वाणिज्यिक क्रांति का सर्वप्रथम उल्लेख किस आर्थिक इतिहासकार ने किया - vaanijyik kraanti ka sarvapratham ullekh kis aarthik itihaasakaar ne kiya

पूंजीवाद
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संबंधित विषय

  • पूंजीवाद का विरोध
  • पूंजीवादी राज्य
  • उपभोक्तावाद
  • संकट सिद्धांत
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  • सहचरवाद
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  • वाणिज्यिक क्रांति का सर्वप्रथम उल्लेख किस आर्थिक इतिहासकार ने किया - vaanijyik kraanti ka sarvapratham ullekh kis aarthik itihaasakaar ne kiya
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विश्व के आर्थिक इतिहास में वाणिज्यिक क्रांति (Commercial Revolution) उस अवधि को कहते हैं जिसमें आर्थिक प्रसार, उपनिवेशवाद और व्यापारवाद (mercantilism) का जोर रहा। यह अवधि लगभग सोलहवीं शती से आरम्भ होकर अट्ठारहवीं शती के आरम्भ तक मानी जाती है। इसके बाद की अवधि में औद्योगिक क्रान्ति हुई।

आधुनिक पश्चिमी विश्व की आर्थिक क्रांति[संपादित करें]

सामंतवाद का पतन, धर्मसुधार आंदोलन एवं पुनर्जागरण तीन ऐसे प्रमुख कारक थे जिन्होंने यूरोप में आधुनिक युग के आरंभ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुनर्जागरण एवं वैज्ञानिक क्रांति के फलस्वरूप यूरोप में आर्थिक प्रगति के दौर आरंभ हुआ। वैज्ञानिक क्रांति ने औद्योगिक क्रांति एवं कृषि क्रांति का आधार तैयार किया और इसके बाद यूरोप में वाणिज्यवाद का आरंभ हुआ। यूरोपीय वाणिज्यवाद ने आधुनिक पश्चिमी विश्व में आर्थिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। यूरोप में जो भौगोलिक खोजें संपन्न हुई उससे यूरोपीय व्यापारी समुद्री मार्ग द्वारा कम समय में अफ्रीका एवं एशिया पहुँचे और इससे यूरोपीय व्यापार में तेजी आयी। आयात-निर्यात को गति एवं प्रोत्साहन मिला। यूरोपीय उद्योगों के लिये एशिया से भारी मात्रा में कच्चा माल प्राप्त हुआ। निर्मित माल की खपत के लिये एशिया, अमेरिका एवं अफ्रीका के रूप में एक बड़ा बाजार मिला। इससे यूरोप में अत्यधिक आर्थिक समृद्धि का दौर आरंभ हुआ। यूरोपीय व्यापारियों ने भारी मुनाफा कमाया।

यूरोप में वाणिज्यिक क्रांति का आरंभ क्रमशः दो घटनाओं का प्रतिफल था -

  • (१) धर्म युद्ध (1095 ई.-1291 ई.) एवं व्यापारी वर्ग का अभ्युदय,
  • (२) तुर्कों का कुस्तुनतुनिया (एशिया माइनर) पर अधिकार (1453 ई .) एवं भौगोलिक खोजें।

धर्म युद्धों का प्रभाव एवं व्यापारिक वर्ग का अभ्युदय[संपादित करें]

ईसाइयों के पवित्र तीर्थ स्थल जेरूसलम को तुर्कों से मुक्त कराने के लिए एक दीर्घकालीन (1095 ई.-1291 ई.) धर्म युद्ध (क्रुसेड) चला। इस धर्म युद्ध का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ कि भारत की भोगविलास की वस्तुओं, मालाबार क्षेत्र के एवं पूर्वी द्वीप समूह के मसालों आदि का ज्ञान हुआ। तेरहवीं सदी में मार्कोपोलो ने वेनिस से चीन तथा जापान की यात्रा की। मार्कापोलो के विवरणों से भी यूरोपवासियों के पूर्वी देशों की वस्तुओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। इन सब घटनाओं का प्रभाव यह हुआ कि अब पूर्वी देशों की भोगविलास की वस्तुओं एवं मसालों की माँग यूरोप में होने लगी और इस प्रकार यूरोप में एक नवीन वर्ग व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। इन व्यापारियों ने पूर्वी देशों के साथ व्यापार कर अत्याधिक धन अर्जित किया।

1200 ई. से 1400 ई. के बीच यूरोप में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले व्यापारिक मेलों ने भी यूरोपीय व्यापार के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। इटली के नगर वेनिस, पिसा एवं जिनेवा आदि व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे। यूरोपीय तथा पूर्वी देशों के मध्य व्यापार का प्रमुख केन्द्र कुस्तुनतुनिया था। यूरोप के व्यापारी पूर्वी देशों से मसाले, हीरे, जवाहरात, रेशमी कालीन, सिल्क, सुगंधित वस्तुएँ, औषधियाँ तथा चीनी आदि लाकर लाभ कमाते थे।

कुस्तुनतुनिया पर तुर्कां का अधिकार एवं भौगोलिक खोजें[संपादित करें]

धर्म युद्धों (क्रूसेड) के पश्चात् हुई यूरोपीय व्यापारिक प्रगति को 1453 ई . में उस समय गहरा आघात लगा जबकि कुस्तुनतुनिया पर तुर्कां ने अधिकार कर लिया। इससे पूर्व भारत एवं अन्य पूर्वी देशों से सामान समुद्री मार्ग से फारस की खाड़ी तक आता था। इसके पश्चात् स्थल मार्ग से कुस्तुनतुनिया होता हुआ यूरोप तक पहुँचता था। किंतु तुर्की ने 1453 ई. में कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर इस व्यापार मार्ग को यूरोपीय लोगों के लिए बंद कर दिया।

इस समय तक यूरोपवासी चूँकि उपरिवर्णित एशियायी भोगविलास की वस्तुओं एवं मसालों के आदी हो चुके थे अतः स्थल व्यापारिक मार्ग बंद हो जाने के कारण नवीन समुद्री मार्ग की खोज आरंभ हुई। आवश्यकता आविष्कार की जननी है, यह कहावत इस समय पूर्णतः चरितार्थ हुई। कुतुबनुमा एवं एस्ट्रोलेब के आविष्कार ने समुद्री मार्गां की खेज को आसान बना दिया और अंततः कोलम्बस, मैगलन, अमेरिगो वेस्पुसी, बार्थालोमियो डियास एवं वास्कोडिगामा जैसे साहसी नाविकों ने अपने शासकों की प्रेरणा से समुद्री मार्ग द्वारा विश्व के लगभग सभी देशों को खोज निकाला।

इन भौगोलिक खोजों ने व्यापार के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रगति की। अब व्यापार मात्र इटली के नगरों तक सीमित न रहकर अंतर्राष्ट्रीय हो गया। प्रारंभिक दौर में एशिया के साथ व्यापार में पुर्तगाल का एकाधिकार रहा किंतु शीघ्र ही स्पेन, हालैण्ड, फ्रांस और इंग्लैण्ड के व्यापारियों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। इन भौगोलिक खोजों ने न सिर्फ व्यापार का क्षेत्र बढ़ाया बल्कि पूर्व में जिन-जिन वस्तुओं का व्यापार होता था, उन वस्तुओं की संख्या में भी वृद्धि हुई। यूरोपीय व्यापारियों ने विभिन्न देशों से विभिन्न वस्तुओं के व्यापार से अत्याधिक लाभ कमाया।

कोलम्बस ने अमेरिका की खोज कर स्पेन की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। अमेरिका में सोने-चाँदी जैसी बहुमूल्य धातुओं की खाने थीं जिनका स्पेन सहित अन्य यूरोपीय देशों ने भी दोहन किया। अमेरिका के रूप में स्पेन को एक ऐसा कल्पवृक्ष प्राप्त हुआ जिसने यूरोप में स्पेन को एक प्रगतिशील व उन्नत देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। इंका और एजटेक सभ्यताओं के खजाने की स्पेनवासियों ने लूटकर समृद्धि प्राप्त की। यूरोपवासी सोना-चाँदी प्राप्त कर समृद्धि प्राप्त करने लगे। इन विभिन्न खोजों के फलस्वरूप जिस तेजी के साथ व्यापार के क्षेत्र में प्रगति हुई, उसी तेजी से व्यापारियों ने आर्थिक समृद्धि की। यह निःसंदेह व्यापार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी प्रगति थी। इसी कारण इसे यूरोप के इतिहास में ‘व्यापारिक क्रांति’ का नाम दिया गया। इसे वाणिज्यिक क्रांति भी कहा जाता है

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • वाणिज्यवाद
  • वैज्ञानिक क्रांति
  • औद्योगिक क्रांति
  • उपनिवेशवाद

वाणिज्यिक क्रांति का क्या महत्व था?

व्यापार के क्षेत्र में जल एवं स्थल दोनों के मार्ग से होने वाले विस्तार एवं विकास को वाणिज्यिक क्रांति के नाम से जाना जाता है। वाणिज्यिक क्रांति के दौरान यूरोपीय क्षेत्र के लोगों ने रेशम, दुर्लभ मसालों एवं अन्य कीमती वस्तुओं की दोबारा खोज की जिससे लोगों में व्यापार करने एवं व्यापार को बढ़ाने की नई सोच ने जन्म लिया।

वाणिज्य वादी विचारक कौन था?

क्लाड लोरेन (Claude Lorrain) द्वारा सन् 1639 के आसपास चित्रित एक फ्रान्सीसी पत्तन का दृष्य; उस समय वाणिज्यवाद अपने चरमोत्कर्ष पर था

वाणिज्यिक क्रांति से आप क्या समझते हैं?

विश्व के आर्थिक इतिहास में वाणिज्यिक क्रांति (Commercial Revolution) उस अवधि को कहते हैं जिसमें आर्थिक प्रसार, उपनिवेशवाद और व्यापारवाद (mercantilism) का जोर रहा। यह अवधि लगभग सोलहवीं शती से आरम्भ होकर अट्ठारहवीं शती के आरम्भ तक मानी जाती है। इसके बाद की अवधि में औद्योगिक क्रान्ति हुई।

वाणिज्यवाद के उदय के क्या कारण थे?

वाणिज्यवाद के उदय तथा विकास के कारण (vanijyavad ke karan) सामंतवाद के पतन से राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान तथा निरंकुश साम्राज्यों की स्थापना हुई। सामन्तीय व्यवस्था के केन्द्रीय सरकार कमजोर होती है, सेना और धर्मधिकारियों का बोलबाला था। राष्ट्रीय एवं निरंकुश राज्यों के निर्वाह का मुख्य साधन करारोपण था।