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उठ समय से मोरचा ले / हरिवंशराय बच्चनKavita Kosh से उठ समय से मोरचा ले। जिस धरा से यत्न युग-युग देखता
कोई नहीं है धूलि धूसर वस्त्र मानव--
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We're sorry, but this browser is not supported by TopperLearning. Enter your valid mobile number belowPlease Select Your Board First 1. लहर सागर का नहीं श्रृंगारलहर सागर का नहीं श्रृंगार, गन्ध कलिका का नहीं उद्गार, गान गायक का नहीं
व्यापार, 2. मेरे साथ अत्याचारमेरे साथ अत्याचार। प्यालियाँ अगणित रसों की भावना अगणित हृदय में, हर नहीं तुमने लिया क्या, 3. बदला ले लो, सुख की घड़ियोबदला ले लो, सुख की घड़ियो! सौ-सौ तीखे काँटे आये उस दिन सपनों की झाँकी में मैं कंचन की जंजीर पहन 4. कैसे आँसू नयन सँभालेकैसे आँसू नयन सँभाले। मेरी हर आशा पर पानी, समझा था जिसने मुझको सब, मन में था जीवन में आते वे, जो दुर्बलता दुलराते, 5. आज आहत मान, आहत प्राणआज आहत मान, आहत प्राण! कल जिसे समझा कि मेरा 'मैं तुझे देता रहा हूँ चोट
दुनिया-दैव की सह 6. जानकर अनजान बन जाजानकर अनजान बन जा। पूछ मत आराध्य कैसा, आरती बनकर जला तू किंतु दिल की आग का 7. कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँकैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ? अश्रु पुराने, आह पुरानी, खेल चुका मिट्टी के घर से, 8. मैंने ऐसी दुनिया जानीमैंने ऐसी दुनिया जानी। इस जगती मे रंगमंच पर आज मिले दो यही प्रणय है, यह लो मेरा क्रीड़ास्थल है, 9. क्षीण कितना शब्द का आधारक्षीण कितना शब्द का आधार! मौन तुम थीं, मौन मैं था, मौन जग था, शब्दमय तुम और मैं जग शब्द से भर पूर, कौन आया और किसके पास कितना, 10. मैं अपने से पूछा करतामैं अपने से पूछा करता। निर्मल तन, निर्मल मनवाली, तन था जगती का सत्य सघन, वह चली
गई, जग में क्या कम, 11. अरे है वह अंतस्तल कहाँअरे है वह अंतस्तल कहाँ? अपने जीवन का शुभ-सुन्दर करते कितने सर-सरि-निर्झर जगती के विस्तृत कानन में 12. अरे है वह वक्षस्थल कहाँअरे है वह वक्षस्थल कहाँ? ऊँची ग्रीवा कर आजीवन ऊँचा मस्तक रख
आजीवन कभी करूँगा नहीं पलायन 13. अरे है वह शरणस्थल कहाँअरे है वह शरणस्थल कहाँ? जीवन एक समर है सचमुच, जीवन एक सफ़र है सचमुच, जीवन एक गीत है सचमुच, 14. क्या है मेरी बारी मेंक्या है मेरी बारी में। जिसे सींचना था
मधुजल से आंसू-जल से सींच-सींचकर टूट पडे मधुऋतु मधुवन में 15. मैं समय बर्बाद करतामैं समय बर्बाद करता? प्रायशः
हित-मित्र मेरे बात कुछ विपरीत ही है, काश मुझमें शक्ति होती 16. आज ही आना तुम्हें थाआज ही आना तुम्हें था? आज मैं पहले पहल कुछ एक युग से पी रहा था तुम बड़े नाजुक समय में 17. एकाकीपन भी तो न मिलाएकाकीपन भी तो न मिला। मैंने समझा था संगरहित मैं अपने कमरे के अंदर मैं अपने मानस के भीतर 18. नई यह कोई बात नहींनई यह कोई बात नहीं। कल केवल मिट्टी की ढ़ेरी, सत्य कहे जो झूठ बनाए, कवि था कविता से था नाता, 19. तिल में किसने ताड़ छिपायातिल में किसने ताड़ छिपाया? छिपा हुआ था जो कोने में, पलकों के सहसा गिरने पर कर बैठा था जो अनजाने, 20. कवि तू जा व्यथा यह झेलकवि तू जा व्यथा यह झेल। वेदना आई शरण में पोंछ इसके अश्रुकण को, है कहीं कोई न इसका, 21. मुझको भी संसार मिला हैमुझको भी संसार मिला है। जिन्हें पुतलियाँ प्रतिपल सेतीं, मेरे सूनेपन के अंदर इससे सुंदर तन है किसका? 22. वह नभ कंपनकारी समीरवह नभ कंपनकारी समीर, वह जल प्रवाह उद्धत-अधीर, मेरे मानस की महा पीर, 23. तूने अभी नहीं दुख पाएतूने अभी नहीं दुख पाए। शूल चुभा, तू चिल्लाता है, बीते सुख की याद सताती? कंठ करुण स्वर में गाता है, 24. ठहरा-सा लगता है जीवनठहरा-सा लगता है जीवन। एक ही तरह से घटनाएँ एक ही तरह की तान कान 25. हाय, क्या जीवन यही थाहाय, क्या जीवन यही था। एक झोंके ने गगन के मैं पुलक उठता न सुख से 26. लो दिन बीता, लो रात गईलो दिन बीता, लो रात गई। सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा, धीमे-धीमे तारे निकले, चिडियाँ चहकीं, कलियाँ महकीं, 27. छल गया जीवन मुझे भीछल गया जीवन मुझे भी। देखने में था अमृत वह, गीत से जगती न झूमी, जो द्रवित होता न दुख से, 28. वह साल गया यह साल चलावह साल गया, यह साल चला। मित्रों ने हर्ष-बधाई दी, आनेवाला 'कल' 'आज' हुआ, झंझा-सनसन, घन घन-गर्जन, 29. यदि जीवन पुनः बना पातायदि जीवन पुनः बना पाता। मैं करता चकनाचूर न जग का मैं करता टुकड़े-टुकड़े क्यों जो सपना है वह सच होता, 30. सृष्टा भी यह कहता होगा(१) (२) (३) (४) (५) (६) (७) (८) 31. तुम भी तो मानो लाचारीतुम भी तो मानो लाचारी। सर्व शक्तिमय थे तुम तब तक, गुस्सा कल तक तुम पर आता, पाना-वाना नहीं कभी है, 32. मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई हैमिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है। नीचे रहती है पावों के, सौ बार हटाई जाती है, सबको मिट्टीमय कर देगी, 33. आज पागल हो गई है रातआज पागल हो गई है रात। हँस पड़ी विद्युच्छटा में, एक दिन मैं भी हँसा था, योग्य हँसने के यहाँ क्या, 34. दोनों चित्र सामने मेरेदोनों चित्र सामने मेरे। पहला सिर पर बाल घने, घुंघराले, माथा उठा हुआ ऊपर को, नयनों में छाया-प्रकाश
की दूसरा सिर पर बाल कढ़े कंघी से भौंहें झुकी हुईं नीचे को, नयनों के दो द्वार खुले हैं, 35. चुपके से चाँद निकलता हैचुपके से चाँद निकलता है। तरु-माला होती स्वच्छ प्रथम, सोना चाँदी हो जाता है, अरुणाभा, किरणों की माला, 36. चाँद-सितारो, मिलकर गाओचाँद-सितारो, मिलकर गाओ! आज अधर से अधर मिले हैं, चाँद-सितारे, मिलकर बोले, चाँद-सितारों, मिलकर रोओ! चाँद-सितारे, मिलकर बोले, 37. मैं था, मेरी मधुबाला थी(१) मैं था, मेरी मधुबाला थी, (२) मैं था औ मेरी छाया थी, (३) अनासक्त था मैं सुख-दुख से, 38. इतने मत उन्मत्त बनो(१) इतने मत उन्मत्त बनो। जीवन मधुशाला से मधु पी, (२) इतने मत संतप्त बनो। जीवन मरघट पर अपने सब (३) इतने मत उत्तप्त बनो। मेरे प्रति अन्याय हुआ है 39. मेरा जीवन सबका साखीमेरा जीवन सबका साखी। (१) (२) (३) (४) 40. तब तक समझूँ कैसे प्यार(१) अधरों से जब तक न कराए (२) बाँहों में जब तक न सुलाए (३) प्राणों में जब तक न मिलाए 41. कौन मिलनातुर नहीं हैकौन मिलनातुर नहीं है? आक्षितिज फैली हुई मिट्टी निरंतर पूछती है, गगन की निर्बाध बहती बायु प्रतिपल पूछती है, सर्व व्यापी विश्व का व्यक्तित्व मुझसे
पूछता है, 42. कभी, मन, अपने को भी जाँचकभी, मन, अपने को भी जाँच। नियति पुस्तिका के पन्नों पर, सोने का संसार दिखाकर, जगा
नियति ने भीषण ज्वाला, 43. यह वर्षा ॠतु की संध्या हैयह वर्षा ॠतु की संध्या है, उधर कोठरी है नौकर की है दिमाग़ में चक्कर करती 'दिल दीवाना, (दिला नादानिये परवाना ताके, 44. यह दीपक है, यह परवानायह दीपक है, यह परवाना। ज्वाल जगी है, उसके आगे इनकी तुलना करने को कुछ लेनी पड़े अगर ज्वाला ही 45. वह तितली है, यह बिस्तुइयावह तितली है, यह बिस्तुइया। यह काली कुरूप है कितनी! बिस्तुइया के मुँह में तितली, इस अंधेर नगर के अंदर 46. क्या तुझ तक ही जीवन समाप्तक्या तुझ तक ही जीवन समाप्त?
तेरे जीवन की क्यारी में तेरे जीवन की क्यारी में जब तू अपने दुख में रोता, 47. कितना कुछ सह लेता यह मनकितना कुछ सह लेता यह मन! कितना दुख-संकट आ गिरता कितना दुख-संकट आ गिरता कितना दुख-संकट आ
गिरता 48. हृदय सोच यह बात भर गयाहृदय सोच यह बात भर गया! उर में चुभने वाली पीड़ा, यदि अपने दुख में चिल्लाता कुछ
गीतों को लिख सकते हैं, 49. करुण अति मानव का रोदनकरुण अति मानव का रोदन। ताज, चीन-दीवार दीर्घ जिन हाथों के उपहार, देव-देश औ' परी-पुरी जिन नयनों के वरदान, जो मस्तिष्क खोज लेता है
अर्थ गुप्त से गुप्त, 50. अकेलेपन का बल पहचानअकेलेपन का बल पहचान। शब्द कहाँ जो तुझको, टोके, जब तू चाहे तब मुस्काए, तन-मन अपना,
जीवन अपना, 51. क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारीक्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? मैं दुखी जब-जब हुआ एक भी उच्छ्वास मेरा कौन है जो दूसरों को क्यों न हम लें मान, 52. उनके प्रति मेरा, धन्यवादउनके प्रति मेरा, धन्यवाद, कहते थे मेरी नादानी जो क्षमा नहीं कर सकते थे कादरपन देखा करते थे 53. जीवन का यह पृष्ठ पलट, मनजीवन का यह पृष्ठ पलट, मन। इसपर जो थी लिखी कहानी, इसपर लिखा हुआ है अक्षर यहीं नहीं यह कथा खत्म है, 54. काल क्रम सेकाल
क्रम से- नियति नियम से- 55. यह नारीपनयह नारीपन। ओ नवचेतन! 56. वह व्यक्ति रचा(१) मधुशाला की कंकण-ध्वनि में (२) टूटी आशाओं, स्वप्नों से (३) जिसकी क्रोधातुर श्वासों से 57. वेदना भगा(१) इसकी संक्रामक वाणी को (२) पर अगर किसी दुर्बलता से 58. भीग रहा है भुवि का आँगनभीग रहा है भुवि का आँगन। भीग रहे हैं पल्लव के दल, भीग रही है महल-झोपड़ी, बरस रहा है भू पर बादल, 59. तू तो जलता हुआ चला जातू तो जलता हुआ चला जा। जीवन का पथ नित्य तमोमय, जला हुआ तू ज्योति रूप है, जहाँ बनी भावों की क्यारी, 60. मैं जीवन की शंका महानमैं जीवन की शंका महान! युग-युग संचालित राह छोड़, होगी न हृदय में शांति व्याप्त, गहनांधकार में पाँव धार, 61. तन में ताकत हो तो आओतन में ताकत हो तो आओ। पथ पर पड़ी हुई चट्टानें, राह रोक है खड़ा हिमालय, रस की कमी नही है जग में, 62. उठ समय से मोरचा लेउठ समय से मोरचा ले। जिस धरा से यत्न युग-युग देखता कोई नहीं है धूलि धूसर वस्त्र मानव-- 63. तू कैसे रचना करता है(१) अपने आँसू की बूँदों में-- लेखनी डुबाकर बारबार, (२) (३) जग के आँसू के सागर में-- तू अपना पूरा कलम डुबा, (४) घोषणा करे इसका गायक, 64. पंगु पर्वत पर चढ़ोगेपंगु पर्वत पर चढ़ोगे! चोटियाँ इस गिरि गहन की तुम किसी की भी कृपा
का यह इरादा नप अगर सकता 65. गिरि शिखर, गिरि शिखर, गिरि शिखरगिरि शिखर, गिरि शिखर, गिरि शिखर! जबकि ध्येय बन चुका, संग छोड़ सब चले, पूर्ण हुआ एक प्रण, 66. यह काम कठिन तेरा ही थायह काम कठिन तेरा ही था, यह काम कठिन तेरा ही है। तूने मदिरा की धारा पर तूने आँसू की धारा में अब स्वेद-रक्त का सागर है, 67. बजा तू वीणा और प्रकारबजा तू वीणा और प्रकार। कल तक तेरा स्वर एकाकी, आज दबा जाता स्वर तेरा, क्या कर की वीणा धर देगा, 68. यह एक रश्मि(१) (२) (३) 69. जब-जब मेरी जिह्वा डोलेजब-जब मेरी जिह्वा डोले। स्वागत जिनका हुआ समर में, यदि न बन सके उनपर मरहम, यदि न सके दे ऐसे गायन, 70. तू एकाकी तो गुनहगारतू एकाकी तो गुनहगार। अपने पर होकर दयावान अपने अंतस्तल की कराह तू अपने में ही हुआ लीन, 71. गाता विश्व व्याकुल रागगाता विश्व व्याकुल राग। है स्वरों का मेल छूटा, वीण के निज तार कसकर उँगलियां तेरी रुकेंगी, |