बहादुर कहानी के लेखक का नाम क्या है? - bahaadur kahaanee ke lekhak ka naam kya hai?

, एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकर के साथ परिवारजनों द्वारा किये गये अत्यधिक कटु व्यवहार की कहानी है। लेखक ने स्वयं को कहानी का पात्र बनाते हुए कहानी की आत्म-कथात्मक रूप में रचना की है।


अपने से सम्पन्न रिश्तेदारों के घर नौकर द्वारा जुटाई सुविधा एवं शान को देखकर लेखक की पत्नी निर्मला स्वयं भी एक नौकर रखना चाहती है। बहादुर नेपाल का 12-13 साल का लड़का है, जो अपनी माँ के दुर्व्यवहार से तंग आकर घर छोड़कर शहर चला आता है और निर्मला के परिवार में नौकर रख लिया जाता है। निर्मला और उसका परिवार बहादुर के प्रति पहले तो अच्छा व्यवहार करते हैं, परन्तु धीरे-धीरे कठोरता बरतने लगते हैं। वह घर का सारा कार्य करता है, इसके बावजूद उसके साथ गाली-गलौज से मारपीट तक की नौबत आ जाती है। चोरी का झूठा इल्जाम लगाकर उसे अपमानित किया जाता है और पीटा जाता है। अन्ततः बहादुर घर छोड़कर चला जाता है। अब परिवार के सभी सदस्य उसे ढूँढ़ते हैं; क्योंकि उसके कारण सभी लोग आराम के आदी हो चुके हैं।


बहादुर की उपयोगिता देखकर सभी अपना घरेलू कार्य करने से घबराते हैं, बहादुर के घर छोड़ जाने पर वे सभी पश्चात्ताप करते हैं तथा अच्छा व्यवहार करने की सोचते हैं। परन्तु अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत । बहादुर में सहनशीलता और स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उसके इसी चरित्र के कारण यह कहानी हमें प्रिय है।


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कहानी कला के तत्वों की दृष्टि से निम्नलिखित में से किसी एक कहानी की समीक्षा (आलोचना, विशेषताएं) कीजिए


       

' बहादुर ' कहानी

                 

 आधुनिक कथा-जगत् में प्रेमचन्द की कहानी कला को अक्षुण्ण रखने वाले कलाकारों में अमरकान्त अग्रणी हैं। इनकी कहानियों में मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग की पारिवारिक परिस्थितियों का सजीव, आदर्श तथा यथार्थवादी चित्रण मिलता है। इनकी 'बहादुर' कहानी: मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी करने वाले बहादुर नाम के नेपाली लड़के पर आधारित एक समस्यामूलक कहानी है। कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर कहानी की संक्षिप्त समीक्षा यहाँ प्रस्तुत है


1. शीर्षक- प्रस्तुत कहानी का शीर्षक लघु, आकर्षक, सरल तथा सार्थक है। कहानी की कथा इसके प्रमुख पात्र बहादुर के चारों ओर घूमती है; अतः शीर्षक की दृष्टि से 'बहादुर' कहानी एक सफल रचना है।


2. कथानक-  प्रस्तुत कहानी में लेखक ने समाज के वर्ग-भेद को उजागर किया है। बहादुर 12-13 वर्ष की उम्र का एक गरीब बालक है। वह एक साधारण परिवार में नौकर है, जिसका मुखिया स्वयं लेखक है। प्रारम्भ में तो उसका परिवार में पालतू पशु-पक्षियों की तरह बड़ा आदर-सत्कार होता है और वह भी बड़ी मेहनत व लगन से काम करता है, किन्तु कुछ दिनों बाद वह लेखक के बड़े लड़के किशोर और उसकी पत्नी निर्मला द्वारा डॉट, मार खाने लगता है उससे अपनी रोटी स्वयं सेंक लेने को भी कहा जाता है। एक दिन घर में आये कुछ रिश्तेदारों द्वारा बहादुर के ऊपर चोरी करने का आरोप लगाया जाता है और लेखक द्वारा बहादुर को मारा-पीटा भी जाता है। पत्थर की एक सिल के टूट जाने और समस्त परिवारजनों के दुर्व्यवहार से पीड़ित होने के कारण वह उस घर से भाग जाता है। वह अपने साथ घर का और अपना कोई भी सामान नहीं ले जाता। बहादुर के चले जाने के बाद परिवार के लोगों को बहादुर के गुणों की अनुभूति होती है और वे अपने द्वारा उसके प्रति किये गये अमानवीय व्यवहारों पर पश्चात्ताप करते हैं।


कहानी का कथानक रोचक, सुगठित, संक्षिप्त तथा समस्याप्रधान है। इसमें बताया गया है कि मात्र पूँजीपति ही श्रम का शोषण नहीं करते, वरन् सामान्य मध्यम वर्ग भी इस कुकृत्य में पीछे नहीं है। इस प्रकार कथानक तत्त्व की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।


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3. पात्र तथा चरित्र -चित्रण- प्रस्तुत कहानी में पात्रों की संख्या सीमित है। वे निम्न तथा मध्यम वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बहादुर निम्न वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। उसके अपने घर की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। माँ की मार और उपेक्षा से खीझकर वह घर से शहर भाग आता है और एक मध्य-वित्त-परिवार में नौकरी करता है। कहानी का प्रमुख पात्र बहादुर है। गृहस्वामिनी निर्मला तथा उसका बेटा किशोर, रिश्तेदार, उसकी पत्नी और लेखक कहानी के अन्य पात्र हैं। बहादुर ईमानदार, मेहनती तथा स्वाभिमानी बालक है। वह निर्मला के पुत्र किशोर तथा फिर निर्मला के दुर्व्यवहार का शिकार होता है। गाली खाकर भी वह मौन बना रहता है, परन्तु 'सूअर का बच्चा' गाली उसके स्वाभिमान पर विशेष चोट पहुँचाती है- …...'बाबूजी, भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया ?वह रोता हुआ "बोला।"


 बहादुर के मन पर सबसे गहरा आघात तब लगता है, जब उस पर "चोरी का इल्जाम लगाया जाता है, उसे धमकाया और पीटा जाता है। इस आघात के कारण वह खाली हाथ घर छोड़कर चला जाता है। कथाकार बाल मनोविज्ञान के सूक्ष्म विश्लेषण में सफल रहे हैं। निर्मला साधारण महिला है। किशोर शान-शौकत से रहने का अभ्यस्त है। वह आज के समाज के उन नवयुवकों का प्रतिनिधित्व करता है, जो कम साधन होते हुए भी रईसों की नकल करते हैं। इस प्रकार पात्र तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'बहादुर' एक सफल कहानी है।


4. संवाद या कथोपकथन-  यह कहानी संवाद की दृष्टि से सफल रचना है। इसके संवाद सरस, सरल, सुन्दर, संक्षिप्त, रोचक तथा पात्रानुकूल है। कथानक को गतिशील बनाये रखने में अमरकान्त के संवाद प्रेमचन्द की समर्थ है। 'बहादुर' कहानी के एक रोचक प्रसंग से संवाद-योजना प्रस्तुत है।


-क्या बात है ? मैंने पूछा।


- बहादुर भाग गया।


 -भाग गया। क्यों ?


-पता नहीं आज तो कुछ हुआ भी नहीं था।


 - कुछ ले गया ?


-यही तो अफसोस है। कोई भी सामान नहीं ले गया। 

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5. भाषा शैली- इस कहानी की भाषा कथा प्रसंग के अनुकूल व्यावहारिक एवं प्रवाहपूर्ण है तथा शैली आत्मपरक है। प्रचलित मुहावरों का प्रयोग भाषा की विशेषता है; जैसे नौ दो ग्यारह होना, माथा ठनकना, पेट में दाढ़ी होना आदि। उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग मिलता है; जैसे—किस्सा, तमीज, सिनेमा, रिपोर्ट इत्यादि । भाषा-शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है-"अम्माँ, एक बार भी अगर बहादुर आ जाता तो मैं उसको पकड़ लेता और कभी जाने न देता। उससे माफी माँग लेता और कभी नहीं मारता । सच, अब ऐसा नौकर कभी नहीं मिलेगा। कितना आराम दे गया है वह। अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो सन्तोष हो जाता। "


6. देश काल तथा वातावरण- प्रस्तुत कहानी में एक मध्यमवर्गीय परिवार द्वारा नौकर रखना तथा सामन्ती व्यवस्था के अनुकरण पर उससे अधिक कार्य लेना, उचित व्यवहार न करना, झूठा प्रदर्शन करना आदि के द्वारा कहानी के वातावरण को सजीवता प्रदान की गयी है। झूठा दिखावा, ईर्ष्या एवं बनावट आदि के वर्णन में निम्न मध्यमवर्गीय मनोवृत्ति के स्पष्ट दर्शन से वातावरण सजीव हो गया है; जैसे- "निर्मला आँगन में खड़ी होकर पड़ोसियों को सुनाते हुए कहती थी- बहादुर, आकर नाश्ता क्यों नहीं कर लेते? मैं दूसरी औरतों की तरह नहीं हूँ, जो नौकर-चाकर को तलती - भूनती हैं। मैं तो नौकर-चाकर को अपने बच्चे की तरह रखती हूँ।" कहानी में उत्साहपूर्ण वातावरण का भी चित्रण हुआ हैं; जैसे- "उसकी वजह से कुछ दिनों तक हमारे घर में वैसा ही उत्साहपूर्ण वातावरण छाया रहा, जैसा कि प्रथम बार तोता-मैना या पिल्ला पालने पर होता है। सबेरे-सबेरे मुहल्ले के छोटे-छोटे लड़के घर के अन्दर आकर खड़े हो जाते और उसको देखकर हँसते या तरह-तरह के प्रश्न करते। "


7. उद्देश्य (सन्देश)- इस कहानी का उद्देश्य समाज में उत्पन्न वर्ग संघर्ष को मानवीय सहानुभूति द्वारा समाप्त करने का सन्देश देना है। शोषितों के मानवता एवं प्रेम का व्यवहार, ऊँच-नीच के भेद के कारण दिलों में पड़ी दरार को भर देता है। बहादुर भी मानवीय स्नेह एवं संवेदनाओं का भूखा है। मालिक द्वारा पीटे जाने और प्रतिक्रियास्वरूप उसके द्वारा घर छोड़ दिये जाने पर परिवार के सभी लोगों को पश्चात्ताप का अनुभव होता है। वे स्वयं को दोषी महसूस करते हैं। धनी और निर्धन का वर्ग-भेद मानवीय भावनाएँ ही कम कर सकती हैं। लेखक का मुख्य उद्देश्य दोनों के हृदयों का परिवर्तन है और सबके प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार बनाये रखने का सन्देश देना है।


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'बहादुर' कहानी अत्यन्त मार्मिक कहानी है। यह आत्म-कथात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी है। अमरकान्त जी ने बड़े सटीक और सुन्दर ढंग से कहानी को प्रस्तुत करके पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी है। कहानी कला के तत्त्वों की दृष्टि इसे यह एक सफल कहानी हैं।


दिलबहादुर का चरित्र-चित्रण

बहादुर कहानी के लेखक का नाम क्या है? - bahaadur kahaanee ke lekhak ka naam kya hai?


(2011, 13, 14, 15, 16, 17, 19, 20)


अमरकान्त जी की कहानी 'बहादुर'; एक चरित्रप्रधान कहानी है। एक नेपाली बालक 'दिलबहादुर' इसका नायक है। बहादुर के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


1. असहाय और भोला- बहादुर नेपाल का रहने वाला है। अपनी कर्कशा माता के व्यवहार से पीड़ित होकर वह अपना घर छोड़ देता है तथा प्यार का व्यवहार पाकर निर्मला के परिवार का कार्य संगाल लेता है।


 2. परिश्रमी और ईमानदार- बहादुर सुबह आठ बजे से लेकर रात्रि तक कार्य करता है। मारपीट के उपरान्त भी वह दिल लगाकर कार्य करता है। वह चोरी नहीं करता, फिर भी झूठे इल्जाम पर मार खाता है।


 3. प्रेम का भूखा- वह मातृ-प्रेम व स्नेह के व्यवहार का भूखा है, जो उसे अपने घर नहीं मिला। वह प्रेम शुरू में निर्मला के परिवार से उसे मिलता है। मगर जब निर्मला भी उसके प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करती, तब वह घर छोड़ देता है।


 4. हँसमुख बालक - बहादुर भोला और हँसमुख है। वह हर बात को हँसकर कहता है। बच्चों के पूछने पर अपना नाम दिलबहादुर बताकर हँसने लगता है। मालिक के साथ भी बात कहकर हँसता रहता है। मार खाने के बाद भी वह नाराज नहीं होता और शीघ्र ही पूर्व स्थिति में आ जाता है।


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5. सहनशील और स्वाभिमानी - बहादुर बहुत सहनशील है। वह सभी की डॉट, गाली और मारपीट सब कुछ सहन कर लेता है और कोई प्रतिरोध नहीं करता, परन्तु अपने स्वर्गवासी पिता को गाली दिये जाने पर उसका स्वाभिमान जाग जाता है। चोरी के झूठे आरोप से उसके मन को असहनीय ठेस पहुँचती है और वह अपना सामान और अर्जित पारिश्रमिक तक वहीं छोड़कर चला जाता है।


6. व्यवहारकुशल- बहादुर एक व्यवहारकुशल बालक है। सभी के प्रति उसका व्यवहार बहुत मृदु है। अपने इसी गुण के कारण वह घर के सभी सदस्यों पर जादू का सा प्रभाव डाल देता है। इतना ही नहीं, मुहल्ले के बच्चे भी उसके व्यवहार से मोहित हो जाते हैं।


7. मातृ-पितृभक्त बालक - बहादुर का हृदय मातृभक्ति और पितृभक्ति की भावना से ओत-प्रोत है। उसकी माँ उसे मारती थी और उसकी उपेक्षा करती थी। इसीलिए वह घर से भाग आया। वह घर वापस भी नहीं जाना चाहता, लेकिन अपने वेतन के रुपये अपनी माँ के पास ही भेजना चाहता है। वह कहता है-"माँ-बाप का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है।"


8. स्नेही बालक -निर्मला बहादुर के खाने और नाश्ते का बहुत ध्यान रखती थी। बहादुर को उसमें अपनी माँ की छवि दिखाई देती थी। निर्मला को तबीयत खराब होने पर यदि वह उसे काम करते देखता तो कहता- "माताजी, मेहनत न करो, तकलीफ बढ़ जाएगा।" दवा खाने का समय होते ही वह दवाई का डिब्बा लाकर उसके सामने रख देता।


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इस प्रकार बहादुर एक सच्चा ईमानदार, सहनशील, स्वाभिमानी, व्यवहारकुशल, भोला और स्नेही बालक है। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह सबके मन को बरबस ही आकर्षित कर लेता है। पाठक उसे चाहते हुए भी भूल नहीं सकता।


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बहादुर पाठ के लेखक कौन थे?

'बहादुर' कहानी के लेखक 'अमरकांत' हैं। 'बहादुर' कहानी 'अमरकांत' द्वारा लिखी गयी एक कहानी है। जिसमें लेखक के परिवार में काम करने वाले एक नेपाली नौकर बहादुर के बारे में वर्णन किया गया है।

बहादुर कहानी का सारांश क्या है?

बहादुर की उपयोगिता देखकर सभी अपना घरेलू कार्य करने से घबराते हैं, बहादुर के घर छोड़ जाने पर वे सभी पश्चात्ताप करते हैं तथा अच्छा व्यवहार करने की सोचते हैं। परन्तु अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत । बहादुर में सहनशीलता और स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उसके इसी चरित्र के कारण यह कहानी हमें प्रिय है।

बहादुर कितने वर्ष का था?

उत्तर- पहली बार दिखे बहादुर की उम्र बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका रंग गोरा, मुँह चपटा एवं शरीर ठिगना चकैठ था । वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उत्तर- जब रिश्तेदार की सच्चाई का आभास हुआ और यह बात समझ में आ गई कि बहादुर निर्दोष था तब निर्मला को अफसोस हुआ।

बहादुर कैसे कहानी है?

प्रस्तुत कहानी 'बहादुर' में शहर के एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में काम करने वाले एक नेपाली गँवई गोरखे बहादुर की कहानी वर्णित हैबहादुर एक नौकरी पेशा परिवार में आत्मीयता के साथ सेवाएँ देने के बाद परिवार के सदस्यों के दुर्व्यवहार के कारण अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाववश स्वच्छंदता के साथ नौकरी छोड़ देता है