आज दिनांक 04-03-2020 को विद्यालय प्रबन्ध समिति की बैठक विद्यालय प्रांगण में आयोजित हुई। इस अभिभावक सम्मान समारोह एवं विद्यालय प्रबन्ध समिति की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष महोदया की अचानक अस्वस्थता के कारण उपाध्यक्ष श्री रविशेखर राय ने की। इस बैठक में प्रबन्ध समिति के सदस्यों के अतिरिक्त विद्यालय में अध्ययनरत समस्त बच्चों के अभिभावकों को भी बुलाया गया। इसका प्रमुख कारण विद्यालय में एक नई पहल अभिभावक सम्मान समारोह का आयोजन था। अभिभावक सम्मान समारोह की इस नयी पहल के अन्तर्गत विद्यालय की समस्त कक्षाओं में सर्वाधिक उपस्थिति प्राप्त करने वाले छात्रों एवं उनके अभिभावकों का सम्मान किया जाता है। सर्वाधिक उपस्थिति वाले छात्रों के अभिभावकों का सम्मान करना अभिभावकों एवं छात्रों के मन में विद्यालय उपस्थिति के प्रति सकारात्मक संवेदना एवं जागॄति का विकास करने का प्रयास है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सरकारी विद्यालय के प्रति समुदाय के मन में एक सकारात्मक भावना एवं आश्वस्ति उत्पन्न करना है। ग्राम प्रधान श्रीमती संगीता जायसवाल ने उपस्थित अभिभावकों एवं अन्य नागरिकों के साथ ही बच्चों को संबोधित किया। उन्होंने बच्चों को अधिकाधिक उपस्थिति के लिए प्रेरित एवं उत्साहित किया। अभिभावकों से ग्राम प्रधान ने हर संभव सहायता के लिए बात की और बच्चों के अध्ययन में बाधा न आने देने की अपील की। अध्यापिका श्रीमती स्वाति ने बच्चों एवं अभिभावकों से सीधा संवाद किया। उन्होंने बच्चों की स्वच्छता एवं गृहकार्य में अभिभावकों से सहयोग माँगा एवं विद्यालय की ओर से हर संभव प्रयास का आश्वासन दिया। उन्होंने कक्षा 1 के कुछ छात्रों के उदाहरण दिए कि किस प्रकार एक छोटी सी कोशिश से बच्चे सजग एवं स्वच्छ हो गये हैं। कार्यक्रम में प्रधानाध्यापक हिमांशु पाण्डेय ने समस्त छात्रों की उपस्थिति का आंकड़ा प्रस्तुत किया एवं सर्वश्रेष्ठ उपस्थिति वाले छात्रों को तथा उनके अभिभावकों को पुरस्कृत/सम्मानित किया गया तथा प्रमाणपत्र भी वितरित किए गए। इस कार्यक्रम में विद्यालय के समस्त छात्र, उनके अभिभावक, विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्य उपस्थित रहे। अभिभावक व शिक्षक समझें जीवन और दायित्व का महत्वबच्चों में जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव आ गया है। आज का नागरिक अपना जीवन अपने अंदाज में व्यत बच्चों में जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव आ गया है। आज का नागरिक अपना जीवन अपने अंदाज में व्यतीत करना चाहता है। इसमें किसी का हस्तक्षेप करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं है। इस जीवन जीने की कला में वह अपनी जिम्मेदारियों से बचने का भी प्रयास कर रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव परिवार और समाज पर पड़ रहा है। हमें विशेषकर अभिभावकों ओर शिक्षकों का मार्गदर्शन बच्चों के जीवन जीने की शैली को बहुत हद तक प्रभावित करता है। हमें उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हुए परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उनके दायित्वों के प्रति भी जागरूक करना होगा। ऐसा नहीं करते हैं तो युवा पीढ़ी अपने जीवन और उनके दायित्वों के बारे में जिम्मेदार नहीं हो पाएंगे। संस्कारों का रहता है असर: आज के विद्यार्थियों के जीवन की शैली में जो परिवर्तन आया है वह सबसे अधिक संस्कारों का है। आज का विद्यार्थी मेधावी, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बहुत अधिक रुचि रखता है लेकिन सुसंस्कारित नहीं है। अच्छे संस्कारों की कमी के कारण उठना, बैठना, बोलना, बड़ों का आदर सत्कार, माता-पिता, गुरुजनों के सम्मान में रुचि नहीं रखता। इन सबका कारण माता-पिता के समय अभाव एवं संयुक्त परिवार का कम होना है। प्रत्येक माता पिता यह उम्मीद करते है कि उनका बच्चा बेहतर शिक्षा ग्रहण करे, अच्छे संस्कार स्कूल में शिक्षक भी सिखाएं। विषय ज्ञान के लिए विद्यार्थी उत्तरदायित्व हैं लेकिन संस्कारों, वास्तविक प्रयोगशाला तो घर एवं परिवार हैं जहां बच्चों के व्यवहार एवं संस्कारों का वास्तविक प्रयोग होता है। आज का शिक्षक एवं छात्र दोनों अंकों के खेल में व्यस्त हो गए हैं। उनका एक ही लक्ष्य सर्वाधिक अंक लाकर कुछ बनने का होता है। अध्यापक भी छात्रों के सर्वांगीण विकास के स्थान पर मानसिक विकास पर केंद्रीत होता है। इस भागदौड़ में जीवन के अच्छा नागरिक या अच्छा इंसान बनाने की पहलू अछूते रह जाते हैं। हमारे समय में शिक्षक एक ईश्वर की तरह वास्तविक रूप से पूज्यनीय होते थे। आज इस स्तर में बहुत बदलाव आया हुआ है। इसके लिए हम सभी समाज के लोग जिम्मेदार हैं। आज अभिभावक शिक्षक पर अपने बच्चों से ज्यादा भरोसा नहीं करता पहले शिक्षक की बात पर विश्वास किया जाता था। पहले माता पिता अपने से ज्यादा शिक्षक को बच्चों का शुभ¨चतक मानते थे। विद्यालय एक उपवन है: विद्यालय भी एक उपवन हैं जहां बच्चे उसके फूल हैं। उन फूलों को हम कैसी शिक्षा से पोषण करते हैं यही उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम बच्चे का सर्वांगीण विकास की बात करते हैं तो वह केवल किताबी ज्ञान में ही बौद्धिक रूप से सफल नहीं बना रहे हैं बल्कि व्यक्तित्व और विचारों से भी उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। शिक्षकों को बच्चों के समक्ष उदाहरण बनना होगा। बच्चे माता पिता और साथियों की अपेक्षा शिक्षकों के विचार और व्यवहार को जल्दी अनुसरण करते हैं। जब जब अभिभावक यह कहता रहेगा कि बच्चों के लिए उनके पास समय नहीं है तब तब बच्चों के प्रति हम अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रहे हैं। ऐसे में बच्चों को उनके दायित्व के प्रति केवल पढ़ाने मात्र से काम नहीं चलेगा। ऐसे बच्चे किशोर अवस्था तथा युवा अवस्था तक पहुंचते पहुंचते वे अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारण नहीं कर पाते जिस कारण उन्हें अपना जीवन नीरस लगने लगता है। ऐसे में हमें बच्चों में पहले मेरा जीवन का अहसास कराना होगा इसके बाद ही वे अपना दायित्व समझ सकेंगे। विद्यार्थियों की जिम्मेदारी: बच्चों को अपने जीवन के उद्देश्यों के प्रति जागरूक करना चाहिए। शिक्षण संस्थानों में क्लास मोनिटर बनाने के साथ उन्हें जो जिम्मेदारियां सौंपी जाती है उसका कारण उन्हें जिम्मेदारी बोध कराना है। यही कारण है कि विभिन्न सदनों के माध्यम से बच्चों को कई प्रभार सौंपे जाते हैं। हम सभी शिक्षकों का कर्तव्य बनता है कि समाज व विद्यालय के हर बच्चे को सुसंस्कृत एवं संस्कारी बनाने का प्रयास करें जिससे वह देश व समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बन सके। अनुशासन प्रेम एवं वात्सल्य के साथ दी गई शिक्षा ही विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बना सकती है। लगातार करते रहें प्रेरित: बच्चों को शुरू से ही उनकी जिम्मेदारियों के प्रति प्रेरित करना चाहिए। इसकी शुरूआत घर से की जानी चाहिए। घर के छोटी छोटी जिम्मेदारियां सौंपनी चाहिए जैसे पढ़ाई से फुर्सत के दौरान छोटे मोटे सामान लाने के लिए बाजार जाने, घर में मेहमान आते हैं तो जलपान आदि परोसने, माता पिता के साथ बागवानी में हाथ बंटाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे बड़े होने पर वे अपनी जिम्मेदारी समझ सकेंगे। इससे उनमें घर व्यवहार की समझ विकसित होगी। इस दौरान गलती होने पर उन्हें डांटने के बजाय समझाते हुए प्रेरित करना चाहिए। कई बार अभिभावक बच्चों को नालायक या बिल्कुल ही नाकारा मानने लगते हैं। इससे बच्चों के मानस पटल पर गलत प्रभाव पड़ता है। हमें इससे बचना चाहिए। बच्चे गलती करें तो भी उनके काम की तारीफ करते हुए उनकी खामियों को बताना चाहिए ताकि वे अगली बार उन गलतियों को नहीं दोहराएं। बच्चों को अपना जीवन जीने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमारा दायित्व केवल उन्हें मार्गदर्शन करने का होना चाहिए। -केशा देवी, ¨प्रसिपल, प्रयाग सीनियर सेकेंडरी स्कूल। |