विप्लव गायन कविता का सारांश / सारविप्लव गायन कविता के कवि बालकृष्ण शर्मा नविन हैं | कवि देश के नवयुवकों का आह्वान करता है कि अब वीणा के तारों में मधुर संगीत की बजाय क्रांति और संघर्ष के गीत गूँजें। भले ही उँगलियाँ ऐंठकर घायल हो जाएँ। कवि विनाश का आह्वान करते हुए हुँकार भरता है कि अब महानाश की लहरें इधर-उधर से आकर देश में विनाश लीला करें। आगामी पंक्तियों में कवि का अभिप्राय है कि महानाश का गीत अभी कंठावरोध के कारण नहीं निकल पा रहा है। यदि वह गीत वातावरण में गूँजेगा तो क्षणभर में ही महायुद्ध आरंभ हो जाएगा वह गीत आग उगलेगा, हृदय से चिंगारियाँ फूटेंगी जिनमें सब काँटेदार झाड़ियाँ अर्थात् पुराने गलत रीति-रिवाज व रूढ़िवादी विचारधाराएँ भस्म हो जाएँगी। Show
अपने अंतिम काव्यांश में कवि स्पष्ट करता है कि कण-कण में वही कठोर स्वर व्यक्त होगा, रोम-रोम से उसी ज्वलंत गीत की ध्वनि गूँजेगी, विषैले नाग के फण से जिस प्रकार विनाशक चिंगारियाँ फूटती हैं उसी प्रकार का महानाश धरती पर जाग उठेगा। जैसे शेषनाग अपनी मणि की चिंता करता है वैसे ही प्रत्येक मनुष्य नव-निर्माण के चिंतन में अग्रसर होगा। कवि विश्वासपूर्वक कहता है कि मैं उस महानाश के पोषक तत्त्व को स्वयं देख आया हूँ, जो आँख के इशारे से भी व्याप्त हो उठेगा। वास्तव में कवि जड़ता के विरुद्ध देशवासियों में गतिशीलता व उत्साह का संचार करना चाहता है क्योंकि विनाश में ही निर्माण और सृजन के बीज होते हैं इसलिए कवि जीर्ण-शीर्ण व रूढ़िवादी विचारों व रिवाज़ों को तिलांजलि देकर नवनिर्माण लाने का आह्वान करता है। विप्लव गायन कविता का भावार्थकवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल पुथल मच जाए, एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर से आए। सावधान! मेरी वीणा में चिनगारियाँ आन बैठी हैं, टूटी हैं मिज़राबें, अंगुलियाँ दोनों मेरी ऐंठी हैं। विप्लव गायन का भावार्थ -कवि नवयुवकों से आह्वान करता है कि कुछ ऐसा करना चाहिए ताकि बदलाव निश्चित हो। जिस प्रकार जल की लहरें जल में कभी ठहराव नहीं आने देती उसी प्रकार तुम्हें भी अपने कार्यों से पुराने रीति-रिवाजों व गलत रूढ़ियों को त्यागकर नवनिर्माण की नींव रखनी है। कवि की इच्छा है कि उसकी वीणा में मधुर संगीत की बजाय क्रांति और संघर्ष के गीत गूँजें। भले ही उँगलियाँ ऐंठ कर घायल हो जाएँ, मिजराबें टूट जाएँ लेकिन नवनिर्माण की ओर अग्रसर अवश्य होना है। कंठ रुका है महानाश का मारक गीत रुद्ध होता है, आग लगेगी क्षण में, हत्तल में अब क्षुब्ध-युद्ध होता है। झाड़ और झंखाड़ दग्ध है इस ज्वलंत गायन के स्वर से, रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है निकली मेरे अंतरतर से। विप्लव गायन का भावार्थ-कवि का मानना है कि वह अत्यंत आवेश से विनाशक गीत गाना चाहता है क्योंकि वह जानता है कि विध्वंस की नींव पर ही नवनिर्माण संभव है। उसके कंठ से अधिक उत्तेजना के कारण विनाशकारी गीत के स्वर निकल नहीं पाते। वह जानता है कि इस गीत के स्वरों से ही सारी काँटेदार झाड़ियाँ अर्थात् जीर्ण-शीर्ण विचारधाराएँ और रूढ़िवादी विचार जलकर खाक हो जाएँगे। इसी से समाज नवीन राहों की ओर अग्रसर होगा। कण-कण में है व्याप्त वही स्वर रोम-रोम गाता है वह ध्वनि, वही तान गाती रहती है, कालकूट फणि की चिंतामणि। आज देख आया हूँ-जीवन के सब राज़ समझ आया हूँ, भ्रू-विलास में महानाश के पोषक सूत्र परख आया हूँ। विप्लव गायन का भावार्थ-इस काव्यांश में कवि यह विश्वास प्रकट करता है कि विनाशकारी गीत का प्रभाव दूर-दूर तक होगाऔर प्रत्येक व्यक्ति के रोम-रोम में इसकी तान समा जाएगी। जिस प्रकार शेषनाग अपनी मणि की चिंता करता है उसी प्रकार यह गीत हर हृदय में गूंजेगा अर्थात् प्रत्येक मनुष्य नवनिर्माण हेतु चिंतन करेगा। कवि समाज को बदलने वाली परिस्थितियों की भली-भाँति जानकारी प्राप्त कर चुका है और भविष्यवाणी करता है कि आँख की भृकुटि के इशारे से ही महानाश जाग उठेगा। उसके बाद देश का नवनिर्माण संभव होगा क्योंकि पुराने गले-सड़े खंडहरों को समाप्त करके ही भव्य भवनों का निर्माण किया जा सकता है। विप्लव गायन का प्रश्न उत्तरप्रश्न 1. 'कण-कण में है व्याप्त वही स्वर . कालकूट फणि की चिंतामणि'(क) 'वही स्वर' 'वह ध्वनि' एवं 'वही तान' आदि वाक्यांश किसके लिए किस/भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं? |