Republic day 2022 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दिसंबर 1929 को लाहौर अधिवेशन में रखा था पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव। प्रस्ताव लागू होने की तिथि को महत्व देने के लिए ही 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया संविधान।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। हर देशवासी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाता है। दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र का जश्न मनाकर हम स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों की आहूति देने वाले वीर क्रांतिकारियों को नमन करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी से पहले 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था। करीब 18 वर्ष तक 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस (स्वतंत्रता दिवस) मनाया जाता रहा।
शहीद स्मृति समारोह समिति के महामंत्री उदय खत्री ने बताया कि दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर में अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने की थी। अधिवेशन में पंडित नेहरु ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव में कहा गया था कि यदि अंग्रेजी हुकूमत 26 जनवरी 1930 तक भारत को उसका प्रभुत्व (डोमिनियन का पद) नहीं देती है तो भारत खुद को स्वतंत्र घोषित कर देगा। इसलिए कांग्रेस ने 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस (स्वतंत्रता दिवस) घोषित किया, पर जब अंग्रेजी हुकूमत ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सक्रिय आंदोलन शुरू किया।
26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इसी दिन जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगा फहराया था। फिर देश को आजादी मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक रूप से स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया। 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव लागू होने की तिथि को महत्व देने के लिए ही 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया था। इसके बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।
दो वर्ष 11 महीने और 18 दिन में लिखा गया था संविधान : 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने के बाद संविधान सभा का गठन किया गया। फिर बाबा साहेब भीमराव अबेडकर ने तकरीबन दो साल, 11 महीने और 18 दिन में दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। तब से इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान की हिंदी और अंग्रेजी में दो लिखित प्रतिलिपियां हैं, जिन्हें संसद में हीलियम से भरे केस में रखा गया है।
संविधान निर्माण में थीं 22 समितियां : डा. भीमराव आंबेडकर, जवाहर लाल नेहरु, डा. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान निर्माण में कुल 22 समितियां थी, जिसमें प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण समिति थी। इस समिति का कार्य संपूर्ण संविधान लिखना या निर्माण करना था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे। प्रारूप समिति ने और उसमें विशेष रूप से डॉ. आंबेडकर ने भारतीय संविधान का निर्माण किया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सौंपा।
Edited By: Anurag Gupta
Republic Day: 26 जनवरी, 2022 को भारत अपना 73वां गणतंत्र दिवस (Republic Day) मना रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि भारत (India) का गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है. आखिर भारतीय इतिहास (Indian History) में 26 जनवरी इतनी खास क्यों है कि उसी दिन को भारत का गणतंत्र दिवस चुना गया था और आखिर क्या हुआ था 26 जनवरी को कि आजादी (Freedom) के बाद जब भारत को गणतंत्र घोषित करने की बात आई तो 26 जनवरी की ही तारीख मुकर्रर की गई? इस कहानी को समझने से पहले भारतीय संविधान
(Indian Constitution) की प्रस्तावना को देखिए.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना ही भारतीय संविधान की आत्मा है, जिसकी पहली लाइन ही है हम भारत के लोग. इसी प्रस्तावना में लिखा गया है कि अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत्. 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं. यानी कि साफ है कि संविधान 26 नवंबर, 1949 को पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था.
2 साल, 11 महीने और 18 दिन के दौरान कुल 12
अधिवेशन, 166 दिन की बैठक और कुल 114 दिन की बहस के बाद 26 नवंबर, 1949 को हमारा संविधान पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था. फिर भी इसे लागू करने में दो महीने की देरी हुई. और इस देरी के पीछे है 26 जनवरी, 1929 की वो कहानी, जिसने संविधान सभा के लोगों को प्रेरित किया कि संविधान को 26 जनवरी को ही लागू किया जाए.
बात करीब 92 साल पुरानी है. तब भारत पर अंग्रेजों का शासन था और देश के लोग आजादी के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे थे. इसी कोशिश के तहत 31 दिसंबर, 1929 को कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया. अधिवेशन की जगह अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में हो रहा था. पंडित जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष थे.
अधिवेशन में तय हुआ कि अब भारत को पूर्ण स्वराज चाहिए और इसके लिए कांग्रेस की ओर से कहा गया कि अगर अंग्रेज 26 जनवरी, 1930 तक भारत को आजाद नहीं करते हैं तो फिर भारत खुद को आजाद घोषित कर देगा. अंग्रेजों को कांग्रेस की बात नहीं ही माननी थी, तो वो नहीं माने.
विरोध में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों के रहने के बावजूद तय तारीख यानी कि 26 जनवरी, 1930 को रावी नदी
के किनारे तिरंगा झंडा फहराकर भारत की आजादी की घोषणा कर दी. पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में 26 जनवरी की तारीख इतिहास बन गई, क्योंकि लाखों लोगों ने तिरंगा फहराकर भारत की आजादी की मुनादी की. तब से हर साल कांग्रेस ने 26 जनवरी की तारीख को पूर्ण स्वराज दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया.
1947 में आजादी के बाद भारत का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त हो गया, लेकिन 26 जनवरी भी एक अहम तारीख थी, जिसे याद रखा जाना जरूरी था. ऐसे में जब 26 नवंबर, 1949 को भारत ने अपना संविधान तैयार कर भी लिया तो फिर दो
महीने का इंतजार और किया गया. और फिर पूर्ण स्वराज की 22वीं वर्षगांठ पर संविधान को लागू करके पूर्ण स्वराज दिवस को गणतंत्र दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया.
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