बिरजू की मां बैठी मन ही मन क्यों कुढ़ रही थी? - birajoo kee maan baithee man hee man kyon kudh rahee thee?

3 बिरजू की माँ बैठी मन ही मन क्यों कुढ़ रही थी ?`?

बिरजू की माँ सब्र खो रही है उसकी प्रतीक्षा की मनःस्थिति अब क्रोध और खीझ में बदल रही है। अनावश्यक विंलब होने के कारण वह बैठी मन ही मन कुढ़ रही थी। वह सहुआइन के यहाँ गुड़ लेने गई और वहाँ से लौटी अपनी बेटी चंपिया पर यूँ ही बिगड़ने लगती है। मखनी फुआ की पुकारभरी आवाज़ पर वह झल्लाकर उसे भला-बुरा कह बैठती है।

बिरजू की मां की कौन सी इच्छा थी?

आय-आय!' बिरजू ने लेटे-ही-लेटे बागड़ को एक डंडा लगा दिया। बिरजू की माँ की इच्छा हुई कि जा कर उसी डंडे से बिरजू का भूत भगा दे, किंतु नीम के पास खड़ी पनभरनियों की खिलखिलाहट सुन कर रुक गई। बोली, 'ठहर, तेरे बप्पा ने बड़ा हथछुट्टा बना दिया है तुझे!

क चार मन पाट जूट का पैसा क्या हुआ है धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते?

चार मन पाट(जूट)का पैसा क्या हुआ है, धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते! निसाफ करो! खुद अपने मुँह से आठ दिन पहले से ही गाँव की गली-गली में बोलती फिरी है, 'हाँ, इस बार बिरजू के बप्पा ने कहा है, बैलगाड़ी पर बिठा कर बलरामपुर का नाच दिखा लाऊँगा। बैल अब अपने घर है, तो हजार गाड़ी मँगनी मिल जाएँगी।

लाल पान की बेगम का अर्थ क्या होता है?

वह बालों में गरी का तेल डालती है। उसकी अपनी जमीन है।... तीन बीघे में धान लगा हुआ है, अगहनी...” ये सारी चीजें गाँव की औरतों को ऐसी प्रतीत होती हैं, मानो वह कोई सामान्य स्त्री न होकर 'लाल पान की बेगम' हो। सभी की निगाह और केन्द्र में रहने वाली स्त्री को रानी या बेगम ही कहते हैं।