बस्तर के जनजाति आंदोलन पर प्रकाश डालिए - bastar ke janajaati aandolan par prakaash daalie

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अंग्रेज सरकार आखिर तक नहीं पता लगा सकी यह जादुई योद्धा था कौन

रायपुर। आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासी योद्धाओं का अहम रोल रहा। ऐसे ही एक आदिवासी नायक हुए थे- गुंडाधूर। 1910 में बस्तर में हुए भूमकाल आंदोलन के नेताओं में गुंडाधूर ही एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिसे अंग्रेजी सरकार जिंदा या मुर्दा पकड़ने में नाकामयाब रही। गुंडाधूर के बारे में अंग्रेजों की फाइल को इस टिप्पणी के साथ बंद कर दिया गया कि 'कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था’। बस्तर में गुंडाधूर के बारे में अब भी किवंदती प्रचलित हैं कि उसके पास चमत्कारिक शक्तियां थीं, वह मंत्र से अंग्रेजों की गोलियों को पानी बना देता था। 'सुपरहीरो' जैसी इमेज वाले इस महान आदिवासी देशभक्त को 'बस्तर का रॉबिनहुड' भी कहा जाता है।

भूमकाल विद्रोह

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किए गए नौ विद्रोहों कुचले जाने से आदिवासी जनता बहुत गुस्से में थी। ऐसे ही समय 1891 में अंग्रेज शासन ने बस्तर का प्रशासन पूरी तरह अपने हाथ में लेते हुए तत्कालीन राजा रूद्र प्रताप देव के चाचा लाल कालेन्द्र सिंह को दीवान के पद से हटाकर पंडा बैजनाथ को बस्तर का प्रशासक नियुक्त कर दिया। लोकप्रिय दीवान कालेन्द्र सिंह को पद से हटाया जाना आदिवासियों को नागवार गुजरा।

दूसरी तरफ, पंडा बैजनाथ के बनाए गए मास्टर प्लान के मुताबिक जगदलपुर का विकास करने के दौरान आदिवासियों पर अंग्रेजों ने जमकर जुल्म ढाए। अनिवार्य शिक्षा के नाम पर आदिवासियों के बच्‍चों को जबरन स्कूल में लाया जाना, सुरक्षित जंगल के नियम के तहत आदिवासियों को उनके ही जल-जंगल-जमीन से दूर किया जाना जैसे जुल्म और विरोध करने पर बेदम पिटाई व जेल में डाल देना, अंग्रेजों की ये नीतियां आदिवासियों को नागवार गुजरी।

अंग्रेजों के खिलाफ इसी आक्रोश को आग को हवा देते हुए लाल कालेन्द्र सिंह ने मुरिया, मारिया और धुरवा आदिवासियों को सीधी लड़ाई के लिए तैयार किया और मारिया जनजाति के नेता बीरसिंह बेदार और धुरवा जनजाति के नेता गुंडाधुर को विद्रोह का नेतृत्व सौंप दिया। बाहरियों के खिलाफ मूलवासियों का यही विद्रोह इतिहास में भूमकाल आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

‘गुंडाधूर अंग्रेजों की गोली को पानी बना देगा’
बेहद प्रभावशाली शख्सियत वाले गुंडाधुर ने आदिवासियों को संगठित करना शुरू कर दिया। गुंडाधूर ने इस क्रांति का प्रतीक आम की डाल पर लाल मिर्च को बांध कर तैयार किए गए ‘डारा मिरी’ को बनाया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक क्रांति के प्रतीक के रूप में गुंडाधूर की कटार को पूरे बस्तर में घुमाया गया। जहां वह कटार जाता था जन समूह गूंडाधूर के समर्थन में जुट जाता था।

अद्भुत संगठन क्षमता वाले गुंडाधूर ने पूरी बस्तर रियासत की यात्रा की। यह नायक जहां जाता उसका स्वागत किसी देवदूत के आगमन जैसा होता। वह बिना थके अपना काम करता रहा, किसी ने उसके तेजस्वी चेहरे पर थकान नहीं देखी। उसकी कीर्ति ऐसी फैली कि उसके बारे में कई अविश्वसनीय किवंदतियां चल पड़ीं, जैसे- गुंडाधूर को उड़ने की शक्ति प्राप्त है; गुण्डाधुर के पास पूंछ है; वह जादुई शक्तियों का स्वामी है; जब अंग्रेज बंदूक चलाएंगे तो गुंडाधूर अपने मंत्र से गोली को पानी बना देगा।

75 दिनों का खूनी संघर्ष
25 जनवरी को यह तय हुआ कि विद्रोह करना है और 2 फरवरी 1910 को पुसपाल बाजार की लूट से विद्रोह शुरू हो गया। इस प्रकार मात्र आठ दिनों में गुंडाधूर और उसके साथियों ने इतना बड़ा संघर्ष करके मानो चमत्कार ही कर दिखाया। 7 फरवरी को बस्तर के तत्कालीन राजा रुद्र प्रताप देव ने सेंट्रल प्राविंस के चीफ कमिश्नर को तार भेजकर विद्रोह की जानकारी दी और तत्काल सहायता की मांग की। विद्रोह इतना ताकतवर था कि था कि सेंट्रल प्रोविन्स के 200 सिपाही, मद्रास प्रेसिडेंसी के 150 सिपाही, पंजाब बटालियन के 170 सिपाही भेजे गए। 16 फरवरी से तीन मई 1910 तक ये टुकड़ियां विद्रोह के दमन में लगी रहीं। 75 दिनों तक बस्तर के विद्रोहियों और आम आदिवासियों पर कहर बरपाया गया। नेतानार के आसपास के 65 गांवों से आये बलाइयों के शिविर को 26 फरवरी को अहले सुबह घेरकर 511 आदिवासियों को पकड़ लिया गया। नेतानार के पास अलनार के जंगल में हुए 26 मार्च के संघर्ष में 21 आदिवासी मारे गये। यहां आदिवासियों ने अंग्रेजी टुकड़ी पर इतने तीर चलाए कि सुबह तीर ही तीर नजर आ रहे थे।

और गायब हो गया गुंडाधूर
अलनार की इस लड़ाई के दौरान ही आदिवासियों ने अपने जननायक गुंडाधूर को युद्ध क्षेत्र से हटा दिया, जिससे वह जीवित रह सके और भविष्य में पुन: विद्रोह का संगठन कर सके। ऐतिहासिक सबूत मिलते हैं कि 1912 के आसपास फिर लोगों को सांकेतिक भाषा में संघर्ष के लिए तैयार करने की कोशिश की गई थी।

गौरतलब है कि 1910 के विद्रोही नेताओं में गुंडाधूर ही न तो मारा जा सका और न अंग्रेजों की पकड़ में आया। गुंडाधुर के बारे में अंग्रेज सरकार की फाइल इस टिप्पणी के साथ बंद हो गई, "कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था? कुछ के अनुसार पुचल परजा और कुछ के अनुसार कालेन्द्र सिंह ही गुंडाधुर थे। बस्तर का यह जननायक अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण इतिहास में सदैव महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता रहेगा।"

आगे की स्लाइड्स पर पढ़ें:- जब गुंडाधूर ने शेरनी बनी अपनी ही मां को मार डाला

बस्तर आंदोलन में प्रमुख भूमिका किसकी थी?

Bastar Bhumkal Andolan आजादी के गुमनाम नायकों में से एक रहे बस्तर के गुंडाधुर ने आदिवासियों की धरती को बचाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध 'भूमकाल' आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजों द्वारा तमाम छल-बल अपनाने के बावजूद वे कभी पकड़े नहीं गए।

बस्तर आंदोलन कब हुआ?

उन्होंने बताया कि बस्तर जिले के नेतानार गांव में पले बढ़े गुंडाधुर ने आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 10 फरवरी सन 1910 में भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी.

बस्तर आंदोलन के नेता कौन थे?

बस्तर का इतिहास आज भी इतिहास के पन्नों से ज्यादा लोककथाओं, लोकगीतों और जनश्रुतियों में संकलित और जीवित है. शहीद गुंडाधुर को विद्रोहियों का सर्वमान्य नेता माना जाता है.

बस्तर के लोगों के विद्रोह का क्या कारण था?

विद्रोह के पीछे मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की मानसिकता थी जिसने स्थानीय लोगों को वश में करने और उनकी संपत्ति लेने के द्वारा उनके जीवन के तरीके को नष्ट करने की कोशिश की। बाज़ारों में तोड़फोड़ की गई, अधिकारियों के घरों, पुलिस स्टेशनों और स्कूलों को नष्ट कर दिया गया।