आवश्यकताओं के दौरे सहयोग से आप क्या समझते हैं? - aavashyakataon ke daure sahayog se aap kya samajhate hain?

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आवश्यकता आवश्यकता उन जरूरतमंद वस्तुओं का नाम है जो हमारे दैनिक जीवन में उपयोग आती आवश्यकता की शब्द आवश्यकता शब्द की जरूरत आवश्यकता स्वयं पर्यायवाची शब्द है जरूरत नींद आवश्यकता जरूरत जरूरी दिनचर्या में योग होने वाली वस्तुओं को जो हमारे काशी पास में हमारे नजदीकी हैं जो हमारे दिल्ली यूज़ में आती हैं और उनसे भी कुछ हटके होती हैं जो आवश्यक हो जाती है ऐसी कुछ वस्तुओं को आवश्यकता के हिसाब से उन्हें एक जरूरतमंद की लिस्ट में रखा गया है जिन आवश्यकता का नाम दिया गया है उनके बगैर मर नहीं सकते लेकिन उनके बगैर हम थोड़ा कठिनाइयों के साथ जीते इसलिए हमारे लिए कुछ शब्द कुछ वस्तुएं ऐसी हैं जिन्हें आप सकता का सब कुछ दिया गया है थैंक यू

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मुद्रा के अन्य रूप:

बैंक में निक्षेप या जमा: अपने दैनिक आवश्यकताओं के लिये हमें बहुत कम करेंसी नोट की आवश्यकता होती है। बाकी राशि लोग अक्सर बैंकों में निक्षेप या जमा के रूप में रखते हैं। बैंक में जमा धन सुरक्षित रहता है और उसपर ब्याज भी मिलता है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से अपने बैंक खाते से रुपये निकाल सकते हैं। बैंक खाते में जमा राशि को जरूरत (डिमांड) के हिसाब से निकाला जा सकता है इसलिए इन खातों के निक्षेप (डिपॉजिट) को डिमांड डिपॉजिट कहते हैं।

लोग अपना बकाया भुगतान करने के लिये चेक का इस्तेमाल भी करते हैं। चेक पर भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और भुगतान की जाने वाली राशि को लिखना होता है। उसके बाद चेक जारी करने वाले व्यक्ति को चेक के नीचे हस्ताक्षर करना होता है। इसके अलावा डिमांड ड्राफ्ट के जरिये भी भुगतान किया जा सकता है। डिमांड ड्राफ्ट को बैंक से खरीदा जा सकता है। यह दिखने में चेक की तरह ही होता है। डिमांड ड्राफ्ट पर भुगतान की जाने वाली राशि, भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और बैंक अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।

क्रेडिट: बैंक में जमा कुल राशि का एक छोटा हिस्सा ही कैश के रूप में बैंक के पास रहता है। यह सामान्यत: कुल जमा राशि का 15% होता है। यह राशि इसलिए रखी जाती है ताकि जब कोई व्यक्ति अपने खाते से पैसे निकालने आये तो उसे भुगतान किया जा सके। किसी भी बैंक के कुल खाताधारकों का एक छोटा हिस्सा ही किसी एक दिन को पैसे निकालने आता है। इसलिये यह राशि इस काम के लिये पर्याप्त होती है। शेष राशि का इस्तेमाल बैंक द्वारा कर्ज देने में किया जाता है। कर्ज में जो राशि दी जाती है उसे क्रेडिट कहते हैं। इस राशि पर बैंक ब्याज लेता है। बैंक द्वारा लिया गया ब्याज दर हमेशा बैंक द्वारा दिये जाने वाले ब्याज दर से अधिक होता है। इस प्रकार से बैंक की आय का मुख्य स्रोत ब्याज ही होता है।

क्रेडिट/डेबिट कार्ड: क्रेडिट और डेबिट कार्ड आधुनिक जमाने में काफी प्रचलित हैं। डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड एक जैसे दिखते हैं। डेबिट कार्ड द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने खाते में जमा राशि में पेमेंट कर सकता है। क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करते समय आप बैंक से कर्ज लेते हैं। दोनों तरह के कार्डों से भुगतान इलेक्ट्रानिक रूप में होता है और किसी को कैश ढ़ोने की जरूरत नहीं होती है।

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Purnima Class-11th

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मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।

वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का प्रयोग किए बिना सीधे वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता था। ऐसी स्थिति में माँगों का दोहरा संयोग होना आवश्यक था। उदाहरण के लिए, यदि किसी कपड़ा व्यापारी को चावल चाहिएं तो उसे ऐसे किसान को खोजना होगा, जो चावल के बदले कपड़े खरीदना चाहता हो। इस समस्या का समाधान मुद्रा का प्रयोग करके किया जाता है। मुद्रा माँगों के दोहरे संयोग की समस्या को समाप्त कर देती है। मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, इसे विनिमय का माध्यम भी कहा जाता है।

सहयोग (लैटिन कॉम से- "के साथ" + मजदूर "श्रम के लिए", "काम करने के लिए") एक कार्य को पूरा करने या लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दो या दो से अधिक लोगों, संस्थाओं या संगठनों की एक साथ काम करने की प्रक्रिया है। सहयोग सहयोग के समान है।[1] अधिकांश सहयोग के लिए नेतृत्व की आवश्यकता होती है, हालांकि नेतृत्व का रूप एक विकेन्द्रीकृत और समतावादी समूह के भीतर सामाजिक हो सकता है।[2] सीमित संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा का सामना करते समय सहयोगी रूप से काम करने वाली टीमें अक्सर अधिक संसाधनों, मान्यता और पुरस्कारों तक पहुंचती हैं।

सहयोग के संरचित तरीके व्यवहार और संचार के आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करते हैं। इस तरह के तरीकों का उद्देश्य टीमों की सफलता को बढ़ाना है क्योंकि वे सहयोगी समस्या-समाधान में संलग्न हैं। विरोधी सहयोग की धारणा को प्रदर्शित करने वाले लक्ष्यों के विरोध में सहयोग मौजूद है, हालांकि यह शब्द का सामान्य उपयोग नहीं है। अपने व्यावहारिक अर्थ में, "(ए) सहयोग एक उद्देश्यपूर्ण संबंध है जिसमें सभी पक्ष रणनीतिक रूप से एक साझा परिणाम प्राप्त करने के लिए सहयोग करना चुनते हैं।" [3]

सहयोग (अंग्रेजी: Collaboration) का अर्थ दो या अधिक व्यक्तियों या संस्थाओं का मिलकर काम करना है। सहयोग की प्रक्रिया में ज्ञान का बारंबार तथा सभी दिशाओं में आदान-प्रदान होता है। यह एक समान लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में उठाया गया बुद्धि विषयक कार्य है। यह जरूरी नहीं है कि सहयोग के लिये नेतृत्व की आवश्यक होता है। परन्तु यह आवश्यकता नहीं है कि नेतृत्व का भी सहयोग नहीं होता है। सहयोग एक दुसरे के माध्यम से होता है। फिर भी आपसी सहयोग का होना बहुत जरुरी होता है। एक दुसरे को आगे बढाना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि किसी भी संस्था के सहयोग करने से आपसी सहयोग कि संभावना बहुत अधिक होती है। फिर भी पारंपरिक या आर्थिक सहयोग का होना बहुत मायने रखता है। सहयोग कि भावना हर मनुष्य में होना चाहिए। और मैं दुसरो के सहयोग कर सकुँ। एक दुसरे के सहयोग से देश हो या मनुष्य कि जीवन में बढता रहता है। सहयोग भी कई प्रकार के होते हैं। आर्थिक हो या तकनिकी सहयोग इसके आदि और भी हो सकते हैं। परन्तु सहयोग एक विशिष्ट कार्य के रूप में होता है। तब पर भी घर हो या बाहर किसी जगह पर सहयोग का आदान-प्रदान किया जा सकता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि रुपया से ही सहयोग किया जा सकता है। जीवन में मनुष्य का सहयोग एक कर्तत्व हि नहीं बल्कि मनुष्य की जीवन शैली में सहयोग का होना जरुरी है। सहयोग की कोई सीमा निर्धारित नहीं होता है जो कभी भी किसी व्यक्ति का सहयोग किसका मिल सके। तब पर भी अपने को एक सामान्य की भाँति जीवन में मनुष्य की सहयोग करना चाहिए। किसी संस्था हो या धर्म स्थान को आप सहयोग कर सकते हैं। चाहे हिन्दु की धर्म स्थान हो या मुस्लिम की किसी भी धर्म स्थान या संस्था या सोसाइटी में अपना सहयोग कर सकते हैं। किसी भी देश के नेता दुसरे देश जाते हैं तो वह एक दुसरे को आपसी सहयोग की भावना बनाता है। और दोनों देशों की आपस में सहयोग करता देखा जाता है। तब पर भी दोनों देश के बिच आपसी सहयोग का होना जरुरी होता है। सहयोग किसी भी क्षेत्र में आप दे सकते हैं। आर्थिक हो या तकनीकी एवं अन्य क्षेत्रों में आप सहयोग कर सकते हैं। सहयोग का मतलब होता है किसी भी प्रकार का हो सकता है। विकास हो या ऊर्जा या परमाणु और तकनीक आदि में सहयोग हो सकता है। और किसी भी देश के साथ एक दुसरे के लिए आप किसी भी क्षेत्र में आप सहयोग करने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि सहयोग का अर्थ होता है। एक दुसरे का जब तक किसी भी देश दुसरे देश से सहयोग नहीं करते हैं। तब तक आगे नहीं बढ सकता है। और किसी भी देश चाहता है कि किसी भी देश से सहयोग बना रहे। तभी भी विकास हो सकता है। चाहे नेता हो या साधारण व्यक्ति कोई भी व्यक्ति चाहते हैं कि सहयोग बना रहे। और भारत कि बात है। तो भारत के लिए एक महत्वपुर्ण बात होता है कि किसी भी देश के लिए सहयोग बना होना। जिवन में किसी से भी सहयोग हो सकता है। परन्तु यह कहनाजरुरी नहीं है। कब किसका सहयोग कब मिल जायेगा। क्योंकि कोई किसी को नहीं जानते हैं कि किसका सहयोग किसको मिलेगा। और हर आदमी चाहते हैं कि मुझसे जितना हो सके सहयोग मैं करने के लिए तैयार रहता हुँ। सहयोग हर आदमी की भावना होना चाहिए। कि मैं सहयोग कर सकुँ। क्योंकि जीवन में क्या लेकर आये हैं। यही आदमी का एक मौका मिलता है कि मैं दुसरे का सहयोग कर सकुँ। चाहे अपना हो या पराया किसी को आप सहयोग कर सकते हैं। इसमें किसी पे सहयोग करने के लिये दबाब नहीं बनाया जाता है। क्योंकि सहयोग दबाब का जीज नहीं है। हर आदमी को कोई न कोई सहयोग करता है। चाहें आप कि जिवन में पत्नी हो या गाँव का लोग जरुर सहयोग करता है। यह जरुरी नहीं है कि आप का सहयोग गाँव का हि लोग कर सकते हैं। कहीं और का आदमी भी हो सकते हैं। सहयोग ही एक ऐसे शक्ति प्रदान [4] करता है। जो आदमी को लक्ष्य तक पहुँचाता है। हर आदमी में सहयोग की भाबना होना चाहिए। मनुष्य ही एक ऐसे प्राणी है। जो हर किसी को सहयोग कर सकता है। क्योंकि सहयोग से किसी को सफलता मिलते हैं। तो उसे हमें सहयोग करना चाहिए। किसी भी तरह का सहयोग आप करना चाहते हैं। तो आप कर [5] सकते हैं। सहयोग के लिए किसी को कोई दबाब नहीं दिया जाता है। जो अपनी श्रधा के अनुसार आप दे सकते हैं। लेकिन किसी भी संस्थान के लिये आप अपनी सहयोग का मापदंड आप पर निर्भल करता है। और मैं उसमें किस तरह का भागिदारी बन सके। हर किसी को सहयोग कि भावना होना चाहिए। क्योंकि [6] सहयोग एक ऐसे बात नहीं है। जो दुसरो के लिये किया जा सकता है। परन्तु जब तक किसी भी संस्था के रूप में काम करती है। सहयोग हर आदमी को करना चाहिए। सहयोग से आदमी का मनोवल बदता है। सही समय पर किया गया काम अच्छा माने जाते हैं। सहयोग एक दुसरे के साथ मिलकर किया जाना चाहिए। परन्तु एक अपनी दिशा के अनुसार काम करना चाहिए। आज सहयोग के लिये अपना काम करता है। सहयोग हर गाँव या समाज में होता है। चाहें किसी भी जाति का हो सकता है। पर सहयोग सब कि करनी चहिए। और किसी भी प्रकार का आप को सहयोग करना चाहिए। सहयोग सबसे बड़ा मनुष्य के लिए महत्वपुर्ण काम है। जीवन के सारे पहलु में हमेश सहयोग का बहुत ही महत्त्वपुर्ण भुमिका होती है। हर हरह से मनुष्य का सहयोग करना चाहिए। सहयोग एक ऐसे काम के लिए जो दुसरे के लिए आगे आने का मौका मिल जाता है। सहयोग ही एक है जो हर देश, गाँव, समाज या किसी भी जाति वर्ग का आप सहयोग करते हैं। आपने देखा ही होगा कि जिस तरह का उत्तराखण्ड में बादल फटने से कितने आदमी का मौत हुआ है। उसी तरह समाज को आगे लाने के लिए लोग सहयोग कर रहे हैं। सहयोग एक वैसे चीज है जो हर प्रकार से आप सहयोग कर सकते हैं। जिस तरह का उत्तराखण्ड में हुआ है अगर आप इस में सहयोग नहीं किजिए गा तो किस में किजिए गा। यह बहुत बडी नुकसान हुआ है। देश के लिये। इस लिए सहयोग करना चाहिए। हर जाति धर्म के लिए सहयोग बहुत मैंने रखते हैं। गाँव हो या शहर कहीं पर भी आप किसी प्रकार का सहयोग कर सकते हैं। सहयोग के लिये कोइ पाबंधी नहीं है। किसी भी देश का आदमी कोइ भी देश में सहयोग कर सकता है। भारत में हि नहीं पूरे संसार में आप कहीं भी सहयोग कर सकते हैं। और किसी भी देश में कोइ आदमी सहयोग करना चाहते हैं। तो उस आदमी को कोइ नहीं रोक सकता सहयोग करने से चाहें सरकार हो या आम आदमी कुछ नहीं कर सकते हैं। किसी भी व्यक्ति को पर्सनल काम में बाँधा नहीं करना चाहिए। हर मनुष्य की जीवन में एक व्यक्तिगत रूप से अपनी कोई न कोई ख्याल रखता है। और किसी भी परिस्थिति में वह अपना काम करते रहते हैं। यही कारण होता है। जब लोगों की अपनी भावना होती है कि मैं दुसरो की सहयोग कर सकते हैं। तो इस में किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। और जीवन में हर प्रकार का काम करना चाहिए। जो मनुष्य के लिये लाभदायक होती है। वही करना चाहिए।

तकनीकी एवं अन्य क्षेत्रों में सहयोग[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • सहकार

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. www6.culture-of-collaboration.com http://www6.culture-of-collaboration.com/?template=VERTICAL_LINES&tdfs=1&s_token=1642303542.0165110000&uuid=1642303542.0165110000&term=Meeting%20Facilitation%20Training&term=Collaboration%20Tools&term=Management%20Skills%20Training%20Online&searchbox=0&showDomain=0&backfill=0. अभिगमन तिथि 2022-01-16.
  2. "Wayback Machine" (PDF). web.archive.org. मूल से पुरालेखित 10 अप्रैल 2008. अभिगमन तिथि 2022-01-16.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  3. Rubin, Hank (2009). Collaborative leadership: developing effective partnerships for communities and schools (English में). OCLC 842851754. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-299-39565-7.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 नवंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 नवंबर 2008.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 दिसंबर 2015.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 दिसंबर 2015.

आवश्यकता के दौरे सहयोग से आप क्या समझते हैं उदाहरण से स्पष्ट कीजिए?

Solution : वस्तु विनिमय प्रणाली, जहाँ मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुएँ सीधे आदान-प्रदान की जाती हैं, वहाँ एक व्यक्ति जो बेचने की इच्छा रखता है, तो दूसरे व्यक्ति की खरीदने की इच्छा से बिल्कुल मेल खाना चाहिए। इसे ही आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं

आवश्यकता के दोहरे संयोग से क्या आशय है?

आवश्यकताओं का दोहरा संयोग तब होता है जब दो लोगों के पास सामान होता है और वे दोनों बदले में खुश होते हैं। आवश्यकताओं का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था की नींव है। आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली में एक प्रमुख मुद्दा है।

आप कैसे कह सकते हैं कि मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे सहयोग की जरूरत को खत्म कर देती है?

Solution : मुद्रा वस्तु विनिमय प्रणाली में मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या सुलझाती है। जैसे एक व्यक्ति के पास कोई भी वस्तु नहीं है परंतु वह बाजार से कपड़ा खरीदना चाहता है तो मुद्रा का प्रयोग कर वह कपड़ा खरीद सकता है। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या का समाधान हो जाता है।

वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या क्या थी?

आवश्कताओं के दोहरे संयोग का अभाव: वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी सम्भव हो सकता हैं जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो;अर्थात् पहले व्यक्ति की वस्तु की पूर्ति, दूसरे की माँग की वस्तु हो और दूसरे व्यक्ति की पूर्ति की वस्तु, पहले व्यक्ति की माँग की वस्तु हो।