भादवा की बड़ी तीज की कहानी - bhaadava kee badee teej kee kahaanee

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सातुड़ी तीज या कजली तीज का व्रत विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्‍याओं को इस व्रत से अच्छे वर का आर्शीवाद मिलता है। कजरी तीज, हरियाली तीज या छोटी तीज के 15 दिन बाद मनाया जाता है। कजली तीज का व्रत रक्षाबंधन पर्व के तीन दिन पश्चात भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को किया जाता हैं | इस व्रत को सातुड़ी तीज, बड़ी तीज, कजली तीज, भादों तीज आदि नामों से भी जाना जाता हैं। सातुडी तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता हैं।

सातुड़ी तीज के व्रत के पहले की तैयारी –

कजली तीज के एक दिन पहले अर्थात् सिंजारे वाले दिन सिर धोकर हाथ – पांव में मेहँदी लगानी चाहिए। सातुड़ी तीज से पूर्व कोई शुभ दिन देखकर सवा किलो या सवा पाव चने या गेहूँ को सेककर व पीसकर उसमें घी और बूरा मिलाकर सत्तू का पिंड के रूप में जमा लेते हैं। सत्तू (सातू) को सूखे मेवे से सजाकर सुपारी पर मोली लपेटकर बीच में रख देते हैं। नीमड़ी माता की पूजा के लिए छोटा लड्डू बनाना चाहिए।कलपने या बायने के लिए सवा पाव का लड्डू बनाना चाहिए। एक लड्डू पति को देने के लिए बनाना चाहिए। सत्तू आप अपने सामर्थ्यनुसार अधिक मात्रा या कम  मात्रा एवं कई प्रकार के बना सकते हैं, जैसे – चावल, चना, गेहूँ, मैदा आदि।

सातुड़ी तीज व्रत की पूजन सामग्री –

एक छोटा सत्तू का लड्डू, नीमड़ी की डाली, दीपक, फल, खीरा,नींबू, कच्चा दूध मिला हुआ जल, वस्त्र (नीमड़ी माता के लिए), पूजा थाली, जल का कलश, गाय का गौबर या मिटटी, आकड़े के पत्ते, घी आदि।

सातुड़ी तीज कजली तीज व्रत पूजा तैयारी –

मिट्टी या गाय के गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा तालाब बनाकर नीम के वृक्ष की टहनी (नीमड़ी) रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध मिश्रित जल भर देते हैं, किनारे पर दीपक जला कर रख देते हैं।

सातुड़ी तीज के व्रत पूजन विधि –

सातुड़ी तीज या कजली तीज के दिन उपवास किया जाता हैं और सांय काल महिलाएँ सोलह श्रंगार करके तीज माता व नीमड़ी माता का पूजन करती हैं। सबसे पहले नीमड़ी माता को जल के छीटे दे, फिर रोली से तिलक करे, चावल चढ़ायें। रोली, मेहँदी और काजल की सौलह – सौलह बिंदियां अपनी अनामिका ऊँगली से तालाब की पाल पर लगाएं। नीमड़ी माता के रोली, मोली, मेहँदी, काजल और ओढनी (वस्त्र) चढ़ाएं। इसके बाद नीमड़ी माता के फलऔर दक्षिणा चढ़ाएं।

इसके बाद तालाब में दीपक की रोशनी में नींबू, खीरा, कुसुमल (ओढनी), नीमड़ी की पत्ती, दीपक की लौ, सत्तू का लड्डू, सोना, चाँदी, पैसा आदि वस्तुओ का प्रतिबिम्ब देखते हैं और दिखाई देने पर इस प्रकार बोलना चाहिए “तलाई में नींबू दिखे, दिखे जैसा ही टूटे” इसी प्रकार अन्य वस्तुओ के नाम बोलना चाहिए।

विधिपूर्वक पूजन करने के पश्चात तीज माता की और गणेश जी कहानी सुननी चाहिये। रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्दमा को जल के छीटे देकर जिमाये। कहानी सुना हुआ सत्तू व गेहूँ के आखे (दाने) हाथ में लेकर चन्दमा को अर्ध्य देना चाहिये। अर्ध्य देते समय बोले “सोना को साक्ल्यो, गज मोत्या को हार भाद्रपद कृष्ण तृतीया के चन्द्रमा के अर्ध्य देते जीवे म्हारा बीर भरतार”।

चांदी के रूपये से पिंडा पसवाये इसे पिंडा पासना कहते हैं। सत्तू पर ब्लाउज रूपये रखकर बायना या कलपना  निकाल कर सासुजी को पांव लगकर देना चाहिए।

सातुड़ी तीज व्रत की उद्यापन विधि

कजली तीज व्रत का उद्यापन (उजमन) शादी के बाद किया जाता हैं | इस व्रत के उद्यापन की सारी सामग्री पिहर (मायके)  से आती हैं। चार बड़े पिंडे बनाये (एक सासुजी का, एक पति का, एक गणेश जी का, एक स्वयं का) तथा तेरह छोटे (कुल सत्रह) सत्तू के पिंडे बनाकर मोली और सुपारी लगा देना चाहिए। पिंडे प्लेट या टिफिन में रखकर टीकी कर दें। एक पिण्डा सासुजी को बेस पर सारे सुहाग के सामान रखकर देना चाहिए। सुहागिनों को संकल्प छोडकर सत्तू के पिंड, ब्लॉउस पीस और रुपये रखकर देना चाहिए |

भादवा की बड़ी तीज की कहानी - bhaadava kee badee teej kee kahaanee
भादवा की बड़ी तीज की कहानी - bhaadava kee badee teej kee kahaanee

सातुड़ी (कजली) तीज व्रत कथा – 1

किसी नगर में एक सेठ सेठानी रहते थे। उनके पास बहुत धन सम्पति थी किन्तु उनके कोई सन्तान नहीं थी। भाद्रपद में सातुड़ी तीज माता का व्रत आया, सेठानी ने पूजा करके तीज माता से प्रार्थना कर कहा – हे नीमड़ी माता ! तीज माता ! यदि मेरे नवे महीने पुत्र हो जायेगा तो मैं आपके सवामण का सत्तू चढाऊँगी।

तीज माता की कृपा से नवें महीने सेठानी ने पुत्र को जन्म दिया। परन्तु सेठानी नीमड़ी माता के सत्तू चढ़ाना भूल गई। सेठानी के सात बेटे हो गये परन्तु सेठानी ने तीज माता के सत्तू नहीं चढाया। पहला बेटा विवाह योग्य हो गया। लडके का विवाह हुआ। सुहाग रात के दिन अर्ध रात्रि को सर्प के डस लिया और उसी क्षण उसकी मृत्यु हो गई। दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे और छठे पुत्र की भी विवाह के समय सुहाग रात को सर्प के डसने से मृत्यु हो गई। सातवे बेटे की सगाई होने लगी तो तब सेठ – सेठानी ने मना कर दिया |

गाँव वालो के बहुत समझाने पर सेठ – सेठानी शादी के लिए तैयार हो गये। तब सेठानी ने कहा, इसकी सगाई बहुत दूर करना। सेठजी सगाई करने के लिए घर से चले और चलते – चलते बहुत दूर एक गाँव में आए। वहाँ कुछ लड़कियाँ खेल रही थी और मिट्टी के घर बना रही थी। सब ने अपने – अपने घर तोड़ दिए पर एक लड़की ने कहा, मैं तो अपना घर नहीं तोडूंगी। सेठ वहाँ खड़ा – खड़ा यह सब देख रहा था। उसने सोचा कि यह लड़की बहुत समझदार है।

लड़की खेल कर अपने घर जाने लगी, तब सेठ भी उसके पीछे – पीछे उसके घर चला गया। लड़की के माता – पिता से मिलकर अपने लड़के की उससे सगाई कर दी और विवाह का मुहूर्त भी निकाल लिया |

घर आकर वह विवाह की तैयारी करने लगा। सेठ परिवार व गाँव वालो के साथ बारात लेकर गया और सातवें बेटे का विवाह हो गया। बारात विदा हुई लम्बा सफर होने के कारण माँ ने लड़की से कहा कि रास्ते में  तीज माता का व्रत आएगा यह सत्तू व सिंग डाल रही हूँ। रास्ते में नीमड़ी माता का विधि पूर्वक पूजन कर कलपना ससुर जी को दे देना। धूमधाम से बारात चली। रास्ते में तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने के लिए कहा तो बहु ने कहा कि आज तो मेरा कजली (सातुड़ी) तीज का व्रत हैं। शाम को बहु ने गाड़ी रुकवाई और कहा मेरे को तीज माता की पूजा करनी हैं।

तब ससुर जी ने नीमड़ी का पेड़ देखकर गाड़ी रुकवा दी और कहा बहु पूजन कर लो। तब बहु ने कहा नीमड़ी की डाली ला दो, तो ससुर जी ने कहा सभी बहुओ ने तो नीमड़ी की पूजा की पर बहु नहीं मानी, बोली मैं तो डाली का ही पूजन करूंगी। बहु के कहे अनुसार ससुर जी ने पूजन की तैयारी करवा दी। बहु नीमड़ी माता का पूजन करने लगी। नीमड़ी माता पीछे हट गई तो बहू हाथ जोड़ विनती करने लगी।

हे नीमड़ी माता ! आप मुझसे पीछे क्यों हटी, मेरे से क्या भूल हो गई। बहु की करुण विनती सुनकर तीज माता ने कहा तेरी सासुजी ने बोला की जब मेरे बेटा हो जायेगा तो सवामण का सत्तू चढ़ाऊँगी पर सात पुत्र  हो जाने  पर भी नहीं चढ़ाया। बहु बोली माता हमारी भूल माफ करो। मैं आपके सत्तू चढ़ाऊँगी। मेरे छ: जेठजी को वापस लोटा दो व मुझे पूजन करने दो। तीज माता नव वधु की भक्ति व श्रद्धा देख प्रसन्न हो गई।

बहू ने नीमड़ी माता का पूजन कर चन्द्रमा को अर्ध्य दिया। उसके पति ने सत्तू पासा और ससुर जी को कलपना दे दिया। बारात घर पहुंची, बहु के घर में प्रवेश करते ही उसके छओ जेठ प्रकट हो गये |

सासुजी ने धूमधाम से सबका गृह प्रवेश किया, सासुजी बहु के पाँव पकड़ने लगी तब बहु ने कहा सासुजी आप ये क्या कर रही हैं। आप ने जो तीज माता के सत्तू बोला था उसको याद करो। सासुजी को याद आ गई। अगले साल भाद्रपद मास में कजली तीज का व्रत आया सवासात मण का सत्तू बनाकर नीमड़ी माता (तीज माता) के चढाया। धूमधाम से विधिवत नीमड़ी माता का पूजन किया।

हे नीमड़ी माता ! जिस प्रकार सेठ के घर में आनन्द हुए वैसे ही सबके घर में आनन्द करना ,अखंड सुहाग देना , सन्तान को लम्बी आयु प्रदान करना।

|| तीज माता की जय ||

सातुड़ी (कजली) तीज व्रत कथा – 2

एक साहुकार था। उसके सात बेटे थे। साहूकार का छोटा बेटा वेश्या के यहाँ जाया करता था। उसकी पत्नी अपनी जेठानियो के यहाँ घर का काम करके अपना गुजारा करती थी। भादवे के महीने में कजली तीज (सातुड़ी तीज) का व्रत आया। सभी ने तीज माता का व्रत किया, सत्तू बनाया। छोटी बहु बहुत गरीब थी। उसकी सास ने एक छोटा लड्डू उसकी पूजा के लिए भी बना दिया।

शाम को तीज माता नीमड़ी माता का विधिपूर्वक पूजन करके, कहानी सुनने के बाद सत्तू का पिंडा पासने लगी तभी उसका पति वैश्या के यहाँ से आया और बोला किवाड़ (दरवाजा) खोल। उसने दरवाजा खोल दिया। उसका पति बैठा भी नहीं और उसी क्षण कहा कि मुझे अभी इसी समय वैश्या के यहाँ छोड़कर आ, वह उसे वैश्या के यहाँ छोड़कर आई। ऐसा उसने छ: बार किया और वह सातवी बार भी वापस आया और बोला चल मुझे वैश्या के यहाँ छोड़कर आ, अब मैं वापस नहीं आऊंगा।

सातवी बार जब पति को छोड़कर आने लगी तब रास्ते में एक बरसाती नदी मिली। जोर से बरसात आने लगी तब वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई। जब वह वहाँ से चलने लगी तो नदी में से आवाज आई, “आवतरी जावतरी दोना खोलके पी। पिव प्यारी होय”।

उसने पीछे मुड़ कर देखा तो दूध का दोना तैरता हुआ दिखा। उसने उस दोने से सात बार दूध पीकर उसके टुकड़े कर चारो दिशा में फेक दिया। तीज माता की ऐसी कृपा हुई की उसके पति को पत्नी की याद आई और वह वैश्या से बोला कि मैं तो अपनी पत्नी के पास जाऊंगा। वैश्या ने अपना सारा धन उसको देकर विदा किया। पति सारा धन लेकर घर आ गया और आवाज लगाई किवाड़ (दरवाजा) खोल तो उसकी पत्नी ने कहा अब मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी। तब उसने कहा दरवाजा खोल अब मैं वापस नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सत्तू पासेंगे।

लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ उसने कहा वचन दो, वापस वैश्या के पास नहीं जाओगे। तब पति ने पत्नी को वचन दिया। फिर पत्नी ने दरवाजा खोला तो देखा उसका पति  गहनों कपड़ो धन माल के साथ खड़ा था। सब सामान उसने अपनी पत्नी को दे दिया। फिर दोनों ने प्रेम से सत्तू पासा।

वह जब सुबह जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गई तो बच्चों को बुलाने भेजा तो देखा कि काकी गहने नये कपड़े में सज-संवर कर बैठी हैं और काका भी बैठे हैं। तो बच्चों ने पूछा, चाची ये कहाँ से आया तब उसने कहा ये तो तीज माता की कृपा हुई है, अब मैं काम पर नही आउंगी।

बच्चो ने घर आकर सारी बात बताई, सभी लोग अत्यंत प्रसन्न हुए। हे तीज माता ! जैसे आप साहूकार के बेटे बहु पर प्रसन्न हुई वैसी सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना।

|| बड़ी तीज माता की जय ||

सातुड़ी (कजली) तीज व्रत कथा – 3

एक गाँव मे एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद मास में कजली (सातुड़ी) तीज का व्रत आया। उसकी पत्नी ने उससे कहा कि आज मेरे कजली तीज का व्रत हैं। मेरी तीज माता की पूजा करने के लिए सत्तू लाना, तो ब्राह्मण चिंतित हो गया और विचार करने लगा चोरी करूँ या डाका डालू पर पूजा के लिए सत्तू तो लाना पड़ेगा।

रात्रि के समय ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान में घुस गया। ब्राह्मण ने चने की दाल, चीनी, घी लेकर सवा किलो वजन कर सत्तू बना लिया और जाने लगा तभी दुकान का नौकर उठ गया और चोर – चोर चिल्लाने लगा तथा उन्होंने  ब्राह्मण को पकड़ लिया। साहूकार आया और उसके पूछने पर ब्राह्मण ने कहा मैं चोर नहीं हूँ, मेरी पत्नी का तीज माता का व्रत हैं इसलिए मैं सिर्फ सवा किलो सत्तू बनाकर ले जा रहा था।

ब्राह्मण की तलाशी लेने पर सत्तू के अलावा उसके पास कुछ नहीं मिला। उधर चाँद निकल आया उसकी पत्नी इंतजार कर रही थी। साहूकार ने उसकी गरीबी व ईमानदारी से प्रसन्न होकर ब्राह्मण की पत्नी को धर्म की बहन बना लिया। उसने पूजा की सामग्री, सत्तू , कपड़े व बहुत सारा धन देकर ब्राह्मण को विदा किया।

हे तीज माता ! जिस प्रकार ब्राह्मण व उसकी पत्नी की लाज रखी वैसी सबकी रखना |

|| कजली तीज माता की जय ||

सातुड़ी (कजली) तीज व्रत कथा – 4

किसी गाँव में जाट रहता था। उसने दो विवाह किये, दोनों के एक – एक लडकी हुई। कुछ समय बाद जाट की पहली पत्नी मर गई। अब सौतेली माँ अपनी बेटी से तो कुछ काम नहीं करवाती, उसे बहुत स्नेह से रखती परन्तु दूसरी बेटी से घर का सारा काम करवाती थी। दोनों लड़कियाँ बड़ी हो गई। एक दिन जाटनी ने जाट से कहा कि मेरी बेटी के लिए पैसे वाला लड़का ढूढ़ना और दूसरी के लिए साधारण लड़का। जाट ने दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। सौतेली बेटी मेहनती व समझदार थी। उसने अपनी समझदारी से सबका दिल जीत लिया। जाटनी की बेटी घर का काम भी नहीं जानती थी और अकड़ में रहती थी। इसलिए ससुराल वाले उससे बहुत दुखी हो गये।

कुछ समय बाद जाट दोनों को लेने उनकी ससुराल गया। पहली लड़की के ससुराल वालो ने बहुत बड़ाई की, परन्तु दूसरी वाली के ससुराल वालों ने बहुत शिकायतें की और कहा अपनी बेटी को ले जाओ।

जाट दोनों को लेकर अपने घर आ गया और सारी बात जाटनी को बता दी। जाटनी घर का सारा काम अपनी लड़की से करवाने लगी। कुछ समय बाद भाद्रपद मास में सातुड़ी तीज का व्रत आया दोनों बहने पूजा करने गई तो पहली लडकी ने कहा, हे नीमड़ी ! माता तू मीठी हैं जैसे मुझे भी मीठी रखना, दूसरी ने कहा तू तो कड़ी हैं।

माँ ने सुना और तुरंत समझ गई और लड़की को वापस पूजा करने भेजा। लड़की ने नीमड़ी माता का पूजन कर  कहा, हे नीमड़ी माता जैसे आप मीठी हैं वैसे मुझे भी मीठी रखना। नीमड़ी माता प्रसन्न हो गई और जब ससुराल गई तो ससुराल वाले उससे प्रसन्न रहने लगे। इसलिए नीमड़ी माता की पूजा करके कड़ी न कहकर मीठी कहना चाहिए।

भादवा की तीज क्यों मनाई जाती है?

भाद्रपद या भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का पावन त्योहार मनाया जाता है। कजरी तीज को बूढ़ी तीज, कजली तीज, सातूड़ी तीज भी कहा जाता है। भगवान शिव, माता पार्वती को समर्पित इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कजरी तीज का व्रत रखती हैं।

बड़ी तीज कब है 2022?

Kajari Teej 2022 Kab Hai: हिंदू परंपरा के अनुसार, तीज के पर्व का बहुत बड़ा महत्व है. इस बार कजरी तीज 14 अगस्त 2022, रविवार को मनाई जाएगी.

बड़ी तीज कब मनाई जाती है?

Kajari Teej 2022 Date: पंचांग के मुताबिक कजरी तीज (Kajari Teej 2022) का व्रत हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस बार यह 14 अगस्त 2022 को है.

सातुड़ी तीज को क्या कहते हैं?

सातुड़ी तीज को कजली तीज और बड़ी तीज भी कहते है। सातुड़ी तीज की पूजा करते है। सातुड़ी तीज की कथा, नीमड़ी माता की कथा, गणेश जी की कथा और लपसी तपसी की रोचक कहानी सुनते हैं। इस पर्व पर सत्तु के बने विशेष व्यंजनों का आदान प्रदान होता है।