भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख चुनौतियां क्या है - bhaarateey lokatantr kee pramukh chunautiyaan kya hai

जिन देशों में लोकतंत्र वर्षों से मौजूद है वहाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती है। लोकतंत्र के विस्तार का मतलब होता है कि देश के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक सरकार के मूलभूत सिद्धांतो को लागू करना तथा लोकतंत्र के प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुँचाना। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के कई उदाहरण हो सकते हैं, जैसे कि स्थानीय स्वशाषी निकायों को अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से जोड़ना, आदि।

लोकतंत्र के विस्तार का एक और मतलब यह है कि ऐसे फैसलों कि संख्या कम से कम हो जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से परे हटकर लेना पड़े। आज भी हमारे देश में समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो मुख्यधारा से पूरी तरह से जुड़ नहीं पाये हैं। आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। ये सभी चुनौतियाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के उदाहरण हैं।

हाल ही में भारत ने अपना 72वा गणतंत्र दिवश मनाया है। परन्तु दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के अराजकता ने देश के लोकतंत्र को चुनौतियाँ भी दी हैं।

परिचय

  • यद्यपि प्राचीन भारतके वैदिक काल में सभा ,समिति तथा विदथ जैसी संस्थाओ तथा कुछ गणराज्यो की उपस्थिति से लोकतंत्र के प्रमाण मिलते हैं परन्तु
  • लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप को स्थिर करने में चार क्रांतियों, 1688 की इंगलैंड की रक्तहीन क्रांति, 1776 की अमरीकी क्रांति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति और 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति की भूमिका प्रबल रही। इंगलैंड की गौरवपूर्ण क्रांति ने यह निश्चय कर दिया कि प्रशासकीय नीति एवम् राज्य विधियों की पृष्ठभूमि में संसद् की स्वीकृति होनी चाहिए। वर्षो के उपनिवेशिक शासन के उपरान्त भारत ने भी संसदीय लोकतंत्र को स्वीकारा है।

लोकतंत्र का अर्थ

अंग्रेजी में लोकतंत्र शब्द को डेमोक्रेसी (Democracy) कहते है जिसकी उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द 'डेमोस' तथा क्रेशिया से हुई है डेमोस का अर्थ है 'जन साधारण' और क्रेसी का अर्थ है 'शासन' , इस प्रकार लोकतंत्र का अर्थ जनता के शासन से है।

लोकतंत्र का दार्शनिक आधार

  • व्यक्ति की व्यवस्था की इकाई मानना
  • व्यक्ति की गरिमा में विश्वास
  • स्वतंत्रता तथा अधिकार प्रदान करना
  • समाज में विशेषाधिकारों का समापन
  • मानवीकृत विभेदन से प्रतिषेध
  • सीमित तथा संवैधानिक शासन
  • भगीदारीपरक शासन
  • उत्तरदायी शासन
  • नियमित चुनाव

भारत में लोकतंत्र की यात्रा

  • भारतीय संविधान निर्माताओं में से एक बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के अनुसार 'लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं।'26 जनवरी 1950 को उपरोक्त वर्णित सिद्धांतो की प्राप्ति के लिए भारत में लोकतंत्र की विधिवत स्थापना हुई।
  • भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें विविधता में एकता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। भारतीय संस्कृति इस विषय में अन्य संस्कृतियों से भिन्न है कि अभी भी भारत अपनी प्राचीनतम परम्पराओ को संजोने के साथ उसमे नवीनता भी लाता है । आजादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है।
  • भारत दुनिया में एकमात्र राष्ट्र हैं जिसने हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता के बाद पहले दिन से ही मतदान का अधिकार देकर राजनैतिक न्याय स्थापित कर दिया । अमेरिका ,ब्रिटेन जैसे कई लोकतंत्र जिन्होंने राजनैतिक न्याय की स्थापना में वर्षो का समय लगाया है।
  • तंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव एक अच्छे लोकतंत्र की स्थापना की कुंजी है क्योंकि चुनाव ही वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता अपनी सम्प्रभुता का हस्तातन्तरण करती है ।भारत अपनी चुनाव प्रणाली पर निश्चित रूप से गर्व कर सकता है। निष्पक्ष निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता से भारत में सत्ता का समयबद्ध और निर्बाध हस्तांतरण हुआ जबकि भारत के साथ ही स्वतंत्र कई देशो में तानाशाही तथा सैन्य शासन भी लागू हो गया।
  • आज तक भारत में मात्र एक बार आपातकाल का प्रयोग हुआ जिसमे जनता ने यह महसूस किया की सरकार द्वारा लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है तब भारत की इसी जनता ने आपातकाल का जवाब दिया तथा सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी पहली बार विपक्ष में बैठी।
  • भारत के न्यायलय ने कई बार मूलाधिकारों की रक्षा के लिए संसदीय कानूनों तथा कार्यपालिकीय आदेशों को अवैध घोषित कर देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा कर लोकतान्त्रिक तत्वार्थ को जीवित रखा है।

भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख चुनौतियाँ :-

यद्यपि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र ने कई आयामों को प्राप्त किया है परन्तु 26 जनवरी 2021 को लालकिले पर होने वाली अराजक घटनाओ ने यह स्पष्ट किया कि भारत में लोकतंत्र के सम्मुख अभी कई चुनौतियाँ हैं

  • राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए उसका आर्थिक लोकतंत्र तथा सामाजिक लोकतंत्र से गठबंधन आवश्यक है। आर्थिक लोकंतत्र का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने विकास की समान भौतिक सुविधाएँ मिलें। लोगों के बीच आर्थिक विषमता अधिक न हो और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण न कर सके। एक ओर घोर निर्धनता तथा दूसरी ओर विपुल संपन्नता के वातावरण में लोकतंत्रात्मक राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।वहीँ सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है कि सामाजिक स्तर पर विशेषाधिकारों का आभाव हो। परन्तु भारत में अभी भी ये दोनों ही स्थापित नहीं हो सके हैं। हमारे देश की 1 % अमीरो के पास देश की 85 % से अधिक संपत्ति है देश के 63 अरबपतियों की कुल संपत्ति राष्ट्रीय बजट के बराबर है। इस असमानता के साथ ही देश लैंगिक ,जातीय ,धार्मिक भेदभाव वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना को रोकता है।
  • राजनीति का अपराधीकरण तथा चुनाव में धनबल का प्रयोग भारतीय चुनावो की बड़ी समस्या रही है। मौजूदा लोकसभा में 200 से अधिक ऐसे सांसद हैं जिनपर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इसके साथ ही देश में गरीबी ,भ्रष्टाचार चालबाजियों ने लोगों के दैनिक जीवन में निराशा का प्रसार करते हुए चुनाव व्यवस्था को प्रभावित किया है। बाहुबल, धनबल, के बढ़ते हुए महत्त्व, राजनीतिक जीवन में जातिवाद, साम्प्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार के प्रभाव ने राजनीतिक परिदृश्य को विषाक्त कर दिया है !
  • भारत की कठिन , दूरूह तथा लम्बी न्यायिक प्रक्रिया ने देश में न्याय में बिलम्ब की स्थिति ला दी है। कई बार कुशासन के कारण न्याय की निष्पक्षता स्वयं कटघरे में आ गई है। न्याय में देरी कई बार अन्याय के समान हो जाती है। हमारे न्यायपालिका में लगभग 3 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
  • उपनिवेशिक विरासत से आई सिविल सेवा तथा पुलिस सेवा स्वयं को स्वामी मानती है जबकि लोकतंत्र में इन दोनों को सेवा प्रदाता समझा जाता है
  • इसके साथ ही पितृसत्ता , खाप पंचायत जैसी अवधारणाओं ने देश में लोकतंत्र को कमजोर किया है। यह भी एक चिंता है कि भारत में समूह की प्राथमिक इकाई परिवार तथा समाज दोनों ही लोकतान्त्रिक नहीं रह गए हैं।

निष्कर्ष

यह सत्य है कि भारत ने महान लोकतान्त्रिक उपलब्धियों को हासिल किया है परन्तु स्वतंत्रता के उपरांत जिन उच्च आदर्शों की स्थापना हमें इस देश व समाज में करनी चाहिए थी, हम आज ठीक उनकी विपरीत दिशा में जा रहे हैं और भ्रष्टाचार, दहेज, मानवीय घृणा, हिंसा, अश्लीलता और बलात्कार जैसी समस्या अब जीवन का भाग बनती जा रही हैं। परन्तु हमारा देश प्राचीन काल से ही कई समस्यो को हल करता आगे बढ़ रहा है वर्तमान में भारत सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है ऐसे में युवाओ को अपनी भागीदारी बढ़ाकार देश ,समाज तथा परिवार को लोकतंत्रिक करना होगा।

क्या आतंकवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती है कैसे?

हिंसा किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होती है। लोकतंत्र में हिंसा या आतंक होने से राजनीतिक अस्थिरता एवं असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे लोकतांत्रिक काम-काज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः आतंकवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती होता जा रहा है।

भारतीय लोकतंत्र की क्या स्थिति है?

1947 की आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इसके राष्ट्रवादी के आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व के तहत बनाया गया था। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव हर 05 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। वर्तमान में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी मंत्रिपरिषद के मुखिया हैं, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्र के मुखिया हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारत की प्रमुख चुनौतियां कौन थी?

स्वतंत्रता उपरांत भारत के समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान थीं, जिनमें तीन प्रमुख चुनौतियाँ थीं- देश का एकीकरण, लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना और समावेशी विकास। इनमें देश के एकीकरण को प्राथमिकता प्रदान की गई लेकिन समस्या यह थी कि देश में विद्यमान देशी रियासतों का एकीकरण कैसे किया जाए?

लोकतंत्र के दो प्रमुख आधार क्या हैं?

लोकतंत्र का सहभागिता सिद्धान्त (1) निर्णय लेने की प्रक्रिया का इस रूप में विकेन्द्रीकरण कि उन निर्णयों से प्रभावित होने वाले लोगों तक नीति निर्धारण किया जा सके। (2) नीति-निर्धारण में सामान्यजन की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी।