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अनुकूलन किसी विशेष वातावरण में सुगमता पूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंशवृद्धि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिवर्तन उत्पन्न होने की प्रक्रिया है। यह शरीर का अंग या स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है[1] अनुकूलन द्वारा होने वाले स्थायी बदलावों को इस प्रक्रिया से भिन्न स्पष्ट करने के लिए उन्हें अनुकूलन जन्य लक्षण कहा जा सकता है।[2][3]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Mayr, Ernst (1982). The growth of biological thought: diversity, evolution, and inheritance (1st संस्करण). Cambridge, Mass: Belknap Press. पृ॰ 483. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-674-36445-7. Adaptation... could no longer be considered a static condition, a product of a creative past, and became instead a continuing dynamic process.
- ↑ The Oxford Dictionary of Science defines adaptation as "Any change in the structure or functioning of an organism that makes it better suited to its environment".
- ↑ Bowler, P.J. (2003) [1984]. Evolution: the history of an idea (3rd संस्करण). University of California Press. पृ॰ 10. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-520-23693-9.
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Solution : अनुकूलन (Ecological adaptation) : अपने आवासीय भूमि कारक और वायुमण्डलीय कारक (धूप, हवा, वर्षा आदि) को सहन करते हुए जीवन की सभी क्रियाओं को सम्पन्न करना ही .अनुकूलन. कहलाता है । अनुकूलन वस्तुतः प्राकृतिक कारकों के साथ एक समझौता है । जो जन्तु या वनस्पति जहाँ उत्पन्न होता है. वहाँ मिट्टी, पानी, हवा. ताप आदि सभी भूमीय एवं वाह्य कारकों के अनुरूप अपने को बना लेना और उसी में वृद्धि करना, प्रजनन करना और अपना सम्पूर्ण जीवन चक्र पूरा करता है । यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें प्रकृति भी सहायता करती है। <br> जलीय पौधों में कुमुदिनी, कमल, हाइडिला, शैवाल आदि है। <br> (i) जड़ें बहुत कम तथा कोमल होती है या अनुपस्थित होती है । <br> (ii) तना कमजोर, पतला, लम्वा और पानी में तैरने वाला होता है, क्योंकि उनके अन्दर वायु-कोष्ठ बहुत होते हैं। <br> (iii) पत्तियाँ बड़ी-बड़ी, मोटी और स्पंजी ऊतकों से बनी रहती है, पत्ती की सतह पर मोम जैसी रासायनिक पदार्थ की परत रहती है जिससे पानी का असर न हो । <br> जन्तु में अनुकूलन : (i) मैदानी भागों में पाये जानेवाले जन्तुओं में छोटे या रोम की तरह के बाल सामान्य आकार के पैर, आँख, कान तथा नाक होती है । <br> (ii) पर्वतीय एवं मरुस्थली प्रदेश में पाये जानेवाले जन्तुओं में घने बाल, मोटी और फैटयुक्त चमड़ी होती है । कान, आँख, पैर आदि छोटे होते हैं । <br> (iii) जलीय जन्तुओं का शरीर स्ट्रीमलाइन्ड होता है । श्वसन के लिए विशेष अंग गिल होता है । जल संतुलन के लिए विशेष कार्यिक प्रविधियाँ होती है । तैरने हेतु विशेष शरीर संरचना पायी जाती है । जल दबाव सहने हेतु चर्म के नीचे चर्बी का मोटा स्तर पाया जाता है।
Adaptation definition in hindi अनुकूलन की परिभाषा क्या है : जीव का ऐसा गुण जो उसे अपने आवेश में जीवित बने रहने जनन करने के योग्य बनाता है उसे अनुकूलन कहलाता है |
अनुकूलन के उदाहरण (Adaptation examples) :
- उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल कंगारू चूहा अपने शरीर की आंतरिक व वसा के ऑक्सीकरण हुए मूत्र को संतुलित करने की क्षमता के कारण जल की कमी को दूर किया जाता है
- अनेक मरुस्थलीय पौधों की पत्तियों की सतह पर क्युटिल पाई जाती है जिसे वाष्पोत्सर्जन कम होता है इनकी पत्तियों में रंध्र गर्त में होते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन से होने वाली जल की हानि कम होती है
- ऐलन का नियम : ठंडे जलवायु वाले स्तनधारियों के कान छोटे होते हैं ताकि ऊष्मा की हानि कम होती है इसे ऐलन का नियम कहते हैं
- सील जैसे जलीय स्तनधारियों में त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है जो ऊष्मारोधी होती है
- अधिक ऊंचाई पर रहने वाले [ उच्च तुंगता], मनुष्य में अनुकूलन : अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में वायुमंडलीय दाब कम होने से शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिलती इसलिए शरीर स्वसन दर बढ़ाकर , लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ा कर , हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता घटाकर ऑक्सीजन की कमी पूरी करता है |
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