बाल्यावस्था में शारीरिक विकास कैसे होता है? - baalyaavastha mein shaareerik vikaas kaise hota hai?

बालक का शारीरिक विकास

बालक का शारीरिक विकास गर्भावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक होता है। गर्भावस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में होता है।

  1. बीजावस्था
  2. भ्रूणावस्था
  3. गर्भस्थ शिशुकाल

गर्भाधान के फलस्वरूप जीव की रचना होती है। भ्रूणावस्था की अवधि गर्भाधान के दो सप्ताह से दश सप्ताह तक होती है। इस अवधि में बालक का आकार 2 इंच लंबा और वजन 3/2 औस के बराबर होता है। बालक के सम्पूर्ण शारीरिक विकास के अंतर्गत बालक के अंगो में अभिवृद्धि आकार परिवर्तन और परिपक्वता को सम्मलित किया जाता है। जो विकास के अन्य पहलुओं को भी प्रभावित करता है। शारीरिक विकास के फलस्वरूप बालकों के नाड़ी संस्थान तथा मस्तिष्क का विकास होता है।

शारीरिक विकास की प्रक्रिया जन्म से प्रारम्भ होकर मृत्यु तक चलती है। प्रारम्भ में इसकी गति तीव्र होती है बाद में धीमी हो जाती है।

कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

सोरेन्सन के अनुसार, “नवजात शिशु का शरीर तब तक अभिवृद्धि तथा विकास करता है जब तक यह एक वयस्क शरीर नहीं हो जाता है।”

अरस्तू के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।”

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, “बालक सर्वप्रथम शरीरधारी प्राणी है। उसकी शारीरिक रचना उसके व्यवहार और दृष्टिकोणों के विकास का आधार है।”

कोल एवं मार्गन के अनुसार, “विकास ही परिवर्तनों का आधार है। यदि बालक का शारीरिक विकास नहीं होता तो वह कभी भी प्रौढ़ नहीं हो सकता।”

शैशवावस्था में शारीरिक विकास

शिशु का शारीरिक विकास जन्म से पूर्व गर्भावस्था से आरम्भ हो जाता है। इस समय माता के स्वस्थ एवं खान – पान का प्रभाव शिशु पर पड़ता है। शारीरिक विकास की गति प्रथम तीन वर्षों में बहुत तेज होता है। इस काल में शिशु का शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है –

आकार

जन्म के समय बालक की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है। प्रायः बालक बालिका से आधा इंच लम्बा होता है। प्रथम वर्ष में शिशु की लम्बाई 27 या 28 इंच तथा दूसरे वर्ष में 31 या 33 इंच और 6 वर्ष के बाद लगभग 40 या 44 इंच हो जाती है।

भार

जन्म के समय बालक का भार बालिका से अधिक होता है। नवजात शिशु का भार 6 से 8 पौंड तक होता है। बालक का भार 7.15 पौंड और बालिका का भार 7.13 पौंड होता है। 6 माह में शिशु का भार दुगुना और 1 वर्ष में शिशु का तीन गुना हो जाता है। तीन वर्ष में 20 या 25 पौंड (लगभग 8 या 10 किलो) और 6 वर्ष में 40 पौंड हो जाता है।

मांसपेशियाँ 

जन्म के समय बालक की मांसपेशियाँ शरीर के कुल भार का 23% होता है। धीरे – धीरे यह भार बढ़ता है। 2 वर्ष में भुजाए दो गुना और टांगे लगभग डेढ़ गुनी हो जाती हैं। 6 वर्ष की आयु तक उनकी मांस में नमनीयता होता है।

हड्डियाँ

नवजात शिशु की हड्डियाँ कोमल एवं लचीली होती है। हड्डियों की संख्या लगभग 305 होती हैं। हड्डियाँ कैल्शियम फास्फोरस तथा अन्य खनिज पदार्थों की सहायता से मजबूत होती हैं इसे अस्थिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। बालक की अपेक्षा बालिका का अस्थिकरण जल्दी होता है। बाद में कुछ हड्डियाँ लुप्त हो जातीं हैं या दूसरी हड्डियों से जुड़ जाती हैं। इसलिए बाद में हड्डियों की संख्या घटकर लगभग 206 हो जाती हैं।

दाँत

जन्म के समय शिशु के दाँत नहीं होते है। लगभग 6 या 7 महीने में दाँत निकलना आरम्भ हो जाता है ये अस्थायी दाँत होते हैं इनको दूध का दाँत कहा जाता है। 1 वर्ष की आयु तक इनकी संख्या 8 हो जाती है। 4 वर्ष तक दूध के सभी दाँत गिरने लगते हैं। और 5 वें व 6 वें वर्ष की आयु से स्थायी दाँत निकलने लगते हैं।

सिर व मस्तिष्क

नवजात शिशु का सिर शरीर की अपेक्षा बड़ा होता है। सिर का आकार उसकी लंबाई का 22% या ¼ होता है जिसके कारण वह संतुलन नहीं कर पाता है। प्रथम दो वर्षो में सिर तेजी से बढ़ता है उसके बाद विकास की गति बहुत धीमी हो जाती है।

जन्म के समय मस्तिष्क का भार लगभग 350 ग्राम, 6 वें वर्ष की आयु तक लगभग 1260 ग्राम, तथा वयस्क मस्तिष्क का भार 1400 ग्राम बताया गया है। शैशवावस्था में मस्तिष्क के भार में वृद्धि तीव्र गति से होती है।

शिशु के आन्तरिक अंगो का विकास

जन्म के बाद शरीर के आन्तरिक अंगों का विकास धीरे – धीरे होता है इसमे पाचक अंग, फेफड़ा, मांसपेशियाँ, स्नायुमंडल, रक्तसंचार, उत्पादक अंग एवं ग्रंथियां का क्रमशः विकास होता है।

 बाल्यावस्था में शारीरिक विकास

इस अवस्था में बालकों के भार एवं लम्बाई में वृद्धि होती है। लड़कियों का वजन लड़कों की अपेक्षा तेज गति से बढ़ता है। इस उम्र में मांसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का 27% हो जाता है। मस्तिष्क का भार भी शरीर के कुल भार का 90%हो जाता है।

आकार

बाल्यावस्था में लम्बाई प्रति वर्ष 2 से 3 इंच बढ़ती है। 6 से 9 वर्ष तक बालकों की लम्बाई बालिकाओं की अपेक्षा अधिक होती है। 9 से 12 वर्ष की उम्र में बालक की अपेक्षा बालिकाओं की लम्बाई एक इंच अधिक होती है। 12 वर्ष की उम्र बालक की लम्बाई 142 से 158 सेमी और बालिका की लम्बाई 144 से 160 सेमी इसके अतिरिक्त लम्बाई पर आनुवांशिकता का प्रभाव भी पड़ता है।

भार

6 से 9 वर्ष में बालिकाएँ बालको से वजन में कम होती हैं। 12 वर्ष की उम्र में बालिका का वजन बालक से अधिक होता है। क्योंकि किशोरापन जल्दी आरंभ होता है। बालक का वजन 30 से 48 किलो और बालिका का वजन 30 से 50 किलो होता है।

मांसपेशियाँ

मांसपेशियों के विकास की गति थोड़ी धीमी हो जाती हैं क्योंकि बालक बालिकाएँ विदद्यालय जाना शारीरिक तथा मानसिक कार्य करना प्रारम्भ कर देती हैं।

हड्डियाँ

इस अवस्था में हड्डियों में कड़ापन आने लगता है। इस अवस्था के अंत तक बालकों के कंधों की हड्डियाँ चौड़ी तथा हिप पतली हो जाती है। और बालिकाओं के Hip Bones चौड़ी तथा कंधे की पतली हो जाती है।

सिर व मस्तिष्क

सिर और मस्तिष्क का अनुपात वयस्कों के अनुपात के अनुसार होता है। धीरे-धीरे यह अनुपातहीनता दूर हो जाती है।

दांत

6 वर्ष की आयु में दूध के दांत गिरने लगते हैं। 12-13 वर्ष में सभी स्थायी दांत निकाल आते हैं। दाँतो की संख्या 28 होती हैं। बाकी के चार दांत बुद्धिदांत कहलाते हैं। जो बाद में निकलते हैं। बालकों में बालिकाओं की अपेक्षा बाद में निकलता है। दाँतो के निकलने से मुखाकृत में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं। शैशवकाल का भोलापन समाप्त हो जाता है।

यौन अंग

यौन अंगों का विकास बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा तीव्र गति से होता है। द्वितीयक यौन चिन्ह दिखाई देने लग जाते हैं।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास

किशोरावस्था में बालक – बालिकाओं में विकास तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में लड़के और लड़कियों में अंतर दिखाई देने लगते हैं। बालिकाओं में तीव्रतम बृद्धि समय 11 से 13 वर्ष और बालकों में 14 से 15 वर्ष की आयु तक होता है। किशोरावस्था में शारीरिक विकास से संबन्धित निम्नलिखित परिवर्तन होता है –

आकार या ऊँचाई 

प्रारम्भिक 12-13 वर्ष के बीच के बालक की ऊँचाई 154-172 सेमी और बालिका 153-167 सेमी होती है। 14-16 वर्ष के बीच बालक 164-180 सेमी और बालिका 155-169 सेमी, 17-21 वर्ष के बालक की लम्बाई 163-182 सेमी और बालिका की 156-170 सेमी हो जाती है। किशोरावस्था में लगभग 90% लम्बाई प्राप्त कर लेता है।

भार

इस अवस्था के अंत तक बालकों का भार बालिकाओं से लगभग 25 पौण्ड अधिक होता है लेकिन आरंभ मे 12-13 वर्ष के बालक का भार 38-60 kg और बालिका का भार 40-60 kg होता है। 14-16 वर्ष मे बालक 50-60 kg और बालिका 42-64 kg लेकिन 17-21 वर्ष में बालक का भार अधिक रहता है। बालक 56-80 kg और बालिका 41-72 kg होती है।

हड्डियां

आस्तिकरण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। नमनीयता नहीं रह जाती है।

मांसपेंशियां

12-15 वर्ष में 44% शरीर सुडोल एवं गढ़िला हो जाता है। 16-18 वर्ष के बीच दृढ़ता आ जाती है।

सिर व मस्तिष्क

15-16 वर्ष में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है। मस्तिष्क का भार 1200-1400 ग्राम के बीच होता है।

दांत

दांत 14-16 वर्ष में दूसरे मूलर दांत उगने लगते है। 17-18 वर्ष में तीसरे मूलर दांत उगते है और वृद्ध होने लगते हैं।  

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बाल्यावस्था में शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था में शारीरिक विकास सिर से प्रारंभ होकर पैरों व हाथों की ओर जाता है। सिर का भार जो जन्म के समय 350 ग्राम होता है, 6 वर्ष की आयु तक 1250 ग्राम हो जाता है और 10 वर्ष की आयु में मस्तिष्क का भार शरीर का आठवां हिस्सा हो जाता है।

शारीरिक विकास कितने प्रकार के होते हैं?

शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण.
स्वास्थ्य.
बाल स्वास्थ्य.
शैशवावस्था : शारीरिक, पेशीय एवं स्नायविक विकास.
शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण.

शारीरिक विकास की कितनी अवस्थाएं होती हैं?

हम सभी में होने वाला यह विकास कुछ अवस्थाओं से होकर गुजरता है। बाल विकास की तीन मुख्य अवस्थाएं मानी गयीं हैं जो इस प्रकार हैं – शैशवावस्था, बाल्यावस्था, और किशोरावस्था।

बाल्यावस्था में विकास कैसे होता है?

बाल्यावस्था में बालक में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है, जैसे- सहयोग, सदभावना, सहनशीलता, आज्ञाकारिता आदि। बाल्यावस्था के आरम्भ में ही बालक में नैतिक गुणों का विकास होने लगता है। बालक में न्यायपूर्ण व्यवहार, ईमानदारी और सामाजिक मूल्यों की समझ का विकास होने लगता है।