❍ अभिप्रेरणा :- अभिप्रेरणा का शाब्दिक अर्थ है – किसी कार्य को करने की इच्छा शक्ति का होना। Show अभिप्रेरणा लैटिन भाषा के Motum / Movers ○ अभिप्रेरणा वे सभी कारक है जो प्राणी के शरीर को कार्य करने के लिए गति प्रदान करता है। ○ अभिप्रेणा ध्यान आकर्षण प्रलोभन या लालच की कला है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए तैयार करती है। ○ अभिप्रेरणा अंग्रेजी शब्द Motivation (मोटिवेशन) का हिंदी पर्याय है। जिसका अर्थ प्रोत्साहन होता है। Motivation लैटिन भाषा के Motum (मोटम) शब्द से बना है। जिसका अर्थ है Motion (गति)। अतः कार्य को गति प्रदान करना ही अभिप्रेरणा है। यही अभिप्रेरणा का अर्थ है। ○ गुड के अनुसार :-“प्रेरणा कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।” ○ स्किनर के अनुसार :– अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोच्च राजमार्ग या स्वर्णप्रथ है। ○ सोरेन्सन के अनुसार :- अभिप्रेरणा को अधिगम का आधार कहा है। ○ मेकडूगल के अनुसार :- अभिप्रेरणा को व्याख्या जन्मजात मूल प्रवृतियों के आधार पर की जा सकती है। ❍ अभिप्रेरणा के प्रकार:-अभिप्रेरणा के दो प्रकार होते हैं। 1. आंतरिक अभिप्रेरणा ( internal motivation) वे आंतरिक शक्तियां , जो व्यक्ति के व्यवहार को उतेजित करती हैं , आंतरिक अभिप्रेरणा कहलाती हैं। भूख , प्यास , नींद , प्यार , तथा इसी का उदाहरण है। 2.बाह्य अभिप्रेरणा :- पहले से निर्धारित कोई ऐसा उद्देश्य जिसे करना व्यक्ति का उद्देश्य हो , बाह्य अभिप्रेरणा कहलाती है। रुचि , इच्छा , आत्मसम्मान , सामाजिक प्रतिष्ठा एवं विशेष , उपलब्धि , सत्ताप्रेरक तथा पुरस्कार इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ❍ अभिप्रेरणा की विशेषताएँ :- • अभिप्रेरणा गतिशीलता / क्रियाशीलता की प्रतीक होती है। • अभिप्रेरणा किसी भी कार्य को पूरा करने का स्रोत है। • अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को उतेजित करती है। • अभिप्रेरणा किसी कार्य को करने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है। ❍ अभिप्रेरणा के तत्व :- • सकारात्मक प्रेरणा :-इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को स्वंय की इच्छा से करता है। • नकारात्मक प्रेरणा :- इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को स्वंय की इच्छा से न करके , किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है। ❍ अभिप्रेरणा चक्र :- मनोवैज्ञानिको ने अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए अभिप्रेरणा चक्र का प्रतिपादन किया। • आवश्यकता – अति आवश्यकता • चालक – आवश्यकता उत्पन्न • प्रोत्साहन – अपनी तरफ आकर्षित ❍ अभिप्रेरणा :- Motive = Need + Drive + Incentive ❍ अभिप्रेरणा के सिद्धांत (Principles of
Motivation) 1- मूल प्रवृति का सिद्धांत :-इस सिद्धान्त के अनुसार मूल प्रवृत्तियाँ अभिप्रेरणा में सहायता करती हैं। अर्थात मनुष्य या बालक अपने व्यवहार का नियंत्रण और निर्देशन मूल प्रवृत्तियों के माध्यम से करता है। 2- प्रणोद का सिद्धांत :-इसे सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य को जो बाहरी अभिप्रेरणा मिलती है अर्थात बाह्य उद्दीपक से जो अभिप्रेरणा मिलती है वो प्रणोद का कारण है। अर्थात अभिप्रेरणा से प्रणोद की स्थिति पाई जाती है जो शारीरिक अवस्था या बाह्य उद्दीपक से उतपन्न होती है। 3- विरोधी प्रक्रिया सिद्धान्त :-इसे सिद्धांत का प्रतिपादन सोलोमन और कौरविट ने किया था। यह एकदम सिंपल सा सिद्धांत है। इसको मोटा मोटा समझे तो हमें वही चीज़ ज़्यादा प्रेरित करती है जो हमे सुख देती है। और दुख देने वाली चीज़ो से हम दूर रहते हैं। 4- मरे का अभिप्रेरणा सिद्धान्त :-मरे ने इस सिद्धांत में अभिप्रेरणा को आवश्यकता कहा है। अर्थात मरे इस सिद्धांत को आवश्यकता के रूप में बताते हुए कहते हैं कि प्रत्येक आवश्यकता के साथ एक विशेष प्रकार संवेग जुड़ा होता है। मरे का अभिप्रेरणा का यह सिद्धांत बहुत सराहा गया। छात्र इसका अध्ययन और यहां तक कि इस पर रिसर्च भी करते हैं। ❍ अभिप्रेरणा के सिद्धांत 1) मनोविश्लेषणवाद का सिद्धांत (Theory of psychoanalysis)प्रतिपादक- सिगमंड फ्रायड है। इनके अनुसार “व्यक्ति के अचेतन मन की दमित इच्छाएं उसे कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।” (2) मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत (Theory of basic trends)प्रतिपादक – मैक्डूगल इनके अनुसार व्यक्ति में 14 मूल प्रवृत्तियां पाई जाती है, और यही मूल प्रवृत्तियां ही व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।क्योंकि व्यक्ति अगर अपनी मूल प्रवृत्तियों को पूरा नहीं करता है तो उसका जीवित रहना संभव नहीं है। और इन से संबंधित 14 संवेग भी है जो मूल प्रवृत्तियों से संबंध रखते हैं। व्यक्ति संवेगो को की पूर्ति के लिए अभिप्रेरित होकर अपनी मूल प्रवृत्तियों केअनुसार कार्य करता है। 3) आवश्यकता का सिद्धांत (Principle of necessity)प्रतिपादक – अब्राहम मास्लों इस सिद्धांत के बारे में अब्राहम मस्लो ने कहा है कि ” प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता की पूर्ति हेतु अभिप्रेरित होता है।” मास्लों का मानना है कि आवश्यकता वह तत्व है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। क्योंकि व्यक्ति अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए कार्य करना चाहता है। अब्राहम मस्लो ने पांच प्रकार की आवश्यकताओं के बारे में बताया है। (4) उपलब्धि का सिद्धांत(Achievement principle)प्रतिपादक – मैक्किलैंड (5) उद्दीपन – अनुक्रिया का सिद्धांत (Stimulus – theory of response)प्रतिपादक – स्किनर तथा थार्नडाइक है। (6) प्रोत्साहन का सिद्धांत (Principle of encouragement)प्रतिपादक – बॉल्फ एवं फाकमैन इन्होंने प्रोत्साहन के दो प्रकार के रूप बताएं हैं। स्वयं कार्य हेतु प्रेरित होना। – सकारात्मक अभिप्रेरणा (7) क्षेत्रीय सिद्धांत(Regional
theory)प्रतिपादक- कुर्ट लेविन (8) प्रणोद का सिद्धांत (Theory of thrust)प्रतिपादक – सी.एल हल सी.एल हल के अनुसार चालक वह तत्व है, जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए बाध्य करता है। जैसे भूख ( चालक) की पूर्ति हेतु कोई व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। चाहे काम कितना भी कठिन क्यों ना हो? वह अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन का जुगाड़ करेगा कैसे भी हो? इसलिए हम कह सकते हैं, प्रणोद\ चालक अभी प्रेरित करता है। (9) स्वास्थ्य का सिद्धांत
(Principle of health)प्रतिपादक – हर्जवर्ग (10) शारीरिक गति\ परिवर्तन सिद्धांत (Physical movement theory)प्रतिपादक- विलियम जेम्स, शेल्डर, रदरफोर्ड ❍ अभिप्रेरणा के मूल प्रवृत्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन मैक्डूगल(1908) ने किया था। इस नियम के अनुसार,” मनुष्य का व्यवहार उसकी मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होता है इन मूल प्रवृत्तियों के पीछे छिपे संवेग किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करते हैं” ❍ अभिप्रेरणा की विशेषताएं / प्रकृति 1 अभिप्रेरणा व्यक्त की आंतरिक अवस्था है । 2 हमें प्रेरणा आवश्यकता से प्रारंभ होती है । 3 अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है । 4 अभिप्रेरणा एक ध्यान केंद्रित व ज्ञानात्मक प्रक्रिया है । 5 अभिप्रेरणा की गति प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग होती है । 6 अभिप्रेरणा लक्ष्य प्राप्ति तक चलने वाली प्रक्रिया है । 7 अभिप्रेरणा लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन है । ❍थॉमसन द्वारा किया गया
वर्गीकरण: क) प्राकृतिक अभिप्रेरक (Natural motives) :- ख) कृत्रिम अभिप्रेरक (Artificial motives) :- ❍ मैस्लो द्वारा किया गया वर्गीकरण:- क) जन्मजात अभिप्रेरक(Inborn motives) :मैस्लो ने जन्मजात अभिप्रेरक के संबंध में कहा मानव का भूख, नींद, प्यास, सुरक्षा, प्रजनन आदि जन्मजात अभिप्रेरक हैं। ख) अर्जित (Acquired) :अर्जित अभिप्रेरणा से तात्पर्य मानव वातावरण से जो कुछ भी प्राप्त करता है वह इसके अंतर्गत आते हैं मैस्लो अर्जित (Acquired) अभिप्रेरक को दो भागों में बांटा है i. सामाजिक:- सामाजिक अभिप्रेरकों के अंतर्गत सामाजिकता , युयुत्सु और आत्मस्थापना आदि आता है। ii. व्यक्तिगत:-व्यक्तिगत अभिप्रेरकों में आदत रूचि अभिवृत्ति तथा अचेतन अभी प्रेरक आते हैं। ○अभिप्रेरणाशब्द ‘मकसद‘ शब्द से आया है जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति के भीतर की ज़रूरतें या ड्राइव। ○ प्रेरणा वह प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति को कुछ करने के लिए मानसिक रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। (अ) प्राकृतिक अभिप्रेरणाएँ(Natural Motivation)- प्राकृतिक अभिप्रेरणाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं- (1) मनोदैहिक प्रेरणाएँ-यह प्रेरणाएँ मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार की प्रेरणाएँ मनुष्य के जीवित रहने के लिये आवश्यक है, जैसे -खाना, पीना, काम, चेतना, आदत एवं भाव एवं संवेगात्मक प्रेरणा आदि। (2) सामाजिक प्रेरणाएँ-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह जिस समाज में रहता है, वही समाज व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारित करता है। सामाजिक प्रेरणाएँ समाज के वातावरण में ही सीखी जाती है, जैसे -स्नेह, प्रेम, सम्मान, ज्ञान, पद, नेतृत्व आदि। सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु ये प्रेरणाएँ होती हैं। (3) व्यक्तिगत प्रेरणाएँ-प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ विशेष शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। ये विशेषताएँ उनको माता-पिता के पूर्वजों से हस्तान्तरित की गयी होती है। इसी के साथ ही पर्यावरण की विशेषताएँ छात्रों के विकास पर अपना प्रभाव छोड़ती है। पर्यावरण बालकों की शारीरिक बनावट को सुडौल और सामान्य बनाने में सहायता देता है। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर ही व्यक्तिगत प्रेरणाएँ भिन्न-भिन्न होती है। इसके अन्तर्गत रुचियां, दृष्टिकोण, स्वधर्म तथा नैतिक मूल्य आदि हैं। (ब) कृत्रिम प्रेरणा(Artificial Motivation)- कृत्रिम प्रेरणाएँ निम्नलिखित रुपों में पायी जाती है- (1) दण्ड एवं पुरस्कार-विद्यालय के कार्यों में विद्यार्थियों को प्रेरित करने के लिये इसका विशेष महत्व है। दण्ड एक सकारात्मक प्रेरणा होती है। इससे विद्यार्थियों का हित होता है। (2) सहयोग-यह तीव्र अभिप्रेरक है। अतः इसी के माध्यम से शिक्षा देनी चाहिए। प्रयोजना विधि का प्रयोग विद्यार्थियों में सहयोग की भावना जागृत करता है। (3) लक्ष्य, आदर्श और सोद्देश्य प्रयत्न-प्रत्येक कार्य में अभिप्रेरणा उत्पन्न करने के लिए उसका लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। यह स्पष्ट, आकर्षक, सजीव, विस्तृत एवं आदर्श होना चाहिये। (4) अभिप्रेरणा में परिपक्वता-विद्यार्थियों में प्रेरणा उत्पन्न करने के लिये आवश्यक है कि उनकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए, जिससे कि वे शिक्षा ग्रहण कर सके। (5) अभिप्रेरणाऔर फल
का ज्ञान-अभिप्रेरणा को अधिकाधिक तीव्र बनाने के लिए आवश्यक है कि समय -समय पर विद्यार्थियों को उनके द्वारा किये गये कार्य में हुई प्रगति से अवगत कराया जायें जिससे वह अधिक उत्साह से कार्य कर सकें। ❍ शिक्षा के क्षेत्र में अभिप्रेरणाका महत्व निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जाता है- (1) सीखना –सीखने का प्रमुख आधार ‘प्रेरणा‘ है। सीखने की क्रिया में ‘परिणाम का नियम‘ एक प्रेरक का कार्य करता है। जिस कार्य को करने से सुख मिलता है। उसे वह पुनः करता है एवं दुःख होने पर छोड़ देता है। यही परिणाम का नियम है। अतः माता-पिता व अन्य के द्वारा बालक की प्रशंसा करना, प्रेरणा का संचार करता है। (2) लक्ष्य की प्राप्ति– प्रत्येक विद्यालय का एक लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में प्रेरणा की मुख्य भूमिका होती है। ये सभी लक्ष्य प्राकृतिक प्रेरकों के द्वारा प्राप्त होते है। (3) चरित्र निर्माण– चरित्र-निर्माण शिक्षा का श्रेष्ठ गुण है। इससे नैतिकता का संचार होता है। अच्छे विचार व संस्कार जन्म लेते हैं और उनका निर्माण होता है। अच्छे संस्कार निर्माण में प्रेरणा का प्रमुख स्थान है। (4) अवधान – सफल अध्यापक के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों का अवधान पाठ की ओर बना रहे। यह प्रेरणा पर ही निर्भर करता है। प्रेरणा के अभाव में पाठ की ओर अवधान नहीं रह पाता है। (5) अध्यापन – विधियाँ शिक्षण में परिस्थिति के अनुरूप अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग करना पड़ता है। इसी प्रकार प्रयोग की जाने वाली शिक्षण विधि में भी प्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। (6) पाठ्यक्रम– बालकों के पाठ्यक्रम निर्माण में भी प्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। अतः पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को स्थान देना चाहिए जो उसमें प्रेरणा एवं रुचि उत्पन्न कर सकें तभी सीखने का वातावरण बन पायेगा। (7) अनुशासन –यदि उचित प्रेरकों का प्रयोग विद्यालय में किया जाय तो अनुशासन की समस्या पर्याप्त सीमा तक हल हो सकती है। ○ प्रेरणा देने वाले घटक क्रो एवं क्रो के अनुसार :- ज्ञान एवं अभिवृत्ति की प्राप्ति ही सीखना है। गिलफोर्ड के अनुसार :-सीखना व्यवहार के फलस्वरूप व्यहवार में कोई परिवर्तन है। स्किनर के अनुसार :-व्यहवार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं। ○ अधिगम निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है तथा सीखना विकास की प्रक्रिया का माध्यम है। • सीखना उद्देश्यपूर्ण है। • सीखना खोज करना है। • सीखना सार्वभौमिक है। • सीखना एक परिवर्तन है। • सीखना नवीन कार्य करना है। ❍ अधिगम में अभिप्रेरणा :- • अभिप्रेरणा छात्रों में उत्सुकता या जिज्ञासा उत्पन्न करती है। • यह छात्रों की सीखने की अभिरुचि को बढ़ाता है। • यह छात्रों में नैतिक , सांस्कृतिक , चारित्रिक तथा सामाजिक मूल्यों को बढ़ाता है। ❍ अधिगम में योगदान देने वाले कारक :- ○ व्यक्तिगत कारक :- • बुद्धि ○ पर्यावरणीय कारक :- • वंशानुक्रम अभिप्रेरणा के अधिगम पर क्या प्रभाव पड़ता है?प्रेरणा इन 'इच्छाओं और आन्तरिक प्रेरकों तथा क्रियाशीलता की सामूहिक शक्ति के फलस्वरूप है। उच्च प्रेरणा हेतु उच्च इच्छा चाहिए जिससे अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो और गतिशीलता उत्पन्न हो। अभिप्रेरणा द्वारा व्यवहार को अधिक दृढ़ किया जा सकता है। फ्रेण्डसन के अनुसार-''सीखने में सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं।''
प्रेरणा अधिगम को कैसे प्रभावित करती है?(6) अभिप्रेरणा :- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यदि बालक को किसी नवीनतम ज्ञान अथवा कार्य को सीखने के लिए प्रेरित नहीं किया जाता है तो वह उस क्रिया में रुचि नहीं लेगा। अभिप्रेरणा से सीखने की इच्छा प्रबल हो जाती है।
अभिप्रेरण क्या है अभिप्रेरण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए?अभिप्रेरणा को उत्पन्न करने वाले कारकों को अभिप्रेरक कहते हैं। अभिप्रेरक व्यक्ति की वे आन्तरिक एवं बाह्य दशाएँ हैं, जो उसे कार्य विशेष के सम्पादन के लिए अभिप्रेरित करती हैं एवं उद्देश्य की प्राप्ति तक क्रियाशील रखती हैं। इस तरह अभिप्रेरक दो प्रकार के होते हैं :- बाह्य अभिप्रेरक एवं आन्तरिक अभिप्रेरक।
अभिप्रेरणा अधिगम से कैसे संबंधित है?❍ अधिगम में अभिप्रेरणा :-
अभिप्रेरणा छात्रों में उत्सुकता या जिज्ञासा उत्पन्न करती है। यह छात्रों की सीखने की अभिरुचि को बढ़ाता है। यह छात्रों में नैतिक , सांस्कृतिक , चारित्रिक तथा सामाजिक मूल्यों को बढ़ाता है।
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