एक बीते के बराबर Show चने का पौधा ऐसा लग रहा है जैसे एक ठिगना सा आदमी अपने सर पर छोटे से गुलाबी फूल की पगड़ी बांधकर सज धजकर खड़ा है। पास ही मिलकर उगी है अक्सर चने के खेत में ही तीसी या अलसी के बीज भी बो दिये जाते हैं। अलसी ऐसे लग रही है जैसे चने की बगल में हठ कर के खड़ी हो गई हो। अपनी कामिनी काया और लचीली कमर के साथ उसने बालों में नीले फूल लगा रखे हैं। जैसे ये कह रही हो कि जो भी उस फूल को छुएगा उसे ही उसका दिल मिलेगा। और सरसों की न पूछो देखता हूँ मैं, स्वयंवर हो रहा है सरसों तो लगता है सबसे बड़ी हो गई है। वह इतनी बड़ी हो गई है कि उसने अपने हाथ पीले करवा लिए हैं और विवाह मंडप में बैठ गई है। ऐसा लग रहा है कि होली के गीत गाता हुआ फागुन का महीना भी उस ब्याह में शामिल हो रहा है। इस स्वयंवर में प्रकृति अपने प्यार का आँचल हिला रही है। हालांकि यह निर्जन भूमि है, लेकिन लोगों की भीड़ भाड़ वाले शहर से कहीं ज्यादा प्रेम यहाँ देखने को मिल रहा है। और पैरों के तले है एक पोखर सामने एक पोखर है जिस में छोटी छोटी लहरें उठ रही हैं। पोखर की तलछटी में जो शैवाल हैं वो भी साथ साथ लहर मार रहे हैं। पोखर के बीच में प्राय: लकड़ी का एक मोटा सा खम्भा होता है। कुछ जगह पर इसे जाट कहा जाता है। इससे पोखर में पानी की गहराई का पता चलता है। इसकी तुलना चांदी के एक बड़े से खम्भे से की गई है जिससे आँखें चौंधिया जाती हैं। किनारे पड़े छोटे छोटे पत्थर इस तरह चुपचाप पानी पी रहे हैं जैसे उनकी प्यास कभी नहीं बुझने वाली हो। कवि परिचय इनका जन्म सन 1911 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ। उनकी शिक्षा इलाहबाद और आगरा विश्वविद्यालय में हुई। ये पेशे से वकील थे। प्रगति
वादी विचारधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। जनसामान्य का संघर्ष और प्रकृति सौंदर्य इनकी कविताओं का मुख्य प्रतिपाद्य है। सन 2000 में इनका देहांत हो गया। काव्य-कृतियाँ - नींद के बादल, युग की गंगा, फूल नही रंग बोलते हैं, आग का आईना, पंख और पतवार, हे मेरी तुम, मार प्यार की थापें, कहे केदार खरी खरी। पुरस्कार - सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार। कठिन शब्दों के अर्थ ठिगना – नाटा चट – तुरंत चटुल – चतुर जुगुल – युगल रींवा – बबूल के जैसा पेड़ कविता का विवरण देख आया चंद्र गहना कवि एक गाँव से लौट रहे हैं जिसका नाम है चाँद गहना। लौटते समय कवि एक खेत की मेड़ पर अकेले बैठकर गाँव के सौंदर्य को निहार रहा है। आगे की पंक्तियों में ज्यादातर पौधों की तुलना अलग अलग वेशभूषा वाले आदमियों से की गई है। एक बीते के बराबर चने का पौधा ऐसा लग रहा है जैसे एक ठिगना सा आदमी अपने सर पर छोटे से गुलाबी फूल की पगड़ी बांधकर सज धजकर खड़ा है। पास ही मिलकर उगी है अक्सर चने के खेत में ही तीसी या अलसी के बीज भी बो दिये जाते हैं। अलसी ऐसे लग रही है जैसे चने की बगल में हठ कर के खड़ी हो गई हो। अपनी कामिनी काया और लचीली कमर के साथ उसने बालों में नीले फूल लगा रखे हैं। जैसे ये कह रही हो कि जो भी उस फूल को छुएगा उसे ही उसका दिल मिलेगा। और सरसों की न पूछो देखता हूँ मैं, स्वयंवर हो रहा है सरसों तो लगता है सबसे बड़ी हो गई है। वह इतनी बड़ी हो गई है कि उसने अपने हाथ पीले करवा लिए हैं और विवाह मंडप में बैठ गई है। ऐसा लग रहा है कि होली के गीत गाता हुआ फागुन का महीना भी उस ब्याह में शामिल हो रहा है। इस स्वयंवर में प्रकृति अपने प्यार का आँचल हिला रही है। हालांकि यह निर्जन भूमि है, लेकिन लोगों की भीड़ भाड़ वाले शहर से कहीं ज्यादा प्रेम यहाँ देखने को मिल रहा है। और पैरों के तले है एक पोखर सामने एक पोखर है जिस में छोटी छोटी लहरें उठ रही हैं। पोखर की तलछटी में जो शैवाल हैं वो भी साथ साथ लहर मार रहे हैं। पोखर के बीच में प्राय: लकड़ी का एक मोटा सा खम्भा होता है। कुछ जगह पर इसे जाट कहा जाता है। इससे पोखर में पानी की गहराई का पता चलता है। इसकी तुलना चांदी के एक बड़े से खम्भे से की गई है जिससे आँखें चौंधिया जाती हैं। किनारे पड़े छोटे छोटे पत्थर इस तरह चुपचाप पानी पी रहे हैं जैसे उनकी प्यास कभी नहीं बुझने वाली हो। चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में, बगुला पानी में अपनी टांग डुबाकर चुपचाप खड़ा है और जैसे ही किसी मछली को देखता है तो उसका ध्यान भंग हो जाता है। वह चट से उसे चोंच में दबाकर अपने गले के नीचे उतार लेता है। एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया एक काले सर वाली चालाक चिड़िया अपने सफेद पंखों के झपाटे से जल के हृदय पर तेजी से टूट पड़ती है और एक चतुर मछली को अपने पीले चोंच में दबाकर आसमान में उड़ जाती है। औ यहीं से सामने ऊंची जमीन से रेलवे लाइन गई है। लेकिन अभी ट्रेन का समय नहीं हुआ है। कवि को कहीं जाने की जल्दी भी नहीं है। इसलिए वह वहाँ की सुंदरता को अपनी आँखों में मन भर कर उतारने के लिए पूरी तरह से आजाद है। चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी पठारी क्षेत्र की पहाड़ियां कम ऊंचाई वाली और बेडौल होती हैं। साथ में बबूल और रीवां के कांटेदार पेड़ कोई सुंदर दृश्य प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं। सुन पड़ता है मीठा मीठा रस टपकाता इस बंजर भूमि पर भी तोते का मीठा सुर सुनाई पड़ता है। सारस की आवाज जंगल के सीने को चीरते हुए निकल जाती है। मन होता है कवि का मन करता है कि वो उसी सारस के साथ पंख फैला कर उड़ जाए। कवि उड़कर वहाँ पहुँचना चाहता है जहाँ हरे खेत में कोई प्रेमी युगल छुप कर मिल रहे हैं। वहाँ दबे पाँव जाकर कवि उनकी प्रेम कहानी सुनना चाहता है। प्रश्न अभ्यास 1. ' इस विजन में ..... अधिक है ' - पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ? उत्तर इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने शहरीय स्वार्थपूर्ण रिश्तों पर प्रहार किया है। कवि के अनुसार नगर के लोग आपसी प्रेमभाव के स्थान पर पैसों को अधिक महत्त्व देते हैं। वे प्रेम और सौंदर्य से दूर, प्रकृति से कटे हुए होते हैं। उनके इस आक्रोश का मुख्य कारण यह है कि कवि प्रकृति से बहुत अधिक लगाव रखते हैं। 2. सरसों को ' सयानी ' कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ? उत्तर यहाँ सरसों के सयानी से कवि यह कहना चाहता है कि सरसों की फसल अब पूरी तरह तैयार हो चूकी है अर्थात् वह कटने के लिए पूरी तरह तैयार है। 3. अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए। उत्तर कवि ने अलसी को एक सुंदर नायिका के रुप में चित्रित किया है। उसका शरीर पतला और कमर लचीली है। वह अपने सिर पर नीले फूल लगाकर यह सन्देश दे रही है कि प्रथम स्पर्श करने वाले को हृदय से अपना स्वामी मानेगी। वह सभी को प्रेम का निमंत्रण दे रही है। 4. अलसी के लिए 'हठीली' विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ? उत्तर कवि ने 'अलसी' के लिए 'हठीली' विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि उसने हठ कर रखा है कि वह अपना दिल उसे ही देगी जो उसके सिर पर रखे नीले फूल को छुएगा। दूसरा, वह चने के पौधों के बीच इस प्रकार उग आई है मानों ज़बरदस्ती वह सबको अपने अस्तित्व का परिचय देना चाहती है। तीसरा, वह हवा के ज़ोर से बार-बार नीचे झुक जाती है परन्तु फिर वह नीला फूल सिर पर रख खड़ी हो जाती है। 5. 'चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा' में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है? उत्तर जलाशय के स्वच्छ पानी में दिन के समय सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वे गोल और लम्ब्वत् चमक पैदा करती हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे जल में कोई गोल और लम्बा चाँदी का चमचमाता खंभा पड़ा हुआ है। चमक तथा आकार में समानता के कारण किरणों में खम्भे की कल्पना करना कवि की सूक्ष्म कल्पना का आभास कराता है। 6. कविता के आधार पर 'हरे चने' का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए। उत्तर कवि ने यहाँ चने के पौधों का मानवीकरण किया है। चने का पौधा बहुत छोटा-सा है। उसके सिर पर फूला हुआ गुलाबी रंग का फूल ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह अपने सिर पर गुलाबी रंग की पगड़ी बाँधकर, सज-धज कर स्वयंवर के लिए खड़ा हो। 7. कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है? उत्तर कविता की कुछ पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे - (1) यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर (2) पास ही मिल कर उगी है, बीच में अलसी हठीली। (3) और सरसों की न पूछो-हो गई सबसे सयानी, हाथ पीले कर लिए हैं, 8. कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो
रहा है - उत्तर चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी पृष्ठ संख्या: 123 रचना और अभिव्यक्ति 9. 'और सरसों की न पूछो' - इस उक्ति में बात को कहने का खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं ? उत्तर एक वस्तु की बात करते हुए दूसरे वस्तु के बारे में बताने के लिए हम इस शैली का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की शैली का प्रयोग वस्तु की विशेषताओं पर ध्यान केन्द्रित करने तथा बात में रोचकता बनाए रखने के लिए किया जाता है। 10. काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ? उत्तर काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया यहाँ पर दोहरे व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है। ऐसे लोग एक और तो समाज के हितचिंतक बने फिरते हैं और मौका मिलते ही अपना स्वार्थ साध लेते हैं। भाषा अध्यन 11. बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए। उत्तर फ़ाग, मेड़, पोखर, हठीली, सयानी, ब्याह, मंडप, फ़ाग, चकमकाता, खंभा, चटझपाटे, सुग्गा, जुगुल, जोड़ी, चुप्पे-चुप्पे आदि। 12. कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस-पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए। उत्तर 1 सिर पर चढ़ाना - (अधिक लाड़-प्यार करना) सोहन के माता - पिता ने अपने बेटे को अधिक प्यार देकर सर पर चढ़ा दिया। Popular posts from this blog कैदी और कोकिला 4.1कवि परिचय - माखनलाल चतुर्वेदी माखनलाल चतुर्वेदी जिन्हें प्यार से पंडितजी भी कहा जाता है, एक भारतीय कवी, लेखक, निबंधकार, नाटककार और जर्नलिस्ट थे जो विशेष रूप से आज़ादी के लिये होने वाले भारतीय
राष्ट्रिय आंदोलन में अपने सहभाग के लिये जाने जाते है. चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई ग्राम में हुआ था. जब वे 16 साल के थे तो वे एक स्कूल शिक्षक बने थे. बाद में वे राष्ट्रिय जर्नल प्रभा, प्रताप और कर्मवीर के एडिटर बने और ब्रिटिश राज में उन्होंने इनके जरिये ब्रिटिशो का विरोध भी किया. भारत की आज़ादी के बाद वे भारत सरकार में कार्यरत होना चाहते थे और देश की सेवा करना चाहते थे और इसीके चलते उन्होंने महात्मा गांधी का साथ भी दिया. हिंदी साहित्य में
Neo-Romanticism अभियान के लिये वे जाने जाते है. 1955 में हिंदी के हिम तरिंगिनी में उनके अतुल्य कामो के लिये उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया था. 1963 में भारत सरकार ने उन्हें भारत का नागरिकत्व पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया. माखनलाल चतुर्वेदी के लेख – ‘वेणु लो गूं अलंकार (अलंकार परिभाषा) ‘अलंकार’ शब्द में ‘अलम् और ‘कार’ दो
शब्द हैं। ‘अलम्’ का अर्थ है, भूषण – जो अलंकृत या भूषित करे, वह अलंकार है । अलंकार काव्य का बाह्य शोभाकारक धर्म है। जिस प्रकार आभूषण किसी स्त्री के नैसर्गिक सौन्दर्य को बढ़ा देते हैं, उसी प्रकार उपमा, रूपक आदि अलंकार काव्य की रसात्मकता को बढ़ा देतें हैं। वास्तव में अलंकार वाणी के आभूषण हैं। इनकी सहायता से अभिव्यक्ति में स्पष्टता, भावों में प्रभावशीलता और प्रेषणीयता तथा भाषा में सौन्दर्य आ जाता है। स्पष्टता और प्रभावोत्पादन के लिए वाणी अलंकार की सहायता लेती है । इसलिए काव्य में इनका महत्वपूर्ण
स्थान है । काव्य में रमणीयता और चमत्कार लाने के लिए अलंकारों का प्रयोग आवश्यक तो है, पर अनिवार्य नहीं । Alankar ke Bhed | अलंकार के भेद : शब्द और अर्थ को प्रभावित करने के कारण अलंकार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं: शब्दालंकार और अर्थालंकार जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों को प्रभावित करते हैं, वे ‘उभयालंकार’ कहलाते हैं । इस प्रकार अलंकार के तीन भेद होते हैं- (1) शब्दालंकार (Shabdalankar) (2) अर्थालंकार तथा (Ardhal वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है। एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाला शब्द-समूह वाक्य कहलाता है। जैसे- श्याम दूध पी रहा है। यह कितना सुंदर उपवन है। ओह ! आज तो गरमी के कारण प्राण निकले जा रहे हैं। ये सभी मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनियों के समूह हैं। अतः ये वाक्य हैं। वाक्य भाषा का चरम
अवयव है। वाक्य के अंग वाक्य के दो अंग है:- उद्देश्य जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं; जैसे- अनुराग खेलता है। सचिन दौड़ता है। इन वाक्यों में 'अनुराग' और 'सचिन' के विषय में बताया गया है। अत: ये उद्देश्य हैं। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्ति सदा सफल होता है।' इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार 'परिश्रम करने वाला' है। विधेय वाक्य के जिस भाग में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं; जैसे- अनुराग खेलता है।
इस वाक्य में 'खेलता है' विधेय है। विधेय के विस्तार के अंतर्गत वाक्य के कर्ता (उद्दे |