उत्तरायण और दक्षिणायन की अवधि क्या है? - uttaraayan aur dakshinaayan kee avadhi kya hai?

सनातन धर्म में सूर्य के उत्तरायण होने का विशेष महत्व है। हिंदी पंचांग के अनुसार, 14 जनवरी से लेकर 20 जून तक सूर्यदेव उत्तरायण रहते हैं। इस दौरान सूर्यदेव मकर से लेकर मिथुन राशि में भ्रमण करते हैं। वहीं, 21 जून से लेकर 13 जनवरी सूर्यदेव दक्षिणायन रहते हैं। इस दौरान सूर्यदेव कर्क से लेकर धनु राशि में भ्रमण करते हैं। 14 जनवरी को सूर्यदेव मकर राशि और 21 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के महत्व को बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है तो पूजा, जप, तप का महत्व बढ़ जाता है। इस समय में पूजा और साधना करने से सभी विकार दूर हो जाते हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इसकी महत्ता का उल्लेख भगवत गीता में किया है। आइए, जानते हैं-

क्या है कथा

भगवान श्रीकृष्ण भागवत गीता में अपने सखा अनुज से कहते हैं- हे अर्जुन! जब सूर्य उत्तरायण हो, दिन का समय हो और पक्ष शुक्ल हो। उस समय अगर कोई ऋषि, मुनि, साधु पुरुष अपने प्राण का त्याग करता है तो वह इस मृत्युभवन पर लौटकर नहीं आता है। वहीं, कृष्ण पक्ष की रात्रि में और सूर्य के दक्षिणायन में अपने प्राग त्यागता है, वह चंद्रलोक को जाता है और उसे पुनःमृत्युलोक में आना पड़ता है। महाभारतकाल में अर्जुन से परास्त होने के बाद ने भीष्म पितामह को किया था। इस युद्ध में युगपुरुष अर्जुन के तीरों के प्रहार से पूरी तरह घायल हो गए थे। हालांकि, भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के कारण जीवित रहे और बाण शैया पर विश्राम करते रहे। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तो भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण को प्रणाम कर अंतिम सांस ली।

महत्व

धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण को शुभ माना गया है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इस अवधि में धार्मिक कार्यों का निर्वाह किया जाता है। इनमें शादी, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शामिल हैं। वहीं, सूर्य के दक्षिणायन शुभ कार्य करने की मनाही है। इसे नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इस समय को इच्छा प्राप्ति और भोग-विलास की पूर्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस समय पूजा, जप, तप करने से व्यक्ति को रोग और शोक से मुक्ति मिलती है। इसे देवताओं के लिए रात्रि काल माना जाता है।

डिसक्लेमर

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Importance Of Uttarayan: मकर संक्राति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. उत्तरायण का महत्व हिंदू धर्म में विशेष है और इस दिन लोग गंगा स्नान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर आप गंगा स्नान करते हैं, तो जीवन में सुख-समृद्धि आती और समस्याएं खत्म हो जाती है. इस दिन सूर्य देव की खास पूजा की जाती है और घर में खिचड़ी बनाई जाती है. क्या आप जानते हैं उत्तरायण किसे कहा जाता है और इसका महत्व क्या है? यहां हम आपको बताएंगे इससे जुड़ी सभी खास बातें.

इस तरह होते हैं सूर्य देव उत्तरायण और दक्षिणायन

पूरे साल में सूर्य के दो तरह के बदलाव होते हैं, जिसमें उत्तरायण और दक्षिणायन शामिल है. सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी 6 महीनों में दक्षिणायन होते हैं. हिंदू पंचाग की गणना के मुताबिक, जब भी सूर्य देव मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस चक्र को उत्तरायण कहा जाता है. दूसरी ओर जब सूर्य देव कर्क राशि से धनु राशि की ओर जाते हैं, तो इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इसी चक्र के अनुसार सूर्य देव 6-6 महीने के लिए उत्तरायण और दक्षिणायन होते हैं.

सूर्य के प्रभाव से जीवन पर होता है असर

ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के समय नए कार्य जैसे- गृह प्रवेश, व्रत, मुंडन करना शुभ होता है. इस दिन लोग मकर संक्रांति मनाते हैं और सूर्य देव की खास पूजा करते हैं. इस दिन से रात छोटी होने लगती हैं और दिन लंबे होने लगते हैं. सूर्य के उत्तरायण को लोगों के जीवन में प्रकाश आने से जोड़ा जाता है. उत्तरायण को देवताओं का दिन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन अगर कोई व्यक्ति प्राण त्यागता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

गीता के अनुसार, पितामाह भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं त्यागे थे, जब तक मकर संक्रांति नहीं आई थी यानि सूर्य ने उत्तरायण नहीं किया था.

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रांची: एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है. कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब तक के समय को उत्तरायण कहते हैं. अर्थात देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि सूरज थोड़ी उत्तर दिशा की तरफ से उदित हो रहे हों और दिन बड़ा होने लगता है. तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इसमें सूरज की स्थिति यानी सूर्योदय के समय सूर्य थोड़ा दक्षिण की तरफ प्रतीत होते है. इस तरह दक्षिणायन में दिन की छोटा होता है और रातें बड़ी जैसा कि शरद ऋतु में होता है.

इस प्रकार यह दोनों अयन 6-6 माह के होते हैं. शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है. उत्तरायण के समय दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं.

जब सूर्य उत्तरायण होता है उत्तरायण काल में गृह प्रवेश, यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है.

दक्षिणायन का प्रारंभ 21/22 जून से होता है. 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है. यह समय देव रात्रि होती है. दक्षिणायन में रात लंबी और दिन छोटे होते हैं. दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुक जाता है. दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं. परन्तु तांत्रिक प्रयोगों के लिए यह समय सही माना जाता है.

सूर्य दक्षिणायन होने के समय पूजा-पाठ रोगों का समन करने के लिए लाभदायक होता है. सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश का पर्व मकर संक्रांति है. पुरानी कथाओं के अनुसार जब भीष्म मृत्यु शैया पर लेटे थे तो मां गंगा अवतरित हुई थी. इसी दिन से माघ स्नान का भी महत्व है. सूर्य के उत्तरायण होने पर पूजा पाठ, गृह प्रवेश और सिद्धियां करने में फायदा होता है.

उत्तरायण और दक्षिणायन कब कब होता है?

उत्तरायण का आरंभ 14 जनवरी को होता है। यह दशा 21 जून तक रहती है। इस दिन अयनांत की स्थिति आती है उसके बाद दक्षिणायन प्रारंभ होता है जिसमें दिन छोटे और रात लम्बी होती जाती है , फिर एक और अयनांत है और फिर से उत्तरायण आरम्भ हो जाता है।

उत्तरायण कितने महीने का होता है?

सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी 6 महीनों में दक्षिणायन होते हैं. हिंदू पंचाग की गणना के मुताबिक, जब भी सूर्य देव मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस चक्र को उत्तरायण कहा जाता है.

उत्तरायण के कितने दिन?

सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी के 6 महीनों में दक्षिणायन। हिंदू पंचांग की काल गणना के आधार पर जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस अंतराल को उत्तरायण कहा जाता है। इसके बाद जब सूर्य कर्क राशि धनु राशि की यात्रा पर निकलते हैं तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं।

उत्तरायण की अवधि क्या है?

भारत में उत्तरायण को असंख्य नामों से जाना जाता है। आमतौर पर शीतकालीन संक्रांति के रूप में कहा जाता है, यह चरण मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर सूर्य के उत्तर की ओर गति का प्रतीक है। यह चरण 22 दिसंबर के आसपास शुरू होता है और लगभग 21 जून तक चलता है। यह पूरे भारत में फसल के दिन के रूप में मनाया जाता है।