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1. हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है?2. मुन्नी की नजर में खेती और मजूरी में क्या अंतर है? वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए क्यों कहती है?3. हल्कू खेत पर कहाँ और कैसे रात बिता रहा था?4. हल्कू ने जबरा को आगे की ठंड काटने के लिए क्या आश्वासन दिया?5. हल्कू की आत्मा का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था। इसके पीछे क्या कारण था?6. हल्कू और जबरा की मैत्री को लेखक ने अनोखा क्यों कहा है?7. हल्कू कैसे जान सका कि रात अभी पहर भर बाकी है?8. जब ठंड बर्दाशत के बाहर हो जाती है तो हल्कू उसका सामना कैसे करता9. लेखक ने पवन को निर्दय क्यों कहा है? निर्दय पवन द्वारा पत्तियों का कुचलना से आप क्या समझते हैं?10. आग तापते हुए हल्क कैसे क्रीड़ा करता है? अपने शब्दों में वर्णन करें।11. हल्कू और मुन्नी दोनों के चरित्र की विशेषताएँ बताएँ। आपकों इन दोनों में अधिक महत्त्वपूर्ण कौन लगा?12. यह कहानी भारतीय किसान के मजदूर बनने की त्रासदी की ओर संकेत करती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट करें।13. ‘पूस की रात’ कहानी में ‘जबरा’ एक प्रमुख पात्र है। कहानी में उसका क्या महत्त्व?14. निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें : (क) बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है।15. ‘कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था। इस कथन के आलोक में कहानी में जबरा की भूमिका का मूल्यांकन करें।16. ‘दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू प्रसन्न था।’ ऐसा क्यों? मुन्नी की उदासी और हल्कू की प्रसन्नता का क्या कारण है?Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions MCQ Questions for Class 11 Hindi with answers online test allows your brain to relax a little during the exams. पूस की रात पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. मुन्नी को लगता है कि जब खेती अपनी है, तभी तो लगान अथवा मालगुजारी देनी पड़ती है और उसके लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिससे उबरना मुश्किल होता है। मजूरी करने पर यह सब झंझट नहीं है। इसीलिए वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए कहती है। प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. हल्कू की समझौतापरस्ती एवं भाग्यवादी विचारों की बाजाय मुन्नी का विद्रोही स्वभाव एवं आलोचानात्मक दृष्टिकोण हमें अधिक महत्त्वपूर्ण लगता है। प्रश्न 12. प्रश्न 13. यदि जबरा के चरित्र का कहानी में सन्निवेश न होता तो शायद हल्कू के चरित्र के कुछ पहलू अनछुए और अनुद्घाटित रह जाते, वे उस सहजता से व्यक्त न हो पाते। पुनः उन दोनों पात्रों के मध्य जो संवाद-योजना है, वह अत्यंत स्वाभाविक, रोचक, मर्मस्पर्शी एवं कथावस्तु के सर्वथा अनुकूल है। इससे कृषक-प्रकृति पर अच्छा प्रकाश पड़ा है। अत: कहा जा सकता है कि जबरा जैसे, मानवेतर पात्र का नियोजन ‘पूस की रात’ कहानी के कथ्य को पूर्ण बनाने में सहायक है। प्रश्न 14. व्याख्या- मुन्नी का हृदय उपर्युक्त प्रस्ताव पर टूट-टूटकर विदीर्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से उसके जीवन की नग्न वास्तविकता प्रकट होती है कि वह चाहे कुछ भी करे, कितनी ही कतर-ब्योंत क्यों न कर ले, लेकिन महाजनों के कर्ज से मुक्त होना उसके लिए नामुमकिन है। लगता है कि जैसे उसका जन्म ही बाकी चुकाते रहने के लिए हुआ हो। यदि एक बार कर्ज ले लो फिर उससे उबार नहीं। इस प्रकार सारा जीवन लगान भरने एवं कर्ज चुकाने में ही चुक जाता है, उनके लिए कुछ नहीं बचता। विशेष-
(ख) हल्कू ने रुपये लिये और इस तरह बाहर चला मानो हृदय निकालकर देने जा रहा हो। व्याख्या- विशेष-
(ग) अंधकार के उस अनंत सागर में यह प्रकाश एक नौका समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था। व्याख्या- विशेष-
(घ) तकदीर का खूबी है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें। व्याख्या- विशेष-
प्रश्न
15. जबरा के जीते-जी हल्कू का कुछ बिगड़े, यह संभव नहीं। इस संदर्भ में कहानीकार ने ठीक ही कहा है कि “कर्त्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था।” यही बात कहानी के अंतिम भाग में भी दिखायी देती है। जब हल्कू ठंड के कारण अलाव को छोड़ खेत पर नहीं जा पाता, जबकि जबरा खेत पर पहुंचकर नीलगायों को भगाने के लिए जी-जान लगा देता है। इस प्रकार हम देखते है कि जबरा अपनी स्वामिभक्ति एवं कर्त्तव्यपरायणता के कारण कहानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रश्न 16. फसलों की बर्बादी देख मुन्नी और हल्कू के भाव अलग-अलग है। मुन्नी वहा यह सोचकर दुखी और उदास है कि अब तो मालगुजारी भरने के लिए मजूरी ही करनी पड़ेगी, वहीं हल्कू इस कारण प्रसन्नता व्यक्त करता है कि चलो फसल नष्ट हुई तो हुई, मजूरी करनी पड़ेगी तो करेंगे, पर अब कड़ाके की ऐसी रात में यहाँ सोना तो न पड़ेगा। पूस की रात भाषा की बात प्रश्न 1.
प्रश्न
2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. (क) चिलम पीकर हल्कू लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे जो कुछ भी हो अबकी
सो जाऊँगा। (ख) हल्कू को ऐसा मालूम हुआ जानवरों का झुंड उसके खेत में आया है। प्रश्न 6. (क) हल्कू ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियाँ बटोरने लगा। (संयुक्त वाक्य) (ख) राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी। (मिश्र वाक्य) (ग) पेट में ऐसा दरद हुआ कि मैं ही जानता हूँ। (मिश्र वाक्य) (घ) यह कहता हुआ वह उछला और अलाव के ऊपर से साफ निकल गया। (संयुक्त वाक्य) (ङ) मै मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। (मिश्र वाक्य) प्रश्न 7. लेखक-बगीचे में घुप अँधेरा हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था। हल्कू-पिएगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, हाँ, जरा मन बहल जाता है। लेखक-जाड़ा किसी पिशाच की भाँति उसी छाती को दबाए हुए था। प्रश्न 8.
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पूस की रात लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. हल्क का चरित्र-चित्रण कीजिए। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. पूस की रात अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. पूस की रात वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें। प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें। पूस की रात लेखक परिचय – प्रेमचंद (1880-1936) प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई. को वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उनको हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचंदजी ने कुछ पत्रों का सम्पादन भी किया। उन्होंने सरस्वती प्रेम के नाम से अपनी प्रकाश संस्था भी स्थापित की। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रथम कथाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। वे जीवन भर आर्थिक अभाव की विषम चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक वैषम्य को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चिंत्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है। जीवन में निरन्तर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंदजी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था, पर प्रेमचंदजी एक साहसी सैनिक के समान अपने पथ पर बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बम्बई (मुम्बई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके, क्योंकि वहाँ उन्हें फिल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतन्त्र लेखन ही रुचिकर था। निरन्तर साहित्य साधना करते हुए 2 अक्टूबर, 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया। साहित्यिक विशेषताएं-प्रेमचंदजी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह जन-जीवन का मुँह बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विशद् चित्रण किया है। ग्राम्य-जीवन के चित्रण में तो प्रेमचंदजी ने कमाल ही कर दिया है। उनकी कपन, गोदान, पूस की रात आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध मूक विद्रोह की आवाज उठाती है। उपन्यास-वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, काया कल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगल सूत्र (अपूर्ण)। कहानी संग्रह-प्रेमचंदजी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।
भाषा-प्रेमचंदजी का सम्पूर्ण साहित्य समाज-सुधार एवं राष्ट्रीय भावना से प्रेरित है। उनकी भाषा सरल एवं मुहावरेदार है। उर्दू शब्दों की स्वच्छता तथा सस्कृत की भावमयी स्निग्ध पदावली ने भाषा को आकर्षक, सरल एवं प्रभावशाली बना दिया है। यही कारण है कि आम जनता और रुचि-सम्पन्न साहित्यकारों-दोनों ने उनके साहित्य का स्वागत किया। पूस की रात पाठ का सारांश सहना हल्कू से अपने उधार के पैसे माँगने आया है। हल्कू अपनी पत्नी से रुपये देने के लिए कहता है। उनकी पत्नी यह कहकर मना करती है, घर में केवल तीन रुपये हैं, उनका कम्बल खरीदना है। ठंड की रात में बिना कंबल के खेतों की रखवाली कैसे होगी। वह कहने लगा उसकों पैसा देकर पीछा छुड़ाओं, कंबल के लिए कोई और इंतजार कर लेंगे। मुन्नी (उसकी पत्नी) कहती है कि कहाँ से इंतजाम करोगे, क्या कोई तुम्हे दान देकर जाएगा, हल्कू उसके पैसे देकर अपना पिंड छुड़ाना चाहता है। मुन्नी ने पैसे लाकर हल्कू को दे दिया और कहा कि छोड़ दो ये खेती, मजदूरी करके अपना गुजार कर लेंगे; किस की धौंस तो नहीं सहनी पड़ेगी। हल्कू ने एक-एक पैसा करके इकट्ठे किए गए रुपये लाकर उसे दे दिया, उसे ऐसा लगा मानो अपना हृदय निकालकर दे दिया हो। पूस की रात में हल्कू अपने खेत पर ईख के पत्तों की छाटी-सी झोपड़ी बनाकर उसमें एक खटोला डालकर, रखवाली कर रहा था। सर्दी के कारण उसको नींद नहीं आ रही थी। उसका कुत्ता जबरा भी वहीं लेटा सर्दी के कारण कूँ-कूँ कर रहा था। हल्कू अपने सिर को घुटनों में दिए अपने कुत्ते से कहता कि क्या तुझे जाड़ा लग रहा है? तू घर में पुआल पर लेटा रहता, तू ही तो यहाँ आया था, अब ले, ले मजा। कुत्ता कुँ-कुँ करके फिर लेट गया कहीं मालिक को मेरे कारण नींद नहीं आ रही हो। हल्कू एक-एक कर आठ चिलम पी चुका परंतु उसकों नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि मेहनत हम करते हैं, मजा दूसरे लोग लूटते हैं। वे अपने घरों में आराम से गरम-गरम गद्दों पर सोते हैं। हल्कू अपने कुत्ते से बातें करता रहा। कुत्ता मानो कूँ-कू करके हल्कू की बात का जवाब दे रहा हो। जबरा ने अपने पंजे हल्कू के घुटनों के पास रखे, तो उसके उसे गरम-गरम साँस का अनुभव हुआ। चिलम पीकर हल्कू फिर सोने का प्रयत्न करने लगा परंतु नींद आने का नाम ही न लेती थी। हल्कू ने जबरा का सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया और थपकी देकर उसे सुलाने लगा। हल्कू को इस प्रकार करते एक सुख का अनुभव हो रहा था। जबरा शायद इस सुख को स्वर्ग से भी बढ़कर समझ रहा था। हल्कू की आत्मा में कुत्ते के प्रति कोई घृण का भाव नहीं था। वह इतना तल्लीन होकर शायद अपने आत्मीय को भी गले न लगाता जिस प्रकार उसने जबरा को गले गला रखा था। हल्कू की आत्मा मानो अंदर से प्रकाशित हो गई हो। तभी जबरा को किसी जानवर की आहट मालूम पड़ी। जबरा बाहर आकर भौंकने लगा। ह के बुलाने पर भी वह नहीं आया। उसका कर्तव्य उसको भौंकन के लिए प्रेरित कर रहा १ाफी रात गुजर जाने के बाद हवा और तेज हो गई, अब तो ऐसा लगता था कि सर्दी मानों हो ले लेगी। हल्कू ने आकाश की ओर देखकर रात कितनी बाकी है यह अंदाज लगाया। हल्कू के खेत से थोड़ी दूर पर आमों का एक बाग है। पतझड़ शुरू होने के कारण पेड़ों रोचे काफी पत्ते पड़े हुए थे। हल्कू एक साथ में सुलगता हुआ उपला लेकर अरहर के पौधों। झाडू बनाकर पेड़ के नीचे से आम के पत्तों को इकट्ठा करने लगा। उसने थोड़ी देर में ही ..का ढेर लगा दिया। जबरा जमीन पर पड़ी किसी हड्डी को चिचोड़ने लगा। पत्तियाँ इकट्ठी करके हल्कू ने अलाव जला दिया। वह आज सर्दी को जलाकर भस्म कर देना चाहता था। हल्कू अलाव के सामने ही बैठकर तापने लगा फिर उसने अपनी टाँगें फैला लीं। गोल्डेन सीरिज पासपोट वह सोचने लगा इतना इंतजाम पहले कर लेते तो ठंड में तो न मरना पड़ता। अलाव शांत हो चुका था परंतु उसमें गरमी बाकी थी। हल्कू चादर ओढ़कर गरम राख के पास बैठकर गीत गुनगुनाने लगा। उसको आलस्य ने घेर लिया। जबरा भौंकता हुआ खेत की ओर दौड़ा। हल्कू को ऐसा लगा जैसे खेत में जानवरों का झुंड आया हो, उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी, शायद यह नील गायों का झुंड था। हल्कू को उनके खेत चरने की आवाज भी सुनाई दे रही थी, उसने अपने दिल को तसल्ली दी कि जबरा के होते हुए कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। मुझे भ्रम हो रहा है, वह अपने आपको झूठी तसल्ली देने लगा। हल्कू को ऐसा लगा कि यह भ्रम नहीं है क्योकि खेत चरने की आवाज स्पष्ट आ रही थी और जबरा भी जोर-जोर से भौक रहा था परंतु हल्कू को अकर्मण्यता ने घेर लिया था, वह लेट गया। सबेरे उसी नींद तब खुली जब धूप चारों ओर खिल गई थी। उसकी पत्नी ने आकर उसको जगाया कि तुम्हारी रखवाली का क्या फायदा हुआ, खेत तो सारी चौपट हो गई। हल्कू ने बहाना बनाया तुम्हें खेत की पड़ी है। मै दर्द के कारण मरते-मरते बचा हूँ। वे दोनों अपने खेत के पास आए, देखा नील गायों ने खेत को पूरी तरह चर लिया था। यह देखकर मुन्नी उदास हो गई। रंतु हल्कू प्रसन्न था कि मजदूरी करके अपना गुजारा कर लेंगे, यहाँ ठंड में खेत की रखवाली हो नहीं करनी पड़ेगी। पूस की रात कठिन शब्दों का अर्थ घुड़कियाँ-फटकार, धमकियाँ। स्फूर्ति-फुर्ती। मजूरी-मजदूरी। अकर्मण्य-काम न करने वाला, आलसी। खैरात-मुफ्त। दंदाया-गरमाया। तत्परता- शीघ्रता। कम्मल-कंबल। अरमान-अभिलाषा। हार-खेत-बधार। धधकाना-भड़काना। भारी-भरकम-वजनदार। टाँठे-करारा, दृढ़। डील-आकार। अलाव-जहाँ आग तापी जाती है। पछुआ-पश्चिमी हवा जो जाड़ों में बहुत ठण्डी होती है। मालगुजारी-उपज पर दिया जाने वाला कर। भीषण-भयानक। दोहर-दुहरी चादर। दीर्घ-बड़ा। असूझ-बेवकूफी। श्वान-कुत्ता। मडैया-झोपड़ी। महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या 1. यह खेती का मजा है और एक-एक भाग्यवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गर्मी से घबराकर भागे ! मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ। मजाल है कि जाड़े की गुजर हो जाय। तकदीर की खूबी है। मजूरी हम करें,
मजा दूसरे लूटे! “उत्तम खेती मध्यम बान। निसिद्ध चाकरी. भीख निदान ॥” किन्तु बात बिल्कुल
उलटी है। खेत में अन्न पैदा करने वाला जो कंगाल बना रहता है जबकि वाणिज्य तथा चाकरी करने वाले मौज में रहते हैं। उन्हें जाड़ों में मोटे गद्दों, लिहाफ, कम्बल आदि की कोई कमी नहीं रहती। उनके पास गर्मी इतनी रहती है कि जाड़ा डर से ही भागता रहता है। किसान और मजदूर उत्पादन करते और उसका उपयोग धनी वर्ग करता है। अपना-अपना भाग्य 2. वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा में पहुँचा दिया ! नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा
के सब द्वार खोल दिये थे और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था। वह कुत्ते को गोद मैं चिपकाए सो जाने की कोशिश करता है। हल्कू की गरीबी आज यहाँ तक पहुँच गयी है कि वह जानवर के साथ जानवर की तरह लेटने में भी सुख का अनुभव करता है। वही हल्कू है जो पेट काट-काट कर कम्बल के लिए जमा किए गए पैसे सहना के बकाये देने को मजबूर हो जाता है। उसकी पूँजी खेत में लगी फसल है, जिसकी वह निगरानी नहीं कर पाता। इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य के अत्याचार से हारा हुआ मनुष्य प्रकृति से भी हार मान लेता है। 3. उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे मानो उस अथाह अन्धकार को अपने सिरों पर संभाले हुए हों। अन्धकार के उस अनन्त सागर में यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता मचलता हुआ
जान पड़ता था। इसे एक प्रतीक के रूप में लिया जाय तो लगेगा कि यह अंधकार गरीबी का प्रतीक है और अलाव की आग हल्कू का। हल्कू अकेले अलाव की रोशनी की भाँति विशाल अन्धकार से संघर्ष करता है और जिस तरह अलाव अन्ततः बुझ जाता है उसी तरह वह भी पराजित होता है। वह अपनी गरीबी से परेशान होकर थक जाता है। 4. “न जाने कितनी बाकी है जो किसी तरह चुकने ही नहीं आती। मैं कहती हूँ तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते? मर-मर कर काम करो उपज हो तो बाकी
दे दो चलो छुट्टी हुयी।” इसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिए। हलकू कंबल के पैसे सना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है?किंतु, जब उसके पास महाजन सहना रुपये लेने के लिए आता है तो वह न चाहते हुए भी उस जमा पूँजी को परिस्थितिवश दे देने को तैयार हो जाता है। क्योंकि, वह . भली-भाँति जानता है कि सहना बिना रुपये लिये नहीं मानेगा, तो फिर वह व्यर्थ क्यों हुज्जत करे-कराये। यही सब सोचकर हल्कू सहना को रुपये देने के लिए राजी हो जाता है।
क हल्कु कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है ख लक्ष्मीबाई को पहली बार निराशा कब हुई?All NCERT Solutions for class Class 11 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.
हल्कू से पैसा मांगने कौन आया था?Answer: हल्कू के घर पैसे लेने जमीदार आए थे। जिस से हल्कू ने अपने खेतों के बीज के लिए पैसे लिए थे।
हल्कू ने सहना को कितने रुपए दिए?हल्कू ने आकर स्त्री से कहा, 'सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूं, किसी तरह गला तो छूटे. ' मुन्नी झाड़ू लगा रही थी.
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