार एवं राष्ट्रीय भावना से प्रेरित है। उनकी भाषा सरल एवं मुहावरेदार है। उर्दू शब्दों की स्वच्छता तथा सस्कृत की भावमयी स्निग्ध पदावली ने भाषा को आकर्षक, सरल एवं प्रभावशाली बना दिया है। यही कारण है कि आम जनता और रुचि-सम्पन्न साहित्यकारों-दोनों ने उनके साहित्य का स्वागत किया।

पूस की रात पाठ का सारांश

सहना हल्कू से अपने उधार के पैसे माँगने आया है। हल्कू अपनी पत्नी से रुपये देने के लिए कहता है। उनकी पत्नी यह कहकर मना करती है, घर में केवल तीन रुपये हैं, उनका कम्बल खरीदना है। ठंड की रात में बिना कंबल के खेतों की रखवाली कैसे होगी। वह कहने लगा उसकों पैसा देकर पीछा छुड़ाओं, कंबल के लिए कोई और इंतजार कर लेंगे। मुन्नी (उसकी पत्नी) कहती है कि कहाँ से इंतजाम करोगे, क्या कोई तुम्हे दान देकर जाएगा, हल्कू उसके पैसे देकर अपना पिंड छुड़ाना चाहता है। मुन्नी ने पैसे लाकर हल्कू को दे दिया और कहा कि छोड़ दो ये खेती,

मजदूरी करके अपना गुजार कर लेंगे; किस की धौंस तो नहीं सहनी पड़ेगी। हल्कू ने एक-एक पैसा करके इकट्ठे किए गए रुपये लाकर उसे दे दिया, उसे ऐसा लगा मानो अपना हृदय निकालकर दे दिया हो।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

पूस की रात में हल्कू अपने खेत पर ईख के पत्तों की छाटी-सी झोपड़ी बनाकर उसमें एक खटोला डालकर, रखवाली कर रहा था। सर्दी के कारण उसको नींद नहीं आ रही थी। उसका कुत्ता जबरा भी वहीं लेटा सर्दी के कारण कूँ-कूँ कर रहा था। हल्कू अपने सिर को घुटनों में दिए अपने कुत्ते से कहता कि क्या तुझे जाड़ा लग रहा है? तू घर में पुआल पर लेटा रहता, तू ही तो यहाँ आया था, अब ले, ले मजा। कुत्ता कुँ-कुँ करके फिर लेट गया कहीं मालिक को मेरे कारण नींद नहीं आ रही हो।

हल्कू एक-एक कर आठ चिलम पी चुका परंतु उसकों नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि मेहनत हम करते हैं, मजा दूसरे लोग लूटते हैं। वे अपने घरों में आराम से गरम-गरम गद्दों पर सोते हैं।

हल्कू अपने कुत्ते से बातें करता रहा। कुत्ता मानो कूँ-कू करके हल्कू की बात का जवाब दे रहा हो। जबरा ने अपने पंजे हल्कू के घुटनों के पास रखे, तो उसके उसे गरम-गरम साँस का अनुभव हुआ।

चिलम पीकर हल्कू फिर सोने का प्रयत्न करने लगा परंतु नींद आने का नाम ही न लेती थी। हल्कू ने जबरा का सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया और थपकी देकर उसे सुलाने लगा। हल्कू को इस प्रकार करते एक सुख का अनुभव हो रहा था। जबरा शायद इस सुख को स्वर्ग से भी बढ़कर समझ रहा था। हल्कू की आत्मा में कुत्ते के प्रति कोई घृण का भाव नहीं था। वह इतना तल्लीन होकर शायद अपने आत्मीय को भी गले न लगाता जिस प्रकार उसने जबरा को गले गला रखा था। हल्कू की आत्मा मानो अंदर से प्रकाशित हो गई हो।

तभी जबरा को किसी जानवर की आहट मालूम पड़ी। जबरा बाहर आकर भौंकने लगा। ह के बुलाने पर भी वह नहीं आया। उसका कर्तव्य उसको भौंकन के लिए प्रेरित कर रहा १ाफी रात गुजर जाने के बाद हवा और तेज हो गई, अब तो ऐसा लगता था कि सर्दी मानों हो ले लेगी। हल्कू ने आकाश की ओर देखकर रात कितनी बाकी है यह अंदाज लगाया।

हल्कू के खेत से थोड़ी दूर पर आमों का एक बाग है। पतझड़ शुरू होने के कारण पेड़ों रोचे काफी पत्ते पड़े हुए थे। हल्कू एक साथ में सुलगता हुआ उपला लेकर अरहर के पौधों। झाडू बनाकर पेड़ के नीचे से आम के पत्तों को इकट्ठा करने लगा। उसने थोड़ी देर में ही ..का ढेर लगा दिया। जबरा जमीन पर पड़ी किसी हड्डी को चिचोड़ने लगा।

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पत्तियाँ इकट्ठी करके हल्कू ने अलाव जला दिया। वह आज सर्दी को जलाकर भस्म कर देना चाहता था। हल्कू अलाव के सामने ही बैठकर तापने लगा फिर उसने अपनी टाँगें फैला लीं। गोल्डेन सीरिज पासपोट वह सोचने लगा इतना इंतजाम पहले कर लेते तो ठंड में तो न मरना पड़ता। अलाव शांत हो चुका था परंतु उसमें गरमी बाकी थी। हल्कू चादर ओढ़कर गरम राख के पास बैठकर गीत गुनगुनाने लगा। उसको आलस्य ने घेर लिया।

जबरा भौंकता हुआ खेत की ओर दौड़ा। हल्कू को ऐसा लगा जैसे खेत में जानवरों का झुंड आया हो, उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी, शायद यह नील गायों का झुंड था। हल्कू को उनके खेत चरने की आवाज भी सुनाई दे रही थी, उसने अपने दिल को तसल्ली दी कि जबरा के होते हुए कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। मुझे भ्रम हो रहा है, वह अपने आपको झूठी तसल्ली देने लगा।

हल्कू को ऐसा लगा कि यह भ्रम नहीं है क्योकि खेत चरने की आवाज स्पष्ट आ रही थी और जबरा भी जोर-जोर से भौक रहा था परंतु हल्कू को अकर्मण्यता ने घेर लिया था, वह लेट गया। सबेरे उसी नींद तब खुली जब धूप चारों ओर खिल गई थी। उसकी पत्नी ने आकर उसको जगाया कि तुम्हारी रखवाली का क्या फायदा हुआ, खेत तो सारी चौपट हो गई। हल्कू ने बहाना बनाया तुम्हें खेत की पड़ी है। मै दर्द के कारण मरते-मरते बचा हूँ। वे दोनों अपने खेत के पास आए, देखा नील गायों ने खेत को पूरी तरह चर लिया था। यह देखकर मुन्नी उदास हो गई। रंतु हल्कू प्रसन्न था कि मजदूरी करके अपना गुजारा कर लेंगे, यहाँ ठंड में खेत की रखवाली हो नहीं करनी पड़ेगी।

पूस की रात कठिन शब्दों का अर्थ

घुड़कियाँ-फटकार, धमकियाँ। स्फूर्ति-फुर्ती। मजूरी-मजदूरी। अकर्मण्य-काम न करने वाला, आलसी। खैरात-मुफ्त। दंदाया-गरमाया। तत्परता- शीघ्रता। कम्मल-कंबल। अरमान-अभिलाषा। हार-खेत-बधार। धधकाना-भड़काना। भारी-भरकम-वजनदार। टाँठे-करारा, दृढ़। डील-आकार। अलाव-जहाँ आग तापी जाती है। पछुआ-पश्चिमी हवा जो जाड़ों में बहुत ठण्डी होती है। मालगुजारी-उपज पर दिया जाने वाला कर। भीषण-भयानक। दोहर-दुहरी चादर। दीर्घ-बड़ा। असूझ-बेवकूफी। श्वान-कुत्ता। मडैया-झोपड़ी।

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महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या

1. यह खेती का मजा है और एक-एक भाग्यवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गर्मी से घबराकर भागे ! मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ। मजाल है कि जाड़े की गुजर हो जाय। तकदीर की खूबी है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटे!
व्याख्या-
प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘पूस की रात’ शीर्षक कहानी के अन्तर्गत कथा नायक हल्कू द्वारा जबरा के प्रति किया गया कथन है। पूस की एक रात में कड़ाके की ठंड का सामना करते हुए हल्कू अपने खेत में लगी फसल की रखवाली कर रहा है। वह गरीब किसान है, इतना गरीब की जाड़े से बचने के लिए एक कम्बल तक नही खरीद सकता। रखवाली करते समय वह अकेला ही है सिर्फ एक और प्राणी उसके पास है और वह है उसका प्रिय कुत्ता जबरा। एकान्त में हल्कू को जाड़े के कारण जब नींद नहीं आती तो वह कुत्ते से बातें करने लगता है, मानो वह भी मनुष्य की भाँति सारी बाते सुनता, समझता है। जबरे को भी जाड़ा लग रहा था अतः हल्कू जबरे को कल से खेत में नही आने को कहता है। फिर जाड़े के कारण चिलम पीना चाहता है और इसके पूर्व आठ चिलम पी चुका है। किसी तरह उसे रात काटनी है। यह खेती करने की सजा है। लेकिन कुछ लोग समझते है कि खेती करने में मजा-ही-मजा है। वैसे लोगों पर हल्कू व्यंग्य करता है, जो परम्परानुसार समझते है कि

“उत्तम खेती मध्यम बान। निसिद्ध चाकरी. भीख निदान ॥”

किन्तु बात बिल्कुल उलटी है। खेत में अन्न पैदा करने वाला जो कंगाल बना रहता है जबकि वाणिज्य तथा चाकरी करने वाले मौज में रहते हैं। उन्हें जाड़ों में मोटे गद्दों, लिहाफ, कम्बल आदि की कोई कमी नहीं रहती। उनके पास गर्मी इतनी रहती है कि जाड़ा डर से ही भागता रहता है। किसान और मजदूर उत्पादन करते और उसका उपयोग धनी वर्ग करता है। अपना-अपना भाग्य
है। स्पष्ट है कि सामान्य किसानों की भांति हल्क भी भाग्यवादी है।

2. वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा में पहुँचा दिया ! नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिये थे और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।
व्याख्या-
प्रेमचन्द कथा सम्राट के रूप में मान्य हैं। अपनी प्रस्तुत कहानी के माध्यम से उन्होंने तत्कालीन जीवन की आलोचना की है। भारतीय ग्रामीणों की दरिद्रता ही इस कहानी का विषय है। पूस की रात तो ऐसे ही ठंडी होती है और ठंडी हवा के समय खेतों में सोने का नाम भर लेने से बदन सिहर जाता है, वह भी एक चादर के सहारे। बेचारे हल्कू के पास एक गाढ़े की चादर के अलावा ओढ़ने के लिए कुछ भी नहीं था और उसे खेतों की निगरानी करनी थी। हल्कू को नींद आ रही थी वह ठंड से काँप रहा था। वह चिलम पीने लगता है और दृढ़ निश्चिय करता है कि इस बार वह विछावन पर से नहीं उठेगा।

वह कुत्ते को गोद मैं चिपकाए सो जाने की कोशिश करता है। हल्कू की गरीबी आज यहाँ तक पहुँच गयी है कि वह जानवर के साथ जानवर की तरह लेटने में भी सुख का अनुभव करता है। वही हल्कू है जो पेट काट-काट कर कम्बल के लिए जमा किए गए पैसे सहना के बकाये देने को मजबूर हो जाता है। उसकी पूँजी खेत में लगी फसल है, जिसकी वह निगरानी नहीं कर पाता। इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य के अत्याचार से हारा हुआ मनुष्य प्रकृति से भी हार मान लेता है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

3. उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे मानो उस अथाह अन्धकार को अपने सिरों पर संभाले हुए हों। अन्धकार के उस अनन्त सागर में यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता मचलता हुआ जान पड़ता था।
व्याख्या-
‘पूस की रात’ कहानी में हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार प्रेमचन्द ने वातावरण की सृष्टि सशक्त बिम्बों के द्वारा की है। कहानी का नायक हल्कू जाड़े की रात में खेत अगोडता है किन्तु पर्याप्त वस्त्रों के अभाव में जाड़े को सहन नहीं कर पाता और बगल के आम के बगीचे में पत्तियाँ जलाकर तापने के उद्देश्य से आता है। अरहर के पौधे की झाड़ बनाकर वह पत्तियाँ बटोरता है और उपले की आग से अलाव जलाता है। अत्यन्त ही अंधकारपूर्ण वातावरण है तथा शीत का आधिक्य इतना है कि वृक्षों के पत्तों के ओस की बँदें धरती पर टप-टप टपक रही हैं। अलाव में अपने टिठुरते हुए हाथ सेंककर हल्कू ठंढ को दूर भगाना चाहता है। जाड़ा किसी पिचाश की भांति उसकी छाती को दबाये हुए था और वह सारी रात अन्धेरे के इसी दानव से संघर्ष करता रहा। अलाव जल गया तो अन्धकार रूपी दानव पर मानो उसने विजय प्राप्त कर ली। जलते हुए अलाव की लपटें वृक्ष की पत्तियों को छूने लगी और उस प्रकाश में पेड़ इस तरह लगते थे. जैसे अन्धकार का बोझ अपने सिर पर सम्भाले हुए हों। चारों ओर अन्धेरा था, मानों अन्धकार को काई विशाल समुद्र लहरा रहा हो। उसमें अलाव की रोशनी इस प्रकार लग रही थीं मानो उस विशाल समुद्र में छोटी नावे हिचकोले ले रही हों।

इसे एक प्रतीक के रूप में लिया जाय तो लगेगा कि यह अंधकार गरीबी का प्रतीक है और अलाव की आग हल्कू का। हल्कू अकेले अलाव की रोशनी की भाँति विशाल अन्धकार से संघर्ष करता है और जिस तरह अलाव अन्ततः बुझ जाता है उसी तरह वह भी पराजित होता है। वह अपनी गरीबी से परेशान होकर थक जाता है।

4. “न जाने कितनी बाकी है जो किसी तरह चुकने ही नहीं आती। मैं कहती हूँ तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते? मर-मर कर काम करो उपज हो तो बाकी दे दो चलो छुट्टी हुयी।” इसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
व्याख्या-
ये पंक्तियाँ प्रेमचन्द रचित चर्चित कहानी ‘पूस की रात’ से ली गयी है। इन पंक्तियों में कहानीकार प्रेमचंद ने ग्रामीण जीवन में व्याप्त गरीबी की विकराल समस्या के साए में पल रही कर्जखोरी, सूदखोरी तथा महाजनी शोषण की सामान्य समस्याओं को साकेतिक किया है। हल्कू .. ने सहना से तीन रुपये कर्ज लिए है, जिसकी वसूली के लिए उसपर बार-बार दबाव पड़ता रहा है। दबाव की वह पीड़ा उसकी पत्नी के लिए असत्य है। वह अपने पति से यह पूछती है कि थोड़ी-सी की जा रही खेती के लिए ही तो कर्ज लेना पड़ता है। अतः वह पति को खीझ भरे स्वर में खेती छोड़ देने के लिए कहती है। खेत में मर-मरकर काम करने से यदि कुछ फसल हाथ भी लगती है तो महाजन उसे देखकर कर्ज की बाकी राशि के लिए टूटते हैं। लगता है उसका जन्म कर्ज चुकाने के लिए ही हुआ है। वह खीझकर कर्ज न चुकाने का निश्चय व्यक्त करती है।

हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है। - halkoo kambal ke paise sahana ko dene ke lie kyon taiyaar ho jaata hai.

हलकू कंबल के पैसे सना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है?

किंतु, जब उसके पास महाजन सहना रुपये लेने के लिए आता है तो वह न चाहते हुए भी उस जमा पूँजी को परिस्थितिवश दे देने को तैयार हो जाता है। क्योंकि, वह . भली-भाँति जानता है कि सहना बिना रुपये लिये नहीं मानेगा, तो फिर वह व्यर्थ क्यों हुज्जत करे-कराये। यही सब सोचकर हल्कू सहना को रुपये देने के लिए राजी हो जाता है।

क हल्कु कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है ख लक्ष्मीबाई को पहली बार निराशा कब हुई?

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हल्कू से पैसा मांगने कौन आया था?

Answer: हल्कू के घर पैसे लेने जमीदार आए थे। जिस से हल्कू ने अपने खेतों के बीज के लिए पैसे लिए थे।

हल्कू ने सहना को कितने रुपए दिए?

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा, 'सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूं, किसी तरह गला तो छूटे. ' मुन्नी झाड़ू लगा रही थी.