Show करतार-आयशा ने भी पाई झिझक से आजादी पत्रकार करतार सिंह अपनी प्रेमिका आयशा अली के साथ स्वतंत्रता का जश्न मनाने कनॉट सर्कस के पास वाले गार्डन में पहुंचे थे। जैसे ही रात के 12 बजे, करतार ने आयशा को अपनी ओर खींचा और अपनी बांहों में जकड़ लिया। आजादी के जश्न का सुरूर करतार पर कुछ ऐसा चढ़ा कि उनके होंठ कब आयशा के होंठों तक पहुंच गए, पता ही नहीं चला। वह उनका पहला चुंबन था। दोनों कुछ ही दिन पहले मिले थे और एक-दूसरे को चाहने लगे थे। कहना ना होगा कि करतार दुग्गल सिंह सिख थे जबकि आयशा अली एक मुस्लिम। खुल गए होटलों के द्वार, गूंजा राष्ट्रगान का समवेत स्वर दिल्ली के इंपीरियल होटल में उत्साही देशवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा। आधी रात के बाद वहां एक युवक बार पर चढ़ गया और उसने सभी से राष्ट्रगान गाने की अपील की। वह युवक रवींद्र नाथ टैगोर का लिखा 'जन गन मन अधिनायक जय हे' की एक पंक्ति गाता और बाकी लोग एक स्वर से अगली पंक्ति गाते। उधर, पुरानी दिल्ली के मैडन होटल में एक खूबसूरत युवती सड़ी में सजी-धजी एक टेबल से दूसरे टेबल के बीच चिड़िया जैसी फुदक रही थी। वह आजादी के उत्सव में एक भी व्यक्ति को बिना तिलक नहीं देखना चाहती थी। इसलिए, वह अपने लिपस्टिक ट्यूब से ही हर किसी के ललाट पर तिलक का चिह्न बना रही थी। Jinnah Pakistan: भारत से बंटवारे के 75 साल में नरक बना पाकिस्तान, सेना और कट्टरपंथियों ने जिन्ना के सपनों को रौंदा देशभर के सिनेमाघर हुए फ्री उधर, कांग्रेस ने आदेश जारी किया कि 15 अगस्त को देशभर में एक भी बूचड़खाना नहीं खुलेगा। आजादी का उल्लास मनाने के लिए देशभर के सभी सिनेमाघरों को फ्री करने का फैसला हुआ। दिल्ली में सभी स्कूली बच्चों को इंडिपेंडेंस मेडल के साथ मिठाइयां दिए जाने का आदेश भी दिया गया। महज 24 घंटे पहले जो लोग एक-दूसरे का गला काटने पर उतारू थे, स्वतंत्रता की घोषणा के बाद मिल-जुलकर खुशियां बांटने लगे। क्या हिंदू, क्या सिख और क्या मुसलमान, सभी एक-दसूरे को गले लगाकर मिठाइयां खिला रहे थे। वायसराय हाउस से हटने लगे वो साइन बोर्ड्स उधर, दिल्ली स्थित वायसराय हाउस का नाम बदल कर गवर्नमेंट हाउस करके आम भारतीयों के लिए खोल दिया गया। इसके साथ ही, माउंटबेटन ने अपने सभी स्टाफ को चेतावनी दी कि किसी भी भारतीय से ऐसी बात नहीं की जाए जिससे ब्रिटिश हुकूमत की बू आए। उन्होंने नौकरों को वायसराय हाउस के एक-एक साइन बोर्ड को ध्यान से पढ़कर उन सभी शब्दों को मिटाने का आदेश दिया जो भारतीयों के लिए अपमानजनक हों। आजादी के उमंग के बीच कुछ साजिशें भी ऐसा नहीं है कि आजादी के जश्न में सबकुछ ठीक ही हो रहा था। पुरानी दिल्ली की गलियों में झुंड के झुंड में मुसलमान, मुस्लिम लीग का दिया हुआ नया नारा जोर-जोर से दुहरा रहे थे- लड़कर लिया पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिंदुस्तान। 15 अगस्त, 1947 की सुबह ही पुरानी दिल्ली की एक मस्जिद से एक मुल्ले ने ऐलान किया- मुसलमानों ने दिल्ली पर सदियों हुकूमत की, हमारी फिर हुकूमत होगी। भीड़ से आवाज गूंज उठी- इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह। दूसरी तरफ, बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार दिल्ली के रिफ्यूजी कैंपों में अपनी-अपनी जगह तलाश रहे थे। भभूत लगाकर साधुओं के बीच चमकते-दमकते नेहरू इन सबसे पहले, 14 अगस्त के दिन में जब जवाहर लाल नेहरू 17 यॉर्क रोड स्थित आवास पर थे, तभी साधु-संतों की एक टोली वहां आई। पूरे शरीर में भभूत लगाए साधुओं की इस टोली ने नेहरू पर पवित्र जल छिड़का और ललाट पर वही भभूत लगाया और एक चादर ओढ़ा दिया। फिर साधुओं की उस टोली के प्रमुख ने अपना धर्मदंड नेहरू को थमा दिया। पंडित नेहरू यूं तो धार्मिक रीति-रिवाजों से दूर ही रहा करते थे, लेकिन उस दिन साधुओं की टोली के एक-एक कार्य से बेहद खुश हो रहे थे। मानो नेहरू को मन-ही-मन समझ रहे हों कि विभाजित भारत को संभालने के लिए ईश्वर के आशीर्वाद की जरूरत तो है ही। दुर्लभ तस्वीर: यह एक ऐसा क्षण है जो इतिहास में यदा-कदा आता है... 14-15 अगस्त की रात पंडित नेहरू का वो ऐतिहासिक भाषण माउंटबेटन की वो शर्त और नेहरू की 'हां' आजाद भारत में अपनी बेहद चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं को समझते हुए ही नेहरू ने माउंटबेटन की एक शर्त भी बड़ी आसानी से मान ली। ब्रिटिश हुकूमत के आखिरी वायसराय ने कहा कि आजादी की घोषणा के वक्त ब्रिटेन का झंडा यूनियन जैक को उतारा नहीं जाएगा। माउंटबेटन इसके लिए अड़ गए। नेहरू ने उनका मिजाज भांपकर यह शर्त मान ली। नेहरू ने माउंटबेटन से कहा कि आज हमारे लिए खुशी का दिन है और मैं चाहता हूं कि हर कोई हमारी खुशी में शामिल हो। अगर यूनियन जैक उतारे जाने को ब्रिटिश हुकूमत का अपमान मानकर आप दुखी होंगे तो यह झंडा यूं ही लहराता रहेगा। ये सारी कहानियां फ्रीडम एट मिडनाइनट नामक पुस्तक में वर्णित हैं जिसे डॉमनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस नाम के दो विदेशी लेखकों ने लिखा है। आजादी के अमृत महोत्सव में हम भारतीयों का संकल्प क्या? बहरहाल, हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में अलग तरह का उत्साह है। सरकारी आयोजनों की तो बात ही अलग है, भारत के हर घर पर तिरंगा लहरा रहा है। लेकिन क्या इतना काफी है? क्या आज का उत्सव एक रवायत तक सीमित रह जाएगा या फिर देश के सामने, देश के अंदर और बाहर से मुंह बाए खड़ी चुनौतियों के प्रति हम सतर्क और सावधान होंगे? क्या हम एक होकर भारत को वो ताकत, वह सम्मान दिलाने का संकल्प लेंगे जिसकी कल्पना 14 अगस्त की आधी रात को आजादी की घोषणा के वक्त और उससे भी पहले से भी, एक-एक भारतीय ने देखी थी? ध्यान रहे, आजादी के जश्न में हम इतना न खो जाएं कि ये सारे जरूरी सवाल हमारे मन-मस्तिष्क में आएं ही नहीं या आएं भी तो क्षणभर के लिए और फिर गुम हो जाएं। आप सबको की ढेर सारी शुभकामनाएं 15 अगस्त 1947 को भारत में क्या हुआ?साल 1947 में 15 अगस्त को भारत को आजादी मिली थी. पिछले साल 15 अगस्त को ही अमेरिका फौज अफगानिस्तान से गई थी. August 15 History: अंग्रेजों की लंबी गुलामी के बाद भारत ने आखिरकार 15 अगस्त 1947 को आजाद हवा (Independence Day) में सांस ली और आजाद सुबह का सूरज देखा.
14 अगस्त 1947 की रात को क्या हुआ था?हम अंग्रेजों की 250 वर्षो की गुलामी से आजाद तो हो गए, लेकिन जाते-जाते वह हमें बंटवारे का दर्द दे गए। 14 अगस्त की रात हिन्दुस्तान के 2 टुकड़े हुए थे जिससे लाखों लोग बेघर हो गए। एक तरफ भारत तो दूसरी तरफ पाकिस्तान बना। बंटवारे के दौरान चारों तरफ हिंसा फैली हुई थी।
15 अगस्त 1947 को सबसे बड़ी घटना क्या हुई?Highlights. 15 अगस्त 1947 को भारत ने ली आजाद हवा में सांस. 1972 में 15 अगस्त के ही दिन PIN कोड लागू किया गया. 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल पर किया था कब्जा. 15 अगस्त को कितने देश आजाद हुए थे?Independence Day 2022 भारत में 15 अगस्त को हर वर्ष आजादी का जश्न मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के साथ साथ दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया कांगो बहरीन और लिकटेंस्टीन देश भी 15 अगस्त को ही अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाते हैं। नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क।
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