बादलों को अनंत के घन क्यों कहा गया है 1 Point वे क्रांतिकारी हैं वे वर्षा करते हैं वे अनंत ईश्वर की कृति हैं? - baadalon ko anant ke ghan kyon kaha gaya hai 1 point ve kraantikaaree hain ve varsha karate hain ve anant eeshvar kee krti hain?

बादलों को अनंत के घन क्यों कहा गया है 1 Point वे क्रांतिकारी हैं वे वर्षा करते हैं वे अनंत ईश्वर की कृति हैं? - baadalon ko anant ke ghan kyon kaha gaya hai 1 point ve kraantikaaree hain ve varsha karate hain ve anant eeshvar kee krti hain?

Biology

1. रजोनिवृत्ति (Menopause) किसे कहते हैं ? उत्तर- स्त्रियों में लगभग 40 वर्ष की आयु में मदचक्र अनियमित हो जाता है और धीरे-धीरे या अचानक समाप्त हो जाता है। यह स्थिति एस्ट्रोजन की कमी के कारण उत्पन्न होती है। रजोनिवृत्ति के पश्चात् स्त्रियाँ गर्भधारण करने में असमर्थ होती हैं इसलिए प्रजनन क्षमता भी समाप्त हो जाती है। इसके ठीक विपरीत पुरुष में शुक्राणु निर्माण अन्तिम समय तक होता रहता है किन्तु उसकी मैथुन क्षमता आयु के साथ-साथ कम होती जाती है। 2. शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानताएँ बताइए उत्तर- शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानताएँ :(1) दोनों ही क्रियाओं में जनन एपिथेलीयम ( germinal epithelium) की कोशिकाओं का विभाजन होता है। (2) दोनों ही क्रियाओं में तीन प्रावस्थाएँ होती हैं (i) गुणन प्रावस्था (multiplication phase) (ii) वृद्धि प्रावस्था (growth phase) (iii) परिपक्वन प्रावस्था (maturation phase) (3) दोनों में ही, गुणन प्रावस्था में, समसूत्री विभाजन होता है। (4) वृद्धि अवस्था में कोशिकाओं की वृद्धि होती है और पोषण तत्वों को संचित करती है । (5) दोनों ही में परिपक्वन अवस्था में पहला विभाजन अर्द्धसूत्री तथा दूसरा समसूत्री होता है। (6) दोनों की अंतिम अवस्था अगुणित गैमीट का निर्माण होता है। 3. मानव निषेचन पर टिप्पणी लिखिए । उत्तर- निषेचन (Fertilisation) सभी स्तनियों में मैथुन (copulation) होता है, जिसके फलस्वरूप शुक्राणुओं (sperms) का स्थानांतरण योनि (vagina) में होता है । तत्पश्चात् शुक्राणु गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन नलिकाओं में जाते हैं। अण्डोत्सर्ग क्रिया के फलस्वरूप अण्ड देहगुहा में छोड़ दिये जाते हैं, जहाँ से ये ऑस्टियम फैलोपियन (ostium fallopian) द्वारा फैलोपियन नलिका में पहुँचते हैं। यहाँ पर इन्हें शुक्राणु घेर लेते हैं और फिर केवल एक शुक्राणु गर्भाधान में सफल होता है। निषेचन की क्रिया एक्रोसोम (acrosome) द्वारा स्रावित एन्जाइम हायलुरॉनिडेज (hyaluronidase) द्वारा सम्भव होती है, क्योंकि यह एन्जाइम म्युकस तथा अण्डकला को घुला देता है, जिससे शुक्राणु को अण्ड के जीव द्रव्य में से होकर केन्द्रक तक पहुँचने में सुगमता होती है। शुक्राणु तथा अण्ड के केन्द्रकों के संयुग्मन को निषेचन (fertilisation) कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। प्रत्येक युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या (2n) होती है, क्योंकि प्रत्येक युग्मक (gamete) में गुणसूत्रों की संख्या केवल (n) होती है। 4. फफूँद (फंजाई) जगत के पौधों में अलैंगिक जन्म किस प्रकार से होता है ? उत्तर—फफूँद जगत के पौधों में अलैंगिक जनन कुछ अलैंगिक जननीय संरचनाओं द्वारा होता है यथा- पैनसिलियम में यह कोनिडिया के द्वारा, तो म्यूकर में अलैंगिक चल बीजाणु के द्वारा सम्पन्न होता है। 5. पादपों में कायिक प्रवर्धन किन संरचनाओं की मदद से होता है ? उत्तर - पादपों में कायिक प्रवर्धन कुछ खास प्रकार के संरचनाओं के द्वारा सम्पन्न होता है। यथा—उपरिभूस्तारी, प्रकन्द, भूस्तरी, बल्व इत्यादि । 6. अलैंगिक जनन मुकुलन से आप क्या समझते हैं ? उत्तर- इस प्रकार के जनन में जनक के शरीर में कोई बल्ब सरीखी प्रवर्ध निकल आती है जिसे मुकुल कहते हैं, और फिर यह मुकुल टूटकर जनन के शरीर से अलग हो जाती है जो स्वतंत्र जीव बनाती है। 7. मदचक्र तथा ऋतुस्राव चक्र के बारे में स्पष्ट करें उत्तर- जानवरों में जनन प्रावस्था के दौरान अपरास्तनी मादा अंडाशय की सक्रियता में चकित तथा सहायक वाहिका और हॉर्मोन्स में परिवर्तन आने लगते हैं। नॉन प्राइमेट स्तनधारियों, जैसे—गाय, भेड़, कुत्ता, चूहा, बाघ इत्यादि में जनन के दौरान ऐसे चक्रिय परिवर्तन होते हैं, इन्हें मदचक्र (ओएस्ट्स साइकिल) कहते हैं। प्राइमेटो जैसे—बन्दर, गोरीला, ऐप्स एवं मनुष्य में यह ऋतुस्राव चक्र कहलाता है। प्राकृतिक रूप में वनो में रहने वाले अधिकांश स्तनधारी अपने जनन प्रावस्था के दौरान अनुकूल परिस्थितियो में ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं। इसी कारणों से इन्हें ऋतुनिष्ठ अथवा मौसमी प्रजनन कहते हैं। 11. जीवों में अलैंगिक जनन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। अथवा, अनिषेक जनन पर टिप्पणी लिखें। उत्तर- जीवों के प्रजनन की वह विधि जिसमें एक जनक से नई व्यष्टि का जन्म होता हो, अलैंगिक जनन या अनिषेक जनन कहलाता है। इसमें जनन कोशिकाओं (यूग्मकों) का निर्माण एवं संलयन नहीं होता है। यह जनन प्रायः निम्न श्रेणी के जीवों जैसे—अकोशिकीय जीव, सरल पादप एवं जंतुओं में होता है। , प्रकार : यह द्विविभाजन, बहुविभाजन, मुकुलन, बीजाणु जनन, खंडी भवन एवं पुनरुद्भवन विधि द्वारा सम्पन्न होता है। लाभ : नवजात संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है एवं इसका दर तीव्र होता है तथा सभी संतति सभी गुणों में एक-दूसरे के सामन होती है। 12. जनन की परिभाषा लिखिए। जीवधारियों में दो प्रकार के जनन कौन-कौन से हैं? उत्तर -जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपने ही प्रकार के नए जीवो को पैदा कर सकता है। प्राणी दो प्रकार से जनन करते हैं— अलैंगिक तथा लैंगिक । 13. युग्मज किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ? उत्तर- शुक्राणु द्वारा अण्डे का निषेचन होने पर युग्मज (zygote) बन जाता है। इस युग्मज में बार-बार विभाजन होकर एक भ्रूण बन जाता है। भ्रूणपोष केन्द्रक में वृद्धि होकर बीज का भ्रूणपोष बन जाता है। उचित समय पर अण्डे के साथ शुक्राणु का जब वहन फैलोपियन नलिका में होता है उस समय मिलन होने पर दोनों के संलयन द्वारा युग्मज बनता है । 14. निषेचन से आप क्या समझते हैं ? उत्तर—शुक्राणु तथा अण्ड के केन्द्रकों के संयुग्मन को निषेचन (fertilisation) कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। प्रत्येक युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या (2n) होती है, क्योंकि प्रत्येक युग्मक (gamete) में गुणसूत्रों की संख्या केवल (n) होती है । जनक कोशिकाएँ एक विशेष प्रकार का अर्द्धसूत्री विभाजन करती हैं जिसमें सभी गुणसूत्र अण्ड कोशिका में आ जाते हैं, पोलर बॉडी में नहीं जाते। अण्ड कोशिकाएँ मादा के शरीर में ही विकसित होती है और मादा ही बच्चों को जन्म देती है 15. मानव प्रजनन से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर- मनुष्य एकलिंगी (unisexual) होता है अर्थात् नर और मादा जनन अंग अलग-अलग होते हैं। जिस मानव में नर जननांग होते हैं उसे पुरुष तथा जिनमें मादा जननांग होते हैं उसे स्त्री कहते हैं। मनुष्य में लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पायी जाती है अर्थात् मानव की आकारिकी देखकर ही पुरुष तथा स्त्री को पहचाना जा सकता है। स्त्री में वुल्बा (vulva), लेबिया मेजोरा (labia majora), लेबिया माइनोरा (labia minora), क्लाइटोरिस (clitoris) तथा सुविकसित स्तन होते हैं। इनकी आवाज पतली होती है। पुरुष में शिश्न (penis) तथा एक जोड़ी वृषण (scrotal sacs) होते हैं और परिपक्व होने पर दाढ़ी तथा मूँछ निकल आती हैं इनकी आवाज भारी होती है। मनुष्य में अण्डे का भूणीय विकास गर्भाशय में ही होता है। ये जरायुज (viviparous) होते हैं अर्थात् सीधे शिशु को जन्म देते हैं। 16. वीर्य (Semen) क्या है ? इसके क्या-क्या कार्य है ? उत्तर—सम्भोग के समय जब पुरुष चरम सीमा के आनन्द का अनुभव करता है तब उसके शिश्न मुख से एक सफेद तरल पदार्थ योनि में छोड़ दिया जाता है। इस तरल पदार्थ को ही वीर्य कहते हैं। वीर्य में उपग्रंथियों का स्राव, म्यूकस तथा शुक्राणु होते हैं । वीर्य के कार्य (Functions of Semen): (1) वीर्य एक तरल माध्यम का कार्य करता है जिससे शुक्राणु स्त्री की योनि में सुरक्षित स्थानान्तरित किये जा सके। (2) यह शुक्राणुओं का पोषण करता है और उन्हें सक्रिय करता है, और इस प्रकार शुक्राणु चलायमान रहते हैं। (3) क्योंकि यह क्षारीय होता है इसलिए यह नर की यूरेधा तथा मादा की योनि में मूत्र की अम्लीयता को कम करता (4) उपग्रंथियों के स्राव से योनि मार्ग सिकता और नम हो जाता है जिससे मैथुन में सुविधा होती है। 17. पुरुष में यौवनारम्भ से आप क्या समझते हैं ? उत्तर—जब नर जननांग अपना कार्य करना शुरू करते हैं तो इसbअवस्था को यौवनारम्भ (puberty) कहते हैं। यह सामान्यतया 13-14 वर्ष की आयु में होती है। यौवनारम्भ होते ही वृषण टेस्टोस्टीरोन हार्मोन (testosterone hormone) उत्पन्न करने लगते हैं, जो वृद्धि तथा गौण लैंगिक अंगों की परिपक्वता का नियमन करता है। पुरुष के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters (of Man) : (1) कन्धे चौड़े हो जाते हैं। (2) माँसपेशियों की वृद्धि होने से शरीर सुडौल तथा ताकतवर हो जाता है। (3) वृद्धि के कारण लम्बाई बढ़ती है। (4) चेहरे पर बाल (मूँछ तथा दाढ़ी) निकल आते हैं। (5) बगलों में तथा शिश्न व वृषण कोष के चारों ओर बाल आ जाते हैं। (6) आवाज भारी हो जाती है। 18. पुरुष की लैंगिक क्रिया (Man's Sex Action) से आपका क्या तात्पर्य है ?. उत्तर - पुरुष की लैंगिक क्रिया (Man's Sex Action ) – सभी स्थलीय प्राणियों में आन्तरिक निषेचन (internal fertilization) ही होती है। इन प्राणियों में आन्तरिक निषेचन मैथुन द्वारा ही सम्भव होता है। मैथुन क्रिया के समय शिश्न के इरेक्टाइल ऊत्तक में रुधिर दाब बढ़ जाता है क्योंकि पराअनुकम्पी तंत्रिका तंत्र द्वारा इसकी शिरायें सिकुड़ती है और धमनिकायें फूलती हैं। इसके फलस्वरूप शिश्न मोटा हो जाता है और दृढ़ बन जाता है। अब इस स्थिति में शिश्न योनि में प्रवेश कराया जाता है। इस अवस्था में लयमय घर्षण के फलस्वरूप शिश्न के शीर्ष पर स्थित संवेदी कोशिकायें स्पर्श से उत्तेजित होती है जिसके फलस्वरूप पुरुष के मूत्राशय का भीतरी स्फिक्टर (internal sphincter) बन्द हो जाता है तथा साथ ही एपिडिडाइमिस शुक्रवाहिनी (vas-deferens), उपग्रंथियों, सैमिनल वेसिकिल्स तथा प्रोस्ट्रेट सिकुड़ते हैं। यह सब सामूहिक रूप से वीर्य निकालते हैं, जो स्त्री की जनन नलिकाओं में दूर तक चला जाता है। वीर्य स्खलन, मैथुन की चरम सीमा पर पहुँचने से होता है। स्खलन के पश्चात् धमनिकायें सिकुड़ती है, रुधिर दाब कम हो जाता है और इस प्रकार शिश्न सिकुड़ जाता है। 19. स्त्रियों में यौवनारम्भ (Puberty in Women) से आप क्या समझते हैं ? उत्तर-मादाओं में भी जब मादा जनन अंग अपना कार्य करना आरम्भ करते हैं तभी यौवनारम्भ होता है। यह प्रायः 11-14 वर्ष की आयु में होता है। स्त्रियों में एक मादा जनन-चक्र होता है जिसकी अवधि लगभग 28 दिन होती है। इन 28 दिनों में स्त्रियों में जननांगों की रचना तथा कार्यों में अनेक परिवर्तन होते हैं, इसे आर्तव चक्र (menstrual cycle) कहते हैं। आर्तव चक्र का नियमन अण्डाशय द्वारा स्रावित हॉर्मोनों द्वारा होता है जिनका स्वयं नियमन पीयूष ग्रंथि द्वारा प्रावि गोनैडोट्रापिनो द्वारा होता है। इनके कारण ही स्त्रियों में गौण लैंगिक लक्षण प्रदर्शित होते हैं। स्त्रियों के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters in Women) : (1) स्तनों की वृद्धि तथा विकास होता है। (2) बाह्य जननांग भी पूर्णतया विकसित होते हैं । (3) श्रोणिमेखला तथा नितम्ब चौड़े हो जाते हैं । (4) बगल में तथा वुल्बा के चारों ओर बाल निकल आते हैं। (5) जाँघों तथा नितम्बों पर अधोत्वचीय वसा विकसित होती है। (6) आर्तव चक्र मासिक प्रारम्भ हो जाता है । जीवाणुभोजी के लाइटिक चक्र का वर्णन करें। उत्तर- जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र-जीवाणुभोजी एक वायरस है, इसमें लाइटिक चक्र होता है। इसे जीवाणुभोजी का प्रजनन चक्र भी कहा जाता है। इसमें वायरस जब जीवाणु की कोशिका पर आक्रमण करता है और वायरस अपने आनुवांशिक पदार्थ DNA के जीवाणु के कोशिका में प्रवेश करता है तथा इसके DNA को नष्ट कर वायरस अपने DNA से जीवाणुभोजी का संख्या में वृद्धि करता है तथा जीवाणु के कोशिका भित्ति को फाड़ कर बाहर निकलता है, इसे ही जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र कहा जाता है। यह छह (6) चरण में सम्पन्न होता है : (a) अटैचमेंट — इसमें वायरस, जीवाणु के कोशिश से जुड़ जाता है । (b) प्रवेश - वायरस अपने DNA को जीवाणु कोशिका में प्रवेश कराता है । (c) प्रतिलेखन - वायरस अपनी संख्या को जीवाणु के कोशिका में जैवसंश्लेषण करता है । (d) बायोसिंथेसिस - जीवाणु के कोशिका में नए DNA तथा प्रोटीन का संश्लेषण करता है । (e) परिपक्वता - वायरस अपने शरीर को विकसित करता है । (f) लसीका (Lysis) - नवगठित फेज संक्रमित कोशिका को फाड़ कर मुक्त हो जाते हैं ताकि संक्रमित करने के लिए नई जीवाणु की तलाश करता है । इस प्रकार जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र पूर्ण होता है ।


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1. रजोनिवृत्ति (Menopause) किसे कहते हैं ? उत्तर- स्त्रियों में लगभग 40 वर्ष की आयु में मदचक्र अनियमित हो जाता है और धीरे-धीरे या अचानक समाप्त हो जाता है। यह स्थिति एस्ट्रोजन की कमी के कारण उत्पन्न होती है। रजोनिवृत्ति के पश्चात् स्त्रियाँ गर्भधारण करने में असमर्थ होती हैं इसलिए प्रजनन क्षमता भी समाप्त हो जाती है। इसके ठीक विपरीत पुरुष में शुक्राणु निर्माण अन्तिम समय तक होता रहता है किन्तु उसकी मैथुन क्षमता आयु के साथ-साथ कम होती जाती है। 2. शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानताएँ बताइए उत्तर- शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानताएँ :(1) दोनों ही क्रियाओं में जनन एपिथेलीयम ( germinal epithelium) की कोशिकाओं का विभाजन होता है। (2) दोनों ही क्रियाओं में तीन प्रावस्थाएँ होती हैं (i) गुणन प्रावस्था (multiplication phase) (ii) वृद्धि प्रावस्था (growth phase) (iii) परिपक्वन प्रावस्था (maturation phase) (3) दोनों में ही, गुणन प्रावस्था में, समसूत्री विभाजन होता है। (4) वृद्धि अवस्था में कोशिकाओं की वृद्धि होती है और पोषण तत्वों को संचित करती है । (5) दोनों ही में परिपक्वन अवस्था में पहला विभाजन अर्द्धसूत्री तथा दूसरा समसूत्री होता है। (6) दोनों की अंतिम अवस्था अगुणित गैमीट का निर्माण होता है। 3. मानव निषेचन पर टिप्पणी लिखिए । उत्तर- निषेचन (Fertilisation) सभी स्तनियों में मैथुन (copulation) होता है, जिसके फलस्वरूप शुक्राणुओं (sperms) का स्थानांतरण योनि (vagina) में होता है । तत्पश्चात् शुक्राणु गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन नलिकाओं में जाते हैं। अण्डोत्सर्ग क्रिया के फलस्वरूप अण्ड देहगुहा में छोड़ दिये जाते हैं, जहाँ से ये ऑस्टियम फैलोपियन (ostium fallopian) द्वारा फैलोपियन नलिका में पहुँचते हैं। यहाँ पर इन्हें शुक्राणु घेर लेते हैं और फिर केवल एक शुक्राणु गर्भाधान में सफल होता है। निषेचन की क्रिया एक्रोसोम (acrosome) द्वारा स्रावित एन्जाइम हायलुरॉनिडेज (hyaluronidase) द्वारा सम्भव होती है, क्योंकि यह एन्जाइम म्युकस तथा अण्डकला को घुला देता है, जिससे शुक्राणु को अण्ड के जीव द्रव्य में से होकर केन्द्रक तक पहुँचने में सुगमता होती है। शुक्राणु तथा अण्ड के केन्द्रकों के संयुग्मन को निषेचन (fertilisation) कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। प्रत्येक युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या (2n) होती है, क्योंकि प्रत्येक युग्मक (gamete) में गुणसूत्रों की संख्या केवल (n) होती है। 4. फफूँद (फंजाई) जगत के पौधों में अलैंगिक जन्म किस प्रकार से होता है ? उत्तर—फफूँद जगत के पौधों में अलैंगिक जनन कुछ अलैंगिक जननीय संरचनाओं द्वारा होता है यथा- पैनसिलियम में यह कोनिडिया के द्वारा, तो म्यूकर में अलैंगिक चल बीजाणु के द्वारा सम्पन्न होता है। 5. पादपों में कायिक प्रवर्धन किन संरचनाओं की मदद से होता है ? उत्तर - पादपों में कायिक प्रवर्धन कुछ खास प्रकार के संरचनाओं के द्वारा सम्पन्न होता है। यथा—उपरिभूस्तारी, प्रकन्द, भूस्तरी, बल्व इत्यादि । 6. अलैंगिक जनन मुकुलन से आप क्या समझते हैं ? उत्तर- इस प्रकार के जनन में जनक के शरीर में कोई बल्ब सरीखी प्रवर्ध निकल आती है जिसे मुकुल कहते हैं, और फिर यह मुकुल टूटकर जनन के शरीर से अलग हो जाती है जो स्वतंत्र जीव बनाती है। 7. मदचक्र तथा ऋतुस्राव चक्र के बारे में स्पष्ट करें उत्तर- जानवरों में जनन प्रावस्था के दौरान अपरास्तनी मादा अंडाशय की सक्रियता में चकित तथा सहायक वाहिका और हॉर्मोन्स में परिवर्तन आने लगते हैं। नॉन प्राइमेट स्तनधारियों, जैसे—गाय, भेड़, कुत्ता, चूहा, बाघ इत्यादि में जनन के दौरान ऐसे चक्रिय परिवर्तन होते हैं, इन्हें मदचक्र (ओएस्ट्स साइकिल) कहते हैं। प्राइमेटो जैसे—बन्दर, गोरीला, ऐप्स एवं मनुष्य में यह ऋतुस्राव चक्र कहलाता है। प्राकृतिक रूप में वनो में रहने वाले अधिकांश स्तनधारी अपने जनन प्रावस्था के दौरान अनुकूल परिस्थितियो में ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं। इसी कारणों से इन्हें ऋतुनिष्ठ अथवा मौसमी प्रजनन कहते हैं। 11. जीवों में अलैंगिक जनन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। अथवा, अनिषेक जनन पर टिप्पणी लिखें। उत्तर- जीवों के प्रजनन की वह विधि जिसमें एक जनक से नई व्यष्टि का जन्म होता हो, अलैंगिक जनन या अनिषेक जनन कहलाता है। इसमें जनन कोशिकाओं (यूग्मकों) का निर्माण एवं संलयन नहीं होता है। यह जनन प्रायः निम्न श्रेणी के जीवों जैसे—अकोशिकीय जीव, सरल पादप एवं जंतुओं में होता है। , प्रकार : यह द्विविभाजन, बहुविभाजन, मुकुलन, बीजाणु जनन, खंडी भवन एवं पुनरुद्भवन विधि द्वारा सम्पन्न होता है। लाभ : नवजात संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है एवं इसका दर तीव्र होता है तथा सभी संतति सभी गुणों में एक-दूसरे के सामन होती है। 12. जनन की परिभाषा लिखिए। जीवधारियों में दो प्रकार के जनन कौन-कौन से हैं? उत्तर -जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपने ही प्रकार के नए जीवो को पैदा कर सकता है। प्राणी दो प्रकार से जनन करते हैं— अलैंगिक तथा लैंगिक । 13. युग्मज किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ? उत्तर- शुक्राणु द्वारा अण्डे का निषेचन होने पर युग्मज (zygote) बन जाता है। इस युग्मज में बार-बार विभाजन होकर एक भ्रूण बन जाता है। भ्रूणपोष केन्द्रक में वृद्धि होकर बीज का भ्रूणपोष बन जाता है। उचित समय पर अण्डे के साथ शुक्राणु का जब वहन फैलोपियन नलिका में होता है उस समय मिलन होने पर दोनों के संलयन द्वारा युग्मज बनता है । 14. निषेचन से आप क्या समझते हैं ? उत्तर—शुक्राणु तथा अण्ड के केन्द्रकों के संयुग्मन को निषेचन (fertilisation) कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। प्रत्येक युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या (2n) होती है, क्योंकि प्रत्येक युग्मक (gamete) में गुणसूत्रों की संख्या केवल (n) होती है । जनक कोशिकाएँ एक विशेष प्रकार का अर्द्धसूत्री विभाजन करती हैं जिसमें सभी गुणसूत्र अण्ड कोशिका में आ जाते हैं, पोलर बॉडी में नहीं जाते। अण्ड कोशिकाएँ मादा के शरीर में ही विकसित होती है और मादा ही बच्चों को जन्म देती है 15. मानव प्रजनन से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर- मनुष्य एकलिंगी (unisexual) होता है अर्थात् नर और मादा जनन अंग अलग-अलग होते हैं। जिस मानव में नर जननांग होते हैं उसे पुरुष तथा जिनमें मादा जननांग होते हैं उसे स्त्री कहते हैं। मनुष्य में लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पायी जाती है अर्थात् मानव की आकारिकी देखकर ही पुरुष तथा स्त्री को पहचाना जा सकता है। स्त्री में वुल्बा (vulva), लेबिया मेजोरा (labia majora), लेबिया माइनोरा (labia minora), क्लाइटोरिस (clitoris) तथा सुविकसित स्तन होते हैं। इनकी आवाज पतली होती है। पुरुष में शिश्न (penis) तथा एक जोड़ी वृषण (scrotal sacs) होते हैं और परिपक्व होने पर दाढ़ी तथा मूँछ निकल आती हैं इनकी आवाज भारी होती है। मनुष्य में अण्डे का भूणीय विकास गर्भाशय में ही होता है। ये जरायुज (viviparous) होते हैं अर्थात् सीधे शिशु को जन्म देते हैं। 16. वीर्य (Semen) क्या है ? इसके क्या-क्या कार्य है ? उत्तर—सम्भोग के समय जब पुरुष चरम सीमा के आनन्द का अनुभव करता है तब उसके शिश्न मुख से एक सफेद तरल पदार्थ योनि में छोड़ दिया जाता है। इस तरल पदार्थ को ही वीर्य कहते हैं। वीर्य में उपग्रंथियों का स्राव, म्यूकस तथा शुक्राणु होते हैं । वीर्य के कार्य (Functions of Semen): (1) वीर्य एक तरल माध्यम का कार्य करता है जिससे शुक्राणु स्त्री की योनि में सुरक्षित स्थानान्तरित किये जा सके। (2) यह शुक्राणुओं का पोषण करता है और उन्हें सक्रिय करता है, और इस प्रकार शुक्राणु चलायमान रहते हैं। (3) क्योंकि यह क्षारीय होता है इसलिए यह नर की यूरेधा तथा मादा की योनि में मूत्र की अम्लीयता को कम करता (4) उपग्रंथियों के स्राव से योनि मार्ग सिकता और नम हो जाता है जिससे मैथुन में सुविधा होती है। 17. पुरुष में यौवनारम्भ से आप क्या समझते हैं ? उत्तर—जब नर जननांग अपना कार्य करना शुरू करते हैं तो इसbअवस्था को यौवनारम्भ (puberty) कहते हैं। यह सामान्यतया 13-14 वर्ष की आयु में होती है। यौवनारम्भ होते ही वृषण टेस्टोस्टीरोन हार्मोन (testosterone hormone) उत्पन्न करने लगते हैं, जो वृद्धि तथा गौण लैंगिक अंगों की परिपक्वता का नियमन करता है। पुरुष के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters (of Man) : (1) कन्धे चौड़े हो जाते हैं। (2) माँसपेशियों की वृद्धि होने से शरीर सुडौल तथा ताकतवर हो जाता है। (3) वृद्धि के कारण लम्बाई बढ़ती है। (4) चेहरे पर बाल (मूँछ तथा दाढ़ी) निकल आते हैं। (5) बगलों में तथा शिश्न व वृषण कोष के चारों ओर बाल आ जाते हैं। (6) आवाज भारी हो जाती है। 18. पुरुष की लैंगिक क्रिया (Man's Sex Action) से आपका क्या तात्पर्य है ?. उत्तर - पुरुष की लैंगिक क्रिया (Man's Sex Action ) – सभी स्थलीय प्राणियों में आन्तरिक निषेचन (internal fertilization) ही होती है। इन प्राणियों में आन्तरिक निषेचन मैथुन द्वारा ही सम्भव होता है। मैथुन क्रिया के समय शिश्न के इरेक्टाइल ऊत्तक में रुधिर दाब बढ़ जाता है क्योंकि पराअनुकम्पी तंत्रिका तंत्र द्वारा इसकी शिरायें सिकुड़ती है और धमनिकायें फूलती हैं। इसके फलस्वरूप शिश्न मोटा हो जाता है और दृढ़ बन जाता है। अब इस स्थिति में शिश्न योनि में प्रवेश कराया जाता है। इस अवस्था में लयमय घर्षण के फलस्वरूप शिश्न के शीर्ष पर स्थित संवेदी कोशिकायें स्पर्श से उत्तेजित होती है जिसके फलस्वरूप पुरुष के मूत्राशय का भीतरी स्फिक्टर (internal sphincter) बन्द हो जाता है तथा साथ ही एपिडिडाइमिस शुक्रवाहिनी (vas-deferens), उपग्रंथियों, सैमिनल वेसिकिल्स तथा प्रोस्ट्रेट सिकुड़ते हैं। यह सब सामूहिक रूप से वीर्य निकालते हैं, जो स्त्री की जनन नलिकाओं में दूर तक चला जाता है। वीर्य स्खलन, मैथुन की चरम सीमा पर पहुँचने से होता है। स्खलन के पश्चात् धमनिकायें सिकुड़ती है, रुधिर दाब कम हो जाता है और इस प्रकार शिश्न सिकुड़ जाता है। 19. स्त्रियों में यौवनारम्भ (Puberty in Women) से आप क्या समझते हैं ? उत्तर-मादाओं में भी जब मादा जनन अंग अपना कार्य करना आरम्भ करते हैं तभी यौवनारम्भ होता है। यह प्रायः 11-14 वर्ष की आयु में होता है। स्त्रियों में एक मादा जनन-चक्र होता है जिसकी अवधि लगभग 28 दिन होती है। इन 28 दिनों में स्त्रियों में जननांगों की रचना तथा कार्यों में अनेक परिवर्तन होते हैं, इसे आर्तव चक्र (menstrual cycle) कहते हैं। आर्तव चक्र का नियमन अण्डाशय द्वारा स्रावित हॉर्मोनों द्वारा होता है जिनका स्वयं नियमन पीयूष ग्रंथि द्वारा प्रावि गोनैडोट्रापिनो द्वारा होता है। इनके कारण ही स्त्रियों में गौण लैंगिक लक्षण प्रदर्शित होते हैं। स्त्रियों के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters in Women) : (1) स्तनों की वृद्धि तथा विकास होता है। (2) बाह्य जननांग भी पूर्णतया विकसित होते हैं । (3) श्रोणिमेखला तथा नितम्ब चौड़े हो जाते हैं । (4) बगल में तथा वुल्बा के चारों ओर बाल निकल आते हैं। (5) जाँघों तथा नितम्बों पर अधोत्वचीय वसा विकसित होती है। (6) आर्तव चक्र मासिक प्रारम्भ हो जाता है । जीवाणुभोजी के लाइटिक चक्र का वर्णन करें। उत्तर- जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र-जीवाणुभोजी एक वायरस है, इसमें लाइटिक चक्र होता है। इसे जीवाणुभोजी का प्रजनन चक्र भी कहा जाता है। इसमें वायरस जब जीवाणु की कोशिका पर आक्रमण करता है और वायरस अपने आनुवांशिक पदार्थ DNA के जीवाणु के कोशिका में प्रवेश करता है तथा इसके DNA को नष्ट कर वायरस अपने DNA से जीवाणुभोजी का संख्या में वृद्धि करता है तथा जीवाणु के कोशिका भित्ति को फाड़ कर बाहर निकलता है, इसे ही जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र कहा जाता है। यह छह (6) चरण में सम्पन्न होता है : (a) अटैचमेंट — इसमें वायरस, जीवाणु के कोशिश से जुड़ जाता है । (b) प्रवेश - वायरस अपने DNA को जीवाणु कोशिका में प्रवेश कराता है । (c) प्रतिलेखन - वायरस अपनी संख्या को जीवाणु के कोशिका में जैवसंश्लेषण करता है । (d) बायोसिंथेसिस - जीवाणु के कोशिका में नए DNA तथा प्रोटीन का संश्लेषण करता है । (e) परिपक्वता - वायरस अपने शरीर को विकसित करता है । (f) लसीका (Lysis) - नवगठित फेज संक्रमित कोशिका को फाड़ कर मुक्त हो जाते हैं ताकि संक्रमित करने के लिए नई जीवाणु की तलाश करता है । इस प्रकार जीवाणुभोजी का लाइटिक चक्र पूर्ण होता है ।


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2. पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन (SEXUAL REPRODUCTION IN FLOWERING PLANTS) 1. पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर को नामांकित चित्र द्वारा परिभाषित करें । उत्तर पुंकेसर (Stamen) – पुमंग फूल की नर जनन-भ्रम (male reproduction whorl) होता है और पुंकेसरों (stamens) से मिलकर बनता है। प्रत्येक पुंकेसर तीन भागों से मिलकर बना होता है— पुंतंतु (filament), योजी (connective) तथा परागकोष (anther) । पुंतंतु एक पतला-सा डंठल होता है जिसके अंतिम सिरे पर एक संरचना होती है जिसे परागकोष कहते हैं। तंतु का दूसरा छोर पुष्प के पुष्पासन या पुष्पदल से जुड़ा होता है। पुंकेसरों की संख्या तथा उनकी लंबाई अलग-अलग प्रजातियों के पुष्पों में भिन्न होती है स्त्रीकेसर (Pistil ) — जायांग पुष्प का मादा जननांग होता है। इससे नीचे का फूला हुआ भाग अंडाशय (ovary) कहलाता है। इससे जुड़ी हुई एक पतली नलिकाकार रचना होती है जिसे वर्तिका (style) कहते हैं। वर्तिका के ऊपर घुंडी जैसी एक रचना होती है जिसे वर्तिकाग्र (stigma) कहा जाता है। बहुत-से अंडप (carpel) मिलकर जायांग (gynoecium) बनाते हैं । Q कूट फल के बारे में उदाहरण सहित लिखें। उत्तर- वह फल जिसका विकास अण्डाशय से न होकर पुष्प भागों से होता है, कूट फल कहलाता है। जैसे नाशपाती, सेव आदि। Q. वैगिंग (बोरा वस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ? उत्तर—बैगिंग (बोरा वस्त्रावरण) या थैली लगाना एक कृत्रिम संकरीकरण विधि है। फसल की उन्नति या प्रगतिशीलता कार्यक्रम के लिए एक प्रमुख उपागम है। विषुसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की थैली से आवृत्त किया जाना चाहिए जो सामान्यतः बटर पेपर (पतले कागज) की बनी होती है। ताकि इसके वर्तिकाम को अवांछित परागों से बचाया जा सके। इस प्रक्रम को बैगिंग (या बोरा वस्त्रावरण) कहते हैं। जब बैगिंग पुष्प का वर्तिकाग्र सुग्राह्यता को प्राप्त करता है तब नर अभिभावक से संग्रहीत परागकोश के पराग को उस पर छिटका जाता है और उस पुष्प को पुनः आवरित करके, उसमें फल विकसित होने के लिए छोड़ दिया जाता है। Q. विपुसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ? उत्तर – यदि कोई मादा जनक द्विलिंगी पुष्प धारण करता है तो पराग प्रस्फुटन से पहले पुष्प कलिका से परागकोश के निष्कासन हेतु एक जोड़ा के चिमटी का प्रयोग आवश्यक होता है। इस चरण को विंपुसन कहा जाता है। विषुसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की थैली से आवृत्त किया जाना चाहिए जो सामान्यतः बटर पेपर की बनी होती है। ताकि इसके वर्तिकाम को अवांछित परागों से बचाया जा सके। इस प्रक्रम को बैगिंग कहते हैं। यह तकनीक बढ़िया किस्म के पादप प्राप्त करने के लिए व्यापक रूप से व्यापारिक पादप पुष्प उत्पादन करने वाले लोगों द्वारा अपनाई जा रही है। Q. निम्नलिखित की परिभाषा लिखिए:(1) स्वपरागया, (ii) परपरागण | उत्तर- (1) स्वपरागण – यदि एक फूल के परागकोश से निकले परागकण उसी फूल के वर्तिकाम पर पहुँच जाए, तब इसे स्वपरागण कहते हैं। (ii) परपरागण -जब किसी पौधे के परागकोश से निकले परागकण उसी स्पीशीज के अन्य पौधे के वर्तिकाम पर पहुँचते हैं, तब इसे परपरागण कहते हैं। Q. एक सेव को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा आग फल की रचना करता है ? अथवा, आभासी फल या असत्य फल को परिभाषित करें। उत्तर—कुछ प्रजातियों में जैसे सेब, स्ट्राबेरी (रसभरी), अखरोट आदि में फल की रचना में पुष्पासन भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। इस प्रकार के फलों को आभासी फल कहते हैं। अधिकतर फल केवल अण्डाशय से विकसित होते है और उन्हें यथार्थ या वास्तविक फल कहते हैं। Q. द्विनिषेचन (Double fertilization) से आप क्या समझते हैं ? उत्तर—प्रत्येक परागकण में दो पुंयुग्मक होते हैं। ये बीजांड-द्वार से भ्रूणकोश तक पहुँचते हैं। पुंयुग्मकों में से एक अण्ड के साथ संलयित होकर युग्मज का निर्माण करता है। इसे युग्मक-संलयन (syngamy) कहते हैं। दूसरा पुंयुग्मक द्वितीय द्विगुणित केन्द्रक से संलयित होकर त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है जिसे त्रिसंलयन कहते हैं। इस प्रकार एक भ्रूणकोश में दो लैंगिक संलयन संपन्न होते हैं। इस घटना को द्विनिषेचन कहते हैं। Q. कीट परागण वाले पौधों की विशेषताएँ लिखें। उत्तर-कीट परागित पौधों की निम्न विशेषताएँ होती हैं— (i) पुष्प बड़े, रंगयुक्त तथा आकर्षक होते हैं। (ii) पुष्प की पंखुड़ियाँ बड़ी होती हैं। छोटी होने की स्थिति में पुष्प के अन्य भाग बड़े तथा आकर्षक हो जाते हैं। पोइनसेटिया की पत्तियाँ फूल वाले भाग में अंशतः या पूर्णतः रंगीन होते है। (iii) छोटे फूल एक-साथ गुच्छे में खिलते हैं या संयुक्त होकर एक सिर बनाते हैं। उदाहरण- सूर्यमुखी । (iv) इनके खिलने का एक खास वक्त होता है तभी परागणकर्त्ता भी उपस्थित रहता है। (v) इनसे मकरंद स्रावित होता है जो कीटों को पोषण देता है । (vi) परागकणों की बाह्य सतह काँटेदार, चिपकने वाली होती है जो परागकीट कहलाती है तथा कीटों में आसानी से चिपक जाती है । (vii) बहुत सारे फूलों के परागकण खाने योग्य होते हैं जिन्हें कीट खाते हैं। जैसे गुलाब, मैग्नोलिया । Q. त्रिसंलयन क्या है ? इस प्रक्रिया का अंतिम उत्पाद क्या होता है ? यह किस रूप में परिवर्धित होता है ? उत्तर - तीन केन्द्रकों का मिलना त्रिसंलयन है जो आवृत्तबीजों पौधों के पुष्पों में होते हैं। स्त्रीकेसर 8-केन्द्रक युक्त होते हैं। जिसमें भ्रूणपोष के बीच में दो ध्रुवीय केन्द्रक संयुक्त होकर द्विगुणित (2n) केन्द्रक बनाते हैं। दो पुंयुग्मकों में से एक अण्ड के साथ तथा दूसरा इस द्विगुणित केन्द्रक से संलयन कर (3n) त्रिकेन्द्रक युक्त रचना का निर्माण करता है । इसे ही त्रिसंलयन कहते हैं । त्रिसंलयन की प्रक्रिया के उपरांत त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है । प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका (3n) बारंबार सूत्री विभाजन कर भ्रूणपोष का निर्माण करती है। भ्रूणपोष विकसित होते ही भ्रूण तथा अंकुरण के दौरान नवोद्भिद् के निर्माण तक पोषण प्रदान करती है। चित्र: परिपक्व बीजांड की आंतरिक संरचना Q.मोनोकार्पिक फलों को लिखें। उत्तर—वह सत्य फल जिसका विकास एक कार्पेल से होता है, मोनोकार्पिक फल कहलाता है । Q. टेपीटम से आप क्या समझते हैं? उत्तर-पुष्पीय पौधों के लघुवीजाणुधानी के आंतरिक परत के रूप में टैपीटम पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ सघन जीवद्रव्य से भरी होती है साथ ही साथ ये द्विगुणीत होती है। इनका कार्य विकासशील परागकणों को पोषक देना है। Q.. पुष्पीय पौधों में फल का विकास कैसे होता है ? अथवा, फल किसे कहते हैं ? उत्तर - पुष्प में बीजाण्ड निषेचन के पश्चात् वह बीज (भ्रूण) में परिवर्तित होता है तथा अण्डाशय की भित्ति इन्हें चारों ओर से घेर लेती है, जिसे फल कहते हैं। Q. पूर्वता से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ बताइए। उत्तर-पूर्वता द्विलिंगी पुष्पों में पर परागण के लिए एक स्थिति है जिसमें नर जनन भाग (एंथर) मादा भाग (स्टिग्मा) से बहुत पहले परिपक्व होकर परागकणों को मुक्त कर पर परागण को उत्साहित करता है। लाभ-द्विलिंगी पुष्पों में स्वनिषेचन को रोककर विभिन्नता उत्पन्न करता है। Q. वायु परागण क्या है ? वायु परागित पुष्पों के गुणों का सोदाहरण वर्णन करें। उत्तर- वायु परागण इस प्रकार के परागण में हवा के झोके के साथ परागकण एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक पहुँचते हैं। वायु-परागित पुष्पों में आकर्षण, मकरग्रंथियों और सुगंध का अभाव होता है। इस कमी को पूरा करने के लिए फूलों में असंख्य परागकण बनते हैं। विशेषताएँ: (i) ये पुष्प भड़कीले नहीं होते हैं। (i) मकरग्रन्थियों और सुगंध का अभाव होता है। (iii) ये प्रायः छोटे होते हैं। (iv) परागकणों की संख्या अनगिनत होती है। (v) वर्तिकाग्र रोएँदार, पक्षवत और शाखित होता है। (vi) वायु परागित पौधों में मक्का, चावल, गेहूँ, घास, गन्ना, ताड़ आदि प्रमुख है। Q. एकल संकरण एवं द्विसंकरण में अंतर स्पष्ट करें। उत्तर- एक संकर क्रॉस-जब दो पौधों के बीच एक इकाई लक्षण के आधार पर संकरण कराया जाता है तो इसे एक संकर क्रॉस कहते है । द्विसंकर क्रॉस — जब दो विपरीत पौधों के बीच अलग लक्षण के आधार पर संकरण कराया जाता है तो इसे द्विसंकर क्रॉस कहते हैं। Q.वायुपरागित पुष्पों के अनुकूलन बताइए। उत्तर- कुछ फूलों में परागण की क्रिया वायु द्वारा होती है जिसे वायु परागण कहते हैं। ऐसे पुष्प जिनमें वायु द्वारा परागण होती है वायु परागित पुष्प कहते हैं। वायुपरागित पुष्पों के अनुकूलनः (i) ये पुष्प चटकीले तथा भड़कीले नहीं होते हैं। (ii) इसमें मकर ग्रंथियों और सुगंध का अभाव होता है (iii) ये पुष्प छोटे, रंगहीन, गंधहीन और आकर्षणहीन होते हैं। (iv) ये पुष्प हल्के तथा प्रायः चिकने होते हैं। Q. प्लाज्मिड क्या है ? प्लाज्मिड की संरचना तथा उपयोगिता संक्षेप में लिखें। उत्तर- यह जीवाणु कोशिका में उपस्थित बाह्य नाभिकीय छोटा एवं वर्तुलाकार डी.एन.ए. है जो कुछ एक्स्ट्रा क्रोमोजोमल जीन को धारण किए रहता है तथा स्वद्विगुणन क्षमताधारी होता है। जैसे—PBR-322, PUC-10 आदि। इनकी लम्बाई लगभग 2700 Pb होती है। इसमें द्विगुणन व उपस्थित स्थलन, सेलेव-टेबल मार्कर, क्लोनिंग केन्द्र नामक भाग होता हैं । Q. जन्तुओं द्वारा परागित किन्हीं चार पौधों के नाम जन्तुओं सहित बताएँ । उत्तर - जन्तुओं द्वारा परागित पौधें इस प्रकार से हैं. (i) प्राइमुला—इस पौधे में परागण मधुमक्खी के द्वारा होता है (ii) यक्का या अण्डफिल—इस पौधे में परागण प्रेनुबा नामक जीव के द्वारा होता है। (iii) मरमीको फिली—इस पौधे में परागण चीटियों के द्वारा होता है। (iv) मैलको फिलस— इस पौधे में परागण घोंघा के द्वारा होता है। Q. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें (i) वास्तविक या सत्य फल (ii) अनिषेचन जनित फल (iii) बहुभ्रूणता उत्तर :(i) जिस फल के निर्माण में उस फल के फूल के अण्डाशय ही भाग लेता है उस फल को वास्तविक या सत्य फल कहते हैं। जैसे - आम, अंगूर (ii) कुछ पौधों में निषेचन के बिना ही फल का निर्माण हो जाता है। ऐसे फल को अनिषेचन जनित फल कहते हैं। जैसे—केला, संतरा (iii) जब एक बीज के अन्दर एक से अधिक भ्रूण हो तो इस अवस्था को बहु भ्रूणता कहते हैं । जैसे— नींबू । Q.जलपरागण के बारे में उदाहरण सहित बतायें l उत्तर - जल द्वारा होने वाला परागण को जल परागण कहते है । हाइड्रिला तथा वेलिसनेरिया में जल परागण होता है । वेलिसनेरिया में नए पौधे तथा मादा पौधे अलग-अलग होते हैं, अर्थात् एकलिंगाश्रयी होते हैं। जब नर पुष्प परिपक्व हो जाते है तब वे पोधे से विच्छेदित होकर पानी पर तैरने लगते है। स्त्री पौधो में वृंत लंबाई में वृद्धि करके पुष्प को जल की सतह पर लाता है। नर पुष्प जैसे ही मादा के संपर्क में आता है, परागकोषों से परागकण निकलकर वर्तिकाग्र से चिपक जाते हैं और इस प्रकार पर-परागण हो जाता है। परागण के पश्चात् मादा पुष्पों के वृंत कुंडलित होकर फिर पानी में चले जाते हैं जहाँ बीज और फूलों का निर्माण होता है । Q. परागकण क्या है ? कायिक तथा जनन कोशिका में विभेद करें। (What is pollen grain ? Distinguish b/w vegetative and generative cell of pollen grain.) उत्तर - परागकण नर युग्मकोद्भिद को निरूपित करता है। यह बाहर से कठोर भित्ति से घिरा रहता है जिसे बाह्यचोल कहते हैं तथा आंतरिक भित्ति को अंतः चोल कहते हैं। परिपक्व परागकण में दो कोशिकाएँ होती हैं (i) कायिक कोशिका यह आकार में बड़ी तथा प्रचुर खाद्य भंडार युक्त होती है। (ii) जनन कोशिका यह आकार में छोटा तथा र्तुलाकार होती है। Q.परागण क्या है ? कुछ परागणी कारक के उदाहरण दें। (What is pollination? Give some examples of pollinating agents.) उत्तर - परागण एक प्रक्रम है जिसमें परागकणों का स्थानान्तरण या संचारण स्त्रीकेसर के वर्त्तिकाग्र तक होता है। यह विभिन्न परागणी कारक द्वारा होता है, जो 2 प्रकार के होते हैं - (a) अजैविक कारक : जैसे- वायु तथा जल (b) जैविक कारक: जैसे-मधुमक्खी, चमगादड़, पक्षी आदि । Q. Pollen Pistil interaction की क्रिया-विधि का वर्णन करें। (Give an account of pollen-pistil interaction.) उत्तर - परागण द्वारा यह सुनिश्चित नहीं हो पाता है कि सही प्रकार के परागकण का स्थानांतरण हो रहा है या नहीं । यदा-कदा गलत तरह का परागकण या तो दूसरी प्रजाति का या उसी पौधे का वर्त्तिकाग्र पर गिरते हैं । Pistil में परागकण को पहचानने की क्षमता होती है कि वह सही प्रकार का है या नहीं | Pistil परागकण को स्वीकार कर पश्च परागण की घटना को बढ़ावा देता है जो निषेचन कराता है। यदि गलत प्रकार का परागकण होता है, तो Pistil द्वारा परागकण को अस्वीकार कर दिया जाता है | Pistil का ब वह गुण जिससे वह खास प्रकार के परागकण को ग्रहण कर सके या अस्वीकार कर दे, यह परागकण एवं Pistil के बीच की सतह क्रियाविधि पर निर्भर करता है। यह परागकण में मौजूद रासायनिक घटकों द्वारा सम्पन्न होता है। Q. मोनोकार्पिक फल/पौधे को उदाहरण सहित परिभाषित करें। (Define Monocarpic fruits / plants with example.) उत्तर-ऐसे पौधे पूरे जीवन काल में सिर्फ एक बार ही पुष्पादन करता है तथा इसके बाद इनकी मौत हो जाती है। अतः ऐसे पौधे मोनोकार्पिक पौधे कहलाते हैं तथा इस फल को मोनोकार्पिक फल कहते हैं। सभी Annual (जैसे-गेहूँ, धान) पौधे तथा द्विवार्षिक पौधे (जैसे-मूली, गाजर) मोनोकार्पिक होते हैं तथा कुछ बहुवर्षीय पौधे भी मोनोकार्पिक होते हैं (जैसे-बाँस)। Q. जल परागण का वर्णन करें। इसके विभिन्न प्रकार को लिखें (Define Hydrophily. Write various types.) उत्तर- इसमें परागकण का स्थानांतरण किसी परिपक्व परागकोश से दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर जल द्वारा होता है। यह करीब 30 प्रजातियों के पौधों में होता है, विशेषकर एकबीजपत्री पौधों में, जैसे- बैलिसनेरिया, जोस्टेरा आदि । जल परागण दो प्रकार का होता है (a) Hypohydrophily - यह जल की सतह के नीचे होता है, जैसे जोस्टेरा । Q. कृत्रिम संकरण पर नोट लिखें। (b) Epihydrophily - जल की सतह पर होता है, जैसे—वैलिसनेरिया । (Write a note on Artificial Hybridisation.) उत्तर - कृत्रिम संकरण (Artificial hybridisation) फसल संवर्धन योजना का एक प्रमुख तकनीक है। इस तकनीक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि वांछित परागकण का उपयोग परागण के लिए किया जाय। साथ ही वर्तिकास को अवांछित परागकण के संक्रमण से बचाया जा सके। ऐसा विपुंसन तथा बैगिंग तकनीक से प्राप्त किया जा सकता है। यदि कोई मादा parents द्विलिंगी पुष्पवाला हो, तो पुष्प से परागकोष को अलग किया जाता है स्फुटीकरण से पहले। ऐसा एक जोड़ा चिमटा के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इस अवस्था को ही विपुंसन कहते हैं। विपुंसित पुष्प को एक खास आकार के थैला द्वारा ढँक दिया जाता है। ये थैला प्रायः बटर पेपर का बना होता है। इस क्रिया को बैगिंग कहते हैं। जब थैलावृत्त पुष्प का वर्तिकाग्र ग्रहण को प्राप्त करता है, तो परिपक्व परागकण का संग्रह जो Male parent से किया गया हो, वर्तिकाग्र पर dusted किया जाता है तथा पुष्प को पुनः बैगिंग कर विकसित होने के लिए छोड़ दिया जाता है। 14. एकलिंगता से क्या समझते हैं ? (What do you understand by Dicliny ?) उत्तर- एकलिंगी पुष्पों में पर-परागण ही होता है, अर्थात् एकलिंगाश्रयी (dioecious) पौधों में परागण का यही एक साधन है। उभयलिंगाश्रयी (monoecious) पौधों में पर-परागण असफल होने पर स्व-परागण होता है। पुष्प की इस अवस्था को गेटोनोगेमी (geitonogamy) तथा ऐसे पुष्पों को गेइटोनोगेमस (geitonogamous) पुष्प कहते हैं। Q. स्वयंबंध्यता से क्या समझते हैं (What do you understand by self-sterility ?) उत्तर- जब एक पुष्प के जायांग (gynoecium) का वर्त्तिकाग्र उसी पुष्प के परागकणों से परागित नहीं होता है तब इस अवस्था को स्वयंबंध्यता कहते हैं। आलू, मटर इत्यादि पौधे इसके प्रमुख उदाहरण हैं। Q. अंड समुच्चय क्या है? (What is Egg apparatus ? ) उत्तर- यह बीजांड द्वार (Micropyle) की ओर स्थित तीन कोशिकाओं का समूह है। इसमें बीच में अंड कोशिका (egg) होती है तथा उसके दोनों ओर एक-एक सहायक कोशिका (Synergid) पायी जाती है। अंड कोशिका में नीचे की ओर केन्द्रक होता है और ऊपर की ओर रिक्तियाँ होती हैं। सहाय कोशिका (Synergid) में अँगुलियों की तरह की रचनाएँ होती हैं, जिसे तंतुरूप समुच्चय (Fitiform apparatus) कहते हैं। सहायक कोशिका में केन्द्रक ऊपर की ओर तथा रिक्तिका नीचे की ओर होती है। एक भ्रूणकोष में केवल एक अंड होता है। Q. Autogamy पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on a autogamy.) उत्तर- यह एक प्रकार का स्व-परागण है जिसमें एक पूर्ण अथवा intersexual पुष्प का अपने ही परागकण द्वारा परागण होता है। यह तभी संभव है जब परागकोश एवं वर्त्तिकाग्र एक दूसरे के समीप हो तथा परागकण का निकलना एवं वर्तिकाग्र द्वारा ग्रहण करना एक साथ हो सके। यह तीन विधि से होता है - Homogamy Cleistogamy एवं कली - परागण । Q. लघु बीजाणुजनन से आप क्या समझते हैं ? (What do you understand by Microsporogenesis?) उत्तर- पराग मातृकोशिका से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा लघु-बीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को लघुबीजाणुजनन कहते हैं। जैसे-जैसे परागकोश विकसित होता है, बीजाणुजन ऊतकों की कोशिकाएँ अर्द्धसूत्री विभाजन करती हैं। वस्तुतः बीजाणुजनन कोशिकाएँ जब लघुबीजाणु मातृकोशिकाओं का कार्य करती है, तब उनमें अर्द्धसूत्री विभाजन होता है, जिसके फलस्वरूप चार अगुणित बीजाणु (Spores) बनते हैं। इसे ही लघुबीजाणु (Microspores) कहते हैं। ये चारों बीजाणु चतुष्कों में विन्यसित होते हैं। पेपर Class XII 2023 xual परागकोशात होती है, अतः प्रत्येक माओ अर्धसूत्रीविभाजन होता है, फलस्वरूप चारो लघुबीजाणु और परागकण निर्माण होता है, जो स्फुटन के साथ मुक्त होता है। (Outbreeding) की तकनीक का वर्णन करें। (Give मे Q. बहिपंजनन an account of outbreeding devices.) उत्तर- अधिकतर पुष्पी पौधों द्वारा उभयलिंगी पुष्प का उत्पादन होता है परागकण लगभग उसी पुष्प के वर्तिका के स्पर्श में होता है। सतत् स्व परागण के परिणामस्वरूप अंतः प्रजननी अवसाद होता है। पुष्णीय पौधों में स्वपरागण को रोकने के लिए कई तकनीक है तथा पर परागण को देता है। कुछ प्रजातियों में, परागकण का बाहर आना तथा वर्तिका की ही (Recaptivity) साथ-साथ नहीं हो पाता है। या तो पहले परागकण विमुक्त होता है या पहले ही होता है अथवा वर्तिका पराग के निकलने के बहुत पहले ही सही हो जाता है। दो प्रकार का तकनीक स्व को रोकने का काम करता है। स्वपरागण को रोकने का एक दूसरा तकनीक है। एकलिंगी पुष्प का उत्पादन। यदि किसी पौधे पर नर तथा मादा पुष्प मौजूद हो तो यह स्वगामी को रोकता है पर गीटोनोगैमी को नहीं। जैसे—रेंडी एवं मक्का । Q.गीटोनोमी पर टिप्पणी लिखे। (White a note on Geitonogamy.) उत्तर- यह एक प्रकार का परपरागण है जिसमें एक पुष्प का परागकण दूसरे पुष्प के वर्तिका पर स्थानांतरित होता है चाहे वह उसी पौधे के पुष्प हो या आनुवंशिक रूप से पीछे हो गीटोनोमी में पुष्प प्रायः रूपांतरण को प्रदर्शित करता है, जेनोगेमी या परपरागण की तरह ही । को Q आरेनोटोकी (Arrhenotoky) क्या है ? (What is Arrhenotoky ?) उत्तर- इस प्रकार के अनिषेकजनन में अंडों द्वारा सिर्फ नर संतति ही उत्पन्न होते हैं, जैसे-रॉटीफर्स, मधुमक्खी, टिड्डा आदि । Q. हरकोगेमी पर नोट लिखें।(Write a note on Herkogamy.) उत्तर - हकगेमी एक प्रकार का यांत्रिक तरीका है स्वपरागण को रोकने का तथा परपरागण को बढ़ावा देने का । केल्मिया में परागकोश कोरोला पॉकेट के अंदर होता है जबकि साइप्रीपेडियम में वर्तिकास कीट के प्रवेश मार्ग के पास तथा परागकण बहिर्भाग के पास होता है। कैलोट्रोपिस तथा ऑर्किड्स में परागकण परागपिंड में रहता है जो कीटों द्वारा भरा जाता है। Q.वायुपरागण (एनीमोफिलि) का वर्णन करें। (Define Anemophilly.) उत्तर- यह एक तरह का परपरागण है जिसमें एक परिपक्व परागकोश से परागकण की स्थानांतरण किसी Pistil के वर्तिका पर वायु के द्वारा हो, वायु परागण कहलाता है। जैसे-मक्का, नारियल, खजूर इत्यादि । Q. परी परागण पर टिप्पणी लिखें। (Write a note on Ornithophily.) ना उत्तर- यह एक प्रकार का एलोगेमी है जो पक्षी द्वारा संपन्न होता है। इसके लिए खास प्रकार की पक्षी होती है ये आकार में छोटा परंतु लंबी चोंच वाल 1 पक्षी है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं Sun birds जो कभी-कभी पुष्प पर ही आराम करते दिख जाते हैं। कुछ अन्य ऐसे पक्षी के उदाहरण हैं-कौआ, तोता एवं मैना। Q.वायु पराजित (Anemophily) पुष्पों के अनुकूलन बताइए। (Mention adaptations of Anemophily flowers.) उत्तर–सामान्यतः एकलिंगी यथा नारियल, खजूर, मक्का, घास इत्यादि की विभिन्न जातियों में परागण वायु द्वारा होता है। इनमें परागकण बड़ी संख्या सूक्ष्म, सपाट व शुष्क होते हैं। अतः वायु की दिशा में परागकण बहुत दूरी तक गति करते हैं। चीड़ के पंख युक्त परागकण जनक पादपों से कई से किलोमीटर दूर तक पाए जाते हैं। Q. पराग एलर्जी क्या है ? (What is Pollen allergy ?) उत्तर- विशेषकर वायु परागित प्रजाति में परागकण का उत्पादन वृहद् संख्या में होता है। ये हवा में तैरते रहते हैं तथा श्वासनली में प्रवेश कर जाता है। इससे कुछ व्यक्ति में एलर्जी हो जाता है जिसमें श्वास संबंधी विकार उत्पन्न हो जाता है, जैसे- राइनाइटिस, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस। परागकण एलर्जी के प्रमुख कारक हैं - Carrot grass पार्थेनियम। इसका प्रवेश भारत में दूषित गेहूँ के साथ हुआ तथा धीरे-धीरे समूचे देश में फैल गया। परागकण एलर्जी के अन्य स्रोत हैं चिनोपोडियम, अमरेंथस, शोरगम इत्यादि । Q.द्विनिषेचन से क्या समझते हैं ? (What do you understand by Double fertilization ?) - निषेचन की क्रिया में नरयुग्मक का अंड से मिलकर द्विगुणित उत्तर-1 युग्मनज ( diploid zygote) बनना तथा द्वितीयक केंद्रक का नरयुग्मक से संलयन द्विनिषेचन (double fertilization) कहलाता है। यह केवल आवृत्तबीजी पौधों में पाया जाता है। द्विनिषेचन की खोज Nawaschin ने 1898 में किया था Q. त्रिसंलयन (Triple fusion) किसे कहते हैं ? (What do you understand by Triple fusion ?) उत्तर- भ्रूणकोष (embryosac) के अंदर दूसरे नर युग्मक का केंद्रक द्वितीयक केंद्रक से संलयन कर प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (Primary endosperm nucleus) बनाता है। चूँकि इसमें तीन केंद्रकों का संलयन होता है (= दो पोलर केंद्रक तथा तीसरा नर युग्मक), अतः इसे त्रिसंलयन (Triple fusion) कहते हैं । Q.. दोहरे निषेचन के महत्त्व का वर्णन करें। (Describe the significance of Double fertilization.) उत्तर-द्विनिषेचन का आवृत्तबीजी पौधों में विशेष महत्त्व है। यदि पौधों में केवल संयुग्मन (Syngamy) हो और त्रिसंलयन (Triple fusion) नहीं हो तो भ्रूणपोष नहीं बनेगा। फलतः अविकसित भ्रूणवाला बीज बनेगा या बीज भ्रूणहीन होगा। Q.भ्रूण क्या है ? (What is embryo ? ) उत्तर-भ्रूण भ्रूणकोश या पुटी के बीजांड द्वारा सिरे पर विकसित होता है, जहाँ पर युग्मनज स्थित होता है। अधिकतर युग्मनज तब विभाजित होते हैं जब कुछ निश्चित सीमा तक भ्रूण पोष विकसित हो जाता है। युग्मनज प्राक्भ्रूण के रूप में वृद्धि करता है और इसके सापेक्ष ही गोलाकार, हृदयाकार तथा परिपक्व भ्रूण में वृद्धि करता है। एक प्रारूपी द्विबीजपत्री भ्रूण में एक भ्रूणीय अक्ष तथा दो बीजपत्र समाहित होते हैं। Q. केन्द्रकीय भ्रूणपोष से क्या समझते हैं ? (What do you understand by Nuclear endosperm ?) उत्तर- इस प्रकार के भ्रूणपोष में भ्रूणपोष केन्द्रक का विभाजन (free nulclear) होता है। इस प्रकार के विभाजन में केन्द्रकों के बीच मुक्त केन्द्रकीय भित्तियाँ नहीं बनती हैं। अंत में कोशिका-भित्तियों के बनने के कारण संपूर्ण भ्रूणपोष कोशिकीय (Cellular) हो जाता है। जैसे नारियल का भ्रूणपोष केन्द्रकीय होता है। इसे द्रव सिन्सीटियम (liquid syncytium) भी कहते हैं। Q. माध्यमिक/हेलोबियल भ्रूणपोष क्या है ? (What is Helobial endosperm ?) उत्तर- इस प्रकार के भ्रूणपोष में भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन के द्वारा दो कोशिकाएँ बनाती हैं उनमें एक बड़ी होती है तथा दूसरी छोटी बड़ी कोशिका को माइक्रोपाइलर चैम्बर (micropylar chamber) तथा छोटी को चैलेजल चैम्बर (chalazal chamber) कहते हैं। माइक्रोपाइलर चैम्बर के केन्द्रक में विभाजन के द्वारा मुख्य भ्रूणपोष बनता है। यह एकबीजपत्री पौधों के हेलोबी (Helobiae) समुदाय में पाया जाता है। Q. किसी आवृत्तबीजी पौधों में निषेचन का वर्णन करें। (Give an account of fertilization in plants.) (= Angiosperms) उत्तर - नर तथा मादा युग्मक के संलयन को निषेचन कहते हैं। बीज वाले पौधों में नर युग्मक को मादा गैमेटोफायट के अंडे के करीब परागनलिका द्वारा लाया जाता है। इस क्रिया को Siphonogamy कहते हैं। इसके द्वारा बड़ी संख्या में परागकण का अंकुरण वर्तिकाग्र के ऊपर होता है। सिर्फ इसका परागनलिका ही इस कार्य को करता है। परागनलिका अंतर्कोशिकीय तथा Chemotropically बढ़ता है कैल्सियम-बोरोन-आइनोसायटोल- शर्करा द्वारा संगठित जटिल रचना के संवेदीग्रहण द्वारा । परागण का स्थानांतरण परागनलिका में कायिक केंद्रक के अलावा दोनों युग्मक द्वारा होता है। उदाहरण सहित करें। न T न Q. मरो भेदी (Saprophytic) तथा युग्मीभेदी (Gametophytic) generations से क्या समझते हैं ? (What do you mean by Saprophytic and Gametophytic generations ? ) उत्तर -पौधों के जीवन चक्र में Alternation of generation होता है। 7 अगुणित बीजाणु द्वारा अर्द्धसूत्रीभाजन के पश्चात् अगुणित वंशज में निर्मित पादप निकाय तथा युग्मक से द्विगुणित युग्मज उत्पन्न होता है, जिसे गैमेटोफायट जेनेरेशन कहते हैं तथा ऐसे पादप निकाय को गैमेटोफायट कहते हैं। परन्तु निषेचन के बाद जाइगोट द्विगुणित वंशज से बना पादप निकाय अंतिम रूप से लघु बीजाणू तथा बृहद् बीजाणू बनाता है जिसे स्फोरोफायट वंशज कहते हैं। अतः किसी भी पौधें में स्फोरोफायट के मौजूदगी के बाद होता है। अतः इसे एकान्तर चक्र कहते हैं । Q. भ्रूणपोष की घटक कोशिकाओं का नाम दें। (Write the name of component cells of Endosperm.) उत्तर- भ्रूणपोष की घटक कोशिकाएँ निम्नलिखित हैं- (a) अंडा (b) सहायक कोशिका (77) (c) द्वितीयक केंद्रक (2n) (d) एन्टीपोडल कोशिका (n) । Q. अनिषेक फल क्या है ? इस प्रक्रिया से बने एक फल का नाम दें। (What is Pseudocarpic fruit? Write name of such a fruit.) उत्तर - यदि किसी फल का विकास बिना निषेचन के हो तो इसे अनिषेक फल कहते हैं, जैसे- अंगूर । Q.बहुभ्रूणता के कारण का वर्णन करें। (Describe the causes of Polyembryory.) उत्तर- बहुभ्रूणता के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं (i) जब बीजांड (ovule) में एक से अधिक भ्रूणकोष ( embryosac ) हों । (ii) जब भ्रूणकोष में एक से अधिक अंडकोशिका (egg cell) हों । (iii) जब निषेचन के पश्चात अंड कई छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो जाए तथा प्रत्येक भाग से एक भ्रूण का निर्माण हो । (iv) जब भ्रूण का निर्माण भ्रूण कोष की बाहरी कोशिकाओं से हो । Q. बहुभ्रूणता के महत्त्व का वर्णन करें ।(Describe the importance / significance of polyembryony.) उत्तर- (i) बहुभ्रूणता उद्यान वैज्ञानिकों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा एक ही तरह के पौधों का निर्माण किया जा सकता है। (ii) पुत्री - पौधों (daughter plants) में मातृ-पौधों के गुण विद्यमान रहते हैं।


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1.अण्डोत्सर्ग से आप क्या समझते हैं ? समझाएँ । Ans. अण्डोत्सर्ग वह प्रक्रिया है जिसमें अंडाशय से एक परिपक्व अंडा निकलता है। इसके जारी होने के बाद, अंडा फैलोपियन ट्यूब से नीचे चला जाता है और वहां 12 से 24 घंटे तक रहता है, जहां इसे निषेचित किया जा सकता है। 2.धुआँ तथा हाइड्रोकार्बन में अंतर स्पष्ट करें। Ans. धुआँ एक महीन ठोस पदार्थ है जो अधूरे जलने से बनता है जबकि हाइड्रोकार्बन शब्द एक कार्बनिक रासायनिक यौगिक को संदर्भित करता है जो विशेष रूप से हाइड्रोजन और कार्बन परमाणुओं से बना होता है। 3.क्रमिक विकास को परिभाषित करें। Ans. क्रमिक विकास किसी भी शुद्ध दिशात्मक परिवर्तन या कई पीढ़ियों में जीवों या आबादी की विशेषताओं में किसी भी संचयी परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जैसे की संशोधन के साथ वंश । 4.जीवों में लैंगिक जनन को सोदाहरण समझाएँ। Ans.जीवों में लैंगिक जनन विभिन्न लिंगों के दो व्यक्तियों की आनुवंशिक जानकारी के संयोजन से नए जीवों का उत्पादन हैं। आपको बता दे की सोदाहरण के तौर पे मनुष्य, फूल वाले पौधे, स्तनधारी, विभिन्न मछलियाँ और कीड़े जैसे जीव लैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। 5. स्व-स्थाने संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? Ans.एक लुप्तप्राय पौधे या पशु प्रजातियों को उसके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने की प्रक्रिया को आमतौर पर स्व-स्थाने संरक्षण के रूप में जाना जाता है। उदाहरण; राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, प्राकृतिक भंडार और जीवमंडल के भंडार । 6.किन्हीं दो जैव उर्वरकों के नाम बताएँ । Ans. जैव उर्वरक शब्द पौधों की वृद्धि के लिए जैविक उत्पत्ति (नाइट्रोजन यौगिकों का उत्पादन करने वाले रोगाणुओं) के सभी पोषक तत्वों को दर्शाता है। जैव उर्वरक ऐसे जीव हैं जो मिट्टी की पोषक गुणवत्ता को समृद्ध करते हैं। जैव उर्वरकों के मुख्य स्रोत बैक्टीरिया, कवक और सायनोबैक्टीरिया (नीला-हरा शैवाल) हैं। जैसे: एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । Or एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । 7.मानव अण्ड कोशिका का सुन्दर नामांकित चित्र दर्शाएँ। Ans. 8. निम्नांकित बीमारियों के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम लिखें: (i) टाइफाइड (ii) क्षय (iii) अमीबता (iv) टेटनस । i.टाइफाइड (आंत्र ज्वर). रोगजनक :- साल्मोनेला टाइफी (जीवाणु) ii- क्षय-माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस iii-एंटामीबा हिस्टॉलिटिका (Entamoeba histolytica) iv- क्लोस्ट्रीडियम टेटानी जीवाणु 9.प्राथमिक अनुक्रिया क्या है ? Ans. इसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया (रेस्पांस) करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते है । OR जब शरीर में रोगकारक प्रथम बार प्रवेश करता है तब प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिरक्षी बनाकर जो प्रतिक्रिया दर्शाता है उसे प्राथमिक अनुक्रिया (Primary-Response) कहते हैं। 10.A codon is a three-nucleotide or triplet sequence found on mRNA that codes for a certain amino acid during translation. The anticodon is a three-nucleotide sequence found on tRNA that binds to the corresponding mRNA sequence. 11.कार्बनिक खेती पर एक टिप्पणी लिखें। Ans. कार्बनिक खेती एक परंपरागत एवं स्थाई खेती है जिसे बिना किसी रासायनिक उर्वरकों की सहायता के केवल कार्बनिक खाद संभव किया जाता है जिससे पर्यावरण एवं मनुष्य के स्वास्थ में सुधार होता है । कार्बानिक खेती से प्राप्त उपज उच्च गुणवत्ता वाली होने के कारण विश्व बाजार में इसकी काफी मांग है, जिस से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है । 12. आनुवंशिक विविधता को परिभाषित करें। Ans.आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity) का आशय एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों के जीनों में होने वाले परिवर्तन से है। इसके कारण ही जीवों में भिन्न-भिन्न नस्लें देखने को मिलती हैं। यह विविधता ही जीवों को किसी दूसरे पर्यावरण के अनुकूल स्वयं को ढालने में सहायता करती है और विलुप्त होने से बचाती है l 13. उत्परिवर्तन को परिभाषित करें। Ans. जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता हैl 16.अनिषेक जनन से आप क्या समझते हैं ? Ans.अनिषेक जनन प्रजनन कि वह एक विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया होती है। जिसमें अंडे का परिवर्धन बिना किसी निषेचन के ही हो जाता है। बेयटी के अनुसार (1967) - जब मादा युग्मक अंडा परिपक्व हो जाता है, किंतु वह नरयुग्मक से बिना संपर्क में आए और बिना किसी अनुवांशिक पदार्थ को ग्रहण किए ही भ्रूण में परिवर्तित होने लगता है, उस प्रक्रिया को अनिषेक जनन कहते हैं। अर्थात साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि नर युग्मक शुक्राणु के बिना संयोजन से अंडाणु में भ्रूणीय परिवर्धन की प्रक्रिया आने को अनिषेकजनन कहते हैं। 17.यथार्थ फल तथा आभासी फल में अंतर स्पष्ट करें। Ans. झूठे फल और सच्चे फल के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि झूठा फल अंडाशय की दीवार के अलावा अन्य पुष्प भागों से विकसित होता है जबकि सच्चा फल अंडाशय की दीवार से विकसित होता है। OR यथार्थ फल:- जब पुष्प का केवल अण्डाशय फल मे परिवर्तित होता है। उदहारण- आम,बेर सेब एक आभासी फल (फॉल्स फ्रूट) है। आभासी फल को फल के रूप में तब परिभाषित किया जाता है जिसमें वसा का महत्वपूर्ण हिस्सा अंडाशय से नहीं बल्कि दूसरे आसन्न ऊतक से प्राप्त होता है। आभासी फलों के अन्य प्रमुख उदाहरण हैं स्ट्राबेरी, अनानास, शहतूत और नाशपाती। 18.किन्हीं दो प्रतिबंधन एंजाइम के नाम बताएँ Ans. सन् 1963 में ई. कोलाई नामक जीवाणु से 2 एंजाइम निकाले गये जिन्हें प्रतिबन्ध, एन्जाइम कहते है। 1- मिथायलेज- DNA में मैथिल वर्ग को जोड़ता है। २- प्रतिबन्धन एण्डोन्युक्लिएज- यह एंजाइम DNA को विशिष्ट स्थान से काटने का कार्य करता है। RE. को आरबर, स्मिथ और नाथन नामक वैज्ञानिकों ने खोजा था जिसके लिये उन्हें 1978 में नोबेल पुरुस्कार प्राप्त हुआ। 19.गुरुबीनाजनन को परिभाषित कीजिए। Ans. "गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से गुरुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को गुरुबीजाणु जनन कहते हैं। ->चार गुरुबीजाणु -> बीजाण्ड द्वार -> गुरुबीजाणु -> भूण कोष ← सक्रिय 20. एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज में अंतर स्पष्ट कीजिए । Ans. एक्सोन्यूक्लिएज :- एक्सोन्यूक्लिएज DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड खण्डों को अलग करते हैं। एंडोन्यूक्लिएज:- एंडोन्यूक्लिएज DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। 21.a पुनर्योजन से आप क्या समझते हैं ? पुनयोजियों का निर्माण कैसे होता है ? Ans. पुनर्योजन विभिन्न विभेदों में उपस्थित जीनों में संयोजन उत्पन्न करना पुनर्योजन या रीकाँबिनेशन कहलाता है। OR 1 वह प्रक्रिया जिसके दौरान डीएनए का एक खिंचाव पुनर्संयोजन करता है और एक नए युग्म संयोजन का निर्माण करता है जिसे पुनर्संयोजन के रूप में जाना जाता है 2 पुनर्संयोजन अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान होता है जब युग्मक गठन हो रहा होता है 3 पुनर्संयोजन परिणाम एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों में आनुवंशिक भिन्नता में होता है l 1. The process during which a stretch of DNA recombines and produces a new allelic combination is known as recombination. 2. Recombination takes place during meiosis when gamete formation is taking place. 3. Recombination results in genetic variation in different organisms of the same species. 1 (b)जीन अभिगमन पर एक टिप्पणी लिखें। Ans . जनसंख्या अनुवांशिकी के सन्दर्भ में एक जनसंख्या से दूसरी जनसंख्या में जाने पर अनुवांशिक परिवर्तनों का स्थानान्तरण होना जीन प्रवाह कहलाता है। 22-: जैव तकनीकी औद्योगिक उपयोगों का वर्णन करें: Answer : औद्योगिक क्षेत्र में जीव प्रौद्योगिकी का बहुत ही महत्व है। इसकी मदद से अनेक प्रकार के अल्कोहल, दुग्ध उद्योग, कार्बनिक अम्लों का उत्पादन जैव प्रौद्योगिकी पर ही आधारित है। औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के उत्पादों के लिए विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है। उन जीवाणुओं की सहायता से ग्लूकोज या कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च का किण्वन होता है जिसमें विकार की उत्पत्ति होती है। विकार ही ग्लूकोज को किण्वित कर विभिन्न प्रकार के उत्पादों का उत्पादन करता है। इस तकनीकी के मदद से प्रयुक्त यौगिकों जैसे इथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, एसिटोन आदि का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावे इन्जाइम का उत्पादन, ईंधन की प्राप्ति, खनिजों का निष्कासन, प्रतिरक्षाटॉक्सिन का उत्पादन, पूरक भोजन आदि का उत्पादन कर सकते हैं प्रमुख उत्पादन निम्न है l 23-: (a) अनुवांशिक अभियांत्रिकी Answer: किसी जीव के संजीन (genome, जीनोम ) में हस्तक्षेप कर के उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियों तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा का सामूहिक नाम है। मानव प्राचीन काल से ही पौधों व जीवों की प्रजनन क्रियाओं में हस्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है (जिसमें लम्बा समय लगता है लेकिन इसके विपरीत जनुकीय अभियांत्रिकी में सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैवप्रौद्योगिक विधियों से ही जीवों का जीनोम बदला जाता है। (b) अनुवांशिकी रूपांतरित जीव -: Answer: किसी भी प्रकार के जीवधारी (जीवाणु, पादप, कवक या जंतु) जिनके जीनों को कुछ फेरबदल कर परिवर्तित कर दिया गया हो, आनुवंशिकता : रूपान्तरित जीव कहलाते है। अगर इनमे कोई विजातीय जीन समाविष्ट कर दिया गया हो तब ऐसे जी. एम. ओ. परजीवी जीव कहलाते है अर्थात पारजीवी जीव भी एक प्रकार के जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गेनिज्म है। आनुवंशिकतः रूपान्तरित पौधो के अनुप्रयोग (i) पौधो में पीड़क प्रतिरोधकता का विकास, जिससे रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता काम होती है जैसे बीटी कपास, बीटी मक्का आदि | (ii) बेहतर गुणवत्ता बढ़ा पोषक मान, जैसे विटामिन A से समृद्ध चावल । (iii) मृदा से खनिजों के दक्षतापूर्ण अवशोषण की क्षमता। (iv) प्रतिकूल परिस्थितियों (सूखा, लवणता, अधिक ताप) सहने की क्षमता। 26-: (a) जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव Answer: वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः 'कल्चर' के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। (b) अपरा निर्माण तथा गर्भ पोषण 'अपरा निर्माण : अपरा गर्भनाल के द्वारा भ्रूण से जुड़ी रहती है। अपरा भी उन * ही शुक्राणु और डिम्ब कोशिकाओं से निर्मित होती है जिनसे भ्रूण का निर्माण होता है और दो घटकों क्रमश: भ्रूण भाग और मातृ भाग के साथ एक फेटोमेटरनल अंग के रूप में कार्य करती है। * गर्भ पोषण : गर्भनाल ही बच्चे के विकास को प्रेरित करती है. इसी की वजह से बच्चा मां के गर्भ में जीवित रहता है. यह सुरक्षा के साथ-साथ पोषण देने का भी काम करती है. यह बच्चे को कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने का काम करती है. कायिक भ्रूणोद्भवन क्या है? उत्तर- कायिक भ्रूणोद्भवन (Somatic embryogensis)- पादप ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया में द्विगुणित कायिक कोशिकाओं द्वारा विकसित भ्रूणों को कायिक भ्रूण या भ्रूणाम कहा जाता है, तथा इसके बनने की क्रियाविधि को कायिक भ्रूणोद्भवन कहते है। : कायिक संकरण किसे कहते हैं ? एक उदाहरण दीजिए। Answer: कायिक संकरण वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।


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Short Question & Answer 1. सतत विकास किसे कहते हैं? 2. अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? 3. आर्थिक नियोजन क्या है? 4. आर्थिक आधारभूत संरचना का क्या महत्त्व है? 5. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं? 6. समावेशी विकास से आप क्या समझते हैं? 7. मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है? 8. अर्थशास्त्र में उत्पादन के कौन-कौन साधन है? उदाहरण दें। Ans. 1. सतत विकास का अर्थ है-ऐसा विकास जो जारी रहे, टिकाऊ रहे अर्थात् सतत विकास, विकास की वह रणनीति है, जो प्राकृतिक साधनों एवं पर्यावरण को क्षति पहुँचाये बगैर वर्तमान एवं भावी दोनों पीढ़ियों के कल्याण को अधि कतम बनाती है। बुडलैंड आयोग ने सतत विकास के बारे में बताया है कि “विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएँ, बिना भावी पीढ़ी की क्षमता, योग्यता से समझौता किए पूरी की जाती है।" जैसे—कोयला, गैस, वन, पेट्रोलियम, जल, सूर्य का प्रकाश का प्रयोग । 2. एक अर्थव्यवस्था वह संगठन या व्यवस्था है जिसमें किसी देश या समाज के सदस्य सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का संचालन करते हैं। अर्थव्यवस्था से मतलब उन सभी खेतों, कारखानों, दुकानों, खानों, बैंकों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल आदि से होता है जो लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। 3. आर्थिक नियोजन का अर्थ राज्य अथवा एक निर्धारित सत्ता द्वारा संपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था के एक विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर जानबूझकर आर्थिक निर्णय लेना है। दूसरे शब्दों में आर्थिक प्राथमिकताओं के आधार पर लक्ष्यों का निर्धारण कर उन्हें एक निश्चित अवधि में पूरा करने का प्रयास ही आर्थिक नियोजन है। 4. आर्थिक संरचना का अभिप्राय उस तथ्य से है जो किसी देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अर्थव्यवस्था की नींव है। ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, दूरसंचार, बैंकिंग, पानी, शिक्षा की सुविधा के बिना आधुनिक समय में आर्थिक विकास नहीं हो सकता है। उत्पादन बढ़ाने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जीवन-स्तर उठाने में प्रत्यक्ष रूप से सहायक है। 5. अर्थव्यवस्था का वह स्वरूप जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है और इसका उपयोग वे अपने निजी लाभ के लिए करते हैं, जैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था। 6. विकास की वह प्रक्रिया जो विकास के लाभ को समाज के अंतिम पायदान पर स्थित लोगों तक पहुँचाने, उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठाने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास करती है, वह प्रक्रिया समावेशी विकास कहलाती है। समावेशी विकास को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का 'मुख्य लक्ष्य बनाया गया क्योंकि भारत के कमजोर वर्ग के लोग विकास से वंचित रह गए थे। 7. मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवाद इन दोनों अर्थव्यवस्था के बीच का मार्ग है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था निजी उद्यम तथा सरकार दोनों के द्वारा संचालित होती है। इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सरकार के अधीन होते हैं तथा शेष क्षेत्र निजी उद्यम के हाथ में दिए जाते हैं। इस व्यवस्था को हम पूँजीवाद एवं समाजवाद के बीच का स्वर्णिम मार्ग कह सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था का उदाहरण है। 8. अर्थशास्त्र में उत्पादन के पाँच साधन हैं (i) भूमि, (ii) श्रम, (iii) पूँजी, (iv) संगठन और (v) साहस ।


Economics

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं? बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपायों को लिखें। 2. अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं? अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के विषयों में बताइए । 3. "सतत विकास समय की आवश्यकता है।" इस कथन को स्पष्ट करें। 4. अर्थव्यवस्था की संरचना से आप क्या समझते हैं, इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है? 5. आर्थिक विकास क्या है? आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अंतर बताइए l 6. आर्थिक नियोजन किसे कहते हैं? नियोजन के मुख्य उद्देश्य क्या हैं? 7. मिश्रित अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें। Ans. 1. बिहार में पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं (1) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या बिहार में तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 10.38 करोड़ हो गयी है। बढ़ती जनसंख्या विकास में बड़ी बाधा है। (ii) धीमी कृषि का विकास राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। यहाँ की कृषि व्यवस्था उन्नत नहीं है। जिससे कृषि पिछड़ी हुई है। (iii) उद्योग धंधों का अभाव - झारखण्ड के अलग होने से अधिकांश उद्योग-धंधे झारखंड चले गये हैं, जो पिछड़ापन का मुख्य कारण हैं। (iv) बाढ़ एवं सूखा से क्षति-बिहार को बाढ़ एवं सूखा से प्रतिवर्ष काफी क्षति उठानी पड़ती हैं। प्रत्येक वर्ष सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सहरसा आदि जिलों में बाढ़ तथा सूखा की स्थति देखने को मिलती है। (v) गरीबी-बिहार भारत के बीमारू राज्यों में से एक है। प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। इस प्रकार यहाँ गरीबी का कुचक्र चलता रहता है। (vi) प्राकृतिक साधनों के समुचित उपयोग का अभाव- बिहार में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। झारखंड के अलग हो जाने के बाद यहाँ वन एवं खनिज की कमी हो गयी है। इसके अभाव में बिहार पिछड़ापन का शिकार है। (vii) कुशल प्रशासन का अभाव - बिहार में प्रशासन व्यवस्था की स्थिति भी काफी खराब है। पिछड़ापन दूर करने के उपाय - बिहार का आर्थिक पिछड़ापन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक कारणों का संयुक्त परिणाम है तथा इसके संवृद्धि एवं विकास के लिए एक समेकित कार्यक्रम अपनाना आवश्यक है। बिहार मूलतः एक कृषि एवं ग्राम प्रधान राज्य है। अतः कृषि के विकास और आधुनिकीकरण के बिना राज्य की संवृद्धि संभव नहीं है। बिहार में कृषि की वर्तमान स्थिति अत्यंत शोचनीय है। इसमें सुधार के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, कृषि कार्यों के लिए पर्याप्त बिजली की आपूर्ति तथा बाढ़ और जल जमाव की समस्याओं का समाध जान आवश्यक है। बिहार की भूमि उर्वर है और यहाँ कई प्रकार की व्यावसायिक फसलों का उत्पादन होता है। अतएव, इसके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को विकसित करना भी आवश्यक है। 2. एक अर्थव्यवस्था वह संगठन या व्यवस्था है जिसमें किसी देश या समाज के सदस्य सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का संचालन करते हैं। एक अर्थव्यवस्था का प्रायः दो दृष्टियों से वर्गीकरण किया जाता हैं- स्वामित्व के आधार पर तथा व्यवसाय के आधार पर। स्वामित्व के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के दो मुख्य क्षेत्र होते हैं— निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र। व्यवसाय के आधार पर अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र होते हैं- प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र। निजी क्षेत्र- जब किसी उद्योग या व्यवसाय का संगठन एवं संचालन किसी व्यक्ति या निजी संस्था के द्वारा किया जाता है, तो उसे निजी क्षेत्र कहते हैं। 'सार्वजनिक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत वे उद्योग या व्यवसाय आते हैं जिन पर राज्य अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है। प्राथमिक क्षेत्र—प्राथमिक क्षेत्र कृषि क्षेत्र को कहते हैं। इसके अंतर्गत खनन, पशुपालन, मत्स्यपालन इत्यादि आते हैं। द्वितीयक क्षेत्र - द्वितीय क्षेत्र में सभी प्रकार के निर्माण उद्योग, विद्युत, गैस तथा जलापूर्ति आदि शामिल हैं। तृतीयक क्षेत्र- तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में उन सभी सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है। जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के क्रिया कलापों को पूरा करने में सहायक होती है। जैसे संचार परिवहन तथा व्यापार । 3. सतत विकास, विकास की वह रणनीति है जो प्राकृतिक साधनों एवं पर्यावरण को क्षति पहुँचाये बगैर वर्तमान एवं भावी दोनों पीढ़ियों के कल्याण को अधिकतम बनाती है। वर्तमान विकास पद्धति गैर-नवीकरणीय संसाधनों, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, गैस आदि का उपयोग करती है। इनके अधिक दोहन से भावी पीढ़ी इनसे वंचित हो सकती है। ये पर्यावरण की समस्या को भी बढ़ाती है। विकास की निरंतरता के लिए आवश्यक है कि प्रदूषण रहित नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधनों, जैसे सौर्य ऊर्जा, बायोगैस ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पनबिजली आदि के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। वे स्वच्छ एवं अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत हैं, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाते। इससे सतत विकास जारी रहेगा। 4. अर्थव्यवस्था का व्यवसाय अथवा आर्थिक क्रियाओं के आधार पर संरचना की जाती है। अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कई सारगर्भित तथ्य जैसे उत्पादन, उपभोग, विनिमय आदि आते हैं। इनमें कई गतिविधियाँ संचालित होती जिसमें बीमा, बैंक, व्यापार, कृषि, संचार आदि उल्लेखनीय हैं। इन क्रियाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था को प्रमुख तीन भागों में विभाजित किया गया है। (i) प्राथमिक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, उद्योग या व्यवसाय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इस क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। आर्थिक विकास के प्रारंभिक काल में कृषि पर विशेष बल दिया गया, क्योंकि इसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती थी। वर्तमान समय में भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। यह क्षेत्र उद्योगों को कई मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करता है। कृषि के अलाव पशुधन, वन, मत्स्यपालन आदि संबंधित तथ्य इसमें आते हैं। (ii) द्वितीयक क्षेत्र द्वितीयक क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से खनिज एवं उद्योग जगत आते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र जाता है। वस्तुतः किसी देश के आर्थिक विकास में खनिज संसाध कहा नों का विशेष महत्त्व होता है। इसे आधुनिक सभ्यता के विकास का आधार माना गया है। द्वितीयक क्षेत्रक का विकास करने में प्राथमिक क्षेत्र भी विकसित होने लगता है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के निर्माण उद्योग, ऊर्जा उद्योग आदि आते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र और द्वितीयक क्षेत्र का कुल योगदान राष्ट्रीय आय का लगभग आधा हिस्सा है। (iii) तृतीयक क्षेत्र- इस क्षेत्र में व्यापार, परिवहन, संचार व्यवस्था तथा सामाजिक सेवाओं का स्थान आता है। इस क्षेत्र के विकसित होने से प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों की उत्पादन कुशलता भी बढ़ जाती है। हाल के आँकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का यह एक प्रमुख अंग बन गया है। जिसका योगदान 56% है, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से दुगुना है। 5. आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है। इसके लिए विकास प्रक्रिया को गतिशील करना पड़ता है। सामान्य तौर पर आर्थिक विकास एवं वृद्धि, दोनों में कोई अंतर नहीं माना जाता है। दोनों शब्दों को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने इनमें निम्नलिखित अंतर पाया है। * श्रीमती उर्सुला हिक्स के अनुसार, "आर्थिक वृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित उन्नत देशों के संबंध में किया जाता है जबकि आर्थिक विकास शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्था के संदर्भ में किया जा सकता है। " आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अंतर (i) आर्थिक विकास विकासशील देशों के विकास से संबंधित अवधारणा है जबकि आर्थिक वृद्धि विकसित देशों के विकास में संबंधित अवधारणा है। (ii) आर्थिक विकास में आकस्मिक तथा रुक-रुककर परिवर्तन आते हैं जबकि आर्थिक वृद्धि एक क्रमिक, दीर्घकालीन स्थिर प्रक्रिया है। (iii) आर्थिक विकास उन्नति की प्रबल इच्छा एवं सृजनात्मक शक्तियों का प्रतिफल हैं जबकि आर्थिक वृद्धि एक परंपरागत तथा नियमित घटनाओं का परिणाम है। (iv) आर्थिक वृद्धि के अन्तर्गत उत्पादकता में वृद्धि होती है जबकि आर्थिक विकास के अन्तर्गत उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ तकनीकी और संस्थागत परिवर्तन भी होता है। (v) आर्थिक विकास गत्यात्मक संतुलन की स्थिति को बनाती है जबकि आर्थिक वृद्धि स्थैतिक संतुलन की स्थिति होती है। 6. आर्थिक नियोजन का अर्थ है देश के आय को इस प्रकार खर्च करना की सर्वांगीण तथा सतत् विकास हो। भारत में यह कार्य नीति (योजना) आयोग करती है। इसके मुख्य उद्देश्य है (i) संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना । (ii) आय के स्रोतों को बढ़ाना। (iii) सामाजिक कल्याण से संबंधित कार्यों के लिए भी राशि का आवंटन। (iv) प्रत्येक क्षेत्र के विकास के लिए योजना का निर्माण करना। 7. मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र दोनों का अस्तित्व होता है। इसमें मूल्यतंत्र सक्रिय भूमिका निभाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में प्रशासित मूल्य होते हैं जिनमें आवश्यकतानुसार कमी वेशी की जाती है। बिजली, रेलवे, जल, गैस इत्यादि सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के मूल्य सरकार 'न लाभ न हानि' के सिद्धांत के अनुसार निश्चित करती है। इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी एवं समाजवाद दोनों के प्रमुख गुण देखने को मिलते हैं। भारत जैसे देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनायी गई है।


Geography

लघु उत्तरीय प्रश्न 1. खनिज को परिभाषित कीजिए। 2. खनिजों के संरक्षण एवं प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं? 3. झारखण्ड के मुख्य लौह-अयस्क खनन के केन्द्रों के नाम लिखिए | 4. खनिजों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन करें। 5. मँगनीज के उपयोग पर प्रकाश डालें। 6. लौह-अयस्कों के नाम लिखें। 7. लौह - अलौह खनिज में अंतर बताएँ । दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. धात्विक एवं अधात्विक खनिजों में क्या अन्तर है? 2. अर्थव्यवस्था पर खनन कार्य के प्रभावों का वर्णन करें। Answer. लघु उत्तरीय प्रश्न 1. प्रकृति में स्वतः पाए जाने वाले ऐसे पदार्थ जिनकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है, खनिज कहलाते हैं। ये चट्टानों में अवस्क के रूप में पाये जाते हैं। इसकी उत्पत्ति पृथ्वी के अंदर विभिन्न भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा होती है। यह एक प्राकृतिक और अनवीकरणीय संसाधन है। 2. खनिज अनवीकरणीय संसाधन है। अतः इनका संरक्षण आवश्यक है। निम्नांकित उपायों द्वारा खनिजों का संरक्षण और प्रबन्धन किया जा सकता है। (i) खनिजों का विवेकपूर्ण उपयोग (ii) कच्चे माल के रूप में खनिजों के स्थान पर उनके सस्ते प्रतिस्थापनों का उपयोग। (iii) स्क्रेप का पुनः उपयोग। (iv) खनिज निक्षेप का पूर्ण संदोहन 3. नोआमुंडी, जामदा, बगियाबुरु, गुरुमहिसानी, गुआ। 4. खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है, जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। हमारे जीवन में खनिजों का विशेष आर्थिक महत्त्व है। औद्योगिक उत्पादन के लिए खनिज एक आधारभूत जरूरत होती है। इसके अभाव में न तो किसी उद्योग एवं न किसी राष्ट्र के विकास की कल्पना की जा सकती है। 5. मँगनीज एक उपयोगी खनिज पदार्थ है। इसका उपयोग इस्पात निर्माण, मिश्रधातु निर्माण, सूखा- सेल बनाने में, चमड़ा एवं माचिस उद्योग, ब्लीचिंग पाउडर, पेंट, दवा बनाने में होता है। 6. लौह अयस्क मुख्य रूप से चार रूपों में पाये जाते हैं जो निम्न है (i) हेमाटाइट, (ii) मैग्नेटाइट (iii) लिमोनाइट तथा (iv) सिडेराइट 7. (i) लौह खनिज इसमें लोहा का अंश पाया जाता है। जैसे— लौह अयस्क, मँगनीज, क्रोमाइट, पाइराइट, टंगस्टन, निकिल और कोबाल्ट लौह खनिज के अंतर्गत आते हैं। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के इस्पात बनाने में किया जाता है। (ii) अलौह खनिज इसमें लौह अंश नहीं पाया जाता है जैसे सोना, चाँदी, ताँबा, जस्ता, अभ्रक, बाक्साइट, टिन, मैग्नीशियम आदि। इसका उपयोग जेवर, सिक्के, बरतन, बक्सा तार आदि बनाने में किया जाता है। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. (i) धात्विक खनिज ऐसे खनिजों में धातु मौजूद रहते हैं। ये धातु किसी-न-किसी धातु के साथ मिले होते हैं। जैसे लौह अयस्क, निकेल आदि। लौह धातु की उपस्थिति के आधार पर धात्विक खनिज को भी दो उप-भाग में बाँटा जाता है। (क) लौह युक्त धातु (ख) अलौह युक्त धातु लौह युक्त धातु में लोहा के अंश अधिक होते हैं, जैसे लौह अयस्क, मैंगनीज, निकेल, टंगस्टन आदि । अलौह धातु में लोहा के अंश बहुत कम होते हैं, जैसे सोना, चाँदी, बॉक्साइट, टिन, ताँबा आदि। (ii) अधात्विक खनिज ऐसे खनिजों में धातु नहीं होते हैं, जैसे चूना पत्थर, डोलोमाइट, अभ्रक, जिप्सम आदि। जीवाश्म की उपस्थिति के आधार पर अधात्विक खनिज को भी दो भागों में बाँटा जाता है— (क) कार्बनिक खनिज ऐसे खनिजों का निर्माण भू-गर्भ में प्राणी एवं पेड़-पौधों के दबने से होता है। जैसे कोयला, पेट्रोलियम आदि। (ख) अकार्बनिक खनिज ऐसे खनिज में जीवाश्म की मात्रा नहीं होती हैं, जैसे- अभ्रक, ग्रेफाइट आदि। - खनन कार्य का अर्थव्यवस्था पर निम्नांकित प्रभाव पड़ता (i) इससे रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। (ii) खनिजों के मिलने से उनके परिवहन के लिए सड़कें और रेलमार्ग बनाए जाते हैं। इस तरह आधारभूत संरचना की वृद्धि होती है। इससे आर्थिक विकास होता है। (iii) खनिजों के निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। (iv) खनन से प्राप्त खनिजों से उद्योग खड़े किए जाते हैं। इससे लोगों को रोजगार मिलता है। (v) खदान क्षेत्र में पहले बसी आबादी का पुनर्वास करना पड़ता है। अतः उनका पुनर्वास जिस नए क्षेत्र में होता है, वहाँ नए ढंग से विकास की गति आगे बढ़ती है। (vi) खनन कार्य बंद होने से बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगती है।


Geography

लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कोयले के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए। 2. परंपरागत और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में अंतर बताइए l 3. सौर ऊर्जा का उत्पादन कैसे होता है? 4. पेट्रोलियम से किन-किन वस्तुओं का निर्माण होता है? 5. पेट्रोलियम का महत्त्व कोयले से अधिक क्यों है? 6. परमाणु शक्ति किन-किन खनिजों से प्राप्त होती है? 7. मुम्बई हाई तेल उत्पादक क्षेत्र का परिचय दें। 8. गोंडवाना समूह के किन्हीं चार कोयला क्षेत्रों के नाम लिखिए। 9. नवीकरणीय ऊर्जा के चार उदाहरण दीजिए। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शक्ति संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए। 2. शक्ति संसाधनों के संरक्षण की दिशा में उठाये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिए। Answer. लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कोयला के चार प्रमुख प्रकार हैं— (i) एंथ्रासाइट, (ii) विटुमिनस, (iii) लिग्नाइट एवं (iv) पीट। 2. परंपरागत ऊर्जा के स्रोत समाप्त हो जाने वाले शक्ति के साधन है और अनवीकरणीय है। इसलिए इनका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस इसके उदाहरण हैं। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत नवीकरणीय है और आवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार इनका उत्पादन बढ़ाया और उपयोग किया जा सकता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि इसके उदाहरण है। 3. सौर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सोलर प्लेट का निर्माण किया जाता है। इस प्लेट में सीजियम धातु के पतले-पतले तार लगाए जाते हैं। जब इन तारों पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तन किया जाता है। इसे विद्युत सौर प्लेट में लगे तार द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तु से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार, सौर ऊर्जा की प्राप्ति होती है। भारत के पश्चिमी भाग गुजरात और राजस्थान में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं। 4. पेट्रोलियम एक शक्ति संसाधन है, जिसका हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। इसका मुख्य उपयोग यातायात के साधनों में ईंधन के रूप में होता है। इसके अलावा औद्योगिक मशीनों में स्नेहक के रूप में होता है। पेट्रोलियम का उपयोग संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक, रसायन उद्योग, कीटनाशक दवा एवं कृत्रिम स्वर बनाने में भी किया जाता है। 5. पेट्रोलियम का महत्त्व कोयला से अधिक है, क्योंकि.. (i) पेट्रोलियम का भंडार कोयला के भंडार से अधिक है। (ii) पेट्रोलियम में कोयले की अपेक्षा अधिक शक्ति देने की क्षमता है। (iii) पेट्रोलियम का खनन परिवहन एवं वितरण कोयला से सस्ता है। 6. परमाणु शक्ति (नाभकीय ऊर्जा) निम्नांकित खनिजों से प्राप्त होती है — यूरेनियम, थोरियम, नियोबियम, टेटेलस, बेरीलियम, लीथियम, यिट्लिम, जिरकोनियन आदि। 7. मुम्बई हाई तेल क्षेत्र मुम्बई तट से दूर अरब सागर में स्थित है। वर्तमान में यह सबसे अधिक तेल उत्पादन करनेवाला क्षेत्र है। यहाँ समुद्र में सागर-सम्राट नामक जलमंच बनाया गया है, जहाँ से कुएँ खोदकर समुद्र से तेल, निकाला जाता है। यहाँ तेल का विशाल भंडार है। यहाँ से प्राप्त कच्चे तेल को साफ करने के लिए पाइपलाइन द्वारा ट्राम्बे तेल शोधनशाला भेज दिया जाता है। 8. इस समूह में 96% कोयले का भंडार शामिल है जो हमारे देश में मिलता हैं। इसका निर्माण लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। यह मुख्यतः चार नदी घाटियों में पाये जाते हैं— (i) दामोदर घाटी, (ii) सोन घाटी, (iii) महानदी वाटी एवं (iv) वर्ध- गोदावरी घाटी। 9. नवीकरणीय ऊर्जा के उदाहरण हैं सूर्य, पवन, जवार एवं लहर। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शक्ति संसाधनों के वर्गीकरण इस प्रकार हैं (क) उपयोगिता के आधार पर (i) प्राथमिक ऊर्जा (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) (ii) गौण ऊर्जा (विद्युत) (ख) श्रोत के आधार पर (i) क्षयशील शक्ति संसाधन—कोयला, पेट्रोलियम (ii) अक्षयशील शक्ति संसाधन—पवन, प्रवाही जल (ग) संरचना के आधार पर (i) जैविक ऊर्जा स्रोत (मानव) (ii) अजैविक ऊर्जा स्रोत (जलशक्ति, पवन शक्ति) 2. शक्ति संसाधन के संरक्षण के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं (i) ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययिता ऊर्जा का उचित एवं आदर्शतम उपयोग होने से ऊर्जा का दुरुपयोग नहीं होता है। (ii) ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज- ऊर्जा संकट का समाधान नवीन ऊर्जा स्त्रोतों में निहित होते हैं। इसके लिए सुदूर संवेदी प्रणाली का भी प्रयोग हो रहा है। (iii) ऊर्जा के नवीन वैकल्पिक साधनों का उपयोग जो संसाधन समाप्त होने वाले हैं जिनकी पुनरावृत्ति संभव नहीं है, उस संसाधन को संरक्षित करना चाहिए। बदले में ऐसे स्रोत जो न समाप्त होने वाले हैं, ऐसे वैकल्पिक साधनों का प्रयोग किया जाए जैसे जल विद्युत, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि। ये सभी नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत भी कहे जाते हैं। (iv) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग — ऊर्जा संकट एक वैश्विक समस्या है। जिसे विश्व के देशों को आपसी मतभेद भुलाकर सहयोग एवं समाधान करना चाहिए। आज UNO OPEC, WTO, G8 जैसे देश इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। ऊर्जा का उपयोग हम अपनी जरूरत के हिसाब से करके एवं वेवजह उसका उपयोग न करके शक्ति के संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं।


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लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कोयले के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए। 2. परंपरागत और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में अंतर बताइए l 3. सौर ऊर्जा का उत्पादन कैसे होता है? 4. पेट्रोलियम से किन-किन वस्तुओं का निर्माण होता है? 5. पेट्रोलियम का महत्त्व कोयले से अधिक क्यों है? 6. परमाणु शक्ति किन-किन खनिजों से प्राप्त होती है? 7. मुम्बई हाई तेल उत्पादक क्षेत्र का परिचय दें। 8. गोंडवाना समूह के किन्हीं चार कोयला क्षेत्रों के नाम लिखिए। 9. नवीकरणीय ऊर्जा के चार उदाहरण दीजिए। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शक्ति संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए। 2. शक्ति संसाधनों के संरक्षण की दिशा में उठाये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिए। Answer. लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कोयला के चार प्रमुख प्रकार हैं— (i) एंथ्रासाइट, (ii) विटुमिनस, (iii) लिग्नाइट एवं (iv) पीट। 2. परंपरागत ऊर्जा के स्रोत समाप्त हो जाने वाले शक्ति के साधन है और अनवीकरणीय है। इसलिए इनका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस इसके उदाहरण हैं। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत नवीकरणीय है और आवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार इनका उत्पादन बढ़ाया और उपयोग किया जा सकता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि इसके उदाहरण है। 3. सौर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सोलर प्लेट का निर्माण किया जाता है। इस प्लेट में सीजियम धातु के पतले-पतले तार लगाए जाते हैं। जब इन तारों पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तन किया जाता है। इसे विद्युत सौर प्लेट में लगे तार द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तु से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार, सौर ऊर्जा की प्राप्ति होती है। भारत के पश्चिमी भाग गुजरात और राजस्थान में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं। 4. पेट्रोलियम एक शक्ति संसाधन है, जिसका हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। इसका मुख्य उपयोग यातायात के साधनों में ईंधन के रूप में होता है। इसके अलावा औद्योगिक मशीनों में स्नेहक के रूप में होता है। पेट्रोलियम का उपयोग संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक, रसायन उद्योग, कीटनाशक दवा एवं कृत्रिम स्वर बनाने में भी किया जाता है। 5. पेट्रोलियम का महत्त्व कोयला से अधिक है, क्योंकि.. (i) पेट्रोलियम का भंडार कोयला के भंडार से अधिक है। (ii) पेट्रोलियम में कोयले की अपेक्षा अधिक शक्ति देने की क्षमता है। (iii) पेट्रोलियम का खनन परिवहन एवं वितरण कोयला से सस्ता है। 6. परमाणु शक्ति (नाभकीय ऊर्जा) निम्नांकित खनिजों से प्राप्त होती है — यूरेनियम, थोरियम, नियोबियम, टेटेलस, बेरीलियम, लीथियम, यिट्लिम, जिरकोनियन आदि। 7. मुम्बई हाई तेल क्षेत्र मुम्बई तट से दूर अरब सागर में स्थित है। वर्तमान में यह सबसे अधिक तेल उत्पादन करनेवाला क्षेत्र है। यहाँ समुद्र में सागर-सम्राट नामक जलमंच बनाया गया है, जहाँ से कुएँ खोदकर समुद्र से तेल, निकाला जाता है। यहाँ तेल का विशाल भंडार है। यहाँ से प्राप्त कच्चे तेल को साफ करने के लिए पाइपलाइन द्वारा ट्राम्बे तेल शोधनशाला भेज दिया जाता है। 8. इस समूह में 96% कोयले का भंडार शामिल है जो हमारे देश में मिलता हैं। इसका निर्माण लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। यह मुख्यतः चार नदी घाटियों में पाये जाते हैं— (i) दामोदर घाटी, (ii) सोन घाटी, (iii) महानदी वाटी एवं (iv) वर्ध- गोदावरी घाटी। 9. नवीकरणीय ऊर्जा के उदाहरण हैं सूर्य, पवन, जवार एवं लहर। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शक्ति संसाधनों के वर्गीकरण इस प्रकार हैं (क) उपयोगिता के आधार पर (i) प्राथमिक ऊर्जा (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) (ii) गौण ऊर्जा (विद्युत) (ख) श्रोत के आधार पर (i) क्षयशील शक्ति संसाधन—कोयला, पेट्रोलियम (ii) अक्षयशील शक्ति संसाधन—पवन, प्रवाही जल (ग) संरचना के आधार पर (i) जैविक ऊर्जा स्रोत (मानव) (ii) अजैविक ऊर्जा स्रोत (जलशक्ति, पवन शक्ति) 2. शक्ति संसाधन के संरक्षण के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं (i) ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययिता ऊर्जा का उचित एवं आदर्शतम उपयोग होने से ऊर्जा का दुरुपयोग नहीं होता है। (ii) ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज- ऊर्जा संकट का समाधान नवीन ऊर्जा स्त्रोतों में निहित होते हैं। इसके लिए सुदूर संवेदी प्रणाली का भी प्रयोग हो रहा है। (iii) ऊर्जा के नवीन वैकल्पिक साधनों का उपयोग जो संसाधन समाप्त होने वाले हैं जिनकी पुनरावृत्ति संभव नहीं है, उस संसाधन को संरक्षित करना चाहिए। बदले में ऐसे स्रोत जो न समाप्त होने वाले हैं, ऐसे वैकल्पिक साधनों का प्रयोग किया जाए जैसे जल विद्युत, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि। ये सभी नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत भी कहे जाते हैं। (iv) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग — ऊर्जा संकट एक वैश्विक समस्या है। जिसे विश्व के देशों को आपसी मतभेद भुलाकर सहयोग एवं समाधान करना चाहिए। आज UNO OPEC, WTO, G8 जैसे देश इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। ऊर्जा का उपयोग हम अपनी जरूरत के हिसाब से करके एवं वेवजह उसका उपयोग न करके शक्ति के संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं।


Geography

Answers लघु उत्तरीय प्रश्न 1. स्वामित्व के आधार पर उद्योगों के निम्नलिखित तीन वर्ग किये जाते हैं। (i) निजी उद्योग जब किसी उद्योग का स्वामित्व एवं नियंत्रण किसी निजी व्यक्ति के हाथों में होता है तब इस प्रकार के उद्योग को निजी उद्योग कहा जाता है। जैसे टाटा उद्योग, गोदरेज उद्योग। (ii) सार्वजनिक उद्योग जब किसी उद्योग का संचालन एवं नियंत्रण सरकार अथवा इसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के हाथों में होता है तब उसे सार्वजनिक उद्योग कहा जाता है, जैसे बोकारो लौह-इस्पात उद्योग, भारतीय आयुध कारखाना l (iii) संयुक्त उद्योग जब किसी उद्योग का संचालन एवं नियंत्रण सरकार एवं निजी व्यक्ति के संयुक्त प्रयास से किया जाता है तब ऐसे उद्योग को संयुक्त उद्योग कहा जाता है, जैसे महाराष्ट्र के कई चीनी उद्योग, अमूल l 2.1991 ई. में भारत सरकार द्वारा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई। उदारीकरण का अर्थ अर्थव्यवस्था के नियंत्रण वाले प्रावधानों को शिथिलीकरण करना है। इसे अनियंत्रण की नीति' भी कहा जाता है। निजीकरण का तात्पर्य अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप एवं नियंत्रण की जगह निजी क्षेत्र को महत्त्व प्रदान करना है वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यस्था के साथ जोड़ना है। वैश्वीकरण की नीति अपनाये जाने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी का प्रवाह बढ़ा है। इससे प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने लगी है। विदशी उद्योगों के आने से लोगों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की वस्तुएँ प्राप्त होने लगी है। वैश्वीकरण की नीति के कारण संचार एवं परिवहन सेवाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। परन्तु इस नीति से देश के लघु एवं कुटीर उद्योगों पर नकरात्मक प्रभाव पड़ा है। फिर भी, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति वैश्वीकरण के कारण तीव्र हुई है। 3. सार्वजनिक उद्योग जब किसी उद्योग का संचालन एवं नियंत्रण सरकार अथवा इसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के हाथों में होता है तब उसे सार्वजनिक उद्योग कहा जाता है। जैसे बोकारो लोहा-इस्पात उद्योग, भारत हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड | निजी उद्योग-जब किसी उद्योग का स्वामित्व एवं नियंत्रण किसी निजी व्यक्ति अथवा उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के हाथों में होता है तब इस प्रकार के उद्योग को निजी उद्योग कहा जाता है। जैसे—टाटा उद्योग, गोदरेज उद्योग आदि। जिस उद्योग के उत्पादन का उपभोग सीधे उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है, उसे उपभोक्ता उद्योग कहा जाता है। जैसे—सीमेंट, पेपर, दंतमंजन, पंखा इत्यादि । 5. नई औद्योगिक नीति के मुख्य बिन्दु है (i) देश के कई क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया अर्थात् देश में निजीकरण पर बल दिया गया। (ii) कुछ उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों को लाइसेंस से मुक्त कर दिया गया, जिसे उदारीकरण कहा गया है। (iii) व्यापार प्रतिबन्धों को कम कर वैश्वीकरण पर जोर दिया गया। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. आवास निर्माण एवं देश के ढांचागत क्षेत्र में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सीमेंट उद्योग के लिए चूना पत्थर, कोयला, सिलिका, एल्युमिनियम और जिप्सम की आवश्यकता होती है। भारत मैं 1904 में तमिलनाडु के मद्रास में प्रथम सीमेंट उद्योग लगाया गया। इस उद्योग का विकास स्वतंत्रता के बाद ही हुआ। सीमेंट उद्योग के स्थानीयकरण के कारण कच्चे माल, शक्ति के साधन, पूँजी तथा परिवहन के साधन का होना जरूरी है। सीमेंट उद्योग के कारखाने देश के कई राज्यों, यथा— मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश आदि में वितरित है। कटनी, सतना, जामनगर, जबलपुर, चुनार, डालमियानगर, कल्याणपुर, सिंदरी, बंजारी आदि सीमेंट उत्पादन के महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। भारत में उत्पादित सीमेंट का निर्यात इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, म्यांमार, मध्यपूर्व तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में किया जाता है। 2014-15 में, 2,052 लाख टन सीमेंट का उत्पादन भारत में हुआ था । 2. उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, गैस तथा गंदा-जल प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। धुआँ में कार्बन मोनोक्साइड एवं सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैस होती है। यह दमघोटू गैस है जिससे मनुष्य की मृत्यु भी हो जाती है। सल्फर डाइऑक्साइड गैस से आँखों में जलन, दमा, खाँसी, सिरदर्द, चक्कर आना इत्यादि में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण से अन्य जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों एवं वायुमंडल को हानि पहुँचती है। उद्योग से निकलने वाला गंदा जल हैजा, पेचिश, पीलिया एवं टायफॉयड रोग का कारण है। जबकि ध्वनि प्रदूषण से बहरापन, अनिद्रा इत्यादि में वृद्धि होती है। औद्योगिक प्रदूषण हमारे जीवन को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है.... 3.(i) पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। (ii) काँच-गृह प्रभाव से तापमान बढ़ता है। (iii) सूखे की समस्या उत्पन्न होती है। (iv) वर्षा चक्र प्रभावित होता है। (v) प्रदूषणजन्य बीमारियाँ हो रही हैं। (vi) धरती का वातावरण सामान्य जीवन जीने लायक नहीं रहा। 4. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग तेजी से उभरता हुआ, उद्योग है। कच्चे माल पर आधारित न होने के कारण इस उद्योग को फुटलज उद्योग भी कहा जाता है। इस उद्योग ने देश के आर्थिक ढाँचे एवं लोगों की जीवन शैली में बहुत बड़ा क्रान्ति ला दिया है। इस उद्योग के अन्तर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रॉजिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलिफोन, पेजर, रडार, सेल्यूलर टेलीकॉम, लेजर, जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष उपकरण, कम्प्यूटर की यंत्र सामग्री (हार्डवेयर) तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) इत्यादि हैं। इनके प्रमुख केन्द्र बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर, पूर्ण, लखनऊ, भोपाल एवं कोयंबटूर में बनाए गए हैं। इस उद्योग का मुख्य उद्देश्य रोजगार उपलब्ध कराना है। इस उद्योग में 30% महिलाएँ कार्यरत हैं। देश में 18 सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क विकसित है। इस उद्योग का कुल उत्पादन 3.5 खरब रुपये का है। इसके निर्यात से एक खरब रुपये की प्राप्ति होती है। 5. लोहा-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग है। खनिज पर आधारित उद्योगों में यह सबसे महत्त्वपूर्ण है। इनसे विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीन तथा संयंत्र कृषि के उपकरण तथा परिवहन के साधन बनाए जाते हैं। इनके द्वारा उत्पादित उपस्कर किसी अन्य धातु द्वारा निर्मित होने पर भी इस प्रकार की उपयोगिता नहीं प्रदान कर सकते हैं। यह उद्योग आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है। अतः लोहा एवं इस्पात उद्योग को उसकी मौलिकता तथा उसका कोई विकल्प नहीं होने के कारण बुनियादी उद्योग कहा जाता है। 6. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले चार भौतिक कारक निम्नांकित हैं (i) भूमि भूमि के बिना उद्योगों की स्थापना की कल्पना नहीं की जा सकती है। (ii) पूँजी—पूँजी उद्योगों का प्रमुख कारक है। इसके द्वारा उत्पादन संभव हैं जो उद्योग के संचालन का प्रमुख स्रोत है। (iii) ऊर्जा कर्जा भी उद्योगों की अवस्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उद्योगों के उत्पादन में शक्ति प्रदान करती है। (iv) बाजार—उत्पादन की रीढ़ बाजार है, इसके बिना उत्पादन निरर्थक हैं उत्पादन का उद्देश्य ही बाजार की आपूर्ति है। 7. प्रदूषण के विभिन्न प्रकार हैं, यथा जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण इत्यादि। इन्हें रोकने के उपाय अलग-अलग हैं। जल प्रदूषण नदियों, तालाबों और झीलों में गर्म जल तथा अवशिष्ट पदार्थों को गिराने से पहले उसे शोधित किया जाए। जलाशयों में मल-मूत्र बहाने तथा पशुओं को धोने से बचना चाहिए। वायु प्रदूषण- कोयले के स्थान पर तेल का उपयोग कर धुआँ रोका जा सकता है। पृथक्कारी छन्ना बैगफिल्टर तथा स्क्रबर यंत्र का इस्तेमाल तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ लगाई जाए। ध्वनि प्रदूषण पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। लाउडस्पीकर पर रोक, कारखानों एवं मोटरगाड़ियों में साइलेंसर का उपयोग करने की आवश्यकता है l मिट्टी प्रदूषण - मिट्टी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वन रोपण और चारागाहों की उचित प्रबंध करना चाहिए।


Disaster Management

लघु उत्तरीय प्रश्न 1. बाढ़ द्वारा क्षति को कम करने के उपायों का उल्लेख कीजिए। 2. भूकम्प के प्रभावों को कम करने के दो उपायों का उल्लेख कीजिए l 3. प्रबन्धन की आवश्यकता/उपयोगिता क्यों है? 4. सुखाड़ की अवधि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए आप क्या करेंगे? 5. सूखे को परिभाषित कीजिए। 6. सुनामी से उत्पन्न तबाही से बचाव के कोई तीन उपाय बताइए। 7. आकस्मिक आपदा प्रबंधन में स्थानीय प्रशासन की भूमिका का वर्णन करें। 8. प्राकृतिक आपदा के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए। 9. आपदा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें l 10. भूकम्प और सुनामी के बीच अन्तर स्पष्ट करें। 11. बाढ़ के कारण एवं सुरक्षा संबंधी उपायों का वर्णन करें। 12. भूस्खलन से बचाव के किन्हीं दो उपायों का उल्लेख करें। 13. सुनामी के तीन प्रभावों का उल्लेख करें। 14. आग आपदा के समय कौन-सा उपाय करना चाहिए? 15. सुखाड़ के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना करे ।। 16. भूस्खलन क्या है? 17. भूकम्प क्या है? इससे बचाव के किन्हीं दो /चार उपायों का उल्लेख करें। 18. बाढ़ से होनेवाली हानियों को लिखें। 19. आपदा से आप क्या समझते हैं? 20. बाढ़ नियंत्रण के लिए उपाय बताएँ । 21. प्राकृतिक आपदा में उपयोग होने वाली किसी एक वैकल्पिक संचार माध्यम की चर्चा कीजिए। 22. सूखाड़ से बचाव के तरीकों का उल्लेख करें। 23. सुनामी क्या है? स्पष्ट करें। 24. जीवन रक्षक आकस्मिक प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं? 25. बाढ़ के समय अपनाई जाने वाली सावधानियों का उल्लेख करें। 26. भूकम्प एवं सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के उपायों का वर्णन करें। 27. आपदा प्रबन्धन के उद्देश्यों की विवेचना करें। 28. सुनामी आपदा प्रबंधन पर एक लेख लिखें। 29. सुखाड़ प्रबन्धन का वर्णन करें। 30. बिहार में बाढ़ की स्थिति का वर्णन करें। 31. भूकंप क्या है? भारत के प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में विभाजित करते हुए सभी क्षेत्रों का संक्षिप्त विवरण दें। 33. भूस्खलन के कितने रूप होते हैं? 34. नागरिक सुरक्षा के क्या उद्देश्य हो सकते हैं? 35. भूकंप केंद्र और अभिकेंद्र में अन्तर स्पष्ट करें। 36. सुखाड़ से आप क्या समझते हैं? 37. बाढ़ की स्थिति में अपनाये जाने वाले आकस्मिक प्रबंधन का संक्षेप में वर्णन करें। 32. हैम रेडियो के उपयोग पर प्रकाश डालिए। 38. सामान्य संचार व्यवस्था के बाधित होने के प्रमुख कारणों को लिखिए। 39. भूकम्प संभावित क्षेत्रों में भवनों की आकृति कैसी होनी चाहिए? 40. वर्षा जल संग्रहण से आपका क्या अभिप्राय है? Answers. लघु उत्तरीय प्रश्न 1. बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है। इससे अत्यधिक जान-माल की क्षति होती है। अतः बाढ़ द्वारा क्षति को कम करने के लिए निम्न उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। (i) नदी किनारों पर एवं नदी की ओर ढलानों पर मकानों का निर्माण नहीं करना चाहिए। (ii) नदी तट से कम से कम 250 मीटर दूर मकान बनाना चाहिए। (iii) बाद की संभावना वाले क्षेत्रों में जल निकासी को उपयुक्त व्यवस्था करना ताकि पानी को शीघ्र निकाला जा सके। (iv) गाँव अथवा वस्ती को बाद के स्तर से भी ऊँची जगह पर बसा चाहिए। 2. भूकम्प के प्रभाव को कम करने वाले दो उपाय (i) भवनों को आयताकार होना चाहिए और नक्शा साधारण होना चाहिए। (ii) लंबी दीवारों को सहारा देने के लिए ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कालन होने चाहिए। 3. आपदा प्रबंधन की आवश्यकता आपदा के पूर्व एवं पश्चात होने वाली क्षति को कम करने या बचने से है। प्राकृतिक आपदा या मानव निर्मित आपदा इत्यादि के घटित होने से अधिक मात्रा में जैविक एवं अजैविक संसाधनों का नुकसान होता है। इसी संदर्भ में लोगों को विशेष प्रशिक्षण देकर उसके प्रभाव को कम करना आपदा प्रबंधन कहलाता है। 4. सुखाड़ की अवधि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए। (i) घास का आवरण रहने देना चाहिए। (ii) खेतों की गहरी जुताई किया जाना चाहिए। 5. वर्ष भर में 50cm से कम वर्षा होने एवं भूमिगत जल स्तर के गिरने से उत्पन्न समस्या सूखा कहलाती है। सूखे के कारण पीने हेतु एवं फसलों को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध नहीं हो पाता है। सूखे का सबसे प्रमुख कारण भूमंडलीय ताप में वृद्धि हैं। 6. सुनामी से उत्पन्न तबाही से बचाव के निम्नलिखित तीन उपाय हैं (i) समुद्र तट से दूर बसना चाहिए। (11) समुद्र के किनारे का तटबंध मजबूत होना चाहिए। (iii) समुद्र के तट पर अधिक संख्या में मंग्रोव के पेड़ लगाना चाहिए। 7. आकस्मिक आपदा जैसे संकट का सामना करने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर अनेक प्रयास किए जाते हैं। परन्तु आकस्मिक आपदा प्रबन्धन में स्थानीय प्रशासन की भूमिका अहम होती है। आकस्मिक आपदा की स्थिति में राहत शिविर का निर्माण, उपचार सामग्री की व्यवस्था प्राथमिक उपचार की सामग्रियों, डॉक्टर, एम्बुलेन्स, अग्निशामक इत्यादि की व्यवस्था, करना प्रमुख कार्य है। अधिकारी वर्ग शीघ्र राहत राशि, उचित देखभाल तथा आवश्यक सामग्रियों की व्यवस्था कर सकते हैं। 8. प्राकृतिक आपदा के अंतर्गत बाद, सूखा, भूकम्प, सुनामी, चक्रवात ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन, वज्रपात, मेघ स्फोट इत्यादि आते हैं। इनमें बाढ़, सूखा, भूकम्प और सुनामी अधिक विनाशकारी आपदाएँ हैं और शेष कम विनाशकारी आपदाएँ हैं। 9. आपदा वैसी स्थिति होती है जिसमें बचाव का कोई उपाय संभव नहीं है, पर इससे होनेवाली क्षति को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है। आपदा दी प्रकार की होती है (1) प्राकृतिक आपदा एवं (ii) मानव जनित आपदा । (i) प्राकृतिक आपदा प्राकृतिक कारणों से घटने वाली आपदाएँ प्राकृतिक आपदा कहलाती है। भूकम्प, बाढ़, सुखाड़, सुनामी भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, चक्रवात, वज्रपात इत्यादि इसके उदाहरण हैं। जिस क्षेत्र में यह होती है, वहाँ की पूरी जनसंख्या दुष्प्रभावित हो जाती है। मानव जनित आपदा- मानवीय क्रियाकलापों के कारण जो आपदाएँ आती हैं, उन्हें मानव जनित आपदा कहते हैं। हवाई दुर्घटना, रेल दुर्घटना, जहरीली गैसों का रिसाव, साम्प्रदायिक एवं जातीय दंगे इसका उदाहरण है। ये आपदाएँ सामाजिक आर्थिक जीवन को प्रभावित करती है। 10. भूकम्प और सुनामी दोनों प्राकृतिक आपदाएँ हैं। जब पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों के कारण धरातल पर अचानक कंपन उत्पन्न होता है तब इसे भूकम्प कहा जाता है। जब इस प्रकार का कंपन सागर या महासागर के तल पर होता है तब इसे सुनामी कहा जाता है। 11. बाढ़ आने के निम्नलिखित कारण हैं। (i) नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा । (ii) वनों का विनाश तथा उससे उत्पन्न प्रक्रियाएँ। (iii) नदी की तली में गाद जमा होना। (iv) नदी में अत्यधिक जल की वृद्धि (v) नदी के मार्ग में स्थानान्तरण की प्रवृत्ति । बाढ़ से सुरक्षा के उपाय निम्नलिखित हैं (i) नदियों के किनारे तटबंध बनाना चाहिए। (ii) बाँध बनाकर नदियों के पानी बहाव को नियंत्रित करना चाहिए। (iii) वृक्षारोपण करना चाहिए ताकि मिट्टी पानी के साथ बहकर नदी में (iv) मकान ऊँचे स्थानों पर बनाना चाहिए। (v) नाव की व्यवस्था होनी चाहिए। (vi) बाढ़ प्रभावित हरेक पंचायत में बहुमंजिला भवन बनाना चाहिए जहाँ लोग शरण ले सकें। (vii) सूचनातंत्र को प्रभावकारी बनाना चाहिए। 12. (1) डालू जमीन पर निर्माण कार्य नहीं करें। (ii) असुरक्षित क्षेत्रों का संरक्षण करें। 13. सुनामी के प्रभाव निम्न हैं (i) सुनामी लहरें विनाशकारी होते हैं। (ii) सुनामी लहरों के कारण भयंकर बाढ़ आ जाती है और हजारों लो डूब कर मर जाते हैं। (iii) सुनामी लहरों से सम्पूर्ण तटवर्ती क्षेत्र जलमग्न हो जाता है मकान व कल-कारखानें नष्ट हो जाते हैं जिससे करोड़ों रुपयों की क्षति होती है। 14. आग लगने की स्थिति में सबसे पहले आग में फँसे लोगों को बाहर निकालना एवं घायलों को तत्काल प्राथमिक उपचार देकर अस्पताल पहुंचाना चाहिए। प्राथमिक उपचार में ठंडा पानी डालना, बर्फ से सहलाना, बरनौल आदि का उपयोग करना। आग के फैलाव को रोकना, बालू मिट्टी एवं तालाब के जल का उपयोग करना एवं यदि बिजली से आग लगी हो तो सबसे पहले बिजली का तार काट देना चाहिए। 15. सुखाड़ के उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं (i) वर्षा की मात्रा में कमी होना या मानसून की विफलता। (ii) वायु में शुष्कता तथा पृथ्वी के जलस्तर का नीचे आना। (iii) वनों की कटाई। (iv) नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्रों में बाँधों के निर्माण के कारण जल का कम होना। 16. पहाड़ों पर से पत्थर का खिसकर गिरना एवं पथरीली मिट्टी का बहाव भूस्खलन कहलाता है। भारी वर्षा बढ़, भूकम्प या फिर गुरुत्वाकर्षण प्रक्रिया से भूस्खलन होता है। मानवीय गतिविधियों के कारण भी भूस्खलन की क्रियाएं ज्या होने लगी है। 17. पृथ्वी के भीतर होनेवाली हलचलों से भूपटल पर उत्पन्न कंपन को भूकम् कहा जाता है। भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है। भूकम्प से बचाव के निम्नांकित उपाय (i) भूकम्प नियंत्रण एवं मॉनिटरिंग केन्द्रों की स्थापना करना। (ii) भूकम्परोधी मकानों का निर्माण करना। (iii) मकान छोटा एवं आयताकार बनाना। (iv) सामुदायिक शिक्षा एवं संचार साधनों से लोगों को जागरूक बना l 18. बाढ़ से होनेवाली हानियाँ हैं (i) अपार जन-धन की हानि। (ii) फसलों की बर्बादी (ii) परिवहन व्यवस्था ठप पड़ना। (iv) महामारी फैलना। (v) वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं की क्षति 19. कुछ दुर्घटनाएँ ऐसी होती है जो बिना बुलाए अकस्मात आ धमकती है और अल्प समय में ही जन धन की अपार क्षति पहुँचा देती है। ये हमें संकट की स्थिति में ला देती है। संकट की स्थिति उत्पन्न करनेवाली ऐसी कोई भयावह पटना 'आपदा' कहलाती है। दूसरे शब्दों में हमारे सामाजिक आर्थिक जीवन को भारी खतरे में डालनेवाली अकस्मात घटना आपदा (disaster) है। 20. बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है। अतः इसके नियंत्रण के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए। (i) नदी तटबंधों की मरम्मत का कार्य । (ii) नदी तटबंध के ऊपर वृक्षारोपण कार्य। (iii) सरकार द्वारा नदियों को आपस में जोड़ना । (iv) नदियों से गाद निकालना। (v) सुदूर संवेदन प्रणाली द्वारा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का अध्ययन कर बाँधों का नियमित जाँच करना। 21. प्राकृतिक आपदाकाल में सड़क, रेल लाइन, टेलीफोन लाइन के टूट जाने से संचार व्यवस्था भंग हो जाती है। जिससे बचाव एवं सहायता कार्य में कठिनाई होती है। वर्तमान में हैम- रेडियो वैकल्पिक व्यवस्था में उत्तम साधन है। इसमें टावर इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती। इसमें संबंध बनाने का कार्य सेटेलाइट से होता है। संचार उपग्रह से भी आपदा संबंधी जानकारी मिलती है। संचार उपग्रह पर आपदा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः ऐसे समय में इनका महत्त्व और भी बढ़ जता है । 22. सूखाड़ से बचाव के तरीके निम्नलिखित हैं (i) वर्षा जल संग्रहण का पर्याप्त उपाय करना । (ii) नहर, पईन, तालाब और आहर की व्यवस्था करना । (iii) पशुओं के लिए पर्याप्त चारे की व्यवस्था करना। (iv) पेयजल के सुरक्षित भंडारण 23. महासागरों या सागरों के आन्तरिक पृष्ठीय भागों में उत्पन्न हलचल को सुनामी कहते हैं। इसमें प्रारंभ में एक तीव्र लहर उठती है, फिर जल तरंगों की एक श्रृंखला बन जाती है। गहरे सागर में इसकी गति कम होती है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में मानव जीव-जन्तु, वनस्पति, मकान, उद्योग आदि को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाते हैं। 24. आपदा के प्रारंभ होते ही प्रभावित को आपदा से निजात दिलाने के उद्देश्य से किए जाने वाले कार्य जीवन रक्षक आकस्मिक प्रबंधन कहलाता है। इसके अंतर्गत सहायता पहुँचाने हेतु आम लोगों की एकजुटता अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है जिसके कारण प्रभावित लोगों के जीवन बचाने का कार्य किया जाता है। 25. वाढ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसके घटित होने से जान-माल एवं पशुओं की भारी क्षति पहुँचती है। बाद के समय अपनाई जानेवाली सावधानियाँ इस प्रकार है (i) बाढ़ के समय ऊँची भूमि या ऊँचे छत वाले मकान पर चला जानाचाहिए। (ii) नाव की व्यवस्था रखनी चाहिए। (iii) घर के सामानों/मवेशियों को सुरक्षित स्थान पर रख देना चाहिए। (iv) भोजन एवं पेयजल की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। 26. भूकम्प एवं सुनामी एक प्राकृतिक आपदा है, जो काफी विनाशकारी होता है। भूकम्प से बचाव के भिन्न तरीके हैं l (i) भूकम्प का सटीक पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए। (ii) भूकम्पनिरोधी मकान बनाया जाना चाहिए। (iii) जनता को जागरूक बनाया जाना चाहिए। (iv) विद्यालय में बच्चों को भूकम्प की जानकारी दी जानी चाहिए। सुनामी से बचने के भिन्न तरीके हैं (i) समुद्र के नजदीक तटबंधों का निर्माण किया जाना चाहिए। (ii) तटबंध के किनारे मैंग्रोव वनस्पति लगाया जाना चाहिए। (iii) तटीय क्षेत्रों के नजदीक रहने वाले लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। (iv) सुनामी से प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल मदद पहुँचाना चाहिए। 27. आपदा प्राकृतिक हो या मानवकृत, इसका सीधा असर जन-जीवन पर पड़ता है। आपदा के कारण धन-जन की व्यापक क्षति होती है तथा राष्ट्र का विकास भी दुष्प्रभावित होता है। अतः, यह आवश्यक है कि आपदा का प्रबन्धन किया जाए। यह प्रबन्धन आपदा पूर्व एवं आपदा पश्चात् दो प्रकार का होना चाहिए। आपदा प्रबन्धन हेतु व्यवस्था पंचायत स्तर से लेकर प्रखण्ड, जिला एवं राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक की जानी चाहिए। 28. महासागरीय तली में आने वाले शक्तिशाली भूकम्प को ही सुनामी कहते हैं। सुनामी की सूचना मिलने पर हमें किसी सुरक्षित स्थान पर चला जाना चाहिए। सुनामी के पश्चात क्षतिग्रस्त सड़क, पुल एवं मकान का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सुनामी से बचने के लिए हमें समुद्र के किनारे तटबंध बनाना चाहिए एवं मैंग्रोव वनस्पति लगाना चाहिए। 29. (i) जल-ग्रहण क्षेत्रों में बाँध एवं छोटे-छोटे जलाशय बनाकर । (ii) सुखाड़ क्षेत्रों में वृक्षों की सघनता में वृद्धि कर । (iii) शुष्क फसलों की बुआई एवं ड्रिप सिंचाई विधि को अपनाकर । (iv) नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों तक जल पहुंचाकर । 30. बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ आना इस राज्य की नियति बन चुकी है। उत्तर बिहार का पूर्वी क्षेत्र बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में नेपाल से आनेवालीनदियों द्वारा भारी मात्रा में जल विसर्जित किया जाता है। नदी तल में गाद जमा होने के कारण पानी तटबन्ध को तोड़कर कृषि क्षेत्र एवं अधिवास को क्षतिग्रस्त करता है। कोसी, कमला, बागमती, भुतही बलान, गंडक एवं अधवारा समूह की नदियाँ बाढ़ के लिए कुख्यात है। इससे जान-माल की क्षति अधिक होती है। दक्षिण बिहार में पुनपुन, सोन, फल्गु आदि नदियों द्वारा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कोसी को 'बिहार का शोक' कहा जाता है। 31. पृथ्वी के आंतरिक भागों में अचानक उत्पन्न कंपन को भूकंप कहते हैं। भूकंप की तीव्रता को सिस्मोग्राफ यंत्र द्वारा रिक्टर स्केल में मापते हैं। भारत को निम्नांकित भूकंप क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है— (क) जोन-1-इसके अंतर्गत भारत का दक्षिणी पठारी भाग आता है जहाँ भूकंप का खतरा नहीं के बराबर है। (ख) जोन-11 इसके अंतर्गत प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं जहाँ भूकंप की तीव्रता कम होती है। (ग) जोन-III इसके अंतर्गत मुख्यतः गंगा सिन्धु का मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के क्षेत्र आते हैं। (घ) जोन-IV इसके अंतर्गत शिवालिक हिमालय का क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, असम घाटी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र, अंडमान निकोबार द्वीप समूह यह सब क्षेत्र भूकंप के अधिक खतरनाक क्षेत्रों में आते हैं। (ङ) जोन-V-इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के पर्वतीय भाग, सिक्किम राज्य सम्मिलित हैं जो भूकंप के सर्वाधिक क्षेत्र माने जाते हैं। 32. उच्च आवृत्ति वाली तरंगों का उपयोग करने वाले रेडियो को हैम रेडियो कहा जाता है। बड़ी आपदाओं के समय जहाँ संचार के अन्य साधन काम नहीं करते वहाँ हैम रेडियों काम करता है। उसका प्रयोग गैर-वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसमें सम्बन्ध बनाने का कार्य टावर की बजाय सेटेलाइट द्वारा किया जाता है। इसका प्रयोग बड़ी-बड़ी प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्रों में किया जाता है। आपदा के समय सूचना के प्रेषण में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। इस कारण आपदा के समय वैकल्पिक संचार का यह बेहतर साधन माना जाता है। 33. भूस्खलन कई रूपों में होते हैं जिनमें प्रमुख हैं (i) शैल अथवा मृदा अवपतन इसमें अचानक टूट कर स्थानांतरित हो जाती है। (ii) सर्पण- इसमें बड़े शैल टूट कर गतिमान होकर तेजी से गिरते हैं। (iii) प्रवाह इसमें लगातार शैली का गिरना लंबे समय तक जारी रहता है। (iv) वर्षा के पानी के साथ मिट्टी और कचड़े का नीचे आना। 34. नागरिक सुरक्षा के निम्न उद्देश्य हो सकते हैं (i) नागरिकों को आपदा के संकट से बचाव करना । (ii) उनका प्राथमिक उपचार करना । (iii) खतरों के विषय में जानकारी देना तथा (iv) जीवन को सामान्य करने में उन्हें सहायता प्रदान करना । 35. पृथ्वी की ऊपरी सतह का अचानक काँपना भूकंप कहलाता है। भूकंप का उद्गम पृथ्वी की गहराई में स्थित एक बिंदु से होता है। उस स्थान को ही भूकंप केंद्र कहते है । भूकंप केंद्र अधिक गहराई में उत्पन्न होने पर उसका प्रभाव कम होता है। भूकंप केंद्र से उठने वाली तरंगें समकोण पर चलकर धरातल के जिस भाग पर सर्वप्रथम पहुँचती हैं, धरातल के उस भाग को अभिकेंद्र कहा जाता है। अभिकेंद्र पर भूकंप की तरंगों का प्रभाव अधिक मिलता है। अभिकेंद्र से जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जाती है प्रभाव कम होता जाता है। 36. यदि किसी क्षेत्र में होने वाली औसत वर्षा की मात्रा में 25 प्रतिशत से अधिक कमी आ जाए तो उसे सुखाड़ कहते हैं। 37. बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिससे जान-माल एवं मवेशियों को भारी क्षति पहुँचती है। बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने पर आकस्मिक प्रबंधन के तहत सबसे पहले जल से घिरे हुए व्यक्ति को निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिए। उसके बाद मवेशियों को तथा घर के आवश्यक सामग्रियों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिए। सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के बाद भोजन, पेयजल, वस्त्र एवं समुचित दवाओं का प्रबंध किया जाना चाहिए। 38. संचार-व्यवस्था के बाधित होने के कई कारण हैं (i) केबुल टूट जाना । (ii) बिजली आपूर्ति का बाधित होना । (iii) संचार - भवनों के ध्वस्त होने पर संचार-यंत्रों का क्षतिग्रस्त हो जाना। (iv) ट्रांसमिशन टावर का क्षतिग्रस्त हो जाना आदि । 39. भूकम्प संभावित क्षेत्रों में भूकम्परोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। प्रभावित क्षेत्रों में भवन आयताकार होना चाहिए। भूकम्प 40. वर्षा जल संग्रहण भूमिगत जल की क्षमता को बढ़ाने तथा जल संकट को दूर करने का एक तरीका है। यह ऐसी तकनीक है जिसे स्थानीय आवश्यकता एवं स्थालाकृति के अनुसार अपनाया जाता है।


Political Science Q&A

लघु उत्तरीय प्रश्न 1. लैंगिक विभेद या लैंगिक असमानता क्या है? 2. सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में क्या महत्त्व रखती है? 3. साम्प्रदायिकता क्या है? 4.धर्मनिरपेक्ष राज्य का क्या अर्थ है? 5. साम्प्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने के लिए आप क्या करेंगे? 6. सामाजिक विभाजन से आप क्या समझते हैं? 7. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें, जो भारत को धर्म निरपेक्ष देश बनाता है। . 8. बंधुआ मजदूर किसे कहते हैं? 9. सत्ता की साझेदारी का क्या अर्थ है? 10. परिवारवाद क्या है? 11. धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते है ? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके क्या हैं? 2. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेद-भाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं। 3. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं? स्पष्ट करें। 4. साम्प्रदायिकता के किन्हीं चार कारणों को लिखें। 5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थति क्या है? 6. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ किस प्रकार अनेक प्रकार के सामाजिक विभाजनों को संभालती है l Answers लघु उत्तरीय प्रश्न 1. वास्तव में लिंग के आधार पर समाज दो भागों में बँटा है महिला एवं पुरुष। इन दोनों वर्गों में हमेशा असमानता बनी रहती है। जैविक दृष्टि से असमानता के परिणाम से स्त्रियाँ प्रताड़ित होती हैं। उनकी विभिन्न रूपों में प्रताड़ना का आधार सामाजिक विभेद की स्थितियाँ होती हैं। लिंग आध शारित यह विभेद समाज में स्त्री शक्ति की उपेक्षा को प्रोत्साहित करता है। यह लैंगिक भेदभाव न केवल भारत में किया जाता है, बल्कि के प्रत्येक देश में कमोवेश यही स्थिति है। परन्तु, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी में जमीन-आसमान का अन्तर है। यही लैंगिक विभेद है, जो राष्ट्र के लिए एक गंभीर चुनौती है। 2. सत्ता में साझेदारी की आवश्यकता लोकतंत्र की मजबूती, स्थिरता और इसके आधार को अधिक-से-अधिक व्यापक बनाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। यदि समाज के विभिन्न वर्गों को उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाए तो समाज में हिंसक संघर्ष या गृह युद्ध की स्थिति बन लघु उत्तराय 1. वास्तव में लिंग के आधार पर समाज दो भागों में बँटा है महिला एवं पुरुष। इन दोनों वर्गों में हमेशा असमानता बनी रहती है। जैविक दृष्टि से असमानता के परिणाम से स्त्रियाँ प्रताड़ित होती हैं। उनकी विभिन्न रूपों में प्रताड़ना का आधार सामाजिक विभेद की स्थितियाँ होती हैं। लिंग आध शारित यह विभेद समाज में स्त्री शक्ति की उपेक्षा को प्रोत्साहित करता है। यह लैंगिक भेदभाव न केवल भारत में किया जाता है, बल्कि के प्रत्येक देश में कमोवेश यही स्थिति है। परन्तु, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी में जमीन-आसमान का अन्तर है। यही लैंगिक विभेद है, जो राष्ट्र के लिए एक गंभीर चुनौती है। 2. सत्ता में साझेदारी की आवश्यकता लोकतंत्र की मजबूती, स्थिरता और इसके आधार को अधिक-से-अधिक व्यापक बनाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। यदि समाज के विभिन्न वर्गों को उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाए तो समाज में हिंसक संघर्ष या गृह युद्ध की स्थिति बन जाती है। यदि विभिन्न समूहों को उचित पहचान व सत्ता में साझेदारी नहीं मिलती है तो उनके असंतोष एवं संघर्ष से सामाजिक विभाजन, राजनैतिक अस्थिरता, सांस्कृतिक ठहराव व आर्थिक गतिरोध उत्पन्न होते हैं। उदाहरणस्वरूप बेल्जियम में विभिन्न भाषाई और जातीय समूहों के बीच पनपते टकराव को सत्ता में साझेदार बनाकर दूर किया। अतः लोकतंत्र की सफलता विभिन्न समूहों को शासन में साझीदार बनाने से संभव है। 3. भारत विभिन्न धर्मावलंबियों का देश है। संविधान द्वारा यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। अपने धर्म के अनुसार, पूजा की पद्धति अपनाने और अपनी धार्मिक संस्था के रख-रखाव का अधिकार दिया गया है। प्रत्येक धर्मावलंबी को अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की इजाजत दी गई है। राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप या पक्षपात से अलग है। यदि विभिन्न समूहों को उचित पहचान व सत्ता में साझेदारी नहीं मिलती है तो उनके असंतोष एवं संघर्ष से सामाजिक विभाजन, राजनैतिक अस्थिरता, सांस्कृतिक ठहराव व आर्थिक गतिरोध उत्पन्न होते हैं। उदाहरणस्वरूप बेल्जियम में विभिन्न भाषाई और जातीय समूहों के बीच पनपते टकराव को सत्ता में साझेदार बनाकर दूर किया। अतः लोकतंत्र की सफलता विभिन्न समूहों को शासन में साझीदार बनाने से संभव है। 3. भारत विभिन्न धर्मावलंबियों का देश है। संविधान द्वारा यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। अपने धर्म के अनुसार, पूजा की पद्धति अपनाने और अपनी धार्मिक संस्था के रख-रखाव का अधिकार दिया गया है। प्रत्येक धर्मावलंबी को अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की इजाजत दी गई है। राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप या पक्षपात से अलग रखा 17 गया है। राज्य को धर्म निरपेक्ष बनाया गया है। सही अर्थों में अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ मानने की धारणा साम्प्रदायिकता है। अपने धार्मिक हित पर राष्ट्रहित का बलिदान करना, दूसरे धर्म से घृणा करना, धर्मों के बीच विद्वेष पैदा करना, समाज में विष फैलाना आदि साम्प्रदायिकता है। यह मनुष्य को मनुष्य से, एक समुदाय को दूसरे समुदाय से घृणा करना सिखलाती है। तथा वे एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। 4. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के आधार पर भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इसका अर्थ है कि राज्य धर्म का विरोधी नहीं है। परन्तु, राज्य का अपना कोई धर्म भी नहीं है। राज्य सभी धर्मों को समान आदर और संरक्षण देता है तथा सभी धार्मिक समुदायों और वर्गों को एक समान धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। धार्मिक विभेदों के बीच सामंजस्य, सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव की स्थापना के लिए 'धर्मनिरपेक्षता' की अवधारणा अपनाई जाती है। 5. भारत में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए विभिन्न धर्मों जैसे हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी लोगों के दिल में यह भावना होनी चाहिए कि हम सभी भारतवासी हैं। देश सर्वोपरि है और हम सब को मिल जुलकर रहना है। पर्व त्योहार के अवसर पर भी हम दूसरे सम्प्रदाय के लोगों से मिलते रहें। 6. जाति, धर्म रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा परस्पर गलत व्यवहार करना व उनके आपसी संघर्ष को सामाजिक विभाजन कहते हैं। 7. वे दो प्रावधान निम्नांकित है, जिनसे ज्ञात होता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। (i) यहाँ राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छानुसार कोई भी धर्म अपना सकता है, इसमें राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा। (ii) राज्य धर्म के आधार पर नागरिक नागरिक के बीच किसी प्रकार का विभेद नहीं करेगा। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति, वंश, धर्म, लिंग, भाषा, सम्प्रदाय से सम्बन्धित क्यों न हो, पर उन्हें यह अधिकार है कि वे शिक्षा, खेल-कूद, मनोरंजन एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में समान रूप से भाग ले सकें। 8. बंधुआ मजदूरी की प्रथा अत्यन्त प्राचीन हैं। बंधुआ मजदूर का अर्थ है एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के लिए एक निश्चित अथवा अनिश्चित समय तक बिना मजदूरी के अथवा नाममात्र की मजदूरी के साथ काम करने के लिए बाध्य रहना अर्थात् जो मजदूर अपना श्रम किसी खास व्यक्ति या संस्था को उसी की शर्त पर बेचने के लिए बाध्य हो, बंधुआ मजदूर कहलाता है। 9. सत्ता में साझेदारी को लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण आधार माना गया है। एक समय था जब किसी राज्य में राज्य सत्ता कुछ थोड़े-से लोगों के हाथों में रहती थी। आज का युग विकेन्द्रीकरण का युग है। यह तभी संभव है जब सत्ता में अधिक-से-अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो। सत्ता की साझेदारी जितनी अधिक होगी शांसन में स्थायित्व उतना ही अधिक होगा। नागरिकों द्वारा सरकारी काम-काज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने की क्रिया को सत्ता में साझेदारी की संज्ञा दी जाती है। सत्ता की साझेदारी की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है " किसी भी राज्य के नागरिकों द्वारा सरकारी स्तर पर निर्णय लेने या निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करना सत्ता में साझेदारी है।" मतदान में भाग लेना, किसी संस्था अथवा संगठन द्वारा निर्णय निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करना सत्ता की साझेदारी के उदाहरण कहे जा सकते हैं। 10. अधिकांश राजनीतिक दल एवं उसके नेता अपने ही परिवार एवं सगे-सम्बन्धियों को राजनीति में लाने के लिए चुनाव के अवसर पर उम्मीदवार बनाते हैं। यही राजनीति में परिवारवाद है। हाल के दशकों में यह परम्परा बनी कि किसी प्रतिनिधि के निधन या इस्तीफे के कारण कोई सीट खाली होती है. तो उसके किसी परिजन को चुनाव का टिकट दे दिया जाता है। 11. (i) धर्म-निरपेक्ष राज्य किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं करेगा और न ही किसी धर्म को विशेष दर्जा देगा। (ii) धर्म निरपेक्षता के अंतर्गत संविधान सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने एवं उसका प्रचार करने की आजादी देता है। ये दोनों प्रावधानों से स्पष्ट है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके निम्नांकित प्रकार के हैं (i) सत्ता में साझेदारी के प्रश्न पर भाषा, धर्म, क्षेत्र और समुदायों के बीच भेदभाव समाप्त कर इस क्षेत्र में अवसर की समानता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। (ii) सरकार के तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया है। इससे अधिक से अधिक लोगों की सत्ता में साझेदारी सुनिश्चित होगी। (iii) केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों के बीच सत्ता का विभाजन किया गया है। इस उद्देश्य से ही तीन सूचियाँ बनाई गई है— संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। 2. लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के क्रम में ही लड़कियों को गृहस्थी तक सीमित कर दिया जाता है। उनका काम खाना बनाना एवं बर्तन साफ करना माना जाता है। खान-पान, स्वास्थ्य, शिक्षा में लड़कों पर अधिक व्यय किया जाता है। लड़कियों के प्रति उपेक्षा का दृष्टिकोण होता है। महिलाओं का कार्य घर के अंदर तक ही सीमित रहता है। भ्रूण जाँच कर लड़की की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। महिलाएँ घरेलू कार्य में अतिरिक्त आमदनी के लिए कई कार्य करती भी हैं तो उसे महत्त्व नहीं दिया जाता। राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है। एक सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत रोजाना 7½ घंटे काम करती है जबकि पुरुष 6 घंटे। फिर भी औरतों के काम का महत्त्व नहीं होता। आज भी भारत के अनेक हिस्से में सिर्फ लड़के की चाह है। महिलाओं में साक्षरता की दर 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में 74 प्रतिशत लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत 1 के नीचे है। 3. भारतीय समाज में अभी भी जातिगत असमानताएँ विद्यमान हैं, इसके मुख्य कारण इस प्रकार है— (i) प्रारंभ में जाति का आधार कर्म था, परन्तु जब से जाति का आधार जन्म हो गया, सामाजिक असमानताएँ जड़ जमाने में सफल हो गई। (ii) आज भी भारत में अस्पृश्यता का आचरण दिखाई देता हैं ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि दलित छात्रों के साथ विद्यालयों/छात्रावासों में दुर्व्यवहार किया गया। (iii) प्रत्येक जाति अपनी जातीय प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए जातीय संगठन को विकसित कर जातिगत असमानता बढ़ा रही है। जाति के आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा टिकटों का बंटवारा किए जाने के कारण भी जातिगत असमानताएँ बनी हुई हैं। 4. साम्प्रदायिकता के चार कारण निम्नांकित है। (i) संकीर्ण धार्मिक विचारधारा। (ii) अपने धर्म को अन्य धर्मों से अधिक श्रेष्ठ मानता। (iii) अन्य धर्मों के प्रति घृणा फैलाना । (iv) अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित को न समझना। 5. 16वीं लोकसभा में पहली बार सर्वाधिक 65 महिलाएँ निर्वाचित होकर आई और उनके प्रतिनिधित्व का प्रतिशत 11.97 हो गया है। 17वीं लोकसभा में इनकी संख्या बढ़कर 78 हो गई है। फिर भी इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। भारत में तो विधायिकाओं में भी इनकी स्थिति विकसित देशों की तुलना में कम है। राज्य विधानसभाओं में उनके प्रतिनिधित्व का प्रतिशत इससे भी कम है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ है। 6. भारत में विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, सम्प्रदाय एवं क्षेत्र के लोग निवास करते हैं और इस प्रकार उनमें विभेद बना रहता है। सत्ता में उचित साझेदारी इस विभेद को कम कर देती है और आपस में टकराव की संभावना भी कम हो जाती है। इसी उद्देश्य से भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। सरकार की नीतियों और कानूनों पर जनता का मत अवश्य लिया जाता है। इस प्रकार लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत सामाजिक विभाजन की प्रक्रिया सफलतापूर्वक सम्पन्न होती है।


History

भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India ) भारत में राष्ट्रवाद की चेतना का मुख्य कारण अंग्रेजी शासन व्यवस्था से उत्पन्न असंतोष था। राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ होता है—“राष्ट्रीय चेतना का उदय" । 19 वीं शताब्दी में राष्ट्रीय चेतना का उदय मुख्य रूप से अंग्रेजी शासन व्यवस्था का परिणाम था। भारत में रेलवे, टेलीग्राफ की शुरुआत लॉर्ड डलहौजी के काल में हुई। सरकार द्वारा 1882 में सूती वस्त्रों पर से आयात कर हटा लिया गया था। प्रथम भारतीय आई० सी० एस० सुरेंद्रनाथ बनर्जी थे। 1858 ई० में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा के साथ ही सभी देशी राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। 1878 ई० में वायसराय लॉर्ड लिटन ने 'वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट' पारित किया। 1879 ई० में 'आर्म्स एक्ट' के द्वारा भारतीयों के लिए अस्त्र-शस्त्र रखना गैर कानूनी घोषित किया गया। 1883 ई० में 'इलबर्ट बिल' पारित हुआ जिसके अनुसार भारतीय एवं यूरोपीय व्यक्तियों के फौजदारी मुकदमों की सुनवाई सामान्य न्यायालय में करना था। 1905 ई० में बंगाल-विभाजन लॉर्ड कर्जन ने सांप्रदायिकता के आधार पर यह तर्क देते हुए किया कि इससे प्रशासनिक सुविधा होगी। 1911 ई० में बंगाल विभाजन रद्द हुआ। तिलक और एनीबेसेंट ने आयरलैंड से प्रेरित होकर भारत में होमरूल लीग आंदोलन आरंभ किया। गदर पार्टी की स्थापना लाला हरदयाल ने अमेरिका में 1913 ई० में की थी। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लखनऊ समझौता हुआ। 1919 से 1947 के काल में महात्मा गाँधी की निर्णायक भूमिका रही थी, अतः यह काल “गाँधी युग" के नाम से विख्यात है। 1919 ई० के भारत सरकार अधिनियम को 'मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड' योजना के नाम से जाना गया। जनवरी, 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यों के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। रौलेट एक्ट 1919 के द्वारा किसी भारतीय को बिना अदालत में मुकदमा चलाए जेल में बंद किया जा सकता था। 13 अप्रैल, 1919 को प्रसिद्ध जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। जालियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने 'नाइट' की उपाधि तथा गाँधीजी ने 'कैसर-ए-हिंद' की उपाधि त्याग दी। डॉ० सत्यपाल एवं किचलू पंजाब के राष्ट्रवादी नेता थे जिनको रॉलेट एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (सितंबर, 1920) में असहयोग आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया गया। असहयोग आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन था। चौरी-चौरा कांड 5 फरवरी, 1922 को हुआ था जिसमें भीड़ के द्वारा थाना पर हमला करके 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली गई थी। 12 फरवरी, 1922 को गाँधीजी के निर्णय के द्वारा असहयोग आंदोलन समाप्त कर दिया गया। पूर्ण स्वतंत्रता की माँग कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में की गयी। > नवंबर, 1927 ई० में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन का गठन किया, जिसे साइमन कमीशन कहा जाता है। यह 7 सदस्यीय था। 3 फरवरी, 1928 ई० को साइमन कमीशन बंबई पहुँचा जहाँ इसका स्वागत काले झंडों, हड़तालो और प्रदर्शनों से हुआ। बंगाल में अप्रैल, 1930 ई० में चटगांव में सरकारी शस्त्रागार पर सूर्यसेन के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने छापा मारा। गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया। नेहरू रिपोर्ट 1928 ई० में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में बना था। मोतीलाल नेहरू ने 1928 में संविधान का प्रारूप तैयार किया। 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी समुद्र तट तक गाँधीजी ने ऐतिहासिक यात्रा शुरू की। 5 अप्रैल को गाँधीजी दांडी पहुँचे तथा 6 अप्रैल, 1930 को समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया । सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बिहार में छपरा जेल के कैदियों ने विदेशी वस्त्र पहनने से इंकार किया तथा नंगी हड़ताल का आयोजन किया। गाँधी-इरविन पैक्ट (1931) को दिल्ली समझौता भी कहा जाता है। 26 सितंबर, 1932 को गाँधीजी तथा डॉ० अम्बेदकर के बीच दलित वर्ग के आरक्षण पर पुनः समझौता। लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 ई० में बंगाल विभाजन वापस ले लिया। 1906 ई० में मुस्लिम लीग की स्थापना सर आगा खाँ एवं ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खाँ ने किया। लघु उत्तरीय प्रश्न 1. असहयोग आंदोलन को गाँधीजी ने क्यों स्थगित किया? 2. चम्पारण सत्याग्रह का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 3. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था ? 4. असहयोग आंदोलन प्रथम जन-आंदोलन था। कैसे? 5. स्वदेशी आंदोलन का उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा? 8. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारणों पर प्रकाश डालें। 6. प्रथम विश्वयुद्ध के दो कारणों का वर्णन करें। 7. बिहार के किसान आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखें। 10. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहाँ हुई थी? 11. दांडी यात्रा का उद्देश्य क्या था? 12. खिलाफत आन्दोलन क्यों हुआ? 9. साइमन कमीशन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें। 2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधीजी की भूमिका की विवेचना करें। 3. सविनय अवज्ञा आंदोलन का क्या परिणाम हुआ? 4. जलियाँवाला बाग हत्याकांड का वर्णन संक्षेप में करें। 5. प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ अर्न्तसबंधों की विवेचना करें। 6. रॉलेट एक्ट क्या था? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे प्रभावित किया? 7. प्रथम विश्वयुद्ध के भारत पर हुए प्रभावों का वर्णन करें। 8. भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें। 9. सविनय अवज्ञा आंदोलन का वर्णन करें। 10.'अखिल भारतीय' कांग्रेस की स्थापना कैसे हुई? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्या थे? 11. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों का वर्णन करे | लघु उत्तरीय प्रश्न 1. महात्मा गाँधी द्वारा आरंभ किया गया असहयोग आंदोलन (1920-22) प्रथम जन-आंदोलन था। गाँधीजी का यह आंदोलन सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित था। इस आंदोलन को समाज का हर वर्ग अपना समर्थन दे रहा था। लेकिन 5 फरवरी, 1922 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के चौरी-चौरा नामक स्थान पर आंदोलनकारियों की भीड़ ने पुलिस थाना पर हमला कर 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया। इस घटना से गाँधी जी काफी दुखित हुए। चूँकि उनका आंदोलन पूरी तरह अहिंसात्मक था। अतः उन्होंने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय ले लिया। 2. भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग महात्मा गाँधी ने चंपारण में ही किया था। चंपारण सत्याग्रह अप्रैल, 1917 में बिहार के चंपारण जिले में हुआ था जिसका कारण वहाँ के किसानों के ऊपर निलहे बागान मालिकों का अत्या. चार था। उस समय चम्पारण में बागान व्यवस्था के अंतर्गत नील की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही थी। निलहे साहबों ने अपनी कोठियाँ स्थापित कर रखी थी। ये किसानों को तीनकठिया प्रणाली के अंतर्गत नील की खेती करने को बाध्य करते थे। इस व्यवस्था के द्वारा किसानों को अपनी सबसे अच्छी उपजाऊ भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करनी होती थी। नील उपजाना नहीं चाहते थे, क्योंकि इससे जमीन की उर्वरता कम हो जाती थी। किसानों को उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिलता था जिससे उनकी स्थिति काफी दयनीय हो गई थी। इसके अलावा किसानों से बेगारी भी बागान मालिकों द्वारा कराई जाती थी। उनका आर्थिक और शारीरिक शोषण भी किया जाता था। इससे किसानों की स्थिति काफी चिंताजनक हो गयी थी। इन्हीं बातों को लेकर महात्मा गाँधी ने चंपारण में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। 1918 में चंपारण एग्रेरियन कानून पारित कर निलहों का अत्याचार रोक दिया गया एवं तीन कठिया प्रणाली समाप्त की गई। 3.दांडी यात्रा (12 मार्च, 1930) नमक कानून भंग करने के लिए की गई। नमक के उत्पादन पर सरकारी नियंत्रण था। गाँधीजी इसे अन्याय समझते थे। अतः दांडी पहुँचकर 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर उन्होंने नमक कानून भंग किया। परिणामस्वरूप सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। 4. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाया गया असहयोग आंदोलन प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन को असहयोग और बहिष्कार से शुरुआत किया गया। इस आंदोलन का व्यापक जनाधार था। इस आंदोलन में शहरी वर्ग में मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानों, आदिवासियों एवं श्रमिकों का व्यापक समर्थन मिला। इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ-साथ भारतीयों ने मेसोपोटामिया युद्ध में भरती होने से इनकार कर दिया। 5. 1905 के बंग-भंग आंदोलन ने स्वदेशी और बहिष्कार की नीति से भारतीय उद्योग लाभान्वित हुए। धागा के स्थान पर कपड़ा बनाना आरंभ हुआ। इससे वस्त्र उत्पादन में तेजी आई। 1912 तक सूती वस्त्र का उत्पादन दोगुना हो गया। उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयात शुल्क में वृद्धि करे तथा देशी उद्योगों को रियायत प्रदान करे। कपड़ा उद्योग के अतिरिक्त अन्य छोटे उद्योगों का भी विकास हुआ। 6. प्रथम विश्वयुद्ध के दो कारण निम्नलिखित थे. (i) गुटबन्दी- प्रथम विश्वयुद्ध में विश्व दो खेमों में बँट गया। एक ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और तुर्की थे जिन्हें केन्द्रीय शक्ति कहा गया। दूसरे खेमें में मित्र राष्ट्रों का देश ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका था। (ii) साम्राज्यवादी प्रतिस्पद्ध साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए प्रतिद्वंद्विता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है। 7. 1922-23 में शाह मुहम्मद जुबैर ने मुंगेर में किसान सभा का गठन किया। बिहार में किसान आंदोलन को सहजानन्द ने प्रभावी बनाया। 1928 में इन्होंने बिहटा में तथा 1929 में सोनपुर में किसान सभा की स्थापना की। 1936 में उन्हीं की अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ। पहली सितम्बर, 1936 को बिहार सहित समूचे देश में 'किसान दिवस' मनाया गया। किसानों ने बकाश्त आंदोलन भी चलाया। किसान जमींदारी शोषण, बेगारी की समाप्ति एवं लगान में कमी की माँग कर रहे थे। 8. भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कई कारण थे। अंग्रेजी शासन के परिणामस्वरूप भारत का राजनीतिक एकीकरण, राजनीतिक संस्थाओं का विकास, अंग्रेजी शिक्षा की प्रगति, प्रेस, रेल, दूरसंचार का विकास, पाश्चात्य विचारधारा का प्रसार आदि हुआ। दूसरी तरफ, इसके प्रजातीय भेदभाव, दमनकारी नीति, आर्थिक शोषण के कारण प्रतिक्रिया उत्पन्न होने से भी राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। मध्यम वर्ग का उदय सामाजिक-धार्मिक आंदोलन, भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव की भावना आदि भी इसके उदय के कारण थे। 9. साइमन कमीशन फरवरी, 1928 में भारत आया। इस कमीशन का उद्देश्य संवैधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। 1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायित्व शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करना एवं आवश्यक सुझाव देना था। आयोग के मुंबई पहुँचने पर इसका स्वागत काले झंडों से किया गया एवं 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाए गए। देश भर में इसका विरोध हुआ। प्रदर्शनकारियों पर अंग्रेजी पुलिस ने प्राणघातक हमला किया। 10. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है। 1883 ई० में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बोस ने कलकत्ता में 'नेशनल कांफ्रेंस' नामक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन बुलाया जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट करना था। परंतु, दूसरी तरफ एक अंग्रेज अधिकारी एलेन ऑक्टोवियन ह्यूम ने इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए और 1884 में 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' की स्थापना की। भारतीयों को संवैधानिक मार्ग अपनाने और सरकार के लिए सुरक्षा कवच बनाने के उद्देश्य से ए०ओ० ह्यूम ने 28 दिसम्बर, 1885 को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। इसके प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित थे— (i) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के नाम से जुड़े लोगों के संगठनों के बीच एकता की स्थापना का प्रयास। (ii) देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का संबंध स्थापित कर धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त करना (iii) राष्ट्रीय एकता के विकास सुदृढ़ीकरण के लिए हर संभव प्रयास करना। (iv) राजनीतिक तथा सामाजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों से चर्चा करना एवं उनके संबंध में प्रमाणों का लेखा तैयार करना। (v) प्रार्थना पत्रों तथा स्मार पत्रों द्वारा वायसराय एवं उनकी काउन्सिल से सुधारों हेतु प्रयास करना । इस प्रकार कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देश्य शासन में सिर्फ सुधार करना था । 11. नमक के व्यवहार और उत्पादन पर सरकारी नियंत्रण था। गाँधीजी इसे अन्याय मानते थे एवं इसे समाप्त करना चाहते थे। नमक कानून भंग करने के लिए 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी अपने 78 सहयोगियों के साथ दांडी यात्रा (नमक यात्रा) पर निकले। वे 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसी के साथ नमक सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन) आरंभ हुआ और शीघ्र ही पूरे देश में फैल गया। 12. 'तुर्की का सुल्तान' खलीफा इस्लामी जगत का धर्मगुरु भी था। सेवर्स की संधि द्वारा उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा नष्ट कर दी गई। इससे भारतीय मुसलमान उद्वेलित हो गए। खलीफा को पुराना गौरव या उसकी प्रतिष्ठा को पुनस्थापित करने के लिए 1919 में अली बंधुओं ने खिलाफत समिति बनाकर आंदोलन करने की योजना बनाई। 17 अक्टूबर, 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया। 1924 में तुर्की के शासक मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा खलीफा के पद को समाप्त कर देने से खिलाफत आंदोलन स्वतः समाप्त हो गया। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जनआंदोलन असहयोग आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे (i) रॉलेट कानून— 1919 ई. में न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बना। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार कर जेल में डाला जा सकता था इसके खिलाफ वह कोई भी अपील नहीं कर सकता था। (ii) जलियाँवाला बाग हत्याकांड-13 अप्रैल, 1919 ई० को बैसाखी मेले के अवसर पर पंजाब के जलियाँवाला बाग में सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ लोग एकत्रित हुए थे। जनरल डायर के द्वारा वहाँ पर निहत्थी जनता पर गोली चलवाकर हजारों लोगों की जानें ले ली गयी। गाँधीजी ने इस पर काफी प्रतिक्रिया व्यक्त किया। (iii) खिलाफत आंदोलन—इसी समय खिलाफत का मुद्दा सामने आया 1919 में अलीबंधुओं ने खलीफा की शक्ति की पुनर्स्थापना के लिए खिलाफत आंदोलन आरंभ किया। गांधीजी ने इस अंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त अंग्रेजी राज विरोधी असहयोग आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया। परिणाम-5 फरवरी, 1922 ई को गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर हिंसक भीड़ द्वारा थाने पर आक्रमण कर 22 पुलिसकर्मियों की हत्या दी गयी। जिससे नाराज होकर गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल बंद करने की घोषणा की। असहयोग आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा। असहयोग आंदोलन के अचानाक स्थगित हो जाने और गाँधीजी को गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया। हिंदू-मुस्लिम एकता भंग हो गई तथा संपूर्ण भारत में संप्रदायिकता का बोलबाला हो गया। न ही स्वराज की प्राप्ति हुई और न ही पंजाब के अन्यायों का निवारण हुआ। असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप ही मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास के द्वारा स्वराज पार्टी की स्थापना हुई। 2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 1919-1947 का काल गाँधी युग के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय आंदोलन को गाँधीजी ने एक नई दिशा दिया। सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह का प्रयोग कर गाँधीजी भारतीय राजनीति में छा गए। इन्हीं अस्त्रों का सहारा लेकर उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलनों को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। 1917-18 में उन्होंने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। 1920 ई० में गाँधीजी ने अहसयोग आंदोलन आरंभ किया। जिसमें बहिष्कार, स्वदेशी तथा रचनात्मक कार्यक्रमों पर बल दिया गया। 1930 में गाँधी जी ने सरकारी नीतियों के विरुद्ध दूसरा व्यापक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया। इसका आरंभ उन्होंने 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा से किया। गाँधीजी का निर्णायक आंदोलन 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन था जिसमें उन्होंने लोगों को प्रेरित करते हुए 'करो या मरो' का मंत्र दिया। गाँधीजी के सतत् प्रयत्नों के परिणामस्वरूप ही 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी प्राप्त हुई। वे एक राजनीतिक नेता के साथ-साथ प्रबुद्ध चिंतन समाजसुधारक एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। 3. सविनय अवज्ञा के निम्नलिखित परिणाम हुए (i) इस आंदोलन ने समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण किया तथा लोगों में अंग्रेज विरोधी भावनाएँ व्याप्त हुई। (ii) सर्वप्रथम इस आंदोलन में महिलाओं का प्रभावी भूमिका देखा गया। (iii) आर्थिक बहिष्कार की नीति से ब्रिटिश आर्थिक हितों को क्षति पहुँची। (iv) इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा 1935 ई० में भारत शासन अधिनियम पारित किया जाना। 4. डॉ. सत्यपाल तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को एक सभा हो रही थी। सभा में पूर्णतः शांति थी। इसी समय जनरल डायर नामक एक अंग्रेज अफसर आया और एक मात्र प्रवेश द्वार को घेर लिया। उसने बिना कोई चेतावनी दिए सभा में उपस्थित निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दीं। गोलीबारी लगभग दस मिनट तक करीब 1650 राउंड चलती रही। फलतः करीब 179 लोग मारे गए और लगभग 2000 घायल हुए। अत्याचार की हद तब और मनुष्यता का उल्लघंन कर गई जब पंजाब में फौजी कानून (मार्शल लॉ) लगा दिया गया। पंजाब में हुए अत्याचार की खबर पाते ही सारे देश में खलबली मच गई। लेकिन, फौजी कानून से जनता आतंकित नहीं हुई और इसके तुरंत बाद खिलाफत और असहयोग आंदोलन आरंभ हुए। डायर की इस बेमिसाल पशुता और जान-बूझकर किए गए नरसंहार' से अंग्रेजों की आत्मा काँप उठी और उन्होंने भी इसकी निंदा की थी। इस घटना से विक्षुब्ध होकर गाँधीजी ने 'केसर-ए-हिन्द' तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'सर' की उपाधि लौटा दी। 5. प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की व्यवस्था करना है। इससे आशान्वित होकर भारतीय युद्ध प्रयासों में सरकार का सहयोग करने लगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। इससे राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गई। बुद्ध के दौरान बड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भरती कर उन्हें विदेश भेजा गया। सरकार ने इस खर्च पर सीमा शुल्क एवं अन्य करों में वृद्धि की। इससे महँगाई और गरीबी बड़ी जिससे जनता आक्रोशित हो उठी। युद्धकाल में भारत सहित विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ गई। इसे दबाने के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया जिसकी भारतीयों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। युद्धकाल में स्वराज-प्राप्ति के लिए प्रयास तेज कर दिए गए। होमरूल आंदोलन द्वारा पूरे देश में स्वशासन की माँग के लिए वातावरण तैयार किया गया। कांग्रेस के उदारवादियों और राष्ट्रवादियों का भी मेल हुआ जिससे संगठित राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ी। गाँधीजी का पदार्पण हुआ जिससे राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा मिली। भारत सचिव मांटेग्यू ने अगस्त, 1917 में संवैधानिक सुधारों की घोषणा की। इसके आधार पर मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड योजना लागू की गई। अंततः प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत सहित पूरे एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी भावना को प्रबल बनाया। भारत में बढ़ती राष्ट्रवादी आंदोलनों एवं असंतोष को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1919 में रॉलेट एक्ट पास किया। इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना साक्ष्य एवं वारंट के गिरफ्तार कर सकती तथा उस पर मुकदमा चलाकर दंड भी दे सकती थी। ऐसे मुकदमों में फैसले के विरुद्ध अपील भी नहीं कर सकते थे। भारतीयों ने इस कानून का विरोध कर इसे 'काला कानून' कहा। गाँधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन करने वाला बताया। इसके बाद गाँधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ कर दिया। इस कानून के विरोध में कई स्थानों पर प्रदर्शन हुए। देश भर के दुकानों तथा कारखानों में हड़ताल हुए। विरोधी सभाएँ हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई अनेक व्यक्ति मारे गए। इससे कुद्ध भीड़ ने डाकखाना, बैंक, तारघर, रेलवे स्टेशन पर तोड़-फोड़ कर घटना को अंजाम दिया। घटना की जानकारी लेने जब गाँधीजी अमृतसर जा रहे थे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी से देश भर में आक्रोश फैल गया। स्थिति काबू से बाहर हो जाने पर नगर का शासन सेना के हाथों में सौंप दिया गया। इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन प्रभावित हुआ। 7.प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा था। विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों से राष्ट्रीय आंदोलन भी प्रभावित हुआ। ब्रिटेन ने भारतीय नेताओं की सहमति लिए बिना भारत को युद्ध में घसीट लिया था। कांग्रेस, उदारवादियों और भारतीय रजवाडों ने इस उम्मीद से अंग्रेजी सरकार को समर्थन दिया कि युद्ध के बाद उन्हें स्वराज की प्राप्ति होगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित कर दिया जिससे जनता की स्थिति काफी बदतर हो गई। विश्वयुद्ध का प्रभाव राजनीतिक गतिविधियों पर भी पड़ा। विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियाँ काफी बढ़ गई तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला। 8. 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में मजदूरों के आंदोलन हुए तथा उनके संगठन बने। श्रमिक आंदोलन को वामपंथियों का सहयोग एवं समर्थन मिला। शोषण के विरुद्ध श्रमिक वर्ग संगठित हुआ। अपनी माँगों के लिए इसने हड़ताल का सहारा लिया। प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व इसके दौरान एवं बाद में अनेक हड़तालें हुई। हड़ताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए मजदूरों ने अपने संगठन बनाए। 1920 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन का गठन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ। विभिन्न श्रमिक संगठनों को इससे सम्बद्ध किया गया। आगे चलकर साम्यवादी प्रभाव के कारण इस संघ में फूट पड़ गई और साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित संगठन ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन एंड ट्रेड यूनियन काँग्रेस का गठन हुआ। 1935 में तीनों श्रमिक संघ पुनः एकजुट हुए, तब से श्रमिक संघ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। 9. 1920 और 1930 के बीच में भारतीय राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गई थीं। असहयोग आंदोलन की विफलता, 1919 के अधिनियम तथा साइमन आयोग (1927) से असंतोष, नेहरू रिपोर्ट (1928) को सभी दलों का सहयोग न मिलना और हिन्दू-मुस्लिम असहमति पूर्ण स्वराज्य की माँग (1929) आदि के कारण भारतीय राजनीति में उबाल आ गया था। ऐसे माहौल में गाँधीजी ने नमक कानून के विरोध के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया। इस आंदोलन में सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया। इस प्रकार यह राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन साबित हुआ। इसके पश्चात भारतीयों ने ब्रिटिश राजनीतिक आर्थिक नीतियों का विरोध किया। भारतीय महिलाओं ने बहिष्कार की नीति को सफल बनाने में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस आंदोलन का ब्रिटिश सरकार पर भी प्रभाव पड़ा। सरकार ने कांग्रेस को जनता की प्रतिनिधि संस्था मानते हुए उसके साथ समझौता करना आवश्यक समझा। इस कारण 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के तहत भारतीय प्रान्तों में कांग्रेस की सरकार बनी और अनेक समस्याओं को सुलझाने का भारतीयों को प्रशासनिक अवसर प्राप्त हुआ। 10.1885 ई० के पूर्व देश में कोई अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था नहीं थी। आर्म्स एक्ट और इलबर्ट बिल पर हुए विवाद एवं भारतीय प्रतिक्रिया को देखते हुए एक अखिल भारतीय राजनीतिक दल (संगठन) की आवश्यकता महसूस की गई। अतः 1883 ई. में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बसु ने कलकत्ता में 'नेशनल कॉन्फ्रेस' का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादी शक्तियों को एक जुट करना था। इसी समय एक उदारवादी सेवानिवृत्त अंग्रेज पदाधिकारी ए. ओ. ह्यूम भी इस दिशा में प्रयासरत थे। म ने लॉर्ड डफरिन एवं ब्रिटिश पार्लियामेन्ट्री कमिटी की सहमति से नेशनल कांग्रेस की स्थापना की घोषणा दिसम्बर, 1885 में की। इसका अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ। इसकी अध्यक्षता उमेशचन्द्र बनर्जी ने की। काँग्रेस का आरंभिक उद्देश्य राष्ट्रीय एकता स्थापित करना, भारतीयों मैं मैत्री और सहयोग की भावना विकसित करना, देशहित में कार्य करना, राजनैतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श करना, भारतीय समस्याओं को दूर करने के लिए अंग्रेजी सरकार को स्मारपत्र देना आदि। ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930ई0 में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित 11.(i) साइमन कमीशन सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में बनाया गया यह 7 सदस्यीय आयोग था जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। भारत में साइमन कमीशन के विरोध का मुख्य कारण कमीशन में एक भी भारतीय को नहीं रखा जाना तथा भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। (ii) नेहरू रिपोर्ट कांग्रेस ने फरवरी, 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया। समिति ने ब्रिटिश सरकार से 'डोमिनियन स्टेट' की दर्जा देने की माँग की। यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सका, लेकिन संप्रदायिकता की भावना उभरकर सामने आई। अतः गाँधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम पेश किया। (iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। भारत का निर्यात कम हो गया लेकिन अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया। पूरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ा। (iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव- इस समय कांग्रेस के युवा वर्गों के बीच मार्क्सवाद एवं समाजवादी विचार तेजी से फैल रहे थे, इसकी अभिव्यक्ति कांग्रेस के अंदर वामपंथ के उदय के रूप में हुई वामपंथी दबाव को संतुलित करने हेतु आंदोलन के नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी। (v) क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार- इस समय भारत की स्थिति विस्फोटक थी। 'मेरठ षड्यंत्र केस' और 'लाहौर षड्यंत्र केस' ने सरकार विरोधी विचारधारा को उग्र बना दिया था। बंगाल में भी क्रांतिकारी गतिविधियों एक बार फिर उभरी। (vi) पूर्णस्वराज्य की माँग दिसंबर, 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन मैं पूर्ण स्वराज्य की माँग की गयी। 26 जनवरी, 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा के साथ ही पूरे देश में उत्साह की एक नई लहर जागृत हुई। (vil) गाँधी का समझौतावादी रुख आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व गाँधी ने वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष अपनी 11 सूत्रीय माँग को रखा। परंतु इरविन ने माँग मानना तो दूर गाँधी से मिलने से भी इनकार कर दिया। सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था। अतः बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना आंदोलन दांडी मार्च से आरंभ करने का निश्चय किया।


History

1. कैसे, कब और कहाँ • रॉबर्ट क्लाइव ने रेनेल को हिंदुस्तान के नक्शे तैयार करने का काम सौंपा था। भारत पर अंग्रेजों की विजय के समर्थक रेनेल को वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया नक्शे तैयार करना । ● भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स था । • आखिरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबैटन था | • 1817 में स्कॉटलैंड वेफ अर्थशास्त्री और राजनीतिक दार्शनिक जेम्स मिल ने • तीन विशाल खंडों में ए हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया (ब्रिटिश भारत का इतिहास) नामक एक किताब लिखी। इस किताब में जेम्स मिल ने भारत के इतिहास को हिंदू, मुसलिम और ब्रिटिश, इन तीन काल खंडों में बाँटा था। • इतिहास को हम अलग-अलग काल खंडों में बाँटने की कोशिश इसलिए करते हैं। इसकी भी एक वजह है। हम एक दौर की खासियतों, उसके केंद्रीय तत्वों को पकड़ने की कोशिश करते हैं। इसीलिए ऐसे शब्द महत्वपूर्ण हो जाते हैं जिनके सहारे हम समय को बाँटते हैं। ये शब्द अतीत के बारे में हमारे विचारों को दर्शाते हैं। वे हमें बताते हैं कि एक अवधि से दूसरी अवधि के बीच आए बदलावों का क्या महत्व होता है। मिल को लगता था कि सारे एशियाई समाज सभ्यता के मामले में यूरोप से पीछे हैं। • जेम्स मिल का मानना था कि भारत में अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ हिंदू और मुसलमान तानाशाहों का ही राज चलता था। यहाँ चारों ओर केवल धार्मिक बैर, जातिगत बंधनों और अंधविश्वासों का ही बोलबाला था | • मिल ने तो यहाँ तक सुझाव दिया था कि अंग्रेजों को भारत के सारे भूभाग पर कब्जा कर लेना चाहिए ताकि भारतीय जनता को ज्ञान और सुखी जीवन प्रदान किया जा सके। उनका मानना था कि अंग्रेजों की मदद के बिना हिंदुस्तान प्रगति नहीं कर सकता। • ब्रिटिश शासन के कारण यहाँ की मूल्य-मान्यताओं और पसंद-नापसंद, रीति-रिवाज व तौर-तरीकों में बदलाव आए जब एक देश पर दूसरे देश के दबदबे से इस तरह के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते हैं तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है। • अंग्रेजी शासन द्वारा तैयार किए गए सरकारी रिकॉर्ड इतिहासकारों का एक महत्वपूर्ण साधन होते हैं। • अंग्रेजों को यह भी लगता था कि तमाम अहम दस्तावेशों और पत्रों को सँभालकर रखना शरूरी है। महत्वपूर्ण दस्तावेशों को बचाकर रखने के लिए अभिलेखागार (आर्काइव) और संग्रहालय जैसे संस्थान भी बनाए गए । • अंग्रेजों का विश्वास था कि किसी देश पर अच्छी तरह शासन चलाने के लिए उसको सही ढंग से जानना जरूरी होता है। • उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक पूरे देश का नक्शा तैयार करने के लिए बड़े-बड़े सर्वेक्षण किए जाने लगे। गांवों में राजस्व सर्वेक्षण किए गए। इन सर्वेक्षणों में धरती की सतह, मिट्टी की गुणवत्ता, वहाँ मिलने वाले पेड़-पौधों आरै जीव-जंतुओं तथा स्थानीय इतिहासों व फैसलों का पता लगाया जाता था। • जनगणना के जरिए भारत के सभी प्रांतों में रहने वाले लोगों की संख्या, उनकी जाति, इलाके और व्यवसाय के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा की जाती थीं। इसके अलावा वानस्पतिक सर्वेक्षण, प्राणि वैज्ञानिक सर्वेक्षण, पुरातात्वीय सर्वेक्षण, मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण, वन सर्वेक्षण आदि कई दूसरे सर्वेक्षण भी किए जाते थे। • जैसे-जैसे छपाई की तकनीक फैली, अखबार छपने लगे और विभिन्न मुद्दों पर जनता में बहस भी होने लगी। नेताओं और सुधारकों ने अपने विचारों को फैलने के लिए लिखा, कवियों और उपन्यासकारों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लिखा। प्रश्न 1: रॉबर्ट क्लाइव ने किस व्यक्ति को हिंदुस्तान का नक्शा तैयार करने का कार्य सौपा था ? उत्तर रेनेल को | प्रश्न 2: इतिहास में किन घटनाओं के लिए तिथियाँ महत्वपूर्ण है ? उत्तर : इतिहास में निम्न घटनाओं के लिए तिथियाँ महत्वपूर्ण होती है, जैसे राजा को कब ताज पहनाया गया, किस साल उसकी शादी हुई, किस साल उसके घर बच्चा पैदा हुआ, किस साल वह कौन सी लड़ाई लड़ी, कब उसकी मृत्यु हुई और उसके बाद कौन शासक गद्दी पर बैठा | प्रश्न 3: भारत का प्रथम गवर्नर जनरल कौन था ? उत्तर: वॉरेन हेस्टिंग्स 1773 ई0 में । प्रश्न 4: भारत का आखिरी वायसराय कौन था ? उत्तर: लार्ड माउन्टबैटन | प्रश्न 5: जेम्स मिल कौन था ? उत्तर : जेम्स मिल स्कॉटलैंड का एक अर्थशास्त्री और राजनितिक दार्शनिक था । उसने ए हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया नामक एक किताब लिखी | प्रश्न 6: जेम्स मिल ने भारतीय इतिहास को कितने काल खण्डों में बाँटा है। उत्तर : जेम्स मिल में भारतीय इतिहास को तीन काल खंडो में बाँटा है। (i) हिन्दू (ii) मुसलमान (iii) ब्रिटिश प्रश्न 7: इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को कितने भागों में बाँटा ? उत्तर: इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को निम्न भागों में बाँटा | (i) प्राचीन भारत (ii) मध्यकालीन भारत (iii) आधुनिक भारत प्रश्न 8 : अंग्रेजों को क्यों लगता था कि सही तरह शासन चलने के लिए सर्वेक्षण महत्वपूर्ण होते हैं ? उत्तर : इसके निम्न कारण हैं। (i) अंग्रेजों का विश्वास था कि किसी देश पर अच्छी तरह शासन चलाने के लिए उसको सही ढंग से जानना जरुरी होता है । (ii) सर्वेक्षणों से धरती की सतह, मिट्टी की गुणवता पेड़ पौधे, जीव-जंतु तथा स्थानीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती हैं । (iii) इसी कदम में अंग्रेजों ने जनगणना शुरू की और कई प्रकार के सर्वेक्षण किये | प्रश्न 9: अंग्रेजों ने सरकारी दस्तावेजों को किस तरह सुरक्षित रखा ? उत्तर: अंग्रेजों ने सरकारी दस्तावेजों को संग्रहालय तथा अभिलेखागार बनाकर सुरक्षित रखा | प्रश्न 10 : भारत में नक्शा बनाने का विभाग कौन सा है ? उत्तर: सर्वे ऑफ़ इण्डिया | प्रश्न 12 : सर्वे ऑफ़ इण्डिया का मुख्यालय कहाँ है ? उत्तर : सर्वे ऑफ़ इण्डिया का मुख्यालय देहरादून में है । प्रश्न 11: सर्वे ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब और किस शासन में हुई ? उत्तर : सर्वे ऑफ इण्डिया की स्थापना सन 1803 में ब्रिटिश शासन में हुई । प्रश्न 13: मुगल सम्राज्य का अंतिम बादशाह कौन था ? उत्तर : सर्वे ऑफ़ इण्डिया का मुख्यालय देहरादून में है । उत्तर: बहादुर शाह जफ़र । प्रश्न 14: जनगणना किसे कहते है ? उत्तरः ब्रिटिश शासन से ही भारत में प्रत्येक 10 वर्ष पर जनता से जुडी जानकारियों के लिए एक सर्वेक्षण किया जाता है और सभी नागरिकों की गणना की जाती है जिसे जनगणना कहते है। प्रश्न : पश्चिम में आधुनिक युग को कैसा युग माना जाता है ? उत्तर : पश्चिम में आधुनिक काल को विज्ञान, तर्क, लोकतंत्र, मुक्ति और समानता जैसी आधुनिकता की ताकतों के विकास का युग माना जाता है । प्रश्नः औपनिवेशिक युग किसे कहा जाता है ? उत्तरः औपनिवेशिक युग वह युग है जिसमें कोई देश किसी देश के राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से दबा कर उस पर शासन करता है। भारत पर ब्रिटिश शासन का युग औपनिवेशिक युग कहलाता है। प्रश्नः औपनिवेशीकरण किसे कहते है ? उत्तर : जब एक देश पर दुसरे देश के दबदबे से इस तरह के राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते है तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है। प्रश्न: जनगणना में किस तरह की जानकारियां इक्कठा की जाती थी ? उत्तर : जनगणना मके जरिये भारत के सभी प्रान्तों में रहने वाले लोगों की संख्या, उनकी जाति, इलाके और व्यवसाय के बारे में जानकारियाँ इकठ्ठा की जाती थी । प्रश्न: "ए हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इण्डिया" नामक पुस्तक किसने लिखी ? उत्तर: जेम्स मिल ने ।


History VIII

2. व्यापार से साम्राज्य तक ● मुगल बादशाहों में औरंगजेब आखिरी शक्तिशाली बादशाह थे। उन्होंने वर्तमान भारत के एक बहुत बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। • 1707 में उनकी मृत्यु के बाद बहुत सारे मुगल सूबेदार और बड़े-बड़े जमींदार अपनी ताकत दिखाने लगे थे। उन्होंने अपनी क्षेत्रीय रियासतें कायम कर ली थी। • अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध तक राजनीतिक क्षितिज पर अंग्रेजों के रूप में एक नयी ताकत उभरने लगी थी। • अंग्रेज पहले-पहल एक छोटी-सी व्यापारिक कंपनी रूप में भारत आए थे | बाद में विशाल साम्राज्य के स्वामी बन बैठे | • कैप्टन हडसन द्वारा बहादुर शाह ज़फर और उनके बेटों की गिरफ्तारी हुई। ● औरंगजेब के बाद कोई मुगल बादशाह इतना ताकतवर तो नहीं हुआ लेकिन एक प्रतीक के रूप में मुगल बादशाहों का महत्व बना हुआ था। • जब 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारी विद्रोह शुरू हो गया तो विद्रोहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को ही अपना नेता मान लिया था। जब विद्रोह कुचल दिया गया तो कंपनी ने बहादुर शाह जफर को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और उनके बेटों को जफर के सामने ही मार डाला। • वाणिज्यिक एक ऐसा व्यावसायिक उद्यम जिसमें चीजों को सस्ती कीमत -पर खरीद कर और ज़्यादा कीमत पर बेचकर यानी मुख्य रूप से व्यापार के जरिए मुनाफा कमाया जाता है। प्रश्न: अंतिम शक्तिशाली मुगल शासक का नाम बताइए? उत्तर: औरंगजेब | प्रश्न: मुगल साम्राज्य क्यों कमजोर पड़ गया? उत्तर: औरंगजेब की मृत्यु के बाद कई मुग़ल गवर्नरों ने अपने- अपने क्षेत्रीय - राज्यों की स्थापना करनी शुरू कर दी। इससे मुग़ल साम्राज्य कमजोर पड़ गया | प्रश्न: ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब और कहाँ हुई ? उत्तर : ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना सन 1600 में लंदन में की गयी | प्रश्नः पूर्व के साथ व्यापार करने का चार्टर (अनुमति पत्र ) कंपनी को किसने किया? उत्तर: महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने। प्रश्नः कौन सी पश्चिमी ताकत सबसे पहले भारत में आई? उत्तरः पुर्तगाली | प्रश्न: किसने भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज की और कब? उत्तरः पुर्तगाली नाविक वास्को डि गामा ने 1498 में भारत के लिए खोज की। प्रश्नः भारत में पुर्तगाली अड्डा कहाँ था? उत्तर: गोवा में हुआ था । प्रश्नः यूरोपीय शक्तियों के लिए प्रमुख व्यापारिक वस्तु कौन-सी है ? उत्तर: सूती एवं रेशम कपड़े, काली मिर्च, लोंग, इलायची, आदि। प्रश्नः पहली अंग्रेजी फैक्टरी (करखाना) की स्थापिना कब और कहाँ की गई थी? उत्तर: पहली फैक्ट्री की स्थापना 1651 में हुगली नदी के तट पर की गई थी। प्रश्नः फैक्टर किसे कहा जाता था ? उत्तर: कंपनी के व्यापारी हुगली नदी के किनारे से ही अपना काम चलाते थे, इन व्यापारियों को उस ज़माने में फैक्टर कहा जाता था । समुदी मार्ग की प्रश्नः पहली इंगलिश फैक्ट्री कहाँ और कब शुरू हुई ? उत्तर: पहली इंगलिश फैक्ट्री 1651 ई0 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई । प्रश्नः फरमान का क्या अर्थ है ? उत्तरः फरमान का अर्थ एक शाही आदेश होता हैं । प्रश्नः बंगाल के पहले नवाब कौन थे ? उत्तरः नवाब मुर्शिद कुली खान थे। प्रश्न: बंगाल का आखिरी नवाब कौन था ? उत्तरः नवाब सराजुदौला | प्रश्नः प्लासी का नाम किस तरह पड़ा ? उत्तर: दरअसल असली नाम पलाशी था जिसे अंग्रेजों ने बिगाड़ कर प्लासी कर दिया । इस जगह को पलाशी, यहाँ पलाश के पाए जाने वाले पलाश के फूलों के कारण कहा जाता था । प्रश्नः अलीवर्दी खान की मृत्यु कब हुई ? उत्तरः सन 1756 में | प्रश्न: बक्सर की लड़ाई कब हुई थी ? उत्तरः 1764 में | प्रश्नः रोबर्ट क्लाइव इंग्लैंड से जब भारत आया था तब उसकी उम्र क्या थी ? उत्तर: रोबर्ट क्लाइव 1743 में मद्रास आया था तब उसकी उम्र 18 वर्ष थी । प्रश्नः विलय निति की शुरुआत किसने की थी ? उत्तर: लार्ड डलहौजी ने | प्रश्नः पलाशी की जंग क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती थी ? उत्तर: प्लासी की जंग इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि भारत में यह कंपनी की पहली बड़ी जित थी । प्रश्नः पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई थी ? उत्तर: 1761 में | प्रश्न: बक्सर की लड़ाई में किसकी हार हुई ? उत्तर: मीर कासिम की हार हुई। प्रश्नः टीपू सुल्तान कहाँ का शासक था ? उत्तर: मैसूर का शासक था । प्रश्नः नवाब बनने का क्या मतलब था ? उत्तरः नवाब बनने का मतलब था अंग्रेजों की गुलामी करना, सारी ताकत और सत्ता कंपनी के पास ही होती थी । प्रश्नः टीपू सुल्तान की मृत्यु कब हुई ? उत्तरः 4 मई 1799 में | प्रश्नः टीपू सुल्तान मैसूर का राजा कब बना ? उत्तर: 1782 में | प्रश्नः काजी का अर्थ लिखिए । उत्तरः काजी का अर्थ एक न्यायधीश होता है। प्रश्नः विलयन निति का सिद्धांत किस तर्क पर आधारित था ? उत्तर: यह सिद्धांत इस तर्क पर आधारित था कि अगर किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है तो अंग्रेज उस राज्य को अपने में मिला लेते थे । प्रश्नः प्रेजिडेंसी किसे कहा जाता था ? उत्तर ब्रिटिश इलाके मोटे तौर पर प्रशासकीय ईकाइयों में बंटे हुए थे जिन्हें प्रेजिडेंसी कहा जाता था | प्रश्न: उस समय कितनी और कौन-कौन सी प्रेजिडेंसी थीं ? उत्तर: उस समय तीन प्रेजिडेंसी थी. बंगाल मद्रास और मुंबई । उत्तरः उस समय तीन प्रेजिडेंसी थी, बंगाल मद्रास और मुंबई । प्रश्न: महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ? उत्तरः 1839 में | प्रश्न: महाभियोग किसे कहा जाता है ? उत्तर: जब इंग्लैंड के हॉउस ऑफ कॉमन्स में किसी व्यक्ति के खिलाफ दुराचरण का आरोप लगाया जाता था, तो हॉउस ऑफ लॉर्ड्स में उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलता है तो उसे महाभियोग कहा जाता है । प्रश्नः वारेन हेस्टिंग पर मुकदमा कब जरी हुआ ? उत्तर: 1789 में | प्रश्नः वारेन हेस्टिंग इंग्लैंड कब लौटा ? उत्तरः 1785 में | प्रश्न: रोबर्ट क्लाइव ने आत्महत्या कब और क्यों की ? उत्तर: रोबर्ट क्लाइव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। 1772 में ब्रिटिश संसद में उसे अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप का जबाब देना पड़ा। बाद में उसे बरी कर दिया गया। लेकिन 1774 में उसने आत्महत्या कर ली प्रश्नः चेनम्मा कौन थी ? उत्तरः चेनम्मा कर्णाटक के कितुर की रानी थी ? प्रश्नः चेनम्मा की मृत्यु कब और कहाँ हुई ? उत्तरः चेनम्मा की मृत्यु 1829 में जेल में हुई ? प्रश्नः रानी चेनम्मा की जेल में मृत्यु कैसे हुई ? उत्तरः जब अंग्रेजों ने कितुर के छोटे से राज्य को कब्जे में लेने की कोशिश किया तो रानी चेनम्मा ने हथियार उठा लिए और अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया | प्रश्न: ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आने का क्या उदेश्य था ? उत्तर : ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार के उदेश्य से आया था | प्रश्नः यूरोप के बाजारों में किन-किन भारतीय बस्तुओं की मांग थी ? उत्तर: यूरोप के बाजारों में सूती बस्त्र, रेशम के वस्त्र और इसके साथ काली मिर्च, लौंग, इलाइची और दालचीनी जैसे मसालों की जबरदस्त मांग थी । प्रश्न: वाणिज्यिक शब्द का अर्थ बताइए | उत्तर: एक ऐसा व्यवसायिक उद्यम जिसमें चीजों को सस्ती कीमत पर खरीद कर और ज्यादा कीमत पर बेचकर यानी मुख्य रूप से व्यापार के जरिये मुनाफा कमाया जाता है | प्रश्नः सहायक संधि के फलस्वरूप अंग्रेजों ने कौन-कौन से इलाकों को अपने कब्जे में लिया ? उत्तर: गवर्नर-जेनरल रिचर्ड वेलेज्ली ने उस समय के नवाब को 1801 में अपना आधा इलाका कंपनी को सौंपने के लिए मजबूर किया क्योंकि नवाब "सहायक सेना के लिए पैसा अदा करने से चुक गए थे इसी आधार पर हैदराबाद के भी कई इलाके छीन लिए गए । प्रश्न 2. खाली स्थान भरै (क) बंगाल पर अंग्रेजों की जीत की जंग से शुरू हुई थी। उत्तर प्लासी (ख) हैदर अली और टीपू सुल्तान के शासक थे। उत्तर मैसूर, (ग) डलहौजी ने का सिद्धांत लागू किया। उत्तर विलय, (घ) मराठा रियासतें मुख्य रूप से भारत के भाग में स्थित थीं। उत्तर दक्षिण प्रश्न 3. सही या गलत बताएँ: (क) मुगल साम्राज्य अठारहवीं सदी में मजबूत होता गया। उत्तर गलत, (ख) इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के साथ व्यापार करने वाली एकमात्र यूरोपीय कंपनी थी। उत्तर गलत, (ग) महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के राजा थे। उत्तर सही, (घ) अंग्रेजों ने अपने कब्जे वाले इलाकों में कोई शासकीय बदलाव नहीं किए। उत्तर गलत आइए विचार करें प्रश्न 4. यूरोपीय व्यापारिक कंपनियाँ भारत की तरफ क्यों आकर्षित हो रही थी? उत्तर यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के भारत की तरफ आकर्षित होने के निम्नलिखित कारण थे 1. यूरोपीय कंपनियों ने भारत के साथ व्यापार में अपार संभावनाएँ देखी। 2 यूरोपीय देशों में भारत की अनेक वस्तुओं की भारी माँग थी, जैसे- कपास, रेशम, काली मिर्च, लौंग, इलायची और दालचीनी इत्यादि । 13. वे भारत में कम कीमत पर सामानों की खरीदकर वापस यूरोप जाकर उन्हें ऊँची कीमतों पर बेच सकते थे। इन्हीं व्यापारिक संभावनाओं के कारण यूरोपीय कंपनियाँ भारत की और आकर्षित हो रही थीं। प्रश्न 5. बंगाल के नवाबों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच किन बातों पर विवाद थे? उत्तर बंगाल के नवाबों और कंपनी के बीच विवाद के कारण 1. नवाबों ने कंपनी को छूट देने से मना कर दिया था। 2. नवाबों ने कंपनी को व्यापारिक अधिकार देने के लिए बहुत अधिक धनराशि की नाँग की। 3. नवाबों ने कंपनी को सिक्का ढालने का अधिकार देने से भी मना कर दिया। 4 नवाबों ने कंपनी पर टैक्स (कर) अदा नहीं करने के साथ-साथ अपमानजनक पत्र लिखने का आरोप लगाया। 5 कंपनी ने भी नवाबों पर निम्नलिखित आरोप लगाए कि नवाबों के स्थानीय अधिकारी कंपनी के व्यापार को नष्ट कर रहे हैं, कंपनी को अधिक टैक्स देना पड़ रहा है, कंपनी को किलाबंदी के विस्तार व पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं दी जा रही है। प्रश्न 6. दीवानी मिलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को किस तरह फायदा पहुँचा? उत्तर दीवानी मिलने से कंपनी को फायदा 1. दीवानी मिलने के कारण कंपनी को बंगाल के विशाल राजस्व संसाधनों पर नियंत्रण मिल गया। 2. कंपनी भारत से ज्यादातर वस्तुएँ ब्रिटेन से लाए गए सोने चाँदी के बदले खरीदती थी, लेकिन अब उसे ब्रिटेन से सोना-चाँदी लाने की आवश्यकता ही नहीं रही। 3. अब कंपनी भारत से होने वाले लाभ से अपने खर्च चला सकती थी, जैसे-सूती रेशमी कपड़ा खरीदना, अपनी सेना के खर्चे की पूर्ति करना और कलकत्ता में किले और दफ्तरों के निर्माण का खर्चा उठाना इत्यादि । प्रश्न 7. ईस्ट इंडिया कंपनी टीपू सुल्तान को खतरा क्यों मानती थी? उत्तर टीपू सुल्तान को कंपनी द्वारा खतरा मानने के कारण 1. मालाबार तट पर होने वाला व्यापार मैसूर रियासत के नियंत्रण में था जहाँ से कंपनी काली मिर्च और इलायची खरीदती थी। टीपू सुल्तान ने अपनी रियासत के बंदरगाहों से होने वाले निर्यात पर रोक लगा दी। 2. टीपू सुल्तान ने स्थानीय सौदागरों को भी कंपनी के साथ व्यापार करने से रोक दिया। 13. टीपू सुल्तान ने भारत में रहने वाले फ्रांसीसी व्यापारियों से घनिष्ठ संबंध स्थापित किए और उनकी मदद से अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया। प्रश्न 8. "सब्सिडियरी एलायंस" (सहायक संधि) व्यवस्था की व्याख्या करें। उत्तर सहायक संधि का अर्थ- गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेली ने भारत में कंपनी के शासन के विस्तार के उद्देश्य सहायक संधि को अपनाया था। इसे सहायक संधि इसलिए कहा गया कि जो भी भारतीय शासक इस संधि की शर्तों को मानने के लिए तैयार हो जाता था कंपनी उसकी सुरक्षा में पूर्ण सहयोग करने का वायदा करती थी। सहायक संधि की शर्तें 1 भारतीय शासकों को अपनी स्वतंत्र सेना रखने की इजाजत नहीं होगी। 12 जिन शासकों की सुरक्षा का भार कंपनी पर होगा। वे इसके लिए कंपनी को शुल्क प्रदान करेंगे। शुल्क नहीं देने की स्थिति में कंपनी दंड के रूप में शुल्क के बराबर राजस्व वाला क्षेत्र शासक से छीन लेगी। 3. शासक को अपने दरबार में एक अंग्रेज़ रेजीडेंट रखना होगा जो शासक की गतिविधियों पर नजर रखेगा। प्रश्न 9. कंपनी का शासन भारतीय राजाओं के शासन से किस तरह अलग था? उत्तर भारतीय राजाओं के शासन और कंपनी के शासन में अंतर 1 भारतीय राजाओं ने अपने राज्य का प्रशासनिक तथा राजस्व विभाजन विभिन्न इकाइयों में कर रखा था, परंतु ये इकाइयाँ ब्रिटिश प्रशासनिक एवं राजस्व इकाइयों की तरह प्रभावी नहीं थी। कंपनी ने प्रेजिडेंसी के रूप में एक नई प्रशासनिक इकाई बनाई थी जिसका शासन गर्वनर के पास होता था । 2 कंपनी द्वारा पुलिस तथा राजस्व व्यवस्था में काफी सुधार किया गया था, जबकि भारतीय शासकों द्वारा पुलिस तथा राजस्व व्यवस्था को सुधारने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया गया। 3 भारतीय राजाओं के शासन में न्यायिक व्यवस्था प्रभावी नहीं थी। एक ही तरह की अदालत दीवानी तथा फौजदारी दोनों तरह के मुकदमों की सुनवाई करती थी, जबकि अंग्रेजों ने एक आधुनिक एवं विकसित न्यायिक व्यवस्था स्थापित की थी प्रत्येक जिले में अलग-अलग दीवानी व फौजदारी अदालतें स्थापित की गई थी। प्रश्न 10. उत्तर कंपनी की सेना में आए संरचनात्मक बदलाव 1. कंपनी ने पैदल और घुड़सवार सिपाहियों की जगह पेशेवर सैनिकों की भर्ती की। 2. कंपनी ने सैनिकों को यूरोपीय शैली में नई युद्ध तकनीक से प्रशिक्षित किया। 3. कंपनी ने अपने सैनिकों को आधुनिक हथियारों, जैसे-मस्केट तथा मैचलॉक आदि से लैस किया गया। 4. कंपनी ने सेना में यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी तथा सेना के महत्त्वपूर्ण स्थान, जैसे-तोपखाना, टैंक इत्यादि पर यूरोपीय सैनिकों को नियुक्त किया गया। 5. सेना में यह भावना जगाई कि उनका कोई धर्म जाति नहीं है वह केवल सैनिक है ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति बफादारी रखना उनका कर्तव्य है। आइए करके देखें प्रश्न 11. बंगाल में अंग्रेजों की जीत के बाद कलकत्ता एक छोटे से गाँव से बड़े शहर में तब्दील हो गया। औपनिवेशिक काल के दौरान शहर के यूरोपीय और भारतीय निवासियों की संस्कृति, शिल्प और जीवन के बारे में पता लगाएँ। उत्तर औपनिवेशिक काल के दौरान शहर के यूरोपीय और भारतीय निवासियों की संस्कृति, शिल्प और जीवन में निम्नलिखित बदलाव आए 1. औपनिवेशिक काल में कलकत्ता एक प्रशासनिक केंद्र बन गया था। यूरोपीय लोग उच्च स्तरीय सुविधाओं से पूर्ण क्षेत्रों में रहते थे, जबकि भारतीय लोग अनियोजित सघन तथा सुविधाहीन क्षेत्रों में रहने को मजबूर थे। 2. कलकत्ता का विकास भारत के प्रमुख सांस्कृतिक रंगमंच केंद्र के रूप में हुआ था नाटक, सामूहिक रंगमंच भारतीय शास्त्रीय संगीत, धार्मिक तथा सांस्कृतिक उत्सवों आदि में लोग उत्साहपूर्वक भाग लेते थे 3 औपनिवेशिक शासन के दौरान कलकत्ता कई शानदार इमारतों का साक्षी बना। इसमें मिस्री रोमन, प्राच्य तथा भारतीय मुसलिम कलाकृतियों का उपयोग किया गया। भारतीय संग्रहालय विक्टेरिया मेमोरियल इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। प्रश्न 12. निम्नलिखित में से किसी एक के बारे में तसवीरें, कहानियाँ, कविताएँ और जानकारियाँ इकट्ठा करे झाँसी की रानी, महादजी सिंधिया, हैदर अली, महाराजा रणजीत सिंह, लॉर्ड डलहौजी या आपके इलाके का कोई पुराना शासक। उत्तर महाराजा रणजीत सिंह महाराजा रणजीत सिंह महाराजा रणजीत सिंह का जन्म पंजाब के राजपरिवार में हुआ था। उन्हें 1801 में पंजाब का महाराजा घोषित किया गया। वे एक महान शासक थे। उन्होंने अपनी प्रजा को अभिव्यक्ति एवं उपासना की स्वतंत्रता दे रखी थी उन्होंने सभी धर्मों का सदैव सम्मान किया।


History Class Vi

पाठ 2. आरंभिक मानव की खोज में . आखेटक खाद्य संग्राहक पृथ्वी पर बीस लाख साल पहले रहा करते थे। जिसे पूरापाषण काल कहा जाता है। भोजन का इंतजाम करने की विधि के आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। आखेटक खाद्य संग्राहक आमतौर पर खाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने, पौध-पत्तियाँ, अंडे इक्टठा किया करते थे । • आखेटक खाद्य संग्राहकों के लिए पेड़ पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ भोजन के महत्वपूर्ण स्रोत थे । आखेटक खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग भोजन की तलाश में जानवरों के शिकार के लिए भोजन के लिए मौसमी फल फूल की तलाश में और पानी की तलाश में इधर उधर घूमतें रहते थे। ये अपने काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाते थे ।. आखेटक - खाद्य संग्राहक पत्थर के औजारों का प्रयोग फल-फूल, हड्डियां और मांस काटने के लिए पेड़ों की छाल, जानवरों की खाल उतारने के लिए और लकड़िया काटने के लिए करते थे । आखेटक खाद्य संग्राहक कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुट्टे लगाकर भाले और बाण जैसे हथियार बनाते थे। • आखेटक खाद्य संग्राहक लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ-साथ झोपड़ियाँ और औजार करते थे। वह स्थान जहाँ लोग पत्थरों से औजार बनाते थे, उन स्थानों को उद्योग स्थल कहते है । आवासीय पुरास्थल उन स्थानों को कहते है जहाँ लोग रहा करते थे । आवासीय पुरास्थलो में आखेटक खाद्य संग्राहक इसलिए रहा करते थे क्योंकि यहाँ उन्हें बारिश और हवाओं से राहत मिलती थी। आवासीय पुरास्थलो जैसी प्राकृतिक गुफाएँ विंध्य और दक्कन के पर्वतीय इलाको में मिलती है जो नर्मदा नदी के पास है। बनाने के लिए धुप पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं वेफ अवशेष मिलते हैं। ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गए। • 'दबाव शल्क तकनीक पाषण औजार का निर्माण करने की दो विधियों में से ही एक है, जिसमें क्रोड को एक स्थिर सतह पर टिकाया जाता है और इस करोड़ पर हड्डी या पत्थर रखकर उस पर हथौड़ी के आकार वाले पत्थर से शल्क निकाले जाते हैं जिससे मानचाहा आकार वाला उपकरण बन जाता था। मांस . आखेटक खाद्य संग्राहक आग का उपयोग कई कार्यों के लियें करतें थे जैसे कि प्रकाश के लिए, पकाने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भागने के लिए । • लगभग 10,000 साल पहले के युग को नवपाषाण युग कहा जाता है ।. आरंभिक लोग शिकार तथा फल मूल का संग्रह किया करते थे। वे पत्थरों के औजार और गुफाओं में चित्र बनाते थे। प्रश्न: आखेटक खाद्य संग्राहक कौन है ? उत्तर: आखेटक खाद्य संग्राहक पृथ्वी पर बीस लाख साल पहले रहा करते थे। भोजन का इंतजाम करने की - विधि के आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। आमतौर पर खाने के लिए वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियाँ और चिडिया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने, पौध-पत्तियाँ, अंडे इक्टठा किया करते थे। प्रश्न: आखेटक खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग इधर उधर क्यों घूमतें रहतें थें ? उत्तर: निम्नलिखित कारणों से आखेटक खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग इधर उधर क्यों घूमतें रहतें थे : 1. अगर वे एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते तो आस-पास के पौधें, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे। इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था। 2. जानवरों का शिकार करने के लिए वे एक जगह से दूसरी जगह जाया करते थें । 3. पेड़ों और पौधे में फल-फूल अलग-अलग मौसम में आते हैं, इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते थे । 4. पानी की तलाश में आखेटक खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग इधर उधर जाया करते थे। 5. लोग अपने नाते रिश्तेदारों से मिलने जाया करते थे । प्रश्न: आखेटक खाद्य संग्राहक पत्थर के औजारों का प्रयोग किसलिए किया करतें थे ? उत्तर: आखेटक खाद्य संग्राहक पत्थर के औजारों का प्रयोग करते थे : 1. फल-फूल काटने, हड्डियां और मांस काटने के लिए। 2. पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए। 3. कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगाकर भाले और बाण जैसे हथियार बनाए जाते थे। 4. लकड़िया काटने के लिए । प्रश्न: आखेटक खाद्य संग्राहक लकड़ियों का प्रयोग किसलिए करते थे ? उत्तर: आखेटक खाद्य संग्राहक लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ-साथ झोपड़ियाँ और औजार बनाने के लिए करते थे। प्रश्न: उद्योग स्थल किसे कहतें है ? उत्तर: वह स्थान जहाँ लोग पत्थरों से औजार बनाते थे, उन स्थानों को उद्योग स्थल कहते है। प्रश्न: आवासीय पुरास्थल क्या है ? उत्तर: आवासीय पुरास्थल उन स्थानों को कहते है जहाँ लोग रहा करते थे। लोग इन गुफाओ में इसलिए रहा करते थे क्योंकि यहाँ उन्हें बारिश धुप और हवाओ से राहत मिलती थी । प्रश्न: पुरास्थल किसे कहते है ? उत्तरः पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं वेफ अवशेष मिलते हैं। ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गए। प्रश्न: प्राचीन काल में आखेटक खाद्य संग्राहक पाषण औजारों का निर्माण कैसे करते थे ? उत्तर: प्राचीन काल में आखेटक खाद्य संग्राहक पाषण ओजारों का निर्माण दो तरीको से करतें थे : 1. पत्थर से पत्थर को टकराना। यानी जिस पत्थर से कोई औजार बनाना होता था, उसे एक हाथ में लिया जाता था, और दूसरे हाथ से एक पत्थर का हथौड़ी जैसा इस्तेमाल होता था। इस तरह मरनें वाले पत्थर से दूसरे पत्थर पर तब तक शल्क निकाले जाते हैं जब तक मनचाहा आकार वाला औजार न बन जाए। 2. दूसरे तरीके को 'दबाव शल्क तकनीक' कहा जाता है। इसमें क्रोड को एक स्थिर सतह पर टिकाया जाता है और इस करोड़ पर हड्डी या पत्थर रखकर उस पर हथौड़ी के आकार वाले पत्थर से शल्क निकाले जाते हैं जिससे मानचाहा आकार वाला उपकरण बन जाता था। प्रश्नः पाषण औजार का निर्माण करने की 'दबाव शल्क- - तकनीक का वर्णन कीजिए उत्तर: 'दबाव शल्क- तकनीक' पाषण औजार का निर्माण करने की दो विधियों में से ही एक है, जिसमें क्रोड को एक स्थिर सतह पर टिकाया जाता है और इस करोड़ पर हड्डी या पत्थर रखकर उस पर हथौड़ी के आकार वाले पत्थर से शल्क निकाले जाते हैं जिससे मानचाहा आकार वाला उपकरण बन जाता था । प्रश्न: आखेटक खाद्य संग्राहक आग का उपयोग किन किन कार्यों के लियें करतें होंगे ? उत्तर: आखेटक खाद्य संग्राहक आग का उपयोग कई कार्यो के लियें करतें होंगे जैसे कि प्रकाश के लिए, मांस पकाने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भागने के लिए। प्रश्नः आरंभिक लोग क्या- क्या कार्य करते थे ? उत्तर: आरंभिक लोग शिकार तथा फल-मूल का संग्रह किया करते थे। वे पत्थरों के औजार और गुफाओं में चित्र बनाते थे। आरंभिक नगर :- आखेटक खाद्य संग्राहक यह इस महाद्वीप में 20 लाख वर्ष पहले रहते थे इन्हे यह नाम - भोजन का इंतजाम करने की विधि के आधार पर दिया गया है भोजन ( जनवरो का शिकार मच्छलियाँ, चिड़ियाँ, फल-फूल, दाने, पौधों पतियाँ, अंडे इत्यादि । एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का कारण : भोजन की तलाश में इन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान जाना पड़ता था चारा की तलाश में या जानवरों का शिकार करते थे हुए एक स्थान से दूसरे स्थान अलग-अलग मौसम में फल की तलाश पानी की तलाश में इन लोगो ने काम के लिए पत्थरो लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाए थे। पुरास्थल :- उस स्थान को कहते है जहाँ औजार, बर्तन और इमारतें जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते है भीमबेटका :- मध्य प्रदेश इस पुरास्थल पर गुफाएँ व कंदराएँ मिली है जहाँ लोग रहते थे नर्मदा घाटी के पास स्थित है कुरनूल गुफा:- आंध्र प्रदेश यहाँ राख के अवशेष मिले है। इसका इस्तेमाल प्रकाश, मांस, भुनने व् खतरनाक जानवरो को दूर भगाने के लिए होता था लगभग 12000 साल पहले जलवायु में बड़े बदला आए और इसके परिणामस्वरूप कई घास वाले मैदान बनने लगे और हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी, गाय जैसे जानवरो की संख्या में बढ़ोतरी हुई और मछली महत्वपूर्ण स्त्रोत बना प्रारंभिक पशुपालक व कृषक के साक्ष्य 1. बुर्जहोम - कश्मीर 2. मेहरगढ़ -पाकिस्तान 3. चिरांद -बिहार 4. कोल्डिहवा -मध्य प्रदेश 5. दाओजली -असम


History Class Viii

5. जब जनता बगावत करती है । मुख्य- बिन्दुएँ ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों का जनता, राजाओं, रानियों, किसानों जमींदारों, आदिवासियों सिपाहियों, सब पर तरह-तरह से असर पड़ा। • जो नीतियाँ और कारवईयाँ जनता के हित में नहीं होती थी या उनके भावनाओं को ठेस पहुँचाती थी तो लोग उनका विरोध करते थे । • अठारहवीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नबाबों की ताकत छीनने लगी थी। उनकी सत्ता और सम्मान दोनों छीनने लागे थे । बहुत सारे राजदरबारों में रेजिडेंट तैनात कर दिए गए थे । • स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी। उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया था | • उनके राजस्व वसूली के अधिकार व इलाके एक-एक करके छीने जा रहे थे । • झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई चाहती थीं कि कंपनी उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को राजा मान ले । • पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब ने कंपनी से आग्रह किया कि उनके पिता को जो पेंशन मिलती थी वह उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मिलने लगे । ● अवध की रियासत अंग्रेजों के कब्जे में जाने वाली आखरी रियासतों में से थी ● अवध को अंग्रेजों ने 1856 में अपने कब्जे में ले लिया । गर्वनर जनरल डलहौजी ने ऐलान कर दिया कि रियासत का शासन ठीक से नहीं चल रहा है । इसलिए शासन को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटिश प्रभुत्व जरुरी है । कंपनी ने मुगलों के शासन को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए कंपनी द्वारा जारी सिक्कों पर से मुगल बादशाह का नाम हटा दिया गया । • बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल बादशाह थे । • गांवों में किसान और जमींदार भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर तरीकों से परेशान थे और ऐसे बहुत सारे लोग महाजनों से लिया नहीं लौटा पा रहे थे । • भारतीय सिपाही जो कंपनी में काम करते थे अपने वेतन, भत्तों और सेवा शर्तों के कारण परेशान थे। • कई नए नियम सैनिकों के धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को ठेस पहुँचाते थे | • भारतीय समाज में सुधार के लिए अंग्रेजों ने सती प्रथा को रोकने और विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाए गए । • 1830 के बाद कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को खुलकर काम करने और जमीन सम्पति जुटाने की भी छूट दे दी। • 1850 में एक न्य कानून बनाया गया जिसमें ईसाई धर्म अपनाने की छुट दी गयी थी इसमें प्रावधान था कि अगर कोई भारतीय व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाता है तो पुरखों की सम्पति पर उसका अधिकार पहले जैसा ही रहेगा ● जब सिपाही इकट्ठा होकर अपने सैनिक अफसरों का हुक्म मानने से इंकार कर देते है तो उसे सैनिक विद्रोह कहते है । • मई 1857 में शुरू हुई सैनिक विद्रोह से भारत में कंपनी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया था | • सैनिक विद्रोह की शुरुआत मेरठ से शुरू हुई थी • 29 मार्च 1857 को युवा सिपाही मंगल पांडे को बैरकपुर में अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया | प्रश्ना: नील उगाने वाले किसानों की क्या समस्याएँ थी ? उत्तर : नील उगाने वाले किसानों की प्रमुख समस्याएँ निम्न थी । (1) किसानों को अपनी सारी उपज को मिल मालिको को सौंपने को विवश किया जाता था । (2) किसान जमींदारों की भूमि पर नील की खेती करते थे जो जबर्दस्ती उनकी फसल बगान मालिकों को बेंच देते थें l (3) अपनी जमीन का किराया चुकाने के लिए बार बार किसानों को बगान मालिकों से कर्ज लेना पड़ता था । प्रश्न 2: 1857 ई0 की क्रांति के विफलता के क्या कारण थे ? उत्तर : 1857 ई0 की क्रांति के विफलता के निम्न कारण थे। उत्तर: (1) भारतीय क्रांतिकारी विभिन्न टुकडों एवं स्थानों पर बँटे हुए (2) भारतीय क्रांतिकारीयों के आस अत्याधुनिक हथियारों की कमी थी जबकि ब्रिटिश शासन के पास अत्याधुनिक हथियार और तोपें थी । प्रश्न3: 1857 ई0 की क्रांति के मुख्य कारण क्या थें ? (1) अंग्रेजों ने पुराने जमींदारों की जमीनें व अधिकार छीन लीए । (2) अंग्रेजों ने सहायक व्यवस्था के अंर्तगत भारतीय शासकों से की गई संधिया तोडा इससे काफी असंतोष बढा । (3) डलहौजी की डाक्ट्रीन ऑफ लैप्स की नितियों से झांसी और कई भारतीय शासकों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया । (4) अंग्रेज अफसर भारतीय सैनिकों को घृणा की दृश्टि से देखते थे। लडाई से लौटने उन्हें भता भी नही मिलता था । (5) सैनिकों को अपनी राइफलों में गाय एवं सूअर की चर्बी पाले कारतूस चलाने को कहा गया । इन कारतूसों को चलाने से पहले मूँह से खोलना पडता था । अतः हिन्दू एवं मुसलमान सैनिक भड़क उठे और उन्होंने बगावत कर दी। प्रश्न4 : 1857 ई0 की क्रांति के तत्कालिक कारण क्या थें ? उत्तर: 1857 ई0 की क्रांति के तत्कालिक कारणों में से प्रमुख कारण था सैनिकों को अपनी राइफलों में गाय एवं सूअर की चर्बी पाले कारतूस चलाने को कहा गया । इन कारतूसों को चलाने से पहले मुँह से खोलना पड़ता था । अतः हिन्दू एवं मुसलमान सैनिक भड़क उठे और उन्होंने बगावत कर दी। प्रश्न: ताइपिंग विद्रोह क्या है ? उत्तर: 1857 में दक्षिणी चीन में एक विशाल जनविद्रोह हुआ जिसे ताइपिंग विद्रोह के नाम से जाना जाता है । यह विद्रोह हाँग जिकुआंग के नेतृत्व में हजारों मेहनतकश गरीब लोगों ने परम शांति के स्वर्गिक साम्राज्य की स्थापना के लिए लड़ाई लड़ी | प्रश्न 6: हाँग जिकुआंग कौन था और वह किस बात के खिलाफ था ? उत्तर: हाँग जिकुआंग एक चीनी नागरिक था जिसने धर्मांतरण करके ईसाई धर्म अपना लिया था और वह कन्फ्युशियसवाद और बौध आदि परंपरागत चीनी धर्मों के खिलाफ था । प्रश्न: ताइपिंग के विद्रोही कैसे साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे ? उत्तरः ताइपिंग के विद्रोही एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे जहाँ ईसाई धर्म को माना जायेगा, जहाँ किसी के पास निजी सम्पति नहीं होगी, जहाँ सामाजिक वर्गों और स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं होगा, जहाँ अफ़ीम तम्बाकू, शराब के सेवन तथा जुए वेश्यावृति और गुलामी पर पाबन्दी होगी । प्रश्न : ताइपिंग विद्रोह को दबाने के लिए किंग साम्राज्य के बादशाह की मदद कहाँ की सेनाओं ने की थी ? उत्तरः चीन में तैनात अंग्रेज और फ्रांसिसी सेनाओं ने मदद की थी। प्रश्न 9 : 1857 के बाद इतिहास का नया चरण शुरू हुआ । अब पहले वाली नीतियों के सहारे अंग्रेजी शासक शासन नहीं चला सकते है उन्हें बदलाव की आवश्यकता थीं । इस कथन की पुष्टि के लिए पाँच बिन्दुएँ लिखिए | अथवा प्रश्नः 1857 के बाद ब्रिटिश शासन ने भारत में क्या-क्या बदलाव किये ? उत्तर: 1857 के बाद इतिहास का नया चरण शुरू हुआ और अंग्रेजी शासकों ने अपने शासन प्रणाली में निम्नलिखित बदलाव किये । (i) अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की जिम्मेवारी सीधे अपने हाथों में ले ली । ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथों में सौप दिया । (ii) देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी उनके भूक्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं किया जायेगा। भारतीय शासकों को ब्रिटिश शासन के अधीन शासन चलाने की छूट दी । (iii) भारतीय सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया गया। मुसलमानों की जमीन और सम्पति बड़े पैमाने पर जब्त की गई । (iv) अंग्रेजों ने फैसला किया कि वे भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीती-रिवाजों का सम्मान करेंगे । (v) भूस्वामियों और जमींदारों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को स्थायित्व देने की नीतियाँ बनाई गयी l प्रश्न 1: अंग्रेजों के कब्जे में जाने वाली आखिरी रियासत कौन सी थी ? उत्तर: अवध | प्रश्न 1: अंग्रेजों ने अवध का विलय किस आधार पर किया ? उत्तर : 1801 में अवध पर एक सहायक संधि थोपी गयी और 1856 में अंग्रेजों ने उसे अपने कब्जे में ले लिया। गवर्नर-जनरल डलहौजी ने ऐलान कर दिया कि रियासत का शासन ठीक से नहीं चलाया जा रहा है इसलिए शासन को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटिश प्रभुत्व जरूरी है। इसी आधार पर अवध का विलय कर लिया गया | प्रश्न: अंग्रेजों ने मुगल शासन को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए क्या किया ? उत्तर: कंपनी ने मुगलों के शासन को खत्म करने की भी पूरी योजना बना ली थी। इसलिए उन्होंने (i) कंपनी द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर से मुगल बादशाह का नाम हटा दिया गया। (ii) 1849 में गवर्नर जनरल डलहौशी ने ऐलान किया कि बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद बादशाह के परिवार को लाल किले से निकाल कर उसे दिल्ली में कहीं और बसाया जाएगा। (iii) 1856 में गवर्नर-जनरल कैनिंग ने फैसला किया कि बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल बादशाह होंगे। (iv) उनकी मृत्यु के बाद उनके किसी भी वंशज को बादशाह नहीं माना जाएगा। उन्हें केवल राजकुमारों के रूप में मान्यता दी जाएगी । Q1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से ऐसी क्या माँग थी जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया ? उत्तर : झाँसी की रानी के पति की मृत्यु के पश्चात् वे चाहती थी कि अंग्रेज उनके गोद लिए बेटे को राज्य का वैध उतराधिकारी मान ले। परन्तु अंग्रेजों ने इसे ठुकरा दिया। अंग्रेजों ने एक नियम बनाया था जिसे 'डैक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स' के नाम से जाना जाता है, इस नियम के अनुसार जिस भारतीय राजा की मृत्यु बिना किसी उतराधिकारी छोड़े हो जाती है अंग्रेज उस राज्य को अंग्रेजी हुकूमत में मिला लेते थे । ऐसा उन्होंने भारतीय राज्यों को हड़पने के लिए किया था | Q2. ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने क्या किया ? उत्तर : ऐसे भारतीय जिन्होंने इसाई धर्म अपना लिया हो उन्हें अपने पूर्वजों की संपति प्राप्त करने का अधिकार दे दिया जाता था । ऐसा उन्होंने भारत में ईसाईकरण को बढ़ावा देने के लिए किया था | Q3. सिपाहियों को नए कारतूसों पर क्यों ऐतराज था ? उत्तर : अंग्रेजी हुकूमत के समय बन्दुक में कारतूस लगाने के लिए सिपाहियों को कारतूस के ऊपर लगी खोल को पहले हटाना पड़ता था। ऐसी खबर थी कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था। ऐसी चीजों से हिन्दू और मुस्लिम सिपाहियों के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती थी। जिसे सुनकर सिपाही भड़क गए और उन्होंने इसके इस्तेमाल से इंकार कर दिया था | Q4. अंतिम मुगल बादशाह ने अपने आखिरी साल किस तरह बिताए ? उत्तर : अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफ़र को सिपाही विद्रोह के समय बंदी बना कर वर्मा (अब का म्यांमार) की राजधानी रंगून की जेल में भेज दिया जहाँ उन्हें अपने जीवन के अंतिम दिन बिताने पड़े | ये दिन उनके जीवन के बहुत ही कष्टदायी रहे। इसी जेल में रहते 1862 में उनकी मृत्यु हो गई । Q5. मई 1857 से पहले भारत में अपनी स्थित को लेकर अंग्रेज शासकों के आत्मविश्वास के क्या कारण थे ? उत्तर : मई 1857 से पहले अंग्रेजों को भारत में अपनी स्थिति को लेकर आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ था। जिसके निम्न कारण थे। (i) अंग्रेजों की सोच थी कि भारतीय सैनिक उनके विश्वसनीय है। उन्ही के बल पर उन्होंने भारत में इतनी बड़ी ब्रिटिश साम्राज्य खड़ा किया था | (ii) भारतीय सिपाहियों ने बहुत सी लड़ाइयाँ जीतकर अंगेजों की झोली में दी थी। उन्हें भारतीय सिपाहियों पर पूरा यकीन था । (iii) वे ये भी जानते थे कि कई स्थानीय जमींदार और राजा उनके शासन का समर्थन करते हैं। Q6. बहादुर शाह जफ़र द्वारा विद्रोहियों को समर्थन दे देने से जनता और राज परिवारों पर क्या असर पड़ा ? उत्तर : बहादुर शाह जफ़र द्वारा विद्रोहियों को समर्थन दे देने से जनता और राज परिवारों पर निम्न असर पड़ा। (i) बहादुरशाह जफ़र द्वारा विद्रोही सैनिकों के समर्थन देने से आम जनता उत्साहित हो गई। उन्हें अब लगने लगा कि अब अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेका जा सकेगा । (ii) अंग्रेजों की नीतियों से राज- राजवाड़े भी परेशान थे, अंग्रेजों ने अपने नीतियों से कई भारतीय राजाओं के राज्यों को हड़प लिया था जिसमें अवध प्रमुख था, और झाँसी को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ा । (iii) बहादुरशाह जफ़र के समर्थन के खबर से राज परिवारों के ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। उन्हें लगने लगा कि अब ब्रिटिश शासन ख़त्म हो जाएगी और उनके राज वापस मिल जायेगा । Q7. अवध के बागी भू-स्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया ? उत्तर : अवध के बागी भू-स्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेजों ने निम्न कार्य किया । (i) अंग्रेजों ने घोषणा की कि जो भू-स्वामी ब्रिटिश राज के प्रति स्वामीभक्त बने रहेंगे, उन्हें अपने जमीन पर पारंपरिक अधिकार का उपयोग करने की स्वतंत्रता बनी रहेगी । (ii) अंग्रेजों ने कई भू-स्वामियों, राजाओं और नबावों पर मुकदमे चलाये और अंत में फाँसी दे दी (iii) जिन भू-स्वामियों ने विद्रोह किया था, यदि उन्होंने किसी गोर लोगों की हत्या नहीं की थी और आत्मसमर्पण करना चाहते हो तो उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी और उनकी जमीन पर उनके दावे और अधिकार का विरोध नहीं किया जायेगा । Q8. 1857 की वागवत के फलस्वरूप अंग्रेजों ने अपनी नीतियां किस तरह बदली ? उत्तर : (i) शासकों को उनके क्षेत्र पर शासन करने के अधिकार को सुनिश्चित किया गया | (ii) उतराधिकारी के रूप में गोद लिए गए पुत्र को मान्यता दी गई । (iii) ब्रिटिश सेना ने भारतीय सिपाहियों के अनुपात को कम कर दिया और ब्रिटिश सिपाहियों के अनुपात को बढ़ा दिया | (iv) सेना में गोरखा, सिख एवं पठानों की संख्या को बढाया गया । (v) मुसलमानों को संदेह और शत्रु की दृष्टि से देखा जाने लगा । (vi) अंग्रेज अब भारतीय रिवाज, धर्म, परम्पराओं और सामाजिक प्रथाओं को सम्मान देने लगे । (vii) जमींदार और भू-स्वामियों के उनके जमीनों पर अधिकार को और सुरक्षित बनाया गया l प्रश्न 2: ताइपिंग विद्रोह क्या है ? उत्तर: 1857 में दक्षिणी चीन में एक विशाल जनविद्रोह हुआ जिसे ताइपिंग विद्रोह के नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह हाँग जिकुआंग के नेतृत्व में हजारों मेहनतकश, गरीब लोगों ने परम शांति के स्वर्गिक साम्राज्य की स्थापना के लिए लड़ाई लड़ी। प्रश्न3: हाँग जिकुआंग कौन था और वह किस बात के खिलाफ था ? उत्तर: हाँग जिकुआंग एक चीनी नागरिक था जिसने धर्मांतरण करके ईसाई धर्म अपना लिया था और वह कन्फ्युशियसवाद और बौध आदि परंपरागत चीनी धर्मों के खिलाफ था । प्रश्न 4 : ताइपिंग के विद्रोही कैसे साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे ? उत्तर: ताइपिंग के विद्रोही एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे जहाँ ईसाई धर्म को माना जायेगा, जहाँ किसी के पास निजी सम्पति नहीं होगी, जहाँ सामाजिक वर्गों और स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं होगा, जहाँ अफ़ीम तम्बाकू, शराब के सेवन तथा जुए, वेश्यावृति और गुलामी पर पाबन्दी होगी । प्रश्न 5 : ताइपिंग विद्रोह को दबाने के लिए किंग साम्राज्य के बादशाह की मदद कहाँ की सेनाओं ने की थी ? उत्तर: चीन में तैनात अंग्रेज और फ्रांसिसी सेनाओं ने मदद की थी। प्रश्न6: 1857 के बाद इतिहास का नया चरण शुरू हुआ। अब पहले वाली नीतियों के सहारे अंग्रेजी शासक शासन नहीं चला सकते है उन्हें बदलाव की आवश्यकता थीं। इस कथन की पुष्टि के लिए पाँच बिन्दुऐं लिखिए | प्रश्नः 1857 के बाद ब्रिटिश शासन ने भारत में क्या-क्या बदलाव किये ? उत्तर: 1857 के बाद इतिहास का नया चरण शुरू हुआ और अंग्रेजी शासकों ने अपने शासन अथवा प्रणाली में निम्नलिखित बदलाव किये। (i) अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की जिम्मेवारी सीधे अपने हाथों में ले ली। ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथों में सौप दिया । (ii) देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी उनके भूक्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं किया जायेगा | भारतीय शासकों को ब्रिटिश शासन के अधीन शासन चलाने की छुट दी । (iii) भारतीय सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया गया। मुसलमानों की जमीन और सम्पति बड़े पैमाने पर जब्त की गई। (iv) अंग्रेजों ने फैसला किया कि वे भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीती-रिवाजों का सम्मान करेंगे। (v) भूस्वामियों और जमींदारों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को स्थायित्व देने की नीतियाँ बनाई गयी | When People Rebel (जब जनता बगावत करती है (1857 और उसके बाद)) प्रश्न-अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से) फिर से याद करें प्रश्न 1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से ऐसी क्या माँग थी जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया? उत्तर झाँसी की रानी की माँग झाँसी की रानी चाहती थी कि कंपनी उसके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को वैध उत्तराधिकारी मान लें। प्रश्न 2. ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने क्या किया? उत्तर ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा 1. 1850 में एक नया कानून बनाया जिससे ईसाई धर्म को अपनाना और आसान हो गया। 2. ईसाई धर्म अपनाने वाले भारतीयों को अपने पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार दे दिया। प्रश्न 3.सिपाहियों को नए कारतूसों पर क्यों ऐतराज था? उत्तर नए कारतूसों पर ऐतराज का कारण 1. सिपाहियों को लगता था कि कारतूस पर लगी पट्टी को बनाने में गाय व सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया है। 2. बंदूक में कारतूस लगाने के लिए कारतूस पर लगी पट्टी दाँत से काटनी पड़ती थी। 3. इससे हिंदू एवं मुसलमान सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती थी। प्रश्न 4.अंतिम मुगल बादशाह ने अपने आखिरी साल किस तरह बिताए? उत्तर मुगल बादशाह के जीवन के आखिरी साल 1. उन पर मुकदमा चलाया गया तथा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 2. बादशाह के बेटों को उनके सामने गोली मार दी गई। 3. बादशाह तथा उनकी पत्नी जीनत महल को रंगून जेल भेज दिया गया जहाँ नवंबर 1862 में उनकी मृत्यु हो गई। आइए विचार करें प्रश्न 5.मई 1857 से पहले भारत में अपनी स्थिति को लेकर अंग्रेज शासकों के आत्मविश्वास के क्या कारण थे? उत्तर अंग्रेज शासकों के आत्मविश्वास के कारण 1. अंग्रेजों की सोच थी कि भारतीय सिपाही उनके विश्वसनीय है, क्योंकि 1857 से पहले उन्होंने भारतीय सिपाहियों की सहायता से कई लड़ाइयाँ जीती थीं तथा बड़े-बड़े विद्रोह कुचले थे। 2. अंग्रेज शासक जानते थे कि कई स्थानीय राजा व जमींदार उनके शासन का समर्थन करते हैं, क्योंकि स्थानीय शासकों ने अपने हितों की रक्षा के लिए कंपनी के साथ बातचीत की। 3. स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी, क्योंकि उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया था तथा उनके राजस्व वसूलने के अधिकार छीन लिए गए थे। अतः वे भारत में अपनी स्थिति को लेकर आत्मविश्वास से भरे हुए थे। प्रश्न 6.बहादुर शाह जफर द्वारा विद्रोहियों को समर्थन दे देने से जनता और राज परिवारों पर क्या असर पड़ा? उत्तर जनता और राज परिवारों पर प्रभाव 1 बहादुर शाह जफर के समर्थन से जनता बहुत उत्साहित हुई उनका उत्साह और साहस बढ़ गया। इससे उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत, उम्मीद और आत्मविश्वास मिला। 2. ब्रिटिश शासन के विस्तार से भयभीत बहुत सारे शासकों को लगने लगा कि अब फिर से मुगल बादशाह अपना शासन स्थापित कर लेंगे जिससे वे अपने इलाकों में बेफिक्र होकर शासन चला सकेंगे। 3. विभिन्न ब्रिटिश नीतियों के कारण जिन राज परिवारों ने अपनी सत्ता खो दी थी वे इस खबर से बहुत खुश थे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि अब ब्रिटिश राज खत्म हो जाएगा और उन्हें अपनी सत्ता वापस मिल जाएगी। प्रश्न 7. अवध के बागी भूस्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया? उत्तर अवध के बागी भूस्वामियों का समर्पण 1. अंग्रेजों ने कुछ भू-स्वामियों, राजाओं व नवाबों पर मुकदमे चलाए तथा उन्हें फाँसी दे दी। 12 अंग्रेजों ने घोषणा की कि जो भू-स्वामी ब्रिटिश राज के प्रति स्वामिभक्त बने रहेंगे, उन्हें अपनी जमीन पर पारंपरिक अधिकार का उपभोग करने स्वतंत्रता बनी रहेगी। 3. जिन भू-स्वामियों ने विद्रोह किया था यदि उन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है और वे आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो उन्हें सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी और जमीन पर उनका अधिकार और दावेदारी बनी रहेगी। प्रश्न 8. 1857 की बगावत के फलस्वरूप अंग्रेजों ने अपनी नीतियाँ किस तरह बदली? उत्तर अंग्रेज़ों की नीति में बदलाव 1. ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में सौंप दिए। 2. ब्रिटिश मंत्रिमंडल में एक सदस्य को भारत मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उसे सलाह देने के लिए एक परिषद् का गठन किया गया जिसे इंडिया काउंसिल कहा जाता था। 3. भारत के गवर्नर-जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। 4 देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उनके भू-क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया जाएगा। भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने की छूट दी गई। 5. सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया गया। 16. मुसलमानों की जमीन और संपत्ति बड़े पैमाने पर जब्त की गयी, क्योंकि 1857 के विद्रोह का कारण मुसलमानों को माना गया। 7 अंग्रेजों ने भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करने का निर्णय लिया। प्रश्न झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में और पता लगाएँ। आप उन्हें अपने समय की एक विलक्षण महिला क्यों मानते हैं? उत्तर रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 1828 में बनारस में हुआ। इनका बचपन का नाम मनु था इन्हें बचपन में तलवारबाजी, तीर-कमान घुड़सवारी का शौक था और इन्होंने इन सभी में महारत भी हासिल कर ली थी। बचपन में तलवारबाजी में इनका बड़े-बड़े योद्धा सामना नहीं कर पाते थे। वह अंग्रेजी शासन के विरुद्ध थी और अंग्रेजों को देश से भगा देना चाहती थी। बचपन में ही अत्याचारी अंग्रेज अफसरों से रात में छुप-छुपकर बदला लेना शुरू कर दिया था। 14 वर्ष की आयु में उनकी शादी झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुई झाँसी की रानी बनने के बाद वह रात में चोरी छिपे क्रांति गुरु बनकर अत्याचारी अंग्रेज अफसरों को सबक सिखाती रही। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने शासन अपने हाथों में लिया और अंग्रेजों का विरोध जारी रखा। वह अंग्रेजों को देश से बाहर करने के लिए सभी रियासतों को एकजुट करना चाहती थी। उनकी कूटनीति को समझना चाहती थी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनका एक सेनापति अंग्रेजों से मिला हुआ था जिसके विश्वासघात के कारण अंग्रेज सेना ने उन्हें महल में चारों ओर से घेर लिया और हथियार डालने के लिए कहा लेकिन लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी अपने पुत्र को पीठ पर बाँधकर और मुँह में घोड़े की लगाम दबाकर दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए अंग्रेज सेना को चीरती हुई महल से बाहर निकल गयी और अंत में अंग्रेजों से लड़ते हुए जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुई।


Biology

1.अण्डोत्सर्ग से आप क्या समझते हैं ? समझाएँ । Ans. अण्डोत्सर्ग वह प्रक्रिया है जिसमें अंडाशय से एक परिपक्व अंडा निकलता है। इसके जारी होने के बाद, अंडा फैलोपियन ट्यूब से नीचे चला जाता है और वहां 12 से 24 घंटे तक रहता है, जहां इसे निषेचित किया जा सकता है। 2.धुआँ तथा हाइड्रोकार्बन में अंतर स्पष्ट करें। Ans. धुआँ एक महीन ठोस पदार्थ है जो अधूरे जलने से बनता है जबकि हाइड्रोकार्बन शब्द एक कार्बनिक रासायनिक यौगिक को संदर्भित करता है जो विशेष रूप से हाइड्रोजन और कार्बन परमाणुओं से बना होता है। 3.क्रमिक विकास को परिभाषित करें। Ans. क्रमिक विकास किसी भी शुद्ध दिशात्मक परिवर्तन या कई पीढ़ियों में जीवों या आबादी की विशेषताओं में किसी भी संचयी परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जैसे की संशोधन के साथ वंश । 4.जीवों में लैंगिक जनन को सोदाहरण समझाएँ। Ans.जीवों में लैंगिक जनन विभिन्न लिंगों के दो व्यक्तियों की आनुवंशिक जानकारी के संयोजन से नए जीवों का उत्पादन हैं। आपको बता दे की सोदाहरण के तौर पे मनुष्य, फूल वाले पौधे, स्तनधारी, विभिन्न मछलियाँ और कीड़े जैसे जीव लैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। 5. स्व-स्थाने संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? Ans.एक लुप्तप्राय पौधे या पशु प्रजातियों को उसके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने की प्रक्रिया को आमतौर पर स्व-स्थाने संरक्षण के रूप में जाना जाता है। उदाहरण; राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, प्राकृतिक भंडार और जीवमंडल के भंडार । 6.किन्हीं दो जैव उर्वरकों के नाम बताएँ । Ans. जैव उर्वरक शब्द पौधों की वृद्धि के लिए जैविक उत्पत्ति (नाइट्रोजन यौगिकों का उत्पादन करने वाले रोगाणुओं) के सभी पोषक तत्वों को दर्शाता है। जैव उर्वरक ऐसे जीव हैं जो मिट्टी की पोषक गुणवत्ता को समृद्ध करते हैं। जैव उर्वरकों के मुख्य स्रोत बैक्टीरिया, कवक और सायनोबैक्टीरिया (नीला-हरा शैवाल) हैं। जैसे: एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । Or एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । 7.मानव अण्ड कोशिका का सुन्दर नामांकित चित्र दर्शाएँ। Ans. 8. निम्नांकित बीमारियों के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम लिखें: (i) टाइफाइड (ii) क्षय (iii) अमीबता (iv) टेटनस । i.टाइफाइड (आंत्र ज्वर). रोगजनक :- साल्मोनेला टाइफी (जीवाणु) ii- क्षय-माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस iii-एंटामीबा हिस्टॉलिटिका (Entamoeba histolytica) iv- क्लोस्ट्रीडियम टेटानी जीवाणु 9.प्राथमिक अनुक्रिया क्या है ? Ans. इसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया (रेस्पांस) करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते है । OR जब शरीर में रोगकारक प्रथम बार प्रवेश करता है तब प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिरक्षी बनाकर जो प्रतिक्रिया दर्शाता है उसे प्राथमिक अनुक्रिया (Primary-Response) कहते हैं। 10.A codon is a three-nucleotide or triplet sequence found on mRNA that codes for a certain amino acid during translation. The anticodon is a three-nucleotide sequence found on tRNA that binds to the corresponding mRNA sequence. 11.कार्बनिक खेती पर एक टिप्पणी लिखें। Ans. कार्बनिक खेती एक परंपरागत एवं स्थाई खेती है जिसे बिना किसी रासायनिक उर्वरकों की सहायता के केवल कार्बनिक खाद संभव किया जाता है जिससे पर्यावरण एवं मनुष्य के स्वास्थ में सुधार होता है । कार्बानिक खेती से प्राप्त उपज उच्च गुणवत्ता वाली होने के कारण विश्व बाजार में इसकी काफी मांग है, जिस से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है । 12. आनुवंशिक विविधता को परिभाषित करें। Ans.आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity) का आशय एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों के जीनों में होने वाले परिवर्तन से है। इसके कारण ही जीवों में भिन्न-भिन्न नस्लें देखने को मिलती हैं। यह विविधता ही जीवों को किसी दूसरे पर्यावरण के अनुकूल स्वयं को ढालने में सहायता करती है और विलुप्त होने से बचाती है l 13. उत्परिवर्तन को परिभाषित करें। Ans. जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता हैl 16.अनिषेक जनन से आप क्या समझते हैं ? Ans.अनिषेक जनन प्रजनन कि वह एक विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया होती है। जिसमें अंडे का परिवर्धन बिना किसी निषेचन के ही हो जाता है। बेयटी के अनुसार (1967) - जब मादा युग्मक अंडा परिपक्व हो जाता है, किंतु वह नरयुग्मक से बिना संपर्क में आए और बिना किसी अनुवांशिक पदार्थ को ग्रहण किए ही भ्रूण में परिवर्तित होने लगता है, उस प्रक्रिया को अनिषेक जनन कहते हैं। अर्थात साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि नर युग्मक शुक्राणु के बिना संयोजन से अंडाणु में भ्रूणीय परिवर्धन की प्रक्रिया आने को अनिषेकजनन कहते हैं। 17.यथार्थ फल तथा आभासी फल में अंतर स्पष्ट करें। Ans. झूठे फल और सच्चे फल के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि झूठा फल अंडाशय की दीवार के अलावा अन्य पुष्प भागों से विकसित होता है जबकि सच्चा फल अंडाशय की दीवार से विकसित होता है। OR यथार्थ फल:- जब पुष्प का केवल अण्डाशय फल मे परिवर्तित होता है। उदहारण- आम,बेर सेब एक आभासी फल (फॉल्स फ्रूट) है। आभासी फल को फल के रूप में तब परिभाषित किया जाता है जिसमें वसा का महत्वपूर्ण हिस्सा अंडाशय से नहीं बल्कि दूसरे आसन्न ऊतक से प्राप्त होता है। आभासी फलों के अन्य प्रमुख उदाहरण हैं स्ट्राबेरी, अनानास, शहतूत और नाशपाती। 18.किन्हीं दो प्रतिबंधन एंजाइम के नाम बताएँ Ans. सन् 1963 में ई. कोलाई नामक जीवाणु से 2 एंजाइम निकाले गये जिन्हें प्रतिबन्ध, एन्जाइम कहते है। 1- मिथायलेज- DNA में मैथिल वर्ग को जोड़ता है। २- प्रतिबन्धन एण्डोन्युक्लिएज- यह एंजाइम DNA को विशिष्ट स्थान से काटने का कार्य करता है। RE. को आरबर, स्मिथ और नाथन नामक वैज्ञानिकों ने खोजा था जिसके लिये उन्हें 1978 में नोबेल पुरुस्कार प्राप्त हुआ। 19.गुरुबीनाजनन को परिभाषित कीजिए। Ans. "गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से गुरुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को गुरुबीजाणु जनन कहते हैं। ->चार गुरुबीजाणु -> बीजाण्ड द्वार -> गुरुबीजाणु -> भूण कोष ← सक्रिय 20. एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज में अंतर स्पष्ट कीजिए । Ans. एक्सोन्यूक्लिएज :- एक्सोन्यूक्लिएज DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड खण्डों को अलग करते हैं। एंडोन्यूक्लिएज:- एंडोन्यूक्लिएज DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। 21.a पुनर्योजन से आप क्या समझते हैं ? पुनयोजियों का निर्माण कैसे होता है ? Ans. पुनर्योजन विभिन्न विभेदों में उपस्थित जीनों में संयोजन उत्पन्न करना पुनर्योजन या रीकाँबिनेशन कहलाता है। OR 1 वह प्रक्रिया जिसके दौरान डीएनए का एक खिंचाव पुनर्संयोजन करता है और एक नए युग्म संयोजन का निर्माण करता है जिसे पुनर्संयोजन के रूप में जाना जाता है 2 पुनर्संयोजन अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान होता है जब युग्मक गठन हो रहा होता है 3 पुनर्संयोजन परिणाम एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों में आनुवंशिक भिन्नता में होता है l 1. The process during which a stretch of DNA recombines and produces a new allelic combination is known as recombination. 2. Recombination takes place during meiosis when gamete formation is taking place. 3. Recombination results in genetic variation in different organisms of the same species. 1 (b)जीन अभिगमन पर एक टिप्पणी लिखें। Ans . जनसंख्या अनुवांशिकी के सन्दर्भ में एक जनसंख्या से दूसरी जनसंख्या में जाने पर अनुवांशिक परिवर्तनों का स्थानान्तरण होना जीन प्रवाह कहलाता है। 22-: जैव तकनीकी औद्योगिक उपयोगों का वर्णन करें: Answer : औद्योगिक क्षेत्र में जीव प्रौद्योगिकी का बहुत ही महत्व है। इसकी मदद से अनेक प्रकार के अल्कोहल, दुग्ध उद्योग, कार्बनिक अम्लों का उत्पादन जैव प्रौद्योगिकी पर ही आधारित है। औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के उत्पादों के लिए विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है। उन जीवाणुओं की सहायता से ग्लूकोज या कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च का किण्वन होता है जिसमें विकार की उत्पत्ति होती है। विकार ही ग्लूकोज को किण्वित कर विभिन्न प्रकार के उत्पादों का उत्पादन करता है। इस तकनीकी के मदद से प्रयुक्त यौगिकों जैसे इथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, एसिटोन आदि का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावे इन्जाइम का उत्पादन, ईंधन की प्राप्ति, खनिजों का निष्कासन, प्रतिरक्षाटॉक्सिन का उत्पादन, पूरक भोजन आदि का उत्पादन कर सकते हैं प्रमुख उत्पादन निम्न है l 23-: (a) अनुवांशिक अभियांत्रिकी Answer: किसी जीव के संजीन (genome, जीनोम ) में हस्तक्षेप कर के उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियों तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा का सामूहिक नाम है। मानव प्राचीन काल से ही पौधों व जीवों की प्रजनन क्रियाओं में हस्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है (जिसमें लम्बा समय लगता है लेकिन इसके विपरीत जनुकीय अभियांत्रिकी में सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैवप्रौद्योगिक विधियों से ही जीवों का जीनोम बदला जाता है। (b) अनुवांशिकी रूपांतरित जीव -: Answer: किसी भी प्रकार के जीवधारी (जीवाणु, पादप, कवक या जंतु) जिनके जीनों को कुछ फेरबदल कर परिवर्तित कर दिया गया हो, आनुवंशिकता : रूपान्तरित जीव कहलाते है। अगर इनमे कोई विजातीय जीन समाविष्ट कर दिया गया हो तब ऐसे जी. एम. ओ. परजीवी जीव कहलाते है अर्थात पारजीवी जीव भी एक प्रकार के जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गेनिज्म है। आनुवंशिकतः रूपान्तरित पौधो के अनुप्रयोग (i) पौधो में पीड़क प्रतिरोधकता का विकास, जिससे रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता काम होती है जैसे बीटी कपास, बीटी मक्का आदि | (ii) बेहतर गुणवत्ता बढ़ा पोषक मान, जैसे विटामिन A से समृद्ध चावल । (iii) मृदा से खनिजों के दक्षतापूर्ण अवशोषण की क्षमता। (iv) प्रतिकूल परिस्थितियों (सूखा, लवणता, अधिक ताप) सहने की क्षमता। 26-: (a) जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव Answer: वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः 'कल्चर' के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। (b) अपरा निर्माण तथा गर्भ पोषण 'अपरा निर्माण : अपरा गर्भनाल के द्वारा भ्रूण से जुड़ी रहती है। अपरा भी उन * ही शुक्राणु और डिम्ब कोशिकाओं से निर्मित होती है जिनसे भ्रूण का निर्माण होता है और दो घटकों क्रमश: भ्रूण भाग और मातृ भाग के साथ एक फेटोमेटरनल अंग के रूप में कार्य करती है। * गर्भ पोषण : गर्भनाल ही बच्चे के विकास को प्रेरित करती है. इसी की वजह से बच्चा मां के गर्भ में जीवित रहता है. यह सुरक्षा के साथ-साथ पोषण देने का भी काम करती है. यह बच्चे को कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने का काम करती है.


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1.अण्डोत्सर्ग से आप क्या समझते हैं ? समझाएँ । Ans. अण्डोत्सर्ग वह प्रक्रिया है जिसमें अंडाशय से एक परिपक्व अंडा निकलता है। इसके जारी होने के बाद, अंडा फैलोपियन ट्यूब से नीचे चला जाता है और वहां 12 से 24 घंटे तक रहता है, जहां इसे निषेचित किया जा सकता है। 2.धुआँ तथा हाइड्रोकार्बन में अंतर स्पष्ट करें। Ans. धुआँ एक महीन ठोस पदार्थ है जो अधूरे जलने से बनता है जबकि हाइड्रोकार्बन शब्द एक कार्बनिक रासायनिक यौगिक को संदर्भित करता है जो विशेष रूप से हाइड्रोजन और कार्बन परमाणुओं से बना होता है। 3.क्रमिक विकास को परिभाषित करें। Ans. क्रमिक विकास किसी भी शुद्ध दिशात्मक परिवर्तन या कई पीढ़ियों में जीवों या आबादी की विशेषताओं में किसी भी संचयी परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जैसे की संशोधन के साथ वंश । 4.जीवों में लैंगिक जनन को सोदाहरण समझाएँ। Ans.जीवों में लैंगिक जनन विभिन्न लिंगों के दो व्यक्तियों की आनुवंशिक जानकारी के संयोजन से नए जीवों का उत्पादन हैं। आपको बता दे की सोदाहरण के तौर पे मनुष्य, फूल वाले पौधे, स्तनधारी, विभिन्न मछलियाँ और कीड़े जैसे जीव लैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। 5. स्व-स्थाने संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? Ans.एक लुप्तप्राय पौधे या पशु प्रजातियों को उसके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने की प्रक्रिया को आमतौर पर स्व-स्थाने संरक्षण के रूप में जाना जाता है। उदाहरण; राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, प्राकृतिक भंडार और जीवमंडल के भंडार । 6.किन्हीं दो जैव उर्वरकों के नाम बताएँ । Ans. जैव उर्वरक शब्द पौधों की वृद्धि के लिए जैविक उत्पत्ति (नाइट्रोजन यौगिकों का उत्पादन करने वाले रोगाणुओं) के सभी पोषक तत्वों को दर्शाता है। जैव उर्वरक ऐसे जीव हैं जो मिट्टी की पोषक गुणवत्ता को समृद्ध करते हैं। जैव उर्वरकों के मुख्य स्रोत बैक्टीरिया, कवक और सायनोबैक्टीरिया (नीला-हरा शैवाल) हैं। जैसे: एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । Or एजोटोबैक्टर, राइजोबियम । 7.मानव अण्ड कोशिका का सुन्दर नामांकित चित्र दर्शाएँ। Ans. 8. निम्नांकित बीमारियों के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम लिखें: (i) टाइफाइड (ii) क्षय (iii) अमीबता (iv) टेटनस । i.टाइफाइड (आंत्र ज्वर). रोगजनक :- साल्मोनेला टाइफी (जीवाणु) ii- क्षय-माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस iii-एंटामीबा हिस्टॉलिटिका (Entamoeba histolytica) iv- क्लोस्ट्रीडियम टेटानी जीवाणु 9.प्राथमिक अनुक्रिया क्या है ? Ans. इसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया (रेस्पांस) करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते है । OR जब शरीर में रोगकारक प्रथम बार प्रवेश करता है तब प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिरक्षी बनाकर जो प्रतिक्रिया दर्शाता है उसे प्राथमिक अनुक्रिया (Primary-Response) कहते हैं। 10.A codon is a three-nucleotide or triplet sequence found on mRNA that codes for a certain amino acid during translation. The anticodon is a three-nucleotide sequence found on tRNA that binds to the corresponding mRNA sequence. 11.कार्बनिक खेती पर एक टिप्पणी लिखें। Ans. कार्बनिक खेती एक परंपरागत एवं स्थाई खेती है जिसे बिना किसी रासायनिक उर्वरकों की सहायता के केवल कार्बनिक खाद संभव किया जाता है जिससे पर्यावरण एवं मनुष्य के स्वास्थ में सुधार होता है । कार्बानिक खेती से प्राप्त उपज उच्च गुणवत्ता वाली होने के कारण विश्व बाजार में इसकी काफी मांग है, जिस से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है । 12. आनुवंशिक विविधता को परिभाषित करें। Ans.आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity) का आशय एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों के जीनों में होने वाले परिवर्तन से है। इसके कारण ही जीवों में भिन्न-भिन्न नस्लें देखने को मिलती हैं। यह विविधता ही जीवों को किसी दूसरे पर्यावरण के अनुकूल स्वयं को ढालने में सहायता करती है और विलुप्त होने से बचाती है l 13. उत्परिवर्तन को परिभाषित करें। Ans. जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता हैl 16.अनिषेक जनन से आप क्या समझते हैं ? Ans.अनिषेक जनन प्रजनन कि वह एक विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया होती है। जिसमें अंडे का परिवर्धन बिना किसी निषेचन के ही हो जाता है। बेयटी के अनुसार (1967) - जब मादा युग्मक अंडा परिपक्व हो जाता है, किंतु वह नरयुग्मक से बिना संपर्क में आए और बिना किसी अनुवांशिक पदार्थ को ग्रहण किए ही भ्रूण में परिवर्तित होने लगता है, उस प्रक्रिया को अनिषेक जनन कहते हैं। अर्थात साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि नर युग्मक शुक्राणु के बिना संयोजन से अंडाणु में भ्रूणीय परिवर्धन की प्रक्रिया आने को अनिषेकजनन कहते हैं। 17.यथार्थ फल तथा आभासी फल में अंतर स्पष्ट करें। Ans. झूठे फल और सच्चे फल के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि झूठा फल अंडाशय की दीवार के अलावा अन्य पुष्प भागों से विकसित होता है जबकि सच्चा फल अंडाशय की दीवार से विकसित होता है। OR यथार्थ फल:- जब पुष्प का केवल अण्डाशय फल मे परिवर्तित होता है। उदहारण- आम,बेर सेब एक आभासी फल (फॉल्स फ्रूट) है। आभासी फल को फल के रूप में तब परिभाषित किया जाता है जिसमें वसा का महत्वपूर्ण हिस्सा अंडाशय से नहीं बल्कि दूसरे आसन्न ऊतक से प्राप्त होता है। आभासी फलों के अन्य प्रमुख उदाहरण हैं स्ट्राबेरी, अनानास, शहतूत और नाशपाती। 18.किन्हीं दो प्रतिबंधन एंजाइम के नाम बताएँ Ans. सन् 1963 में ई. कोलाई नामक जीवाणु से 2 एंजाइम निकाले गये जिन्हें प्रतिबन्ध, एन्जाइम कहते है। 1- मिथायलेज- DNA में मैथिल वर्ग को जोड़ता है। २- प्रतिबन्धन एण्डोन्युक्लिएज- यह एंजाइम DNA को विशिष्ट स्थान से काटने का कार्य करता है। RE. को आरबर, स्मिथ और नाथन नामक वैज्ञानिकों ने खोजा था जिसके लिये उन्हें 1978 में नोबेल पुरुस्कार प्राप्त हुआ। 19.गुरुबीनाजनन को परिभाषित कीजिए। Ans. "गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से गुरुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को गुरुबीजाणु जनन कहते हैं। ->चार गुरुबीजाणु -> बीजाण्ड द्वार -> गुरुबीजाणु -> भूण कोष ← सक्रिय 20. एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज में अंतर स्पष्ट कीजिए । Ans. एक्सोन्यूक्लिएज :- एक्सोन्यूक्लिएज DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड खण्डों को अलग करते हैं। एंडोन्यूक्लिएज:- एंडोन्यूक्लिएज DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। 21.a पुनर्योजन से आप क्या समझते हैं ? पुनयोजियों का निर्माण कैसे होता है ? Ans. पुनर्योजन विभिन्न विभेदों में उपस्थित जीनों में संयोजन उत्पन्न करना पुनर्योजन या रीकाँबिनेशन कहलाता है। OR 1 वह प्रक्रिया जिसके दौरान डीएनए का एक खिंचाव पुनर्संयोजन करता है और एक नए युग्म संयोजन का निर्माण करता है जिसे पुनर्संयोजन के रूप में जाना जाता है 2 पुनर्संयोजन अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान होता है जब युग्मक गठन हो रहा होता है 3 पुनर्संयोजन परिणाम एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों में आनुवंशिक भिन्नता में होता है l 1. The process during which a stretch of DNA recombines and produces a new allelic combination is known as recombination. 2. Recombination takes place during meiosis when gamete formation is taking place. 3. Recombination results in genetic variation in different organisms of the same species. 1 (b)जीन अभिगमन पर एक टिप्पणी लिखें। Ans . जनसंख्या अनुवांशिकी के सन्दर्भ में एक जनसंख्या से दूसरी जनसंख्या में जाने पर अनुवांशिक परिवर्तनों का स्थानान्तरण होना जीन प्रवाह कहलाता है। 22-: जैव तकनीकी औद्योगिक उपयोगों का वर्णन करें: Answer : औद्योगिक क्षेत्र में जीव प्रौद्योगिकी का बहुत ही महत्व है। इसकी मदद से अनेक प्रकार के अल्कोहल, दुग्ध उद्योग, कार्बनिक अम्लों का उत्पादन जैव प्रौद्योगिकी पर ही आधारित है। औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के उत्पादों के लिए विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है। उन जीवाणुओं की सहायता से ग्लूकोज या कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च का किण्वन होता है जिसमें विकार की उत्पत्ति होती है। विकार ही ग्लूकोज को किण्वित कर विभिन्न प्रकार के उत्पादों का उत्पादन करता है। इस तकनीकी के मदद से प्रयुक्त यौगिकों जैसे इथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, एसिटोन आदि का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावे इन्जाइम का उत्पादन, ईंधन की प्राप्ति, खनिजों का निष्कासन, प्रतिरक्षाटॉक्सिन का उत्पादन, पूरक भोजन आदि का उत्पादन कर सकते हैं प्रमुख उत्पादन निम्न है l 23-: (a) अनुवांशिक अभियांत्रिकी Answer: किसी जीव के संजीन (genome, जीनोम ) में हस्तक्षेप कर के उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियों तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा का सामूहिक नाम है। मानव प्राचीन काल से ही पौधों व जीवों की प्रजनन क्रियाओं में हस्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है (जिसमें लम्बा समय लगता है लेकिन इसके विपरीत जनुकीय अभियांत्रिकी में सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैवप्रौद्योगिक विधियों से ही जीवों का जीनोम बदला जाता है। (b) अनुवांशिकी रूपांतरित जीव -: Answer: किसी भी प्रकार के जीवधारी (जीवाणु, पादप, कवक या जंतु) जिनके जीनों को कुछ फेरबदल कर परिवर्तित कर दिया गया हो, आनुवंशिकता : रूपान्तरित जीव कहलाते है। अगर इनमे कोई विजातीय जीन समाविष्ट कर दिया गया हो तब ऐसे जी. एम. ओ. परजीवी जीव कहलाते है अर्थात पारजीवी जीव भी एक प्रकार के जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गेनिज्म है। आनुवंशिकतः रूपान्तरित पौधो के अनुप्रयोग (i) पौधो में पीड़क प्रतिरोधकता का विकास, जिससे रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता काम होती है जैसे बीटी कपास, बीटी मक्का आदि | (ii) बेहतर गुणवत्ता बढ़ा पोषक मान, जैसे विटामिन A से समृद्ध चावल । (iii) मृदा से खनिजों के दक्षतापूर्ण अवशोषण की क्षमता। (iv) प्रतिकूल परिस्थितियों (सूखा, लवणता, अधिक ताप) सहने की क्षमता। 26-: (a) जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव Answer: वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः 'कल्चर' के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। (b) अपरा निर्माण तथा गर्भ पोषण 'अपरा निर्माण : अपरा गर्भनाल के द्वारा भ्रूण से जुड़ी रहती है। अपरा भी उन * ही शुक्राणु और डिम्ब कोशिकाओं से निर्मित होती है जिनसे भ्रूण का निर्माण होता है और दो घटकों क्रमश: भ्रूण भाग और मातृ भाग के साथ एक फेटोमेटरनल अंग के रूप में कार्य करती है। * गर्भ पोषण : गर्भनाल ही बच्चे के विकास को प्रेरित करती है. इसी की वजह से बच्चा मां के गर्भ में जीवित रहता है. यह सुरक्षा के साथ-साथ पोषण देने का भी काम करती है. यह बच्चे को कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने का काम करती है. कायिक भ्रूणोद्भवन क्या है? उत्तर- कायिक भ्रूणोद्भवन (Somatic embryogensis)- पादप ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया में द्विगुणित कायिक कोशिकाओं द्वारा विकसित भ्रूणों को कायिक भ्रूण या भ्रूणाम कहा जाता है, तथा इसके बनने की क्रियाविधि को कायिक भ्रूणोद्भवन कहते है। : कायिक संकरण किसे कहते हैं ? एक उदाहरण दीजिए। Answer: कायिक संकरण वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।


Sanskrit

नीतिश्लोकाः नीतिश्लोका: (विदुरनिय पाठ सुप्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत के उद्योग पर्व से संकलित है। अध्याय 33-40 विदुरनीति से लिया गया है। इसके रचनाकार महर्षि वेदव्यास है। युद्ध समाप्ति होने पर धृतराष्ट्र मंत्री श्रेष्ठ विदुर से अपने हृदय की शांति के लिए कुछ प्रश्नों को नीतिविषयक के रूप में पूछता है। उनका उचित उत्तर विदुर देता है। वही प्रश्नोतर ग्रंथ विदुरनीति है। यह भी भगवद्गीता के समान महाभारत का अंग है। इस पाठ में 10 श्लोक है। Questions . संस्कृत में उत्तर दें 1. क्षमा के हन्ति ? 2. विदुरः कः आसीत्? 3. के षड् दोषाः हातव्या: ? 4. अनाहूतः कः प्रविशति ? 5. कुलं केन रक्ष्यते ? 6. विद्या केन रक्ष्यते ? 3. नरक के द्वार कौन-कौन हैं? लघु उत्तरीय प्रश्न 1. हर परिस्थिति में धर्म की ही रक्षा क्यों करनी चाहिए? 2. इस संसार में कैसे लोग सुलभ और कैसे लोग दुर्लभ हैं? 4. मूर्ख किसे कहा गया है? 5. पंडित किसे कहा गया है? 6. 'नीतिश्लोकाः' पाठ के आधार पर मूर्ख कौन है? अथवा,' नीतिश्लोकाः' पाठ के आधार पर 'मूढचेता नराधम्' के लक्षणों को लिखें। 7. नरक के तीन द्वार कौन-कौन है ? 8. कुल की रक्षा कैसे होती है? 9. 'नीतिश्लोकाः' पाठ से किसी एक श्लोक को साफ-साफ शब्दों में लिखें। 10. अपनी प्रगति चाहने वाले को क्या करना चाहिए? 11. छः प्रकार के दोष कौन हैं? पठित पाठ्य के आधार पर वर्णन करें। 12. हिन्दी में उत्तर दें: नरकस्य त्रिविधं द्वारं कस्य नाशनम् ? पठित अवबोधनम् का हिन्दी अनुवाद 1. तत्रज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्। उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते । । 2. सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनः । अप्रियस्य तु पश्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। 3. यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।। 4. त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधः तथा लोभः तस्मादेतत् त्र्यं त्यजेत् ॥ 5. एको धर्मः परं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा । विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ।। 6. सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या भोगेन रक्ष्यते। मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।। 7. अनाहूतः प्रविशति, अपृष्टो बहुभाजते । अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेतानराधमः । सप्रसंग व्याख्या करें 1. षड्दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता । निद्रा तंद्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।। 2. सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनः । अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। Answers. संस्कृत में उत्तर 1. क्षमा क्रोध हन्ति । 2. विदुरः धृतराष्ट्रस्य मंत्रीप्रवरः आसीत्। 3. निद्रा तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य दीर्घसूत्रताश्च इतिदोषाः 4. अनाहूत मूढचेतानराधमः प्रविशति 5. कुलं तेन रयते 6. विद्या योगेन रक्ष्यते। लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कहा गया है कि "स्वधर्मे निधनं श्रेयः" अर्थात् अपने धर्म की रक्षा करने में अगर मृत्यु भी हो जाए तो वह श्रेष्ठ है, अच्छा है। अपने धर्म का कल्याण करने में स्वयं एवं दूसरों का भी कल्याण संभव है। 2. सदैव प्रिय बोलने वाले इस संसार में सहज ही प्राप्य है क्योंकि उसमें उनका अपना भी स्वार्थ शामिल होता है। परंतु हितकारी बात यदि अप्रिय हो तो इसे बोलने वाले दुर्लभ होते हैं। "हित मनोहारि दुर्लभंवचः।" महाकवि भारवि भी इसके पक्षधर है। 3. काम, क्रोध और लोभ इस संसार में नरक का द्वार कहे गए हैं क्योंकि इनका आश्रय महान् विपत्ति परंपरा को जन्म देता है। व्यक्ति आजीवन कष्ट से जीवनयापन करता है। मरने के बाद स्वर्ग मिले न मिले जीते जी नरक की यातना भोगनी पड़ जाती है। 4. भर्तृहरि ने 'नीतिशतक', 'श्रृंगारशतक' और 'वैराग्यशतक' नामक तीन ग्रंथों की रचना की है जिसमें नीति से संबंधित पद्यों को 'नीतिश्लोका:' पाठ में संकलित किया गया है। प्रस्तुत उत्तर में मूर्ख का लक्षण बताते हुए भर्तृहरि कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना बुलाए आता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और जिस पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करता है, उसे मूर्ख ही मानना चाहिए। 5. आचार्य भर्तृहरि ने नीतिशतक में पण्डित जनों की पहचान बताते हुए कहा है कि जिसके कार्य शीत, उष्ण, भय, रति (प्रेम) समृद्धि असमृद्धि (गरीबी) में नहीं रुकते अर्थात् व्यवधानवश गतिहीन नहीं होते वैसे मानव को पण्डित कहा जा सकता है। साथ ही तत्त्वों को जाननेवाला, सभी प्राणियों के योग क्षेम को जानकर उसके निमित्त कार्य करना भी मानव को पण्डित कहे जाने योग्य बनाता है। 6. बिना बुलाए आने वाला, बिना पूछे बोलने वाला तथा अविश्वासी पर विश्वास करने वाले को मूर्ख की संज्ञा दी गई है। 7. काम, क्रोध और लोभ ये तीनों नरक के द्वार कहे गए हैं। अतः अपना कल्याण चाहने वालों को इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए। 8. कुल की रक्षा सदाचार से होती है। 9. सुलभाः पुरुषा राजन् सतत प्रियवादिनः । अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः । 10. नीतिश्लोकाः पाठ के प्रणेता भर्तृहरि ने अपने नीति के अन्यतम पद्यों में से एक में यह कहा है कि इस संसार में जिसे ऐश्वर्यशाली बनना है, सारी विभूतियों का स्वामी बनना है तो इसके निमित उसे निद्रा, तन्द्रा, आलस, क्रोध, भय और दीर्घसूत्रता का त्याग करना होगा अन्यथा उसका लक्ष्य प्राप्ति असंभव हो जाएगा। 11. जीवन की सफलता के श्रेय और प्रेय दो मार्ग हैं। प्रेय का फल अस्थायी होता है परंतु श्रेय का मार्ग मानव को सदा के लिए उन्नति और कल्याण के मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। इस कार्य के साध्य-सिद्धि में मनुष्यों को निद्रा (अधिक सोना), तंद्रा (ऊँघना), भय, क्रोध, आलस और दीर्घसूत्रता (किसी कार्य को देर से करना) आदि दोषों को त्यागना होगा। महात्मा विदुर की वाणी को सत्य मानकर जो व्यक्ति इन षड्दोषों को छोड़ देगा उसे परम कल्याण की प्राप्ति होगी। 12. काम, क्रोध और लोभ- ये तीन नरक के द्वार हैं। इनसे आत्माभिमान नष्ट होता है। अतः इन्हें त्याग देना चाहिए। पठित अवबोधनम् का हिन्दी अनुवाद 1. सभी जीवों के गूढ़ रहस्य को जानने वाले, सभी कर्मों के योग को जाननेवाले, मनुष्यों में उपायों को जाननेवाले व्यक्ति को पण्डित कहते हैं। 2. हे राजन्! सदैव प्रिय बोलने वाले मनुष्य आसानी से मिल जाते हैं, परंतु अप्रिय ही सही, उचित बोलने वाला और सुनने वाला दोनों दुर्लभ हैं। 3. जिस मनुष्य का कर्म सर्दी-गर्मी, भय-आनंद तथा उन्नति अवनति से प्रभावित न हो, उसे पण्डित कहते हैं। 4. नरक के तीन द्वार हैं—काम, क्रोध और लोभ । ये तीनों अपने-आपको नष्ट कर देता है इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए। 5. धर्म (कर्त्तव्य) ही सबसे बड़ा धन है। एक क्षमा ही सबसे उत्तम शांति है। विद्या ही एक ऐसा धन है, जिससे संतुष्टि मिलती है। अहिंसा ही एक ऐसा धन है, जिससे सुख की प्राप्ति होती है। 6. सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। उबटन अर्थात् विशेष प्रकार के लेप से रूप की रक्षा होती है तथा आचरण से कुल अर्थात् खानदान की रक्षा होती है। 7. जो मनुष्य बिना बुलाए आता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और अविश्वासी पर विश्वास करता है। वह निश्चय ही मूर्ख और मनुष्यों में नीच है। सप्रसंग व्याख्या 1. प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक 'पीयुषम्' भाग दो के शीर्षक पाठ नीतिश्लोकाः से उद्धृत है। महाभारत में विदुर ने जो साम्राज्य के मंत्रीप्रवर थे ने नीतिविषयक अनेक पद्यों को रचा है। वे कहते हैं कि ऐश्वर्य चाहने वाले पुरुष को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता – इन छह दोषों को त्याग देना चाहिए। मानव जीवन में वे ही सफल हो सकते हैं जो अदम्य साहस और उद्यम उत्साहपूर्वक करते जाते हैं। निरंतर अध्यवसाय उन्हें उन्नति के शिखर पर ले जाता है जबकि निद्रादि षड्दोष उसे कहीं का नहीं छोड़ते। समाज में वह उपहास का पात्र बन जाते हैं। 2. प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक 'पीयुषम' भाग दो के शीर्षक पाठ नीतिश्लोकाः से संकलित है जिसमें 'नीति प्रवज्ञ महात्मा विदुर ने राजा को उपदेश देते हुए कहा है कि हमेशा प्रिय बोलने वाले सर्वत्र उपलब्ध होते हैं जबकि श्रेयस्कर बातें अप्रिय भी हो सकती हैं जिसको बोलने वाले और सुनने वाले दोनों दुर्लभ होते हैं। कवि ने उचित ही कहा है कि अपना काम निकालने वाले लोग अपनी चापलूसी और श्लाघा भरी बातों से समर्थ लोगों को रिझाते रहते हैं ताकि उनका काम बनता रहे परंतु जिसमें राज-कल्याण छिपा होता है, वैसी बातें बोलने और सुनने वाले कुछ ही लोग होते हैं क्योंकि ये अप्रिय भी हो सकते हैं जिसे सुनकर राजा दण्ड भी दे सकता है। फलतः सभी लोग ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते।


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नियोजित विकास की राजनीति . द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए • आयात पर भारी शुल्क लगाया। इस योजना के योजनाकार पी.सी. महालनोबीस थे। . विकास का केरल मॉडल केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है। . जे. सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की, जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था। . चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी। .भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा की समाप्ति, जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना (चकबंदी) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए। .1960 के दशक में सूखा व अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गयी खाद्य संकट के कारण गेहूँ का आयात करना पड़ा। . इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी, तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महवपूर्ण जगह के रूप में उभरा की राज्य सरकार ने इसे भुनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के निर्माताओं के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए, जो जरूरी पूँजी निवेश व रोज़गार के अवसर लेकर आए। इससे उड़ीसा के आदिवासी इलाकों के लोगों में एक डर पैदा हुआ कि उन्हें अपने घर-बार से विस्थापित होना पड़ेगा तथा पर्यावरणविद् भी इससे पर्यावरण प्रदूषित होने के भय से चिन्तित थे। . 'विकास' रहन-सहन के स्तर और औद्योगिक उत्पादन के आर्थिक स्वर को प्राप्त करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात् भारत सरकार ने गरीबी उन्मूलन, आर्थिक व सामाजिक पुनर्वितरण व कृषि के विकास के कार्यों पर जोर देना शुरू किया। . 'नियोजन' राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक उद्देश्यपूर्ण व तरीके से की गई प्रक्रिया होती है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ देने के लिए भारत सोवियत संघ के नियोजन प्रक्रिया से प्रेरित था, जैसे- आधुनिक शिक्षा, चिकित्सीय परीक्षण और तकनीकी योग्यताएँ 1944 में 'बॉम्बे प्लान' का प्रारूप तैयार किया गया, जिसकी मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। . भारत के योजना आयोग की स्थापना 1950 में एक सलाहकार के रूप में की गई थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है तथा मंत्रिमंडल भी इसमें सलाह देने की भूमिका निभाता है। यह समय को बर्बाद होने से बचाता है व प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में मदद करता है। . स्वतंत्रता से पहले 1930 में आँकड़ों को इकट्ठा करने व उद्देश्यों का प्रारूप तैयार करने और पंचवर्षीय योजनाओं व वार्षिक बजट का प्रारूप तैयार करने के लिए राष्ट्रीय नियोजन समिति की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गई थी। . 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ, जिसे के०एन० राज जैसे विशेषज्ञों ने तैयार किया था। इसका उद्देश्य बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश, भूमि सुधार और राष्ट्रीय आय का स्तर ऊँचा उठाना था। दूसरी पंचवर्षीय योजना इससे अलग थी, जिसमें भारी उद्योगों पर जोर दिया गया, जिससे तेज गति से संरचनात्मक बदलाव लाए जा सकें। . भारत ने केवल पूँजीवादी या समाजवादी अर्थव्यवस्था को नहीं अपनाया, बल्कि निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों को साथ-साथ बनाए रखने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया तथा तीव्र आर्थिक विकास को प्राप्त करने के लिए सामाजिक कल्याण व निजी औद्योगिक उत्पादन के साधनों को संरक्षण देने का लक्ष्य बनाया। . दूसरी पंचवर्षीय योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी भारी औद्योगिकरण पर जोर दिया, लेकिन इसकी आलोचना की गई कि ग्रामीण कल्याण की कीमत पर शहरी व औद्योगिक क्षेत्रों में सम्पन्नता पैदा की जा रही है। इसमें इस बात पर भी विवाद हुआ कि नियोजन की नीतियाँ असफल नहीं हुई, दरअसल इनका कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ, क्योंकि भूमि संपन्न तबके के पास सामाजिक व राजनीतिक ताकत ज्यादा थी। . नियोजन के समय कृषि क्षेत्र में भूमि सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए गए, जिसमें जमींदारी प्रथा को खत्म करने व जमीन की हदबंदी करने का प्रावधान था। लेकिन कुछ बुराइयों की वजह से ये सुधार बहुत सफल नहीं रहे, क्योंकि राजनीतिक प्रभाव के चलते कानून तोड़े गए व कुछ कानून केवल कागजों तक ही सीमित रह गए। . 1965 और 1967 के बीच देश में कई जगहों पर सूखा पड़ गया था तथा बिहार में अकाल जैसी स्थिति महसूस की गई थी। दूसरी तरफ बिहार में खाद्यान्न की कीमतें भी काफी बढ़ीं। सरकार ने उस वक्त जोनिंग' या 'इलाकाबंदी की नीति अपना रखी थी, इसकी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नहीं हो पा रहा था, जिसकी वजह से बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी गिरावट आ गई थी। . हरित क्रांति के माध्यम से सरकार ने कृषि की नई नीतियों पर जोर दिया, जैसे उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना आदि। हरित क्रांति ने गरीब किसानों के लिए बेहतर स्थितियाँ उपलब्ध कराई तथा मध्यमवर्गीय किसानों को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली बनाया हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे, जैसे इसने जमींदारों व गरीबों के बीच का दायरा बढ़ा दिया तथा कृषि उत्पादन भी केवल मध्यम रूप से ही बढ़ा। . गुजरात में 'श्वेत क्रांति' की शुरुआत 'वर्गीज कुरियन' ने की, जिन्हें 'मिल्कमैन ऑफ़ इण्डिया' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सहकारी दुग्ध उत्पादन व विपणन के नाम पर 'अमूल' नाम से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिहाज से 'अमूल' नाम का सहकारी आंदोलन अपने आप में एक अनूठा और कारगर मॉडल है, जिसका विस्तार ही 'श्वेत क्रांति' के नाम से जाना जाता है। .केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया, उसे 'केरल मॉडल' कहा जाता है। इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया। केरल में इस बात के भी प्रयास किए गए कि लोग पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर की योजनाओं को तैयार करने में शामिल हों । हरित क्रांति:- • सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई, जो कि हरित क्रान्ति के नाम से जानी जाती है । अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का निर्णय किया, जहाँ सिचाई सुविधा मौजूद थी, तथा किसान समृद्ध थे। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उवरंक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने की गारन्टी दी। इन संयुक्त प्रयासों को ही हरित क्रान्ति कहा गया। भारत में हरित क्रान्ति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन को कहा जाता है। • इसके कारण गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी हुई व पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके समृद्ध हुए। • इसका नकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि क्षेत्रीय व सामाजिक असमानता बढ़ी। • हरित क्रांति के कारण गरीब किसान व बड़े भूस्वामी के बीच अंतर बढ़ा जिससे वामपंथी संगठनों का उभार हुआ। मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ। श्वेत क्रान्ति: • 'मिल्कमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन ने गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपरण परिसंघ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 'अमूल' की शुरूआत की। इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े इस मॉडल के विस्तार को ही श्वेत क्रान्ति कहा गया। • प्रमुख कृषि क्रान्ति व उनके उद्देश्य - हरित क्रान्ति - खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना। श्वेत क्रान्ति -दुग्ध उत्पादन बढ़ाना। पीली क्रान्ति - तिलहन उत्पादन बढ़ाना। नील क्रान्ति -मत्स्य उत्पादन बढ़ाना। अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु • स्वतंत्रता के पश्चात आर्थिक संवृद्धि व सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने योजना निर्माण की ओर कदम बढ़ाये। • भारत के विकास का अर्थ आर्थिक विकास, भौतिक प्रगति आर्थिक सामाजिक न्याय, विभिन्न हितों के बीच टकराव परंतु विकास सबसे आवश्यक। • वामपंथ व दक्षिण पंथ: वामपंथ समाजवाद के समर्थक तथा पिछड़े वर्गों को सरकारी नीतियों का समर्थन मिलने पर खुश जबकि दक्षिण पंथी मुक्त अर्थव्यवस्था के पक्षधर व कम से कम सरकारी हस्तक्षेप के सरफदार • विकास के मॉडल- उदारवादी समाजवादी भारत का मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र केगुणों का समावेश • योजना आयोग 1950 में गठन अध्यक्ष प्रधानमंत्री भौतिक संसाधनों का बंटवारा, उत्पादन का विकेन्द्रीकरण सभी नागरिकों को अजीविका के साधन उद्देश्य • नियोजन देश की आर्थिक सामाजिक स्थिति के आधार पर निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयत्न • बॉम्बे योजना- 1944 में उद्योगपतियों का एकजुट हो नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का संयुक्त प्रस्ताव जिसके तहत सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाये। • पंचवर्षीय योजनाएं: उद्देश्य आर्थिक विकास, आत्मनिर्भरता राष्ट्रीय आय में वृद्धि • प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि क्षेत्र पर जोर, मूल मंत्र था- धीरज • दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) भारी उद्योगों के विकास पर जोर, विशेषज्ञ पी.सी.महालनोविस मूल मंत्र सार्वजनिक क्षेत्र का विकास • केरल मॉडल- विकेन्द्रीकृत नियोजन, शिक्षा, भूमि सुधार स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन पर जोर • मुख्य विवाद- कृषि बनाम उद्योग अर्थात निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र विवाद, इसी समय भूमि सुधार के लिये गंभीर प्रयास हुए। • दक्षिण पंथी व वामपंथी खेमो ने मिले जुले मॉडल मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचना की। उनका मानना था कि इससे भ्रष्टाचार व अकुशलता बढ़ी है। कुछ आलोचकों के अनुसार सरकार को जितना करना चाहिये था उतना उसने नहीं किया जिससे इस अवधि में गरीबी से ज्यादा कमी नहीं आई। • खाद्य संकट व हरित क्रांति- 1865-67 के दौरान भारत के कुछ हिस्सों विशेषकर बिहार में खाद्य संकट होने के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में वृद्धि व आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये हरित क्रांति द्वारा उत्पादन व तकनीक में सुधार हुआ। हरित क्रांति के सकारात्मक व नकारात्मक परिणाम निकले। • आपरेशन फ्लड- 1970 में ग्रामीण विकास कार्यक्रम जिसके अन्तर्गत सहकारी दूध उत्पादकों को उत्पादन व वितरण के राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। आनंद शहर (गुजरात) में AMUL द्वारा वर्गीज कूरियर (Milk man of India) की मुख्य भूमिका थी। • श्वेत क्रांति को विकास के माध्यम के रूप में अपनाया गया। • बाद के बदलाव 1960 के अंत में विकास की अवधारणा बदली। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने राज्य की भूमिका को विकास के सन्दर्भ में अधिक महत्व दिया। • इन्दिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।


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दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Long Answer Type Question ) Q.1. भारत-पाकिस्तान के संबंधों की मुख्य समस्यायें क्या हैं ? Ans. भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति एवं मित्रता का संबंध बनाए रखना चाहता है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म एक पड़ोसी के रूप में हुआ। अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध रहे तो संबंधित राज्य मानसिक चिंताओं और तनाव के वातावरण से अपने साधनों का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में लगा सकता है। भारत के पड़ोसी राज्यों से लगभग अच्छे हैं। चीन के साथ हमारे सीमा विवाद का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। मुक्त होकर पाकिस्तान के साथ बनते-बिगड़ते संबंधों के चलते हमारी परेशानियां बढ़ी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में भारत अपने पड़ोसियों के साथ शांति और मित्रता से रहना चाहता है। आकार और जनसंख्या में बड़ा होने पर भी वह छोटे देशों के साथ समानता के आधार पर सहयोग करना चाहता है। भारत पाकिस्तान के मध्य संबंधों में कटुता विद्यमान है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं (i) कश्मीर का मामला (ii) शरणार्थियों का प्रश्न (iii) आतंकवाद (iv) नहर पानी विवाद (v) ऋण की अदायगी का प्रश्न । ये ऐसी समस्याएँ है जिसके चलते दोनों के बीच काफी उग्रता उत्पन्न हुई हैं पाकिस्तान ने तोड़-फोड़ जासूसी सीमा अतिक्रमण, आदि कार्यवाहियों के अलावा 1947, 1965 और 1971 में आक्रमण भी किया। Q. 2.. क्या आप मानते हैं कि 1971 की भारत सोवियत संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए । Ans. अमरीका के चीन तथा पाकिस्तान के साथ तथा पाकिस्तान के चीन तथा अमरीका से सैनिक सहायता प्राप्त करने की स्थिति का देखते हुए तथा 1971 भारत को पाकिस्तान के साथ, बंग्लादेश संकट के कारण होनेवाले संघर्ष के परिणामस्वरूप अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच मैत्री और सहयोग संधि हुई। यह संधि भारत द्वारा प्रथम बार किसी महाशक्ति के साथ की गई राजनीतिक संधि थी। कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस संधि को भारत का गुट निरपेक्ष आंदोलन से विचलन या उल्लंघन कहा गया। किंतु मेरा मानना है कि यह गुट निरपेक्षता सिद्धान्त का उल्लंघन नहीं है। यह संधि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आए परिवर्तन, पारस्परिक लाभ व सामान्य उद्देश्य से प्रेरित थी। भारत का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व सहयोग को बनाये रखना है। Q. 3. वर्ष 2000 से भारत-अमेरिका संबंधों का परीक्षण कीजिए। Ans. भारत-अमेरिकी संबंध (India-US relationship) - हाल के सालों में भारत-अमेरिकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। इन बातों का संबंध प्रौद्योगिकी और अमरिकी में बसे अनिवासी भारतीय से है। दरअसल, ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं। निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कीजिए : सॉफ्टर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता है। बोईंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं। 3 लाख भारतीय 'सिलिकन वैली' में काम करती हैं। उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत अमेरिका में बसे भारतीयों ने की है। यह अमेरिका के विश्वव्यापी वर्चस्व का दौर है और बाकी देशों की तरह भारत को भी फैसल करना है कि अमेरिका के साथ वह किस तरह के संबंध रखना चाहता है। यह तय कर पाना आसान काम नहीं है। भारत में तीन संभावित राणनीतियों पर बहस चल रही है। भारत के जो विद्वान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की सैन्य शक्ति के संधि में देखते समझाते हैं, वे भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। ऐसे विद्वान यही चाहेंगे कि भारत वाशिंगटन से अपना अलगाव बनाए रखे और अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने पर लगाये । कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत और अमेरिका के हितों में हेलमेल लगातार बढ़ रहा है और यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। ये विद्वान एक ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमेरिकी वर्चस्व का फायदा उठाए। वे चाहते हैं कि दोनों देशों के आपसी हितों का मेल हो और भारत अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प ढूँढ सके। इन विद्वानों की राय है कि अमेरिका के विरोध को रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इसे भारत को नुकसान होगा। कुछ विद्वानों की राय है कि. भारत अपनी अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाए। कुछ सालों में यह गठबंधन ज्यादा ताकतवर हो जाएगा और अमेरिकी वचस्व के प्रतिकार में सक्षम हो जाएगा। निष्कर्ष (Conclusion)- शायद भारत और अमेरिका के बीच संबंध इतने जटिल हैं कि किसी एक रणनीति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अमेरिका से निर्वाह करने के लिए भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का एक समुचित मेल तैयार करना होगा। Q.4. भारत के किसी एक सामाजिक आन्दोलन की विवेचना कीजिए और इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। Ans. नर्मदा बचाओ आंदोलन - मेधा पाटकर गुजरात में नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोवर बांध के निर्माण का विरोध कर रही है। उसकी माँग है कि जिन लोगों को वहाँ से हटा जाय उन्हें कहीं और जगह देकर बसाया जाय। यह भी माँग है कि बाँध की ऊँचाई बहुत अधिक न हो। ऐसा न हो कि वह टूट जाए। यदि ऐसा हुआ तो गुजरात का काफी भाग जलमग्न हो जायेगा। पर्यावरण संबंधी आंदोलन चलाने वाले यह भी माँग कर रहे हैं कि गंदे नालों की सफाई की जाय मलेरिया तथा डेंगू जैसे बुखारों से बचने के लिए मच्छरों को मारा जाए, कारखानों का गंदा पानी नदियाँ में न छोड़ा जाए आदि। क्षेत्र में पोषणीय विकास को बढ़ावा दिया जाए। (i) लोगों द्वारा 2003 ई० में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की माँग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है। (ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए। (iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी मांग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ जो जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया। (iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती हैं। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया। Q.5. नव अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर एक लेख लिखिए। Ans. नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order) 1. गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध के दौरान महज मध्यस्थता करने वाले देश भर नहीं थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को 'अल्प विकसित देश' का दर्जा मिला था। इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। नव-स्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था । बगैर टिकाऊ विकास के कोई देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता। उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता। इसमें वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था। जिससे राजनीतिक आजादी हासिल की गई। 2. इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस कॉनफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट- अंकटाड) में 'टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुधारों से (a) अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं: (b) अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी; वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमंद होगा; (c) पश्चिमी देशों से मँगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी; और (d) अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी। 3. गुटनिरपेक्षता की प्रकृति धीरे-धीरे बदली और इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। Q. 6. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। Ans. वैसे तो मैं कक्षा बारहवीं का विद्यार्थी हूँ लेकिन एक नागरिक के रूप में और राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मुझे प्रश्न में जो कहा गया उनके अनुसार मैं दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहूँगा। (i) सी०टी०बी०टी० के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखूँगा। (ii) मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग जारी रखूँगा। (iii) दो बदलने वाले पहलू निम्नलिखित होंगे (a) मैं गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग करके संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा क्योंकि आज दुनियाँ में पश्चिमी देशों की तूती बोलती है और वे ही सम्पत्ति और शक्ति सम्पन्न हैं। रूस और साम्यवाद निरंतर ढलाने की दिशा में अग्रसर हो रहा है। (b) मैं पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक संधि करूँगा तो जर्मनी के बिस्मार्क की तरह अपने राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ देश के साथ ऐसी संधि करूंगा ताकि चीन 1962 की तरह भारत देश के भू-भाग को अपने कब्जे में न रखें और शीघ्र ही तिब्बत, बारमाँसा, हाँगकाँग को अंतर्राष्ट्रीय समाज में स्वायतपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न करूँगा और संभव हुआ तो नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ समूहिक प्रतिरक्षा संबंधी व्यापक उत्तरदायित्व और गठजोड़ की संधियाँ/ समझौते करूँगा । Q.7. 9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध पर एक लेख लिखिए। Ans. 9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध ( 9/11 and the Global War on Terror) (i) पृष्ठभूमि (Background)-11 सितंबर, 2001 ई० के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्त्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमेरिकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमेरिका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गये। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अलिंगटन स्थित 'पेंटागन' से टकराया। 'पेंटागन' में अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय है। चौथे विमान को अमेरिकी काँग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन यह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को 'नाइन एलेवन' कहा जाता है। (ii) आतंकवादी हमले के प्रभाव (Consequences of terrorist attack) - इस हमले में लगभग तीन हजार व्यक्ति मारे गये। अमेरिकियों के लिए यह दिल दहला देने वाला अनुभव था। उन्होंने इस घटना की तुलना 1814 और 1941 की घटनाओं से की 1814 में ब्रिटेन ने वाशिंगटन डीसी में आगजनी की थी और 1941 में जापानियों ने पर्ल हार्बर पर हमला किया था। जहाँ तक जान-माल की हानि का सवाल है तो अमेरिकी जमीन पर यह अब तक का सबसे गंभीर हमला था। अमेरिका 1776 में एक देश बना और तब से उसने इतना बड़ा हमला नहीं झेला था। (iii) अमेरिका की प्रतिक्रिया (Reaction of America) : (a) 9/11 के जवाब में अमेरिका ने कदम उठाये और भयंकर कार्यवाही की। अब क्लिंटन की जगह रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज डब्ल्यू बुश राष्ट्रपति थे। ये पूर्ववर्ती राष्ट्रपति एच. डब्ल्यू बुश के पुत्र हैं। क्लिंटन के विपरीत बुश ने अमेरिकी हितों को लेकर कठोर रवैया अपनाया और इन हितों को बढ़ावा देने के लिए कड़े कदम उठाये। (b) 'आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध' के अंग के रूप में अमेरिका ने 'ऑपरेशन एण्डयूरिंग फ्रीडम' चलाया। यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान - शासन को बनाया गया। तालिबान के शासन के पाँव जल्दी ही उखड़ गए लेकिन तालिबान और अल-कायदा के अवशेष अब भी सक्रिय हैं। 9/11 की घटना के बाद से अब तक इनकी तरफ से पश्चिमी मुल्कों में कई जगहों पर हमले हुए हैं। इससे इनकी सक्रितया की बात स्पष्ट हो जाती है। (c) अमेरिकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। अक्सर गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में बंदी बनाकर रखा गया। क्यूबा के निकट अमेरिकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो वे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया। इस जगह रखे गये बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमेरिका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई। Q.8. नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए. ? Ans. नेपाल में लोकतंत्र की बहाली (Establishment of democracy in Nepal)- 1. नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक यहाँ संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता एक ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाती रही, लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई। 2. लोकतंत्र - समर्थक मजबूत आंदोलन की चपेट में आकर राजा ने 1990 में नए लोकतांत्रिक संविधान की माँग मान ली, लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा रहा। 1990 के दशक में नेपाल के माओवादी नेपाल के अनेक हिस्सों में अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हुए। माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करना चाहते थे। इस वजह से राजा की सेना और माओवादी गुरिल्लों के बीच हिंसक लड़ाई छिड़ गई। 3. कुछ समय एक राजा की सेना, लोकतंत्र समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। इस तरह नेपाल में जो भी थोड़ा-बहुत लोकतंत्र था उसे राजा ने खत्म कर दिया। 4. अप्रैल 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतंत्र - समर्थक प्रदर्शन हुए। संघर्षरत लोकतंत्र-समर्थक शक्तियों ने अपनी पहली बड़ी जीत हासिल की जब राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इसे अप्रैल 2002 में भंग कर दिया गया था। मोटे तौर पर अहिंसक रहे इस प्रतिरोध का नेतृत्व सात दलों के गठबंधन (सेवन पार्टी अलाएंस), माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने किया। 5. नेपाल में लोकतंत्र की आमद मुकम्मल नहीं हुई है। फिलहाल, नेपाल अपने इतिहास के एक अद्वितीय दौर से गुजर रहा है क्योंकि वहाँ संविधान सभा के गठन की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। यह संविधान सभा नेपाल का संविधान लिखेगी। नेपाल में कुछ लोग अब भी मानते हैं कि अलंकारिक अर्थों में राजा का पद कायम रखना जरूरी है ताकि नेपाल अपने अतीत से जुड़ा रहे। माओवादी समूहों ने सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ देने की बात मान ली है। माओवादी चाहते हैं कि संविधान में मूलगामी सामाजिक, आर्थिक पुनर्रचना के कार्यक्रमों को शामिल किया जाए। सात दलों के गठबंधन में शामिल हरेक दल को यह बात स्वीकार हो ऐसा नहीं लगता । माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत आशंकित है। 2017 में नेपाल में आम चुनाव के बाद वहाँ वामपंथी सरकार काम कर रही है। Q.9. 'बांग्लादेश में लोकतंत्र' विषय पर एक लेख लिखिए। Ans. बांग्लादेश में लोकतंत्र (Democracy in Bangladesh) : 1. (a) पृष्ठभूमि (Background)-1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था। अंग्रेजी राज के समय के बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान का यह क्षेत्र बना था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने समुचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी की माँग भी उठायी। (b) पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। उन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की। शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली आवामी लीग को 1970 के चुनावों पूर्वी पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इंकार कर दिया। (c) शेख मुजीर्बुर को गिरफ्तार कर लिया गया। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के जन आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए। भारत के सामने इन शरणार्थियों को सँभालने की समस्या आ खड़ी हुई । 2. भारत का समर्थन (Support of India)- भारत की सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आजादी की माँग का समर्थन किया और उन्हें वित्तीय और सैन्य सहायता दी। इसके परिणामस्वरूप 11971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध की समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण तथा एक स्वतंत्र राष्ट्र 'बांग्लादेश' के निर्माण के साथ हुई। बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। बहरहाल, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन प्रणाली को मान्यता मिली। शेख मुजीबुर अपनी पार्टी आवामी लीग को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई। 3. सैनिक विद्रोह ( 1975 ) अन्ततः लोकतंत्र की पुनः स्थापना (Military Revolt (1975) and at less democracy was re-stablished ) - (a) 1975 के अगस्त में सेना ने उनके खिलाफ बगावत कर दिया और इस नाटकीय तथा त्रासद घटनाक्रम में शेख मुजीबुर सेना के हाथों मारे गए। नये सैनिक-शासन जियाकर्रहमान ने अपनी बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी और 1979 के चुनाव में विजयी रहे। जियाऊर्रहमान की हत्या हुई और लेफ्टिनेंट जनरल एच. एम. इरशाद के नेतृत्व में बांग्लादेश में एक और सैनिक शासन ने बागडोर सँभाला। (b) बांग्लादेश की जनता जल्दी ही लोकतंत्र के समर्थन में उठ खड़ी हुई। आंदोलन में छात्र आगे-आगे चल रहे थे। बाध्य होकर जनरल इरशाद ने एक हद तक राजनीतिक गतिविधियों की छूट दी। इसके बाद के समय में जनरल इरशाद पाँच सालों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। जनता के विरोध के आगे झुकते हुए लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद को राष्ट्रपति का पद 1990 में छोड़ना पड़ा। 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र कायम है। 2016 में भारत और बंगलादेश में एक समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों के बीच आप सहयोग में वृद्धि हुई । व्यापक Q. 10. राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए। Ans. प्रस्तावना (Introduction ) - अनेक वर्षों की अधीनता के बाद स्वतंत्र भारत के नियोजन को अपनाने का निर्णय लिया गया। क्योंकि उस समय व्यावहारिक रूप में देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेता के पास थी। रोजगार को उत्पन्न करने के लिए भारत में राज्य क्षेत्र को विकसित किया और देश में नए आर्थिक हितों को जन्म दिया गया। उन सभी गलत आर्थिक नीतियों को छोड़ने का प्रयास किया गया जो साम्राज्यवादियों ने अपने मातृ देश (ब्रिटेन) के हित के लिए लिखी थी। रोजगार बढ़ाने का प्रयास (Means to increase employment) - 1 अप्रैल 1951 से पहली योजना लागू हुई इस योजना में कृषि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। लेकिन सरकार ने ऐसे कार्यक्रमों को अधिक प्राथमिकता दी जिससे देश के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार न दिया जा सके क्योंकि रोजगार मिलने पर ही देश की गरीबी दूर हो सकती थी। देश के अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ यह मानते थे कि योजनाओं द्वारा निश्चित लागत से बनाये गये कार्यक्रमों से लागत हटकर हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के बारे में नहीं सोच सकते। द्वितीय पंचवर्षीय योजना स्पष्ट करती है, "निम्नलिखित लागत से रोजगार अंतर्निहित है और अवश्य ही, लागत के स्वरूप को निश्चित करते समय इस सोच-विचार को एक प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस तरह की योजना में लागत की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि होगी तथा विकासवादी खर्च का अर्थ है कि वह आय में वृद्धि करेगा तथा हर क्षेत्र में श्रम की मांग में वृद्धि करेगा। सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार (Expansion of Public Industry)- देश में भारी उद्योगों को लगाने, तेल की खोज और कोयले के विकास के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा के विकास के कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। इन सभी कार्यक्रमों को चलाने का मुख्य दायित्व देश की केन्द्रीय सरकार पर था। पहली योजना की बजाय दूसरी योजना में इस कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दिया गया। अनेक देशों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े-बड़े लौह इस्पात उद्योग शुरू किए गए। नए आर्थिक हित (New Economine interest ) - देश में आर्थिक हितों को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी अपनाया गया। वस्तुतः समाजवाद और पूँजीवाद व्यवस्थाओं के सभी गुणों को अपनाने का प्रयत्न किया गया। देश में एक नई आर्थिक नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। रोजगार के क्षेत्र में सार्वजनिक खासकर सेवाओं (service) द्वारा रोजगार देने वाला एक विशाल उद्यम विकसित हो सका। यद्यपि देश में सरकार को आशा के अनुरूप सफलताएँ नहीं मिली और रोजगार के अवसर धीमी गति से ही उत्पन्न हो सके। Q. 11. भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का विवेचन कीजिए। Ans. प्रत्येक राष्ट्र की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना होता है। अतः भारत की विदेश नीति का भी प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति व विकास करना है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं- 1. अंतराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का समर्थन करना तथा आपसी मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रयत्न करना। 2. विश्वव्यापी तनाव दूर करके परस्पर समझौते को बढ़ावा देना और संघर्ष नीति तथा सैन्य गुटबाजी का विरोध करना। 3. शस्त्रों की होड़ विशेष रूप से आणविक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना तथा व्यापक निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना । 4. राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना ताकि राष्ट्र की स्वतंत्रता व अखंडता पर हर प्रकार के खतरे को रोका जा सके। 5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, लगाद, पृथकतावाद तथा सैन्यवाद का विरोध करना। 6. स्वतंत्रता आंदोलन, लोकतांत्रिक संघर्षों व आत्मनिर्धारण के संघों का समर्थन करना। 7. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व तथा पंचशील के आदर्शों का बढ़ावा देना। 8. विश्व के सभी राष्ट्रों विशेष तौर से पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना। 9. राष्ट्रों के बीच संघर्ष वातावरण को कम करना व उनमें आपसी सूझ-बूझ तथा मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना। 10. एक लोकतांत्रिक विश्व की स्थापना के लिए मानव अधिकारों को एक आवश्यक शर्त के रूप में मान्यता दिए जाने तथा उन्हें लागू किए जाने पर जोर देना। 11. भारत विश्व स्तर पर आतंकवाद को समाप्त करना चाहता है। Q.12. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए । Ans. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है। संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका ( India's Role in the United Nations) : 1. चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Ilelp in Preparation of the U. N. Charter) - संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और गौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के लागू करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री स० राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था। 2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations) संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 3. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems) - भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है। 4. निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India's Co-operation to U. N. for the (disarmament) - संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुन: पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में भारत का सहयोग (India's Co-operation in the Political Functions of the United Nations) - भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं 1. कोरिया की समस्या (Korean Problems) - जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था। ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2. स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal ) - जुलाई, 1956 के बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अतः उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मिस्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया। 3. हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo- China ) - सन् 1954 में हिन्द- चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया। 4. हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery ) - जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिम देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था। 5. चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China)- विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है। 6. नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) - भारत का सदा प्रयत्न रहा है। कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया। 7. रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) - जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की। 8. भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चुका है (India had worked at different posts) भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं। डॉ॰ राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था। अब तक छः बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ० नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के. पी० एस० मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे। निष्कर्ष (Conclusion)-भारत विश्व शांति व सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सहयोग देता रहा है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति को बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण यंत्र है। पं. जवाहरलाल ने एक बार कहा था, "हम संयुक्त राष्ट्र के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।" Q. 13. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ? संयुक्त राष्ट्र के संगठन और इसके अंगों के प्रमुख कार्यो का वर्णन कीजिए। अथवा, उन मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए जिन पर संयुक्त राष्ट्र आधारित है ? कहाँ तक उनकी प्राप्ति हो सकी है ? Ans. संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना युद्धों को रोकने, आपसी शांति और भाईचारा स्थापित करने तथा जन-कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 192 देश इसके सदस्य हैं। इस संस्था की विधिवत स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है। उद्देश्य (Aims)- 1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना। 2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बढ़ावा देना। 3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना । 4. ऊपर दिये गये हितों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की कार्यवाही में तालमेल करना संयुक्त राष्ट्र का संगठन (Organization of the United Nations) 1. साधारण सभा या महासभा (General Assembly) - यह सभा संयुक्त राष्ट्र का अंग है। इसमें जब सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके भी सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र 5 प्रतिनिधि भेज सकता है परंतु उनका वोट एक ही होता है। इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार होता है। कार्य (Functions) - 1. यह सभा शांति तथा सुरक्षा कार्यों पर विचार करती है। 2. यह सभा संयुक्त राष्ट्र का बजट पास करती है। 3. महासभा संयुक्त राष्ट्र के बाकी सब अंगों के सदस्यों का चुनाव करती है। सुरक्षा परिषद (Security Council) - यह परिषद संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारिणी है। इसके कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थायी सदस्य हैं और 10 अस्थायी। 5 स्थायी सदस्य हैं- (i) अमेरिका, (ii) रूस, (iii) फ्रांस, (v) साम्यवादी चीन । अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्ष के लिए किया जाता है। सुरक्षा परिषद् के कार्य (Function of Security Council) - (i) यह परिषद विश्व में शांति स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है। कोई भी देश अपनी शिकायत इस परिषद के सामने रख सकता है। (ii) यह झगड़ों का निर्णय करती है और यदि उचित समझे तो किसी भी देश के विरुद्ध सैनिक शक्ति का प्रयोग कर सकती है। (iii) साधारण सभा के सहयोग से अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के जजों को नियुक्त करती है। 3. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council) - इस परिषद के 27 सदस्य होते हैं जो साधारण सभा के द्वारा 3 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इनमें एक-तिहाई सदस्य हर वर्ष टूट जाते हैं। उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिए जाते हैं। कार्य (Functions) - यह परिषद अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों पर विचार करती है। 4. संरक्षण परिषद् (Trusteeship Council) - यह परिषद उन प्रदेशों के शासन की देखभाल करती है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अन्य देशों के संरक्षण में रखा हो। इसके अतिरिक्त यह इस बात का भी प्रयत्न करती है कि प्रशासन चलाने वाले देश इन प्रदेशों को हर प्रकार से उन्नत करके स्वतंत्रता के योग्य बना दें। कार्य (Functions) - संरक्षण परिषद समय-समय पर संरक्षित इलाकों की उन्नति का अनुमान लगाने के लिए मिशन भेजती है। 5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) - यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख न्यायिक अंग है। इस न्यायालय के 15 न्यायाधीश होते हैं जो साधारण सभा तथा सुरक्षा परिषद् द्वारा 9 वर्षों के लिए चुने जाते हैं। यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के भिन्न-भिन्न अंगों द्वारा उनकी समाजसेवी संस्थाओं को न्यायिक परामर्श भी देता है। कार्य (Functions)–यह न्यायालय उन झगड़ों का फैसला करता है जो भिन्न-भिन्न देश उसके सामने पेश करते हैं। 6. सचिवालय (Secretariat) - यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यालय है। इसका सबसे बड़ा अधिकारी महासचिव (Secretary General) होता है जिसकी सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर साधारण सभा नियुक्त करती है। यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य प्रबन्धक होता है। उसके अधीन दफ्तर के लगभग • 6000 कर्मचारी काम करते हैं जो भिन्न-भिन्न देशों के होते हैं। कार्य (Functions) - संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का प्रमुख कार्य सारे विश्व में फैले संयुक्त राष्ट्र के अंगों की शाखाओं का प्रबन्ध करता है और उनकी आर्थिक एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करता है। Q. 14. भारत की विदेश नीति विश्व शांति की स्थापना में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है ? Ans. प्रस्तावना- भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जो विदेश नीति अपनाई उसके अनुसार गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेशी नीति का आधार बनाया। विश्व के सभी देशों के साथ और विशेषतया अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाये रखना और विश्व शांति को बनाए रखना भारत की विदेश नीति के उद्देश्य रहे हैं। विश्व शांति की स्थापना में भारत के योगदान का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान (Contribution of Indian in maintaining world-peace) (i) भारत की तटस्थता की नीति (India's policy of neutrality ) - अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भारत ने हमेशा तटस्थता की नीति को अपनाया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सारा विश्व दो विरोधी गुटों में बँटा हुआ है और ये दोनों गुट संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के रास्ते में एक रुकावट सिद्ध हो रहे थे। इन दोनों गुटों के आपसी खिंचाव के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की शंकाएँ बढ़ती जा रही है परंतु भारत हमेशा इन दोनों गुटों से तटस्थ रहा है और दोनों महाशक्तियों को एक-दूसरे से नजदीक लाने के लिए कोशिशें करता रहा है। (ii) सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the military alliances ) - विश्व में बहुत-से सैनिक गुट बने जैसे नाटो, सैन्ट्रो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा है कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधक हैं। अत: भारत ने हमेशा इन सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं कि बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है। (iii) निःशस्त्रीकरण में सहायता (Support of disarmament) - संयुक्त राष्ट्र संघ ने निःशस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है। इस समस्या को हल करने के लिए बहुत से प्रयास किए हैं। भारत ने इस समस्या को समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र की मदद की है क्योंकि . भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की स्थापना हो सकती है। सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था, "विकास स्वतंत्रता, निःशस्त्रीकरण और शांति परस्पर एक-दूसरे से संबंधित हैं। क्या नाभिकीय अस्त्रों के रहते शाति संभव है ?' एक नाभिकीय विमानवाहक पर जो खर्च होता है वह 53 देशों के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से अधिक है। नाग ने अपना फन फैला दिया है। समूची मानव जाति भयाक्रांत और भयभीत निगाहों से उसे इस झूठी आशा के साथ देख रही है कि वह उसे काटेगा नहीं। " (iv) जातीय भेदभाव का विरोध (Opposition of the policy of dicriminations based on caste, crced and colour) - भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेदभाव को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिण अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाता तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है। (v) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (Co-operation to the United Nation) - संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों को भारतीय संविधान में भी स्थान दिया गया है तथा भारत शुरू से ही इसका सदस्य रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्तिशाली बनाना और उसके कार्यों में सहयोग देना भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शांति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की। जैसे स्वेज नहर, हिन्द- चीन के प्रश्न, वियतनाम की समस्या, साइप्रस आदि में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर अपनी सेनाएँ भी भेजी थी। भारत कई बार सुरक्षा परिषद् का भी सदस्य चुना गया हैं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेन्सियों का सदस्य बनकर क्रियात्मक योगदान प्रदान कर रहा है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना सदस्यता के लिए भारत प्रयासरत है। Q. 15. किसी सरकार के समक्ष युद्ध की स्थिति में जो तीन विकल्प होते हैं उनका उल्लेख कीजिए । Ans. बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं (i) युद्ध छिड़ने पर स्थिति देखते हुए शत्रु के सामने हथियार डालना या आत्मसमर्पण करना । (ii) विरोधी पक्ष की बात को बिना युद्ध किए ही मान लेना । (iii) विरोधी पक्ष को डराने के लिए ऐसे संकेत देना यदि वह युद्ध छेड़ेगा अथवा बंद नहीं करेगा तो वह (सरकार) अपने सहयोगियों अथवा कदमों से ऐसे विनाशकारी कदम उठाएगी जिन्हें सुनकर हमलावर बाज आए अथवा युद्ध थम जाए तो अपनी रक्षा करने के लिए ऐसे हथियारों का प्रयोग करना कि शत्रु तुरंत पीछे हट जाए या पराजित हो जाये Q. 16. आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ? Ans. आंध्र प्रदेश में चलाए गए शराब-विरोधी आंदोलन द्वारा चलाए गए जिन गंभीर मुद्दों की तरफ ध्यान खींचा (Issue and iter attention drawn by anti arrack movement launched in Andhra Pradesh) (i) ताड़ी-विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था-' ताड़ी की बिक्री बंद करो।' लेकिन इस साधारण नारे ने क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरे रूप से प्रभावित किया। (ii) ताड़ी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच एक गहरा नाता बन गया था। राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से काफी राजस्व प्राप्ति होती थी इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रही थी । (iii) स्थानीय महिलाओं के समूहों ने इस जटिल मुद्दे को अपने आंदोलन में उठाना शुरू किया। वे घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुले तौर पर चर्चा करने लगीं। आंदोलन ने पहली बार महिलाओं को घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दों पर बोलने का मौका दिया। (iv) ताड़ी-विरोधी आंदोलन महिला आन्दोलन, का एक हिस्सा बन गया। इससे पहले घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात पूरे देश पर लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खासा जटिल है। * (v) आठवें दशक के दौरान महिला आंदोलन परिवार के अंदर और उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केंद्रित रहा। इन समूहों ने दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम चलाई और लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित व्यक्तिगत एवं संपत्ति कानूनों की माँग की। (vi) इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा। (vii) नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगा था। आपको ज्ञात ही होगा कि संविधान के 73वें संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया है। Q.17. दलित पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ? Ans. बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में दलित युवाओं का एक संगठन 'दलित पैंथर्स ' 1972 में बना। 1. आजादी के बाद के सालों में दलित समूह मुख्यतया जाति आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति आधारित किसी भी तरह के भेदभाव के विरुद्ध गारंटी दी गई है। 2. आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की ऐसी ही नीतियों का कारगर क्रियान्वयन इनकी प्रमुख माँग थी। 3. भारतीय संविधान में छुआछूत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसके अंतर्गत 'साठ' और 'सत्तर' के दशक में कानून बनाए इसके बावजूद पुराने जमाने में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ इस नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बरताव कई रूपों में जारी रहा। 4. दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर होती थीं। दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते थे। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाये जाते थे। दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था नाकामी साबित हो रही थी। Q. 18. संक्षेप में गैर-सरकारी संगठनों की मजदूर कल्याण स्वास्थ शिक्षा नागरिक अधिकार, नारी उत्पीड़न तथा पर्यावरण से संबंधित उनके पहलुओं की भूमिका का उल्लेख कीजिए । Ans. भारत में सरकार के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठन भी विभिन्न सामाजिक समस्याओं से जुड़े मामलों को उठाते रहे हैं। ये मामले मजदूर, पर्यावरण, महिला कल्याण आदि मामलों के साथ जुड़े हुए रहे हैं। भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका मजदूरों के कल्याण, स्वास्थ्य के विकास, शिक्षा के प्रसार और नागरिकों के अधिकारों के रक्षण, नारी उत्पीड़न की समाप्ति, कृषि के विकास, वृक्षारोपण आदि के क्षेत्र में व्यापक रूप में रही है। गैर-सरकारी संगठनों में- (a) अंतर्राष्ट्रीय चेंबर ऑफ कॉमर्स, (b) रेडक्रॉस सोसाइटी, (c) एमनेस्टी इंटरनेशनल, (d) मानवाधिकार आयोग आदि संगठन विश्व स्तर पर सभी देशों में फैले हुए हैं। इन गैर-सरकारी संगठनों ने निम्नलिखित क्षेत्र में अपनी भूमिका द्वारा .निम्नलिखित विकास किया 1. इन गैर-सरकारी संगठनों ने मानव जाति के अधिकारों की रक्षा की। विश्व के विभिन्न देशों में इनकी स्थापित शाखाएँ विभिन्न सरकारों द्वारा मानव अधिकारों की रक्षा करवाती हैं। 2. इन गैर-सरकारी संगठनों ने विभिन्न देशों में वृक्षारोपण में सहयोग दिया। 3. इन गैर-सरकारी संगठनों ने रोजगारोन्मुख योजना चलाकर मजदूरों को विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण दिया। 4. ये गैर-सरकारी संगठन स्वास्थ्य के क्षेत्र में दवा छिड़काव, टीकाकरण, विभिन्न प्रकार की दवाओं के वितरण और बीमारियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।, 5. इन गैर-सरकारी संगठनों ने कृषि के क्षेत्र में उन्नति के लिए सरकारों से निवेदन कर विकासात्मक कार्य करवाया। खाद, बीज आदि की व्यवस्था में योगदान दिया। 6. विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षण कार्य किया एवं सामग्रियाँ वितरित की। इस तरह गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका मानव जाति के विकास और समस्याओं के समाधान में व्यापक रूप से हो रही है। Q. 19. अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ? Ans. अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि सरकार अन्य पिछड़ी जाति के लिए आयोग नियुक्त कर सकती है। पहली बार 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में इस प्रकार का आयोग नियुक्त किया गया। इस आयोग ने 2399 जातियों को पिछड़ी जातियों में सम्मिलित किया। 1978 में वी० वी० मंडल की अध्यक्षता में इस आयोग ने 3743 प्रजातियों को पिछड़ी जाति में शामिल करने की सिफारिश कमीशन ने 27 प्रतिशत नौकरियाँ अन्य पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित कों। 1998-99 से निम्न कार्यक्रम अन्य पिछड़े वर्ग के लिए शुरू किया गया। 1. परीक्षा पूर्व कोचिंग अन्य पिछड़े वर्ग के उन लोगों के बच्चों के लिए जिनकी आय एक लाख से कम हो। 2. अन्य पिछड़े वर्ग के लड़के-लड़कियों के लिए हॉस्टल । 3. प्रो - मैट्रिक छात्रवृतियाँ । 4. पोस्ट मैट्रिक छात्रवृतियाँ। 5. सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक दशा सुधारने के लिए कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों की सहायता करना। Q.20. भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रही विभिन्न योजनाओं का परीक्षण कीजिए। Ans. भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए निम्नलिखित विशेष योजनाएं चलाई गई हैं (i) शिक्षा के क्षेत्र में सभी राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उच्च स्तर तक शिक्षा निःशुल्क कर दी गई है। विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में इनके लिए स्थान आरक्षित किए गए हैं। (ii) तृतीय पंचवर्षीय योजना में छात्राओं के लिए छात्रावास योजना प्रारंभ की गई। नौकरियों में आरक्षण के अतिरिक्त रोजगार दिलाने में सहायक प्रशिक्षण एवं निपुणता बढ़ाने वाले कई कार्यक्रम भी प्रारंभ किए गए हैं। (iii) 1987 में भारत के जनजातीय सहकारी बाजार विकास संघ की स्थापना की गई। 1992-93 में जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की गई। 1997-2002 की नौंवी योजना अवधि में 'आदिम जनजाति समूह के विकास के लिए अलग कार्य योजना की व्यवस्था की गई। (iv) मार्च 1992 में बाब साहब अंबेडकर संस्था की स्थापना की गई। इन सबके अतिरिक्त इस समय 194 जनजातीय विकास योजनाएँ चल रही हैं। कुछ राज्यों द्वारा शोध, शिक्षा, प्रशिक्षण, गोष्ठी, कार्यशाला, व्यावासायिक निवेश, जनजातीय शोध संस्थानों की स्थापना, जनजातीय साहित्य का प्रकाशन आदि के कार्यक्रम चलाए गए हैं। Q.21. महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में संसद और राज्य विधान सभाओं में सीटें आरक्षित करने की माँग का परीक्षण कीजिए। Ans. किसी भी देश के संपूर्ण विकास के लिए सभी क्षेत्रों में स्त्रियों और पुरुषों की अधिकतम भागीदारी होनी चाहिए। पुरुष और महिलाएँ दोनों ही कंधे से कंधे मिलाकर एक सुखी और सुव्यवस्थित निजी पारिवारिक और सामाजिक जीवन व्यतीत करें। हमारे देश में जनसंख्या के लगभग आधे हिस्से की क्षमता का कम उपयोग सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक गंभीर बाधा है। 1952 से 1999 तक संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम रहा है। महिला आंदोलन चुनावी संस्थाओं में महिलाओं के आरक्षण के लिए संघर्ष करता रहा है। 73वें और 74वें संशोधन के द्वारा महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं एवं नगर निगमों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त हुआ है। इस आदोलन को केवल आशिक सफलता मिली है। संसद और राज्य विधान सभाओं में ही आरक्षण के लिए संघर्ष जारी है लेकिन जहाँ लगभग सभी राजनीतिक दल खुले तौर पर इस माँग का समर्थन करते हैं वहीं जब यह विधेयक संसद के समक्ष पेश होता है तो किसी न किसी प्रकार से पारित नहीं होने दिया जाता है। Q. 22. नक्सलवादी आंदोलन पर एक निबंध लिखिए। Ans. 1. नक्सलवादी आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical background of Naxalists Movement)- पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवादी पुलिस थाने के इलाके में 1967 में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस विद्रोह की अगुआई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय कैडर के लोग कर रहे थे। नक्सलवादी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आंदोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आंदोलन को नक्सलवादी आंदोलन के रूप में जाना जाता है। 2. सी० पी० आई० से अलग होना और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का अपनाना (To be seperated from CPM and adopt guerilla Warfare stretgedy ) - 1969 में नक्सलवादी सी० पी० • आई. (एम) से अलग हो गए और उन्होंने सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नाम से एक नई पार्टी चारु मजदूमदार के नेतृत्व में बनायी। इस पार्टी की दलील थी कि भारत में लोकतंत्र एक छलावा है। इस पार्टी ने क्रांति करने के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनायी । 3. कार्यक्रम (Programme) - नक्सलवादी आंदोलन ने धनी भूस्वामियों से जमीन बलपूर्वक छीनकर गरीब और भूमिहीन लोगों को दी। इस आंदोलन के समर्थक अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल के पक्ष में दलील देते थे। 4. नक्सलवाद का प्रसार और प्रभाव (Spread and Impact of Naxalism) - 1970 के दशक वर्षों में 9 राज्यों के लगभग 75 जिले नक्सलवादी हिंसा से प्रभावित हैं। इनमें अधिकतर बहुत पिछड़े इलाके हैं यहाँ आदिवासियों की जनसंख्या ज्यादा है। इन इलाकों के नक्सलवाद की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में भी बनी हैं। उपन्यास पर आधारित 'हजार चौरासी की माँ' ऐसी ही में बँटाई या पट्टे पर खेतीबाड़ी करने वाले तथा छोटे किसान ऊपज में हिस्से, पट्टे की सुनिश्चित कामकाजी महिलाओं वाले परिवार में दहेज की प्रथा का चलन कम है। 5. नक्सलवादी आंदोलन और काँग्रेस सरकार (Naxalists Movement and Congress Government)–(क) 1969 में काँग्रेस शासित पश्चिम बंगाल सरकार ने निरोधक नजरबंदी समेत कई कड़े कदम उठाए, लेकिन नक्सलवादी आंदोलन रुक न सका। बाद के सालों में यह देश के कई अन्य भागों में फैल गया। नक्सलवादी आंदोलन अब कई दलों और संगठनों में बँट चुका था। इन दलों में से कुछ जैसे सी० पी० आई० (एम एल लिबरेशन) खुली लोकतांत्रिक राजनीति में भागीदारी करते हैं। (ख) सरकार ने नक्सलवादी आंदोलन से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। मानवाधिकार समूहों ने सरकार के इन कदमों की आलोचना करते हुए कहा है कि वह नक्सलवादियों से निपटने के क्रम में संवैधानिक मानकों का उल्लंघन कर रही है। नक्सलवादी हिंसा और नक्सल विरोध सरकारी कार्रवाई में हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। Q. 23. गुजरात आंदोलन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए एक संक्षिप्त सार लिखिए। Ans. प्रस्तावना - जनवरी, 1974 में शुरू हुए आंदोलन से पहले कॉंग्रेस की सरकार थी । यहाँ के छात्र आंदोलन ने इस प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर तो डाला ही, राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हुए। 1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन की प्रगति - छात्र आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं और इस आंदोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। विपक्षी दलों ने राज्य की विधान सभा के लिए दोबारा चुनाव कराने की माँग की। काँग्रेस (ओ) के प्रमुख नेता मोरारजी देसाई ने कहा कि अगर राज्य में नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए गए तो मैं अनियतकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाऊँगा । आंदोलन के राजनैतिक परिणाम - गुजरात आंदोलन ने गुजरात में व्यापक उथल-पुथल मचा दी। मोरारजी देसाई का गुजरात में व्यापक प्रभाव था। वैसे भी क्षेत्रवाद और प्रांतीयता ने गुजरात में काँग्रेस विशेषकर इंदिरा गाँधी के खिलाफ विरोधी वातावरण तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। आजादी के दिनों से ही अनेक गुजरात यह मानते थे कि काँग्रेस ने प्रारम्भ में गुजरात को महाराष्ट्र का काफी समय तक हिस्सा रहा और सरदार पटेल को प्रधानमंत्री न बनने का उन नेताओं का गहरा संबंध नेहरू जैसे नेताओं का हाथ था और अब काँग्रेस में टूट से पहले मोरारजी देसाई जैसे कद्दवार राष्ट्रीय नेता को प्रधानमंत्री न बनने देने में स्वयं इंदिरा की बहुत बड़ी भूमिका थी। वस्तुत: मोरारजी अपने काँग्रेस के दिनों में इंदिरा गाँधी के मुख्य विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्थित छात्र आंदोलन के गहरे दबाव में 1975 के जून में विधान सभा के चुनाव हुए। काँग्रेस इस चुनाव में हार गई। गुजरात में काँग्रेस (ओ) और कालांतर में जनता दल और भारतीय जनता दल को सत्ता में आने में मूलतः इस आंदोलन में ऐतिहासिक कारक बनकर एक सशक्त पृष्ठभूमि तैयार की थी। टिप्पणी- इंदिरा समर्थक गुजरातियों, प्रेस और राष्ट्रीय स्तर के अनेक नेताओं और दलों ने गुजरात आंदोलन की आलोचना करते हुए यह कहा कि यह आंदोलन कंवल कॉंग्रेस पार्टी के विरुद्ध नहीं है बल्कि इंदिरा गाँधी के व्यक्तिगत नेतृत्व के विरुद्ध मोरारजी देसाई और अन्य दक्षिण पंथी . राजनीतिज्ञों का एक षड्यंत्र है। Q.24. सुरक्षा के पारंपरिक तरीके कौन-कौन से हैं? इनमें से प्रत्येक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। Ans. प्रस्तावना- सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का इस्तेमाल यथासंभव सीमित होना चाहिए। युद्ध के लक्ष्य और साधन दोनों से इसका संबंध है। 'न्याय युद्ध' की यूरोपीय परंपरा का ही यह परवर्ती विस्तार है कि आज लगभग पूरा विश्व मानता है कि किसी देश को युद्ध उचित कारणों यानी आत्म रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी युद्ध में युद्ध-साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। युद्धरत् सेना को चाहिए कि वह संघर्षविमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसमर्पण करने वाले शत्रु को न मारे। सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरूरी हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए। वल प्रयोग तभी किया जाय जब बाकी उपाय असफल गए हों। तरीके या विधियाँ - सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना से इनकार नहीं करती कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो । इनमें सबसे महत्वपूर्ण है- निरस्त्रीकरण, अस्त्र- नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली । (i) निरस्त्रीकरण- निरस्त्रीकरण की माँग होती है कि सभी राज्य चाहे उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आये। उदाहरण के लिए, 1972 को जैविक हथियार संधि (बायोलॉजिकल वीपन्स कंवेशन - BWC) तथा 1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल वीपन्स कन्वेशन - CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तखत करने वालों में सभी महाशक्तियाँ शामिल हैं लेकिन महाशक्तियाँ- अमेरिका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए दोनों ने अस्त्र- नियंत्रण का सहारा लिया। (ii) अस्त्र नियंत्रण - अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एटा बैलिस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलिस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरूआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों की सीमित संख्या में ऐसी रक्षा प्रणाली तैनात करने की अनुमति थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया। (iii) संधियाँ - अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र नियंत्रण की कई अन्य संधियों पर हस्ताक्षर किए जिसमें सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि-2 (स्ट्रैटजिक आर्म्स लिमिटेशन ट्रीटी-SALT II) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सौंध (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी - START) शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी - NPT, 1968) भी एक अर्थ में अस्त्र नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया। जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे या उनका परीक्षण कर लिया था उन्हें इस संधि के अंतर्गत इन हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। जो देश सन् 1967 तक ऐसा नहीं कर पाये थे उन्हें ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया। परमाणु अप्रसार संधि ने परमाण्विक आयुधों को समाप्त तो नहीं किया लेकिन इन्हें हासिल कर सकने वाले देशों की संख्या जरूर कम की। (iv) विश्वास की बहाली सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्वित वाले देश सूचनाओं तथा विचारों के नियमित आदान प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही। देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है। Q.25. भारतीय किसान यूनियन, किसानों की दुर्घटना की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली ? Ans. भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दे (Issued raised by Bhartiya Kisan Union) - (i) बिजली के दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया। (ii) 1980 के दशक के उत्तरार्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकण के प्रयास हुए और इस क्रम में नगदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा। भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोतरी करने, (iii) कृषि उत्पादों के अंतर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियाँ हटाने, (iv) समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करना । (v) किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की माँग की। सफलताएँ (Success) (i) जिला समाहर्त्ता के दफ्तर के बाहर तीन हफ्तों तक डेरा डाले रहे। इसके बाद इनकी माँग मान ली गई। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धारणा था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस-पास के गाँवों से उन्हें निरंतर राशन पानी मिलता रहा। मेरठ के इस धरने को ग्रामीण शक्ति को या कहें कि काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रदर्शन माना गया। (ii) बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठाई। महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आंदोलन को 'इंडिया' की ताकतों (यानी शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ 'भारत' (यानी ग्रामीण कृषि क्षेत्र ) का संग्राम करार दिया। (iii) 1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। इस अर्थ में किसान आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था। (iv) इस आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीतिक मोल-भाव की क्षमता का हाथ था। यह आंदोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार लिए नगदी फसल उपजाते थे। बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य उन समुदायों के बीच से बनाए जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति में पहुँच था। महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन और कर्नाटक को रैयत संघ ऐसे किसान संगठनों के जीवंत उदाहरण हैं।


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पुनरावृति नोटस भाग-2 पाठ-5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना स्मरणीय बिंदु • पण्डित नेहरू की मृत्यु (मई 1964) से लेकर 11 जनवरी 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री रहे। शास्त्री जी के बाद कांग्रेस सिंडीकेट के मोरारजी के बजाय इन्दिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया कि वे अनुभवहीन है और दिशा निर्देश हेतु सिंडिकेट पर निर्भर रहेगी। • चौथा आम चुनाव (1967):- दो प्रधानमंत्री की मृत्यु नये प्रधानमंत्री का कम अनुभवी होना, मानसून की असफलता, खाद्य संकट, विदेशी मुद्रा कमी, सैन्य खर्चे में वृद्धि से आर्थिक स्थिति विकट होने पर विपक्षी दलों ने लामबन्द होकर जन आन्दोलन किए। • कांग्रेस पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास व केरल (9 राज्यों) में सरकार न बना सकी। इन राज्यों में कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों की दलबदल तथा गठबंधन से सरकार बनी। • द्रविड़ मुनेत्र कषगम् - इस दल को मद्रास प्रांत (तमिलनाडु) में द्रविड़ संस्कृति का समर्थन तथा हिंदी विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करके सत्ता प्राप्त की। • सिंडिकेट : 'सिंडिकेट' कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का समूह था। इसमें निम्न लोग शामिल थे। 1. मद्रास के पूर्व मुख्यमंत्री के कामराज ii. बम्बई से एस के पाटिल iii. मैसूर (कर्नाटक) के एस निजलिंगप्पा iv. आंध्र प्रदेश नीलम संजीव रेड्डी V. पश्चिम बंगाल अतुल्य घोष • कांग्रेस विभाजन (1969) इंदिरागांधी ने सिंडिकेट से अलग उपराष्ट्रपति वी. वी. गिरि को प्रत्याशी बनाया । इन्दिरा गाँधी ने निर्वाचको से अंर्तआत्मा की आवाजे सुनने को कहां और चुनाव में वी. वी गिरि विजयी हुए। • कांग्रेस विभाजन (1969) राष्ट्रपति चुनाव में हार से खिन्न होकर सिंडिकटे ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निष्कासित किया था इस प्रकार कांग्रेस का दो भागों में विभाजन 1. कांग्रेस आर्गेनाइजेशन (O पुरानी कांग्रेस) 12. कांग्रेस रिक्विजिनिस्ट (R नई कांग्रेस) • ग्रैंड अलांयस 1971 के चुनाव से पूर्व सभी बड़े और कांग्रेसी गैर साम्यवादी दलो का गठबंधन - • कांग्रेस पुनस्थापना के प्रयास:- इंदिरा गांधी के द्वारा निम्न प्रयास किये गयें। 1. गरीबी हटाओं का नारा 2. प्रिवीपर्स की समाप्ति 3. बैंको का राष्ट्रीयकरण 4. भूमि सुधार और हदबंदी विधेयक 5. वंचितो, दलितो, अल्पसंख्यको, महिला व बेराजगारों की सहायता 1. प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू मई 1964 में गुजर गए थे। 1960 के दशक को 'खतरनाक दशक' कहा जाता है, क्योंकि गरीबी, गैर-बराबरी, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी अनसुलझे थे। संभव था कि इन सारी कठिनाइयों के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना असफल हो जाती अथवा खुद देश ही बिखर जाता। 2. भारत ने 1964 से 1966 तक लालबहादुर शास्त्री (प्रधानमंत्री रहे) के समय में दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया, जैसे-भारत चीन युद्ध 1962 के कारण पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयाँ, भारत-पाक युद्ध 1965, मानसून की असफलता, सूखा, खाद्यान्न संकट, जो कि प्रसिद्ध नारे 'जय जवान, जय किसान' के साथ इन चुनौतियों से निपटने के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। 3. शास्त्री जी की मृत्यु से कांग्रेस पार्टी के सामने राजनीतिक उत्तराधिकारी का सवाल उठ खड़ा हुआ। इस बार मोरार जी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच कड़ा मुकाबला था और कांग्रेस के सांसदों ने फैसले के लिए गुप्त मतदान किया। इंदिरा गांधी ने मोराजी देसाई को हरा दिया और पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया। इसे भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता के रूप में देखा गया। 4. इंदिरा गांधी की सरकार ने 1967 के आर्थिक संकट को रोकने के लिए रुपये का अवमूल्यन करने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, पहले के वक्त में 1 अमरीकी डॉलर जिसकी कीमत 5 रुपये थी, अब बढ़कर 7 रुपये हो गई। लोग आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, बढ़ती हुई बेरोज़गारी और देश की दयनीय आर्थिक स्थिति को लेकर विरोध पर उतर आए। साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया। 5. कांग्रेस पार्टी के अवमूल्यन के निर्णय ने गैर-कांग्रेसवाद को जन्म दिया, जिसमें अलग-अलग नीतियाँ व आदर्श शामिल थे। इसे लोकतांत्रित कारणों के लिए जरूरी बताया गया | 6. चौथा आम चुनाव 1967 में हुआ, जो कि कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहा। राजनीतिक नेता तमिलनाडु से कामराज, महाराष्ट्र से एस०के० पाटिल, पश्चिमी बंगाल से अतुल्य घोष और बिहार से के०बी० सहाय को हारना पड़ा और दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस बहुमत खो दिया। चुनावी इतिहास में यह पहली घटना थी, जब किसी गैर-कांग्रेसी दल को किसी राज्य में पूर्ण बहुमत मिला और उनको मिलाकर एक गठबंधन बनाया गया, जिसे राजनीतिक भूकम्प' की संज्ञा दी गई। 7. 1967 के चुनाव ने गठबंधन की परिघटना को जन्म दिया और अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया। बिहार में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार में दो समाजवादी पार्टियाँ- एस०एस०पी० व पी०एस०पी० शामिल थीं। जिसमें सी०पी०आई० (वामपंथी) और जनसंघ (दक्षिणपंथी) थे। पंजाब में संयुक्त विधायक दल पापुलर युनाइटेड फ्रेंट कहा गया, इसमें उस वक्त के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल-संत ग्रुप व भास्कर ग्रुप शामिल थे। 8. 1967 के तुरन्त बाद, इंदिरा गांधी को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें सिंडिकेट के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम बनाने की जरूरत थी और कांग्रेस ने 1967 के चुनाव में जो जमीन खोई थी, उसे भी उन्हें हासिल करना था। इंदिरा गांधी ने बड़ी साहसिक रणनीति अपनाई। उन्होंने एक साधारण से सत्ता- -संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया तथा सरकार की नीतियों को वामपंथी रंग देने के लिए कई कदम उठाए। मई 1967 में दस सूत्रीय कार्यक्रम अपनाया गया, जिसमें बैंको पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, खाद्यन्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे। 9. कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर 'सिंडिकेट' के नाम से इंगित किया जाता था। इसमें के० कामराज, एस०के० पाटिल, एन० संजीव रेड़ी, अतुल्य घोष जैसे नेता शामिल थे, जिनका पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। इंदिरा गांधी के पहले मंत्रीपरिषद् में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही और इसने नीतियों के निर्माण व क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभाई। कांग्रेस के विभाजित होने के बाद सिंडिकेट के नेता और उनके प्रति निष्ठावान कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे, बल्कि इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ही 1971 के बाद भी लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रहीं। 10. सिंडिकेट और इंदिरा गांधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई। कूटनीतिक तरीके से इंदिरा गांधी के सांसद ने सिंडिकेट के सांसद को हरा दिया (वी०वी० गिरि ने नीलम संजीव रेड्डी को), जिसने कांग्रेस को दो पार्टियों में बाँट दिया, जैसे कांग्रेस (ओ) अर्थात् ऑर्गनाइजेशन या 'पुरानी कांग्रेस', जिसका नेतृत्व सिंडिकेट ने किया और कांग्रेस (आर) अर्थात् रिक्विजिनिस्ट या 'नई कांग्रेस', जिसका नेतृत्व इंदिरा गांधी ने किया। 11. हर किसी को संगठन की वास्तविक शक्ति कांग्रेस (ओ) के हाथ में मालूम पड़ती थी दूसरी ओर, एस० एस०पी०, पी०एस०पी०, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय क्रांति दल ने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन बनाया, जिसकी नीति व कार्यक्रम था 'इंदिरा हटाओ" । 12. इसके विपरीत इंदिरा गांधी ने लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे 'गरीबी हटाओ' के जरिये एक शक्ल प्रदान किया। गरीबी हटाओ के नारे से इंदिरा गांधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोज़गार नौवजानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। इसके सहारे वे अपने लिए 1971 के चुनावों के लिए एक देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की बुनियाद तैयार करना चाहती थीं। 13. इंदिरा गांधी ने पुरानी कांग्रेस को पुर्नजीवित करने का काम नहीं किया, बल्कि इसे नई तर्ज पर बनाया, जिसमें कुछ सामाजिक वर्गों, जैसे- गरीब, महिला, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक को स्थान मिला। इस प्रकार इंदिरा गांधी ने कांग्रेस-प्रणाली को पुनस्थापित जरूर किया, लेकिन कांग्रेस-प्रणाली की प्रकृति को बदलकर । 14. 1965 के युद्ध की समाप्ति के सिलसिले में 1966 में सोवियत संघ के ताशकंद (वर्तमान में उज्बेकिस्तान की राजधानी) में भारत व पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौता हुआ ताशकंद समझौते पर भारत की तरफ से लाल बहादुर शास्त्री व पाकिस्तान की तरफ से मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किये। 15. जो दल अपने कार्यक्रम व विचारधाराओं के धरातल पर एक दूसरे से अलग थे, एकजुट हुये तथा उन्होंने सीटों के मामले में चुनावी तालमेल करते हुये एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इस रणनीति को गैर कांग्रेसवाद का नाम दिया। 16. चुनावों के जनादेश को 'राजनैतिक भूकम्प' की संज्ञा दी गयी क्योंकि कांग्रेस पहली बार चुनाव हारी थी। उसे प्राप्त वोटों के प्रतिशत व सीटी की संख्या में कमी आयी थी। 17. 1967 के चुनावों से राज्यों में गठबंधन की परिघटना सामने आयी गैर कांग्रेसी पार्टियों ने एक जुट होकर SVD (संयुक्त | विधायक दल बनाया। पंजाब में बनी SVD की सरकार को "Popular United Front कहा गया। 18. दल बदल जब कोई जन प्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव जीत जाये व चुनाव जीतने के बाद उस दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाये तो इसे दल-बदल कहते हैं। 19. 1967 के चुनावों के बाद कांग्रेस के एक विधायक (हरियाणा) गयालाल ने एक पखवाड़े में तीन बार पार्टी बदली, उनके ही नाम पर 'आयाराम-गयाराम' का जुमला बना। यह जुमला दल बदल की अवधारणा से संबंधित हैं। 20. कांग्रेस के भीतर प्रभावशाली व ताकतवर नेताओं के समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट कहा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था । 21. देसी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार की निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार दिया तथा सरकार की तरफ से कुछ विशेष भत्ते देने का भी आवश्वासन दिया। यह दोनों (निजी संपदा व भत्ते) इस बात को आधार मान कर तय की जायेगी कि उस रियासत का विस्तार, राजस्व व क्षमता कितनी है। इस व्यवस्था को प्रिवी पर्स कहा गया) 22. इंदिरा गांधी ने 1967 के चुनावों की खोई जमीन प्राप्त करने के लिये दस वितरण, भूमि सुधार आदि शामिल थे। 23. 1971 के चुनावों में गैर-साम्यवादी तथा गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने चुनावी गठबंधन 'अँड अलायंस' बनाया। 24. चुनाव परिणाम 1. कांग्रेस 'आर' व सी. पी. आई- 375 सीट 2. गठबंधन 352 कांग्रेस R+23 कप्युनिस्ट पार्टी 3. कांग्रेस 'O' 16 सीट . 4. ग्रैंड अलायंस 40 से भी कम सीट 1. राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती: 1964 के मई में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। शास्त्री जी का 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया। शास्त्री जी की मृत्यु के बाद मोरारजी देसाई व इंदिरा गांधी के मध्य राजनैतिक उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ व इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। सिंडिकेट ने इंदिरा गाँधी को अनुभवहीन होने के बावजूद प्रधानमंत्री बनाने में समर्थन दिया, यह मान कर वे दिशा निर्देशन के लिये सिंडीकेट पर निर्भर रहेंगी। नेतृत्व के लिये प्रतिस्पर्धा के बावजूद पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया। 2. चौथा आम चुनाव 1967: मानसून की असफलता, व्यापक सूखा, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, नियति में गिरावट तथा सैन्य खर्चे में बढ़ोतरी से देश में आर्थिक संकट की स्थिति । विपक्षी दलों ने जनता को लामबंद करना शुरू कर दिया ऐसी स्थिति में अनुभवहीन प्रधानमंत्री का चुनावों का सामना करना भी एक बड़ी चुनौती थी। चुनावों के नतीजों को राजनैतिक भूकम्प का संज्ञा दी गयी। कांग्रेस 9 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, पं. बंगाल, उड़ीसा, मद्रास व केरल) में सरकार नहीं बना सकी। ये राज्य भारत के किसी एक भाग में स्थित नहीं थे। 3. कांग्रेस का विभाजनः सिंडीकेट व इंदिरा गांधी के मध्य बढ़ते मतभेद व राष्ट्रपति चुनाव (1969) में इंदिरा गांधी समर्थित उम्मीदवार वी.वी. गिरी की जीत व कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार एन. सजीव रेड्डी की हार से कांग्रेस को 1969 में कांग्रेस को विभाजन की चुनौती झेलनी पड़ी। कांग्रेस (आर्गनाइजेशन) व कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) में विभाजित हो गयी। 4. 1971 के चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने जनाधार की खोयी हुयी जमीन को पुनः प्राप्त करते हुये, गरीबी हटाओ के नारे से कांग्रेस को एक बार पुनः स्थापित कर दिया।


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प्रश्न 21. रंग-भेद क्या है? उत्तर- रंग भेद नस्ल पर आधारित भेद-भाव का ही छोटा रूप है। इस भेद-भाव के प्रभाव में एक मानव दूसरे मानव के साथ रंग के आधार पर घृणा करता है। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी को इसी प्रकार के भेद-भाव का शिकार होना पड़ा और उनको ट्रेन के बोगी से नीचे फेंक दिया गया। प्रश्न 23.शीत युद्ध क्या है? उत्तर- शीत युद्ध से हामरा अभिप्राय ऐसी अवस्था है, जब दो या दो से अधिक देशों के बीच वातावरण उत्तेजित व तनावपूर्ण हो, किन्तु वास्तविक रूप में कोई युद्ध न हो रहा हो । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ, अमेरिका के बाद दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरा। हालांकि युद्ध के दौरान ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर फासीवादी ताकतों को हराया था, लेकिन युद्ध के बाद उनमें टकराव और तनाव उभरने लगे और उनके संबंध बिगड़ने लगे। इसी टकराव व तनावपूर्ण स्थिति को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है। प्रश्न 20 दक्षेस से क्या अभिप्राय हैं? उत्तर - सार्क अथवा दक्षेस एक दक्षिण एशिया का क्षेत्रीय सहयोग संगठन अथवा संघ है जिनका गठन दिसंबर 1985 में ढाका में हुआ था। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव सात देश सम्मिलित हैं। अब तक इसके ग्यारह सम्मेलन हो चुके हैं। प्रथम सम्मेलन 8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में हुआ था। प्रश्न 25. विश्व व्यापार संगठन का क्या उद्देश्य है? उत्तर- विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य- इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं (i) सदस्य देशों के जीवन स्तर में वृद्धि (ii) रोजगार के अवसर की वृद्धि (iii) व्यापार का विकास (iv) पर्यावरण की सुरक्षा (v) विश्व के संसाधनों का समुचित उपयोग एवं विकास (vi) संरक्षणवाद की समाप्ति आदि । प्रश्न 22. राष्ट्रपति के आपातकालीन शक्तियों का वर्णन करें। [2018] उत्तर- राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ- विश्व के प्रायः सभी लोकतांत्रिक देशों के संविधानों में आपातकालीन व्यवस्थाएँ रहती है। संकटकाल में शीघ्र, प्रभावशाली तथा नवीन कार्यों को करने की आवश्यकता होती है। इसीलिए भारतीय संविधान में भी जर्मनी के वाइमर संविधान की तरह राष्ट्रपति को विविध आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं (i) युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति या उनकी आशंका से उत्पन्न संकट अनुच्छेद 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति के कारण भारत या भारत के किसी भाग की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है तो वह आपात की उद्घोषणा कर सकता है। (ii) संविधान के अनुच्छेद 355 के अनुसार, संघ का यह कर्त्तव्य है कि वह देखे कि प्रत्येक राज्य की रक्षा बाह्य आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह से हो रही है। संघ सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाई जा रही है। अनुच्छेद 356 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन द्वारा या अन्य किसी प्रकार से यह विश्वास हो जाए कि किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि संविधान उपबंधों के अनुसार वहाँ का शासन नहीं चलाया जा सकता तो वह आपात की उद्घोषणा कर सकता है। (iii) वित्तीय संकट की उद्घोषणा- संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि भारत में या भारत के किसी भाग में आर्थिक दृढ़ता तथा साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की उद्घोषणा कर सकता है और अपनी दूसरी उद्घोषणा द्वारा वह इस उद्घोषणा को समाप्त कर सकता है । 4.उत्तर—भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं— (i) समानता का अधिकार (ii) स्वतंत्रता का अधिकार (iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार (iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (v) सांस्कृतिक एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रश्न 24. वीटो शक्ति क्या है और वह किसे प्राप्त है? उत्तर- सुरक्षा परिषद् में 15 सदस्य होते हैं। इन 15 सदस्यों में 5 स्थायी और 10 अस्थायी होते हैं। हर सदस्य को मतदान का अधिकार है। इनमें 5 स्थायी सदस्यों- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन को निषेधाधिकार ( वीटो पावर) प्रदान किया गया है। महत्त्वपूर्ण विषयों के निर्णयों के लिए यह आवश्यक है कि सभी स्थायी सदस्य पक्ष में हो यदि एक भी स्थायी सदस्य अपनी वीटो पावर को प्रयोग करता है तो कोई भी निर्णय स्वीकृत नहीं माना जाता। Q.12. विविधता में एकता से आप क्या समझते हैं ? Ans. विविधता में एकता लोकतंत्र का एक स्वाभाविक गुण है। 'विविधता में एकता' भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक खास विशेषता है। जब भी भारत की अखंडता खतरे में पड़ी अथवा प्राकृतिक आपदा आयी तो सभी जाति एवं धर्मावलंबियों ने आपसी वैर भाव को भुलाकर एक साथ मिलकर संकट की स्थिति का हिम्मत के साथ मिलकर सामना किया। यह विविधता में एकता का एक आदर्श उदाहरण है। Q. 20. दक्षेस क्या है ? Ans. दक्षेस (South Asian Association of Regional Co-operation) आठ दक्षिण एशियाई देशों का समूह है। इसका 16वाँ शिखर सम्मेलन भूटान की राजधानी थिम्पू में 28-29 अप्रैल, 2010 को संपन्न हुआ। इस संगठन में भारत, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं बांग्लादेश सदस्य हैं। इसकी स्थापना 8 दिसंबर, 1985 में हुई थी। 28.उत्तर—राष्ट्रीय दल जिसमें देश के सभी धर्म, जाति, समुदाय, हित तथा आदर्शों से संबंधित लोगों की सदस्यता है। राष्ट्रीय दल पूरे देश स्तर पर कार्य करती है। पूरे राष्ट्र का विकास चाहती है। कई राज्यों में राष्ट्रीय दल की सरकार बनकर कार्य करती है। राष्ट्रीय दल का अस्तित्व गैर कानूनी होता है। भारत में अनेक राष्ट्रीय पार्टियाँ कायम है। दूसरी ओर क्षेत्रीय दल भारत की राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया है और यह भारत के लिए एक जटिल समस्या बनी रही है और आज भी विद्यमान है। क्षेत्रीय दल किसी खास क्षेत्र को ज्यादा महत्त्व देती है। इसके सिद्धांत एवं नीतियाँ किसी विशेष क्षेत्र एवं वर्ग तक सीमित रहती है। 14.उत्तर - भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1967-68 में प्रारंभ किया गया। भारत में एम० एस० स्वामीनाथन को इसका जनक माना जाता है। हरित क्रांति का अभिप्राय देश में सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीजों के उपयोग से फसल के उत्पादन में वृद्धि करना है। हरित क्रांति के फलस्वरूप गेहूँ, गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फसलों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई। 25.उत्तर - यह विश्व के देशों के बीच एक व्यापार के संदर्भ में एक वैश्वीक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 1995 में हुई। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। यह विश्व की प्रमुख मौद्रिक संस्था हैं जो व्यापार के लिए दिशा-निर्देश जारी करती है इसके 164 सदस्य राष्ट्र हैं जिसमें भारत भी एक है। यह समझौते के माध्यम से अपनी व्यापारिक गतिविधियों को सम्पादित करता है जो कि इन्हीं देशों के सामूहिक हस्ताक्षर के द्वारा प्रकाश में आये हुए रहते हैं। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक गतिविधियों का अंजाम, माल और सेवाओं के आयात करने, आयातकों और निर्यातकों को अनेक सुविधाएँ देना आदि के संदर्भ में व्यापारिक सुविधाओं को उपलब्ध करता है। 19. उत्तर- पंचशील का अर्थ है 'पाँच सिद्धान्त'। ये सिद्धान्त हमारी विदेश नीति का मूल आधार है। इन पाँच सिद्धान्तों के लिए 'पंचशील' शब्द का प्रयोग सबसे पहले 29 अप्रैल 1954 को किया गया था। पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं 1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता तथा सर्वोच्च सता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना । 2. एक-दूसरे के प्रदेश पर आक्रमण का परित्याग। 3. एक-दूसरे के आंतरिक माले में हस्तक्षेप न करने का संकल्प। 4. समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धान्त के आधार पर मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना। 5. शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सिद्धान्त । 14 दिसम्बर, 1959 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में उपस्थित 82 देशों ने पंचशील के सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया। प्रश्न 27 ताशकन्द समझौता क्या है? उत्तर- 10 जनवरी, 1966 के सोवियत प्रधानमंत्री कोसीजिन के प्रयास से भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री एवं पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खाँ के बीच हुआ, जिसके अन्तर्गत यह घोषणा किया गया कि भारत और पाकिस्तान आपस में सद्भाव एवं शांतिपूर्ण संबंध बहाल करेंगे और अपने लोगों के बीच दोस्ताना संबंध बढ़ाने का भी संकल्प लिया गया। समझौता की शर्तों के अनुसार दोनों देश युद्ध पूर्व की सीमा रेखा पर लौटने और भविष्य में अपने संबंध को मित्रता और सहयोग के आधार पर विकसित करने पर भी बल दिया गया।


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LONG Answers 5.भारतीय संविधान के स्रोत sources of Indian Constitution in hindi -: 1. भारतीय शासन अधिनियम, 1935 :- संघात्मक तंत्रीय व्यवस्था, न्यायपालिका की शक्ति, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान, राज्यपाल का कार्यालय, राजनीति का आधारभूत ढांचा, प्रशासनिक विवरण। 2. संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान:- मौलिक अधिकार, संविधान की सर्वोच्चता, सर्वोच्च न्यायालय, न्यायिक पुनरावलोकन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया, उपराष्ट्रपति का पद एवं राज्यसभा में पदेन सभापति, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से हटाने की विधि, वित्तीय आपात, राष्ट्रपति का सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होना, राष्ट्रपति में संघ की कार्यपालिका शक्ति। 3. ब्रिटेन का संविधान :- संसदीय शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता, विधि निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडल प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनीय प्रणाली व्यवस्था, चुनाव में सर्वाधिक मत के आधार पर जीत की प्रक्रिया। 4. पूर्व सोवियत संघ का संविधान :- मूल कर्तव्यों का प्रावधान, प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का आदर्श। 5. ऑस्ट्रेलिया का संविधान :- सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची का प्रावधान, प्रस्तावना की भाषा, केंद्र एवं राज्यों के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन, व्यापार-वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक। 6. आयरलैंड का संविधान :- नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था एवं निर्वाचन की पद्धति, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन, राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन। 7. कनाडा का संविधान :- सरकार की संघीय व्यवस्था, केंद्र के पास अवशिष्‍ट शक्तियां, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति, संघ और राज्य के बीच शक्तियों का वितरण, उच्चतम न्यायालय का परामर्श न्याय निर्णयन। 8. फ्रांस का संविधान :- गणतंत्रात्मक व्यवस्था, प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुता के आदर्श। 9. जापान का संविधान :- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का सिद्धांत। 10. जर्मनी का संविधान :- आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां अर्थात् आपातकाल के समय मूल अधिकारों का स्थगन। 11. दक्षिण अफ्रीका का संविधान :- संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन। 32.मुख्यमंत्री की शक्तियां :- मुख्यमंत्री विधानसभा का नेता होता है और विधानमंडल तथा राज्यपाल, मंत्रीपरिषद तथा राज्यपाल के मध्य संपर्क सूत्र का कार्य करता है। राज्यपाल द्वारा किए जाने वाले सभी नियुक्ति संबंधित कार्य मुख्यमंत्री की सलाह पर संचालित होता है। मुख्यमंत्री राज्य का नेता होता है। राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की जनता की ओर से प्रतिनिधित्व का कार्य करता है। मुख्यमंत्री राज्य के लिए नीति निर्माण के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्य का समस्त दायित्व उसी के कंधों पर होता है। मुख्यमंत्री राज्य मंत्रीपरिषद का अध्यक्ष होता है तथा मंत्रीपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता वही करता है लेकिन मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में राज्य मंत्री परिषद की बैठकों की अध्यक्षता कार्य मंत्रीपरिषद के किसी वरिष्ठ सदस्य द्वारा की जाती है। मुख्यमंत्री राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, सदस्य एवं राज्य महाधिवक्ता आदि का चयन में राज्यपाल को अपना परामर्श देता है। मुख्यमंत्री के परामर्श के बिना राज्यपाल राज्य विधानसभा को भंग तथा किसी मंत्री को अपदस्थ नहीं कर सकता है। 33.वैश्वीकरण के परिणाम: रोजगार के बेहतर अवसर: वैश्वीकरण से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है। नई नई कम्पनियों के आने से रोजगार के नये नये अवसर उत्पन्न हुए हैं। इसके कारण कई नये आर्थिक केंद्रों का विकास हुआ है, जैसे; गुड़गाँव, चंडीगढ़, पुणे, हैदराबाद, आदि। जीवनशैली में बदलाव: वैश्वीकरण का प्रभाव लोगों की जीवनशैली पर भी पड़ा है। 1990 के पहले तक लोग दो जोड़ी पैंट शर्ट में गुजारा कर लेते थे। अब तो लोगों के पास हर मौके के लिये अलग अलग ड्रेस होते हैं। पहले जींस की पैंट बहुत कम लोगों के पास हुआ करती थी। अब अधिकांश लोग जींस की पैंट का इस्तेमाल करने लगे हैं। लोगों का खान पान भी बदल गया है। अब मैगी के नूडल्स इस तरह से खरीदे जाते हैं जैसे महीने का राशन खरीदा जाता हो। विकास के असमान लाभ: वैश्वीकरण से आर्थिक असमानता भी तेजी से बढ़ी है। किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में उँचे पद पर काम करने वाला व्यक्ति लाखों रुपये का वेतन लेता है। वहीं दूसरी ओर दिहाड़ी मजदूर को सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। आज भी हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है। विकसित देशों द्वारा गलत तरीकों का इस्तेमाल: विकसित देश आज भी ट्रेड बैरियर का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपने किसानों को भारी अनुदान देते हैं। विकासशील देशों को इसके बदले कुछ भी नहीं हासिल होता है। 35.नियोजन का अर्थ :- नियोजन वांछित परिवर्तन लाने का एक तरीका हैं। नियोजन भविष्य मे देखने की विधि अथवा कला है। इसमे भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों को उनके अनुरूप ढाला जा सके। नियोजन परिवर्तन का एक ऐसा स्वरूप है जिसमे तार्किक ढंग से लक्ष्य और साधनों के संयोजन से वांछित परिवर्तन लाया जाता हैं। यह एक चेतन प्रयास है, जो समाज की समस्याओं को पहचानकर प्राथमिकता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाता हैं। इस प्रक्रिया से समस्याओं का हल खोजने के लिए लक्ष्य निर्धारण सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप किया जाता हैं। नियोजन की परिभाषा:- जाॅन ई इलियट के शब्दों में, " नियोजन क्रिया स्तयं मे एक सोद्देश्य क्रिया है। किन्ही पूर्व निश्चित उद्देश्यों के अभाव मे नियोजन की कल्पना करना कठिन है। नियोजन वह साधन है जिसे किसी निश्चित लक्ष्य के संदर्भ मे प्रयोग किया जाता है। हार्ट के अनुसार, " नियोजन कार्यों की श्रृंखला का अग्रिम निर्धारण है जिसके द्वारा निश्चित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।" गुन्नार मिर्डल के अनुसार, " नियोजन किसी देश की सरकार द्वारा किए गए वे जागरूक प्रयास है जिनके द्वारा लोक नीतियों की अधिक तार्किक ढंग से समन्वित किया जाता है ताकि अधिक से अधिक तेजी से विकास के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके। नियोजन का महत्व :- 1. आर्थिक पुनर्निर्माण भारत जैसे पिछड़े एवं कृषि प्रधान देश मे आर्थिक क्षेत्र में नियोजित परिवर्तन का काफी महत्व है। औद्योगिकरण ने अलग किस्म की समस्याएं उत्पन्न की है। आर्थिक विषमता, गंदी बस्तियां, बेरोजगारी, श्रमिकों का शोषण, गरीबी आदि महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण नियोजित परिवर्तन से ही संभव है। 2. ग्रामीण पुनर्निर्माण भारत की 74. 3 प्रतिशत जनसंख्या 6 लाख से भी अधिक गाँवों मे निवास करती है। एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते हम गाँवों की उपेक्षा कर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य प्राप्त नही कर सकते। नियोजन के द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण की योजनायें लागू करके हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। 3. समाज-कल्याण अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछ़ड़े वर्गों की संख्या यहां अत्यधिक है। इस वर्ग को सदियों तक शोषण का सामाना करना पड़ा है। इन वर्गों के उत्थान के बिना समाज की प्रगति संभव नही है। अतः इसके लिये नियोजित कार्यक्रम की आवश्यकता से इंकार नही किया जा सकता। 4. सामाजिक परिवर्तन भारतीय समाज में जातिवाद, अस्पृश्यता, अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भाषावाद, क्षेत्रवाद इत्यादि अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण कर चुकी है। इन समस्याओं को सुलझाने एवं समाज को पुनर्गठित करने के लिए नियोजन की आवश्यकता है। 5. जनसंख्या नियंत्रण भारत में जनसंख्या की वृद्धि तेज गति से हो रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश को पीछे ढकेलती है। अतः जनसंख्या को नियोजित किए बिना देश को समृद्ध नहीं किया जा सकता। 6. धार्मिक क्षेत्र मे नियोजन भारतीय समाज में बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा, पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि को धर्म के साथ जोड़ा गया साथ ही विभिन्न प्रकार के कर्मकांड एवं आडंबर प्रचलन में है। इनसे धर्म को मुक्त कर समाज में सुव्यवस्था स्थापित करने में नियोजन का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। 37.पर्यावरण संरक्षण के सरल उपाय :- 1) कार्बन डाई-ऑक्साइड कम करना | Reduce Carbon Dioxide emissions हमारे पर्यावरण को बिगाड़ने में कार्बन डाई-ऑक्साइड के बढ़ते स्तर का सर्वाधिक योगदान है। कुछ इंजीनियर्स यह मानते हैं कि हम वातावरण में मौजूद Carbon Dioxide को कुछ विधियों से खींचकर या सोखकर उसे द्रव अवस्था में पृथ्वी की सतह के भीतर स्टोर करके रख सकते हैं या आगे कभी उपयोग में ले सकते हैं। इस दिशा में अनेक लोग प्रयास कर रहे हैं तथा तकनीकों को विकसित कर रहे हैं। 2) व्यर्थ हो जानेवाली ऊष्मा का उपयोग | Use of Wasted Heat हाल ही में एक नई टैक्नोलॉजी सामने आई है जिसका संबंध विद्युत (Electricity) से है। गाड़ियों के एग्ज़ॉस्ट पाइप या एयर-कंडिशनर से निकलनेवाली ऊष्मा को कैद करके बिजली बनाने में उपयोग में लिया जा सकता है। इस काम में किस प्रकार की मिश्रधातुओं व सामग्री (Alloy material) का उपयोग किया जाना चाहिए इसे लेकर अभी बहुत सी बातें स्पष्ट नहीं हैं लेकिन इसपर काम किया जा रहा है। 3) पानी को नमकरहित बनाना | Desalinization of Sea Water दुनिया में ऐसी बहुत सी जगह हैं जहां पानी बहुत मूल्यवान है। बहुत से क्षेत्र पानी की कमी का संकट झेल रहे हैं। कई जगहों में पानी का खारापन दूर करने के लिए प्लांट लगाए गए हैं लेकिन उनका उपयोग बहुत खर्चीला है और केवल संपन्न देश ही उन्हें लगा सकते हैं. इन प्लांट्स की तकनीक सक्षम और सस्ती नहीं है। इससे पहले कि धरती पर पानी को लेकर त्राहि-त्राहि होने लगे, हमें ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी कि धरती में पानी की प्राकृतिक आपूर्ति में कमी न आने पाए। पानी के खारेपन को दूर करनेवाली तकनीकों पर बहुत अधिक काम किया जा रहा है। आप किसी भी क्षेत्र से संबंधित हों लेकिन इस दिशा में काम कर रहे लोगों की सहायता करके आप प्रकृति संरक्षण में अपना मूल्यवान योगदान दे सकते हैं. 4) महासागरों और सौर ऊर्जा का उपयोग | Solar Power & Marine energy महासागरीय ताप ऊर्जा रूपांतरण (Ocean Thermal Energy Conversion) एक नई ऊर्जा तकनीक है जिसमें समुद्र के पानी में व्याप्त ऊष्मा को बिजली में बदलने की दिशा में काम किया जा रहा है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि समुद्र में अनेक स्थानों पर पानी के तापमान में अंतर होता है। समुद्र की ऊपरी सतह गर्म और भीतरी सतहें ठंडी होती हैं। तापमान के इस अंतर से टरबाइनें चलाई जा सकती हैं जो Generators की मदद से बिजली बनाती हैं। यह तकनीक अभी शैशवकाल में है और इसे अधिक सक्षम बनाने के प्रयास जारी हैं। से कम करने का प्रयत्न करेगा।’’ 2. सामाजिक हित सम्बन्धी निर्देशक तत्व:- इस सम्बन्ध में राज्य के अधोलिखित कर्तव्य निश्चित किये गये हैं: (1) राज्य लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने और स्वास्थ्य सुधारने के लिए प्रयत्न करेगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए औषधि में प्रयोग किये जाने के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक द्रव्यों तथा अन्य पदार्थों के सेवन पर प्रतिबनध लगायेगा। (2) राज्य जनता के दुर्बलतर अंगों के, विशेषतया अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के, शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से उन्नति करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोधण से उनकी रक्षा करेगा। 3. न्याय, शिक्षा और प्रजातन्त्र सम्बन्धी निर्देशक तत्व:- भारत में सुगम और सुलभ न्याय व्यवस्था, शिक्षा के प्रचार और प्रसार तथा प्रजातन्त्र की भावना के विकास के लिए भी कुछ निर्देशक तत्वों का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार हैं: (1) न्याय की प्राप्ति हेतु राज्य सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनायेगा और अपनी सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने का प्रयत्न करेगा। (2) शिक्षा के सम्बनध में यह प्रस्तावित किया गया है कि विधान के लागू होने के 10 वर्ष के समय में राज्य 14 वर्ष तक के बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा। (3) प्रजातन्त्र की भावना के विकास के लिए निर्देशक तत्वों में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों के संगठन की ओर कदम उठायेगा और इन्हें उतने अधिकार प्रदान किये जायेंगे कि वे स्वायत्ता शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें। (4) प्राचीन स्मारकों की रक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्व:- इन तत्वों द्वारा प्राचीन स्मारकों, कलात्मक महत्व के स्थानों और राष्ट्रीय महत्व के भवनों की रक्षा का कार्य भी राज्य को सौंपा गया है। राज्य का कर्तव्य निश्चित किया गया है कि वह प्रत्येक स्मारक, कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि के स्थानों को, जिसे संसद ने राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दिया हो, रक्षा करने का प्रयत्न करेगा। 42वें संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि राज्य ’देश के पर्यावरण (Environment) की रक्षा और उसमें सुधार का प्रयास करेगा। (अनुच्छेद 48’A’) 5. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा सम्बन्धी तत्व:- हमारे देश का आदर्श सदैव ही ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ का रहा है और हमने सदैव ही शान्ति तथा ’जीओ और जीने दो’ के सिद्धान्त क�


Physics

Q. वान-डी-ग्राफ जनित्र में बेल्ट (फीता) विद्युत रोषी पदार्थ का क्यों बना होता है ? उत्तर— वान-डी-ग्राफ जनित्र में चालक के नुकीले भाग से वायुकण अथवा धूलकण आवेश प्राप्त कर उनके द्वारा प्रतिकर्षित होकर एक बेल्ट से टकराते हैं। यह बेल्ट विद्युतरोधी पदार्थ का बना होता है। इसका काम है कि एक चालक से दूसरे चालक तक आवेश पहुँचाना । इसके लिए यह आवश्यक है कि बेल्ट द्वारा लिया गया आवेश उस पर फैले नहीं बल्कि स्थानीकृत हो। बेल्ट के साथ ये आवेश जब ग्राहक के नुकीले चालक के सिरों के निकट पहुँचते हैं तो नुकीले सिरों से हाकर विपरीत प्रकार के आवशे चालक से बाहर निकलकर बेल्ट पर के आवेश को उदासीन बना देते हैं। इसके लिए बेल्ट को विद्युतरोधी पदार्थ का बना होना आवश्यक है, नहीं तो यह क्रिया संभव नहीं होगा। Q.विद्युत मशीनों में कहीं तीखा कोर या नोक नहीं छोड़ा जाता है, क्यों ? उत्तर- किसी चालक के नुकीले भाग की वक्रता त्रिज्या काफी होती है। उस भाग के नजदीक विद्युत तीव्रता काफी अधिक हो जाती है । इस स्थिति में हवा का विद्युतरोध भंग हो जाएगा। चालक के नोक से आवेश निकलकर हवा में प्रवाहित होने लगते है और तब आवेशित हवा के कण हटते जाते हैं और आवेश लगातार बाहर निकलते जाते हैं। इससे चालक पर आवेश घटता है और चालक अनावेशित हो जाती है। Q. किसी चालक का तल समविभवी होता है, क्यों ? उत्तर- किसी चालक का तल सम विभवी होता है क्योंकि उसके किसी बिंदु पर यदि विभव अधिक होता तो आवेश कम विभव वाले बिंदु की ओर प्रवाहित होकर विभव को बराबर कर देता। किसी बंद खोखले आवेशित चालक के भीतर सभी स्थान पर विभव बराबर होता है और चालक के तल के विभव के बराबर होता है क्योंकि चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है। HAM MASTER Q. किसी संधारित्र में दूसरे चालक प्लेट की क्या भूमिका है ? उत्तर- जब दो आवेशित चालक प्लेटों को एक-दूसरे के नजदीक लाया जाता है तो इनके विभव में कमी आती है, जिसके कारण इनकी धारिता बढ़ जाती है। यही कारण है कि दूसरे प्लेट को पहले प्लेट के निकट लाने से धारिता बढ़ जाती है। Q. स्थिर वैद्युत परिरक्षण क्या है? इसके जीवनोपयोगी उपयोग लिखें । उत्तर-स्थिर वैद्युत परिरक्षण - आकाश के एक निश्चित क्षेत्र को बाह्य क्षेत्र से सुरक्षित रखने की घटना को ही स्थिर वैद्युत परिरक्षण कहा जाता है। उपयोग : बरसात में तूफान के समय जब आकाशीय बिजली का प्रकोप होता है तो उस समय खुले मैदान की अपेक्षा कार या बस के अंदर रहना अधिक सुरक्षित रहता है। कार या बस का आवरण वैद्युत परिरक्षण प्रदान करता है। Q.समानांतर प्लेट संधारित्र में दूसरे प्लेट का क्या कार्य है ? उत्तर—समानांतर प्लेट संधारित्र में दो धात्वीय प्लेटे होती है जिसमें एक को आवेश दिया जाता है और दूसरी को पृथ्वी से सम्बंधित कर दिया जाता है जिससे संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है l Q. किसी चालक की धारिता को प्रभावित करने वाले कौन-कौन कारक है ? उत्तर- किसी चालक की धारिता को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक है (1) चालक का पृष्ठीय क्षेत्रफल (2) चालक के निकट अन्य चालकों की उपस्थिति (3) चालक के चारों ओर के माध्यम की प्रकृति । Q.ध्रुवीय तथा अध्रुवीय परावैद्युत से क्या समझते है ? उत्तर- ध्रुवीय परावैद्युत-वैसे परावैद्युत जिसमें घन आवेश तथा ऋण आवेश का केन्द्र अलग-अलग होते हैं, ध्रुवीय परावैद्युत कहलाता है। ऐसे परावैद्युत का स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण होता है । उदाहरण : HCI, HO इत्यादि । अध्रुवीय परावैद्युत-वैसे परावैद्युत जिसमें धन आवेश तथा ऋण आवेश का केन्द्र एक ही बिंदु पर संपाती होते है, अध्रुवीय परावैद्युत कहा जाता है। ऐसे परावैद्युत का द्विध्रुव शून्य होता है । उदाहरण : H2, O2, CO, इत्यादि । Q. कूलम्ब के नियम का महत्व बताइए । उत्तर—कूलम्ब का नियम बहुत बड़ी दूरियों से लेकर बहुत छोटी दूरियों (नाभिकीय दूरी से ज्यादा) के लिए सत्य है। इस नियम से उन बलो की भी व्याख्या करने में सहायता मिलती है जिनके कारण : (i) किसी परमाणु के इलेक्ट्रॉन उसके नाभिक के साथ बाँधकर परमाणु की रचना करते हैं। (ii) दो या दो अधिक परमाणु परस्पर संयुक्त होरक एक अणु की रचना करते है । Q. जब किसी परावैद्युत प्लेट को बाहरी विद्युत क्षेत्र में रखते है तो परावैद्युत प्लेट के अंदर विद्युत क्षेत्र कम क्यों हो जाता है ? उत्तर—परावैद्युत गुटके को बाहरी विद्युत क्षेत्र में रखने पर इसके अणुओं का धूवण हो जाता है; फलस्वरुप इसके अंदर बाहरी क्षेत्र हो जाता है। इसलिए बाहरी क्षेत्र में रखने पर परावैद्युत प्लेट के अंदर विद्युत क्षेत्र घट जाता है। Q. एक आवेशित संधारित्र और सेल में क्या अंतर है ? उत्तर- आवेशित संधारित्र में संचित ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है जबकि विद्युत सेल नियत विभवांतर पर रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलती है। Q.आवेश के आयतन घनत्व की परिभाषा दे एवं इसका SI मात्रक लिखे । उत्तर—किसी चालक के प्रति एकांक आयतन में स्थित आवेश के परिमाण को आवेश का आयतन घनत्व कहा जाता है। इसे 'p' द्वारा सूचित किया जाता है। अतः आवेश का आयतन घनत्व p=Q/V आवेश के आयतन घनत्व का SI मात्रक c/m 3 होता है। Q. आवेश के पृष्ठीय घनत्व से क्या समझते हैं ? इसका S. I. मात्रक लिखें। उत्तर आवेश का पृष्ठीय घनत्व : किसी चालक के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर स्थित आवेश के परिमाण को आवेश का पृष्ठीय घनत्व कहा जाता है। इसे 'σ' द्वारा सूचित किया जाता है। आवेश का पृष्ठीय घनत्व σ =Q/A आवेश के पृष्ठीय घनत्व का SI मात्रक c/m2 होता है। Q.चालक की धारिता से आप क्या समझते है ? उत्तर—चालक की विद्युत-धारिता—किसी चालक की विद्युत धारिता या धारिता संख्यात्मक रूप से उस आवेश के बराबर होती है जो उसका विभव एकांक से बढ़ा दें । किसी चालक की विद्युत-धारिता से उस चालक द्वारा आवेश संचित करने की क्षमता व्यक्त होती है। विद्युत-धारिता का SI मात्रक फैराड (F) है। Q.विद्युत अनुनाद को समझाएँ । उत्तर- विद्युत अनुनाद (Electrical Resonance) किसी निश्चित आवृत्ति पर धारा- आयाम के महत्तम होने की घटना को अनुनाद कहा जाता है। अनुनाद की स्थिति में परिपथ की प्रतिबाधा मूलतः उसके प्रतिरोध के बराबर होती है l ELECTROSTATICS [20214] Q. किसी चालक की धारिता से क्या समझते है? (What do you mean by capacity of conductor? उत्तर- चालक की धारिता किसी चालक में इकाई विभवांतर बढ़ाने के लिए जितने आवेश की आवश्यकता होता है उसे चालक की धारिता कहते है । (i) इसका SI मात्रक फैराड (F) है। (ii) इसका परिमाण, C = q/V होता है। (iii) यह एक अदिश राशि है। Q. आवेश के आयतन घनत्व की परिभाषा दें। इसके SI मात्रक को लिखे। (Define volume density of charge write its SI unit) उत्तर- आवेश का आयतन घनत्व - प्रति इकाई आयतन आवेश को आवेश का आयतन घनत्व कहते हैं। इसका SI मात्रक कूलॉम/(मीटर)2 होता है इसे p द्वारा सूचित करते हैं। p=q/V Q . समविभव सतह से क्या समझते हैं? इसके दो गुणों को लिखें। (What do you mean by equipotential surface write two properties.) उत्तर- समविभव सतह, वह सतह है जिसके प्रत्येक बिंदु पर विभव का मान समान होता है। गुण - (i) समविभव सतह हमेशा विद्युत बल रेखाओं के लंबवत होता है। (ii) समविभव सतहें एक दूसरे को नहीं काटते हैं। Q. विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा दें तथा इसके S.I मात्रक लिखें। (Define electric dipole moment and write its S.I. unit.) उत्तर- विद्युत द्विध्रुव‌ आघूर्ण- द्विध्रुव के एक आवेश तथा द्विध्रुव की लंबाई गुणनफल को विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। इसे P द्वारा सूचित करते है। P = q(2l) यह एक सदिश राशि है इसकी दिशा -q से +q की ओर होती है। इसका S.1. कुलम-मीटर (C-m) होता है। Q. परातीत समकिपाकी परिभाषा दें। (Define delectric strength and relative permittivity.).. उत्तर-परावेत सामपरावेत सामर्थ्य, विद्युत क्षेत्र का वह महतम मान है जिसको परावैद्युत बिना परावैद्युत भंजन (break down potential ) को सहन कर सकता है। इसकी SI मात्रक वोल्ट / सीटर होता है। लेकिन ] प्रयोग में इसका मात्रक mv/mm है। सापेक्षिक परावैद्युतता किसी माध्यम की परावैद्युतता तथा हवा की परावैद्युतता के अनुपात को सापेक्षिक परावैद्युतता कहते हैं। इसे Er द्वारा सूचित किया जाता है। यह न तो मात्रक रखता है न तो विमा। Q. समानांतर प्लेट संधारित्र में दूसरे प्लेट का क्या कार्य है?[20154] (What is the function of second plate in a parallel plate capacitors ? ) उत्तर- द्वितीय प्लेट कंडेसिंग प्लेट है। यह भूधृत होता है। यह प्रथम प्लेट पर दिए गए आवेश के विपरीत आवेश प्रेरित करता है। Q. विद्युत क्षेत्र रेखाओं के दो गुण लिखें। (Write two properties of electric lines of force.) उत्तर- विद्युत क्षेत्र रेखाएँ के दो गुण इस प्रकार लिखे जा सकते हैं (i) दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को किसी बिंदु पर नहीं काटतीं - क्योंकि ऐसा करने पर एक ही बिंदु पर क्षेत्र की तीव्रता E की दो दिशाएँ हो जाएँगी जो संभव नहीं है। (ii) क्षेत्र रेखाओं के लम्बवत् तल के प्रति एकांक क्षेत्रफल से गुजरती रेखाओं की संख्या विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के परिमाण के समानुपाती होती है। Q. साधारण रबर विद्युत का कुचालक होता है लेकिन हवाई जहाज के टायर में लगे रबर विशेष हल्के विद्युत के सुचालक होते हैं। क्यों ? (General rubber is bad conductor of electricity. The rubber used in tyre of aeroplane are made of good conductor. Why ? ) उत्तर- जब हवाई जहाज उतरता है तो उसके टायर तथा जमीन के बीच घर्षण के कारण विद्युत आवेश पैदा होता है। रबर के सुचालक रहने से आवेश उस पर ठहरता नहीं है; इससे होकर पृथ्वी में चला जाता है। Q.वायुमंडल उदासीन नहीं रहता है। व्याख्या करें कि क्यों ? (Atmosphere is not electrically neutral. Explain why?) उत्तर - वायुमंडल से विद्युत का आदान प्रदान पृथ्वी एवं बाह्य आकाश के बीच होता रहता है। इसके आवेशन की दर एवं अनावेशन की दर हर क्षण समान होना आवश्यक नहीं है। इस कारण वायुमंडल उदासीन नहीं है l Q.दो आवेशित चालको को संपर्क किया जाता है तो ऊर्जा हास (loss) के स्रोतों को लिखें? (Write down the sources of energy loss due to sharing the charges between conductors.) उत्तर- ऊर्जा हास के निम्नलिखित स्रोत हैं (i) प्रकाश ऊर्जा के रूप में (ii) ध्वनि ऊर्जा के रूप में Q.अध्रुवित एवं ध्रुवित परावैद्युत क्या है? (What are non-polar and polar dielectrics ? ) उत्तर- यदि किसी परावैद्युत (dielectric) के परमाणु या अणु के सभी धन आवेशों का 'आवेश केंद्र' एवं ऋण आवेशों का आवेश केंद्र एक ही बिन्दु पर स्थित हों तो परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। इन्हें अध्रुवित (non polar) परावैद्युत कहा जाता है। उदाहरण - CH4, O2, N2 इत्यादि यदि ऐसा नहीं हो तो उन्हें ध्रुवित परावैद्युत (Polar dielectrics) कहा जाता है। उदाहरण - H2O, CO2, NH3 इत्यादि । Q. विद्युत मशीनों में कहीं तीखा कोर या नोक नहीं छोड़ा जाता है, क्यों ? (Why pointed portion is not left anywhere in an electrostatic machine ?) उत्तर- चालक के नुकीले भाग की वक्रता त्रिज्या काफी कम होती है। अतः जब चालक पर काफी आवेश दिया जाये तो उसके नुकीले भाग में आवेश का पृष्ठ-घनत्व बहुत ही अधिक हो जायेगा और उस भाग के नजदीक वैद्युत तीव्रता काफी अधिक हो जायेगी। इस स्थिति में हवा का विद्युतरोध भंग हो जाता है और आवेश नोक से निकलकर नजदीक में भंग आये हवा के कणों पर आने लगता है। नोक से आवेश लेकर जैसे-जैसे हवा के कण हटते जाते हैं वैसे-वैसे नोक पर आवेश घटता है और उसकी पूर्ति करने के लिए चालक के अन्य भागों से आवेश आता है। इस तरह चालक धीरे-धीरे अनावेशित हो जाता है। इस क्रिया को नोकों से विद्युत विसर्जन की क्रिया कहते हैं। इसीलिए मशीन बनाते समय नोक नहीं छोड़ा जाता है। Q. स्थिर वैद्युत परिरक्षण क्या है ? इसका एक उपयोग लिखें। (What is electrostatic shielding? Give one of its practical applications.) उत्तर- यदि एक चालक चादर द्वारा यंत्र को ढक लिया जाय तो बाहरी आवेश के क्षेत्र इस यंत्र पर वैद्युत क्षेत्र आरोपित नहीं कर पाते। यह इसलिए कि बाहरी आवेश चालक चादर पर आवेश प्रेरित करता है जिसका वैद्युत क्षेत्र बाहरी वैद्युत क्षेत्र को चालक के अंदर विनष्ट कर देता है। यही वैद्युत परिरक्षण कहलाता है। इसका उपयोग यंत्रों को बाहरी अवारा वैद्युत क्षेत्र से बचाव में किया जाता है। Q. किसी संधारित्र की धारिता किन-किन कारकों पर निर्भर करता है। (Give factors affect capacitance of the capacitor.) उत्तर- निम्न कारक संधारित्र की धारिता पर प्रभाव डालता है। (i) धारिता, चालक के क्षेत्रफल के समानुपाती होता है। (ii) धारिता परावैद्युत स्थिरांक के समानुपाती होता है। (iii) धारिता दोनों चालकों की दूरी के व्युतक्रमानुपाती होती है। Q. विद्युत द्विध्रुव-आघूर्ण को परिभाषित करें तथा इसका SI मात्रक लिखें।(Define electric dipole moment and write its SI unit.) उत्तर- वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण - किसी आवेश वितरण का मूल बिंदु के परितः वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण स्थिति सदिशों और आवेशों के गुणन का सदिश योग होता है। दो विपरीत आवेशों का द्विध्रुव आघूर्ण ऋण से धन की ओर दिष्ट होता है तथा आवेश एवं दूरी के गुणन के तुल्य होता है। Q. क्या क्या किसी वस्तु को आवेशित करने पर उसका द्रव्यमान बदल जाएगा ? (Is mass of body changed when it is charged ?) उत्तर - हाँ, किसी भी वस्तु पर आवेश यह सूचित करता है कि वस्तु ने इलेक्ट्रॉन खोया है या पाया है। चूँकि इलेक्ट्रॉन का एक निश्चित द्रव्यमान होता है अतः ऋणावेशित होने पर वस्तु का द्रव्यमान बढ़ जाएगा जबकि धनावेशित होने पर घट जाएगा। पर Class XII 2023 Q.वैद्युत बल रेखाओं का क्या महत्त्व है ? (What are significance of electric lines of force ?) उत्तर- बल रेखाओं का उपयोग किसी बिन्दु आवेश या बिन्दु आवेशों के निकाय के कारण विद्युत क्षेत्र को Represent करने में किया जाता है। वैद्युत बल रेखाएँ काल्पनिक होती हैं। अतः इनके द्वारा Represent किया गया Electric field वास्तविक होता है। ये धन ध्रुव से निकलती हैं तथा ॠण ध्रुव में प्रवेश करती हैं। इनकी सघनता strong field तथा विरलता weak field को सूचित करती है। Q. विद्युतीय क्षेत्र में किसी चालक को रखने पर कैसा व्यवहार करेगा ? (When a conductor is placed in an electric field how does it behave ?) उत्तर- विद्युतीय क्षेत्र में किसी चालक को रखने पर निम्नलिखित व्यवहार करता है इसके सामने सतह पर ऋण आवेश एवं विपरीत सतह पर धन आवेश प्रेरित होता है। इसके भीतर परिणामी विद्युतीय क्षेत्र शून्य होता है। विद्युत क्षेत्र चालक की सतह पर लम्बवत् होता है। इसके सतह पर एवं भीतर विद्युतीय विभव नियत होता है। Q.चालक एवं विद्युतरोधी पदार्थों से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by conductors and insulators ?) उत्तर जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉन (Free electrons) की संख्या काफी अधिक होती है उन्हें विद्युत् का सुचालक कहा जाता है। जैसे—चाँदी, ताँबा, पृथ्वी, पारा तथा मानव शरीर इत्यादि । इसके विपरीत जिन पदार्थों में इनकी संख्या कम होती है उन्हें विद्युत्रोधी कहा जाता है। जैसे- एबोनाइट, क्वार्ट्ज, अभ्रक, गंधक, काँच तथा मोम इत्यादि । Q. एक संधारित्र को बैटरी के सिरों से जोड़ा गया है। दोनों प्लेटें ठीक बराबर आवेश क्यों प्राप्त करती हैं? क्या होगा यदि प्लेटें विभिन्न आकार की हों ? (A condenser is connected to a cell. Both plates acquire equal charge. What will happen if plates are of different shapes?) उत्तर - संधारित्र की द्वितीय प्लेट प्रेरण (Induction) द्वारा आवेशित होती हैं तथा प्रेरण में विपरीत एवं बराबर आवेश प्रेरित होते हैं, अतः दोनों प्लेटें ठीक , बराबर आवेश प्राप्त करती हैं क्योंकि प्रेरित आवेश चालक के आकार पर निर्भर नहीं करते हैं। अतः विभिन्न आकार की प्लेटें होने पर भी उनपर आवेश की मात्राएँ ठीक बराबर होती हैं।


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पाठ-4 वस्तुओं के समूह बनाना ● हमारे चारों ओर की वस्तुएँ अनेक प्रकार के पदार्थों से बनी है। इन सभी वस्तुओं की आकृतियाँ रंग (वर्ण) तथा गुण भिन्न-भिन्न होते है। हमारे चारों ओर की वस्तुएँ एक या एक से अधिक पदार्थों से बनी होती हैं। कहलाता है पृथ्वी में पदार्थ तीन अवस्थाओं में मुख्यतः पाए जाते हैं ठोस, द्रव, एवं गैस । हम अपने दैनिक जीवन में कई वस्तुओं का उपयोग करते हैं तथा कई वस्तुओं का उपभोग करते हैं, पर उनमें उपयोग की जाने वाली वस्तु के प्रयोजन पर निर्भर है। ) दिखावट :- पदार्थ प्रायः एक-दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं। जैसे: काँच, धातुएँ, प्लास्टिक कागज मृदा आदि। " वस्तु एक ही पदार्थ से बनी होती है या एक ही वस्तु कई पदार्थों से भी बनी हो सकती हैं। • पदार्थ : प्रत्येक वस्तु जिसका कोई निश्चित भार (द्रव्यमान होता तथा वह स्थान घेरती है, पदार्थ ठोस पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है। : o जैसे- लकड़ी, लोहा, बर्फ का टुकड़ा द्रव पदार्थ की वह अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो द्रव कहलाता है। o जैसे पानी, तेल, अल्कोहल गैस : पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित होता हो गैस कहलाता है। O जैसे- हवा, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड | हर वस्तु अलग-अलग प्रकार की होती है। ) पदार्थों के गुण:- किसी पदार्थ को बनाने के लिए किसी पदार्थ का चयन उस पदार्थ के गुणों तथा o जैसे :- लकड़ी लोहे से बिल्कुल भिन्न दिखाई देती है। कुछ पदार्थ चमकदार, खुरदरे, चिकने कठोर तथा कोमल लगते हैं। कोमल पदार्थ : वे पदार्थ जिन्हें आसानी से संपीड़ित किया अथवा खरोंचा जा सकता हैं। कठोर पदार्थ : वे पदार्थ जिन्हें संपीड़ित करना कठिन होता है। ● धातु :- पदार्थ जिनमें इस प्रकार की द्युति होती है, वे प्रायः धातु होते है। उदाहरण :- लोहा, ताँबा, एलुमिनियम तथा सोना आदि । विलेय: कुछ पदार्थ जल में घुल जाते है। o जैसे पानी और नमक ● अविलेय: कुछ पदार्थ जल के साथ मिश्रित नही होते है। o जैसे पानी और धूल पारदर्शिता : पदार्थों का वह गुण है जिसमे वह प्रकाश को स्वंय से पार जाने की अनुमति देते हैं। पारदर्शी ऐसा पदार्थ जिसके आर पार देखा जा सकता है पारदर्शी पदार्थ कहते हैं। पारदर्शी पदार्थों में प्रकाश आर-पार जा सकता है। जैसे- कांच, जल, वायु O अपारदर्शी :- वैसे पदार्थ जिनमें से होकर आप वस्तुओं के आर-पार नहीं देख सकते उन्हें अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं. जैसे- पेपर, धातुएं, लकड़ी पारभासी : वैसे पदार्थ जिससे आप आपकी वस्तु को आर पार देख तो सकते हैं परंतु स्पष्ट रूप से नहीं इन पदार्थों को पारभासी पदार्थ कहते हैं। जैसे- बटर पेपर, मोटी काँच ● आर्किमीडीज का सिद्धांत ( Principle of Archimedes ) :- जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी का आभास होता है भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती हैं इसे आर्किमीडीज का सिद्धान्त कहते हैं। इसके अनुप्रयोग निम्न प्रकार हैं ● लोहे की बनी छोटी गेंद पानी में डूब जाती है तथा बड़ा जहाज तैरता रहता है क्योंकि जहाज द्वारा विस्थापित किए गए जल का भार उसके भार के बराबर होता है। अतिरिक्त प्रश्नोत्तर प्रश्न 1 कोमल पदार्थ किसे कहते है ? उत्तर- वे पदार्थ जिन्हें आसानी से संपीड़ित किया अथवा खरोंचा जा सकता है, कोमल पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए रुई अथवा स्पंज कोमल हैं, प्रश्न कठोर पदार्थ किसे कहते है ? उत्तर- जबकि अन्य पदार्थ जिन्हें संपीडित करना कठिन होता है, कठोर पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए लकड़ी कठोर है। प्रश्न विलेय पदार्थ किसे कहते है ? उत्तर- वे पदार्थ जो जल में पूर्णतः धूल जाते है या लुप्त हो जाते है जल में विलेय पदार्थ कहलाते है। जैसे नमक, चीनी, आदि । प्रश्न अविलेय पदार्थ किसे कहते है ? उत्तर- वे पदार्थ जो जल में पूर्णतः नहीं घुलते या गिलास में विलोडित करने पर भी जल में लुप्त नहीं होतें अविलेय पदार्थ कहलाते है। जैसे रेत, काँच आदि। प्रश्न पारदर्शी किसे कहते है ? उत्तर- वह पदार्थ जिससे जिसके अंदर से आर पार देखा जा सके पारदर्शी कहलाता हैं। जैसे काँच प्रश्न अपारदर्शी किसे कहते है ? उत्तर- वह पदार्थ जिससे जिसके अंदर से आर पार नहीं देखा जा सके अपारदर्शी कहलाता है। जैसे लकड़ी, प्लास्टिक आदि । प्रश्न पारभासी किसे कहते है ? उत्तर ऐसे पदार्थों, जिनसे होकर वस्तुओं को देख तो सकते हैं, परंतु बहुत स्पष्ट नहीं देखा जा सकता, उन्हें पारभासी कहते हैं। जैसे- पोलीथीन, तेल लगा कागज आदि ।- प्रश्न हम वस्तुओं को समुहों में क्यों बाँटते है ? उत्तर वस्तुओं को सुविध तथा उनके गुणों के अध्ययन के लिए एक साथ समूहों में बाँटा जाता है। प्रश्न- निम्नलिखित में समूह में मेल न खाने वाला ज्ञात कीजिए: (क) कुर्सी, पलंग, मेज, बच्चा, अलमारी (ख) गुलाब, चमेली, नाव, गेंदा, कमल (ग) ऐलुमिनियम, आयरन, ताँबा, चाँदी, रेत (घ) चीनी, नमक, रेत, कॉपर सल्फेफट उत्तर - (क) बच्चा (ख) नाव (ख) रेत (ख) रेत प्रश्न समूहन के कोई तीन लाभ लिखिए। उत्तर(i) पदार्थों का समूहन अपनी सुविध वेफ लिए करते हैं। (ii) समूहन व्यवस्था द्वारा हम आसानी से उनका पता लगा सकते हैं। (iii) पदार्थों को इस प्रकार समूहों में बाँटकर उनवेफ गुणों का अध्ययन किया जाता है।


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ध्वनि ध्वनि कंपन करती हुई वस्तु द्वारा उत्पन्न होती है। मानव वाक्-तंतुओं के कंपन द्वारा ध्वनि उत्पन्न करते हैं। ध्वनि किसी माध्यम (गैस, द्रव या ठोस) में संचरित होती है। यह निर्वात में संचरित नहीं हो सकती। कर्ण पटह ध्वनि के कंपनों को अनुभव करते हैं। यह इन संकेतों को मस्तिष्क तक भेज देते हैं। इस प्रक्रिया को श्रवण कहते हैं। प्रति सेकंड होने वाले दोलनों अथवा कंपनों की संख्या दोलन की आवृत्ति कहलाती आवृत्ति को हर्ट्ज (hz) में व्यक्त करते हैं । कंपन का आयाम जितना अधिक होता है, ध्वनि उतनी ही प्रबल होती है। कंपन की आवृत्ति ज्यादा होने पर तारत्व ज्यादा होता है और ध्वनि ज्यादा तीक्ष्ण होती है। अप्रिय ध्वनियाँ शोर कहलाती हैं। अत्यधिक अथवा अवांछित ध्वनियाँ शोर प्रदूषण उत्पन्न करती हैं। शोर प्रदूषण मानवों के लिए स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण को न्यूनतम करने के प्रयास करने चाहिए। । सड़क के किनारे तथा अन्य स्थानों पर वृक्ष लगाने से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। अभ्यास 1. सही उत्तर चुनिए ध्वनि संचरित हो सकती है: (क) केवल वायु या गैसों में (ख) केवल ठोसों में (ग) केवल द्रवों में (घ) ठोसों, द्रवों तथा गैसों में उत्तर (घ) ठोस, द्रवों तथा गैसों में 2. निम्न में से किस वाक् ध्वनि की आवृत्ति न्यूनतम होने की संभावना है (क) छोटी लड़की की (ख) छोटे लड़के की (ग) पुरुष की (घ) महिला की उत्तर (ख) छोटे लड़के की 3.निम्नलिखित कथनों में सही के सामने 'T' तथा गलत कथन के सामने 'F' पर निशान लगाइए (क) ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं हो सकती। (ख) किसी कपित वस्तु के प्रति सेकंड होने वाले दोलनों की संख्या को इसका आवर्तकाल कहते हैं। (ग) यदि कंपन का आयाम अधिक है तो ध्वनि मंद होती है। (घ) मानव कानों के लिए श्रव्यता का परास 20 hz से 20,000 hz है। (ङ) कंपन की आवृत्ति जितनी कम होगी तारत्व उतना ही अधिक होगा। (च) अवांछित या अप्रिय ध्वनि को संगीत कहते हैं। (छ) ध्वनि प्रदूषण आशिक श्रवण अशक्तता उत्पन कर सकता है। उत्तर (क) T (ख) F (ग) F (घ) T (ङ) F (च) F (छ) T 4. उचित शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (क) किसी वस्तु द्वारा एक दोलन को पूरा करने में लिए गए समय को...................कहते है । (ख) प्रबलता कम्पन के ..............से निर्धारित की जाती है। (ग) आवृत्ति का मात्रक .............है। (घ) अवांछित ध्वनि को............कहते हैं। (ङ) ध्वनि की तीक्ष्णता कंपनों की........ से निर्धारित होती है। उत्तर (क) आवर्तकाल (ख) आयाम (ग) हर्ट्ज (घ) शोर (ङ) आवृत्ति 5. एक दोलक 4 सेकंड में 40 बार दोलन करता है। इसका आवर्तकाल तथा आवृत्ति ज्ञात कीजिए। उत्तर आवर्तकाल - 40 दोलन पूरा करने में लगा समय = 4 सेकंड 1 दोलन पूरा करने में लगा समय = 40/10 = 1/10 => 0.1 सेकंड आवृत्ति→ 4 सेकंड में होने वाले दोलनों की संख्या = 40 1 सेकंड में होने वाले दोलनों की संख्या: 40/4= 10 6. एक मच्छर अपने पंखों को 500 कम्पन प्रति सेकंड की औसत दर से कपित करके ध्वनि उत्पन्न करता है। कंपन का आवर्तकाल कितना है? उत्तर 500 कंपन करने में लगता है = 1 सेकंड 1 कंपन करने में लगता है = 1/500 सेकंड = 0.002 सेकंड 7.निम्न वाद्ययंत्रों में उस भाग को पहचानिए जो ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपित होता है (क) ढोलक (ख) सितार (ग) बाँसुरी उत्तर (क) ढोलक तानित -झिल्ली (ख) सितार -तार (ग) बाँसुरी - वायु-स्तंभ 8. शोर तथा संगीत में क्या अंतर है? क्या कभी संगीत शोर बन सकता है? उत्तर शोर-अप्रिय या अवांछित ध्वनि को शोर कहते हैं। संगीत - सुस्वर ध्वनि को संगीत कहते हैं। यह सुखद होती है। हाँ संगीत भी कभी-कभी शोर बन जाता है यदि संगीत अत्यंत प्रबल हो जाए। 9. अपने वातावरण में ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों की सूची बनाइए । उत्तर ध्वनि प्रदूषण के स्रोत निम्नलिखित हैं1. वाहनों की ध्वनियाँ, 2. विस्फोट (पटाखों का फटना), 3. मशीनें 4 लाउडस्पीकर 5. वातानुकूलक 6. कूलर, 7. ऊँची आवाज में चलाए गए रेडियो, टीवी आदि। 10. वर्णन कीजिए कि ध्वनि प्रदूषण मानव के लिए किस प्रकार से हानिकारक है? उत्तर ध्वनि प्रदूषण मानव के लिए निम्न प्रकार से हानिकारक है (i) इससे अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे-अनिद्रा, तनाव, चिन्ता, उच्च रक्तचाप आदि । (ii) व्यक्ति की सुनने की क्षमता अस्थायी या स्थायी रूप से कम हो जाती है। 11. आपके माता-पिता एक मकान खरीदना चाहते हैं। उन्हें एक मकान सड़क के किनारे पर तथा दूसरा सड़क से तीन गली छोड़ कर देने का प्रस्ताव किया गया है। आप अपने माता-पिता को कौन-सा मकान खरीदने का सुझाव देंगे? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए। उत्तर अगर हमारे माता-पिता के पास दो तरह के मकानों में से चुनाव करने का मौका है तो हम अपने माता-पिता को सड़क से तीन गली छोड़कर बना मकान खरीदने का प्रस्ताव देंगे। इस मकान में ध्वनि प्रदूषण दूसरे मकान के मुकाबले काफी कम होगा, क्योंकि सड़क के किनारे बने मकान में वाहनों की ध्वनियाँ आदि ज्यादा सुनाई देंगी। इससे स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें हो सकती हैं तथा सुनने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त, सड़क के किनारे बने मकान में वायु प्रदूषण भी काफी अधिक होगा। इसलिए सड़क से तीन गली छोड़कर बना मकान ही उत्तम है। 12. मानव वाक्यंत्र का चित्र बनाइए तथा इसके कार्य की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए। उत्तर मानवों में ध्वनि वाक्यंत्र या कंठ द्वारा उत्पन्न होती है। वाकयंत्र - श्वासनली के ऊपरी सिरे पर होता है वाक्यंत्र के आर-पार दो वाक् तंतु इस प्रकार तनित होते हैं कि उनके बीच में वायु के निकलने के लिए एक संकीर्ण झिरी बनी होती है। जब फेफड़े वायु को बलपूर्वक झिरी से बाहर निकालते हैं तो वाक्-तंतु कंपित होते हैं, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। वाक्-तंतुओं से जुड़ी माँसपेशियाँ तंतुओं को तना हुआ या ढीला कर सकती हैं। जब वाक्तंतु तने हुए या पतले होते हैं तब वाक् ध्वनि का प्रकार उस वाक् ध्वनि से भिन्न होता है जब वे ढीले और मोटे होते हैं। 13. आकाश में तड़ित तथा मेघगर्जन की घटना एक समय तथा हमसे समान दूरी पर घटित होती है। हमें तड़ित पहले दिखाई देती है तथा मेघगर्जन बाद में सुनाई देता है। क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं? उत्तर आकाश में तड़ित तथा मेघगर्जन की घटना एक समय पर तथा हमसे समान दूरी पर घटित होती है। फिर भी हमें तड़ित पहले दिखाई देती है तथा मेघगर्जन बाद में सुनाई देता है। इसका कारण यह है कि प्रकाश की चाल (3X10 मी० से०) ध्वनि की चाल से काफी अधिक है। इसलिए वह हमें आवाज सुनाई देने से पहले दिखाई देता है। Chapter 18 ध्वनियाँ तरह-तरह की > ध्वनि का हमारे जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक-दूसरे से संपर्क करने में यह हमारी सहायता करती है। > किसी वस्तु की अपनी माध्य स्थिति के इधर-उधर या आगे-पीछे होनेवाली गति को कंपन कहते हैं। कंपायमान वस्तुएँ ध्वनि उत्पन्न करती हैं। आयाम अधिक होने पर कंपन को हम देख सकते हैं, परन्तु आयाम कम होने पर हम इन्हें देख नहीं पाते, केवल अनुभव कर पाते हैं। > मानवों में ध्वनि वाक्यंत्र अथवा कंठ (Larynx) द्वारा उत्पन्न होती है। > वाक्यंत्र या कंठ के आर-पार दो वाक्-तंतु इस प्रकार तनित होते हैं कि उनके बीच में वायु के निकलने के लिए एक संकीर्ण झिर्री बनी होती है। जब फेफड़े वायु को बलपूर्वक झिर्री से बाहर निकालते हैं तो वाक्-तंतु कंपित होने लगते हैं, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। > ध्वनि के संचरण (एक जगह से दूसरी जगह जाने) के लिए कोई माध्यम चाहिए। > जब किसी वस्तु में से पूरी तरह वायु निकाल दी जाती है तो उसे निर्वात कहा जाता है। ध्वनि द्रव तथा ठोस, दोनों में संचरण कर सकती है। कान के बाहरी भाग की आकृति कीप (फनेल) जैसी होती है। इसमें एक नलिका होती है जिसके एक सिरे पर एक पतली झिल्ली दृढ़ता से तनित होती है। इसे कर्ण पटल (eardrum) कहते हैं। कर्ण पटल कंपनों को अंत:कर्ण (inner ear) तक भेज देता है, जहाँ से संकेतों को मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और हम ध्वनि को सुनते हैं । > प्रति सेकंड होनेवाले दोलनों की संख्या को दोलन की आवृत्ति कहते हैं। आवृत्ति को हर्ट्ज में मापा जाता है। इसका संकेत Hz है। > ध्वनि की प्रबलता इसके आयाम पर निर्भर करती है। जब किसी कंपित वस्तु का आयाम अधिक होता है तो इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रबल होती है। जब आयाम छोटा होता है तो उत्पन्न ध्वनि मंद होती है। इसकी माप डेसिबल (dB) में की जाती है। > कंपन आवृत्ति की तीक्ष्णता या तारत्व को निर्धारित करता है। यदि कंपन की आवृत्ति अधिक है तो हम कह सकते हैं कि ध्वनि तीखी है। यदि कंपन की आवृत्ति कम है तो ध्वनि धीमी होती है। मानव कानों के लिए श्रव्य (सुनने) की आवृत्ति का परास (Range) लगभग 20 Hz से 20,000 Hz तक है। हम केवल 20 Hz से 20,000 Hz के बीच की आवृत्ति वाली ध्वनियाँ ही सुन सकते हैं। अप्रिय ध्वनि को शोर कहते हैं जबकि कर्णप्रिय ध्वनि को सुस्वर कहते हैं । वातावरण में अत्यधिक या अवांछित शोर को प्रदूषण कहते हैं । (ब) अश्रव्य ध्वनि कहलाते हैं: (क) 20 Hz से कम आवृत्ति (ख) 20000 Hz से अधिक आवृत्ति (ग) 20 Hz से 20000 Hz के बीच की आवृत्ति (स) किसी कंपित वस्तु को अपनी माध्य स्थिति से दोनों ओर अधिकतम दूरी तक का विस्थापन कहलाता है: (क) आवृत्ति (ख) आयाम (ग) आवर्तकाल (घ) तारत्व उत्तर- (अ) (घ), (ब) (क), (स) (ग)। प्रश्न 2. उचित शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : (क) ध्वनि किसी वस्तु के .........द्वारा उत्पन्न होती है (ख) प्रति सेकण्ड होने वाले दोलनों की संख्या को ...........कहते है । (ग) कंपित वस्तु एक निश्चित समय अंतराल में अपना एक दोलन पूरा करती है जिसे.......... कहते हैं (घ) अवांछित ध्वनि को कहते हैं......... जिसे ...........करने का उपाय करना चाहिए। उत्तर—(क) कम्पन, (ख) आवृत्ति, (ग) आवर्तकाल, (घ) शोर, कम। प्रश्न 3. निम्न वाद्य यंत्रों में उस भाग को पहचानकर लिखिए जो ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपित होता है । (क) ढोलक (ख) झाल (ग) बाँसुरी (घ) एकतारा (ङ) सितार उत्तर- (क) चमड़ा, (ख) धातु, (ग) छेद, (घ) तार, (ङ) तार । प्रश्न 4. आपके माता-पिता एक आवासीय मकान खरीदना चाहते हैं जिसमें आपको भी रहना है। एक मकान मुख्य सड़क के किनारे तथा दूसरा मकान सड़क से दूर एक बगीचे के पास है, जहाँ इसी सड़क से एक रास्ता जाती है। आप किस मकान को खरीदने का सुझाव देंगे ? उत्तर की व्याख्या कीजिए । उत्तर- मैं सड़क से दूर बगीचे के पास वाले मकान खरीदने का सुझाव दूँगा। कारण कि सड़क के किनारे सदैव वाहनों के चलते रहने से हवा में गर्द-गुब्बार की अधिकता रहेगी। वाहनों के इंजन तथा हॉर्नो की शोर से सदैव हल्ला-गुल्ला की स्थिति रहेगी। फलतः यहाँ वायु प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण दोनों की अधिकता रहेगी। बगीचे के पास वाला मकान के पास सदैव शांति रहेगी। वृक्षों की अधिकता से ऑक्सीजन भी भरपूर मिलेगा। इससे हम सदैव निरोग रहेंगे। प्रश्न 5. आपका मित्र मोबाइल से हमेशा संगीत सुनता रहता है । क्या वह सही कार्य कर रहा है ? व्याख्या कीजिए । उत्तर - मोबाइल से हमेशा संगीत सुनना सही कार्य नहीं है। मोबाइल से निकली आवाज के साथ विद्युत का आघात कर्ण पटल को हानि पहुँचाता है। यहाँ तक कि वह कर्ण कैंसर का भी कारण बन सकता है। इसलिये किसी मोबाइल से सदैव सुनना चाहिए। प्रश्न 1. ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है ? उत्तर - किसी वस्तु की अपनी माध्य स्थिति से इधर-उधर या आगे-पीछे होनेवाली गति के कारण जब कोई वस्तु कंपन करती है तो ध्वनि उत्पन्न होती है । प्रश्न 2. पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों के वाक्-तंतुओं की लंबाई कितनी होती है? उत्तर—पुरुषों के वाक्-तंतुओं की लम्बाई लगभग 20mm होतीहै। महिलाओं में ये लगभग 5 mm छोटे अर्थात् 15 mp तथा बच्चों के वाक्-तंतु बहुत छोटे होते हैं। यहा कारण है कि पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों की वाक् ध्वनियाँ विभिन्न होती हैं। प्रश्न 3. क्या ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है? उत्तर- हाँ, ध्वनि संचरण के लिए कोई माध्यम आवश्यक है। ये माध्यम ठोस, तरल या वायु कोई भी हो सकते है। प्रश्न 4. निर्वात क्या है? क्या ध्वनि निर्वात में संचरण करती है? उत्तर- वायुरहित स्थान निर्वात कहलाता है। निर्वात में ध्वनि संचरण नहीं करती है। प्रश्न 5. कर्णपटल (eardrum) क्या है ? यह सुनने में कैसे सहायक होता है? उत्तर—कान के बाहरी भाग की आकृति कीप (फनेल) जैसी होती है। जब ध्वनि इसमें प्रवेश करती है तो यह एक नलिका से गुजरती है, जिसके सिरे पर एक पतली झिल्ली दृढ़ता से तनित होती है। इसे कर्ण पटल (eardrum) कहते हैं। कर्ण पटल एक तनित रबड़ शीट के समान होता है। ध्वनि के कंपन्न कर्ण पटल को कंपित करते है। कर्णपटल कंपनो को अंत:कर्ण (inner ear) तक भेज देता है। वहाँ से संकेतों को मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है। इस प्रकार हम सुन पाते हैं । प्रश्न 6. दोलन गति क्या है? उत्तर - किसी वस्तु का बार-बार इधर-उधर गति करना दोलन कहलाता है। प्रश्न 7. आवृत्ति किसे कहते हैं? उत्तर - प्रति सेकंड होनेवाले दोलनों की संख्या को दोलन की आवृति कहते हैं। प्रश्न 8. आवृति का मात्रक क्या है? उत्तर - आवृति का मात्रक हर्ट्ज है। इसे संकेत में Hz लिखते हैं। Hz आवृति एक दोलन प्रति सेकंड के बराबर होती है। प्रश्न 9. तीक्ष्णता और तारत्व क्या हैं? उत्तर- जब कंपन की आवृति अधिक रहती हैं तो हम कहते हैं कि ध्वनि तीखी (तीक्ष्ण) है। और जब कंपन की आवृति कम रहती है तब हम कहते हैं कि ध्वनि का तारत्व कम है। प्रश्न 10. सुस्वर ध्वनि क्या है? उत्तर - सुस्वर ध्वनि वह है जो कानों को सुखद लगती है। जैसे हारमोनियम आदि की ध्वनि । प्रश्न 11. शोर प्रदूषण की क्या हानियाँ हैं ? उत्तर- अत्यधिक शोर की उपस्थिति अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है । अनिद्रा, अति तनाव (उच्च रक्तचाप), चिन्ता तथा अन्य बहुत-से स्वास्थ् संबंधी गड़बड़ी शोर-प्रदूषण से हो सकते हैं। इससे व्यक्ति बहरा तक हो सकता है।


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कचरा - संग्रहण एवं निपटान ) एक कदम स्वच्छता की ओर भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया। ● हमारे दैनिक क्रियाकलापों से कचरा उत्पन्न होता है। भराव :- वह स्थान है, जहाँ शहर अथवा नगर के कचरे को एकत्र करके पाटा जाता है। O कम्पोस्टिंग :- रसोई घर के अपशिष्ट सहित पौधों एवं जंतु अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित करना कम्पोस्टिंग कहलाता है। 0 वर्मीकम्पोस्टिंग : रसोइ घर के कचरे को कृमी अथवा लाल केंचुओं द्वारा कंपोस्ट में परिवर्तित करना वर्मीकम्पोस्टिंग कहलाता हैं। अपशिष्ट : अपशिष्ट पदार्थ नियमित रूप से इकट्ठा होने वाले उस कचरे को कहा जाता है, जो रोज कारखानों, ऑफिस, घरों एवं अन्य इमारतों की साफ-सफाई के बाद एकत्रित होता है, तथा जिसे हम कचरापात्र या सड़क और नदियों में ऐसे ही फेंक देते हैं। ● पुनर्चक्रण :- कचरे को कुछ नए रूप के सामग्री में बदलना ग्लास, पेपर, प्लास्टिक, और धातु जैसे एल्यूमीनियम और स्टील सभी का आम तौर पर पुनर्नवीनीकरण या पुनर्चक्रण किये जा सकते हैं। ● रीसाइक्लिंग पृथ्वी को बचाता है एक उत्पाद का पुनर्नवीनीकरण पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है। ● पुनर्चक्रण ऊर्जा बचाता है सामग्री से एक नया उत्पाद बनाने की अपेक्षा उसी उत्पाद को रीसाइक्लिंग करने से कम ऊर्जा खर्च होती है। ● पुनर्चक्रण कागज प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, ऊर्जा की बचत होती है, कम कर देता हैं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और रहता है लैंडफिल अंतरिक्ष कचरा के अन्य प्रकार है कि पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता के लिए मुफ्त लगभग अगले 20 वर्षों तक भराव क्षेत्र पर कोई भवन निर्माण नही किया जाता। • कचरे के उपयोगी अवयव के निपटान के लिए भराव क्षेत्रों का पास कम्पोस्ट बनाने वाले क्षेत्र विकसित किए जाते हैं। ● कुछ शहरों तथा नगरों में नगरपालिकाएँ दो प्रकार के कचरे को एकत्र करने के लिए दो पृथक कुड़ेदान प्रदान करती है। ● नीलेकुड़ेदान पुनः उपयोग किए जा सकने वाले पदार्थ डाले जाते हैं जैसे प्लास्टिक धातुएँ तथा काँच । • हरेकुड़ेदान :- रसोई तथा अन्य पादप तथा जंतु अपशिष्टों को एकत्र करने के लिए होते हैं। भराव क्षेत्र वह स्थान है, जहाँ शहर अथवा नगर के कचरे को एकत्र करके पाटा जाता है। कालांतर में इस क्षेत्र में पार्क बना देते हैं। हमारे दैनिक क्रियाकलापों से कचरा उत्पन्न होता है कचरे में उपयोगी और अनुपयोगी दोनों अवयव होते हैं। अनुपयोगी अवयव को पृथक कर लेते है और फिर इसे भराव क्षेत्र में फैलाकर मिट्टी की परत से ढक देते हैं। लगभग अगले 20 वर्षों तक भराव क्षेत्र पर कोई भवन निर्माण नहीं किया जाता। कचरे के उपयोगी अवयव के निपटान के लिए भराव क्षेत्रों के पास कम्पोस्ट बनाने वाले क्षेत्र विकसित किए जाते हैं। कुछ पदार्थों के विगलित और खाद में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को कम्पोस्टिंग कहते हैं। कुछ शहरों तथा नगरों में नगरपालिकाएँ दो प्रकार के कचरे को एकत्र करने के लिए दो पृथक कूड़ेदान प्रदान करती हैं। प्रायः एक का रंग नीला तथा दूसरे का रंग हरा होता है। नीले कूड़ेदान में पुनः उपयोग किए जा सकने वाले पदार्थ डाले जाते हैं जैसे प्लास्टिक धातुएँ तथा काँच • हरे कूड़ेदान रसोई तथा अन्य पादप अथवा जंतु अपशिष्टों को एकत्र करने के लिए होते हैं। किसानों द्वारा कटाई के पश्चात् खेतों में सूखी पत्तियाँ फसली पादपों के अपशिष्ट तथा भूसे जैसे अपशिष्टों को जलाया जाता है, इन्हें जलाने से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गैसें तथा धुआँ उत्पन्न होता है। लाल केंचुओं की सहायता से कंपोस्ट बनाने की इस विधि को वर्मीकम्पोस्टिंग' अथवा कृमिकम्पोस्टिंग कहते . हैं। लाल केंचुओं में एक विशेष संरचना होती है जिसे गिजर्ड कहते हैं जो भोजन को पिसने में सहायता करता है। लाल कृमि एक दिन में अपने शरीर के भार के बराबर आहार खा सकता है | लाल केंचुए बहुत गर्म अथवा ठंडे वातावरण में जीवित नहीं रह सकते। उन्हें अपने आस-पास नमी की आवश्यकता होती है। वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग फसल में खाद के रूप में होते है बाजार से वस्तुओं के संग्रह के लिए प्लास्टिक की थैलियों की जगह कागज की थालियों का प्रयोग करना चाहिए कुछ प्रकार के प्लास्टिकों का पुनःचक्रण किया जा सकता है, परंतु सभी प्रकार के प्लास्टिकों का पुनः चक्रण नहीं किया जा सकता। उपयोग हो चुकी वस्तुओं को नई वस्तु बनाकर पुनः उपयोग में लाना पुनः चक्रण कहलाता है कागज का पुनः चक्रण संभव है तथा पुनः चक्रण द्वारा बने कागज से उपयोगी चीजें बनाई जा सकती हैं। Q1. निम्नलिखित के उत्तर दीजिए: (क) लाल केंचुए किस प्रकार के कचरे को कम्पोस्ट में परिवर्तित नहीं करते? उत्तर: लाल केंचुए अजैव निम्नीकरणीय कचरे को कम्पोस्ट में परिवर्तित नहीं करते हैं । प्रश्न 1 : भराव क्षेत्र किसे कहते है ? उत्तर: सफाई कर्मचारी कूड़ा एकत्र ट्रकों द्वारा निकाहाले खुले क्षेत्रों में, जहाँ गहरे गड्ढे होते हैं ले जाते हैं | इन खुले क्षेत्रों को भराव क्षेत्र कहते है । प्रश्न 2: कम्पोस्टिंग किसे कहते है ? उत्तर: रसोई घर के अपशिष्ट सहित पौधों एवं जंतु अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित करना कंपोस्टिंग कहलाता है प्रश्न 3: हमें सुखी पत्तियाँ क्यों नहीं जलाना चाहिए ? उत्तर: सुखी पत्तियाँ, फसली पादपों के अपशिष्ट तथा भूसे जैसे अपशिष्टों को जलाने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गैसें तथा धुआं उत्पन्न होता है प्रश्न 4 : वर्मीकम्पोस्टिंग या कृमिकम्पोस्टिंग किसे कहते है ? उत्तर: लाल केचुओं की सहायता से कम्पोस्ट बनाने की इस विधि को वर्मीकम्पोस्टिंग या कृमिकम्पोस्टिंग कहते है | प्रश्न 5: लाल केंचुआ अपना भोजन को कैसे तोड़ते है ? उत्तर: लाल केंचुए के दांत नहीं होते । अतः इनमें एक विशेष संरचना होती है जिसे 'गिजर्ड' कहते हैं जो भोजन को पिसने ने इनकी सहायता करता है। प्रश्न 6: लाल केंचुआ किस प्रकार के कचरे को कम्पोस्ट में परिवर्तित नहीं करते हैं ? उत्तर: लाल केंचुए अजैव निम्नीकरणीय कचरे को कम्पोस्ट में परिवर्तित नहीं करते हैं । प्रश्न 7 : घर में बचे हुए भोजन का आप क्या करते हैं ? उत्तर: घर में बचे हुए भोजन को हम भूखे जंतुओं को खिला देते है । प्रश्न 8 : पुन:चक्रण क्या है ? उत्तरः घरों में उपयोग के बाद उपजे अपशिष्टों को पुनः फैक्टरियों से नए पदर्थों का बनकर आना और दुबारा उपयोग लायक बनाना पुनः चक्रण कहलाता है । प्रश्न 9 : किन-किन पदार्थों का पुनः चक्रण होता है ? उत्तर: प्लास्टिक, सीसा, रबड़ और धातुओं की बनी वस्तुएँ | प्रश्न 1. क्या आपने कभी सोचा है कि प्रतिदिन हमारे घरों से निकलने वाला कूड़ा-करकट (कचरा) जब बाहर फेंक दिया जाता है, तब कहाँ जाता है? उत्तर—प्रतिदिन हमारे घर से निकलने वाला कचरा जब बाहर फेंक दिया जाता है तब वह सड़कों पर नालियों में, खेतों आदि स्थानों पर जाता है। प्रश्न 2. यदि कचरा कई दिनों तक जमा होता रहे तो क्या होगा ? उत्तर -यदि कचरा कई दिनों तक जमा होता रहे, तो कचरे का अंबार (ढेर) लग जायेगा, जिससे बदबू आने लगेगी। मक्खियाँ भिनभिनाने लगेगी और बीमारियों का घर बन जायेगा । प्रश्न 3. कचरा हमें कैसे हानि पहुँचा सकता है? उत्तर-घर से प्रतिदिन निकलने वाले कचरों में कुछ कचरे अपघटित होने वाले होते हैं, तो कुछ अपघटित नहीं होते। जैसे—अपशिष्ट खाद्य पदार्थ, फलों तथा सब्जियों के छिलके आदि प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा अपघटित हो जाते हैं, जबकि पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक के टूटे खिलौने आदि प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा विघटित नहीं होते। विघटित होने वाले कचरे सड़कर दुर्गंध फैलाते हैं और उन पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगती हैं, जिससे बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी ओर विघटित नहीं होने वाले पदार्थ नालों में जाकर उन्हें जाम कर देते हैं। खेतों की मिट्टी पर बैठकर मिट्टी की वायु अंदर जाने से रोक देते हैं, जिससे पौधों की उर्वरता बाधित होती है। को प्रश्न 4. आप बाजार से सामान खरीदकर किसमें लाते हैं? उत्तर- हम बाजार से सामान पॉलिथीन बैग अथवा प्लास्टिक के बने झोले में लाते । दुकानदार भी सामानों को पॉलिथीन बैग में ही तौलकर देता है। प्रश्न 5. पुन: उपयोग के लिए हम क्या कर सकते है? उत्तर - पुनः उपयोग (Reuse) के लिए हम निम्नलिखित बातों को अमल में ला सकते हैं : 1. हम ऐसी चीजें खरीदें, जिनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे—ऐसा पेन, जिसमें रिफिल या स्याही डाला जा सके । 2. हम एक ही थैली को बार-बार इस्तेमाल करें। 3. हम ऐसे कागज को, जिसके एक तरफ लिखा या छपा हो, पलटकर दूसरी तरफ 'रफ कार्य' के लिए इस्तेमाल करें। 4. घर में सामान रखने के लिए खाली शीशियों और डिब्बों का इस्तेमाल करें। प्रश्न 6. पुन: चक्रण (Recycle) के लिए हम क्या कर सकते हैं? उत्तर - पुनःचक्रण के लिए हम निम्नांकित बातों को अमल में ला सकते हैं : (1) हम ऐसी चीजें खरीदें, जिसका पुनःचक्रण हो सके (2) हम ऐसी चीजें इस्तेमाल करें, जो पुनः चक्रण से बनी हो। जैसे—पुनः चक्रण द्वारा बनाया गया कागज । (3) ऐसी चीजों का हम इस्तेमाल न करें, जिसका पुनःचक्रण न हो सके। प्रश्न 7. कम उपयोग (Reduce) के लिए हम क्या कर सकते हैं? उत्तर -कम उपयोग के लिए हम निम्नलिखित बातों पर ध्यान दे सकते हैं : (1) चीजें खरीदते समय हम पता करें कि जो चीज हम खरीद रहे हैं, उसके कारण पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है। अगर संभव हो तो ऐसी चीजें चुनें, जो पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हो । (2) मान लीजिए दो अलग-अलग पैकेट में एक ही चीज है और उसकी मात्रा भी बराबर है। ऐसे में हमें छोटे पैकेट वाली चीज खरीदनी चाहिए । प्रश्न 8. मना कीजिए (Refuse) के लिए हम क्या कर सकते हैं? उत्तर -इसके लिए हमें अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करना होगा। समाज में गाँव/ शहरों में रहने वाले लोगों को बताना होगा कि विघटित न होने वाले पदार्थ हमारे पर्यावरण के लिए खतरनाक होते जा रहे हैं, जिसका सीधा असर हम पर पड़ने वाला है। पर्यावरण असंतुलित होगा, तो पृथ्वी की सारी गतिविधियाँ बदल जाएँगी और इस पर वास करने वाले जन्तु खतरे में पड़ जाएँगे । प्रश्न 1. अपने स्कूल से निकलने वाले कूड़े-कचरे में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों की सूची बनाइए । इसकी मात्रा कम करने के लिए और इनको दोबरा प्रयोग करने के लिए क्या उपाय करेंगे? 'बताइए । उत्तर- स्कूल के कूड़े-कचरे में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों की सूची : (i) कागज के टुकड़े, (ii) चॉक के टुकड़े, (iii) पेंसिल के छिलन, (iv) खाली रिफिल, (v) चॉकलेट या टॉफी के खोल, (vi) धूल कण । दोबारा प्रयोग — (i) कागज के टुकड़ों का पुनःचक्रण कर दोबारा कागज बनाना, (ii) टॉफी के खोल का पुनः चक्रण, (iii) चॉक के टुकड़े का पुनःचक्रण, (iv) खाली रिफिल का पुनः चक्रण, (v) धूल कण से पुनः मिट्टी । प्रश्न 2. रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक इस्तेमाल करने के लाभ और हानियों को बताएँ । उत्तर- रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक के इस्तेमाल के लाभ : (i) सस्ता होता है । (ii) सुन्दर दीखता है। (iii) यदि ढंग से इस्तेमाल हो तो टीकाऊ भी होता है। इसके इस्तेमाल से होने वाली हानि : (i) टूटने पर बेकार हो जाता है। (ii) धातु के बर्त्तनों जैसे बदले में कुछ नहीं मिलता। (iii) भूमि प्रदूषण फैलाता है। प्रश्न 3. कचरे के प्रबंधन के लिए हम क्या कर सकते हैं? उत्तर-कचरे के प्रबंधन के लिए हम चार 'R' का उपयोग कर सकते हैं। वे चार 'R' हैं : (i) Refuse अर्थात मना कीजिए। (ii) Recycle अर्थात पुनः चक्रण, (iii) Reduce अर्थात कम उपयोग करना तथा (iv) Reuse अर्थात पुनः उपयोग । प्रश्न 4. पुनःचक्रण का अर्थ स्पष्ट कीजिए । उत्तर - पुनः चक्रण का अर्थ है बेकार हो चुके लोहा, अल्युमिनियम या किसी भी धातु की वस्तु जो टूटी-फूटी हो तो उसे गला कर पुनः नई वस्तुएँ बना ली जाती हैं। इसी प्रक्रम को पुनः चक्रण कहते हैं। प्रश्न 5. पॉलिथीन का बहुत ज्यादा उपयोग करने से हमें किस प्रकार के नुकसानों का सामना करना पड़ रहा है? उत्तर—पॉलिथीन का बहुत ज्यादा उपयोग करने से हमें यह नुकसान का सामना करना पड़ रहा है इसे जहाँ भी इसे फेंका जाता है, वहाँ की भूमि बेकार हो जाती है। कभी-कभी नाले में फँसकर यह नाले को जाम कर देता है, जिससे पानी सड़क पर फैलने लगता है। प्रश्न 6. आप पॉलिथीन के अत्यधिक उपयोग को कम करने में कैसे मदद कर सकते हैं? उत्तर— यदि हम पॉलिथीन के अत्यधिक उपयोग को कम करने को ठान लें, तो निश्चित ही कम कर सकते हैं। बाजार में खरीदे गए सामानों को यदि दुकानदार पॉलिथीन के थैले में देते हैं तो उन्हें मनाकर कहेंगे कि मुझे जूट के थैले में समान दें। यदि वह ऐसा नहीं करता तो हम जूट का थैला खरीद लेंगे और उसी में खरीदे गए सामान घर ले जाएँगे। कहीं भोज में पॉलिथीन चढ़ा पत्तल के स्थान पर केला या कमल के पत्ते पर खाने का विकल्प मौजूद हो तो हम केला या कमल के पत्ता पर ही खाना पसन्द करेंगे | प्रश्न 7. निम्न कथनों में सत्य के सामने () तथा असत्य कथन के सामने (x) का चिह्न लगाएँ । गलत वाक्य को सही करके लिखें। (1) कचरे के कारण वायु, जल एवं भूमि दूषित हो जाते हैं । (2) पदार्थ जिसका विघटन आसानी से हो जाता है जैव विघटनीय पदार्थ कहलाता है। (3) पदार्थ जिसका विघटन आसानी से नहीं हो सकता, जैव अविघनीय पदार्थ कहलाता है। (4) पुराने अखबार, शीशियों, प्लास्टिक और धातु से बनी चीजों को द्वारा नए उपयोगी रूप में परिवर्तित करना 'पुनःचक्रण' कहलाता कुछ प्रक्रियाओं है उत्तर : (1) सत्य, (2) सत्य, (3) सत्य, (4) सत्य | कबाड़ से जुगाड़ कीजिए : प्रश्न 1. क्या कचरे का निपटान केवल सरकार का ही उत्तरदायित्व है ? उत्तर— नहीं, यह केवल सरकार का ही उत्तरदायित्व नहीं है। यह हम सबों का भी 'उत्तरदायित्व है। हमें चाहिए कि हम कम-से-कम कचरा उत्पन्न करें। हमें कोई ऐसा भी उपाय ढूँढ़ने का प्रयास करना चाहिए कि कचरों के निपटान में सरकार के ऊपर कम से-कम भार पड़े। प्रश्न 2. क्या कचरे के निपटान से सम्बंधित समस्याओं को कम करना सम्भव है? उत्तर-हाँ, कचरों के पुन:चक्रण के द्वारा उनके निपटान की समस्याओं को कम करना सम्भव है। प्रश्न 3. घर में बचे हुए भोजन का आप क्या करते हैं? उत्तर—घर में बचे हुए भोजन को हम रेफ्रिजरेटर में सुरक्षित रखते हैं। यदि घर में बिजली या रेफ्रिजरेटर नहीं है तो भोजन को छोटे बर्तन में रखकर बड़े कठौते में पानी भर कर उसमें रख देते हैं और ध्यान रखते हैं कि भोजन में पानी प्रवेश नहीं करने पाए। तब उसे परात से ढंक देते हैं। दूसरे दिन गरम करके उस भोजन का उपयोग कर लेते हैं। कभी-कभी बचे भोजन को और भी स्वादिष्ट व्यंजन में परिवर्तित कर उनका उपयोग कर लेते हैं। प्रश्न 4. यदि आपको और आपके मित्रों को किसी पार्टी में प्लास्टिक की प्लेट अथवा केला के पत्ते में खाने का विकल्प दिया जाय तो आप किसे चुनेंगे और क्यों ? उत्तर- हमलोग प्लास्टिक की प्लेट का त्याग कर केला के पत्ते को चुनेंगे। कारण कि प्लास्टिक के प्लेट का पुनःचक्रण नहीं हो सकता, जबकि केला के पत्ते का पुन:चक्रण - आसानी से हो जाएगा। इसका निपटान आसानी से हो सकेगा। यह अधिक प्राकृतिक है, जबकि प्लास्टिक में ये गुण नहीं है। प्रश्न 5. विभिन्न प्रकार के कागज के टुकड़ों को एकत्र कीजिए। पता कीजिए कि इनमें से किसका पुनःचक्रण किया जा सकता है? उत्तर—चुने हुए कागज के टुकड़ों में से केवल प्लास्टिक के कागज के टुकड़ों के अतिरिक्त सभी टुकड़ों का पुन:चक्रण किया जा सकता है। प्रश्न 6. एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसमें पैकेजिंग की मात्रा कम की जा सकती है। उत्तर- क्रॉकरी में पैकेजिंग की मात्रा कम की जा सकती है। अधिक क्रॉकरी के बर्तन ब्रौन पेपर या अखबार में भी पैक किया जा सकता है। प्रश्न 7. पैकेजिंग से कचरे की मात्रा किस प्रकार बढ़ जा सकती है, इस विषय पर एक कहानी लिखिए। उत्तर- रामू अपने मित्र श्याम के जन्म दिन पर एक सुन्दर उपहार देना चाहता था। उसने दो पेन खरीदें, जो दोनों अलग-अलग कार्ड बोर्ड के डिब्बे में रखे थे। उन दोनों को मिलाकर वह एक पैकेट बनवाना चाहता था। दुकानदार ने बौन पेपर में दोनों को लपेट कर पैक कर दिया। लेकिन राजू का दिल नहीं भरा। वह चमकदार कागज में पैक करना चाहता था और उसपर अपने नाम का एक सुन्दर टुकड़ा भी साटना चाहता था। दूकानदार वैसे गिफ्ट पेपर रखते भी है। उसने उसकी इच्छा के अनुसार पुनः ऊपर से एक चमकदार कागज मढ़ दिया और स्टीकर साट दिया, जिसपर रामू अपना नाम लिख सकता था। इस प्रकार हमने देखा कि मात्र दो पेन के लिए कितना अधिक कागज का व्यवहार हुआ। निश्चय ही इससे कचरे की बढ़ोतरी होगी। प्रश्न 8. क्या आपके विचार से रासायनिक उर्वरक के स्थान पर अपेक्षाकृत कम्पोस्ट का उपयोग उत्तम होता है? उत्तर- निश्चय ही रासायनिक उर्वरक के स्थान पर कम्पोस्ट का उपयोग उत्तम होता है। रासायनिक उर्वरक क्रमशः खेत को अनुर्वर बनाते जाते हैं जबकि कम्पोस्ट से खेत की उर्वरता लगातार बढ़ती जाती है। दूसरा लाभ यह है कि कम्पोस्ट के व्यवहार में कचरों का उचित उपयोग हो जाता है।


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पाठ 1 परिचय • मनुष्य की आवश्यकताएं उपलब्ध साधनों की तुलना में कहीं अधिक होती हैं। • यह संसाधनों की दुर्लभता को जन्म देता है। संसाधनों की दुर्लभता जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसने अर्थशास्त्र को जन्म दिया है। • संसाधन केवल दुर्लभ नहीं होते, उनके वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं। • इससे चयन की समस्या उत्पन्न होती हैं। चयन की समस्या (Problem of choice ) दुर्लभ संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोगों के आबंटन से संबंधित हैं। अर्थशास्त्र की परिभाषा - अर्थशास्त्र दुर्लभता की स्थिति में चयन से संबंधित व्यवहार का अध्ययन हैं। दूसरे शब्दों में, अर्थशास्त्र एक विषय है, वस्तु है जो दुर्लभ संसाधन जिनके वैकल्पिक उपयोग हैं के विवेकशील प्रयोग पर केन्द्रित हैं जिससे आर्थिक कल्याण अधिकतम हों। व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र • व्यष्टि अर्थशास्त्र यह आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा हैं जिसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण व्यक्तिगत उपभोक्ता का संतुलन, उद्योग का संतुलन, व्यक्तिगत वस्तु या साधन का कीमत निर्धारण व्यक्तिगत माँग, एक फर्म का उत्पादन आदि। • प्रो. बोल्डिंग (Prof. Boulding) के अनुसार, "व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत फर्म, व्यक्तिगत गृहस्थ, व्यक्तिगत कीमत, व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत उद्योगों व व्यक्तिगत वस्तुओं का अध्ययन करता है।" केन्द्रीय समस्याएँ क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाये, किसके लिए उत्पादन किया जाए की आर्थिक समस्या का समाधान व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। *व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र 1. राष्ट्रीय आय 2. उत्पादक व्यवहार 3. कीमत निर्धारण 4. कल्याण अर्थशास्त्र 5. वितरण के सिद्धांत • समष्टि अर्थशास्त्र - यह आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा है जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन करता है। उदाहरण- सामान्य कीमत का स्तर, रोजगार का स्तर, विभिन्न आर्थिक चरों का अंर्तसंबंध समग्र माँग, राष्ट्रीय आय आदि। • यदि व्यष्टि अर्थशास्त्र को वृक्ष कहा जाए तो समष्टि अर्थशास्त्र को वन कहा जा सकता है। *समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र • राष्ट्रीय आय • रोजगार मुद्रा ■ सामान्य कीमत स्तर ■ निर्धनता, मुद्रास्फीति, सरकारी बजट, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आदि अर्थव्यवस्था के अर्थ • अर्थव्यवस्था से आशय एक क्षेत्र की उन सब उत्पादन इकाइयों के समूह से है जिनमें लोग रोजी कमाते हैं। • प्रो. ब्राउन (Prof. Brown) के अनुसार, "अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जो लोगों को जीविका प्रदान करती है।" • जब हम भारतीय अर्थव्यवस्था को संदर्भित करते हैं तो इससे अभिप्राय भारत की घरेलू सीमा में स्थित सभी उत्पादन इकाइयों के समूह से होता है जिनके द्वारा उत्पादन, उपभोग, निवेश, विनिमय, आदि की आर्थिक क्रियाएँ दिखती रहती हैं। अर्थव्यवस्था की मूल क्रियाएँ :- * उत्पादन *उपभोग * निवेश आर्थिक समस्या :- 1. आर्थिक समस्या मूल रूप से चयन की समस्या है जो संसाधनों की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है। 2. चूंकि मानव आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और उन्हें पूरा करने के साधन सीमित होते हैं इससे चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है। 3. प्रो. एरिक रोल (Prof. Erick Roll) के अनुसार, "आर्थिक समस्या निश्चित रूप से चयन की आवश्यकता से के दोहन की समस्या है।" आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण • मानव आवश्यकताएँ असंख्य हैं। • इन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन सीमित हैं। • संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग हैं। अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ :- * क्या उत्पादन किया जाए? (वस्तुओं का चयन) * कैसे उत्पादन किया जाए? (तकनीक का चयन) *किसके लिए उत्पादन किया जाए? (वस्तुओं अथवा आय के वितरण की समस्या) *विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में केन्द्रीय समस्याओं का समाधान बाज़ार अर्थव्यवस्था :- • बाज़ार अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है, जिसमें उत्पादन कारकों (Factors of production) पर निजी स्वामित्व होता है तथा उत्पादन लाभार्जन के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाए तथा किसके लिए उत्पादन किया जाए इन आर्थिक समस्याओं का समाधान मांग और पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करता है। केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था :- केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती हैं, जिसमें उत्पादन कारकों पर सरकार का स्वामित्व होता है. तथा उत्पादन सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है। • ऐसी अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाए तथा किसके लिए उत्पादन किया जाए का निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिया जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था :- • मिश्रित अर्थव्यवस्था में, बाज़ार तथा केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था दोनों के गुण शामिल होते हैं। इसमें सरकारी व निजी क्षेत्र दोनों सहअस्तित्व रखते हैं। माँग एवं पूर्ति के बलों द्वारा लिये जाते हैं। • इसमें सरकारी क्षेत्र के निर्णय सरकारी / केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं, जबकि निजी क्षेत्र के निर्णय कीमत तंत्र अर्थात् माँग एवं पूर्ति के बलों द्वारा लिए जाते हैं। उत्पादन संभावना वक्र/उत्पादन संभावना सीमा:- *उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दिए हुए संसाधनों तथा उत्पादन की तकनीक के आधार पर दो वस्तुओं के उत्पादन की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करता है। • इस उत्पादन सभावना सीमा भी कहा जाता है। • इसे रूपांतरण रेखा या रूपांतरण वक्र भी कहते हैं। उत्पादन संभावना की विशेषताएँ / आकार • यह वक्र नीचे की ओर ढालू होता है। नीचे की ओर ढालू बायें से दायें होता है। इसका कारण यह है कि साधन सीमित होने के कारण यदि एक वस्तु का अधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है तो दूसरी वस्तु के उत्पादन की मात्रा में कमी करनी होती है। • यह वक्र नतोदर (Concave) होता हैं। मूल बिन्दु की ओर नतोदर होता है। इसका कारण बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत (MOC) है। अर्थात एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की इकाइयों का त्याग बढ़ती दर पर करना पड़ता है। *उत्पादन सम्भावना वक्र का दायीं ओर खिसकाव संसाधनों में वृद्धि तथा तकनीकी प्रगति को दर्शाता है। * उत्पादन संभावना वक्र का बायीं ओर खिसकाव संसाधनों में कमी तथा तकनीकी अवनति को दर्शाता है। • उत्पादन सम्भावना वक्र उन सभी कारणों से दाई ओर खिसकेगा जिनसे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता व संसाधनों की मात्रा तथा कुशलता में • उत्पादन सम्भावना वक्र उन सभी कारणों से दाई ओर खिसकेगा जिनसे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता व संसाधनों की मात्रा तथा कुशलता में सुधार होता है। • सीमांत विस्थापन दर एक वस्तु की त्यागी जाने वाली इकाइयों तथा अन्य वस्तु की बढ़ाई गई एक अतिरिक्त इकाई का अनुपात है। MRT = AY AX सीमांत विस्थापन दर को सीमांत अवसर लागत भी कहते हैं क्योंकि वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की त्यागी गई इकाईयाँ ही अतिरिक्त लागत होती है। जब MOC बढ़ती है तो PPF मूल बिन्दु के नतोदर होता है। जब MOC घटती है तो PPF मूल बिन्दु के उन्नतोदर होता है। जब MOC स्थिर होती है तो PPF ऋणात्मक ढाल वाली एक सरल रेखा होती है। • एक अवसर का चयन करने पर दूसरे सर्वश्रेष्ठ अवसर का किया गया त्याग अवसर लागत कहलाता है। इसे सर्वश्रेष्ठ विकल्प की लागत भी कहा जाता है। उत्पादन संभावना सीमा (PPF) दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों को दर्शाता है जिनका उत्पादन एक अर्थव्यवस्था अपने दिए हुए संसाधनों तथा तकनीकी स्तर का प्रयोग करके कर सकती है, यह मानते हुए कि सभी संसाधनों का पूर्ण एवं कुशलतम उपयोग हो रहा है। • संसाधनों के मितव्ययी प्रयोग से अभिप्राय संसाधनों के सर्वश्रेष्ठ व कुशलतम प्रयोग से है। होता है। • सीमांत विस्थापन दर एक वस्तु की त्यागी जाने वाली इकाइयों तथा अन्य वस्तु की बढ़ाई गई एक अतिरिक्त इकाई का अनुपात है। MRT=∆Y/∆X सीमांत विस्थापन दर को सीमांत अवसर लागत भी कहते हैं क्योंकि वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की त्यागी गई इकाईयाँ ही अतिरिक्त लागत होती है। जब MOC बढ़ती है तो PPF मूल बिन्दु के नतोदर होता है। जब MOC घटती है तो PPF मूल बिन्दु के उन्नतोदर होता है। जब MOC स्थिर होती है तो PPF ऋणात्मक ढाल वाली एक सरल रेखा होती है। • एक अवसर का चयन करने पर दूसरे सर्वश्रेष्ठ अवसर का किया गया त्याग अवसर लागत कहलाता है। इसे सर्वश्रेष्ठ विकल्प की लागत भी कहा जाता है। उत्पादन संभावना सीमा (PPF) दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों को दर्शाता है जिनका उत्पादन एक अर्थव्यवस्था अपने दिए हुए संसाधनों तथा तकनीकी स्तर का प्रयोग करके कर सकती है, यह मानते हुए कि सभी संसाधनों का पूर्ण एवं कुशलतम उपयोग हो रहा है। • संसाधनों के मितव्ययी प्रयोग से अभिप्राय संसाधनों के सर्वश्रेष्ठ व कुशलतम प्रयोग से है। सकारात्मक तथा आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेष्ण :- सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण: इसको अन्तर्गत यथार्थ (वास्तविकता) का अध्ययन किया जाता है। इसमें क्या था? क्या है? जैसे वास्तविक कथनों का विश्लेषण सत्यता के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए भारत की जनसंख्या 1951 में कितनी थी? वर्तमान में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या कितनी है। इन कथनों की जाँच संभव होती है। • आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण: इसमें 'क्या होना चाहिए' से सम्बन्धित विश्लेषण किया जाता है। इसमें आदर्शात्मक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है। इसकी प्रकृति सुझाव देने की है। उदाहरण के लिए भारत में आय व धन की असमानताओं को कम करने के लिए सरकार को अमीर लोगों पर अधिक कर लगाने चाहिए, गरीबों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए। इन कथनों की जाँच संभव नहीं होती।


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Q. कुकर खाँसी के लक्षण, उपचार एवं रोकथाम लिखें। अथवा, रात को तेज खाँसी है तथा उसमें 'बू' की आवाज भी है। वह किस रोग से ग्रस्त है ? इस रोग के दो अन्य लक्षण लिखिए तथा इस रोग से कैसे बचा जा सकता है ? Ans. कुकर खाँसी (Whooping Cough or Pertusis) - यह रोग बैसीलस परट्यूसिस (Bacillus Pertusis) नामक जीवाणु के संक्रमण द्वारा विशेषकर बच्चों में होता है। लक्षण 1. प्रारंभ में बच्चे को खाँसी आने लगती है जो बाद में बढ़कर गम्भीर रूप धारण कर लेती है। 2. खाँसी के साथ-साथ बच्चे को छींकें आना, नाक बहना व आँखों से पानी निकलने लगता है। 3. खाँसते-खाँसते बच्चों का मुँह लाल हो जाता है और कई बार वह वमन भी कर देता है। 4. बच्चे को खाँसी के साथ छाती से एक विशेष प्रकार की आवाज भी निकलती है जिसके कारण इसे Wooping Cough कहते हैं। 5. खाँसी के साथ हल्का बुखार भी रहता है। उपचार एवं रोकथाम 1. लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए। 2. रोगी बच्चे को स्वस्थ बच्चों से अलग रखना चाहिए। 3. रोगी बच्चे की ठण्ड व सीलन से रक्षा करनी चाहिए तथा उन्हें हवादार कमरे में रखना चाहिए। 4. रोगी को हल्का व आसानी से पचने वाला भोजन देना चाहिए। 5. शिशु को सही समय व अन्तराल का डी० पी० टी० के टीके लगवाने चाहिए। 6. रोगी के वस्त्रों, वस्तुओं व कमरे आदि को विसंक्रमित करना चाहिए। Q.. पोलियो रोग के लक्षण, उपचार एवं रोकथाम के बारे में लिखें। Ans. पोलियो यह रोग प्रायः 1-2 वर्ष के बच्चों में अधिक होता है। यह रोग विषाणुओं के संक्रमण के कारण होता है। लक्षण 1. पोलियो का आरम्भ बच्चे को तेज बुखार चढ़ने के साथ होता है। 2. इस रोग के विषाणु बच्चे के तंत्रिका तन्त्र को प्रभावित करते हैं जिससे प्रभावी अंग लगभग बेकार हो जाता है और सूखने लगता है। उपचार व रोकथाम 1. बच्चे को ठीक समय पर तथा सही अन्तराल पर पोलियो की प्रतिरोधक दवाई बूंदों के रूप में अवश्य देनी चाहिए। 2. भारत सरकार पोलियो जैसी शरीर असमर्थता पैदा करने वाली बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए पोलियो पल्स (Polio Pulse ) कार्यक्रम द्वारा प्रत्येक छोटे बच्चे को पोलियो की दवा निःशुल्क देती है। Q.. क्षय रोग क्या होता है ? इसके कारण लक्षण व उपचार के बारे में बताएँ। Ans. क्षय रोग दीर्घकालीन बैक्टीरिया से उत्पन्न बीमारी है। इस रोग को टी० बी० (तपेदिक) या ट्यूबरक्लुलोसिस भी कहा जाता है। वह रोग वायु के द्वारा फैलता है। यह रोग बहुत भयानक है जो शरीर के कई भागों में हो सकता है। जैसे फेफड़ों का तपेदिक-जिसे टी. बी. कहते हैं, आंतों का तपेदिक, ग्रंथियों का तपेदिक, हड्डियों का तपेदिक (रीढ़ की हड्डी) मस्तिष्क का तपेदिक आदि। रोग का कारण (i) यह रोग सूक्ष्मदर्शी जीवाणु बैक्टीरियम (Micro-bacterium) तथा ट्यूबर्किल बेसिलस (Tubercele Bacillus) से फैलता है। यह जीवाणु सूर्य की किरणों से नष्ट हो जाता है। (ii) भीड़-भाड़, खुली हवा की कमी तथा धूप की कमी से भी यह रोग फैलता है। (iii) इस रोग का कारण, रोगी का गाय, भैंस का दूध पीना भी है। (iv) रोगी के मल, बलगम तथा खांसने से रोग फैलता है। (v) मक्खियाँ भी रोग फैलाने का कारण है। (vi) माता-पिता को यदि तपेदिक हो तो बच्चों में इस रोग की संभावना हो जाती है। संक्रमण कारक एवं उद्भव काल (i) वायु। (ii) संक्रमित प्राणियों को छोड़ी हुई श्वास द्वारा । (iii) उद्भवकाल-कुछ सप्ताह के कुछ सालों तक की 4-6 सप्ताह । मुख्य लक्षण (i) कमजोरी व थकावट । (ii) भार में कमी तथा हड्डियाँ दिखाई देना। (iii) भूख में कमी। (iv) हल्का ज्वर रहना तथा रात को पसीना आना। (v) खांसी, बलगम में खून आना। (vi) छाती व गले में दर्द तथा सांस फूलना। (vii) हृदय की धड़कन कम हो जाना। (viii) स्त्रियों में मासिक कम होना। उपचार तथा रोकथाम (i) दूध को दस मिनट तक उबालने पर टी० बी० के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। (ii) रोगी को खुली हवा, प्रकाश तथा पूरा आराम देना चाहिए। (iii) रोगी को संतुलित एवं पौष्टिक आहार देना चाहिए। (iv) डॉक्टर की सलाह से रोगी को स्ट्रैप्टोमाइसिन के टीके 22 महीने तक लगवाना चाहिए। (v) दवा के साथ A तथा D तथा कैल्शियम की गोलियाँ देना आवश्यक है। रोकथाम (i) रोगी को दूसरे लोगों से अलग रखना चाहिए। (ii) घरों में सूर्य के प्रकाश तथा हवा का आवागमन रखना जरूरी है। (ii) रोगी के विसर्जन को जला देना चाहिए। (iv) बच्चों को जन्म के पश्चात् पहले माह के अंदर बी सी जी का टीका लगाना चाहिए। (v) प्रसार माध्यम से इस रोग की जानकारी सभी लोगों को देनी चाहिए ताकि लोग जागरूक हों। Q. एक बालक के एक वर्ष तक का सामाजिक विकास समझाये। जन्म के समय शिशु न सामाजिक होता है और न ही असामाजिक बल्कि वह समाज के प्रति उदासीन होता है। आयु बढ़ने के साथ साथ सामाजिक गुणों से सुशोभित होता जाता है। चाईल्ड के अनुसार, सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में उसके समूह मानकों के अनुसार व्यवहार का विकास होता है। सामाजिक विकास की अवस्थाएं- जन्म के समय बालक उस समय तक दूसरे बालकों में रूचि नहीं लेता है जब तक उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति सामान्य ढंग से होती है। दो माह की आयु तक बालक बहुत तीव्र उत्तेजनाओं के प्रति ही प्रतिक्रिया करता है। तीन माह की आयु तक बालक विभिन्न ध्वनियों में भेद पहचानने लगता है। वह दूसरे के मुखमंडल की भाव-भंगिमाओं को समझने लगता है। चार माह का बालक समायोजन करने लगता है। पाँच-छः माह की आयु में वह क्रोध तथा मित्रता का भाव समझने लगता है। आठ-नौ माह में वह वाणी संबंधी ध्वनियों का अनुसरण करने लगता है। एक वर्ष का बालक अपरिचितों को देखकर डरने लगता है। 0-3 माह- आवाज की ओर मुड़ता है हंसता है। मुस्कुराहट पर मुस्कुराकर जवाब देता है। कू करता है। खुशी से चीखता है। 0-6 माह- व्यंजन स्वर के संयोग से बलबलाता है। प्रत्यक्ष रूप से आपको देखता है। शोर तथा क्रोध की आवाज पर प्रतिक्रिया करता है। ध्यान केन्द्रित करने के लिए बड़बड़ाता है। ध्वनि की ओर मुड़ता है। नकल ध्वनि का प्रयास करता है। 7-8 माह- मित्रतापूर्ण सम्पर्क | देखने, मुस्कुराने तथा साथी को पकड़ने की ललक । अव्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से खेल सामग्री की सुरक्षा के लिए अंधे प्रयासों में झगड़ा । 9 माह- नाम से पुकारने पर उत्तर देता है। चार या चार से अधिक भिन्न ध्वनि उत्पन्न करता है। प्रायः बा, दा, का शब्दांशों का प्रयोग करता है। नहीं तथा बाय-बाय समझता है। ध्वनि की नकल करता है। 12 माह- ताका झाँकी कर खेलता है। ध्वनियाँ तथा ध्यान केंन्द्रित करके हावभाव को दोहराता है। छुपी हुई वस्तु के लिए खोज करता है। साधारण आदेशों को समझता है। विनती पर अपना खिलौना देता है। ऐच्छिक वस्तु के लिए संकेत देता है। दो या तीन शब्द कहता है। परिचित शब्दों की नकल करता है। Q.. संवेगों के प्रकार संक्षिप्त रूप में समझाइए । में संवेग अवश्य विद्यमान होते हैं। जिस प्रकार सुगन्ध दिखाई न देने पर भी फूल में विद्यमान रहते Ans. संवेगों के प्रकार (Types of Emotions) - व्यक्ति के व्यवहार में किसी न किसी अंश के साथ-साथ उसकी क्रियाशीलता को भी बढ़ाते हैं। हैं, ठीक उसी प्रकार हमारे व्यवहार में संवेग व्याप्त रहते हैं। संवेग बच्चे की प्रसन्नता को बढ़ाने विभिन्न संवेगों को दो वर्गों में बाँटा जाता है 1. दुःखद संवेग ( Unpleasent Emotions) - क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि। 2. सुखद संवेग (Pleasent Emotions) - हर्ष, स्नेह, जिज्ञासा आदि । 1. दुःखद संवेग - (i) क्रोध (Anger)- शैशवकाल में प्रदर्शित होने वाले सामान्य संवेगों में क्रोध सर्वप्रमुख है क्योंकि शिशु के पर्यावरण में क्रोध पैदा करने वाले अनेक उद्दीपन होते हैं। शिशु को बहुत जल्दी ही यह मालूम हो जाता है कि दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए या फिर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए जोर से रोकर, चीखकर या चिल्लाकर अपना क्रोध प्रकट करना सबसे आसान तरीका है। यही कारण है कि शिशु केवल भूख या प्यास लगने पर ही नहीं रोता अपितु जब वह चाहता है कि उसकी माता उसे गोद में उठाए तब भी जोर-जोर से रोता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है तब अपने कार्य में बाधा डालने के परिणामस्वरूप भी गुस्सा करने लगता है, जैसे जब वह खिलौनों से खेलना चाहे उस समय उसे कपड़े पहनाना, उसे कमरे में अकेला छोड़ देना, उसकी इच्छा की पूर्ति न करना आदि। प्रायः सभी बच्चों के गुस्सा होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु गुस्सा होने पर सभी एक-सा व्यवहार करते हैं जैसे रोना, चीखना, हाथ पैर पटकना, अपनी सांस रोक लेना, जमीन पर लेट जाना, पहुँच के अन्दर जो भी चीज हो उसे उठाकर फेंकना या फिर ठोकर मारना आदि। (ii) भय (Fear) - क्रोध के विपरीत, शिशु में भय पैदा करने वाले उद्दीपन अपेक्षाकृत कम होते हैं। शैशवावस्था में शिशु प्रायः निम्न स्थितियों में डरता है। अंधेरे कमरे, ऊँचे स्थान, तेज शोर, दर्द, अपरिचित लोग व जगह, जानवर आदि । जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है उसके मन में भय की संख्या और तीव्रता भिन्न-भिन्न होती है। भय को बढ़ाने वाली निम्न दो स्थितियाँ हैं (i) अचानक तथा अप्रत्याशित स्थिति, (ii) नई स्थिति । (i) अचानक तथा अप्रत्याशित स्थिति-बच्चे के सामने जब कोई अप्रत्याशित स्थिति आती है तो वह अपने आप को उसके अनुरूप एकदम ढाल नहीं सकता है। यही कारण है कि जब बच्चे के सामने कोई अपरिचित व्यक्ति आता है तो वह डर जाता है। (ii) नई स्थिति – जब बच्चे के सामने नई स्थिति या अजनबी स्थिति आती है जैसे उसके माता या पिता या फिर कोई अन्य परिचित व्यक्ति अलग किस्म के कपड़े पहन कर बच्चे के सामने आए तो इससे भी बच्चा डर जाता है। डर कर शिशु चिल्लाकर या सांस रोककर अपने आपको डरावनी स्थिति से दूर करने की कोशिश करता है और अपना सिर घुमाकर चेहरे को छिपाने का प्रयत्न करता है। जब बच्चा चलना सीख जाता है तब वह भाग कर किसी व्यक्ति के पीछे या किसी चीज के पीछे छुप जाता है और डरावनी स्थिति से दूर होने की प्रतीक्षा करता है। (iii) ईर्ष्या (Jealousy) ईर्ष्या का अर्थ है किसी के प्रति गुस्से से भरा विरोध करना। ईर्ष्या प्राय: सामाजिक स्थितियों द्वारा उत्पन्न होती है। जब परिवार में नया शिशु आता है तब छोटे बच्चे में उस शिशु के प्रति ईर्ष्या का भाव उत्पन्न होता है क्योंकि उसे लगता है कि उसके माता पिता जो पहले केवल उससे प्यार करते थे, अब उस शिशु से भी प्यार करने लगे हैं। दो वर्ष से पाँच वर्ष के बीच बच्चे में ईर्ष्या सर्वाधिक होती है। छोटा बच्चा कई बार अपने से बड़े भाई अथवा बहन से भी ईर्ष्या करने लगता है क्योंकि उसे लगता है कि उनका ध्यान अधिक करना या फिर बीमारी या डर होने का दिखावा करके बड़ों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करता है। 2. सुखद संवेग - (i) हर्ष ( Joy or pleasure ) - हर्ष का अर्थ है खुशी अथवा प्रसन्नता । शिशु एक माह से दो माह का होने पर सामाजिक परिस्थितियों में भी मुस्कराना और हंसना शुरू कर देता है (Social Smile)। इसके पश्चात् बच्चा छेड़छाड़ करने पर, गुदगुदा जाने पर हर्ष प्रकट करता है। दो वर्ष का होने पर बच्चा कई परिस्थितियों में खुश होता है जैसे खिलौनों से खेलना, अन्य बच्चों के साथ खेलना, दूसरे बच्चों को खेलते देखना या रोचक ध्वनियाँ पैदा करना। सभी बच्चे अपनी खुशी मुस्करा कर या हँस कर प्रकट करते हैं। इस आयु में बच्चा हँसने के साथ बाँहों और टाँगों को भी हिलाता है। बच्चा जितना अधिक खुश होता है, उतनी ही अधिक उसकी शारीरिक गतियाँ होती हैं। डेढ़ वर्ष का बच्चा अपनी ही चेष्टाओं पर मुस्कराता है। दो वर्ष का होने पर वह दूसरों के साथ मिलकर हँसने लगता है। (ii) स्नेह (Affection) - बच्चे में लोगों के प्रति स्नेह की अनुक्रियाएँ धीरे-धीरे विकसित होती हैं। बच्चे का किसी के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार उस व्यक्ति की ओर आकर्षित होकर उसकी गोद में आने के प्रयास से दिखाई देता है। पहले शिशु उस व्यक्ति के चेहरे को ध्यान से देखता है, इसके पश्चात् अपनी टाँगें चलाता है, बाँहों को फैलाकर हिलाता है तथा मुस्करा कर अपने शरीर को ऊपर उठाने की कोशिश करता है। प्रारम्भ में चूँकि शिशु के शरीर की गतियाँ असमन्वित होती हैं इसलिए वह उस व्यक्ति तक पहुँचने में असफल होता है। छः माह का होने पर शिशु उस व्यक्ति के प्रति स्नेह दिखाता है और धीरे-धीरे अपरिचित व्यक्ति भी बच्चे के स्नेह के पात्र बन जाते हैं। दो वर्ष का होने पर बच्चा परिचित व्यक्तियों के स्थान पर अपने आप से तथा अपने खिलौनों से स्नेह करने लगता है। घर में पालतू जानवर होने पर शिशु उससे डरे बिना उसके साथ खेलता है और उससे प्यार करने लगता है। प्रायः शिशु अपना स्नेह प्रकट करने के लिए चिपटना, थपथपाना, सहलाना या चूमने जैसी क्रियाएँ करता है। जिन बच्चों को अपने स्नेह की भावना को व्यक्त करने के सभी सामान्य अवसर नहीं मिलते हैं, उनके शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे उनके सामाजिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। (ii) जिज्ञासा (Curiosity)-जन्म के दो-तीन माह पश्चात् तक शिशु की आँखों का समन्वय लेकिन आयु वृद्धि के साथ जैसे ही शिशु साफ-साफ और अलग-अलग देख सकता है वैसे ही भली-भाँति विकसित नहीं होता है और उसका ध्यान केवल तीव्र उद्दीपन से ही आकर्षित होता है। कोई भी नई या असाधारण बात से आकर्षित होता है बशर्ते उसका नयापन इतना अधिक न हो कि भय पैदा कर सके। शिशु का भय कम होने साथ उसकी जिज्ञासा बढ़ती है। शिशु अपनी जिज्ञासा को मुँह खोलकर, जीभ बाहर निकालकर, चेहरे की मांसपेशियों कस कर तथा माथे पर बल डालकर अभिव्यक्त करता है। एक से डेढ़ वर्ष का बच्चा जिज्ञासा जागृत करने वाली बीज की ओर झुककर उसे पकड़ने की कोशिश करता है और उस चीज के हाथ में आ जाने पर उसे हिलाता, खींचता व बजाता है। Q.. शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के समक्ष आने वाली कुछ समस्याओं का ब्यौरा दीजिए स्कूल उन्हें किस प्रकार से मदद कर सकता है ? Ans. विभिन्न प्रकार की असमर्थता / विकलांगता विकलांगता शारीरिक, वाणी दोष तथा तंत्रिकी दोष संबंधी होती है। शारीरिक- (i) आँख पूर्ण या अपूर्ण अन्धापन। (b) कान पूर्ण या अपूर्ण बहरापन। (iii) अंगहीनता/कमजोर अंग। (iv) शारीरिक विषमताएँ झिल्लीदार उंगलियाँ, कूबड़, छांगा, शशा ओष्ठ (Hare lip), दोर्ण तालु, ( Cleft Palates), मुख व शरीर पर जन्म चिह्न । वाक् दोष इनके कारण बच्चा हकलाने लगता है और उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। क्रमिक दोष जो दोष क्रम में सदा होते रहते हैं, उन्हें क्रमिक दोष कहते हैं। हृदय रोग, गठिया तथा माँसपेशी रोग। तंत्रिकी (Neurological) दोष-ये दोष केन्द्रीय नाड़ी मण्डल की अस्वस्थता के कारण उत्पन्न होते हैं जैसे दिमागी पक्षाघात, (Cerebral palsy). मिर्गी (Epilepsy) तथा सिजोफेरेनिया। दिमागी पक्षापात में मस्तिष्क के ठीक कार्य न करने के कारण विभिन्न अंगों में भी पक्षाघात हो जाता है। अनियंत्रित आक्रमण के कारण मूर्छा आना और सन्तुलन खोना मिर्गी के रोगी के आम लक्षण हैं। विशेष शिक्षा तथा शैक्षणिक संस्थाओं की आवश्यकता (Need for Special Education and Educational Institutions)- इन बालकों की विकलांगता के अनुसार अलग-अलग प्रकार की शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता होती है। बधिरों के लिए ओष्ठपठन तथा अंधों को विशेष ब्रेल लिपि द्वारा पढ़ाया जाना आवश्यक है। अतः इन बालकों को उचित उपकरण दिये जाने से ये शिक्षा प्राप्त करने में किसी भी सामान्य बालक की बराबरी कर पाते हैं। अन्य शारीरिक विकलांगताओं जैसे लंगड़ापन, हाथ कटा होना आदि पर बनावटी पैर तथा हाथ लगा कर विकलांगता को एक हद तक दूर किया जा सकता है। ऊँचा सुनने वाले बच्चों की भी श्रवण यंत्रों द्वारा बधिरता को जा सकता है। इससे ये अन्य बालकों की भाँति शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। दूर किया मानसिक न्यूनता वाले बच्चों के लिए विशेष संस्थानों की आवश्यकता होती है क्योंकि इसका मानसिक विकास उनकी उम्र के सामान्य बालकों से कम होता है तथा वे कुछ भी सीखने में अधिक समय लगाते हैं। अत: इन्हें इनके कौशल को पहचान कर शिक्षा दी जानी चाहिए जो इनकी आगे चलकर आजीविका भी प्रदान करे। Q.. भाषा विकास को परिभाषित कीजिए। छोटे बच्चों में भाषा का विकास किस प्रकार होता है ? Ans. भाषा सम्प्रेषण का लोकप्रिय माध्यम है। भाषा के माध्यम से बालक अपने विचारों, इच्छाओं को दूसरे पर व्यक्त कर सकता है और दूसरे के विचारों, इच्छाओं तथा भावनाओं को समझ सकता है। हरलॉक के अनुसार भाषा में सम्प्रेषण के वे साधन आते हैं, जिसमें विचारों तथा भावा की प्रतीकात्मक बना दिया जाता है जिससे कि विचारों और भावों को दूसरे के अर्थपूर्ण ढंग कहा जा सके। बच्चे में भाषा का विकास, बच्चे बोलना शनैः शनैः सीखते हैं। पाँच वर्ष की शब्दावली के लगभग 2000 शब्द बोलते हैं। अर्थपूर्ण शब्दों और वाक्यों से दूसरे में सम्बन्ध स्थापित करते हैं। (i) 0-3 माह नवजात शिशु केवल रोने की ध्वनि निकाल सकता है, रोकर ही वह अपनी माता को अपनी भूख व गीला होने के आभास कराता है। तीन माह तक कूजना सीख जाती है। जिसे क, ऊ, उ की ध्वनि निकाल सकता है। (ii) 4-6 माह इस आयु में बच्चे अ, आ की ध्वनि निकाल सकते हैं। फिर वे पा, मा, टा, वा, ना आदि ध्वनि निकाल सकते हैं। (iii) 7-9 माह- इस आयु में बच्चे दोहरी आवाज निकाल सकते हैं। जैसे-बाबा, पापा, मामा, टाटा आदि इसे बैवलिंग या शिशुवार्त्ता कहते हैं। (iv) 10-12 माह बच्चे सहज वाक्य बोलने लगते हैं। वे तब बानीबॉल या बाबी बोल सकते हैं। (v) 1-2 वर्ष अब बच्चे तीन या चार शब्दों के वाक्य बोलने लगते हैं। (vi) 3-5 वर्ष- बच्चों की आदत हो जाती है कि वे नये सीखे शब्दों को बार-बार बोलते हैं। वे आवाज की नकल करते हैं। Q.जन्म से तीन वर्ष तक के बच्चों में होने वाले सामाजिक विकास का वर्णन करें। Ans. जन्म के समय शिशु न सामाजिक होता है और न ही असामाजिक बल्कि वह समाज के प्रति उदासीन होता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ सामाजिक गुणों से सुशोभित होता जाता है। चाईल्स के अनुसार, सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में उसके समूह मानकों के अनुसार वास्तविक व्यवहार का विकास होता है। सामाजिक विकास की अवस्थाएँ : 0 से 3 माह की अवस्था में (i) आवाज की ओर मुड़ता है। (ii) हँसता है। (iii) दूसरे व्यक्तियों के मुस्कराने पर मुस्कराकर जवाब देता है। (iv) 'कू' करता है। (v) खुशी से चीखता है। 6 माह की अवस्था में (i) व्यंजन - स्वर के संयोग से बबलाता है। (ii) प्रत्यक्ष रूप से आपको देखता है। (iii) ध्वनि की ओर मुड़ता है। (iv) नकल ध्वनियों का प्रयास करता है। (v) शोर तथा क्रोध की आवाज पर प्रतिक्रिया करता है। (vi) ध्यान केन्द्रित करने के लिए बड़बड़ाता है। 7 से 8 माह की अवस्था में (i) मित्रतापूर्ण सम्पर्क। (ii) देखने, मुस्कराने तथा साथी को पकड़ने के लिए प्रतिबंधित। (iii) अव्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से खेल सामग्री की सुरक्षा के लिए अंधे प्रयासों में झगड़ा ।


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9 माह की अवस्था में (i) नाम से पुकारने पर उत्तर देता है। (ii) चार या चार से अधिक भिन्न ध्वनि उत्पन्न करता है। (iii) प्राय: बा, दा का शब्दांशों का प्रयोग करता है। (iv) 'नहीं' तथा 'बाय-बाय' समझता है। (v) ध्वनि की नकल करता है। 12 माह की अवस्था में (i) ताका झाँकी खेलता है। (ii) ध्वनियाँ तथा ध्यान केन्द्रित करने के हाव-भाव दोहराता है। (iii) छुपी हुई वस्तु के लिए खोज करता है। (iv) लम्बे बबलाने वाले वाक्यों का प्रयोग करता है जो अनर्थक है। (v) साधारण आदेशों को समझता है। (vi) विनती पर खिलौने देता है। (vii) ऐच्छिक वस्तु के लिए संकेत देता है। (viii) दो या तीन शब्द कहता है। (ix) परिचित शब्दों की नकल करता है। (x) 'नहीं' के सिर हिलाता है। (xi) परिचित पशुओं की आवाज की नकल करना पसंद करता है। (xii) बाय-बाय के लिए हाथ हिलाता है। 13 माह की अवस्था में (i) झगड़े व्यक्तिगत हो जाते हैं। (ii) अत्यधिक झगड़े खेल सामग्री के लिए होते हैं। 18 माह की अवस्था में (i) लगभग 20 शब्द कह सकता है। (ii) जिन वस्तुओं तथा व्यक्तियों को अच्छी तरह जानता है, उनके चित्र पहचानता है। (iii) शरीर के तीन अंगों का संकेत करता है (नाक, आँखें, मुँह) । (iv) दो शब्दों को मिलाना प्रारंभ करता है (सब गये या बाय-बाय ) । (v) पूछने पर पहचानी वस्तुओं को लाता है। (vi) 5 वस्तुओं के लिए संकेत कर सकता है। (vii) शब्दों तथा ध्वनियों की अधिक स्पष्टता से नकल करता है। खेल सामग्री से हटकर अपने साथी के प्रति ध्यान केन्द्रित करता है। 21 माह की अवस्था में कुछ छोटे वाक्यांशों को उत्पन्न करता है। 22 माह की अवस्था में (i) दो शब्द वाक्यों में बात करता है। उदाहरण-पापा, काम जाओ। (ii) मुझे तथा मेरा सर्वनामों का प्रयोग करता है। (iii) दो कदम आदेशों का पालन करता है, उदाहरण के लिए " अपने जूते उठाओ तथा इसे मेरे पास लाओ।'' इन शब्द ध्वनियों का प्रयोग करता है-प, ब, म, व, ह, न इत्यादि । (iv) लगभग 300 शब्दों का प्रयोग करता है अथवा कहता है। (v) संकेत करके या दूसरी क्रियाओं द्वारा कुछ साधारण प्रश्नों के उत्तर देता है। जैसे-कहाँ, क्या, क्यों आदि । (vi) चार से आठ तक शरीर के अंगों को जानता है। (vii) सामाजिक सम्पर्क का अवसर मिलने पर वह संचार कर सकता है। 2 वर्ष 3 माह की अवस्था में बालक अहम् का भाव विकसित करेगा। वह जानता है कि वह कौन है तथा नाम से बुला सकता है। जो वह चाहता है उसके बारे में अधिक सकारात्मक हो जाएगा। वह न की तुलना में, जो देख-रेख करने वाला कहता है उसके विरुद्ध अपनी इच्छा रखेगा। वह ईंटों से मकान तथा महल बनाने का प्रयास करेगा। 2 वर्ष 6 माह की अवस्था में वह अपना पहला नाम तथा कुलनाम दोनों जान लेगा। वह साधारण घरेलू कार्य करने में आनन्द प्राप्त करेगा। जैसे-मेज लगाना । 3 वर्ष की अवस्था में (i) शिशु के सामाजिक कौशल उन्नत हो जायेंगे तथा दूसरे बालकों के साथ खेलना पसंद करेगा। वह ऊपर, नीचे तथा पीछे जैसे शब्दों का भली-भांति अर्थ समझ लेगा तथा पूर्ण जटिल वाक्य बनाने योग्य हो जायेगा। (ii) बालक विभिन्न भूमिकाएँ कर लेता है। Q. वैकल्पिक शिशु देखभाल के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं ? Ans. वैकल्पिक शिशु देखभाल के विभिन्न प्रकार (Kinds of Substitute Child Care) वैकल्पिक शिशु देखभाल निम्नलिखित से प्राप्त की जा सकती है (i) बड़े बहन-भाई से (ii) सम्बन्धियों/पड़ोसियों से (iii) किराये पर ली गई सहायता (Hired Help) से (iv) क्रेच/डे-केअर केंद्रों (Day Care Centres) से (v) प्री-नर्सरी/नर्सरी स्कूल/बालवाड़ी (Pre-nursery / Nursery/Balwadi) से अब आप उपर्युक्त सभी सुविधाओं की योग्यताओं का अध्ययन करेंगे। भाई-बहन की देखभाल (Sibling Care) - निम्न आर्थिक स्थिति के परिवारों में यह आम है। छोटे-छोटे बच्चे आयु में कुछ बड़े बच्चों की देख रेख में छोड़ दिये जाते हैं। आपको छः वर्ष का बच्चा अक्सर दो या तीन वर्ष की आयु के बच्चों की देखभाल करता दिखेगा। यह देखभाल कितनी सुरक्षित हो सकती है ? अधिक नहीं क्योंकि छः वर्ष के बच्चे में शिशुपालन की योग्यता नहीं होती। कुछ बड़े बच्चे भी इस देखभाल के लिए परिपक्व नहीं होते। इसलिए शिशुपालन के लिए कोई और उपाय खोजना चाहिए। संबंधी व पड़ोसी (Relatives and Neighbours) -घर पर ही रहकर बच्चे की अच्छी देखभाल करने में सहायता कर सकते हैं व करते हैं। बड़े-बूढ़ों का परिवार में होना बच्चों के लिए बहुत बड़ा वरदान है। दादा-दादी, नाना-नानी से बच्चों को प्यार व सुरक्षा मिलती है। पड़ोसी भी अपने परिवार से अलग अपना ही परिवार होता है। माता की अनुपस्थिति में पड़ोसी बच्चे की वैकल्पिक देखभाल में सहायता कर सकते हैं। ऐसी देख-रेख आम तौर पर अल्पकालीन ही होती है। अगर पड़ोसी के पास समय हो और वह विधिवता देखभाल करने के लिए तैयार हो तो उससे खुलकर बात करनी चाहिए ताकि आप उसकी सहायता का उचित पारिश्रमिक उसे दे सकें। किराये पर ली गई सहायता (Hired Help) अमीर शहरी घरानों में यह व्यापक रूप से पाय है। आया/नौकरानी की अच्छी तरह छानबीन करके उसकी विश्वसनीयता व योग्यता परख कर ही उसे रखना चाहिए। क्या आपने आया /नौकरानी को रखने से पहले पुलिस शिनाख्त के बारे में सुना है ? अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए माता-पिता को इन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। क्रेच (Creche)—“यह एक ऐसा सुरक्षित स्थान है जहाँ बच्चे को सही देखरेख में तब तक छोड़ा जा सकता है जब तक माता-पिता काम में व्यस्त हों।" क्रेच एक आवासी देखभाल केंद्र है। अपना कार्य समाप्त करके माता-पिता बच्चों को घर ले जाते हैं। क्या आप कभी क्रेच में गए हैं ? क्रेच में तीन साल तक की आयु तक के बच्चों को रखा जाता है। यहाँ बच्चों को योग्य कर्मियों की देख-रेख में रखा जाता है। इस कारण माताएँ निश्चिन्त होकर अपना कार्य कर सकती हैं। Q. बच्चों की वैकल्पिक देखरेख की आवश्यकता क्या है ? Ans. आमतौर पर बच्चों की देखभाल का दायित्व माता-पिता का होता है। परंतु कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि उनकी देखभाल के लिए वैकल्पिक साधन ढूँढ़ने पड़ते हैं। निम्नलिखित कारणों से बच्चों की वैकल्पिक देखभाल की आवश्यकता पड़ती है 1. माता या पिता की मृत्यु हो जाने पर जब माता या पिता में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में बच्चों को पालना कठिन हो जाता है। अतः घर के बाहर वैकल्पिक व्यवस्था का सहारा लेना पड़ता है। 2. एकाकी परिवार का होना आज औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के कारण एकाकी परिवार का प्रचलन लोकप्रिय है। यदि माता-पिता कामकाजी हैं तो घर में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहता है। अतः बच्चों की देखभाल के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ती है। 3. माता का घर से बाहर काम करना जब महिला (माता) को घर से बाहर जाकर काम करना पड़ता है तो बच्चों की देखभाल के वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। 4. वैवाहिक संबंध टूटने पर जब वैवाहिक संबंध टूटता है तो बच्चे की देखभाल की जिम्मेवारी किसी एक अभिभावक पर आ जाती है। फलतः अपने व्यावसायिक दायित्वों को पूरा करने में तथा बच्चों की देखभाल में अनेक दिक्कतें आती हैं। इस बजट से वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। 5. परिवार के प्रतिमान में परिवर्तन आज दिन-प्रतिदिन परिवार के प्रतिमानों में परिवर्तन हो रहा है और पारिवारिक संबंधों में कमी आ रही है। फलस्वरूप बच्चों की देखभाल हेतु वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। 6. रिश्तेदारों के संबंधों में परिवर्तन आज रिश्तेदारों के संबंधों में भी परिवर्तन इस वजह से आपसी स्नेह में कमी आयी है और व्यक्ति दूसरे की जिम्मेदारियों को उठाने में रूचि नहीं रखता है। इस कारण माता-पिता को घर के बाहर विकल्प ढूँढ़ने पड़ते हैं। हुआ है। 7. पड़ोसियों के संबंधों में परिवर्तन- पहले पारिवारिक संबंधों में पड़ोसियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता था। परंतु आज पड़ोसियों के संबंधों में परिवर्तन आ गया है। शहर में तो लोग अपने पड़ोसियों को जानते भी नहीं है। अतः आज पड़ोसियों के भरोसे बच्चे को नहीं छोड़ा जा सकता है। Q. नवजात शिशु के जन्म के पश्चात की आवश्यकताएँ क्या है ? Ans. नवजात शिशु को जन्म के पश्चात् की आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं 1. वायु- पूर्वाघात शिशुओं को, जो जन्म होने पर साँस नहीं ले रहे होते हैं, सजीव करना। 2. गर्माहट - जन्म के समय बालक को सुखाना, त्वचा से त्वचा सम्पर्क द्वारा गर्माहट को बनाये रखना, पर्यावरण तापमान तथा सिर और शरीर को ढँकना । कम वजन वाले शिशुओं के लिए कंगारू देखभाल को प्रोत्साहन देना। 3. स्तनपान जन्म के बाद शिशु को पहले चार घंटों के भीतर स्तनपान कराना। छः माह तक उसे स्तनपान कराते रहना। 4. देखभाल - नवजात शिशु को माता-पिता तथा अन्य देखभाल करने वाले वयस्क व्यक्तियों के निकट रखना। माता को स्वस्थ रखना। 5. रोग संक्रमण पर नियंत्रण-सफाई का विशेष ख्याल रखना ताकि रोग पर नियंत्रण रखा जा सके। 6. जटिलताओं का प्रबंधन- वैसी परिस्थितियाँ जो शिशु के जीवन को कष्टकारी बनाती है, को पहचानना और उसे दूर करने का प्रयत्न करना । Q. एक नवजात शिशु की वैकल्पिक देखभाल संबंधियों द्वारा किये जाने के लाभों की चर्चा करें। अथवा, बच्चों की देखभाल की क्या-क्या वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है ? Ans. वैकल्पिक शिशु देखभाल के विभिन्न प्रकार (Kinds of Substitute Child Care)-वैकल्पिक शिशु देखभाल निम्नलिखित से प्राप्त की जा सकती है (i) बड़े बहन-भाई से (ii) सम्बन्धियों/पड़ोसियों से (iii) किराये पर ली गई सहायता (Hired Help) से अब आप उपर्युक्त सभी सुविधाओं की योग्यताओं का अध्ययन करेंगे। (iv) क्रेच/डे-केअर केंद्रों (Day Care Centres) से (v) प्री-नर्सरी/नर्सरी स्कूल / बालवाड़ी (Pre-nursery / Nursery/Balwadi) से भाई-बहन की देखभाल (Sibling Care)-निम्न आर्थिक स्थिति के परिवारों में यह आम है। छोटे-छोटे बच्चे आयु में कुछ बड़े बच्चों की देख-रेख में छोड़ दिये जाते हैं। आपको छः वर्ष का बच्चा अक्सर दो या तीन वर्ष की आयु के बच्चों की देखभाल करता दिखेगा। यह देखभाल कितनी सुरक्षित हो सकती है ? अधिक नहीं, क्योंकि छः वर्ष के बच्चे में शिशुपालन की योग्यता नहीं होती। कुछ बड़े बच्चे भी इसे देखभाल के लिए परिपक्व नहीं होते। इसलिए शिशुपालन के लिए कोई और उपाय खोजना चाहिए। संबंधी व पड़ोसी (Relatives and Neighbours) - घर पर ही रहकर बच्चे की अच्छी देखभाल करने में सहायता कर सकते हैं व करते हैं। बड़े-बूढ़ों का परिवार में होना बच्चों के लिए बहुत बड़ा वरदान है। दादा-दादी, नाना-नानी से बच्चों को प्यार व सुरक्षा मिलती है। पड़ोसी भी अपने परिवार से अलग अपना ही परिवार होता है। माता की अनुपस्थिति में पड़ोसी बच्चे की वैकल्पिक देखभाल में सहायता कर सकते हैं। ऐसी देख-रेख आम तौर पर अल्पकालीन ही होती है। अगर पड़ोसी के पास समय हो और वह विधिवता देखभाल करने के लिए तैयार हो तो उससे खुलकर बात करनी चाहिए ताकि आप उसकी सहायता का उचित पारिश्रमिक उसे दे सकें। किराये पर ली गई सहायता (Hired Help) अमीर शहरी घरानों में यह व्यापक रूप से पायी जाती है। आया/नौकरानी की अच्छी तरह छानबीन करके उसकी विश्वसनीयता व योग्यता परख कर ही उसे रखना चाहिए। क्या आपने आया/नौकरानी को रखने से पहले पुलिस शिनाख्त के बारे में सुना है ? अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए माता पिता को इन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। (Croche) "यह एक ऐसा सुरक्षित स्थान है जहाँ बच्चे को सही देख रेख में तब तक छोड़ा जा सकता है जब तक माता पिता काम में व्यस्त हों।" केच एक आवासी देखभाल केंद्र है। अपना कार्य समाप्त करके माता-पिता बच्चों को घर ले जाते हैं। क्या आप कभी फ्रेंच में गए हैं? फ्रेंच में तीन साल तक की आयु तक के बच्चों को रखा जाता है। यहाँ बच्चों को योग्य कर्मियों की देख में रखा जाता है। इस कारण माताएँ निश्चिन्त होकर अपना कार्य कर सकती हैं। Q. आहार आयोजन के महत्त्व क्या हैं ? Ans. परिवार के सभी सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए आहार का आयोजन आवश्यक होता है। आहार आयोजन का महत्त्व निम्न कारणों से है 1. श्रम, समय एवं ऊर्जा की बचत आहार आयोजन में आहार बनाने के पहले ही इसकी योजना बना ली जाती है। आवश्यकतानुसार यह आयोजन दैनिक, साप्ताहिक, अर्द्धमासिक तथा मासिक बनाया जा सकता है। इससे समय, श्रम तथा ऊर्जा की बचत होती है। 2. आहार में विविधता एवं आकर्षण आहार में सभी भोज्य वर्गों का समायोजन करने से आहार में विविधता तथा आकर्षण उत्पन्न होता है। साथ ही आहार पौष्टिक, संतुलित तथा स्वादिष्ट हो जाता है। 3. बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करना चूँकि आहार में सभी खाद्य वर्गों को शामिल किया जाता है इससे बच्चों को सभी भोज्य पदार्थ खाने की आदत पड़ जाती है। इससे ऐसा नहीं होता कि बच्चा किसी विशेष भोज्य पदार्थ को ही पसंद करे तथा अन्य को ना पसंद करे। 4. निर्धारित बजट में संतुलित एवं रूचिकर भोजन- आहार का आयोजन करते समय निर्धारित आय की राशि को परिवार की आहार आवश्यकताओं के लिए इस प्रकार वितरित किया जाता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति के लिए उचित आहार का चुनाव संभव हो सके। आहार आयोजन करते समय प्रत्येक व्यक्ति की रुचि तथा अरुचि का भी ध्यान रखा जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को संतुलित आहार भी प्रदान किया जाता है। आहार आयोजन के बिना कोई भी व्यक्ति कभी भी आहार ले सकता है। परंतु व्यक्ति की पौष्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं हो सकता है। आहार आयोजन के बिना परिवार की आय को आहार पर खर्च करने से बजट भी असंतुलित हो जाता है। Q. वृद्धों के लिए आहार आयोजन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? Ans. वृद्धों के लिए आहार आयोजन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए (i) आहार आसानी से चबाने योग्य हों ताकि वृद्ध उसे अच्छी तरह से चबाकर खा सके। (ii) भोजन सुपाच्य हो। (iii) भोजन अधिक तले-भूने तथा मिर्च मसालेदार नहीं हो। (iv) भोजन में सभी पौष्टिक तत्व मौजूद हों। (v) रफेज की प्राप्ति हेतु नरम सब्जियों तथा फलों का प्रयोग किया जाना चाहिए। (vi) वृद्ध की रुचि के अनुसार भोज्य पदार्थों का चुनाव किया जाना चाहिए ताकि वह प्रसन्नतापूर्वक रुचि के साथ खा सके। (vii) तरल तथा अर्द्ध तरल भोज्य पदार्थों, जैसे सूप, फलों का रस, दलिया, खिचड़ी आदि को भी आहार में शामिल करना चाहिए। (viii) आहार आयोजन इस तरह होना चाहिए कि वृद्ध को उतनी ही कैलोरी मिलनी चाहिए जितनी कि उसके शरीर के लिए आवश्यक है। (ix) अस्थि विकृति तथा रक्तअल्पता के बचाव के लिए आहार में पर्याप्त मात्रा में दूध, दूध से बने व्यंजन, यकृत, माँस एवं हरी पत्तेदार सब्जियाँ होनी चाहिए। (x) कब्ज से बचाव के लिए पर्याप्त मात्रा में रेशेदार भोज्य पदार्थों का समावेश होना चाहिए। (xi) भोजन बदल-बदल कर दिया जाना चाहिए ताकि खाने में रुचि बनी रहे। (xii) बासी तथा खुले भोजन से परहेज होना चाहिए। (xiii) प्रोटीन की पूर्ति के लिए आहार में प्राणिज भोज्य पदार्थों (अण्डा, दूध, मांस, मछली, यकृत तथा दालों) का समावेश होना चाहिए। (xiv) पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन किया जाना चाहिए। (xv) विटामिन 'सी' की पूर्ति हेतु आहार में नींबू, संतरा, अमरूद, आँवला तथा अन्य खट्टे फलों का समावेश किया जाना चाहिए। Q.गर्भावस्था में आहार के महत्व की विवेचना करें। Ans. प्राचीनकाल से ही गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों को दिए जानेवाले भोजन के विषय में खास ध्यान दिया जाता रहा है। उस समय यह मान्यता थी कि गर्भवती में स्त्री जो कुछ भी खाती पीती हैं उसका सीधा प्रभाव गर्भस्थित शिशु पर पड़ता है। फलतः विभिन्न समाजों में इस तरह के दृढ़ नियम बन गए कि गर्भवती स्त्री को क्या खाना चाहिए। गर्भावस्था में स्त्री का वजन 7 से 10 किलोग्राम तक बढ़ जाता है। जन्म के समय बच्चे में काफी मात्रा में लोहा, प्रोटीन, विटामिन सी तथा दूसरे विटामिन होते हैं। यह सभी उसे माँ के शरीर से या अंगों से मिलते हैं। इसलिए गर्भावस्था में कमजोर खुराक मिलना एक ऐसा खतरा है जिससे कई बार जन्म देते वक्त माँ की मृत्यु हो जाती है अथवा जन्म से पहले साल में ही बच्चे की मौत हो जाती है। एक सर्वेक्षण से पता चला कि यदि गर्भवती स्त्री को पौष्टिक भोजन दिया जाए तो उसे प्रसव के समय अधिक कष्ट नहीं होता तथा उसका बच्चा सदैव स्वस्थ एवं हष्ट-पुष्ट रहता है। पौष्टिक आवश्यकताएँ (Nutritional Requirement) : (i) ऊर्जा (Energy)-गर्भकाल के प्रथम तीन मास में अधिक कैलोरीज की आवश्यकता नहीं है किन्तु द्वितीय और तृतीय अवस्था में लगभग 300 कैलोरीज सामान्य आवश्यकता के अलावा लेना जरूरी हैं। परंतु एक मोटी स्त्री का यदि गर्भावस्था में वजन बढ़ता है तो उसे कम कैलोरीज लेना ही उचित है। (ii) प्रोटीन (Protein)- प्रोटीन से शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका की रचना होती है। और कोशिकाओं से शिशु का शरीर बनता है और बढ़ता है। चतुर्थ मास के बाद प्रोटीन अत्यन्त आवश्यक हैं साधारण स्त्री के भोजन से गर्भवती के भोजन में ग्राम उत्तम श्रेणी का प्रोटीन अधिक होना चाहिए। अन्तिम छः महीने में लगभग 850 ग्रा= प्रोटीन का भण्डारण होता है। इसमें से आधा बच्चे के शरीर की वृद्धि और शेष माता के बढ़ते हुए तन्तुओं के लिए आवश्यक है। अत: प्रोटीनयुक्त पदार्थ जैसे दूध, पनीर, अण्डा, मांस, मछली, दालें, सोयाबीन, मेवे आदि की मात्रा बढ़ानी चाहिए। (ii) खनिज लवण (Mineral Salts) लवण शरीर की मांसपेशियों के उचित संगठन और शरीर की क्रियाओं को नियमित रखने के लिए आवश्यक हैं। गर्भावस्था में कैल्शियम, लोहा आदि की आवश्यकता अधिक होने के कारण ही उनके पोषण में जरूरत बढ़ जाती है। (iv) कैल्शियम (Calcium) कैल्शियम का भोजन में पाया जाना जरूरी हैं हड्डियों के निर्माण एवं वृद्धि के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस की अत्यन्त आवश्यकता है। जन्म के समय बच्चे के शरीर में लगभग 22 ग्रा० कैल्शियम होता है जिसका अधिकांश भाग उसे आखिरी के एक महीने में मिलता है। यदि स्त्री के आहार में अपनी और भ्रूण की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूर्ण कैल्शियम न हो तो माता के अपने शरीर के कैल्शियम का अपहरण होता है। यदि गर्भावस्था से पूर्व ही स्त्री अपोषण (Under Nutrition) से पीड़ित हो तो गर्भावस्था में उसके भोजन में प्रोटीन • और कैल्शियम आदि सामान्य मात्रा से अधिक होना चाहिए। गर्भवती को 1.3 से 1.5 ग्राम प्रतिदिन कैल्शियम की Anshu होती है। (v) फॉस्फोरस (Phosphorous) - फास्फोरस का उपभोग कैल्शियम के साथ किया जाता है। यह गर्भावस्था में भ्रूण के शरीर की वृद्धि के लिए अति आवश्यक है। इसकी सहायता से अस्थियों का निर्माण होता है। फॉस्फोरस की आवश्यकता आहार में पर्याप्त कैल्शियम होने पर स्वतः पूर्ण हो जाती है क्योंकि यह बहुधा उन्हीं खाद्य पदार्थों में पाया जाता है जिनमें कैल्शियम पाया जाता है। इसके अतिरिक्त कैल्शियम और फॉस्फोरस के अधिक-से-अधिक अवशोषण के लिए आहार में विटामिन डी का आवश्यक मात्रा में होना आवश्यक है। (vi) लोहा (Iron) - गर्भकाल में स्त्री को लोहे की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। सम्पूर्ण गर्भावस्था में गर्भवती महिला को 700-1000 मि. ग्रा. लोहे को शोषित करना जरूरी है। गर्भावस्था में माता के रक्त में वृद्धि होती है तथा शिशु का रक्त बनता है जिसके लिए गर्भवती को प्रतिदिन अधिक लोहे की आवश्यकता है। (vii) आयोडीन (lodine) - गर्भावस्था में आयोडीन की आवश्यकता भी साधारण अवस्था से बढ़ जाती है। भोजन में आयोडीन की कमी होने से माँ और शिशु दोनों को गलगण्ड, घेघा, (Goiter) रोग होने की संभावना रहती है। गर्भकालीन स्थिति में अबट ग्रंथि (Thyroid Gland) अत्यधिक क्रियाशील होती है। आयोडीन की कमी होने पर ग्रंथि थाइराक्सिन नामक अन्तःस्राव (Hormone) निर्मित करने का कार्य भी सम्पन्न करने लगती है जिसके फलस्वरूप इसकी वृद्धि हो जाती है। आयोडीन शरीर में ग्रंथियों (Glands) के द्वारा हारमोन्स उत्पन्न करने में सहायता करता है। अतः हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज तथा सामूहिक वनस्पति ऐसे ही खाद्य-पदार्थ हैं जिन्हें अपने आहार में सम्मिलित करने से आयोडीन की मात्रा सरलता से प्राप्त हो सकती है। Q.आहार आयोजन के सिद्धान्त उदाहरण सहित समझाइये। एक किशोरी के लिए एक दिन की भोजन तालिका बनाइए । Ans. आहार आयोजन के सिद्धान्त: (i) परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना (Economic Status of the Family)—उचित आहार आयोजन के द्वारा पारिवारि आर्थिक स्थिति के अनुसार श्रेष्ठ आहार उपलब्ध कराया जाना सम्भव है। अतः अहार आयोजन करने से पूर्व परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाता है क्योंकि कम खर्च में भी वे सभी पौष्टिक तत्व प्राप्त किए जा सकते हैं जो कि महँगे खाद्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं, जैसे अंडे से प्रोटीन प्राप्त होता है। इसकी तुलना में सोयाबीन से भी उत्तम श्रेणी का प्रोटीन प्राप्त होता है। इसी प्रकार से महंगे मछली के तेल की तुलना में मौसमी फल (जैसे- पपीता, आम) या सब्जी (जैसे-गाजर) विटामिन A के अच्छे और सस्ते स्रोत हैं। (ii) समय तथा श्रम की मितव्ययिता का ध्यान रखना (Saving Time and Labour) आहार आयोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि समय और श्रम दोनों ही व्यर्थ न जाए और सही समय पर पौष्टिक भोजन भी तैयार मिले, जैसे सुबह का नाश्ता एक परिवार जिसमें पति-पत्नी को ऑफिस जाना हो तथा बच्चों को स्कूल जाना हो तो ऐसे में जल्दी-जल्दी नाश्ता भी बनेगा और दोपहर का लंच भी पैक होगा। ऐसी अवस्था में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जो भी आहार आयोजित किया जाए वह जल्दी बने तथा उसे ऑफिस एवं स्कूल ले जाने में कठिनाई न हो। समय तथा श्रम की बचत करने के लिए अनेक उपकरणों जैसे प्रेशर कूकर, मिक्सर ग्राइंडर, फ्रिज इत्यादि का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। (iii) उत्सवों का ध्यान रखना (Celebration ) आहार आयोजन करते समय विभिन्न उत्सवों का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि कोई जन्मदिन पार्टी हो या कोई पर्व व त्यौहार हो तो उसके अनुसार ही आहार का आयोजन करना चाहिए। (iv) सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताओं का ध्यान रखना (Social & Religious Sanction) - किसी विशेष अवसर पर आहार आयोजित करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति के लिए आहार नियोजन किया जा सका है उसकी सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताएँ क्या है, जैसे कुछ व्यक्ति प्याज नहीं खाते, कुछ लहसुन नहीं खाते, कुछ अंडा मांस, मछली इत्यादि नहीं खाते। (v) आहार पकाते समय पौष्टिक तत्वों को नष्ट न होने देना (Protecting the Nutrients While Cooking) - आहार आयोजन करते समय आहार बनाने की विधि की ओर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। आयोजन आहार ऐसी विधि से बनाया जाना चाहिए जिससे आहार के पौष्टिक तत्व कम-से-कम नष्ट हो और वह पाचनशील हो । (vi) आहार द्वारा क्षुधा संतुष्टि हो (Providing Satisfy ) - आहार आयोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जो भी कुछ खाएँ उससे पेट भरने की संतुष्टि हो। उदाहरण के लिए यदि शरीर को कार्बोज की आवश्यकता हो तो टॉफी खाई जा सकती है पर टॉफी खाने से पेट भरने की संतुष्टि नहीं होती। इसकी तुलना में यदि आलू (उबालकर, भूनकर अथवा चाट बनाकर ) खाया जाए तो कार्बोज की आवश्यकता भी पूरी होती है और पेट भी भरता है। 1. दूध - 1 कप एक किशोरी के लिए दिन की भोजन तालिका 2. भरा हुआ पराठा - 2 3. टमाटर चटनी - 2 चम्मच 4. टिफिन सेब अथवा संतरा 5. दोहपर का सांभर - 1 कटोरी 6. भोजन उबले चावल प्लेट 7. मेथी आलू - 1/4 कटोरी 8. बूँदी रायता - 1 कटोरी; रात्रि का भोजन : दाल - 1 कटोरी: रोटी - 3-4 चाय समय दूध शेक - 1 ग्लास चाय समय - ब्रेक मक्खन - 2 टुकड़े गोभी आलू 3/4 कटोरी सलाद (टमाटर) - 4-6 टुकड़े प्याज सोते समय बादाम दूध 1 कप सेवई खीर- 1 कटोरी Q. किशोरावस्था में आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ? Ans. किशोरावस्था तीव्र गति से वृद्धि तथा विकास की अवस्था है। 13 से 18 वर्ष के बालक को किशोर कहा जाता है। इस आयु में शारीरिक, मानसिक तथा भावानात्मक परिवर्तन होते हैं। कंकाल तंत्र तथा पेशीय तंत्र की वृद्धि तथा विकास होता है, यौन अंग परिपक्व होते हैं। शारीरिक संरचना में तीव्र परिवर्तन के कारण यह अवस्था शारीरिक एवं संवेगात्मक दबाव की अवधि होती है । वृद्धि को प्रोत्साहित तथा बढ़ाने में आहार एक जटिल भूमिका निभाता है किशोरी के लिए आहार आयोजन करते समय विशेष ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं (i) आयु वर्ग (13 से 15 या 16-18 वर्ष) (ii) लिंग (लड़का/लड़की) (iii) आय वर्ग (निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च वर्ग (iv) दिनचर्या क्रियाकलाप (v) पौष्टिक तत्वों की पर्याप्त संतुलित आहार (vi) स्वीकृति - भोजन संबंधी आदतें (vii) खाद्य पदार्थों की स्थानीय उपलब्धता (viii) वृद्धि दर की गति (तीव्र या मंद) । आहार आयोजन में खाद्य पदार्थों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का भी ध्यान जरूरी है (i) प्रत्येक आहार में प्रत्येक खाद्य वर्ग के पदार्थ अवश्य सम्मिलित करें। (ii) प्रोटीन तथा कैल्शियम के लिए दूध, मांस, मछली, अंडा को सम्मिलित करें। (iii) प्रोटीन की किस्म को बढ़ाने के लिए अनाज व दालों को मिलाकर प्रयोग करें। (iv) भोजन में पर्याप्त मात्रा में तरल पदर्थों का समावेश भी आवश्यक है-सूप, जूस, आदि दें ताकि पर्याप्त खनिज लवण व विटामिन तत्व मिल सके। (v) आहार में तले हुए, मिर्च मसाले वाले गरिष्ठ भोजन नहीं सम्मिलित करना चाहिए ताकि इस अवस्था में मुहांसे और पेट की गड़बड़ियाँ होने का डर रहता है। (vi) इस आयु में कब्ज होने की शिकायत रहती है इसलिए रेशेदार पदार्थ, जैसे- कच्ची सब्जियाँ, फल, सलाद इत्यादि आहार में होना जरूरी है। (vii) आहार में किशोरों के रूचि के अनुसार भी खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए। (vii) आहार में खाद्य पदार्थों के रंग, सुगंध व बनावट पर भी ध्यान देना चाहिए, इससे भोजन को आकर्षण व भूख बढ़ती है। (ix) किशोरों के भोजन करने के समय को निश्चित रखना चाहिए। (x) इस आयु में समय-समय पर शरीर का भार ज्ञात करवाते रहना चाहिए। शरीर भार यदि सामान्य भार से कम या अधिक हो तो भोजन में कैलोरीज की मात्रा बढ़ा या कम कर देनी चाहिए। गलत आदतें (भोजन संबंधी) किशोरों के सामान्य वृद्धि में बाधक हो सकती है या दिल की बीमारी, मोटापा और कुपोषण का कारण बन सकती हैं। इसलिए किशोरों के लिए आहार आयोजन में इसकी महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। Q.आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं ? इनके सिद्धांतों की संक्षेप में व्याख्या करें। Ans. आहार आयोजन का अर्थ है आहार की ऐसी योजना बनाना जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा सन्तुलित मात्रा में उपयुक्त व्यक्ति को मिल सके। आहार आयोजन बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि वह उस व्यक्ति के लिये पौष्टिक सुरक्षित सन्तुलित साथ में रूचिकर भी हो। सिद्धांत आहार आयोजन के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं (i) परिवार की पोषण आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए सन्तुलित आहार की व्यवस्था करना- प्रत्येक व्यक्ति की पोषण आवश्यकताएँ उसकी आयु, लिंग कार्य प्रणाली से प्रभावित होती हैं अत: इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए आहार में आवश्यक पौष्टिक तत्त्व सम्मिलित करना ही आहार आयोजन का पहला सिद्धान्त है। (ii) भोज्य पदार्थों का चयन करना- मीनू बनाते समय सभी भोज्य वर्गों से खाद्य पदार्थों का चुनाव करना तथा एक आहार में एक ही प्रकार के पोषण तत्वों का कम या अधिक न होना। (iii) परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना आहार आयोजन करते समय परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर उसके आधार पर परिवार को श्रेष्ठ तथा पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना चाहिये। (iv) परिवार के सदस्यों की रुचियों तथा अरुचियों का ध्यान रखना आहार आयोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि परिवार के सारे सदस्यों की रूचि की अनदेखी न हो। (v) समय तथा श्रम की मितव्ययता को दृष्टिगत रखना आहार नियोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि समय तथा श्रम दोनों बेकार न हो जायें। (vi) आहार ऐसा हो जो भूख को संतुष्ट कर सके इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि जो भी हम खाएँ वे पौष्टिक हों तो साथ ही उससे पेट भरने की सन्तुष्टि प्राप्त हो । (vii) आहार पकाते समय पौष्टिक तत्त्व नष्ट होने देना- आहार आयोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आहार इस विधि से पकाया जाय जिससे पौष्टिक तत्त्व नष्ट न होने पायें। (viii) उत्सवों का ध्यान रखना- होली दीपावली दशहरा जन्मदिन पर कोई विशेष पर्व होने पर उसके अनुसार आहार रखना चाहिये। (ix) सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखना- आयोजन करते समय इस. बात का विशेष ध्यान में रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति के लिए हम आहार आयोजन कर रहे हैं, उसकी सामाजिक धार्मिक मान्यताएँ क्या हैं ? इस प्रकार सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जो आयोजन की जाती है वे सफल होती है। अथवा, बचत वर्त्तमान उपभोग से भविष्य के उपयोग के लिये अलग रखा हुआ भाग होता है। यह चालू आय से भविष्य की आवश्यकताओं तथा जरूरतों को देख भाल करने के उद्देश्य से कुछ राशि रखने की प्रक्रिया होती है। करें। Q. गर्भावस्था मुख्यता कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, वर्णन Ans. गर्भावस्था के समय स्त्रियों को दिये जानेवाले भोजन पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि किसी भी शिशु का विकास उसके गर्भकाल में ही प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान पौष्टिक आहार में कमी, जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरा पैदा करता है। गर्भावस्था के समय निम्नलिखित पौष्टिक तत्वों की आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी है (i) ऊर्जा - गर्भ काल के प्रथम तीन माह में अधिक कैलोरीज की आवश्यकता नहीं है किन्तु द्वितीय एवं तृतीय अवस्था में लगभग 300 कैलोरीज सामान्य आवश्यकता के अलावा लेना जरूरी है। किन्तु यह आयु, कद, वजन, क्रियाशीलता व गर्भ की स्थिति के अनुसार बदल सकती है। (ii) प्रोटीन- प्रोटीन से शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका की रचना होती है। कोशिकाओं से शिशु का शरीर बनता है और बढ़ता है। इस समय गर्भवती महिला को 15 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अतः प्रोटीन युक्त पदार्थ, जैसे-दूध, अंडा, मांस मछली, दाल, सोयाबीन, मेवा आदि की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। (iii) खनिज लवण - लवण शरीर की मांसपेशियों के उचित संगठन और शरीर की क्रियाओं को नियमित रखने के लिए आवश्यक है। गर्भावस्था में कैल्शियम लोहा आदि की आवश्यकता अधिक हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मांस आदि खाने से गर्भवती महिला के शरीर में लौह तत्व के फोलिक अम्ल की कमी पूरी हो जाती है। (iv) कैल्शियम- हड्डियों के निर्माण एवं वृद्धि के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस की अत्यंत आवश्यकता है। एक गर्भवती महिला को 1.3 से 1.5 ग्राम प्रतिदिन कैल्शियम की आवश्यकता होती है। दूध, पनीर, शलजम, अंडा, मछली, मांस, रसदार फल, सोयाबीन आदि खाने से कैल्शियम की मात्रा पूरी की जा सकती है।(v) आयोडीन गर्भावस्था में आयोडीन की आवश्यकता साधारण अवस्था से अधिक होती है। भोजन में आयोडीन की कमी से माँ और शिशु दोनों को गलगंड, घेंघा रोग होने की संभावना रहती है। अतः हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज तथा सामूहिक वनस्पति खाने से आयोडीन की कमी पूरा किया जा सकता है। (vi) जल तथा रेशे जल एवं रेशे शरीर की व्यवस्थित रखने में सहायता करते हैं। छिलका युक्त अनाज, दाल हरी पत्तेदार सब्जियों से शरीर को रेशे की मात्रा काफी मिलती है। इससे गर्भवती महिलाओं में कब्ज की शिकायत नहीं होती है। Q. वृद्धावस्या के पोषक तत्वों का महत्त्व क्या है ? Ans. 60 वर्ष तथा 60 वर्ष से अधिक की अवस्था को वृद्धावस्था कहा जाता है। इस अवस्था में चिन्ताएँ, संघर्ष तथा तनाव पहले की अपेक्षा कम होता है। जीवन का अधिक अनुभव होने के कारण अपने काम में अधिक श्रम नहीं करना पड़ता है। अतः इस अवस्था में कैलोरी वाले आहार की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। बढ़ती आयु तथा दाँतों की क्षति के कारण स्वाद में परिवर्तन होने से वृद्ध उचित आहार निश्चित करने में समस्या का सामना करते हैं। शारीरिक क्रियाओं में कमी के साथ ऊर्जा संग्रहण में कमी न होने के कारण मोटापा आ जाता है। इस अवस्था में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शरीर को विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण पूरी मात्रा में मिले और आहार संतुलित हो। जो वृद्ध संतुलित आहार लेते हैं वे अधिक स्वस्थ और लम्बे समय तक फुर्तीले रहते हैं। वृद्धों की ऊर्जा आवश्यकता वयस्कों से कम होती है। परंतु प्रोटीन तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता उसी मात्रा में रखते हैं। Q. पेय जल को शुद्ध करने के लिए घरेलू उपाय विस्तारपूर्वक लिखें। Ans. पेय जल हम चाहे किसी भी स्रोत द्वारा प्राप्त करें, उनमें कुछ न कुछ अशुद्धियाँ अवश्य पायी जाती हैं। अत: जल को पीने से पहले कुछ आसान घरेलू विधियों द्वारा शुद्ध एवं सुरक्षित किया जा सकता है। ये विधियाँ निम्नलिखित हैं (i) उबालना, (ii) छानना, (iii) फिटकरी का प्रयोग, (iv) क्लोरीन या विसंक्रमण करना, (v) घड़ों द्वारा छानना, (vi) फिल्टर द्वारा छानना, (vii) नल में लगनेवाले छोटे फिल्टर द्वारा छानना । (i) उबालना-जल को दस मिनट 100°C या 212°F पर उबालकर साफ किया जाता है। उबालने से पानी में उपस्थित सभी जीवाणु मर जाते हैं। जहाँ तक हो सके उबले पानी को उसी बर्तन में रहने देना चाहिए, जिससे दुबारा गंदा न हो। (ii) छानना - आमतौर से जल को मलमल के कपड़े से छानना पड़ता है, किन्तु मलमल के कपड़े से छानने में जल के सारे जीवाणु, महीन कीचड़ व दुर्गंध युक्त गैसें नहीं छनतीं। इसके लिए चार कलशों के द्वारा छानना उचित होता है। (iii) फिटकरी का प्रयोग-जल का विसंक्रमण करने के लिए प्राय: क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है। साफ करने के लिए आमतौर पर फिटकरी का प्रयोग किया जाता है। फिटकरी अथवा ऐलम जलीय पोटेशियम व एल्युमिनियम सल्फेट का द्विलवण होता है। इस विधि को पोटाश एलम भी कहते हैं। फिटकरी को जब जल में डाला जाता है, जिन्हें फ्लॉक्स कहते हैं तो जीवाणु इस फ्लॉक्स में चिपक जाते हैं और पानी के निचली सतह पर जम जाते हैं। (iv) क्लोरीन या विसंक्रमण करना-जल का विसंक्रमण करने के लिए प्रायः क्लोरीन का उपयोग किया जाता है। वाटर वर्क में जल को शुद्ध करने के लिए विरंजक, ब्लीचिंग पाउडर पानी में घुलने के बाद नेसेंट क्लोरीन देता है, जिससे पानी शुद्ध हो जाता है। (v) घड़ों द्वारा छानना प्रथम तीन घड़ों के तल में छेद होता है। इसमें गंदा पानी क्रमश: कोयले का चूर्ण, रेत, कंकड़ की तह से गुजारा जाता है। चौथे घड़े में स्वच्छ जल जाता है। (vi) फिल्टर द्वारा छानना पानी को फिल्टर करनेवाले कई उपकरण आजकल बाजार में उपलब्ध हैं। बिजली से चलनेवाले यंत्र में पोर्सलीन कन्डेल लगा रहता है जो जल में आलम्बित अपद्रव्यों को दूर करता है। इसके बाद पानी को सक्रिय कार्बन में से गुजारा जाता है। जो रासायनिक उपद्रव्यों को दूर करता है। अतः पानी को अल्ट्रावायलेट किरणों से गुजारा जाता है। जो जल के जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। (vii) नल में लगने वाला छोटे फिल्टर द्वारा छानना आजकल तकनीकी विकास के साथ बाजार में छोटे फिल्टर आ गये हैं जो सीधा नल में लगा दिए जाते हैं और नल खोलने पर इसमें से छन कर पानी शुद्ध होकर निकलता है। Q. 40. जल की भूमिका एवं महत्ता की चर्चा करें। अथवा, जल के कार्यों की विवेचना करें। Ans-जल के अनेक कार्य हैं, जो निम्नवत् हैं 1. यह शरीर के निर्माण में सहायक होता है। यह रक्त कोशिकाओं, अस्थियों आदि में पाया जाता है। 2. यह शरीर के ताप का नियमन करता है। 3. यह शरीर की आंतरिक सफाई करता है। मल-मूत्र, पसीना और विषैले पदार्थ को शरीर 4. यह भोजन के पाचन में सहायक पाचक रसों से बनाने में सहायक होता है। से बाहर निकालता है। 5. शरीर के अंगों की चोट, झटकों और रगड़ से रक्षा करता है। 6. व्यक्तिगत स्वच्छता, जैसे स्नान आदि के काम में इसका प्रयोग करता है। 7. खाना पकाने, बर्तन साफ करने, पीने, वस्त्र धोने तथा घर की सफाई में काम आता है। 8. घरेलू जानवरों और बागवानी के काम में आता है। 9. सड़कों, नालियों की धुलाई आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। 10. सार्वजनिक शौचालयों की सफाई में उपयोग होता है। 11. पार्कों, उद्यानों तथा फब्बारों के लिए भी 12. यह आग बुझाने के काम में आता है। इसकी आवश्यकता होती है। 13. बिजली उत्पादन, खेतों की सिंचाई तथा कारखानों में भी जल काम में लाया जाता है। Q. जल को शुद्ध करने की दो विधियाँ लिखें तथा बताएँ कि दोनों में कौन-सी विधि दूसरी से अच्छी है तथा क्यों ? Ans. जल को उबालना तथा क्लोरीन या ब्लीचिंग पाउडर के साथ शुद्ध व कीटाणुरहित करने की दो विधियाँ हैं। इसमें से उबालना एक बेहतर विधि है क्योंकि जल में डाले रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त उबालने से जल के सभी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जहाँ तक हो सके उबले पानी को उसी बर्तन में रहने देना चाहिए जिससे वह दोबारा गंदा न हो जाए। उबालना जल को स्वच्छ बनाने का सस्ता तथा सरल उपाय है। Q. ORS बनाने की घरेलू विधि की विवेचना करें। Ans. ORS बनाने की घरेलू विधि (Household Method of O.R.S) एक लीटर (4-5 गिलास) स्वच्छ पेय जल उबालकर छान लें तथा ठंडा होने दें। इसमें एक छोटा चम्मच नमक (लगभग 5 ग्राम) तथा 4-5 छोटे चम्मच चीनी (20-25 ग्राम) डालकर घोलें। पूर्णतः ढक्कनदार जग में भरकर प्रयोग के लिए रखें। नोट-1. इसका प्रयोग तथा सावधानियाँ पहले बताए गए पाउडर के समान ही हैं। 2. इसमें कुछ बूँदें नींबू के रस की भी डाली जा सकती हैं। 3. नमक की पर्याप्त मात्रा में उपस्थिति की जाँच की जा सकती है। यह आँसुओं से अधिक या कम नमकीन नहीं होना चाहिए। Q. मानव शरीर में जल के क्या कार्य हैं ? अथवा, शरीर में जल के कार्य विस्तारपूर्वक लिखें। Ans. कार्य (Functions) - जल के शरीर में अनेक कार्य हैं क्योंकि कोशिकाओं में होने वाले समस्त रासायनिक परिवर्तन जल पर ही आधारित हैं 1. शरीर का निर्माण कार्य (Body Building) - शरीर के पूरे वजन का 55-70% भाग पानी का होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति बूढ़ा होता है, पानी की मात्रा कम होती है। शरीर के विभिन्न अंगों में जल की मात्रा निम्न है 1. गुर्दे 83%, 2. रक्त 80-90%, 3. मस्तिष्क 79%, 4. मांसपेशियाँ 72%, 5. जिगर 70% 6. अस्थियाँ 30% 1 रक्त में 90% मात्रा जल की होती है। जल शरीर के विभिन्न अंगों तथा द्रवों की रचना एवं कोषों के निर्माण में सहायक होता है। रक्त में स्थिर जल का मुख्य कार्य भोज्य पदार्थों द्वारा लिए गए पानी में घुलित पोषक तत्वों का शोषण करके रक्त में पहुँचाना है और यह रक्त शरीर के निर्माण करने वाले विभिन्न अंगों के कोषों तक पोषक तत्त्वों से प्राप्त शक्ति को पहुँचाते हैं। कार्बन-डाई-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाना एवं वहीं से बेकार पदार्थों तथा विभिन्न लवणों को गुर्दे तक पहुँचाने का कार्य भी रक्त ही करता है। यदि रक्त में जल की मात्रा कम हो जाए तो रक्त गाढ़ा हो जाता है और अपने शारीरिक कार्य जो रक्त के माध्यम द्वारा करता है, सुचारू With में नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप मनुष्य बीमार हो जाता है। 2. ताप नियन्त्रक के रूप में (Act asa Temperature Controller)-जल से शरीर के तापमान को भी स्थिर रखने में सहायता मिलती है। ग्रीष्म ऋतु में पसीने के सूखने पर शरीर में ठण्डक पहुँचती है। बरसात के दिनों में वर्षा के उपरान्त वायु में नमी होती है। पसीना शीघ्र सूख नहीं पाता तो बहुत बेचैनी होती है। जब कभी शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है, त्वचा और श्वासोच्छवाद संस्थान से जल वाष्प अथवा पसीने के रूप में उत्सर्जित होने लगता है। 3. घोल्क के रूप में कार्य (Act as a Solven) - जल ही वह माध्यम है जिसके द्वारा पोषक तत्वों को कोषों तक ले जाया जाता है तथा चपाचय के निरर्थक पदार्थों को निष्कासित किया जाता है। भोजन को कोषों तक ले जाने से पूर्व पाचन की क्रिया सम्पन्न हो जानी चाहिए। पाचन प्रक्रिया में जल का प्रयोग किया जाता है, मूत्र में 96% जल पाया जाता है। मल-विसर्जन के लिए जल की अत्यन्त आवश्यकता है। भोजन में जल की मात्रा कम रहने से मल अवरोध (Constipation) होने का भय रहता है। 4. स्नेहक का कार्य (Act as Lubricant )- यह शरीर में पाए जाने वाले समस्त हड्डियों के जोड़ों में रगड़ होने से बचाता है। जोड़ों या सन्धियों (Joints) के चारों ओर थैली के समान (Sac like) जो ऊतक होते हैं, उनमें जल उपस्थित रहता है। यदि आघात के कारण यह नष्ट हो जाय या रोग के कारण परिवर्तित हो जाए तो सन्धियाँ जकड़ जाती हैं। 5. शरीर के निरुपयोगी पदार्थों को बाहर निकलना (To Excrete Out the Waste Products) - जल शरीर में बने विषैले पदार्थों को मूत्र तथा पसीने द्वारा बाहर निकालता है। इससे गुर्दों की सफाई होती रहती है। मल विसर्जन के लिए पानी की अत्यन्त आवश्यकता होती है, जल शरीर में उत्पन्न निरुपयोगी पदार्थों को अधिकतर मात्रा में घोल लेता है एवं उन्हें उत्सर्जक अंगों यकृत, त्वचा आदि द्वारा शरीर के बाहर निकाल देता है। 6. पोषक तत्त्वों का हस्तान्तरण (Transportation of Nutrients) - पोषक तत्त्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का कार्य भी जल का ही है। 7. शरीर में नाजुक अंगों की सुरक्षा (Protection of Delicate Organs) - शरीर के कोमल अंग एक जल से भरी पतली झिल्ली की थैली से घिरे रहते हैं जो अंगों की बाहरी आघातों से रक्षा करती है। Q. रसोई घर की स्वच्छता के लिए क्या नियम अपनायेंगे अथवा, रसोई घर की स्वच्छता के लिए क्या उपाय अपनाये जा सकते ? Ans. रसोईघर की स्वच्छता के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं 1. रसोईघर सदा प्रकाशमय और हवादार होना चाहिए। 2. रसोईघर के दरवाजे तथा खिड़कियों में जाली लगी होनी चाहिए ताकि मक्खियाँ अन्दर न आ सके। 3. कूड़ेदान के अंदर प्लास्टिक लगा देना चाहिए तथा उसे रोज खाली करना चाहिए । 4. रसोईघर के स्लैव और जमीन सरलता से साफ होने वाला होना चाहिए। 5. भोजन पकाने और बरतन साफ करने के लिए पर्याप्त ठंडा और गरम पानी उपलब्ध होना 6. रसोईघर के झाड़न और डस्टर साफ रखना चाहिए। उसे किसी अच्छे डिटरजेंट से साफ करना चाहिए। Q. खाद्य स्वच्छता को प्रभावित करने वाले कारक कौन हैं ? अथवा, घर में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कौन कौन से कारक होते हैं ? Ans. घर में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक होते हैं (i) रसोईघर की स्वच्छता (Kitchen hygiene ) - यदि रसोई साफ-सुथरी न हो तो भोजन सुरक्षित नहीं रह पाता अतः रसोईघर की दीवारों, फर्श के साथ-साथ आलमारी, बर्तन, स्लैब व झाड़न एवं डस्टर का स्वच्छ रहना आवश्यक होता है। (ii) घर पर खाद्य पदार्थ के संग्रह करते समय स्वच्छता- खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिये उचित संग्रह करना चाहिये। ढक्कनदान टंकियों या डिब्बों में खाद्य पदार्थ रखना चाहिये। समय - समय पर धूप लगाते रहने में खाद्य पदार्थ सुरक्षित रहते हैं। (iii) भोजन पकाने वाले तथा परोसने वाले बर्तनों की स्वच्छता- भोजन पकाने तथा परोसने वाले बर्तनों की सफाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिये। कभी-कभी प्रयोग आने वाले बर्तन जैसे: कद्दूकस, छलनी, आदि का प्रयोग करके तुरन्त साफ करके रख देना चाहिये। परोसने वाले बर्तन को कभी भी गंदे हाथों से नहीं पकड़ना चाहिये अन्यथा भोजन संदूषित हो जाता है। (iv) घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों में होने वाली रासायनिक विषाक्तता से बचाव सम्बन्धी सावधानियाँ - कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे- सीसा, टीन, ताँबा, निकिल, एल्युमीनियम और कैडमीयम प्रायः उस भोज्य पदार्थ में पाये जाते हैं जो इन धातुओं में पकाये जाते हैं। (v) भोजन पकाते, परोसते व खाते समय की स्वच्छता-भोजन पकाने के समय, परोसने के समय एवं खाने के समय स्थान की सफाई एवं हाथों की सफाई अत्यन्त आवश्यक होती है। वरन् खाद्य पदार्थ सुरक्षित नहीं रहता । हैं जिससे अतः हमें घर में भोज्य पदार्थ की सुरक्षा के लिये कुछ सावधानियाँ करनी पड़ती खाद्य पदार्थ सुरक्षित रहें । Q. भोजन पकाने, परोसने और खाने में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए ? Ans. भोजन पकाते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए (i) भोजन पकाने से पहले हाथों को स्वच्छ पानी और साबुन से धोना चाहिए। (ii) दाल, चावल, सब्जियों तथा फल आदि को स्वच्छ पानी से धोना चाहिए। (iii) मिर्च मसाले का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। (iv) साफ तथा प्रदूषण रहित बर्तन का प्रयोग करना चाहिए। (v) खाद्य पदार्थों को अधिक नहीं तलना चाहिए। भोजन परोसते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए (i) भोजन परोसते समय हाथ को स्वच्छ पानी और साबुन से धोना चाहिए। (ii) स्वच्छ बर्तन तथा स्थान का प्रयोग करना चाहिए। (iii) भोजन को ढककर रखना चाहिए। (iv) परोसने वाले का नाखून बढ़े न हो तथा साफ हों। (v) खाने का समान उतना ही परोसना चाहिए जितना खाने वाला चाहता है। (vi) भोज्य सामग्री तथा पेय जल में हाथ नहीं डालना चाहिए। भोजन करते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए (i) भोजन करने से पहले हाथ को साबुन से धोकर साफ करना चाहिए । (ii) ताजा एवं गरम भोजन करना चाहिए। (iii) खाना पूरी तरह चबाकर धीरे-धीरे खाना चाहिए। (iv) संतुलित मात्रा में भोजन करना चाहिए। (v) खाते समय कम मात्रा में पानी पीना चाहिए। खाने के कुछ देर बाद पानी पीना ज्यादा लाभदायक है। (vi) खाने के बाद हाथ को अच्छी तरह धोना चाहिए। इन्हीं नियमों का पालन खाना पकाने, परोसने तथा खाते समय करना चाहिए।


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Q. पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन से आप क्या समझते हैं ? अथवा, पारिवारिक आय के अनुपूरक साधनों का उल्लेख करें। Ans. परिवार के सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहा जाता है। जब व्यक्ति की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति इससे नहीं हो पाती है तो अनुपूरक साधनों द्वारा आय बढ़ाने का प्रयास करता है। आय बढ़ाने के इन्हीं साधनों को पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन कहा जाता है। ये साधन निम्नलिखित हैं (i) अंशकालिक नौकरियाँ-स्त्रियाँ अंशकालिक नौकरी करके परिवार की आय को बढ़ा सकती है। (ii) पारिवारिक बजट बनाकर - पारिवारिक आय तथा व्यय का विवरण बनाकर अनावश्यक खर्च को कम करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है। (iii) पारिवारिक आय में से कुछ धन बचाकर-बचत किये हुए धन को बैंक में सावधि जमा योजना के अन्तर्गत जमा कराकर उस पर अतिरिक्त ब्याज की प्राप्ति करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है। (iv) मानवीय साधनों में विकास करके- ज्ञान, कार्य कौशल, शक्ति आदि का विकास करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है। Q. बचत के महत्वों की विस्तार से चर्चा करें। Ans. बचत के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है (i) बचत परिवार को आर्थिक रूप से अधिक आत्मविश्वास बनाती है तथा उसे वीरता से भविष्य का सामना करने योग्य बनाती है। (ii) बचत आय और व्यय के मध्य एक संतुलन लाने में सहायता करती है। (iii) बचत पारिवारिक जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों पर धन की असमानताओ सहायता करती है। (iv) यह धन खर्च के लिए हमें रीतिबद्ध पद्धति विकसित करने में सहायता करती है। (v) धन बचाना अधिक धन प्राप्त करने में सहायक होता है। (vi) यह अनदेखी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होती है। (vii) यह घर तथा वाहन अथवा परिवार के लिए अन्य सम्पत्ति खरीदकर जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायक होती है। (viii) यह समाज में परिवार को मान मूल्य प्रदान करती है। (ix) यह व्यवसाय चक्र द्वारा आयी असमानताओं का सामना करने में सहायता करती है। Q. बैंक में बचत की क्या भूमिका होती है ? Ans. बैंक वह संस्था है जहाँ रुपयों का लेन देन होता है। कोई भी व्यक्ति अपने रूपयों की बैंकों में जमा करता है और आवश्यकता होने पर निकाल भी सकता है। बैंक इस धन पर कुछ राशि ब्याज के रूप में देता है। पिछले कुछ वर्षों से बैंक योजना भारत में तेजी से विकसित हुई है। मूल राशि में वृद्धि के अलावा बैंक जमाकर्ता को और भी कई सुविधाएँ देते हैं। ये सुविधाएँ ऋण देना, विनिमय तथा मुद्रा सम्प्रेषण, बैंक ग्राहकों के खाते की विभिन्न रूपों में व्यवस्थित रखता है। ये हैं - बचत खाता, आवर्ती खाता, निश्चित अवधि जमा खाता, चालू खाता, रोकड़ प्रमाण-पत्र, बैंकर्स चेक सुरक्षित जमा खता, लॉकर आदि । बैंक ATM की सुविधा प्रदान करते हैं तथा क्रेडिट और डेबिट कार्ड जारी करते हैं, जिनसे आप कभी भी अपना पैसा निकाल सकते हैं। बैंक निम्नलिखित कार्य करता है (i) खाता खोलना (ii) जमा राशि की मांग होने पर चेक, ड्राफ्ट आदि के माध्यम से पैसा वापस करना। (iii) जनता का धन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जमा करना। (iv) विभिन्न प्रकार के ऋण उपलब्ध कराना, जैसे-मकान, शिक्षा, व्यक्तिगत आदि। (v) बिना जोखिम के धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना । भारत सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया। भारतीय स्टेट बैंक तथा इसकी सात सहायक बैंकों के अब 22 जनक्षेत्र हैं। भारतीय बैंक चार श्रेणियों में विभाजित हैं (i) राष्ट्रीयकृत बैंक, (ii) विदेशी बैंक, (iii) अंतर्राष्ट्रीय बैंक एवं (iv) अन्य। Q. बचत की आवश्यकता के कारण बतायें। Ans. बचत की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं 1. अनिश्चित आय तथा आपातकाल की आशंका के कारण। 2. जब आय समाप्ति के बाद धन की आवश्यकता होती है। 3. बच्चों तथा परिवार की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण। 4. अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के कारण। Q. परिवार में की गई बचत को प्रभावित करने वाले चार कारकों की सूची बनाइए। Ans. 1. परिवार का आकार यदि परिवार में अधिक सदस्य हैं 2. संयुक्त परिवार-यदि परिवार की संरचना संयुक्त परिवार में है तो किराए की बचत, नौकरों की बचत व बच्चों की देखभाल पर खर्चा नहीं होगा व बचत ज्यादा होगी। बचत कम होगी। 3. खर्च करने की आदत - साधारण आदतें हों तो बचत अधिक होती है। 14. यदि नौकरी करने वाले सदस्यों की संख्या ज्यादा हो तो बचत भी ज्यादा होती है। Q.बचत करने के चार कारण दीजिए। अथवा, बचत के चार लाभ लिखें। Ans. बचत के चार लाभ निम्नलिखित हैं 1. परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में जैसे-स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, बच्चों की शादी इत्यादि । 2. आपातकालीन स्थितियों के लिए जो असामाजिक व आकस्मिक होती हैं धन की या बचत की आवश्यकता । 3. सुरक्षित भविष्य के लिए विशेषकर नौकरी से निवृत्ति तथा वृद्धावस्था में सुखद जीवनयापन के लिए अधिकतर लोग बचत करते हैं। 4. जीवन का स्तर ऊँचा रखने के लिए जैसे कार, कम्प्यूटर, एअर कण्डीशनर आदि लगातार बचत करके ये वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। Q. पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? उदाहरण सहित समझाइए । Ans. पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है (i) मौद्रिक आय मुद्रा के रूप में प्राप्त होने वाली आय मौद्रिक आय कहलाती है। वेतन, पेंशन, मजदूरी आदि मौद्रिक आय के उदाहरण है। (ii) वास्तविक आय-किसी विशेष अवधि में प्राप्त होने वाली वस्तुएँ या सेवा को वास्तविक आय कहते हैं। ऐसी वस्तुओं या सेवाओं के लिए परिवार को मुद्रा व्यय नहीं करनी पड़ती है। परंतु जिनके प्राप्त न होने पर अपनी मौद्रिक आय से व्यय करना पड़ता है। (iii) आत्मिक आय-मौद्रिक आय और वास्तविक आय के व्यय से जो संतुष्टि प्राप्त होती है उसे आत्मिक आय कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति और परिवार की आत्मिक आय भिन्न-भिन्न हो सकती है। Q. पारिवारिक आय को बढ़ाने के चार उपाय लिखें। Ans. प्रत्येक परिवार की आय निश्चित होती है। एक निश्चित आय में ही उनसे विभिन्न प्रकार के व्यय करने होते हैं। परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिये उस परिवार के सदस्यों को अपने आय को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिये। किसी भी परिवार को अपनी आय बढ़ाने के लिये चार उपाय निम्नलिखित हैं 1. गृह व लघु उद्योग (Cottage and Small Scale Industries), 2. अंशकालीन नौकरी (Part Time Job), 3. ओवरटाईम (Over Time), 4. मौसम के अनुसार खाद्य सामग्री का संरक्षण एवं संग्रहीकरण (Preservation of Food and Storage) । Q. आय क्या है ? पारिवारिक आय के तीन घटकों के नाम बताइए। Ans. सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहते हैं। प्रत्येक परिवार की आर्थिक व्यवस्था के दो केन्द्र होते हैं। आय तथा व्यय धन की व्यवस्थापना करते समय परिवार की आय-व्यय में संतुलन का प्रयास किया जाता है ताकि परिवार को अधिकतम सुख और समृद्धि प्राप्त हो। ग्रॉस एवं क्रैण्डल के अनुसार पारिवारिक आय मुद्रा वस्तुओं, सेवाओं और संतोष का वह प्रवाह है जिसे परिवार के अधिकार से उनकी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए प्रयोग किया जाता है। पारिवारिक आय में वेतन, मजदूरी, ग्रेच्यूटी पेंशन, ब्याज व लाभांश किराया, भविष्य निधि आदि सभी को सम्मिलित किया जाता है। पारिवारिक आय के तीन घटना निम्नलिखित हैं (i) वेतन-नौकरी करने के बाद जो मुद्रा प्रति मास प्राप्त होती है उसे वेतन कहते हैं। (ii) मजदूरी मजदूरों को कार्य करने के बाद जो पारिश्रमिक दैनिक, साप्ताहिक अथवा मासिक प्राप्त होता है उसे मजदूरी कहते हैं। (iii) ब्याज व लाभांश पूँजी के विनियोग से प्राप्त होने वाला ब्याज तथा व्यावसायिक संस्था के शेयर अथवा डिवेन्चयर से प्राप्त होने वाला लाभांश भी मौद्रिक आय है। Q. घरेलू लेखा-जोखा कितने प्रकार का होता है ? Ans. घरेलू लेखा-जोखा तीन प्रकार से किया जाता है 1. दैनिक हिसाब लिखना- इसमें विभिन्न मद में किये गये खर्च का लेखा-जोखा रहता है। 2. साप्ताहिक एवं मासिक हिसाब- इसमें सप्ताह में या माह में किये गये व्यय का लेखा-जोखा रहता है। 3. वार्षिक आय-व्यय और बचत का रिकार्ड इसमें सभी स्रोतों से प्राप्त आय का हिसाब एक तरफ रहता है और दूसरी तरफ व्यय का हिसाब रहता है जिसमें आकस्मिक खर्च, टैक्स, बचत आदि सभी का ब्यौरा रहता है। Q. घर के हिसाब-किताब का ब्योरा रखने के छः लाभ बताइए। Ans. घर का रिकार्ड रखने के लाभ (Advantage of Maintaining Household Record)-घर खर्च का रिकार्ड रखने के अनेक लाभ हैं। इससे पारिवारिक आय का अच्छी तरह प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे रिकार्ड रखने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं 1. इससे अधिक व्यय पर अंकुश लगाया जा सकता है। अपव्यय को कम किया जा सकता है। 2. लाभ का रिकार्ड रखने से परिवार की कुल आय व व्यय को जाना जा सकता है। 3. विभिन्न वस्तुओं पर कितना व्यय होना चाहिए इसका अनुमान लगाया जा सकता है। 4. उधार लेने की आदत को रोका जा सकता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि उधार लेने के बाद उसकी किश्त चुकाने में कठिनाई आती है। 5. आय व व्यय में संतुलन बनाये रखना सरल हो जाता है। भविष्य के लिए बचत भी इसका अभिन्न अंग है। 6. गृह खर्च के ब्यौरे से परिवार के लक्ष्यों की पूर्ति सरल हो जाती है। Q. घरेलू बजट का क्या महत्व है ? परिवार के लिए बजट बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ? Ans. प्रत्येक परिवार अपनी आय का व्यय बहुत सोच समझकर कर सकता है क्योंकि धन एक सीमित साधन है तथा यह प्रयास करता है कि अपनी सीमित आय द्वारा अपने परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करके भविष्य हेतु कुछ न कुछ बचत कर सकें। यही कारण है कि गृह स्वामी तथा गृहस्वामिनी मिलकर सोच समझकर अपने परिवार की आय का उचित व्यय करने हेतु लिखित एवं मौखिक योजना बनाते हैं और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्हें अपने व्यय का पूरा हिसाब किताब रखना पड़ता है, कोई भी परिवार घरेलू बचत बनाकर ही व्यय को नियंत्रित कर सकता है। घरेलू बचत बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं (i) घरेलू हिसाब-किताब प्रतिदिन लिखने से हमें यह ज्ञात रहता है कि हमारे पास कितना पैसा शेष बचा है जो परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अत्यन्त आवश्यक है जिससे पारिवारिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके। (ii) घरेलू हिसाब किताब रखने से अधिक व्यय पर अंकुश रहता है। (iii) विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक सामान्य दिशा निर्देश का आभास होता है। (iv) असीमित आवश्यकताओं और सीमित आय के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है। (v) सही ढंग से व्यय करने के फलस्वरूप बचत व निवेश प्रोत्साहन मिलती है। (vi) इससे परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है। परिवार के लिए बजट बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए (i) आय और व्यय के बीच ज्यादा फासला न हो अर्थात् आय की तुलना में व्यय बहुत अधिक नहीं हो। (ii) बजट से जीवन लक्ष्यों की पूर्ति हो यानी परिवार को उच्च जीवन स्तर की ओर प्रेरित कर सकें। (iii) बजट बनाते समय अनिवार्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए। (iv) सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखकर बजट बनानी चाहिए ताकि आकस्मिक खच यथा बीमारी, दुर्घटना तथा विवाह आदि के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति समय पर हो सके। (v) व्यय को आय के साथ समायोजित होना चाहिए ताकि ऋण का सहारा न लेना पड़े। (vi) बजट बनाते समय महंगाई को भी ध्यान में रखना चाहिए। Q. निवेश योजना के चयन के लिए उपायों की क्या राय देंगी ? Ans. विनियोग के विभिन्न क्षेत्रों में से अपने धन की सुरक्षा व उचित आवृति के लिए इन | योजनाओं के सभी पहलुओं को भली प्रकार जाँच लेनी चाहिए। निवेश सुरक्षित होने के साथ-साथ कर बचाने वाला होना चाहिए। धन के निवेश का लक्ष्य है अपने धन को शीघ्र व सुरक्षित रूप से बढ़ाना। कितना धन जमा करना है यह उसके सामर्थ्य पर निर्भर करता है। धन का विनियोग सोने आदि में खतरनाक हो सकता है यदि उन्हें सुरक्षित न रखा जाए। बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव के कारण शेयर में भी धन लगाना काफी जोखिमपूर्ण हो सकता है। विभिन्न वित्तीय संस्थान भिन्न-भिन्न ब्याज देते हैं। अतः इन सभी ब्याज दरों को अच्छी तरह अध्ययन करके ही उच्च ब्याज दर प्राप्त करें। अपनी बचत को इस प्रकार निवेश करना चाहिए जिससे आपातकाल में बिना ब्याज खोये धन राशि प्राप्त हो सके। विनियोग कीमतों से क्रयक्षमता भी सुरक्षित होनी चाहिए। निवेश किए हुए धन का मूल्य बढ़ती कीमतों से कम न हो। बचत खातों में लाभांश की दर कम होती है जबकि शेयर, जमीन, यूनिटस आदि का लाभांश बढ़ती हुई महँगाई को देखते हुए अधिक होता है। उपरोक्त विषयों को अच्छी तरह विचार कर ही धन का निवेश करना चाहिए। यदि कोई एक संस्था आपको ये सभी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराती है तो अपने धन को अलग-अलग योजनाओं में अलग-अलग संस्थाओं में निवेश करें। Qचेक कितने प्रकार के होते हैं ? चेक द्वारा भुगतान करने के लाभों का उल्लेख करें। Ans. उपर्युक्त प्रकार के चैकों के अतिरिक्त चेक अन्य कई प्रकार के होते हैं। यथा 1. कोरा चेक ( Blank Cheque) - जिस चेक पर न तो कोई राशि लिखी हो और न राशि की कोई सीमा ही लिखी हो, ऐसे चैक को कोरा चेक कहते हैं। प्राप्तकर्त्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकते हैं। (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्त्ता के हिसाब में हो) । 2. सीमित राशि चेक (Limited Cheque) यदि चेक में कोई राशि न लिखी हो, किन्तु सबसे ऊपर राशि की एक सीमा लिखी हुई हो तो ऐसे चेक को सीमित राशि चैक कहते हैं। प्राप्तकर्त्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकता है (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्त्ता के हिसाब में हो) । 3. पूर्वतिथीय चेक (Antedated Cheque) - यदि किसी चेक पर जारी करने के दिन से पहले की कोई तिथि लिखी हुई हो तो उसे पूर्वतिथीय चेक कहते हैं। बैंक से केवल उन्हीं चैकों का रुपया मिल सकता है जिन पर लिखी गई तिथि को छः मास न बीते हों। 4. निःसार चेक (Stale Cheque) - यदि किसी चेक का रुपया उस पर लिखी हुई तिथि से 6 मास के भीतर न प्राप्त किया जाए वह चेक निःसार अर्थात् बेकार हो जाता है। ऐसे चेक का रुपया नहीं निकलवाया जा सकता है। 5. तिथीय चेक (Postdated Cheque) - यदि किसी पर भविष्य में आने वाली तिथि लिखी।निकलवाया जा सकता। हो तो उसे उत्तरतिथीय चेक कहते हैं। चेक पर जो तिथि लिखी हो, उससे पूर्व उसका रुपया नहीं 6. विकृत चेक (Mutilated Cheques )-कटे-फटे चेक को विकृत चेक कहते हैं। बैंक ऐसे चेक का रुपया नहीं देता। 7. अप्रतिष्ठित चेक (Dishonoured Cheque) जब बैंक किसी चेक का रुपया भुगतान करने से इन्कार करता है तो ऐसे चेक को अप्रतिष्ठित चेक कहते हैं। निम्नलिखित दशाओं में चेक अप्रतिष्ठित हो जाता है (क) यदि चेक जारी करने वाले के हस्ताक्षर बैंक में दिए गए नमूने के हस्ताक्षरों से न मिलते हों।। (ख) यदि चेक जारी करने वाले के खाते में उतना धन न हो जितना कि चेक पर लिखा गया हो। (ग) यदि अंकों और शब्दों में लिखी गई राशियों में अन्तर हो । (घ) यदि चेक निःसार हो गया हो। (ङ) यदि चेक उत्तरतिथीय हो । (च) यदि चेक कटा-फटा हो । (छ) यदि चेक पर बेचान ठीक ढंग से न किया गया हो या बेचान के नीचे हस्ताक्षर उस प्रकार से न किए गए हों जिस प्रकार से चैक पर प्राप्तकर्त्ता का नाम लिखा हो । (ज) यदि चेक जारी करने वाला स्वयं बैंक को रुपया देने से रोक दे । (झ) यदि चेक में किसी शब्द को काटा या बदला गया हो और उस पर चेक जारी करने वाले के पूरे हस्ताक्षर न हों। यदि बैंक किसी चेक को अप्रतिष्ठित करता है तो वह चेक के साथ एक पर्ची (जिस पर चेक' के अप्रतिष्ठित होने के कारण लिखा होता है) लगाकर चेक जमा करने वाले व्यक्ति को लौटा देता है। चेक द्वारा भुगतान करने के लाभ- चेक द्वारा भुगतान करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं 1. चेक द्वारा भुगतान करने से न तो धन की सुरक्षा का भार पड़ता है और न गिनने का कष्ट ही करना पड़ता है। एक चेक पर हस्ताक्षर करके बड़ी से बड़ी राशि का भुगतान किया जा सकता है। 2. समय की बचत होती है। धन गिनने और परखने में समय भी नष्ट नहीं करना पड़ता । 3. मितव्ययिता की आदत पड़ जाती है। नकद रुपया रखने से कई बार अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय हो जाता है। 4. यदि भुगतान आदेशक चेक या रेखण चेक द्वारा किया गया हो तो अलग रसीद प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती। बैंक भुगतान का साक्षी होता है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, भुगतान आदेशक या रेखण चेक द्वारा ही करना चाहिए। 5. दूर-दूर के स्थानों पर भी बहुत ही कम व्यय से चेक द्वारा भुगतान किया जा सकता है। 6. चेक द्वारा भुगतान करना बहुत सुरक्षित है। इससे धन के खोने या चुराए जाने का भय नहीं रहता है। 7. चेक द्वारा भुगतान करने से खोटे रुपयों या जाली नोटों के बनाने वालों को ऐसी मुद्रा चलाने का अवसर नहीं मिलता। चेक भरते समय ध्यान रखने योग्य बातें-चेक भरते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान चेक सदा स्याही से लिखना चाहिए। पैंसिल से भरे हुए चेक को बैंक स्वीकार नहीं करता रखना चाहिए। है लेकिन बाल पाइंट (Ball Point) से लिखे चेक स्वीकार किए जाते हैं। Q. विनियोग के लाभ लिखें। Ans. विनियोग के लाभ (Advantages of Investment) - यदि अनुभवी विनियोगकर्त्ता द्वारा परामर्श लेकर सही योजना में धन का विनियोग किया जाए तो वह बहुत ही लाभकारी होता है। सही योजना में धन का विनियोग करने से व्यक्ति भविष्य के लिए आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाता है। उसे भविष्य के आर्थिक मामलों के लिए चिन्तित नहीं होना पड़ता इसलिए वह वर्तमान में सुख-शांति से रहता है। धन का विनियोजन निरन्तर करते रहने से व्यक्ति को निरन्तर ही कुछ ब्याज तथा मूल राशि इकट्ठी मिलती रहती है जिससे वह अपने जीवन का स्तर समय-समय पर ऊँचा कर सकता है। किसी भी आकस्मिक घटना पर यदि धन की आवश्यकता हो तो वह जमा राशि में से व्यय करके विनियोग किए गए धन का लाभ उठा सकता है। कर की बचत (Tax Saving) धन के विनियोग की अधिकतर योजनाओं द्वारा जमा की गई धनराशि पर कर नहीं लगता। यह राशि आयकर से पूर्ण रूप से मुक्त होती है। उदाहरण के लिए बैंक (Bank), डाकघर के बचत बैंक (Saving Banks of Post Office), कैश सर्टिफिकेट्स (Cash Certificates), जीवन बीमा (Life Insurance), यूनिट्स (Units), भविष्य निधि योजना (Provident Fund), जन-साधारण भविष्य निधि योजना (Public Provident Fund), नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (National Savings Certificate) इत्यादि । विनियोग द्वारा प्राप्त की गई राशि आयकर से मुक्त होने के कारण नौकरी वालों के लिए, व्यापारी वर्ग के लिए तथा जन साधारण के लिए, सभी के लिए उपयुक्त है। Q. जीवन बीमा और यूनिट्स में धन का विनियोग करने के लाभ व हानियों की विवेचना कीजिए। Ans. जीवन बीमा में विनियोग के लाभ (i) बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। (ii) बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हुआ हो तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है जो लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित है। (iii) बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किश्तों में दी जाती है जिससे पूर्ण राशि का एक-साथ अपव्यय न हो। (iv) बीमेदार को यह सुविधा है कि यदि वह अपनी आय का एक विशेष भाग जीवन बीमा के प्रीमियम के रूप में देता है तो उसपर उसे आयकर नहीं देना पड़ेगा। इस योजना में कोई हानि नहीं है। यूनिट्स में विनियोग के लाभ- यूनिट्स, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा चालू किए जाते। हैं। कोई भी व्यक्ति 10 रुपये के मूल्य के कम से कम 100 व अधिक से अधिक अपनी इच्छानुसार खरीद सकता है। वार्षिक लाभ का 90% विनियोगकर्ताओं में विभाजित कर दिया जाता है। इस यूनिट पर मंगाई गई धनराशि व उसके लाभांश पर आयकर की छूट है। यूनिट ट्रस्ट की खराब वित्तीय स्थिति में नियोजक को लाभांश न दिये जाने से हानि हो सकती है। परिपक्वता की अवधि पूरी होने पर भी पैसा मिलने में देरी हो सकती है। यूनिट ट्रस्ट द्वारा पुनः खरीद मूल्य कम करने से भी निवेशक को आर्थिक नुकसान हो सकता है। Q. जीवन बीमा और डाकघर में निवेश करने के लाभ व हानियों का ब्यौरा दें। Ans. जीवन बीमा (Life Insurance ) - जीवन बीमा अनिवार्य बचत करने का एक उत्तम साधन है। इसके अन्तर्गत बीमादार अपनी आय में से कुछ बचत करके अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक धन विनियोजित करता है। अवधि पूरी होने पर बीमादार को जमा धन और उसपर अर्जित बोनस प्राप्त होता है। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि यदि बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो बीमादार द्वारा नामांकित व्यक्ति को बीमे की पूरी राशि बोनस सहित मिल जाती है। इसलिए यह योजना जोखिम (Risk) उठाती है, अनिश्चितता को निश्चितता में बदल देती है। जीवन बीमा के लाभ- बीमादार जीवन बीमा को निम्न लाभों के कारण अपनाता है 1. परिवार संरक्षण (Family Protection) - जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमादार के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। विशेष तौर पर जब बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए। 2. वृद्धवस्था में आर्थिक सहायता हेतु (Economic Help in Old Age) - अवकाश प्राप्ति या वृद्धावस्था में इस योजना से प्राप्त धन का विनियोज l डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving)- बैंक की सुविधा देश के प्रत्येक गांव तक नहीं पहुँची है परन्तु डाकघर की सुविधा देश के प्रत्येक राज्य के गाँव गाँव में होने के कारण डाकघर बचत खाता चालू किया गया। भारत सरकार ने इसके द्वारा बचत की आदत को प्रोत्साहन दिया हैं। दो व्यक्ति परन्तु उनमें से एक बालिग अवश्य संयुक्त रूप से अपना खाता खुलवा सकते हैं। डाकघर बचत खाते का स्थानान्तरण भी करवाया जा सकता है। इस खाते के ब्याज पर आयकर नहीं देना पड़ता है। डाकघर के नियम सम्पूर्ण भारत में एक समान हैं। खाते की न्यूनतम रकम 5 रुपया है। यह कम राशि से खोला जा सकता है। 1. डाकघर में छपे फार्म को भरकर कोई भी व्यक्ति या अधिक व्यक्ति संयुक्त खाता पाँच रुपये जमा कर खोल सकता है। 2. 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए अभिभावक यह खाता खोल सकते है। 3. डाकघर खाते में भी चेक की सुविधा दी जा सकती है। चेक बुक लेते समय जमाकर्त्ता के खाते में कम-से-कम 100 रुपए होने चाहिए तथा कभी भी खाते में 50 रुपये से कम नहीं होने चाहिए। 4. खाता खोलने पर एक पास बुक (Pass Book ) दी जाती है जिसमें जमा की गई तथा निकाली गई राशि का पूरा लेखा होता है। यदि वह पासबुक खो जाती है तो 5 रुपये देकर पूरी पास बुक ली जा सकती है। 5. डाकघर में पैसा चेक, मनीऑर्डर, ड्रॉफ्ट तथा नकद के रूप में जमा करवाया जा सकता है। इस खाते की एक विशेषता यह है कि मुख्य डाकघर के अधीन जिस डाकघर में खाता खोला गया हो उसके अधीन किसी भी डाकघर में पैसा जमा करवाया जा सकता है। यदि किसी उप डाकघर में खाता खोला गया हो तो मुख्य डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है, परन्तु पैसा केवल उसी डाकघर/ उप डाकघर से निकलवाया जा सकता है जहाँ पर खाता खोला गया है। 6. डाकघर खाते में वर्तमान ब्याज की दर 5.5% है। 7. धन निकलवाते समय निश्चित फार्म भरकर पासबुक के साथ डाकघर में दिया जाता है। लिपिक फार्म पर किए गए हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मिलान करने पर राशि का भुगतान करता है। यदि हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न हो तो राशि का भुगतान नहीं किया जाता जब तक कि कोई व्यक्ति जो डाकघर में जमाकर्त्ता को पहचानता हो, गवाही न दे। 8. खाता खोलने के तीन मास बाद यह किसी भी डाकघर में स्थानान्तरिक किया जा सकता है। Q. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार क्या हैं ? लिखिए। Ans. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार 1. मूल आवश्यकताएँ - इसके अन्तर्गत न केवल जीने के लिए बल्कि सभ्य जीवन के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति आती है। ये आवश्यकताएँ हैं भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा आदि। 2. जागरूकता-इस अधिकार के अन्तर्गत चयन के लिए आपको विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी देना। 3. चयन–उपभोक्ताओं को सही चयन करने के लिए उचित गुणवत्ता और अधिक कीमत वाली कई वस्तुओं को दिखाना ताकि वे उनमें से उपयुक्त वस्तु खरीद सकें। 4. सुनवाई - इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को अपने विचार निर्माताओं के समक्ष रखने का अधिकार है। उपभोक्ता की समस्याओं से निर्माताओं को वस्तु निर्माण में उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलती है। 5. स्वस्थ वातावरण-इससे जीवन और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करके जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता। 6. उपभोक्ता शिक्षण - सही चयन के लिए वस्तु/सामग्री और सेवाओं को उचित जानकारी व ज्ञान का अधिकार उपभोक्ता को मिलना चाहिए। 7. क्षतिपूर्ति (Redressal)- इसका अर्थ है कि यदि उचित सामान प्राप्त न हुआ हो तो उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलने का अधिकार। जिस भी उपभोक्ता के साथ अन्याय हुआ हो। वह अधिकारी के पास जाकर उचित क्षतिपूर्ति ले सकता है। Q. उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में उपभोक्ताओं के क्या दायित्व हैं ? Ans. उपभोक्ताओं की समस्याएँ (Problems Faced by Consumers) - उपभोक्ताओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे अस्थिर कीमतें और दुकानदारों के कुचक्र । अतः यह उपभोक्ताओं के हक में है कि वे इन सभी समस्याओं को जानें और ठगे जाने से बचने के लिए इनके निदान भी जानें। उपभोक्ताओं की कुछ समस्याएँ निम्नलिखित हैं 1. कीमतों में अस्थिरता (Variation in Price)- आपने देखा होगा कि कई दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं। ऐसा क्यों है ? ऐसा निम्नलिखित कारणों से हो सकता है (i) दुकानदार अधिक लाभ कमाता है। (ii) यदि वह प्रतिष्ठित दुकानदार है तो दुकान की देख-रेख, सामान के विज्ञापन और खरीद की कीमत को पूरा करता है। (iii) दुकान में कम्प्यूटर, एयरकण्डीशन लगे होने के कारण दुकान की लागत अधिक होती है अतः उपभोक्ता से इन सुविधाओं की कीमत वसूल की जाती है। पहुँचाने की सेवा कई दुकानें विज्ञापन पर बहुत पैसा खर्च करती हैं। घर पर निःशुल्क सामान भी उपभोक्ता से अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराई जाती है। समृद्ध रियायशी क्षेत्रों में बने नये आकार-प्रकारों के बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है। 2. मिलावट (Adulteration) - उपभोक्ताओं के सामने मिलावट की समस्या बहुत गंभीर है। इसका अर्थ है मूल वस्तु की गुणवत्ता, आकार और रचना में से कोई तत्त्व निकाल कर या डालकर परिवर्तन लाना। मिलावट वांछित और प्रासंगिक हो सकती है। क्या आपको स्मरण है इन दोनों में क्या अन्तर है ? प्रासंगिक मिलावट तब होती है जब दुर्घटनावश दो अलग-अलग वस्तुएँ जिनकी गुणवत्ता अलग-अलग है, मिल जायें और वांछित मिलावट वह होती है जब जान-बूझ कर उपभोक्ता को ठगने और अधिक लाभ कमाने के लिए की जाये। 3. अपूर्ण / धोखा देने वाले लेबल (Inadequate/ Misleading Labelling)-प्रतिष्ठित ब्राण्ड की कमियाँ इतनी चतुराई से ढँक दी जाती हैं कि उपभोक्ता असली और नकली लेबल की पहचान नहीं कर पाता। निर्माता निम्न गुणवत्ता वाले सामान को प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। उनमें अन्तर इतना कम होता है कि एक बहुत सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान सकता है। एक लेबल में क्या-क्या जानकारी होनी चाहिए यह आप पहले पढ़ चुके हैं। क्या आपको स्मरण है ? पूर्ण जानकारी और सजगता के लिए उसे फिर से पढ़िये। एक अच्छे लेबल से आपको उस वस्तु की रचना, संरक्षण और प्रयोग की पूर्ण जानकारी मिलनी चाहिए। डिब्बा बन्द वस्तुओं के खराब होने की तिथि से आप उसको सुरक्षा से उपभोग कर सकते हैं। निर्माता वस्तुओं पर उचित प्रयोग के संकेत न देकर उपभोक्ता को ठग लेते हैं। 4. दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना (Customer Persuation by Shopkeepers)— दुकानदार उपभोक्ता को एक खास वस्तु/ब्रांड खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि उस ब्राण्ड पर उन्हें अधिक कमीशन मिलता है। आजकल बाजार में बहुत किस्मों की ब्रेड मिलती है। आपने देखा होगा कि आपके पास का दुकानदार एक खास ब्राण्ड की डबलरोटी ही रखता है। आप जानते हैं—क्यों ? एक जागरूक और समझदार उपभोक्ता को चाहिए कि वह उस दुकानदार को अन्य किस्मों की ब्रेड रखने के लिए प्रेरित करे ताकि आप उसमें से अपनी पसंद की ब्रेड चुन सकें। यदि यह संभव न हो तो आपको किसी अन्य दुकान या दुकानदार के पास जाना चाहिए। 5. भ्रामक विज्ञापन (False Advertisement ) उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की सहायता ली जाती है। उपभोक्ता को प्रेरित करने के लिए विज्ञापन एक बहुत ही सबल माध्यम है। वस्तु का विज्ञापन इतनी चतुराई से किया जाता है कि उपभोक्ता उसे खरीदने के लिए तत्पर हो जाता है। चॉकलेट, चिप्स, ठंडे पेय, जूस, जीन्स, टूथपेस्ट तथा अन्य साज-सज्जा के सामान और स्कूटर, गाड़ियाँ इत्यादि से संबंधित विज्ञापन से अधिकतर किशोर उपभोक्ता आकर्षित हो जाते हैं। जब कोई वस्तु विज्ञापित से खरी नहीं उतरती तो उपभोक्ता निराश हो जाते हैं। 6. विलम्बित / अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ (Delayed and Inadequate Consumer Services) उपभोक्ता सेवाएँ जैसे स्वास्थ्य, पानी, बिजली, डाक व तार की सुविधा बहुत से घरों में दी जाती है। इन सेवाओं की दोषपूर्ण देख-रेख के कारण ये सेवायें उपभोक्ताओं को असुविधा देती है। उदाहरण- इन सेवाओं से जुड़े कार्यकर्ता जब ठीक से ये सुविधायें उपलब्ध न करा सकें तो उपभोक्ता झुंझला जाते हैं। उपभोक्ता के दायित्व (Responsibilities of the Consumer) - उपभोक्ता के लिए अपने अधिकारों और दायित्वों के प्रति जागरूक होना अत्यन्त आवश्यक है। उपभोक्ता के निम्नलिखित दायित्व हैं- (i) कुछ भी खरीदने या उपयोग करने से पहले उपभोक्ता का दायित्व है कि वह सही जानकारी प्राप्त करे। (ii) उपभोक्ता को सही चयन करना चाहिए। सही चयन का दायित्व उपभोक्ता पर ही होता है। (iii) केवल वही वस्तु खरीदें जिसकी गुणवत्ता पर विश्वास हो । (iv) यदि असन्तुष्ट हों तो उपभोक्त अदालत में जाएँ और क्षतिपूर्ति प्राप्त करें। Q. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की मुख्य विशेषताएँ समझाइए । Ans. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ (The Salient Features of Consumer Protection Act) (a) कानून का उपयोजन (Application of the Law) - यह अधिनियम वस्तु और सेवाओं दोनों पर लागू होता है। वस्तु वह होती है जिसका निर्माण होता है, उत्पादन होता है और जो उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा बेची जाती है। सेवाओं के अन्तर्गत यातायात, टेलीफोन, बिजली, सड़कें और सीवर आदि आती हैं। ये अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं। (b) क्षतिपूर्ति तंत्र तथा उपभोक्ता मंच (Redressal Machinary and Consumer Forum) - वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध परिवेदना निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक कल्प की स्थापना की गई है। इस तंत्र के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर उपभोक्ता मंच बनाये गए हैं। ये मंच उपभोक्ताओं के हित की रक्षा तथा उनके संरक्षण का कार्य करते हैं। अनुदान की राशि को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों के न्यायिक कल्प तंत्र के समीप जाया जा सकता है। अधिष्ठाता सेवानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता सेनानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता के अतिरिक्त केवल एक समाज सेविका तथा एक शिक्षा/व्यापार आदि के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति ही होता है। राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार एक महिला समाज सेविका, एक अधिष्ठाता सहित चार सदस्यों को नियुक्त करती है। (c) शीघ्र निवारण (Expeditious Disposal) उपभोक्ताओं को न्याय के लिये अधिक इंतजार न करना पड़े इसके लिये इस अधिनियम के अन्दर सभी मामले का नब्बे दिन के अन्दर निवारण करने की व्यवस्था की गई है। इससे उपभोक्ताओं को संतोषजनक न्याय के लिए अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। (d) सलाहकार समितियाँ (Advisory Bodies) परिवेदना निवारण सलाहकार निगम जैसे उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद् की राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना की गई है। ये परिषदें उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। उपभोक्ता प्रशिक्षण तथा अनुसंधान केन्द्र (CERC) उपभोक्ताओं को विज्ञापन से प्रेरित करता है। Q. उपभोक्ता शिक्षा के क्या लाभ हैं ? संक्षेप में वर्णन करें। Ans. उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकार से परिचित हो ताकि वह अपने द्वारा व्यय किये जाने वाले धन का सदुपयोग कर सके। उसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु खरीदने से पहले ही उसे वस्तु की जानकारी हो जिससे विक्रेता या उत्पादक उसे धोखा न दे सके। यह जानकारी वह निम्नलिखित माध्यमों द्वारा प्राप्त कर सकता है 1. लेबल - इसके द्वारा उपभोक्ता को यह पता चलता है कि बन्द पात्र के अंदर कौन-सी वस्तु है और वह कितनी उपयोगी है। भारतीय मानक ब्यूरो ने अच्छे लेबल के निम्नलिखित गुण निर्धारित किये हैं- (i) पदार्थ का नाम (ii) ब्रॉण्ड का नाम (iii) पदार्थ का भार (iv) पदार्थ का मूल्य (v) पदार्थ को बनाने में प्रयोग किये गये खाद्य पदार्थों की सूची (vi) बैच या कोड नं. (vii) निर्माता का नाम और पता (viii) स्तर नियंत्रक संस्थान का नाम आदि। 2. प्रमाणन स्तर प्रमाणन चिह्न हमें किसी वस्तु के स्तर की जानकारी देती है। जब उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदता है तो उसका स्तर वैसा ही मिलता है। उसकी कहीं भी जाँच की जा सकती है। मानकीकरण का कार्य वस्तुओं की संरचना, उसके संपूर्ण विश्लेषण तथा सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है। 3. विज्ञापन- इसके द्वारा उपभोक्ता अनेक पदार्थों एवं सेवाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। टेलीविजन, रेडियो, पत्रिकाओं, समाचार-पत्र


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शिक्षा : जे. कृष्णमूर्ति लघु उत्तरीय प्रश्न 1. जीवन में विद्रोह का क्या स्थान है? 2. जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शिक्षा का क्या अर्थ है? इसके कार्य एवं उपयोगिता को स्पष्ट करें। 2. 'शिक्षा' पाठ का सारांश लिखें। सप्रसंग व्याख्यात्मक प्रश्न 1. 'आप उस समय महत्त्वाकांक्षी रहते हैं जब आप सहज प्रेम से कोई कार्य सिर्फ कार्य के लिए करते हैं।" 2. 'हम नूतन विश्व के निर्माण करने की आवश्यकता महसूस करते हैं....हम में से प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतया मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति में होता है। Answer. लघु उत्तरीय प्रश्न 1. जीवन में विद्रोह से कुरुपता को हम दूर कर सकेंगे। जीवन के ऐश्वर्य, इसकी अनन्त गहराई और इसके अद्भूत सौन्दर्य की धन्यता तभी महसूस करेंगे, जब प्रत्येक वस्तु के खिलाफ विद्रोह करेंगे। हमें संगठित धर्म के खिलाफ, सड़ी-गली परम्परा के खिलाफ और इस सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह करना ही होगा तभी हम अपने लिए उचित एवं अपेक्षित सत्य की खोज कर सकेंगे। विद्रोही ही अनुकरण से बचकर नवीन मार्ग का सृजन कर सकता है। हमें वैसा जीवन नहीं चाहिए, जिसमें केवल भय, हास और मृत्यु हो । समाज में थोड़े से ही जीवन विद्रोही होते हैं। विद्रोही खोजते हैं— सत्य क्या है? सत्य की खोज के लिए परम्पराओं से मुक्ति आवश्यक है. जिसका अर्थ है समस्त भयों से मुक्ति । 2. मेधा स्वतंत्र वातावरण में ही पैदा होती है। हमारा विकास अक्सर भयाक्रांत वातावरण में ही होता रहता है। नौकरी छूटने का भय, परीक्षा में फेल होने का भय, परम्परा टूटने का भय और अंत में मृत्यु का भय। अधिकांश व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में भयभीत है। जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। जहाँ भय है, वहाँ जीवन का ह्रास है, मृत्यु है। हमें अपनी जिन्दगी में सत्य की खोज करनी पड़ती है, यह तभी संभव है जब स्वतंत्रता हो, अन्तरतम में क्रांति की भावना बलवती होती रहे। शिक्षा ही हमें भयमुक्त एवं मेधावान बना सकती है। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. शिक्षा का कार्य है कि वह सम्पूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी सहायता करे, न कि हमें केवल कुछ व्यवसाय या ऊँची नौकरी के योग्य बनाए। शिक्षा का प्रमुख कार्य है कि वह उस मेधा का उद्घाटन करे जिससे हम जीवन की समस्त समस्याओं का हल खोज सकें। हमें सत्य और वास्तविकता की खोज करने में सक्षम बनाए। हमें भयरहित बनाए । भय रहने पर मेधा विकसित नहीं हो पाती। शिक्षा का कार्य है कि वह आंतरिक और बाह्य भय का उच्छेदन करे। शिक्षा का उद्देश्य/अर्थ है-व्यक्तित्व का उन्नयन करना। शिक्षा का अर्थ में सामंजस्य लाना। शिक्षा का अर्थ है-बालक का मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक आध्यात्मिक विकास करना । 2. "जे. कृष्णमूर्ति बीसवीं शती के महान् जीवनद्रष्टा, दार्शनिक, शिक्षामनीषी एवं संत थे। वे एक सार्वभौम तत्त्ववेत्ता और परम स्वाधीन आत्मविद थे। वे भारत के प्राचीन स्वाधीनचेता ऋषियों की परम्परा की एक आधुनिक कड़ी थे, जिनमें भारतीय प्रज्ञा और विवेक परंपरा नवीन विश्वबोध बनकर साकार हुई थी। " शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के व्यवहार का उन्नयन करना है। शिक्षा सामंजस्य सिखलाती है। शिक्षा व्यवहार में सुधार लाती है। शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए होती है। केवल उद्योग या कोई व्यवसाय करना ही शिक्षा या जीवन नहीं है। जीवन बड़ा अद्भूत है, यह असीम और अगाध है, यह अनंत रहस्यों को लिए हुए है, यह एक विशाल साम्राज्य है जहाँ हम मानव कर्म करते हैं और यदि हम अपने आपको केवल आजीविका के लिए तैयार करते हैं तो हम जीवन का पूरा लक्ष्य ही खो देते हैं। कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेने और गणित, रसायनशास्त्र अथवा अन्य किसी विषय में प्रवीणता प्राप्त कर लेने की अपेक्षा जीवन को समझना कहीं ज्यादा कठिन है। शिक्षा का कार्य है कि वह संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी सहायता करे; न कि केवल कुछ व्यवसाय या नौकरी के योग्य बनाए । शिक्षा व्यर्थ साबित होगी, यदि वह इस विशाल और विस्तीर्ण जीवन को, इसके समस्त रहस्यों को, इसकी अद्भूत रमणीयताओं को, इसके दुःखों और हर्षों को समझने में सहायता न करे। शिक्षा का कार्य है कि हम हममें उस मेधा का उद्घाटन करे जिससे हम इन समस्त समस्याओं का हल खोज सकें। शिक्षा मौलिक सोच विकसित करती है। अनुकरण शिक्षा नहीं है। जिंदगी का अर्थ है, अपने लिए सत्य की खोज और यह तभी संभव है, जब स्वतंत्रता हो, जब अंतर में सतत् क्रांति की ज्वाला प्रकाशमान हो । एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत परिश्रम से ही कोई बड़ा कार्य संपन्न होता है। शिक्षा का कार्य क्या है? क्या वह इस सड़े हुए समाज को ढाँचे के अनुकूल बनाने में हमारी सहायता करे या हमें स्वतंत्रता दे। शिक्षा का यह कार्य है कि वह आंतरिक और बाह्य भय का उच्छेदन करे यह भय जो मानव के विचारों को, उसके संबंधों और उसके प्रेम को, नष्ट कर देता है। जब हम स्वयं महत्त्वाकांक्षी नहीं हैं, परिग्रही नहीं हैं एवं अपनी ही सुरक्षा से चिपके हुए नहीं है— तभी सांसारिक चुनौतियों का प्रत्युत्तर दे सकेंगे। तभी हम नूतन विश्व का निर्माण कर सकेंगे। क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना-ये तीनों पृथक्-पृथक् प्रक्रियाएँ नहीं है। तब हम अपनी पूरी शक्ति के साथ एक नूतन विश्व के निर्माण करने की आवश्यकता महसूस करते हैं। जब इनमें से प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतया मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति में होता है, तब हम अवश्य अपना हृदय अपना मन और अपना समस्त जीवन इस प्रकार के विद्यालयों के निर्माण में लगा देते हैं, जहाँ न तो भय हो, और न तो उससे लगाव फँसाव हो । बहुत थोड़े व्यक्ति ही वास्तव में क्रांति के जनक होते हैं। वे खोजते हैं कि सत्य क्या है और उस सत्य के अनुसार आचरण करते हैं, परन्तु सत्य की खोज के लिए परंपराओं से मुक्ति तो आवश्यक है, जिसका अर्थ है समस्त भयों से मुक्ति । सप्रसंग व्याख्यात्मक प्रश्न 1. प्रस्तुत उद्धरण हमारी पाठ्य पुस्तक 'दिगंत' (भाग-2) के 'शिक्षा' शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इस पाठ के रचयिता जे० कृष्णमूर्ति हैं। वे एक महान शिक्षाविद् हैं महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को क्रूर बना देती है। लेकिन सहज प्रेम से कोई कार्य सिर्फ कार्य के लिए करते हैं, तो क्रूरता नहीं रहती है। शिक्षा हमें अपना कार्य प्रेम से सम्पन करने की प्रेरणा देती है। नूतन समाज के निर्माण के लिए प्रेम से काम करना होगा। 2. प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत' (भाग-दो) के 'शिक्षा' शीर्षक निबंध से उदृधृत हैं। इसके लेखक शिक्षाविद् जे० कृष्णमूर्ति हैं। वे प्रेरणा देते हैं—हमें शिक्षित होकर नूतन विश्व का निर्माण करना है। नूतन विश्व का निर्माण मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति से आप्लावित मानस द्वारा ही सम्भव हो सकता है। मानस सबकुछ बदल देने के लिए तैयार हो। आध्यात्मिक चेतना मनुष्य के अन्दर उमड़ती-घुमड़ती रहनी चाहिए। ईश्वरीयभाव, प्रेम का भाव और मानसिक तत्परता होनी चाहिए। तभी शिक्षा भी सही कही जाएगी। प्रश्न . शिक्षा का क्या अर्थ है एवं इसके क्या कार्य हैं ? स्पष्ट करें। उत्तर -मानव जीवन के सर्वांगीण विकास का अर्थ शिक्षा है। इसमें मनुष्य की साक्षरता बुद्धिमत्ता, जीवन-कौशल व अन्य सभी समाजोपयोगी गुण पाये जाते हैं। शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थी का विद्यालय जाना, विविध विषयों की पढ़ाई करना, परीक्षाएँ उत्तीर्ण होना, जीवन में ऊँचा स्थान प्राप्त करना, दूसरों से स्पर्धा करना, संघर्ष करना एवं जीवन के सर्व पहलुओं का समुचित अध्ययन करना-ये सारी चीजें शिक्षा के अन्तर्गत आती हैं। साथ ही जीवन को ही समझना शिक्षा है। शिक्षा के कार्य-शिक्षा का कार्य केवल मात्र कुछ नौकरियों और व्यवसायों के योग्य बनाना ही नहीं है बल्कि संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया बाल्यकाल से ही समझाने में सहयोग करना है एवं स्वतंत्रतापूर्ण परिवेश हेतु प्रेरित करना भी। प्रश्न . जीवन क्या ? इसका परिचय लेखक ने किस रूप में दिया है ? उत्तर - लेखक जे० कृष्णमूर्ति ने जीवन के व्यापक स्वरूप को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। जीवन बड़ा अद्भुत, असीम और अगाध तत्व है। जीवन अनंत रहस्यों से युक्त एक विशाल साम्राज्य है, जिसमें मानव कर्म करते हैं। जीवन समुदायों, जातियों और देशों का पारस्परिक संघर्ष है। जीवन ध्यान है, जीवन धर्म है, जीवन गूढ़ है, जीवन विराट है, जीवन सुख-दुख और भय से युक्त होते हुये भी आनंदमय है। जीवन का परिचय देते हुए लेखक का मानना है कि इसमें अनेक विविधताओं, अनंतताओं के साथ रहस्य अनेकों भी मौजूद हैं। यह कितना विलक्षण है। प्रकृति में उपस्थित पक्षीगण, फूल, वैभवशाली वृक्षों, सरिताओं, आसमान के तारों में भी लेखक को जीवन का रूप दिखाई पड़ता है। लेखक जे० कृष्णमूर्ति ने जीवन का परिचय सर्वरूपों में दिया है। प्रश्न . 'बचपन से ही आपका ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो।' क्यों ? उत्तर- बचपन से ही स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण में रहना आवश्यक है जहाँ भय की गुंजाइश नहीं हो। मनचाहे कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं बल्कि ऐसा वातावरण जहाँ स्वतंत्रतापूर्वक जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया समझी जा सके। जिससे सच्चे जीवन का विकास संभव हो पाये। क्योंकि भयपूर्ण वातावरण मनुष्य का ह्रास कर सकता है विकास नहीं। इसलिए लेखक जे० कृष्णमूर्ति का यह सत्य और सार्थक कथन है कि बचपन से ही आपका ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। Q.नूतन विश्व का निर्माण कैसे हो सकता है ? उत्तर- समाज में सर्वत्र भय का संचार है, लोग एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या-द्वेष से भरे हुए हैं। इस स्थिति से दूर पूर्ण स्वतंत्र, निर्भयतापूर्ण वातावरण बनाकर एक भिन्न समाज का निर्माण कर हम नूतन विश्व का निर्माण कर सकते हैं। हमें स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण तैयार करना होगा जिसमें व्यक्ति अपने लिए सत्य की खोज कर सके, मेधावी बन सके। क्योंकि सत्य की खोज तो केवल वे ही कर सकते हैं जो सतत इस विद्रोह की अवस्था में रह सकते हैं, वे नहीं, , जो परंपराओं को स्वीकार करते हैं और उनका अनुकरण करते हैं। हमें सत्य, परमात्मा अथवा प्रेम तभी उपलब्ध हो सकते हैं जब हम अविच्छिन्न खोज करते हैं, सतत् निरीक्षण करते हैं और निरंतर सीखते हैं। इस तरह हमारे समाज में न ईर्ष्या-द्वेष और न भय का वातावरण रहेगा, मेधाशक्ति का पूर्ण उपयोग हो। स्वतंत्रतापूर्ण व्यक्ति जीवन जिएगा तो निसंदेह ही नूतन विश्व का निर्माण होगा।


बादलों को अनंत के घन क्यों कहा गया?

मित्र कवि ने बादल को अनंत घन इसलिए कहा है ,क्योंकि बादलों का कभी अंत नहीं होता है। वे निरंतर बनते रहते हैं।

उत्साह कविता में निराला जी ने बादलों से कवि की तुलना क्यों की ै?

वे लोगों मे उत्साह बढ़ाकर क्रांति के द्वारा परिवर्तन लाने की बात कहते हैं। साथ ही प्यासे-शोषित-पीड़ित जन की आकाक्षाएँ पूरी करने की बात करते हैं। कवि का मानना है कि किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए कोमलता नहीं कठोरता की आवश्यकता होती है। इसलिए कवि बादलों को बरसने के स्थान पर गरजने का आह्वान कर रहे हैं।

उत्साह कविता के आधार पर बताइए कि बादलों में वज्र छिपा होने से कवि का क्या आशय है?

कवि बादल को संपूर्ण आकाश को घेर लेने के लिए इसलिए कहता है ताकि वे मृतप्राय पड़ी संपूर्ण सृष्टि में एक साथ जीवन का संचार कर सकें।

कविवर निराला ने बादलों को बाल कल्पना के से पाले और काले घुघराले क्यों कहा है?

Answer: बादलों की तुलना बाल कल्पना से इसलिए की गई है क्योंकि बच्चों की कल्पनाएँ मधुर होती हैं तथा बदलती रहती हैं। Explanation: कवि समाज में क्रांति एवं उत्साह की भावना का संचार कर, नवजीवन व परिवर्तन लाना चाहता है।